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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1996
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एक कानूनी जीत

अप्रैल १९९५ में, एक महत्त्वपूर्ण अदालती जीत हासिल हुई। यह सब जनवरी २८, १९९२ में शुरू हुआ, जब २४ वर्षीया, लूज़ निरेडा आसविडो क्विलॆस को पोर्ट रीको में वैकल्पिक शल्यचिकित्सा के लिए एल बूएन पास्टॉर अस्पताल में भर्ती कराया गया। भर्ती होने पर, उसने मौखिक और लिखित रूप से बताया कि एक यहोवा की साक्षी होने के नाते वह खून नहीं चढ़वाएगी। (प्रेरितों १५:२८, २९) सम्मिलित अस्पताल कर्मचारी, जिसमें वह डॉक्टर भी था जिसने उसका इलाज किया, भली भांति उसकी इच्छा जानते थे।

उसके ऑपरेशन के दो दिन बाद, लूज़ का बहुत खून बह गया और रक्‍तस्राव के कारण उसे तीव्र अरक्‍तता हो गयी। वह चिकित्सक जो उसका इलाज कर रहा था, डॉ. होसे रॉडरीगेथ रॉडरीगेथ मानता था कि उसकी मदद करने का एकमात्र रास्ता था खून चढ़ाना। इसलिए, उसकी जानकारी अथवा सहमति के बिना, उसने लूज़ को खून चढ़ाने के लिए अदालती आदेश ले लिया।

हालाँकि लूज़ पूरी तरह से होश में थी और अपनी पैरवी करने में समर्थ थी, डॉ. रॉडरीगेथ रॉडरीगेथ ने हठ किया कि मामले की गंभीरता के कारण किसी की सहमति लेने का बिलकुल समय नहीं था। ज़िला वकील, एडवारडो पाराथ सोतो ने फ़ॉर्म पर हस्ताक्षर किया और ज़िला न्यायाधीश, माननीय आंकेल लूईस रॉडरीगेथ रामॉस ने खून चढ़ाने के लिए अदालती आदेश दे दिया।

अतः, जनवरी ३१, १९९२ के दिन, लूज़ को ऑपरेशन कक्ष में ले जाया गया, जहाँ उसे खून चढ़ाया गया। खून चढ़ाते समय उसने कुछ अस्पताल कर्मचारियों को हँसते हुए सुना। दूसरों ने उसे डाँटा और कहा कि उसके साथ जो किया जा रहा था वह उसी की भलाई के लिए था। वह अपना पूरा दम लगाकर लड़ी—लेकिन सब व्यर्थ। दिन ढलने तक लूज़ को चार यूनिट खून दिया जा चुका था।

लूज़ का किस्सा पोर्ट रीको में रक्‍ताधान और यहोवा के साक्षियों के सम्बन्ध में न तो पहला किस्सा था न आख़री। उसके अनुभव से पहले, वयस्क यहोवा के साक्षियों की इच्छा के विरुद्ध खून चढ़ाने के लिए कम से कम १५ अदालती आदेश जारी किए जा चुके थे, और उसके बाद और भी जारी किए गए हैं। दुःख की बात है कि एक मामले में अदालती आदेश का पालन किया गया, और एक मरीज़ को ज़बरदस्ती खून चढ़ाया गया जब वह बेहोश थी।

लेकिन, लूज़ की लड़ाई ऑपरेशन कक्ष में ही समाप्त नहीं हुई। अक्‍तूबर १९९३ में पोर्ट रीको के राष्ट्रमंडल के विरुद्ध एक मुक़दमा दायर किया गया। मुक़दमा श्रेष्ठ अदालत द्वारा सुना गया, और अप्रैल १८, १९९५ के दिन, उसके पक्ष में एक निर्णय लिया गया। अदालत ने कहा कि खून चढ़ाने का आदेश “असंवैधानिक” था “और कानून की उचित प्रक्रिया के बिना मुद्दई को अपने धर्म की स्वतंत्रता, अपनी गोपनीयता और शारीरिक आत्म-निर्धारण के अधिकार से वंचित किया।”

यह निर्णय महत्त्वपूर्ण था, क्योंकि यह पहली बार था कि पोर्ट रीको में एक अदालत ने रक्‍ताधान के सम्बन्ध में यहोवा के साक्षियों के पक्ष में निर्णय किया था। इस न्यायिक-निर्णय ने अत्यधिक प्रतिक्रिया जगायी। एक संवाददाता सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें प्रमुख समाचार पत्र, रेडियो, और टेलीविज़न पत्रकार उपस्थित हुए।

उसी रात एक रेडियो कार्यक्रम में लूज़ के एक वकील के साथ भेंटवार्ता प्रसारित की गयी। श्रोतागण को फ़ोन करके प्रश्‍न पूछने के लिए आमंत्रित किया गया। अनेक डॉक्टरों और वकीलों ने फ़ोन किया और मुक़दमे के प्रति अनुकूल प्रतिक्रिया व्यक्‍त की। फ़ोन करनेवाले एक व्यक्‍ति ने कहा: “विज्ञान यह निश्‍चित करने में समर्थ नहीं हुआ है कि रक्‍ताधान जीवन बचाएगा, और ऐसा सोचना एक भ्रम है।” उसने यह भी कहा: “जल्द ही, रक्‍ताधान इतिहास में आधुनिक चिकित्सा के एक सबसे बड़े विपथन और ग़लती के रूप में लिखा जाएगा।”

एक अति सम्मानित कानून के प्रोफ़ॆसर ने बाद में वॉच टावर संस्था के शाखा दफ़्तर फ़ोन किया और उस पर अपनी गहरी संतुष्टि व्यक्‍त की जिसे उसने “एक बहुप्रशंसित विजय” कहा। उसने आगे कहा कि अदालत का निर्णय सिर्फ़ यहोवा के साक्षियों का ही नहीं, बल्कि पोर्ट रीको के सभी नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों का समर्थन करता है।

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