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  • यहोवा तुम्हें सामर्थी बना सकता है

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  • यहोवा तुम्हें सामर्थी बना सकता है
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1994
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w94 12/1 पेज 20-25

यहोवा तुम्हें सामर्थी बना सकता है

“वह थके हुए को बल देता है और शक्‍तिहीन को बहुत सामर्थ देता है।”—यशायाह ४०:२९.

१, २. यहोवा की अत्यधिक सामर्थ के कुछ प्रमाण क्या हैं?

यहोवा “अति सामर्थी” परमेश्‍वर है। हम परमेश्‍वर की “सनातन सामर्थ, और परमेश्‍वरत्व” का सबूत उसकी भौतिक सृष्टि के वैभव में देख सकते हैं। जो उसके सृष्टिकर्तृत्व के ऐसे प्रमाण को मानने से इनकार करते हैं वे अक्षम्य हैं।—भजन १४७:५; रोमियों १:१९, २०.

२ जैसे-जैसे वैज्ञानिक करोड़ों प्रकाश-वर्ष की दूरी तक फैलीं अनगिनत मंदाकिनियों के विश्‍वमंडल की दूरस्थ जगहों का परीक्षण करते हैं, यहोवा की सामर्थ अधिकाधिक स्पष्ट होती जाती है। एक अंधेरी लेकिन खुली रात में आकाश की ओर ताकिए, निश्‍चय ही आप भजनहार की तरह महसूस करेंगे: “जब मैं आकाश को, जो तेरे हाथों का कार्य है, और चंद्रमा और तारागण को जो तू ने नियुक्‍त किए है, देखता हूं; तो फिर मनुष्य क्या है कि तू उसका स्मरण रखे, और आदमी क्या है कि तू उसकी सुधि ले?” (भजन ८:३, ४) और यहोवा ने कितनी अच्छी तरह मनुष्यों की, हमारी सुधि ली है! उसने पहले पुरुष और स्त्री को एक सुन्दर पार्थिव घर प्रदान किया। उसकी मिट्टी में भी सामर्थ थी—ऐसी वनस्पति उगाने की जो पौष्टिक, अप्रदूषित भोजन उत्पन्‍न करे। मनुष्य और जानवर परमेश्‍वर की सामर्थ के इस प्रदर्शन से शारीरिक सामर्थ प्राप्त करते हैं।—उत्पत्ति १:१२; ४:१२; १ शमूएल २८:२२.

३. विश्‍वमंडल की भौतिक वस्तुओं के अतिरिक्‍त क्या है जो परमेश्‍वर की सामर्थ प्रदर्शित करता है?

३ इस तथ्य के अलावा कि आकाश मोहक है और वनस्पति और पशुजगत आनन्ददायी हैं, वे हमें परमेश्‍वर की सामर्थ प्रदर्शित करते हैं। प्रेरित पौलुस ने लिखा: “उसके अनदेखे गुण, अर्थात्‌ उस की सनातन सामर्थ, और परमेश्‍वरत्व जगत की सृष्टि के समय से उसके कामों के द्वारा देखने में आते हैं।” (रोमियों १:२०) परन्तु उसकी सामर्थ का एक और प्रमाण है जो हमारे ध्यान और मूल्यांकन के योग्य है। आप शायद सोचेंगे, ‘वह क्या है जो विश्‍वमंडल से ज़्यादा परमेश्‍वर की सामर्थ प्रदर्शित करता है?’ जवाब है यीशु मसीह। वस्तुतः, उत्प्रेरित होकर प्रेरित पौलुस कहता है कि मसीह जो सूली पर चढ़ाया गया था “परमेश्‍वर की सामर्थ, और परमेश्‍वर का ज्ञान है।” (१ कुरिन्थियों १:२४) ‘ऐसा क्यों है?’ आप शायद पूछें, ‘और इस वक़्त मेरे जीवन से इसका क्या सम्बन्ध है?’

सामर्थ उसके पुत्र द्वारा अभिव्यक्‍त

४. परमेश्‍वर की सामर्थ उसके पुत्र के सम्बन्ध में कैसे प्रदर्शित की गई?

४ परमेश्‍वर की सामर्थ सबसे पहले तब प्रदर्शित हुई जब उसने अपने ही स्वरूप के अनुसार, अपने एकलौते पुत्र को सृजा। इस आत्मिक पुत्र ने परमेश्‍वर की अत्यधिक सामर्थ को दूसरी सभी वस्तुओं की सृष्टि में इस्तेमाल करने के द्वारा “कुशल कारीगर” (NW) के तौर पर यहोवा की सेवा की। (नीतिवचन ८:२२, ३०) पौलुस ने कुलुस्से के अपने मसीही भाइयों को लिखा: “उसी में सारी वस्तुओं की सृष्टि हुई, स्वर्ग की हो अथवा पृथ्वी की, देखी या अनदेखी, . . . सारी वस्तुएं उसी के द्वारा और उसी के लिये सृजी गई हैं।”—कुलुस्सियों १:१५, १६.

५-७. (क) अतीत में परमेश्‍वर की सामर्थ के प्रदर्शनों में मनुष्य कैसे शामिल थे? (ख) यह विश्‍वास करने का क्या कारण है कि परमेश्‍वर की सामर्थ आज मसीहियों के मामले में प्रदर्शित की जा सकती है?

५ हम ‘पृथ्वी पर सृष्ट की गई वस्तुओं’ के भाग हैं। तो क्या परमेश्‍वर की सामर्थ हम मनुष्यों को भी दी जा सकती थी? जबसे परमेश्‍वर ने अपरिपूर्ण मनुष्यों के साथ व्यवहार किया है, समय-समय पर यहोवा ने अपने सेवकों को अतिरिक्‍त सामर्थ प्रदान की है ताकि वे उसके उद्देश्‍यों को पूरा कर सकें। मूसा जानता था कि आम तौर पर अपरिपूर्ण मनुष्य ७० या ८० साल जीता है। (भजन ९०:१०) स्वयं मूसा के बारे में क्या? वह १२० साल की उम्र तक जीया, फिर भी “न तो उसकी आंखें धुंधली पड़ीं, और न उसका पौरुष घटा था।” (व्यवस्थाविवरण ३४:७) जबकि उसका यह अर्थ नहीं कि परमेश्‍वर अपने सभी सेवकों को इतना लम्बा जीने या ऐसा पौरुष रखने में समर्थ करता है, लेकिन यह ज़रूर साबित करता है कि यहोवा मनुष्यों को सामर्थ प्रदान कर सकता है।

६ इब्राहीम की पत्नी के साथ जो उसने किया वह पुरुषों और स्त्रियों को सामर्थ प्रदान करने की परमेश्‍वर की क्षमता को और अधिक दिखाता है। “सारा ने आप बूढ़ी होने पर भी गर्भ धारण करने की सामर्थ पाई; क्योंकि उस ने प्रतिज्ञा करनेवाले को सच्चा जाना था।” या विचार कीजिए कि परमेश्‍वर ने इस्राएल में न्यायियों और दूसरे लोगों को कैसे सामर्थ प्रदान की: ‘गिदोन, बाराक, समसून, यिफतह, दाऊद, शामुएल और भविष्यद्वक्‍ता जो निर्बलता में बलवन्त हुए।’—इब्रानियों ११:११, ३२-३४.

७ ऐसी सामर्थ हमारे मामले में भी क्रियाशील हो सकती है। हम शायद अभी चमत्कार के द्वारा प्राप्त होनेवाली सन्तान की अपेक्षा नहीं करेंगे, या हम शायद समसून के जैसा बल प्रदर्शित नहीं करेंगे। परन्तु हम सामर्थी हो सकते हैं, जैसे पौलुस ने कुलुस्से के आम मनुष्यों को बताया। हाँ, पौलुस ने ऐसे पुरुषों, स्त्रियों, और बच्चों को लिखा, जैसे हम आज कलीसियाओं में पाते हैं, और उसने कहा कि वे “सब प्रकार की सामर्थ से बलवन्त” किए जा रहे थे।—कुलुस्सियों १:११.

८, ९. हम जैसे मनुष्यों के विषय में यहोवा की सामर्थ प्रथम शताब्दी में कैसे व्यक्‍त की गई?

८ यीशु की पार्थिव सेवकाई के दौरान यहोवा ने यह स्पष्ट किया कि उसकी सामर्थ उसके पुत्र के द्वारा कार्य कर रही थी। उदाहरण के लिए, एक समय जब बहुत बड़ी भीड़ कफरनहूम में यीशु के पास आई, तो “चंगा करने के लिये प्रभु [यहोवा, NW] की सामर्थ उसके साथ थी।”—लूका ५:१७.

९ अपने पुनरुत्थान के बाद यीशु ने अपने अनुयायियों को आश्‍वस्त किया कि ‘जब पवित्र आत्मा उन पर आएगा तब वे सामर्थ पाएँगे।’ (प्रेरितों १:८) यह बिलकुल सच था! एक इतिहासकार सा.यु. ३३ के पिन्तेकुस्त के कुछ दिनों बाद की घटनाओं के बारे में रिपोर्ट देता है: “प्रेरित बड़ी सामर्थ से प्रभु यीशु के जी उठने की गवाही देते रहे।” (प्रेरितों ४:३३) स्वयं पौलुस एक ऐसा व्यक्‍ति था जिसको परमेश्‍वर ने नियुक्‍त किए गए कार्य के लिए सामर्थी बनाया। उसके धर्म-परिवर्तन और दृष्टि की पुनःप्राप्ति के पश्‍चात वह “और भी सामर्थी होता गया, और इस बात का प्रमाण दे देकर कि मसीह यही है, दमिश्‍क के रहनेवाले यहूदियों का मुंह बन्द करता रहा।”—प्रेरितों ९:२२.

१०. परमेश्‍वर की ओर से सामर्थ पौलुस के मामले में कैसे सहायक थी?

१० जब हम हज़ारों किलोमीटर तय करनेवाली तीन मिशनरी यात्राओं के लिए ज़रूरी आध्यात्मिक और मानसिक शक्‍ति के बारे में विचार करते हैं, तो हम समझ सकते हैं कि पौलुस को निश्‍चय ही अतिरिक्‍त सामर्थ की ज़रूरत थी। उसने सब प्रकार की तकलीफ़ों को सहा, क़ैद रहा और हुतात्मक यातना सही। कैसे? उसने जवाब दिया: “प्रभु मेरा सहायक रहा, और मुझे सामर्थ दी: ताकि मेरे द्वारा पूरा पूरा प्रचार हो।”—२ तीमुथियुस ४:६-८, १७; २ कुरिन्थियों ११:२३-२७.

११. परमेश्‍वर की सामर्थ के बारे में पौलुस ने कुलुस्से के अपने संगी दासों के लिए किस आशा का उल्लेख किया?

११ तब, यह अचम्भे की बात नहीं कि जब पौलुस कुलुस्से में “मसीह में” अपने “भाइयों” को लिख रहा था, उसने उन्हें आश्‍वासन दिया कि वे यहोवा ‘की महिमा की शक्‍ति के अनुसार सब प्रकार की सामर्थ से बलवन्त हो सकते थे, यहां तक कि आनन्द के साथ हर प्रकार से धीरज और सहनशीलता दिखा सकते थे।’ (कुलुस्सियों १:२, ११) जबकि वे शब्द मुख्यतः अभिषिक्‍त मसीहियों को लिखे गए थे, पौलुस ने जो लिखा उससे वे सभी जो मसीह के पदचिह्नों पर चलते हैं बहुत लाभ उठा सकते हैं।

कुलुस्से में सामर्थ-प्राप्त

१२, १३. कुलुस्सियों की पत्री की पृष्ठभूमि क्या है, और संभवतः इसके प्रति क्या प्रतिक्रिया थी?

१२ एशिया के रोमी प्रान्त में स्थित, कुलुस्से की कलीसिया संभवतः इपफ्रास नामक एक वफ़ादार मसीही के प्रचार द्वारा बनी थी। ऐसा लगता है कि लगभग सा.यु. ५८ में, जब इपफ्रास ने रोम में पौलुस के क़ैद होने के बारे में सुना, तो उसने प्रेरित से भेंट करने और कुलुस्से में उसके भाइयों के प्रेम और दृढ़ता की एक उत्तम रिपोर्ट से उसे प्रोत्साहित करने का निश्‍चय किया। इपफ्रास ने संभवतः कुलुस्से की कलीसिया की कुछ ऐसी समस्याओं के बारे में भी सच्ची रिपोर्ट दी, जिनको सुधारने की ज़रूरत थी। क्रमशः, उस कलीसिया को प्रोत्साहन और सलाह की एक पत्री लिखने के लिए पौलुस प्रेरित हुआ। आप भी उस पत्री के पहले अध्याय से काफ़ी प्रोत्साहन प्राप्त कर सकते हैं, क्योंकि वह इस बात पर प्रकाश डालता है कि यहोवा कैसे अपने सेवकों को सामर्थी बना सकता है।

१३ आप अनुमान लगा सकते हैं कि कुलुस्से के भाइयों और बहनों ने कैसा महसूस किया होगा जब पौलुस ने उनका वर्णन ‘मसीह में विश्‍वासी भाइयों’ के तौर पर किया। “सब पवित्र लोगों से प्रेम” के लिए और जिस समय से वे मसीही बने तब से ‘सुसमाचार का फल लाने’ के लिए वे सराहना के योग्य थे! क्या यही अभिव्यक्‍तियाँ हमारी कलीसिया के बारे में और व्यक्‍तिगत तौर पर हमारे बारे में कही जा सकती हैं?—कुलुस्सियों १:२-८.

१४. कुलुस्सियों के बारे में पौलुस की क्या इच्छा थी?

१४ उसको प्राप्त रिपोर्ट से पौलुस इतना प्रभावित हुआ कि उसने कुलुस्सियों से कहा कि वह उनके लिए प्रार्थना करने से और यह माँगने से नहीं चूका था कि वे ‘आत्मिक ज्ञान और समझ सहित परमेश्‍वर की इच्छा की पहिचान में परिपूर्ण हो जाएं ताकि उनका चाल-चलन प्रभु के योग्य हो।’ उसने प्रार्थना की कि उनमें ‘हर प्रकार के भले कामों का फल लगे, और परमेश्‍वर की पहिचान में बढ़ते जाएं। और उस की महिमा की शक्‍ति के अनुसार सब प्रकार की सामर्थ से बलवन्त होते जाएं, यहां तक कि आनन्द के साथ हर प्रकार से धीरज और सहनशीलता दिखा सकें।’—कुलुस्सियों १:९-११.

आज भी सामर्थ-प्राप्त

१५. पौलुस ने कुलुस्सियों को जो लिखा उसमें प्रतिबिंबित मनोवृत्ति को हम कैसे प्रदर्शित कर सकते हैं?

१५ पौलुस ने हमारे लिए कितना उत्तम उदाहरण प्रस्तुत किया! संसार भर में हमारे भाइयों को हमारी प्रार्थनाओं की ज़रूरत है ताकि वे धीरज धरें और तकलीफ़ों के बावजूद अपना आनन्द बनाए रखें। जब हमें समाचार मिलता है कि दूसरी कलीसिया या दूसरे देश में भाइयों को कठिनाइयाँ हैं तो हमें पौलुस की तरह अपनी प्रार्थनाओं में सुस्पष्ट होना चाहिए। हो सकता है कि पास की एक कलीसिया कोई प्राकृतिक विपत्ति या किसी आध्यात्मिक कठिनाई से पीड़ित है। या यह हो सकता है कि मसीही गृह-युद्ध अथवा अंतर्जातीय हत्याओं की वजह से पीड़ित एक देश में धीरज धर रहे हैं। प्रार्थना में हमें माँगना चाहिए कि परमेश्‍वर हमारे भाइयों की मदद करे ताकि उनका “चाल-चलन प्रभु के योग्य हो,” धीरज धरते हुए राज्य फल उत्पन्‍न करते रहें, और ज्ञान में बढ़ोतरी करें। इस प्रकार परमेश्‍वर के सेवक उसके आत्मा की सामर्थ प्राप्त करते हैं, “सब प्रकार की सामर्थ से बलवन्त होते” हैं। आप विश्‍वस्त हो सकते हैं कि आपका पिता सुनेगा और जवाब देगा।—१ यूहन्‍ना ५:१४, १५.

१६, १७. (क) जैसे पौलुस ने लिखा, हमें किस के लिए धन्यवाद देना चाहिए? (ख) किस अर्थ में परमेश्‍वर के लोग मुक्‍त और क्षमा किए गए हैं?

१६ पौलुस ने लिखा कि कुलुस्सियों को ‘पिता का धन्यवाद करना चाहिए जिस ने उन्हें इस योग्य बनाया कि ज्योति में पवित्र लोगों के साथ मीरास में समभागी हों।’ आइए हम भी अपने स्वर्गीय पिता को, उसकी व्यवस्था में हमारे स्थान के लिए धन्यवाद दें, चाहे वह उसके राज्य के स्वर्गीय या पार्थिव क्षेत्र में हो। परमेश्‍वर ने अपरिपूर्ण मनुष्यों को अपने दृष्टिकोण से कैसे उचित बनाया? पौलुस ने अपने अभिषिक्‍त भाइयों को लिखा: “उसी ने हमें अन्धकार के वश से छुड़ाकर अपने प्रिय पुत्र के राज्य में प्रवेश कराया। जिस में हमें छुटकारा अर्थात्‌ पापों की क्षमा प्राप्त होती है।”—कुलुस्सियों १:१२-१४.

१७ हमारी आशा जो भी हो, स्वर्गीय या पार्थिव, अंधकार की इस दुष्ट व्यवस्था से हमारे छुटकारे के लिए हम रोज़ परमेश्‍वर को धन्यवाद देते हैं। यह छुटकारा यहोवा के प्रिय पुत्र के छुड़ौती बलिदान के बहुमूल्य प्रबन्ध पर हमारे विश्‍वास से संभव हुआ है। (मत्ती २०:२८) आत्मा-अभिषिक्‍त मसीहियों ने छुड़ौती से फ़ायदा उठाया है जो एक ख़ास रीति से उनके लिए लागू की गयी है ताकि वे ‘परमेश्‍वर के प्रिय पुत्र के राज्य में प्रवेश’ कर सकें। (लूका २२:२०, २९, ३०) परन्तु “अन्य भेड़ें” भी इस छुड़ौती से अभी फ़ायदा उठाती हैं। (यूहन्‍ना १०:१६, NW) वे परमेश्‍वर की क्षमा प्राप्त कर सकती हैं ताकि उसके मित्रों के तौर पर उसके सामने उनकी धर्मी स्थिति हो। इस अन्त के समय में “राज्य का यह सुसमाचार” प्रचार करने में उनका एक बड़ा हिस्सा है। (मत्ती २४:१४) इसके अतिरिक्‍त, उनके पास मसीह के सहस्राब्दिक शासन के अन्त तक पूर्ण रूप से धर्मी और शारीरिक तौर पर परिपूर्ण बनने की अद्‌भुत आशा है। जब आप प्रकाशितवाक्य ७:१३-१७ का वर्णन पढ़ते हैं, तो अति संभवतः आप सहमत होंगे कि यहाँ वर्णित परिस्थितियाँ छुड़ाये जाने और आशिष प्राप्त करने का प्रमाण होंगी।

१८. कुलुस्सियों में बताया गया कौन-सा मेल मिलाप परमेश्‍वर अब भी निष्पन्‍न कर रहा है?

१८ पौलुस की पत्री हमें यह समझने में मदद करती है कि हम उस सर्वश्रेष्ठ मनुष्य के कितने ऋणी हैं जो कभी जीवित रहा। परमेश्‍वर मसीह द्वारा क्या निष्पन्‍न कर रहा था? “उसके क्रूस [यातना स्तंभ, NW] पर बहे हुए लोहू के द्वारा मेल मिलाप करके, सब वस्तुओं का उसी के द्वारा से अपने साथ मेल कर ले चाहे वे पृथ्वी पर की हों, चाहे स्वर्ग में की।” परमेश्‍वर का उद्देश्‍य सारी सृष्टि को उसके साथ पूर्ण एकता में वापस लाना है, जैसे अदन में विद्रोह से पहले थी। अब इस मेल मिलाप को निष्पन्‍न करने के लिए उसी व्यक्‍ति का प्रयोग किया जा रहा है जिस व्यक्‍ति के द्वारा सब वस्तुएँ सृजी गई थीं।—कुलुस्सियों १:२०.

किस उद्देश्‍य के लिए सामर्थ-प्राप्त?

१९, २०. हमारा पवित्र और निष्कलंक होना किस बात पर निर्भर करता है?

१९ हममें से जो परमेश्‍वर के साथ मेल मिलाप में हैं उन पर ज़िम्मेदारियाँ आती हैं। हम एक समय पापी और परमेश्‍वर से विमुख थे। परन्तु अब, यीशु के बलिदान पर विश्‍वास रखने से और हमारे मन दुष्ट कार्यों पर अब नहीं होने से, हम मूलतः “पवित्र और निष्कलंक” स्थिति में, ‘[परमेश्‍वर के] सम्मुख निर्दोष’ खड़े हैं। (कुलुस्सियों १:२१, २२) ज़रा सोचिए, जैसे परमेश्‍वर उन प्राचीन वफ़ादार गवाहों से लज्जित नहीं था वैसे ही वह हम से, हमारा परमेश्‍वर कहलाने से लज्जित नहीं है। (इब्रानियों ११:१६) आज, उसका प्रतिष्ठित नाम अनुचित रीति से धारण करने का या पृथ्वी के छोर तक उस नाम की घोषणा करने में हमारे डरने का कोई हम पर दोष नहीं लगा सकता!

२० फिर भी पौलुस ने जो चेतावनी कुलुस्सियों १:२३ में जोड़ी उस पर ध्यान दीजिए: “यदि तुम विश्‍वास की नेव पर दृढ़ बने रहो, और उस सुसमाचार की आशा को जिसे तुम ने सुना है न छोड़ो, जिस का प्रचार आकाश के नीचे की सारी सृष्टि में किया गया।” यहोवा के प्रति हमारे वफ़ादार रहने पर, उसके प्रिय पुत्र के पदचिह्नों पर चलने पर कितना कुछ निर्भर करता है। यहोवा और यीशु ने हमारे लिए कितना कुछ किया है! ऐसा हो कि हम पौलुस की सलाह को मानने के द्वारा उनके लिए अपना प्रेम दिखाएँ।

२१. आज रोमांचित होने के लिए हमारे पास महत्त्वपूर्ण कारण क्यों है?

२१ यह सुनकर कुलुस्से के मसीही ज़रूर रोमांचित हुए होंगे कि ‘वह सुसमाचार जो उन्होंने सुना’ उस का “प्रचार आकाश के नीचे की सारी सृष्टि में किया जा चुका” था। आज यह सुनना और ज़्यादा उत्तेजक है कि किस हद तक राज्य का सुसमाचार ४५ लाख से कहीं ज़्यादा गवाहों द्वारा २३० से अधिक देशों में घोषित किया जा रहा है। हर साल सभी राष्ट्रों से लगभग ३,००,००० लोग परमेश्‍वर से मेल मिलाप कर रहे हैं!—मत्ती २४:१४; २८:१९, २०.

२२. यदि हम दुःख का अनुभव करते हैं, तो भी परमेश्‍वर हमारे लिए क्या कर सकता है?

२२ हालाँकि कुलुस्सियों को यह पत्री लिखते समय पौलुस प्रमाणतः जेल में क़ैद था, फिर भी उसने किसी तरह से अपनी स्थिति के बारे में शिकायत नहीं की। इसके बजाय, उसने कहा: “अब मैं उन दुखों के कारण आनन्द करता हूं, जो तुम्हारे लिये उठाता हूं।” पौलुस जानता था कि ‘आनन्द के साथ हर प्रकार से धीरज और सहनशीलता दिखाना’ क्या है। (कुलुस्सियों १:११, २४) परन्तु वह जानता था कि उसने ऐसा अपनी सामर्थ से नहीं किया था। यहोवा ने उसे सामर्थी बनाया था! आज भी ऐसा ही है। क़ैद किए गए और सताए गए हज़ारों गवाहों ने यहोवा की सेवा करने में अपना आनन्द नहीं खोया है। इसके बजाय, यशायाह ४०:२९-३१ में पाए गए परमेश्‍वर के शब्दों की सच्चाई का वे मूल्यांकन करने लगे हैं: “वह थके हुए को बल देता है . . . जो यहोवा की बाट जोहते हैं, वे नया बल प्राप्त करते जाएंगे।”

२३, २४. कुलुस्सियों १:२६ में बताया गया पवित्र भेद क्या है?

२३ मसीह पर केंद्रित सुसमाचार की सेवकाई पौलुस के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण थी। वह चाहता था कि दूसरे लोग परमेश्‍वर के उद्देश्‍य में मसीह की भूमिका के महत्त्व का मूल्यांकन करें, इसलिए उसने इसका वर्णन “पवित्र भेद” (NW) के तौर पर किया “जो समयों और पीढ़ियों से गुप्त रहा।” लेकिन इसे हमेशा एक भेद नहीं रहना था। पौलुस ने आगे लिखा: “अब उसे उसके पवित्र लोगों पर प्रकट किया गया है।” (कुलुस्सियों १:२६, NW) जब अदन में विद्रोह भड़का, यहोवा ने आनेवाली बेहतर वस्तुओं के बारे में प्रतिज्ञा की, और पूर्वबताया कि ‘स्त्री का वंश सर्प के सिर को कुचल डालेगा।’ (उत्पत्ति ३:१५) इसका क्या अर्थ था? पीढ़ियों तक, सदियों तक, यह एक रहस्य रहा। फिर यीशु आया, और उसने “जीवन और अमरता को उस सुसमाचार के द्वारा प्रकाशमान कर दिया।”—२ तीमुथियुस १:१०.

२४ जी हाँ, वह “पवित्र भेद” मसीह और मसीहाई राज्य पर केंद्रित है। मसीह के साथ राज्य शासन में भागी होनेवालों की ओर संकेत करते हुए, पौलुस ने ‘स्वर्ग की वस्तुओं’ का उल्लेख किया। ये ‘पृथ्वी की सब वस्तुओं’ के लिए, जो यहाँ अनंत परादीस का आनन्द लेंगे, असीम आशिषें लाने में सहायक होंगे। तो आप देख सकते हैं कि “पवित्र भेद के महान धन” (NW) के बारे में पौलुस का ज़िक्र करना बिलकुल उपयुक्‍त था।—कुलुस्सियों १:२०, २७.

२५. जैसे कुलुस्सियों १:२९ में सूचित किया गया है अभी हमारी मनोवृत्ति कैसी होनी चाहिए?

२५ पौलुस राज्य में अपने स्थान के लिए उत्सुकता से प्रत्याशा करता रहा। लेकिन उसने महसूस किया कि यह कुछ ऐसा नहीं था जिसके लिए वह बिना कुछ किए आशा कर सकता था। “मैं उस की उस शक्‍ति के अनुसार जो मुझ में सामर्थ के साथ प्रभाव डालती है तन मन लगाकर परिश्रम भी करता हूं।” (कुलुस्सियों १:२९) ध्यान दीजिए कि यहोवा ने मसीह के द्वारा पौलुस को सामर्थी बनाया कि वह एक जीवन-रक्षक सेवकाई पूरा कर सके। यहोवा आज हमारे लिए भी वही कर सकता है। परन्तु हमें अपने-आप से पूछना चाहिए, ‘क्या मुझ में सुसमाचार सुनाने की वही आत्मा है जो तब थी जब मैं ने पहले-पहल सच्चाई सीखी थी?’ आपका जवाब क्या है? यहोवा की ‘शक्‍ति के अनुसार सामर्थ के साथ तन मन लगाकर परिश्रम करते’ रहने में क्या चीज़ हम में से हरेक की मदद कर सकती है? अगला लेख इसी विषय पर चर्चा करता है।

क्या आपने ध्यान दिया?

▫ हम क्यों विश्‍वस्त हो सकते हैं कि यहोवा मनुष्यों के लिए अपनी सामर्थ प्रदर्शित कर सकता है?

▫ कुलुस्सियों के पहले अध्याय में पौलुस के शब्दों की पृष्ठभूमि क्या है?

▫ कुलुस्सियों १:२० में बताया गया मेल मिलाप परमेश्‍वर कैसे पूरा कर रहा है?

▫ अपनी सामर्थ से, यहोवा हमारे द्वारा क्या निष्पन्‍न कर सकता है?

[पेज 20 पर नक्शा/तसवीर]

कुलुसॆ

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
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