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  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1995
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    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1997
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1995
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क्या आपको याद है?

क्या आपने प्रहरीदुर्ग के हाल के अंकों पर ध्यानपूर्वक विचार किया है? निम्नलिखित बातों को याद करना आप शायद दिलचस्प पाएँ:

▫ मत्ती ११:२८ में दिए गए यीशु के निमंत्रण के सामंजस्य में कैसे एक व्यक्‍ति ‘यीशु के पास’ आता है?

यीशु ने कहा: “यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो अपने आप का इन्कार करे और अपना क्रूस उठाए, और मेरे पीछे हो ले।” (मत्ती १६:२४) इसलिए, यीशु के पास आना सूचित करता है कि स्वयं अपनी इच्छा को परमेश्‍वर और मसीह की इच्छा के अधीन करना, ज़िम्मेदारी का कुछ बोझ उठाना, और ऐसा निरन्तर करते रहना।—८/१५, पृष्ठ १७.

▫ क्यों केवल “थोड़े” लोग उस ‘सकरे मार्ग को जो जीवन की ओर ले जाता है’ पाते हैं जिसका ज़िक्र यीशु ने मत्ती ७:१३, १४ में किया था?

यह सकरा मार्ग परमेश्‍वर के नियमों और सिद्धान्तों द्वारा प्रतिबंधित है। अतः, यह सिर्फ़ ऐसे व्यक्‍ति को आकर्षक लगेगा जो अपने जीवन को परमेश्‍वर के दरज़ों के अनुरूप करने की सच्ची इच्छा रखता है। हालाँकि ‘सकरा मार्ग’ प्रतिबंधक प्रतीत होता है, यह एक व्यक्‍ति को हर महत्त्वपूर्ण तरीक़े से स्वतंत्र कर देता है। इसकी सीमाएँ “स्वतंत्रता की सिद्ध व्यवस्था” द्वारा नियत की गयी हैं। (याकूब १:२५)—९/१, पृष्ठ ५.

▫ समझ कैसे विकसित की जा सकती है?

समझ आसानी से या स्वाभाविक रूप से नहीं मिलती। लेकिन धीरज, प्रार्थना, सच्चे प्रयास, बुद्धिमान संगति, बाइबल के अध्ययन और उस पर मनन से और यहोवा की पवित्र आत्मा पर निर्भर रहने से समझ विकसित की जा सकती है।—९/१, पृष्ठ २१.

▫ मनुष्य की जलन एक अच्छा उद्देश्‍य कैसे पूरा कर सकती है?

यह एक व्यक्‍ति को प्रेरित कर सकती है कि किसी प्रियजन का बुरे प्रभावों से बचाव करे। इसके अतिरिक्‍त, मनुष्य यहोवा और उसकी उपासना के लिए उचित रूप से जलन दिखा सकते हैं। (१ राजा १९:१०)—९/१५, पृष्ठ ८, ९.

▫ यूसुफ के पोतों के सम्बन्ध में उत्पत्ति ५०:२३ में दी गयी अभिव्यक्‍ति कि “वे यूसुफ के घुटनों पर जन्मे” का अर्थ क्या है?

इसका अर्थ बस यह हो सकता है कि यूसुफ ने उन बच्चों को अपना वंशज माना। यह इस बात को भी सूचित कर सकता है कि वह बच्चों के साथ स्नेह से खेला, उन्हें अपने घुटनों पर झुलाया। अच्छा होगा कि आज भी पिता अपने बच्चों को वैसा ही स्नेह दिखाएँ।—९/१५, पृष्ठ २१.

▫ एक सफल विवाह और पारिवारिक जीवन के लिए कौन-सी बात सबसे महत्त्वपूर्ण है?

ऐसे वांछनीय परिणाम पाने के लिए, विवाहित साथियों को हमेशा परमेश्‍वर की इच्छा को पहला स्थान देना है। ऐसा करते हुए, विवाहित साथी एक साथ जुड़े रहने की कोशिश करते हैं और परमेश्‍वर के वचन की सलाह को लागू करने के द्वारा अपनी समस्याओं का हल निकालते हैं। इस प्रकार वे हर क़िस्म की मनोव्यथाओं से दूर रहते हैं जो परमेश्‍वर की इच्छा की उपेक्षा करने से परिणित होती हैं। (भजन १९:७-११)—१०/१, पृष्ठ ११.

▫ अत्यावश्‍यकता की एक ईश्‍वरीय भावना आज कितनी महत्त्वपूर्ण है?

अत्यावश्‍यकता की एक ईश्‍वरीय भावना यहोवा की पूरे मन से सेवा का एक अभिन्‍न भाग है। यह परमेश्‍वर के सेवकों को ‘निराश होकर [अपना] हियाव छोड़ देने’ के लिए प्रेरित करने के इब्‌लीस के प्रयत्नों से रक्षा करती है और उनको विफल करने में मदद करती है। (इब्रानियों १२:३) यह उन्हें संसार और इसके भौतिकवाद में अन्तर्ग्रस्त होने से सुरक्षित रखती है। यह उनके मन को ऊपर की बातों, अर्थात्‌ “सत्य जीवन” पर रखती है। (१ तीमुथियुस ६:१९)—१०/१, पृष्ठ २८.

▫ भेड़ों और बकरियों की नीतिकथा में, यीशु कब अपने सिंहासन पर विराजमान होता है और क्यों? (मत्ती २५:३१-३३)

यह नीतिकथा उसे राजा बनने के अर्थ में विराजमान होते हुए नहीं दिखाती है। इसके बजाय, वह न्यायी के तौर पर विराजमान होता है। यह न्याय-कार्य ऐसा कुछ नहीं है जो कई सालों की लम्बी अवधि तक चलता है। इसके बजाय, यह नीतिकथा भविष्य की ओर संकेत करती है जब यीशु एक सीमित समय में राष्ट्रों पर न्यायदण्ड सुनाएगा और उसे कार्यान्वित करेगा।—१०/१५, पृष्ठ २२, २३.

▫ वह “पीढ़ी” क्या है जिसका यीशु ने इतनी बार ज़िक्र किया?

यीशु ने “यह पीढ़ी” पद का प्रयोग समकालीन जनसमूह सहित उनके ‘अन्धे मार्ग दिखानेवालों’ के लिए किया, जिनसे यहूदी जाति बनी। (मत्ती ११:१६; १५:१४; २४:३४)—११/१, पृष्ठ १४.

▫ मत्ती २४:३४-३९ में यीशु की भविष्यवाणी की अंतिम पूर्ति में, अभिव्यक्‍ति “यह पीढ़ी” किसे सूचित करती है?

यीशु प्रतीयमानतः पृथ्वी के उन लोगों को सूचित करता है जो मसीह की उपस्थिति का चिन्ह देखते हैं परन्तु अपने तौर-तरीक़ों को नहीं सुधारते।—११/१, पृष्ठ १९, ३१.

▫ शरणनगरों और उनके प्रतिबंधों के प्रबन्ध ने प्राचीन इस्राएल के लोगों को कैसे फ़ायदा पहुँचाया?

इसने इस्राएलियों के मन में बिठा दिया कि उन्हें मानव जीवन के प्रति लापरवाह या उदासीन नहीं होना चाहिए। इसने दया दिखाने की ज़रूरत पर भी ज़ोर दिया जब ऐसा करना उचित है। (याकूब २:१३)—११/१५, पृष्ठ १४.

▫ प्रतिरूपक शरणनगर क्या है?

यह हमें लहू की पवित्रता से संबंधित उसके नियम का उल्लंघन करने के कारण मृत्यु से बचाने के लिए परमेश्‍वर का प्रबंध है। (उत्पत्ति ९:६)—११/१५, पृष्ठ १७.

▫ “नया बल प्राप्त” करने में मसीही भाईचारा हमारी मदद कैसे कर सकता है? (यशायाह ४०:३१)

हमारे मसीही भाइयों और बहनों के बीच कुछ ऐसे भाई-बहन हैं जो शायद समान दबावों या परीक्षाओं का सामना कर रहे हों और जो शायद काफ़ी कुछ हमारी भावनाओं की तरह भावनाओं का अनुभव कर रहे हैं। (१ पतरस ५:९) यह जानना आश्‍वासन देनेवाला और विश्‍वास को मज़बूत करनेवाला है कि हम जिस स्थिति से गुज़र रहे हैं वह असामान्य नहीं है और कि हमारी भावनाएँ असाधारण नहीं हैं।—१२/१, पृष्ठ १५, १६.

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