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  • लहू से जीवन बचाना—कैसे?
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लहू से जीवन बचाना—कैसे?

“तू जीवन को अपना ले . . . [परमेश्‍वर] की बात मानो, . . . क्योंकि तेरा जीवन और दीर्घजीवन यही है।”—व्यवस्थाविवरण ३०:१९, २०

१. सच्चे मसीही किस प्रकार जीवन के लिए अपना आदरभाव दिखाने में अनन्य हैं?

अनेक लोग मृत्युदण्ड, गर्भपात, या शिकार के बारे में अपनी राय सबूत के तौर से देते हुए कहते हैं कि वे जीवन का आदर करते हैं। बहरहाल, एक ख़ास तरीक़ा है, जिस से सच्चे मसीही जीवन के लिए आदर दिखाते हैं। भजन ३६:९ कहता है: “क्योंकि जीवन का सोता [परमेश्‍वर] तेरे ही पास है।” चूँकि जीवन परमेश्‍वर की ओर से एक उपहार है, मसीही प्राण-लहू के बारे में उन्हीं के नज़रिए को अपनाते हैं।

२, ३. लहू के संबंध में हमें परमेश्‍वर को ध्यान में क्यों रखना चाहिए? (प्रेरितों १७:२५, २८)

२ हमारा जीवन लहू पर निर्भर है, जो हमारे पूरे शरीर में ऑक्सीजन ले जाकर, उस में से कार्बन डाइऑक्साइड निकालता है, हमारे शरीर को तापमान में होनेवाले परिवर्तनों के अनुकूल बनने की मदद करता है, और हमें रोगों का प्रतिरोध करने की मदद करता है। जिस व्यक्‍ति ने हमें जीवन दिया, उसी ने इस अद्‌भुत, जीवन-पोषक तरल ऊतक की रचना करके हमें दे दिया। इस से मानवीय जीवन का परिरक्षण करने में उनकी निरन्तर दिलचस्पी दर्शायी जाती है।—उत्पत्ति ४५:५; व्यवस्थाविवरण २८:६६; ३०:१५, १६.

३ दोनों मसीहियों को और आम लोगों को अपने आप से पूछना चाहिए: “क्या लहू मेरे जीवन को सिर्फ़ अपनी प्राकृतिक क्रियाओं के ज़रिए से ही बचा सकता है, या क्या लहू एक ज़्यादा गहरे रूप से जीवन को बचा सकता है?’ जबकि अधिकांश लोग जीवन और लहू की प्राकृतिक क्रियाओं के बीच की कड़ी को पहचानते हैं, दरअसल इस में और बहुत कुछ सम्बद्ध है। मसीहियों, मुस्सलमानों, और यहूदियों, सभी के नीतिशास्त्र एक ऐसे जीवन-दाता पर केंद्रित हैं, जिन्होंने जीवन और लहू के बारे में अपने विचार व्यक्‍त किए। जी हाँ, हमारे सृष्टिकर्ता लहू के बारे में बहुत कुछ कह सकते हैं।

लहू के सम्बन्ध में उनकी स्थिति

४. मानव इतिहास के प्रारंभिक समय में, परमेश्‍वर ने लहू के बारे में क्या कहा?

४ परमेश्‍वर के वचन, बाइबल में लहू का ज़िक्र ४०० से ज़्यादा बार किया गया है। यहोवा के आदेश में सबसे आरंभिक आदेश यह था: “जो भी जीवित है और चलता-फिरता है, वह तुम्हारे खाने के लिए होगा। . . . लेकिन तुम्हें ऐसा माँस नहीं खाना चाहिए जिस में अभी तक जीवनप्राण है।” उन्होंने आगे कहा: “निश्‍चय ही मैं तुम्हारे जीवनप्राण का बदला लूँगा।” (उत्पत्ति ९:३-५, न्यू इंटरनॅशनल्‌ वर्शन) यहोवा ने यह नूह से कहा, जो मानवीय परिवार का प्रजनक था। अतः, सारी मानवजाति को सूचित किया गया कि सृष्टिकर्ता लहू को जीवन का प्रतीक मानते हैं। जो कोई परमेश्‍वर को जीवन-दाता मानने का दावा करता है, उसे इस प्रकार मानना चाहिए कि वह प्राण-लहू के इस्तेमाल के बारे में एक दृढ़ स्थिति लेते हैं।

५. इस्राएलियों की लहू न लेने की सबसे अभिभावी वजह क्या थी?

५ इस्राएल को अपनी विधि संहिता देते समय परमेश्‍वर ने एक बार फिर लहू का ज़िक्र किया। यहूदी तनाख़ वर्शन के अनुसार, लैव्यव्यवस्था १७:१०, ११ में यूँ लिखा गया है: “अगर इस्राएल के घराने में से कोई, या उन में रहनेवाला कोई अजनबी किसी भी प्रकार का लहू खाए, तो मैं उस लहू खानेवाले के विरुद्ध हो जाऊँगा, और मैं उसे उसके रिश्‍तेदारों में से नष्ट कर डालूँगा। क्योंकि शरीर का प्राण तो उसके लहू में रहता है।” उस नियम की शायद स्वास्थ्य-संबंधी फ़ायदे रहे होंगे, लेकिन उस से कहीं अधिक सम्बद्ध था। लहू को ख़ास मानकर, इस्राएलियों को जीवन के लिए परमेश्‍वर पर अपनी निर्भरता दिखानी थी। (व्यवस्थाविवरण ३०:१९, २०) जी हाँ, लहू लेने से परे रहने का मुख्य कारण यह नहीं था कि यह अस्वास्थ्यकारी हो सकता था, लेकिन यह कि परमेश्‍वर के लिए लहू एक ख़ास अर्थ रखता था।

६. हमें क्यों यक़ीन हो सकता है कि यीशु ने लहू के बारे में परमेश्‍वर की स्थिति का समर्थन किया?

६ लहू से मानवीय जीवन बचाने के विषय पर मसीहियत का पक्ष क्या है? यीशु जानता था कि लहू इस्तेमाल करने के बारे में अपने पिता ने क्या कहा था। यीशु ने “कोई पाप न किया, [और] न उसके मुँह में कोई छल-कपट था।” इसका मतलब है कि उस ने परिपूर्ण रूप से व्यवस्था का पालन किया, जिस में लहू से संबंधित नियम भी समाविष्ट था। (१ पतरस २:२२; नॉक्स) इस प्रकार उस ने अपने अनुयायियों के लिए एक आदर्श स्थापित किया, जिस में जीवन और लहू के लिए आदरभाव का आदर्श भी समाविष्ट था।

७, ८. यह किस तरह स्पष्ट हुआ कि लहू के बारे में परमेश्‍वर का नियम मसीहियों पर लागू होता है?

७ इतिहास हमें दिखाता है कि बाद में क्या हुआ जब मसीही शासी वर्ग की परिषद्‌ ने यह तय किया कि क्या मसीहियों को इस्राएल के सभी नियमों का पालन करना था या नहीं। ईश्‍वरीय मार्गदर्शन से, उन्होंने कहा कि मसीही मूसा की व्यवस्था का पालन करने को बाध्य न थे, परन्तु “मूरतों के बलि किए हुओं से, और लोहू से, और गला घोंटे हुओं के माँस से [यानी ऐसा माँस जिस में से लहू उचित रूप से बहाया गया न हो], और व्यभिचार से, परे” रहना “आवश्‍यक” था। (प्रेरितों १५:२२-२९) उन्होंने इस प्रकार यह स्पष्ट किया कि लहू से परे रहना नैतिक रूप से उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना मूर्तिपूजा और घोर अनैतिकता से दूर रहना महत्त्वपूर्ण है।a

८ प्रारंभिक मसीहियों ने उस ईश्‍वरीय निषेध को बनाए रखा। उस पर टिप्पणी करते हुए, बरतानवी विद्वान्‌, जोसेफ़ बेन्सन ने कहा: “लहू खाने की निषेधाज्ञा, जो नूह और उसकी सारी भावी पीढ़ियों को दी गयी, और इस्राएलियों को दोहरायी गयी थी, . . . कभी वापस नहीं ली गयी है, लेकिन, उलटा, नए करार में, प्रेरितों के काम १५ में इसकी पुष्टि हुई; और इस प्रकार इस पर अमल करने की ज़िम्मेदारी स्थायी बनायी गयी है।” फिर भी, लहू के बारे में बाइबल में जो कहा गया है, क्या यह रक्‍ताधान जैसे आधुनिक चिकित्सीय प्रयोगों को वर्जित कर देता है, जो कि स्पष्ट रूप से नूह के दिनों में, या प्रेरितों के समय में इस्तेमाल नहीं किए जाते थे?

चिकित्सा में या उसके रूप में लहू का प्रयोग

९. प्राचीन समय में चिकित्सीय रूप से लहू का प्रयोग किस प्रकार हुआ, जो कि कौनसी मसीही स्थिति के विपरीत था?

९ लहू का औषधीय प्रयोग बिलकुल ही आधुनिक नहीं है। रे टॅन्‍नहिल द्वारा लिखित, फ्लेश ॲन्ड ब्लड्‌ नामक किताब में, यह बताया गया है कि मिस्र में और अन्य जगहों में, तक़रीबन २,००० सालों तक, “लहू को कुष्ठ रोग का सबसे बढ़िया उपचार समझा जाता था।” रोमी लोग विश्‍वास करते थे कि मानव लहू पीने से मिरगी को ठीक किया जा सकता था। तर्तुलियन ने लहू के इस “चिकित्सीय” प्रयोग के बारे में लिखा: “उन लोगों को ग़ौर कीजिए जो लोभी प्यास के साथ, अखाड़े में हुए एक तमाशे के दौरान, दुष्ट अपराधियों का ताज़ा खून . . . अपनी मिरगी को ठीक करने के लिए उठा ले जाते हैं।” यह उस बात से बिलकुल विपरीत थी जो मसीही करते थे: “हम अपने भोजन में जानवरों का भी लहू नहीं लेते . . . मसीहियों के मुक़दमों में आप उन्हें लहू से भरे हुए लँगोचे देते हैं। बेशक, आपको यक़ीन है कि [यह] उनके लिए ग़ैर-क़ानूनी है।” इस निहितार्थ पर ग़ौर कीजिए: लहू को, जो जीवन का प्रतीक था, अपने शरीर में लेने के बजाय, प्रारंभिक मसीही मौत का ख़तरा मोल लेने के लिए तैयार थे।—२ शमूएल २३:१५-१७ से तुलना करें।

१०, ११. ऐसा क्यों माना जा सकता है कि लहू के बारे में परमेश्‍वर का मानदण्ड रक्‍ताधान कराए गए लहू को वर्जित करता है?

१० अवश्‍य, उस समय रक्‍ताधान दिए नहीं जाते थे, क्योंकि रक्‍ताधान के साथ होनेवाले प्रयोग सिर्फ़ १६वीं सदी में ही शुरू हुए। फिर भी, १७वीं सदी में, कोपनहागन विश्‍वविद्यालय में शरीररचना-विज्ञान के एक प्राध्यापक ने आपत्ति उठायी: ‘जो लोग रोगों के भीतरी उपचार में मानव लहू के इस्तेमाल को घसीट ले आते हैं, प्रकट रूप से वे उसका दुरुपयोग करते हैं और गंभीर पाप करते हैं। नरभक्षियों की निन्दा की जाती है। तो हम उन लोगों की घृणा क्यों नहीं करते जो मानव लहू से अपने हलक़ को मैला करते हैं? किसी कटे शिरे से पराए लहू को, या तो मुँह में से या रक्‍ताधान के उपकरणों के ज़रिए, प्राप्त करना उसी तरह है। ईश्‍वरीय क़ानून इस प्रक्रिया के प्रवर्तकों को दहशत की नज़रों से मानता है।’

११ जी हाँ, पिछली सदियों में भी, लोगों ने देखा कि परमेश्‍वर के क़ानून में लहू को, दोनों, शिरों के ज़रिए और मुँह के ज़रिए शरीर में लेना निषिद्ध किया गया था। यह समझने से शायद आज लोगों को यहोवा के गवाहों द्वारा ली गयी स्थिति समझने में मदद होगी, एक ऐसी स्थिति जो परमेश्‍वर की स्थिति से मिलती-जुलती है। जबकि वे जीवन को बहुत महत्त्व देते हैं और चिकित्सीय देखरेख के लिए आभारी हैं, सच्चे मसीही सृष्टिकर्ता की ओर से एक उपहार के तौर से जीवन की क़दर करते हैं, इसलिए वे लहू लेकर जीवन को क़ायम रखने की कोशिश नहीं करते।—१ शमूएल २५:२९.

चिकित्सीय रूप से जीवनरक्षक?

१२. रक्‍ताधान के बारे में विचारशील लोग तर्कसंगत रूप से किस बात पर सोच सकते हैं?

१२ बरसों से विशेषज्ञों ने दावा किया है कि लहू ने जानों को बचाया है। चिकित्सक शायद बताएँगे कि किसी व्यक्‍ति से ज़्यादा खून बहने पर उसे रक्‍ताधान दिया गया और वह ठीक हो गया। इसलिए लोग शायद सोचेंगे, ‘मसीही स्थिति चिकित्सीय रूप से कितनी अक़्लमन्द या बेवकूफ़ है?’ किसी भी गंभीर चिकित्सीय प्रक्रिया पर विचार करने से पहले, एक विवेकी व्यक्‍ति संभव फ़ायदों और संभावनीय ख़तरों के बारे में पता कराएगा। रक्‍ताधानों के विषय में क्या कहा जा सकता है? असलियत यह है कि रक्‍ताधान अनेक ख़तरों से भरे हुए हैं। वे घातक भी हो सकते हैं।

१३, १४. (अ) ऐसे कुछ तरीक़े क्या हैं जिन से रक्‍ताधान जोख़िमी साबित हुए हैं? (ब) पोप के अनुभव ने उन स्वास्थ्य जोख़िमों को किस तरह स्पष्ट रूप से दिखा दिया, जो लहू के लेने से उत्पन्‍न होते हैं?

१३ हाल में, डॉ. एल. टी. गुड़नफ़ और डॉ. जे. एम. शक़ ने ग़ौर किया: “चिकित्सीय समुदाय काफ़ी समय से जानता है कि जबकि रक्‍त सप्लाई उस हद तक सुरक्षित है जितना हम उसे बनाना जानते हैं, रक्‍ताधान में हमेशा ही ख़तरा रहा है। रक्‍ताधान से सबसे अकसर उत्पन्‍न होनेवाली समस्या अब भी नॉन-A, नॉन-B हेपाटाइटिस (NANBH) है; अन्य संभावनीय समस्याओं में हेपाटाइटिस-बी, ॲलोइम्यूनाइज़ेशन, रक्‍ताधान से उत्पन्‍न होनेवाली प्रतिक्रिया, रोग-प्रतिरक्षा का दमन, और आइरन का अतिभार शामिल हैं।” उन गंभीर ख़तरों में से सिर्फ़ एक ही ख़तरे को ‘सन्तुलित’ रूप से आँकते हुए, उस रिपोर्ट में आगे बताया गया: “यह अनुमान लगाया जाता है कि [सिर्फ़ अमेरिका में ही] हर साल तक़रीबन ४०,००० लोगों को NANBH होगा और कि इन में से १० प्रतिशत लोगों को यकृत सूत्रणरोग और/या हेपाटोमा [यकृत कैंसर] होगा।”—दी अमेरिकन जर्नल ऑफ सर्जरी, जून १९९०.

१४ जैसे-जैसे आधान कराए गए लहू से रोग पकड़ने का ख़तरा ज़्यादा सुप्रसिद्ध हो जाता है, लोग रक्‍ताधान के बारे में अपनी राय पर फिर से विचार कर रहे हैं। मिसाल के तौर पर, १९८१ में पोप को गोली लगने के बाद, किसी अस्पताल में उनका उपचार किया गया और उसे जाने दिया। बाद में उसे दो महीनों के लिए वापस जाना पड़ा, और उसकी हालत इतनी गंभीर थी कि ऐसा लगता था कि उसे एक रोगी के तौर से रिटायर होना पड़ेगा। क्यों? उसको दिए गए लहू से उसे साइटोमेगैलोवाइरस संक्रमण हो गया। कुछ लोग सोचेंगे, ‘अगर पोप को दिया गया लहू भी सुरक्षित नहीं, तो हम सर्वसामान्य लोगों को दिए गए रक्‍ताधानों के बारे में क्या कहा जा सकता है?’

१५, १६. अगर रोगों के लिए लहू की जाँच की भी गयी हो, तब भी रक्‍ताधान निरापद क्यों नहीं हैं?

१५ ‘लेकिन क्या वे रोगों का पता करने के लिए लहू की जाँच नहीं कर सकते?’ कोई शायद पूछेगा। ख़ैर, एक मिसाल के तौर से हेपाटाइटिस B के लिए की गयी जाँच पर ग़ौर कीजिए। पेशन्ट केयर (फरवरी २८, १९९०) में बताया गया: “रक्‍ताधान के बाद होनेवाले हेपाटाइटिस की घटना [उसका पता लगाने के लिए] लहू की जाँच के बाद कम हो गयी, लेकिन रक्‍ताधान-पश्‍चात्‌ हेपाटाइटिस की ५-१०% उदाहरण अब भी हेपाटाइटिस B की वजह से ही उत्पन्‍न होते हैं।”

१६ ऐसी जाँच की दोष क्षमता एक और रक्‍त-संचारित ख़तरे से देखी जा सकती है—एड्‌स। एड्‌स की महामारी ने लोगों को संदूषित लहू के ख़तरे के प्रति पूर्णतया जागृत किया है। माना कि अब ऐसे परीक्षण हैं जिनके द्वारा उस वाइरस्‌ के लिए लहू की जाँच की जा सकती है। परन्तु, लहू की जाँच हर जगह नहीं की जाती, और ऐसा प्रतीत होता है कि प्रचलित परीक्षणों द्वारा पता लगे बग़ैर लोगों के लहू में एड्‌स वाइरस्‌ बरसों तक बना रह सकता है। तो मरीज़ों को एड्‌स हो सकता है—और हुआ भी है—ऐसे लहू से जिसकी जाँच की जाकर स्वीकृत ठहराया गया था!

१७. रक्‍ताधान से ऐसी हानि किस तरह हो सकती है जो तात्कालिक प्रकट न हो?

१७ डॉ. गुड़नफ़ और डॉ. शक़ ने “रोग-प्रतिरक्षा के दमन” का भी उल्लेख किया। जी हाँ, ऐसे सबूत बढ़ते जा रहे हैं कि उचित रूप से जोड़ा गया लहू भी मरीज़ की रोग-प्रतिरक्षा तन्त्र का दमन कर सकता है, जिस से कैंसर और मौत हो सकने की संभावना उत्पन्‍न होती है। इस प्रकार, “सिर और गर्दन के कैंसर के मरीज़ों” के बारे में कॅनाडा में किए गए एक परिशीलन में “दिखाया गया कि जिन लोगों को [किसी] अर्बुद की शल्यक्रिया के दौरान रक्‍ताधान दिया गया, उन्होंने बाद में प्रतिरक्षक स्थिति में एक महत्त्वपूर्ण ह्लास अनुभव किया।” (द मेडिकल्‌ पोस्ट, जुलाई १०, १९९०) दक्षिण कॅलिफ़ॉर्निया के विश्‍वविद्यालय के डॉक्टरों ने रिपोर्ट किया था: “स्वरयंत्र के सभी कैंसरों के रोगियों में उसके दुबारा होने का दर लहू प्राप्त न करने वालों में १४% और लहू प्राप्त करने वालों में ६५% था। मुख-विवर, ग्रसनी, नाक या शिरानाल (साइनस) के कैंसरों में उसके फिर घटित होने का दर लहू नहीं लेने वालों में ३१% और लहू लेने वालों में ७१% था।” (ॲनल्स ऑफ ऑटॉलॉजी, हृइनॉलॉजी ॲन्ड लॅरिंजॉलॉजी, मार्च १९८९) प्रतिरक्षा का दमन इस तथ्य का भी आधार प्रतीत होता है कि शल्यक्रिया के दौरान जिन लोगों को लहू दिया जाता है, उन्हें संक्रमण होने की अधिक संभावना है।—बॉक्स देखें।

लहू के लिए कोई विकल्प हैं?

१८. (अ) रक्‍ताधान से सम्बद्ध जोख़िमों से चिकित्सक किस की ओर अपना ध्यान दे रहे हैं? (ब) आप अपने चिकित्सक को विकल्पों के बारे में क्या जानकारी दे सकते हैं?

१८ कुछ लोग सोचेंगे, ‘रक्‍ताधान जोख़िमी हैं, लेकिन क्या कोई विकल्प हैं?’ हम निश्‍चय ही उच्च-कोटीय प्रभावकारी चिकित्सा चाहते हैं, इसलिए क्या लहू को इस्तेमाल किए बिना गंभीर चिकित्सीय समस्याओं को संभालने के कोई विधिसंगत और प्रभावकारी तरीक़े हैं? खुशी की बात है कि इसका जवाब हाँ है। द न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन्‌ (जून ७, १९९०) में रिपोर्ट किया गया: “चिकित्सक, जो अब बढ़ती मात्रा में [एड्‌स] और रक्‍ताधान द्वारा संचारित अन्य संक्रामणों के बारे में अवगत हैं, रक्‍ताधान के जोख़िमों और फ़ायदों पर फिर से ग़ौर कर रहे हैं और विकल्पों की ओर ध्यान दे रहे हैं, जिस में रक्‍ताधान से पूर्णतया बचे रहने का विकल्प भी शामिल है।”b

१९. आपको क्यों यक़ीन हो सकता है कि लहू को अस्वीकार करने के बावजूद भी आपका उपचार चिकित्सीय रूप से सफ़लतापूर्वक किया जा सकता है?

१९ यहोवा के गवाहों ने एक अरसे से रक्‍ताधान अस्वीकार किए हैं, मुख्यतः स्वास्थ्य ख़तरों की वजह से नहीं, बल्कि लहू के बारे में परमेश्‍वर के नियम के आज्ञापालन की वजह से। (प्रेरितों १५:२८, २९) फिर भी, निपुण चिकित्सकों ने लहू को इस्तेमाल किए बिना, और इस से उसके सहवर्ती जोख़िमों से दूर रहकर, गवाह मरीज़ों की सफ़लतापूर्वक देख-भाल की है। चिकित्सीय साहित्य में विवरण की गयी अनेक मिसालों में से सिर्फ़ एक ही मिसाल के तौर से, आर्काइव्ज़ ऑफ़ सर्जरी (नवम्बर १९९०) में ऐसे गवाह मरीज़ों पर की गयी हृदय प्रतिरोपण पर विचार-विमर्श किया गया, जिनके अन्तःकरण ने उन्हें बग़ैर लहू के प्रयोग से ऐसी प्रक्रिया करवाने की अनुमति दी। रिपोर्ट में बताया गया: “यहोवा के गवाहों पर हृदय शल्यक्रिया करने में २५ से ज़्यादा सालों के अनुभव की पराकाष्ठा लहू पदार्थ दिए बग़ैर सफ़ल हृदयी प्रतिरोपण में पहुँची गयी है . . . शल्यक्रिया के आस-पास के समय में एक भी मृत्यु नहीं हुई, और उसके जल्द ही बाद किए गए परिशीलनों से दिखायी दिया है कि इन मरीज़ों में उच्चतर रोपण अस्वीकार दर की प्रवणता नहीं रही है।”

सबसे ज़्यादा क़ीमती लहू

२०, २१. मसीहियों को यह मनोवृत्ति विकसित न करने के बारे में सर्तक क्यों रहना चाहिए कि “लहू बुरी चिकित्सा है”?

२० परन्तु, एक ऐसा हृदय-परक सवाल है जो हम में से हर एक को अपने आप से पूछना होगा। ‘अगर मैं ने रक्‍ताधान स्वीकार नहीं करने का फ़ैसला किया है, तो ऐसा क्यों किया है? ईमानदारी से, मेरी मूलभूत, बुनियादी वजह क्या है?’

२१ हम ने ज़िक्र किया है कि लहू के लिए ऐसे प्रभावकारी विकल्प हैं, जिन से व्यक्‍ति रक्‍ताधान से सम्बद्ध कई ख़तरों के जोख़िम में नहीं पड़ता। हॅपाटाइटिस या एड्‌स जैसे ख़तरों ने अनेक लोगों को ग़ैर-धार्मिक वजहों से लहू अस्वीकार करने के लिए प्रेरित किया है। कुछ लोग इसके बारे में काफ़ी मुखर हैं, मानो वे ऐसी ध्वजा तले प्रयाण कर रहे हों, जिस पर लिखा हो, “लहू बुरी चिकित्सा है।” यह संभव है कि एक मसीही उस प्रयाण में खिंच लिया जाए। लेकिन यह प्रयाण एक बन्द गली में हो रहा है। यह कैसे?

२२. हमें जीवन और मृत्यु के बारे में कौनसा यथार्थवादी दृष्टिकोण रखना चाहिए? (सभोपदेशक ७:२)

२२ सच्चे मसीही समझते हैं कि सबसे बढ़िया अस्पतालों में सबसे बेहतर चिकित्सीय देख-भाल के साथ भी, किसी न किसी समय पर लोग मर जाते हैं। रक्‍ताधान के साथ या उनके बग़ैर, लोग मरते हैं। ऐसा कहना भाग्यवादी होना नहीं है। यह यथार्थवादी होना है। आज मृत्यु जीवन की एक वास्तविकता है। जो लोग लहू के बारे में परमेश्‍वर के नियम को नज़रंदाज़ करते हैं, वे अकसर उस लहू से तात्कालिक या विलंबित हानि का अनुभव करते हैं। कुछ लोग उस रक्‍ताधान कराए गए लहू से मर भी जाते हैं। फिर भी, जैसे कि हम सब को समझना चाहिए, जो लोग रक्‍ताधान से मरे नहीं हैं, उन्होंने अनन्त जीवन नहीं पाया है, इसलिए यह साबित नहीं होता कि लहू ने उनकी जान स्थायी रूप से बचायी है। दूसरी ओर, अधिकांश लोग जो धार्मिक और/या चिकित्सीय वजहों से लहू अस्वीकार करते हैं, पर जो विकल्पी चिकित्सा स्वीकार कर लेते हैं, उनका स्वास्थ्य-लाभ चिकित्सीय रूप से भली-भाँति होता है। वे इस प्रकार अनेक सालों के लिए अपनी ज़िन्दगी बढ़ा सकते हैं—लेकिन अन्तहीन रूप से नहीं।

२३. लहू के बारे में परमेश्‍वर के नियम हमारा पापी होने और छुड़ौती के ग़रज़मन्द होने से किस तरह सम्बद्ध हैं?

२३ यह बात कि सभी मानव अपरिपूर्ण हैं और धीरे-धीरे मर रहे हैं, हमें उस बात की ओर ले जाती है जो कि लहू के बारे में बाइबल का मुख्य मुद्दा है। परमेश्‍वर ने सारी मानवजाति को लहू न खाने को कहा। क्यों? क्योंकि यह जीवन का प्रतीक है। (उत्पत्ति ९:३-६) व्यवस्था नियम में, उन्होंने इस वास्तविकता की ओर ध्यान लगानेवाले नियम दिए कि सारे मानव पापी हैं। परमेश्‍वर ने इस्राएलियों से कहा कि पशुबलि चढ़ाने से, वे दिखा सकते थे कि उनके पापों के लिए प्रायश्‍चित्त ज़रूरी था। (लैव्यव्यवस्था ४:४-७, १३-१८, २२-३०) हालाँकि वे आज हम से यह माँग नहीं करते, फिर भी यह अब महत्त्व रखता है। परमेश्‍वर ने एक ऐसा बलिदान देने का प्रबन्ध किया जिस से सभी विश्‍वास करनेवालों के पापों के लिए पूर्ण रूप से प्रायश्‍चित्त हो सके—यानी छुड़ौती बलिदान। (मत्ती २०:२८) इसीलिए हमें लहू के बारे में परमेश्‍वर का नज़रिया प्राप्त होना ज़रूरी है।

२४. (अ) स्वास्थ्य जोख़िमों को लहू का मुख्य मुद्दा समझना एक ग़लती क्यों होगी? (ब) दरअसल, लहू के प्रयोग के बारे में हमारे दृष्टिकोण का आधार क्या होना चाहिए?

२४ मुख्यतः लहू के स्वास्थ्य जोख़िमों पर ध्यानकेंद्रित करना ग़लती होगी, इसलिए कि यह परमेश्‍वर के ध्यान का केंद्र न था। अपने शरीर में लहू न लेने से शायद इस्राएलियों को अच्छा स्वास्थ्य बनाए रखने में कुछ फ़ायदे रहे होंगे, उसी तरह जैसे सुअरों या मुरदारख़ोर जानवरों का माँस न खाने से उनका फ़ायदा हुआ होगा। (व्यवस्थाविवरण १२:१५, १६; १४:७, ८, ११, १२) फिर भी, याद रखिए, कि जब परमेश्‍वर ने नूह को माँस खाने की इजाज़त दी, उन्होंने ऐसे जानवरों का माँस खाना निषिद्ध नहीं किया। लेकिन उन्होंने यह आदेश ज़रूर दिया कि मानव लहू न खाएँ। परमेश्‍वर संभावनीय स्वास्थ्य जोख़िमों पर मुख्य रूप से ध्यानकेंद्रित नहीं कर रहे थे। यह लहू के बारे में उनके आदेश का मुख्य मुद्दा न था। उनके उपासकों को अपनी जान लहू से बनाए रखना नामंज़ूर करना था, मुख्यतः इसलिए नहीं कि यह अस्वास्थ्यकारी था, लेकिन इसलिए कि यह अपवित्र था। उन्होंने लहू को अस्वीकार इसलिए नहीं किया कि यह दूषित था, लेकिन इसलिए कि यह क़ीमती था। सिर्फ़ बलिदानी लहू से ही वे माफ़ी हासिल कर सकते थे।

२५. लहू जीवन को स्थायी रूप से किस तरह बचा सकता है?

२५ हमारे स्थिति में भी यही सच है। इफिसियों १:७ में, प्रेरित पौलुस ने व्याख्या दी: “हम को उस [मसीह] में उसके लहू के द्वारा छुटकारा, अर्थात्‌ अपराधों की क्षमा, उसके उस अनुग्रह के धन के अनुसार मिला है।” अगर परमेश्‍वर किसी के पाप माफ़ कर देते हैं और उस व्यक्‍ति को धर्मी समझते हैं, तो उस व्यक्‍ति को अन्तहीन जीवन प्राप्त करने की संभावना है। इसलिए यीशु के छुटकारे का लहू स्थायी रूप से जीवन बचा सकता है—हाँ, दरअसल, सदा के लिए जीवन बचा सकता है।

[फुटनोट]

a आदेश इस तरह समाप्त हुआ: “अगर इन से ध्यानपूर्वक परहेज़ करो तो तुम्हारा भला होगा। तुम्हारा स्वास्थ्य अच्छा रहे!” (प्रेरितों १५:२९, N.W.) ये शब्द “तुम्हारा स्वास्थ्य अच्छा रहे” एक ऐसा वादा न था कि ‘अगर तुम लहू या व्यभिचार से परहेज़ करो, तो तुम्हारा स्वास्थ्य बेहतर रहेगा।’ यह चिट्ठी की मात्र समाप्ति ही थी, जैसे, “अलविदा।”

b रक्‍ताधान के लिए अनेक प्रभावकारी विकल्पों का मुआयना हाउ कॅन ब्लड्‌ सेव यूअर लाइफ़? नामक ब्रोशर में किया गया है, जो कि १९९० में वॉचटावर बाइबल ॲन्ड ट्रैक्ट सोसाइटी ऑफ न्यू यॉर्क, निग., द्वारा प्रकाशित हुआ।

क्या आप व्याख्या कर सकते हैं?

▫ यहोवा के गवाहों का रक्‍ताधान अस्वीकार करने का मुख्य कारण क्या है?

▫ कौनसे सबूत से इस बात की पुष्टि मिलती है कि लहू के बारे में बाइबल की स्थिति चिकित्सीय रूप से अतर्कसंगत नहीं है?

▫ लहू के बारे में बाइबल के नियम छुड़ौती बलिदान से किस तरह सम्बद्ध हैं?

▫ लहू से स्थायी रूप से जान बचाने का एकमात्र तरीक़ा क्या है?

[पेज 24 पर तसवीर]

आवर्धित लाल रक्‍ताणु। “लहू के प्रत्येक माइक्रो-लीटर (०.००००३ आउन्स) में ४० लाख से ६० लाख लाल रक्‍ताणु मौजूद हैं।”—“द वर्ल्ड बुक एन्साइक्लोपीडिया”

[चित्र का श्रेय]

Kunkel-CNRI/PHOTOTAKE NYC

[पेज 26 पर बक्स]

रक्‍ताधान और संक्रामण

एक विस्तृत मुआयने के बाद, कि क्या रक्‍ताधान मरीज़ में संक्रामण की ज़्यादा प्रवणता उत्पन्‍न करेगा या नहीं, डॉ. नील ब्लूमबर्ग इस निष्कर्ष पर पहुँचे: “[इस मामले पर] १२ निदानशालीय परिशीलनों में से, १० में पाया गया कि जीवाणुओं के संक्रामण के एक बढ़े हुए ख़तरे से रक्‍ताधान सार्थक और आज़ाद रूप से सम्बद्ध था। . . . इसके अलावा, शल्यक्रिया से कुछ समय पहले रक्‍ताधान देने से मरीज़ का संक्रामण से प्रतिरोध करने की क्षमता बिगड़ सकती है, ख़ासकर अगर रक्‍ताधान के प्रतिरक्षात्मक कुप्रभाव इतने टिकाऊ हैं, जैसे कि कुछेक परिशीलनों से सूचित होता है। . . . अगर इन आँकडों को बढ़ाया जा सके और इनकी पुष्टि की जा सके, तो ऐसा प्रकट होता है कि शल्यक्रिया के बाद के तीव्र संक्रामण समजात रक्‍ताधान से सम्बद्ध शायद एकमात्र सबसे सामान्य समस्या हो सकते हैं।”—ट्रांस्फ्यूशन्‌ मेडिसिन्‌ रिव्यूज़, अक्‍तूबर १९९०.

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