यहोवा के दिन के लिए तैयार रहें!
पहला थिस्सलुनीकियों से मुख्य अंश
यहोवा का दिन! प्राचीन थिस्सलुनीके में मसीहियों ने सोचा कि यह सन्निकट था। क्या वे सही थे? यह कब आता? वह एक जरूरी विषय था जो पौलुस प्रेरित की थिस्सलुनीकियों के नाम पहली पत्री में लिखा गया था, जो कुरिन्थ से हमारे सामान्य युग के करीब ५० वें वर्ष में भेजा गया था।
रोम के प्रान्त मकिदुनिया के प्रशासनिक स्थान, थिस्सलुनीके में पौलुस और सीलास ने मंडली स्थापित करी। (प्रेरितों के काम १७:१-४) बाद में, थिस्सलुनीकियों के नाम अपनी पहली पत्री में, पौलुस ने प्रशंसा करी, चेतावनी दी, और यहोवा के दिन पर बातचीत करी। इस पत्री से हम भी लाभ उठा सकते हैं, विशेषकर अभी, जब यहोवा का दिन इतना निकट है।
प्रशंसा और उत्साहित करना
पौलुस ने थिस्सुलुनीकियों की पहले प्रशंसा करी। (१:१-१०) वो विश्वासी कार्य और धीरज के लिए प्रशंसा के योग्य थे। यह प्रशंसनीय भी था, कि उन्होंने “बड़े क्लेश में पवित्र आत्मा के आनन्द के साथ वचन को स्वीकार” किया। क्या आप दूसरों की प्रशंसा करते हैं, जैसे पौलुस ने किया?
प्रेरित ने एक अच्छा उदाहरण प्रस्तुत किया था। (२:१-१२) फिलिप्पी में अपमानजनक व्यवहार के बावजूद, उसने थिस्सलुनीकियों को ‘सुसमाचार सुनाने के लिए परमेश्वर से हियाव पाया।’ उसने झूठी प्रशंसा, लालच और महिमा पाने से अपने को दूर रखा था। पौलुस एक खर्चीला बोझ नहीं बन गया था परन्तु उनके साथ वैसा ही कोमल था जैसा एक दूध पिलानेवाली माँ अपने बच्चे के साथ होती है। आज प्राचीनों के लिए कितना अच्छा उदाहरण है!
पौलुस के अगले शब्दों ने थिस्सलुनीकियों को सताहट में दृढ़ रहने के लिए उत्साहित किया। (२:१३–३:१३) उन्हानें अपने देशवासियों के द्वारा सताहट में धीरज धरा था, और तीमुथियुस ने उनकी आत्मिक स्थिति के बारे में पौलुस के पास अच्छी खबर दी थी। प्रेरित ने प्रार्थना की, कि वे प्रेम में बढ़ते जाएं और उनके मन दृढ़ बने रहें। इसी के समान, अब यहोवा के गवाह सताए जा रहे संगी विश्वासियों के लिए प्रार्थना करते हैं, यदि संभव हो तो उन्हें उत्साहित करते हैं, और उनकी वफादारी के बारे में जान कर आनन्दित होते हैं।
आत्मिक रूप से जागते रहें!
इसके बाद थिस्सलुनीकियों ने सलाह प्राप्त करी। (४:१-१८) उन्हें परमेश्वर को खुश करने वाले मार्ग पर और पूरी तरह से चलना था, और अधिक भाईचारे के प्रेम को दिखाते हुए और उनकी जरूरतों को पूरा करने के लिए अपने हाथों से कार्य करना था। साथ ही, इस आशा के साथ एक दूसरे को सांत्वना देनी थी कि यीशु की उपस्थिति में आत्मा से उत्पन्न विश्वसी जो मर चुके थे पहले उठाए जाएंगे और उसके साथ एक हो जाएंगे। बाद में, शेष अभिषिक्त जन अपने मृत्यु और पुनरूत्थान के समय मसीह और जिन्हें स्वर्गीय जीवन के लिए पहले से ही पुनरुत्थित किया है, के साथ शामिल हो जाएंगें।
इसके बाद पौलुस ने यहोवा के दिन पर बातचीत करी और आगे सलाह दी। (५:१-२८) यहोवा का दिन चोर की नाईं आ रहा था, जब कि “शान्ति और सुरक्षा” की उद्घोषणा के बाद निश्चित विनाश है। इसलिए थिस्सलुनीकियों को विश्वास और प्रेम की झिल्म और उद्धार की आशा का टोप से सुरक्षित होकर आत्मिक रूप से जागृत रहना था। मंडली में जो अध्यक्षता करते थे उनके लिए उन्हें गहरा सम्मान दिखाना था और दुष्टता से बचे रहना था, जैसा हमें भी करना है। थिस्सलुनीकियों के नाम पौलुस की पहली पत्री से हमें प्रोत्साहित होना चाहिए कि हम संगी विश्वासियों की प्रशंसा करें और उत्साहित करें। आचरण और मनोवृत्ति में अनुकरणीय होने के लिए भी इससे हमें बढ़ावा पाना चाहिए। और निश्चय इसकी सलाह हमे यहोवा के दिन के लिए तैयार रहने में मदद कर सकती है।
[पेज 31 पर बक्स/तसवीर]
झिल्म और टोप: आत्मिक जागृति के लिए प्रोत्साहित करते हुए, पौलुस ने लिखा: “विश्वास और प्रेम की झिल्म पहिनकर और उद्धार की आशा का टोप पहिनकर सावधान रहें।” (१ थिस्सलुनीकियों ५:८) एक झिल्म एक योद्धा का वक्ष-रक्षक कवच था, जो लोहे की दरत, जंजीर या सिकड़ी, या ठोस धातु से बना होता था। इसी प्रकार, विश्वास की झिल्म हमारी आत्मिक रूप से रक्षा करती है। और प्राचीन टोप के बारे में क्या? अक्सर धातु से बना, यह एक सैनिक के लिए सिर का पहनावा था जो इस प्रकार बनाया गया था कि युद्ध के दौरान योद्धा की रक्षा करे। जैसे टोप योद्धा के सिर की सुरक्षा करता था, वैसे ही उद्धार की आशा मानसिक शक्तियों की सुरक्षा करती है, इस तरह एक मसीही को खराई कायम रखने के योग्य बनाती है। यहोवा के लोगों को ऐसे आत्मिक कवच की पहनना कितना महत्वपूर्ण है!—इफिसियों ६:११-१७.