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  • क्यों मसीही उपासना उच्च है

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  • क्यों मसीही उपासना उच्च है
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1991
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1991
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क्यों मसीही उपासना उच्च है

इब्रानियों को लिखी पत्री से विशिष्टताएँ

जब यहोवा परमेश्‍वर ने अपने पुत्र, यीशु मसीह को इस पृथ्वी पर भेजा, तब उन्होंने उपासना करने के उच्च लक्षण स्थापित किए। यह इसलिए था कि मसीहियता का प्रवर्तक, यीशु, स्वर्गदूतों और भविष्यवक्‍ता मूसा से उच्च है। प्राचीन इस्राएल में लेवियों के याजकत्व की तुलना में मसीह का याजकत्व अधिक श्रेष्ठ है। और यीशु का बलिदान मूसा की व्यवस्था के अंतर्गत चढ़ाए जानेवाले पशुबलि की तुलना में कहीं अधिक श्रेष्ठ है।

इन बातों को इब्रानियों के नाम लिखी पत्री में स्पष्ट किया गया है। प्रत्यक्षतः यह लगभग सामान्य युग के वर्ष ६१ में रोम से प्रेरित पौलुस द्वारा लिखी गयी थी, और यह यहूदिया में रहनेवाले इब्रानी विश्‍वासियों को भेज दी गयी थी। प्रारंभिक समय से, यूनानी और एशियाई मसीहियों ने माना कि पौलुस इसका लेखक था, और इसकी पुष्टि लेखक की इब्रानी शास्त्रों की व्यापक सुविज्ञता, और उसके तर्कसंगत परिवर्धन, दोनों से होती है, जो कि ठेठ प्रेरित की ही शैली है। शायद उसने अपना नाम इसलिए नहीं लिखा कि इसके ख़िलाफ़ यहूदियों का पूर्वाग्रह था और इसलिए कि वह “अन्यजातियों के लिए प्रेरित” के तौर से प्रसिद्ध था। (रोमियों ११:१३) अब आइए हम मसीहियता की श्रेष्ठ विशेषताओं को अधिक सूक्ष्म रूप से देखें, जैसा कि इब्रानियों के नाम पौलुस की पत्री में प्रकट किया गया है।

मसीह स्वर्गदूतों और मूसा से उच्च है

सबसे पहले परमेश्‍वर के पुत्र का उच्च स्थान दिखाया गया है। (१:१-३:६) स्वर्गदूत उसे प्रणाम करते हैं, और उसकी बादशाहत परमेश्‍वर पर निर्भर है। इसीलिए हमें उन बातों पर अधिक ध्यान देना चाहिए जो पुत्र ने कही थीं। इसके अतिरिक्‍त, हमें याद रखना चाहिए कि यद्यपि मनुष्य के रूप में यीशु स्वर्गदूतों से निम्न था, फिर भी बाद में उसे उनके ऊपर उन्‍नत किया गया और उसे आनेवाली बसी हुई पृथ्वी के ऊपर अधिकार दिया गया।

यीशु मसीह मूसा से भी प्रवर है। यह कैसे? ख़ैर, मूसा परमेश्‍वर के इस्राएली भवन में मात्र एक सेवक था। परन्तु, यहोवा ने यीशु को उस पूरे घर, या परमेश्‍वर के लोगों की कलीसिया के ऊपर अधिकारी ठहरा दिया।

मसीही परमेश्‍वर के विश्राम में प्रवेश करते हैं

फिर प्रेरित बताता है कि परमेश्‍वर के विश्राम में प्रवेश करना संभव है। (३:७-४:१३) मिस्री गुलामी से छुड़ाए गए इस्राएली उस में प्रवेश न कर सके क्योंकि वे अवज्ञाकारी थे और उन में विश्‍वास की कमी थी। लेकिन हम उस विश्राम में प्रवेश कर सकते हैं यदि हम परमेश्‍वर पर विश्‍वास करें और आज्ञाकारी रूप से मसीह का अनुसरण करें। तब, सिर्फ़ एक हफ़्तेवार सब्त का पालन करने के बजाय, हम हर दिन सभी स्वार्थी कामों से विश्राम लेने के उच्च आशीर्वाद का आनन्द लेंगे।

परमेश्‍वर के विश्राम में प्रवेश करना उनके वचन में दिया हुआ एक वादा है, जो कि “हर एक दोधारी तलवार से चोखा है, और जीव, और आत्मा को . . . वार पार छेदता है।” यह ऐसा इस तरह करता है कि यह अभिप्रेरणाओं और रवैयों को जानने और शारीरिक अभिलाषाओं तथा मनोवृत्ति को अलग करने के लिए वार पार छेदता है। (रोमियों ७:२५ से तुलना करें।) यदि हमारा “जीव,” या एक व्यक्‍ति के रूप में जीवन, एक ईश्‍वरपरायण “आत्मा,” या मनोवृत्ति, से जोड़ा जाए, तो हम परमेश्‍वर के विश्राम में प्रवेश कर सकते हैं।

एक उच्च याजकत्व और वाचा

पौलुस फिर मसीह के याजकत्व और नई वाचा की उच्चता दिखाता है। (४:१४-१०:३१) निष्पाप यीशु मसीह के मन में पापी मानवों के लिए संवेदना है, इसलिए कि, हमारे जैसे, वह सब बातों में परखा गया है। इसके अतिरिक्‍त, परमेश्‍वर ने उसे “मलिकिसिदक की रीति पर सदा के लिए महायाजक का पद” दिया है। लेवीय महायाजकों से भिन्‍न, यीशु अविनाश जीवन का स्वामी है और इस प्रकार उसे अपने उद्धार करने के कार्य में किसी उत्तराधिकारी की ज़रूरत नहीं। उसे पशुबलि चढ़ाने की ज़रूरत नहीं, इसलिए कि उसने अपना कहीं अधिक उच्च पापरहित देह चढ़ाकर अपने लहू के मूल्य के साथ स्वर्ग में प्रवेश किया है।

नयी वाचा, जो यीशु के लहू से वैधीकृत किया गया, व्यवस्था वाचा से उच्च है। जो लोग नयी वाचा में हैं, उनके हृदय में परमेश्‍वर के नियम लिखे हैं और उन्हें पापों की क्षमा मिली है। (यिर्मयाह ३१:३१-३४) इसके लिए कृतज्ञता महसूस करके, वे अपनी आशा के बारे में दूसरों को बताने और संगी दुःखी विश्‍वासियों के साथ एकट्ठा होने के लिए प्रेरित होते हैं। उन से भिन्‍न, जान-भूझकर पाप करनेवालों के लिए फिर कोई बलिदान बाक़ी नहीं रहता।

विश्‍वास अत्यावश्‍यक है!

इस उच्च नयी वाचा से लाभ प्राप्त करने के लिए हमें विश्‍वास की ज़रूरत है। (१०:३२-१२:२९) यदि हमें उन बातों को प्राप्त करना है जिसका वादा यहोवा ने किया है, तो सहनशीलता की भी ज़रूरत है। सहनशील होने के लिए एक प्रोत्साहन के तौर पर, हमारे इर्द-गिर्द मसीही-पूर्व गवाहों का एक ‘बड़ा बादल’ मौजूद है। बहरहाल, विशेष रूप से, हमें यीशु के कष्ट भुगतते वक्‍त निष्कलंक आचरण पर निकट रूप से ध्यान देना चाहिए। परमेश्‍वर हम पर जो भी कष्ट आने देते हैं, यदि उसे अनुशासन के तौर से देखा जाए, तो यह धर्म का शान्तिमय प्रतिफल उत्पन्‍न करता है। यहोवा के वादों की विश्‍वसनीयता के कारण उनकी पवित्र सेवा “दैवी भक्‍ति और श्रद्धा सहित” करने के लिए हमारी इच्छा बढ़नी चाहिए।

पौलुस प्रोत्साहन के साथ समाप्त करता है। (१३:१-२५) विश्‍वास से हमें प्रेरित होना चाहिए कि हम भाईचारे की प्रीति प्रदर्शित करें, पहुनाई करें, संगी दुःखी विश्‍वासियों को याद करें, विवाह-बन्धन को आदर की बात समझें और “जो तुम्हारे पास है, उसी पर सन्तोष” करें। हमने उन लोगों के विश्‍वास का अनुसरण करना चाहिए जो मण्डली में अगुवाई करते हैं और उनका आज्ञापालन करना चाहिए। इसके अलावा, हमने धर्मत्याग से बचे रहना चाहिए, यीशु द्वारा सही निन्दा सहनी चाहिए, ‘परमेश्‍वर के लिए स्तुतिरूपी बलिदान सर्वदा चढ़ाना’ चाहिए और भलाई करते रहना चाहिए। ऐसा आचरण भी सच्ची मसीहियता की उच्च विशेषताओं में समाविष्ट है।

[पेज 12 पर बक्स/तसवीरें]

भाँति भाँति के स्नान: इस्राएल के तम्बू में की जानेवाली उपासना की विशेषताएँ “केवल खाने पीने की वस्तुओं, और भाँति भाँति के स्नान” से संबंध रखती थीं। (इब्रानियों ९:९, १०) ये स्नान आनुष्ठानिक धुलाई हुआ करते थे, जो मूसा की व्यवस्था में आवश्‍यक था। जो पात्र अशुद्ध किए गए थे, उन्हें धोया जाता था, और आनुष्ठानिक धुलाई में व्यक्‍ति के वस्त्रों की धुलाई और स्नान भी शामिल था। (लैव्यव्यवस्था ११:३२; १४:८, ९; १५:५) याजक स्नान लेते थे, और होमबलि से संबंधित वस्तुओं को भी धोया जाता था। (निर्गमन २९:४; ३०:१७-२१; लैव्यव्यवस्था १:१३; २ इतिहास ४:६) परन्तु “भाँति भाँति के स्नान” में ‘कटोरों, लोटों, और ताँबे के बरतनों’ का आनुष्ठानिक ‘धोना-माँजना’ समाविष्ट नहीं था, जो कि मसीहा के आने के समय तक कुछ यहूदियों का अभ्यास बन चुका था; और इब्रानियों ९:१० ना बपतिस्मा देनेवाले यूहन्‍ना द्वारा किए जल निमज्जन का उल्लेख करता है और न ही उन लोगों के बपतिस्मा का उल्लेख, जो मसीही बनकर परमेश्‍वर को अपने समर्पण के प्रतीक में करते हैं।—मत्ती २८:१९, २०; मरकुस ७:४; लूका ३:३.

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