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  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1996
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1996
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क्या आपको याद है?

क्या आपने प्रहरीदुर्ग के हाल के अंकों को पढ़ने का मूल्यांकन किया है? तो देखिए कि क्या आप निम्नलिखित सवालों के जवाब दे सकते हैं:

◻“यदि तुम किसी के पाप क्षमा करो, तो वे उनके लिए क्षमा किए गए हैं।” क्या यीशु के इन शब्दों का अर्थ है कि मसीही पापों को क्षमा कर सकते हैं? (यूहन्‍ना २०:२३, NHT) यह निष्कर्ष निकालने के लिए कोई शास्त्रीय आधार नहीं है कि आम तौर पर मसीही, या यहाँ तक कि कलीसियाओं में नियुक्‍त प्राचीनों के पास पापों को क्षमा करने के लिए ईश्‍वरीय अधिकार है। यीशु के शब्दों का संदर्भ यह सूचित करता जान पड़ता है कि आत्मा की कार्यवाही द्वारा प्रेरितों को पापों को क्षमा करने या रखने का एक विशेष अधिकार प्रदान किया गया था। (प्रेरितों ५:१-११; २ कुरिन्थियों १२:१२ देखिए।)—४/१५, पृष्ठ २८.

◻जे. जे. स्टीवॉर्ट परोन के सबसे पहले १८६४ में प्रकाशित हुए भजन की पुस्तक के अनुवाद में क्या बात असाधारण है? अपने अनुवाद में परोन ने “इब्रानी की शैली का, दोनों इसके मुहावरों में और उपवाक्यों की इसकी संरचना में ध्यानपूर्वक अनुकरण करने की कोशिश की।” ऐसा करने से उसने “यहोवा” रूप में ईश्‍वरीय नाम की पुनःस्थापना का समर्थन किया।—४/१५, पृष्ठ ३१.

◻संसार की सरकारों के साथ उनके व्यवहार के मामले में यीशु ने अपने अनुयायियों को क्या मार्गदर्शन दिया? यीशु ने कहा: “जो कैसर का है, वह कैसर को; और जो परमेश्‍वर का है, वह परमेश्‍वर को दो।” (मत्ती २२:२१) उसने यह भी कहा: “यदि कोई अधिकारी तुझे बेगार सेवा में एक मील ले जाए तो, उसके साथ दो मील चला जा।” (मत्ती ५:४१, NW) यहाँ यीशु जायज़ माँगों के प्रति स्वैच्छिक आधीनता के सिद्धान्त को सचित्रित कर रहा था, चाहे वह मानव सम्बन्धों में हो अथवा उन सरकारी माँगों में हो जो परमेश्‍वर के नियम के सामंजस्य में हैं। (लूका ६:२७-३१; यूहन्‍ना १७:१४, १५)—५/१, पृष्ठ १२.

◻‘सत्य मार्ग पर चलने’ का क्या अर्थ है? (भजन ८६:११) इसमें की गई माँगों को पूरा करना और वफ़ादारी तथा निष्कपटता से उसकी सेवा करना शामिल है। (भजन २५:४, ५; यूहन्‍ना ४:२३, २४)—५/१५, पृष्ठ १८.

◻यहोवा द्वारा योना को नीनवे भेजने से क्या निष्पन्‍न हुआ? जैसा कि इसका परिणाम हुआ नीनवे में योना के प्रचार कार्य ने नीनवे के पश्‍चात्तापी लोगों और हठीले इस्राएलियों के बीच विषमता दिखाई, जिनमें विश्‍वास और नम्रता की बुरी तरह कमी थी। (व्यवस्थाविवरण ९:६, १३; योना ३:४-१० से तुलना कीजिए।)—५/१५, पृष्ठ २८.

◻उत्पत्ति ३:१५ में उल्लिखित सर्प कौन है और स्त्री कौन है? वह सर्प तुच्छ सांप नहीं, बल्कि वह व्यक्‍ति है जिसने उसको प्रयोग किया, शैतान अर्थात्‌ इब्‌लीस। (प्रकाशितवाक्य १२:९) “स्त्री” हव्वा नहीं बल्कि यहोवा का स्वर्गीय संगठन है, पृथ्वी पर उसके आत्मा-अभिषिक्‍त सेवकों की माता। (गलतियों ४:२६)—६/१, पृष्ठ ९.

◻कैसे एक व्यक्‍ति बड़े बाबुल से बाहर निकल सकता है और सुरक्षा पा सकता है? (प्रकाशितवाक्य १८:४) उसे अपने आपको झूठे धार्मिक संगठनों से साथ ही उनकी प्रथाओं से और उस आत्मा से भी जो वे उत्पन्‍न करते हैं, पूरी तरह अलग करना ज़रूरी है, और तब उसे यहोवा के ईश्‍वरशासित संगठन में सुरक्षा पानी चाहिए। (इफिसियों ५:७-११)—६/१, पृष्ठ १८.

◻शास्त्र में उकाब का उल्लेख अकसर क्यों आता है? बाइबल लेखकों ने उकाब के विशिष्ट लक्षणों का उल्लेख बुद्धि, ईश्‍वरीय सुरक्षा और फुर्ती जैसी बातों के प्रतीक के तौर पर किया।—६/१५, पृष्ठ ८.

◻क्या आज परमेश्‍वर के सेवकों पर, जिन्हें पार्थिव आशा है, उतनी ही परमेश्‍वर की आत्मा है जितनी कि आत्मा-अभिषिक्‍त मसीहियों पर है? मूलतः, जवाब है हाँ। परमेश्‍वर की आत्मा दोनों वर्गों को बराबर हिस्से में उपलब्ध है, और दोनों ज्ञान और समझ बराबर प्राप्त कर सकते हैं।—६/१५, पृष्ठ ३१.

◻इस्राएली याजकों द्वारा यरूशलेम मंदिर में की जानेवाली पवित्र सेवा की जाँच करना आज हमारे लिए क्यों लाभदायक है? ऐसा करने से हम और गहराई से उस दयापूर्ण प्रबन्ध का मूल्यांकन करने लग सकते हैं जिसके द्वारा आज पापपूर्ण मनुष्य परमेश्‍वर के साथ पुनर्मिलन करते हैं। (इब्रानियों १०:१-७)—७/१, पृष्ठ ८.

◻यरूशलेम में बनाए गए दूसरे मंदिर ने कैसे उस मंदिर से बड़ी महिमा प्राप्त की जिसे सुलैमान ने बनाया था? यह दूसरा मन्दिर सुलैमान के मन्दिर से १६४ साल अधिक समय तक रहा। अनेकों-अनेक उपासक अनेकों-अनेक देशों से इसके आँगनों में इकट्ठा हुए। ज़्यादा महत्त्वपूर्ण बात है कि इस दूसरे मन्दिर ने परमेश्‍वर के पुत्र, यीशु मसीह को उसके आँगनों में शिक्षा देने की महान विशिष्टता का आनन्द उठाया।—७/१, पृष्ठ १२, १३.

◻परमेश्‍वर अपने आत्मिक मन्दिर को कब सामने लाया? यह सा.यु. २९ में हुआ था जब परमेश्‍वर ने यीशु की बपतिस्मे की प्रार्थना के प्रति अपनी स्वीकृति दिखायी थी। (मत्ती ३:१६, १७) यीशु की देह की भेंट की परमेश्‍वर की स्वीकृति का अर्थ था कि एक आत्मिक अर्थ में जो वेदी यरूशलेम मन्दिर में थी, उससे एक महान वेदी कार्य करने लगी।—७/१, पृष्ठ १४, १५.

◻हमें क्षमाक्षील क्यों होना चाहिए? मसीही एकता को बनाए रखने के लिए ऐसे अपराधी को क्षमा करना अत्यावश्‍यक है, जिसने माफ़ी माँगी है। दुश्‍मनी और दुर्भाव रखना हमसे हमारी मन की शान्ति छीन लेगा। यदि हम अक्षमाशील हैं, तो हमें इसका ख़तरा है कि एक-न-एक दिन यहोवा हमारे पापों को और क्षमा नहीं करेगा। (मत्ती ६:१४, १५)—७/१५, पृष्ठ १८.

◻इस्राएली पवित्र कैसे बन सकते थे? केवल यहोवा के साथ अपने निकट सम्बन्ध और उसके प्रति अपनी शुद्ध उपासना के द्वारा पवित्रता संभव थी। उन्हें “परमपवित्र ईश्‍वर” के बारे में यथार्थ ज्ञान की ज़रूरत थी ताकि वे उसकी उपासना पवित्रता में, शारीरिक और आध्यात्मिक शुद्धता में कर सकें। (नीतिवचन २:१-६; ९:१०)—८/१, पृष्ठ ११.

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