विश्वास में पक्का बने रहो!
तीतुस को लिखी पत्री से विशिष्टताएँ
मेडिटरेनियन सागर के क्रेते द्वीप की मसीही मण्डलियों को आध्यात्मिक ध्यान की आवश्यकता थी। कौन उनकी मदद कर सकता था? अजी, प्रेरित पौलुस का सहकर्मी तीतुस! वह साहसी, औरों को सिखाने के योग्य, भले भले कामों में सरगर्म और विश्वास में पक्का था।
पौलुस ने रोम में हुई अपनी पहली और दूसरी क़ैद के बीच क्रेते की यात्रा की थी। वह तीतुस को कुछ बातें सुधारने और मण्डली के प्राचीनों को नियुक्त करने के लिए द्वीप पर छोड़ गया था। तीतुस को झूठे उपदेशकों को फटकारने और एक उत्तम मिसाल पेश करने के लिए भी कहा जाता। ये सभी बातें तीतुस के नाम पौलुस की पत्री में बताए गए हैं, जो संभवतः सामान्य युग के वर्ष ६१ और वर्ष ६४ के बीच मॅसिडोनिया से भेजा गया था। प्रेरित के उपदेश पर अमल करने से आधुनिक अध्यक्षों और संगी विश्वासियों को साहसी, उत्साही और आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ रहने की मदद होती है।
अध्यक्षों से क्या अपेक्षित है?
अध्यक्षों को नियुक्त करना और कुछ गंभीर समस्याओं से निपटना ज़रूरी था। (१:१-१६) अध्यक्ष के तौर से नियुक्त होने के लिए, एक आदमी को निर्दोष, निजी रूप से और अपने पारीवारिक जीवन में अनुकरणीय, सत्कारशील, संतुलित और आत्म-संयमी होना था। उसे जो सच्चाई थी, वह सीखाना था और जो लोग खण्डनात्मक बातें व्यक्त कर रहे थे, उन्हें उपदेश देकर फटकारना था। साहस की ज़रूरत इसलिए थी कि मण्डली में मौजूद अनियंत्रित आदमियों का मुँह बन्द करना था। ख़ासकर यह उन लोगों के विषय में सच था जो ख़तना के अभ्यास पर डटे रहे थे, क्योंकि उन्होंने अनेक घर के घर बिगाड़ दिए थे। यदि मण्डली को आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ रहना था तो सख़्त फटकार की ज़रूरत होती। आज, मण्डली की उन्नति को ध्यान में रखकर, मसीही अध्यक्षों को फटकार और उपदेश देने के लिए साहस की भी ज़रूरत होती है।
स्वस्थ उपदेश पर अमल करें
तीतुस को आध्यात्मिक रूप से स्वास्थ्यकारी शिक्षण देना था। (२:१-१५) बूढ़े पुरुषों को संयम, गंभीरता, स्वस्थ मन, विश्वास, प्रेम और धीरज में अनुकरणीय होना था। बूढ़ी स्त्रियों का “चाल चलन पवित्र लोगों का सा” होना चाहिए था। “अच्छी बातें सिखानेवाली” के रूप में, वे जवान स्त्रियों को अपने पत्नी और माँ होने के फ़र्ज़ों का सही नज़रिया रखने की मदद कर सकती थीं। जवान पुरुषों का मन स्वस्थ होना चाहिए था, और ग़ुलामों को उनके स्वामियों के अधीन इस तरह रहना चाहिए था कि यह परमेश्वर के शिक्षा को शोभा दे। सभी मसीहियों को अभक्ति से मन फेरकर इस युग में परमेश्वर तथा यीशु मसीह की महिमा के प्रगट होने की बाट जोहते जोहते, स्वस्थ मन से जीवन बिताना था। इसी यीशु ने “अपने आप को हमारे लिए दे दिया, कि हमें हर प्रकार के अधर्म से छुड़ा ले, और शुद्ध करके अपने लिए एक ऐसी जाति बना ले जो भले भले कामों में सरगर्म हो।” ऐसे पक्के सलाह पर अमल करने के द्वारा, आइए हम भी ‘परमेश्वर के उपदेश को शोभा दें।’
पौलुस का समाप्ति में दिया सलाह आध्यात्मिक स्वास्थ्य को प्रोत्साहन देता है। (३:१-१५) अधिकारियों को उचित अधीनता दिखाना और समझदारी विकसित करना ज़रूरी है। मसीहियों को अनन्त जीवन की आशा है, और पौलुस के शब्दों पर इसलिए ज़ोर देना ज़रूरी था कि उन्हें अपना ध्यान भले कामों पर जमाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। मूर्ख विवादों और व्यवस्था के विषय में झगड़ों से बचे रहना ज़रूरी था, और किसी मत-प्रवर्तक को एक-दो बार समझाने के बाद अस्वीकार करना था। जब प्राचीन आज ऐसे उपदेश पर अमल करेंगे, तब वे और उनके संगी विश्वासी विश्वास में पक्का बने रहेंगे।
[पेज 10 पर बक्स/तसवीरें]
मदिरा का गुलाम नहीं: हालाँकि स्त्रियों को मण्डली में पुरुषों को सिखाना नहीं चाहिए, बूढ़ी स्त्रियाँ छोटी उम्र की स्त्रियों को एकान्त में सिखा सकती हैं। परन्तु इस संबंध में प्रभावकारी होने के लिए, अधिक उम्र की स्त्रियों को पौलुस के शब्दों पर अमल करना चाहिए: “बूढ़ी स्त्रियों का चालचलन श्रद्धालु हो, निन्दात्मक नहीं, न ही मदिरा का गुलाम; पर अच्छी बातें सिखानेवाली हों।” (तीतुस २:१-५, न्यू.व.; १ तीमुथियुस २:११-१४) शराब पीने के प्रभावों के विषय में चिन्ता के कारण, अध्यक्षों, सहायक सेवकों और बूढ़ी स्त्रियों को संयमी रहना चाहिए और उन्हें ज़्यादा शराब नहीं पीनी चाहिए। (१ तीमुथियुस ३:२, ३, ८, ११) सभी मसीहियों को मद्यासक्ति से दूर रहना चाहिए और सुसमाचार सुनाने का “पवित्र काम” करते समय उन्होंने शराब पीने से परहेज़ करना चाहिए।—रोमियों १५:१६; नीतिवचन २३:२०, २१.