प्रकाश अन्धकार के एक युग को समाप्त करता है
यीशु मसीह और उसके प्रेरितों के समय का संसार इब्रानी शास्त्र के समय के संसार से बहुत ही अलग था। इस बात से बेख़बर, बाइबल पाठक शायद भविष्यवक्ता मलाकी से लेकर सुसमाचार लेखक मत्ती तक सामाजिक और धार्मिक निरन्तरता की कल्पना करें, और उन ४०० वर्षों के दौरान जो हुआ उसे स्पष्ट रूप से न समझें।
अधिकांश वर्तमान-दिन की बाइबलों में इब्रानी शास्त्रों की अंतिम पुस्तक, मलाकी, बाबुल में दासता से मुक्त होने के पश्चात् अपने स्वदेश में इस्राएल के शेषजनों के पुनर्वास के साथ समाप्त होती है। (यिर्मयाह २३:३) भक्त यहूदियों को संसार से दुष्टता मिटाने के लिए और मसीहाई युग की शुरूआत करने के लिए परमेश्वर के न्याय के दिन तक इंतज़ार करने को प्रोत्साहित किया गया। (मलाकी ४:१, २) इस दौरान, फ़ारस शासन कर रहा था। यहूदा में ठहरे हुए फ़ारसी सैनिकों ने शान्ति बनाए रखी और राजाज्ञाओं को फ़ौजी दल के बलबूते पर लागू किया।—एज्रा ४:२३ से तुलना कीजिए।
लेकिन, अगली चार शताब्दियों के दौरान बाइबल देश स्थिर नहीं रहे। आध्यात्मिक अन्धकार और उलझन छाने लगी। निकट पूर्व तो हिंसा, आतंकवाद, दमन, आत्यंतिक धार्मिक सोच-विचार, सिद्धान्तिक तत्त्वज्ञान, और सांस्कृतिक सदमे से हिल चुका था।
मसीही यूनानी शास्त्र की प्रथम पुस्तक, मत्ती को एक अलग युग में लिखा गया था। रोमी सेनाओं ने पाक्स रोमाना, या रोमी शान्ति लागू की। श्रद्धालु लोगों ने दुःख, अत्याचार, और ग़रीबी को हटाने, तथा जीवन, समृद्धि, और प्रशान्ति पर प्रकाश डालने के लिए मसीहा के आगमन का उत्सुकतापूर्वक इंतज़ार किया। (लूका १:६७-७९; २४:२१; २ तीमुथियुस १:१० से तुलना कीजिए।) आइए हम उन परिवर्तनात्मक शक्तियों को क़रीबी से देखें जिन्होंने यीशु मसीह के जन्म के पहले की शताब्दियों में यहूदी समाज को नया आकार दिया।
फ़ारसी समयों में यहूदी जीवन
कुस्रू की उस घोषणा के बाद, जिससे बाबुल की बन्धुआई में से यहूदी सा.यु.पू. ५३७ में मुक्त हुए, यहूदियों और ग़ैर-यहूदी साथियों का एक समूह बाबुल से निकल पड़ा। आध्यात्मिक रूप से प्रतिक्रियाशील ये शेष जन नष्ट शहरों के क्षेत्र को और उजाड़ देश को लौट आए। एदोमियों, फीनीकेवासियों, सामरियों, अरबी प्रजातियों, और अन्य लोगों ने इस्राएल के आकार को छोटा कर दिया, जो कभी विस्तृत क्षेत्र था। यहूदा और बिन्यामीन का जो भाग शेष बचा, वह (नदी के पार) आबार नाहारा नामक फ़ारसी शासन में यहूदा का प्रदेश बन गया।—एज्रा १:१-४; २:६४, ६५.
यहूदीवाद का केम्ब्रिज इतिहास (अंग्रेज़ी) कहती है कि फ़ारसी शासन के अधीन, यहूदा “विस्तार और जनसंख्या वृद्धि की अवधि” का अनुभव करने लगा। यरूशलेम के सिलसिले में वह आगे कहती है: “खेतिहर और तीर्थयात्री भेंट लाए, मन्दिर और शहर धन-सम्पन्न हो गया, और उनके धन ने विदेशी व्यापारियों और कारीगरों को आकर्षित किया।” हालाँकि फ़ारसी लोग स्थानीय सरकार और धर्म के प्रति बहुत ही संहिष्णु थे, कराधान बहुत कड़ा था और केवल बहुमूल्य धातुओं में ही अदा किया जा सकता था।”—नहेमायाह ५:१-५, १५; ९:३६, ३७; १३:१५, १६, २० से तुलना कीजिए।
फ़ारसी साम्राज्य के आख़िरी वर्ष बहुत ही अशान्त समय थे, जो क्षत्रपों के विद्रोह से चिन्हित थे। अनेक यहूदी जन भूमध्य के तट के पास एक बग़ावत में शामिल हो गए और उन्हें उत्तर में कैस्पियन सागर में, हरकेनिया भेज दिया गया। लेकिन, ऐसा नहीं लगता कि यहूदा का अधिकांश भाग फ़ारस के दण्ड से प्रभावित हुआ।
यूनानी काल
महान सिकंदर सा.यु.पू. ३३२ में मध्य पूर्व पर चीते की नाईं झपटा, लेकिन उसके पहले से ही लोग यूनानी आयातों को पसन्द करते थे। (दानिय्येल ७:६) इस बात को समझते हुए कि यूनानी संस्कृति का राजनैतिक मूल्य था, उसने अपने विस्तृत हो रहे साम्राज्य को जानबूझकर यूनानी बनाना आरम्भ किया। यूनानी एक अन्तरराष्ट्रीय भाषा बन गयी। सिकंदर के अल्पकालिक शासन ने कुतर्कों के लिए प्यार, खेल-कूद के लिए उत्साह, और सौंदर्यशास्त्र के लिए क़दर को बढ़ावा दिया। धीरे-धीरे, यहूदी परम्परा भी यूनानीवाद के अधीन झुक गयी।
सामान्य युग पूर्व ३२३ में सिकंदर की मृत्यु के बाद, अराम और मिस्र में उसके उत्तराधिकारी उन भूमिकाओं को निभानेवाले पहले व्यक्ति थे जिन्हें भविष्यवक्ता दानिय्येल ने ‘दक्खिन देश का राजा’ और ‘उत्तर का राजा’ कहा। (दानिय्येल ११:१-१९) मिस्री ‘दक्खिन देश के राजा,’ टोलॆमी द्वितीय फिलडॆल्फस (सा.यु.पू. २८५-२४६) के शासन के दौरान, इब्रानी शास्त्र को सामान्य यूनानी भाषा, कोईनी में अनुवादित किया जाने लगा। इस भाषाण्तर को सॆप्टूआजॆन्ट कहा जाने लगा। इस रचना की कई आयतें मसीही यूनानी शास्त्र में उद्धृत की गयी थीं। यूनानी भाषा, आध्यात्मिक रूप से उलझन में पड़े हुए और अन्धकारमय संसार को प्रबोधक अर्थछटा व्यक्त करने के लिए उत्कृष्ट साबित हुई।
ऐन्टायकस चतुर्थ इपिफॆनज़ के अराम के राजा और फिलिस्तीन के शासक बनने के बाद (सा.यु.पू. १७५-१६४), यहूदीवाद को सरकार-प्रवर्तित सताहट से लगभग मिटा दिया गया था। यहूदियों को मौत की धमकी देकर यहोवा परमेश्वर को त्यागने और केवल यूनानी देवताओं को बलि चढ़ाने के लिए मज़बूर किया गया। सामान्य युग पूर्व १६८ के दिसम्बर में, यरूशलेम के मन्दिर में यहोवा की विशाल वेदी पर एक विधर्मी वेदी बनायी गयी थी, और उस पर यूनानी ज्यूस के लिए बलि चढ़ायी गयी। गाँव के स्तब्ध, लेकिन साहसी पुरुष जूडस मैकबीज़ के नेतृत्व के अधीन एकत्रित हुए और उन्होंने यरूशलेम पर क़ब्ज़ा हासिल करने तक घमासान युद्ध छेड़ें। मन्दिर को परमेश्वर को पुनःसमर्पित किया गया, और उसके अपवित्रीकरण के ठीक तीन वर्ष पश्चात् दैनिक बलिदानों को फिर से चढ़ाया गया।
शेष यूनानी काल के दौरान, यहूदी समाज के लोगों ने अपने क्षेत्र को उसकी प्राचीन सीमाओं तक विस्तृत करने का आक्रामक रूप से प्रयास किया। अपने विधर्मी पड़ोसियों को तलवार की नोंक पर ज़बरदस्ती धर्मपरिवर्तन करने के लिए उनके नवप्राप्त सैन्य कौशल को अधर्मी तरीक़े से इस्तेमाल किया गया। इसके बावजूद, यूनानी राजनैतिक सिद्धान्त ने शहरों और क़सबों को नियंत्रित करना जारी रखा।
इस समय के दौरान, महा याजकपद के प्रतियोगी अकसर भ्रष्ट होते थे। मनसूबों, हत्याओं, और राजनैतिक षड्यंत्रों ने उनके पद को कलंकित किया। यहूदियों के बीच की आत्मा जितनी अधर्मी हुई, उतने ही ज़्यादा लोकप्रिय यूनानी खेल हो गए। युवा याजकों को खेलों में हिस्सा लेने के लिए अपने कर्तव्यों की उपेक्षा करते हुए देखना कितना आश्चर्यजनक था! यहूदी खिलाड़ियों ने “ख़तनारहित” होने के लिए दर्दनाक शल्यक्रिया भी करवाई ताकि वे अन्यजातियों के साथ नग्न होकर प्रतिस्पर्धा करते समय लज्जित न हों।—१ कुरिन्थियों ७:१८ से तुलना कीजिए।
धार्मिक परिवर्तन
प्रारंभिक निर्वासनोत्तर सालों में, वफ़ादार यहूदियों ने विधर्मी धारणाओं और तत्वज्ञान को इब्रानी शास्त्र में प्रकट किए गए सच्चे धर्म के साथ मिलने का विरोध किया। एस्तेर की पुस्तक में, जो फ़ारस के साथ ६० से भी अधिक सालों की निकट संगति के पश्चात् लिखी गयी, ज़रतुश्त-धर्म का एक भी निशान नहीं पाया जाता। इसके अतिरिक्त, इस फ़ारसी धर्म का कोई भी प्रभाव एज्रा, नहेमायाह, अथवा मलाकी की बाइबल पुस्तकों में नहीं पाया जाता, वे सब पुस्तकें जिन्हें फ़ारसी काल (सा.यु.पू. ५३७-४४३) के प्रारंभिक भाग में लिखा गया था।
लेकिन, विद्वान विश्वास करते हैं कि फ़ारसी काल के आख़री भाग में अनेक यहूदियों ने मुख्य फ़ारसी देवता, अहूरा माज़्दा के उपासकों के कुछ विचारों को अपनाना शुरू किया। यह इसीनीयों के लोकप्रिय अन्धविश्वासों और विश्वासों में दिखायी देता है। सियारों, रेगिस्तान के अन्य पशुओं, और निशाचर पक्षियों के लिए सामान्य इब्रानी शब्द, यहूदी मनों में बाबुली और फ़ारसी दन्तकथाओं की दुष्टात्माओं और भूतों से जुड़ गए।
यहूदियों ने विधर्मी विचारों को एक भिन्न दृष्टि से देखना शुरू किया। स्वर्ग, नरक, प्राण, वचन (लोगोस), और बुद्धिमानी की धारणाओं ने नए अर्थ ले लिए। और अगर, जैसे उस वक्त सिखाया जाता था, परमेश्वर इतना दूर था कि वो अब मनुष्यों के साथ संचार नहीं करता था, तो उसे मध्यस्थों की ज़रूरत थी। यूनानी लोग इन मध्यस्थों और संरक्षक आत्माओं को डेइमोन्स पुकारते थे। यह विश्वास अपनाने से कि डेइमोन्स (पिशाच) भले या बुरे हो सकते हैं, यहूदी लोग पैशाचिक नियंत्रण के आसान शिकार बन गए।
एक रचनात्मक परिवर्तन में स्थानीय उपासना शामिल थी। ऐसे स्थानों के रूप में आराधनालय तेज़ी से प्रकट हुए जहाँ यहूदियों की पड़ोसी कलीसियाएँ धार्मिक शिक्षा और सेवाओं के लिए एकत्रित होतीं। यह पता नहीं है कि ठीक-ठीक कब, कहाँ, और कैसे यहूदी आराधनालयों की शुरूआत हुई। चूँकि इन्होंने दूरस्थ देशों के यहूदियों की उपासना की ज़रूरत को पूरा किया जब वे मन्दिर में नहीं जा सकते थे, तो यह साधारणतः माना जाता है कि आराधनालयों को निर्वासन के या निर्वासनोत्तर समयों में स्थापित किया गया था। यह महत्त्वपूर्ण बात है कि ये यीशु और उसके शिष्यों के लिए ‘परमेश्वर, जिसने लोगों को अंधकार से अपनी अद्भुत ज्योति में बुलाया है, उसके महान् गुणों को प्रकट करने’ के लिए उत्तम सभास्थल साबित हुए।—१ पतरस २:९, NHT.
यहूदी-धर्म ने विविध विचारधाराओं को अपनाया
सामान्य युग पूर्व दूसरी शताब्दी में, विविध विचारधाराएँ उभरने लगीं। वे अलग धार्मिक संगठन नहीं थे। इसके बजाय, वे यहूदी धर्म-गुरुओं तत्वज्ञानियों, और राजनैतिक कार्यकर्ताओं के छोटे संघ थे जिन्होंने लोगों को प्रभावित करने और राष्ट्र पर नियंत्रण करने की कोशिश की, सब कुछ यहूदी-धर्म की छत्र-छाया के नीचे।
राजनीति के रंग में रंगे हुए सदूकी लोग मुखतः धनी अभिजात थे, जो अपनी चतुर कूटनीति के लिए सामान्य युग पूर्व दूसरी शताब्दी के मध्य भाग में हस्मोनियाई विद्रोह के समय से प्रख्यात थे। उनमें से अधिकांश लोग याजक थे, लेकिन कुछ लोग व्यापारी और ज़मींदार थे। जब यीशु का जन्म हुआ, तब अधिकांश सदूकी फिलिस्तीन के रोमी शासन को पसन्द करते थे क्योंकि उन्होंने सोचा कि वह अधिक स्थायी था और सम्भवतः वर्तमान स्थिति को क़ायम रखता। (यूहन्ना ११:४७, ४८ से तुलना कीजिए।) कुछ अल्पसंख्यक लोग (हेरोदी) विश्वास करते थे कि हेरोद के परिवार द्वारा शासन राष्ट्रीय भावना के लिए अधिक उपयुक्त है। जैसे भी हो, सदूकी नहीं चाहते थे कि देश यहूदी हठधर्मियों के हाथ जाए या मन्दिर की बागडोर याजकों के बजाय किसी और के पास हो। सदूकियों के विश्वास रूढ़िवादी थे, जो मुख्यतः मूसा के लेखनों की उनकी व्याख्या पर आधारित थे, और इन्होंने फरीसियों के शक्तिशाली पंथ के प्रति उनके विरोध को प्रतिबिम्बित किया। (प्रेरितों २३:६-८) सदूकियों ने इब्रानी शास्त्र की भविष्यवाणियों को अनुमान मानकर उन्हें अस्वीकार किया। उन्होंने सिखाया कि बाइबल की ऐतिहासिक, काव्यात्मक, और नीतिवचनों की पुस्तकें अनुत्प्रेरित और अनावश्यक थीं।
फरीसियों का उद्गम यूनानी काल में यहूदी-विरोधी यूनानीवाद के प्रति सशक्त प्रतिक्रिया के रूप में हुआ। लेकिन, यीशु के दिन में वे कठोर, परम्परा-बद्ध, विधिवादी, अभिमानी, आत्म-धर्मी धर्म-प्रचारक और शिक्षक थे, जिन्होंने राष्ट्र को आराधनालयीन शिक्षा के माध्यम से नियंत्रित करने की कोशिश की। वे मुख्यतः मध्यम वर्ग से आए, और उन्होंने साधारण लोगों का तिरस्कार किया। यीशु ने अधिकांश फरीसियों को स्वार्थी, दयारहित पैसे के प्रेमियों के रूप में देखा जो ढोंग से भरे हुए थे। (मत्ती, अध्याय २३) उन्होंने सम्पूर्ण इब्रानी शास्त्र को अपनी ही व्याख्यानुसार स्वीकार किया, लेकिन अपनी मौखिक परम्पराओं को उसके बराबर या अधिक महत्त्व दिया। उन्होंने कहा कि उनकी परम्पराएँ “व्यवस्था के इर्द-गिर्द एक बाड़ा” थीं। लेकिन, बाड़ा होने के बजाय, उनकी परम्पराओं ने परमेश्वर के वचन को टाल दिया और जनता को उलझाया।—मत्ती २३:२-४; मरकुस ७:१, ९-१३.
इसीनी लोग रहस्यवादी थे जो स्पष्टतः चंद पृथक समुदायों में रहते थे। वे ख़ुद को इस्राएल के वास्तविक शेषजन समझते थे, और शुद्धता से प्रतिज्ञात मसीहा का स्वागत करने की प्रतीक्षा कर रहे थे। इसीनी लोग धर्म-निष्ठ तपस्या का एक चिन्तनशील जीवन बिताते थे और उनके अनेक विश्वासों ने फ़ारसी और यूनानी धारणाओं को प्रतिबिम्बित किया।
अनेक प्रकार के धार्मिक रूप से प्रेरित, हठधर्मी देशभक्त कट्टरपंथियों ने उस हर व्यक्ति को निर्दयता से शत्रु समझा जो स्वतंत्र यहूदी राज्यत्व के रास्ते में आड़े आया। उनकी समानता हस्मोनियायियों से की गयी है, और उन्होंने मुख्यतः आदर्शवादी, साहसी नौ-जवानों को आकर्षित किया। डाकू-हत्यारे या विरोधी योद्धा समझे गए, इन लोगों ने गुरिल्ला दाँवपेचों का प्रयोग किया, जिनसे गाँव के रास्ते और चौराहे ख़तरनाक बन गए और उन दिनों का तनाव बढ़ा।
मिस्र में, यूनानी यहूदियों के बीच यूनानी तत्वज्ञान फूलाफला। वहाँ से वह फिलिस्तीन तक और दूर-दूर तक फैले यहूदी उपनिवेशों में बिखरे हुए यहूदियों तक फैल गया। अप्रामाणिक ग्रंथ और झूठे ग्रंथ लिखनेवाले यहूदी आचार्यों ने मूसा के लेखों को अस्पष्ट, नीरस रूपककथाओं के तौर पर प्रतिपादित किया।
जब तक रोमी युग आया, यूनानीकरण ने फिलिस्तीन को स्थायी रूप से सामाजिक, राजनैतिक, और तात्विक रूप से परिवर्तित कर दिया था। यहूदियों के बाइबलीय धर्म की जगह यहूदीवाद ने ले ली थी, जो बाबुलीय, फ़ारसी, और यूनानी धारणाओं का सम्मिश्रण था जिसमें कुछ हद तक शास्त्रीय सच्चाई मिली हुई थी। लेकिन, कुल मिलाकर सदूकी, फरीसी, और इसीनी लोग राष्ट्र के ७ प्रतिशत से भी कम लोग थे। इन परस्पर-विरोधी शक्तियों के दलदल में यहूदी लोगों की भीड़ फँसी हुई थी, जो “उन भेडों की नाईं जिनका कोई रखवाला न हो, ब्याकुल और भटके हुए से थे।”—मत्ती ९:३६.
उस अन्धेरे संसार में यीशु मसीह ने क़दम रखा। उसका आश्वस्त करनेवाला आमंत्रण सांत्वनादायक था: “हे सब परिश्रम करनेवालो और बोझ से दबे हुए लोगो, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा।” (मत्ती ११:२८) उसे यह कहते हुए सुनना कितना रोमांचक था: “जगत की ज्योति मैं हूं”! (यूहन्ना ८:१२) वाक़ई, उसकी दिलकश प्रतिज्ञा सुखद थी: “जो मेरे पीछे हो लेगा, वह अन्धकार में न चलेगा, परन्तु जीवन की ज्योति पाएगा।”—यूहन्ना ८:१२.
[पेज 26 पर तसवीरें]
यीशु ने दिखाया कि यहूदी धार्मिक अगुवे आध्यात्मिक अन्धकार में थे
[पेज 28 पर तसवीरें]
वह सिक्का जिसमें ऐन्टायकस चतुर्थ (इपिफॆनज़) का चित्र है
[चित्र का श्रेय]
Pictorial Archive (Near Eastern History) Est.