माइकल फैराडे वैज्ञानिक और विश्वासी पुरुष
“विद्युत का जन्मदाता।” “अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रयोगात्मक वैज्ञानिक।” ये माइकल फैराडे के दो विवरण हैं, जो इंग्लैंड में १७९१ में जन्मा, जिसका विद्युत चुम्बकीय प्रेरण का आविष्कार विद्युत मोटरों और विद्युत-शक्ति उत्पादन के विकास की ओर ले गया।
फैराडे ने रसायन और भौतिकी पर लंदन के रॉयल इंस्टीट्यूशन में विस्तृत रूप से भाषण दिए। विज्ञान को प्रचलित करने के उसके भाषणों ने युवा लोगों को जटिल विचार समझने में मदद दी। उसे अनेक विश्वविद्यालयों से पुरस्कार मिले। फिर भी वह लोक-प्रचार से दूर रहा। वह एक बहुत ही धार्मिक पुरुष था, जो अपने तीन-कमरे के मकान की एकान्तता में और अपने परिवार और संगी विश्वासियों की संगति में बहुत ख़ुश था। फैराडे ने अपने धर्म-मत का वर्णन इस प्रकार किया, “मसीहियों का एक बहुत छोटा और तिरिस्कृत मत, जो सैंडामनवादियों के नाम से . . . जाना जाता है।” वे कौन थे? उनका विश्वास क्या था? और इसने फैराडे को कैसे प्रभावित किया?
सैंडामनवादी
“फैराडे परिवार और सैंडामनवादी गिरजे के बीच आरंभिक सम्बन्ध को माइकल फैराडे के दादा-दादी ने निश्चित किया था,” माइकल फैराडे: सैंडामॆनीअन एण्ड साइंटिस्ट का लेखक, जॆफ़री कैन्टर कहता है। वे एक परिभ्रामी परंपरा-विरोधी सेवक के अनुयायियों के साथ संगति करते थे जिसके साथी सैंडामनवादियों के विश्वासों का समर्थन करते थे।
रॉबर्ट सैंडामन (१७१८-७१) एडिनबर्ग में एक विश्वविद्यालय का छात्र था, और गणित-शास्त्र, यूनानी, और अन्य भाषाओं का अध्ययन कर रहा था जब एक दिन उसने भूतपूर्व प्रॆसबिटॆरियन सेवक जॉन ग्लास को प्रचार करते सुना। उसने जो सुना उससे प्रेरित होकर उसने विश्वविद्यालय छोड़ दिया, पर्थ में घर लौट आया और ग्लास और उसके साथियों के साथ हो लिया।
दशक १७२० में, जॉन ग्लास ने चर्च ऑफ़ स्कॉटलैंड की कुछ शिक्षाओं पर संदेह करना शुरू कर दिया था। परमेश्वर के वचन का उसका अध्ययन उसे इस निष्कर्ष की ओर ले गया कि बाइबलीय इस्राएल जाति एक आत्मिक जाति का प्ररूप थी जिसके नागरिक अनेक राष्ट्रीयताओं से आए थे। उसको इस बात की न्याय-संगति कहीं नहीं मिली कि हर राष्ट्र का एक अलग गिरजा होना चाहिए।
स्कॉटलैंड, डन्डी के पास, टीलिंग में अपने गिरजे से अब संदेहमुक्त न रहने के कारण, ग्लास चर्च ऑफ़ स्कॉटलैंड से अलग हो गया और उसने अपनी सभाएँ आयोजित कीं। लगभग एक सौ लोग उसके साथ हो लिए, और शुरूआत से ही, उन्होंने अपने समूह में एकता बनाए रखने की ज़रूरत महसूस की। उन्होंने अपने बीच उठनेवाले किसी भी मतभेद को मिटाने के लिए मत्ती अध्याय १८, आयत १५ से १७ में अभिलिखित, मसीह के उपदेशों पर चलने का फ़ैसला किया। बाद में उन्होंने साप्ताहिक सभाएँ रखीं जहाँ समान विश्वास रखनेवाले प्रार्थना और प्रबोधन के लिए एकत्रित होते थे।
जब काफ़ी संख्या में लोग अलग-अलग समूहों की सभाओं में नियमित रूप से उपस्थित होने लगे, तब उनकी उपासना की देखभाल करने के लिए ज़िम्मेदार पुरुषों की ज़रूरत हुई। लेकिन योग्य कौन थे? इस विषय पर प्रेरित पौलुस ने जो लिखा था उस पर जॉन ग्लास और उसके साथियों ने ख़ास ध्यान दिया। (१ तीमुथियुस ३:१-७; तीतुस १:५-९) उन्हें विश्वविद्यालय की शिक्षा का या इब्रानी और यूनानी समझने की ज़रूरत का कोई उल्लेख नहीं मिला। सो शास्त्रीय मार्गदर्शन पर प्रार्थनापूर्ण विचार के बाद, उन्होंने प्राचीन बनने के लिए योग्य पुरुष नियुक्त किए। जो चर्च ऑफ़ स्कॉटलैंड के प्रति निष्ठावान थे, उन्होंने इसे “मानो ईशनिन्दा” समझा कि “दीन परिस्थितियों में पले-बढ़े” अनपढ़ लोग बाइबल को समझने और उसके संदेश का प्रचार करने का ढोंग करें। जब १७३३ में, ग्लास और उसके संगी विश्वासियों ने पर्थ नगर में अपना ख़ुद का सभागृह बनाया, तब स्थानीय पादरीवर्ग ने उनको नगर से बहिष्कृत करने के लिए मजिस्ट्रेटों पर दबाव डालने की कोशिश की। वे असफल हो गए, और आंदोलन बढ़ गया।
रॉबर्ट सैंडामन ने ग्लास की सबसे बड़ी बेटी से विवाह किया और २६ की उम्र में, ग्लासवादियों की पर्थ कलीसिया का एक प्राचीन बन गया। उस पर एक प्राचीन के रूप में ज़िम्मेदारियों का इतना भार था कि उसने अपना सारा समय चरागाही कार्य में लगाने का फ़ैसला किया। बाद में, अपनी पत्नी की मृत्यु के पश्चात्, रॉबर्ट “कहीं भी प्रसन्नतापूर्वक प्रभु की सेवा करने के लिए सहमत हो गया जहाँ उसकी ज़रूरत होती,” एक जीवन-चरित लेख बताता है।
सैंडामनवाद का विस्तार
सैंडामन ने जोश के साथ अपनी सेवकाई स्कॉटलैंड से इंग्लैंड तक फैलायी, जहाँ संगी विश्वासियों के नए समूह बढ़े। उस समय, इंग्लिश कॆल्विनवादियों के बीच बहुत विवाद था। उनमें से कुछ का विश्वास था कि वे उद्धार के लिए पहले से ठहराए हुए थे। दूसरी ओर, सैंडामन ने उनका पक्ष लिया जिनका मानना था कि विश्वास एक आवश्यक माँग है। इस विचार के समर्थन में, उसने एक पुस्तक प्रकाशित की जो चार बार पुनःमुद्रित की गयी और दो अमरीकी संस्करणों में भी आयी। जॆफ़री कैन्टर के अनुसार, इस खंड का प्रकाशन “वह एकल अति महत्त्वपूर्ण घटना थी जिसने [सैंडामनवादी] मत को उसकी काफ़ी संकुचित स्कॉटिश शुरूआत के बावजूद फैला दिया।”
१७६४ में, सैंडामन ने अन्य ग्लासवादी प्राचीनों के साथ अमरीका की यात्रा की, ऐसी भेंट जिसने काफ़ी विवाद और विरोध भड़का दिया। फिर भी, उसके फलस्वरूप डैनबरी, कनॆटीकट में समरुचिक मसीहियों के एक समूह की स्थापना हुई।a वहाँ १७७१ में, सैंडामन की मृत्यु हो गयी।
फैराडे के धार्मिक विश्वास
युवा माइकल ने अपने माता-पिता की सैंडामनवादी शिक्षाओं को ग्रहण किया। उसने सीखा कि सैंडामनवादी अपने आपको उनसे अलग रखते थे जो बाइबल में सिखायी गयी बातों पर नहीं चलते थे। उदाहरण के लिए, उन्होंने ऐंग्लिकन विवाह-अनुष्ठान में भाग लेने से इनकार किया, और अपने विवाह उत्सवों को कानूनी रूप से आवश्यक बातों तक सीमित करना ज़्यादा पसन्द किया।
सैंडामनवादियों की विशेषता थी सरकारों के प्रति अधीनता, परन्तु राजनीति में तटस्थता। जबकि वे समुदाय के आदरणीय सदस्य थे, उन्होंने विरले ही लोक पदों को स्वीकार किया। लेकिन जिन थोड़े-से मामलों में उन्होंने ऐसा किया, वे गुट राजनीति से दूर रहे। इस स्थिति को बनाए रखना उन पर निन्दा लाया। (यूहन्ना १७:१४ से तुलना कीजिए।) सैंडामनवादी मानते थे कि परमेश्वर का स्वर्गीय राज्य ही सरकार के लिए परिपूर्ण प्रबन्ध है। उन्होंने राजनीति को “नैतिकता से परे एक तुच्छ, गंदा खेल” समझा, कैन्टर बताता है।
जबकि वे दूसरों से अलग थे, उन्होंने फरीसियों-जैसी मनोवृत्ति नहीं अपनायी। उन्होंने घोषित किया: “हम इसे अत्यन्त आवश्यक मानते हैं कि प्राचीन फरीसियों की आत्मा और अभ्यास से दूर रहें, अतः शास्त्र ने जितने पाप या कर्तव्य बताए हैं उससे अधिक न बनाएँ; और मानवी परंपराओं या तर्कसंगत अपवंचन के द्वारा ईश्वरीय आज्ञाओं को व्यर्थ न ठहराएँ।”
उन्होंने अपने ऐसे किसी भी सदस्य को बहिष्कृत करने की शास्त्रीय प्रथा अपनायी जो पियक्कड़, लुटेरा, व्यभिचारी बन गया हो, या जो अन्य गंभीर पाप करता हो। यदि पापी सचमुच पश्चाताप करता था, तो वे उसको रास्ते पर लाने की कोशिश करते थे। नहीं तो, वे शास्त्रीय आदेश का पालन करते थे कि “कुकर्मी को . . . निकाल दो।”—१ कुरिन्थियों ५:५, ११, १३.
सैंडामनवादी लहू से परे रहने की बाइबलीय आज्ञा का पालन करते थे। (प्रेरितों १५:२९) जॉन ग्लास ने तर्क किया था कि परमेश्वर के लोग वैसे ही लहू पर प्रतिबन्ध को मानने के लिए बाध्य हैं जैसे परमेश्वर ने पहले मनुष्यों को आज्ञा दी थी कि भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष से फल न खाएँ। (उत्पत्ति २:१६, १७) लहू के सम्बन्ध में दी गयी आज्ञा को न मानना मसीह के लहू के उचित प्रयोग, अर्थात् पाप से प्रायश्चित्त को अस्वीकार करने के बराबर था। ग्लास ने निष्कर्ष निकाला: “लहू-खाने की यह मनाही हमेशा से, और अब भी सबसे बड़े और सबसे अधिक महत्त्व की थी और है।”
शास्त्र पर सैंडामनवादियों के तर्क ने उन्हें अनेक फन्दों से बचने में मदद दी। उदाहरण के लिए, मनोरंजन के मामले में, उन्होंने मार्गदर्शन के लिए मसीह के उपदेशों की ओर देखा। “जहाँ मसीह ने कोई नियम नहीं बनाए वहाँ हम ऐसा करने का दुःसाहस न करें,” उन्होंने कहा, “न ही उनमें से कोई त्यागें जो उसने हमें दिए हैं। इसलिए, क्योंकि हम नहीं पाते कि कहाँ सब के साथ या अकेले में, मनबहलाव मना है; हम ऐसे किसी भी मनोरंजन को सही मानते हैं, जो सचमुच पापमय परिस्थितियों से नहीं जुड़ा है।”
इस प्रकार हालाँकि सैंडामनवादियों के अनेक ऐसे विचार थे जो सही रीति से शास्त्र पर आधारित थे, उन्होंने उस कार्य के महत्त्व को नहीं समझा जो सच्चे मसीहियों की विशेषता है, अर्थात् कि हरेक को राज्य सुसमाचार का प्रचार दूसरों को करना चाहिए। (मत्ती २४:१४) लेकिन, उनकी सभाएँ सभी के लिए खुली थीं, और वहाँ उन्होंने अपनी आशा का कारण उन सभी को देने का प्रयास किया जिन्होंने उनसे माँगा।—१ पतरस ३:१५.
विश्वास के इस नमूने का वैज्ञानिक माइकल फैराडे पर कैसा प्रभाव पड़ा?
सैंडामनवादी फैराडे
उसे आदर दिया गया, उसके सम्मान में मेले रखे गए, उसके उल्लेखनीय आविष्कारों के लिए उसे उच्च प्रतिष्ठा दी गयी, फिर भी माइकल फैराडे ने एक साधारण जीवन बिताया। जब विख्यात लोग मरते थे और जो लोक-जीवन में थे उनसे अपेक्षा की जाती थी कि उनकी अंत्येष्टियों में जाएँ, तब फैराडे की अनुपस्थिति विशिष्ट थी, उसका अंतःकरण उसे उपस्थित होने और चर्च ऑफ़ इंग्लैंड के अनुष्ठान में अंतर्ग्रस्त होने की अनुमति नहीं देता था।
एक वैज्ञानिक के रूप में फैराडे जिन बातों की यथार्थता प्रदर्शित कर सकता था उसने उन्हीं का समर्थन किया। इस प्रकार वह ज्ञानवानों की निकट संगति से दूर रहा जो अपनी परिकल्पनाओं को बढ़ावा देते थे और वाद-विषयों में पक्ष लेते थे। जैसा उसने एक बार एक श्रोतागण से कहा, ‘एक मूलभूत तथ्य हमें कभी निराश नहीं करता, उसका प्रमाण हमेशा सच्चा होता है।’ उसने विज्ञान का चित्रण इस प्रकार किया कि वह ‘ध्यानपूर्वक देखे गए तथ्यों पर’ निर्भर है। प्रकृति की मूल शक्तियों पर एक प्रस्तुति की समाप्ति में, फैराडे ने अपने श्रोतागण को प्रोत्साहित किया कि विचार करें “उस पर जिसने इनको बनाया था।” फिर उसने मसीही प्रेरित पौलुस का उद्धरण दिया: “उसके अनदेखे गुण, अर्थात् उस की सनातन सामर्थ, और परमेश्वरत्व जगत की सृष्टि के समय से उसके कामों के द्वारा देखने में आते हैं।”—रोमियों १:२०.
जिस बात ने फैराडे को अन्य अनेक वैज्ञानिकों से इतना भिन्न बनाया वह थी परमेश्वर की उत्प्रेरित पुस्तक से, साथ ही प्रकृति की पुस्तक से सीखने की उसकी इच्छा। “अपने सैंडामनवाद के द्वारा उसने परमेश्वर की नैतिक व्यवस्था की आज्ञाकारिता में जीने का मार्ग ढूँढ लिया था, और जिसके साथ अनन्त जीवन की प्रतिज्ञा थी,” कैन्टर कहता है। “अपने विज्ञान के द्वारा वह उन भौतिक नियमों के निकट संपर्क में आया जिन्हें परमेश्वर ने विश्वमंडल को नियंत्रित करने के लिए चुना था।” फैराडे का विश्वास था कि “बाइबल का पूर्ण अधिकार विज्ञान द्वारा कम नहीं किया जा सकता, परन्तु यदि विज्ञान का अभ्यास एक सचमुच मसीही तरीक़े से किया जाए, तो वह परमेश्वर की दूसरी पुस्तक को रोशन कर सकता है।”
फैराडे ने नम्रतापूर्वक अनेक सम्मान अस्वीकार किए जो दूसरे उसे देना चाहते थे। उसने हमेशा नाइट-उपाधि में अरुचि व्यक्त की। वह ‘साधारण श्री. फैराडे’ रहना चाहता था। उसने एक प्राचीन के रूप में अपने कार्यों पर काफ़ी समय लगाया, जिसमें राजधानी से नॉरफ़क गाँव तक, वहाँ रह रहे समरुचिक विश्वासियों के एक छोटे-से समूह की देखरेख करने के लिए नियमित रूप से यात्रा करना सम्मिलित था।
माइकल फैराडे की मृत्यु अगस्त २५, १८६७ में हुई, और उसे उत्तर लंदन में हाईगेट क़ब्रिस्तान में दफ़नाया गया। जीवनी-लेखक जॉन थॉमस हमें बताता है कि फैराडे “ने भावी पीढ़ियों के लिए किसी अन्य भौतिक वैज्ञानिक से अधिक मात्रा में शुद्ध वैज्ञानिक उपलब्धि छोड़ी, और उसके आविष्कारों के व्यावहारिक परिणामों ने सभ्य जीवन के स्वरूप को अत्यधिक प्रभावित किया है।” फैराडे की विधवा, साराह ने लिखा: “मैं उनके मार्गदर्शक और नियम के रूप में मात्र नए नियम की ओर संकेत कर सकती हूँ; क्योंकि वह इसे परमेश्वर का वचन मानते थे . . . जो मसीहियों पर वर्तमान समय में उतना ही लागू होता है जितना कि उसके लिखे जाने के समय था”—एक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक के पक्ष में अर्थपूर्ण साक्षी जिसने अपने विश्वास पर भक्ति का जीवन जीया।
[फुटनोट]
a अमरीका में अंतिम शेष सैंडामनवादी या ग्लासवादी समूह इस शताब्दी की शुरूआत तक समाप्त हो गया।
[पेज 29 पर बक्स]
ब्रिटेन के रॉयल इंस्टीट्यूशन में प्राध्यापक के रूप में पदासीन, माइकल फैराडे ने विज्ञान को एक ऐसे ढंग से प्रचलित किया जो युवा भी समझ सकते थे। संगी प्राध्यापकों को उसकी सलाह में व्यावहारिक सुझाव दिए गए हैं जिन पर आधुनिक-दिन मसीहियों को जो सार्वजनिक रूप से सिखाते हैं, विचार करने की ज़रूरत है।
◻ “बोली को तेज़ और त्वरित, और फलस्वरूप दुर्बोध नहीं, बल्कि धीमा और स्पष्ट होना चाहिए।”
◻ वक्ता को “भाषण के आरंभ में और कई अप्रत्यक्ष क्रमिक परिवर्तनों के द्वारा, जिनका श्रोताओं को पता न चल पाए,” अपने श्रोतागण की रुचि को जगाने का प्रयास करना चाहिए, और “जब तक विषय माँग करता है उसे जगाए रखना चाहिए।”
◻ “प्राध्यापक अपने पात्र की गरिमा से बहुत नीचे गिर जाता है जब वह इतना नीचे आ जाता है कि तालियाँ बजवाना चाहे और सराहना की माँग करे।”
◻ रूपरेखा के प्रयोग पर: “मैं हमेशा अपने आपको बाध्य पाता हूँ कि . . . क़ागज़ पर [विषय] के मुख्य मुद्दे लिखूँ और फिर मैं सम्बन्ध जोड़ने के द्वारा या अन्यथा, याद करके अन्य मुद्दे भरता हूँ। . . . मेरे पास क्रम से प्रमुख और अप्रमुख शीर्षकों की एक श्रंखला होती है, और इनसे मैं अपनी विषय वस्तुएँ तैयार करता हूँ।”
[पेज 26 पर चित्र का श्रेय]
Both pictures: By courtesy of the Royal Institution