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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1996
w96 4/15 पेज 28-29

पाठकों के प्रश्‍न

यीशु ने कहा: “यदि तुम किसी के पाप क्षमा करो, तो वे उनके लिए क्षमा किए गए हैं। यदि तुम किसी के पाप रखो तो वे रखे गए हैं।” (NHT) क्या इन शब्दों का अर्थ है कि मसीही पापों को क्षमा कर सकते हैं?

यह निष्कर्ष निकालने के लिए कोई शास्त्रीय आधार नहीं है कि आम तौर पर मसीही, या यहाँ तक कि कलीसियाओं में नियुक्‍त प्राचीनों के पास पापों को क्षमा करने के लिए ईश्‍वरीय अधिकार है। फिर भी, यूहन्‍ना २०:२३ (NHT) पर, जैसे ऊपर उद्धृत है, यीशु ने अपने शिष्यों से जो कहा वह सूचित करता है कि परमेश्‍वर ने प्रेरितों को इस सम्बन्ध में विशेष शक्‍तियाँ दी थीं। और वहाँ यीशु का कथन मत्ती १८:१८ में स्वर्गीय निर्णयों के बारे में जो उसने कहा, उससे शायद सम्बन्धित हो।

इफिसियों ४:३२ में अभिलिखित प्रेरित पौलुस की सलाह के सामंजस्य में मसीही कुछ अपराधों को क्षमा कर सकते हैं: “एक दूसरे पर कृपाल, और करुणामय हो, और जैसे परमेश्‍वर ने मसीह में तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी एक दूसरे के अपराध क्षमा करो।” यहाँ पौलुस मसीहियों के बीच की व्यक्‍तिगत समस्याओं के बारे में बात कर रहा था, जैसे कि बेपरवाह बातचीत। उन्हें एक दूसरे को क्षमा करते हुए इन मामलों को निपटाने का प्रयास करना चाहिए। यीशु के शब्दों को याद कीजिए: “इसलिये यदि तू अपनी भेंट बेदी पर लाए, और वहां तू स्मरण करे, कि मेरे भाई के मन में मेरी ओर से कुछ विरोध है, तो अपनी भेंट वहीं बेदी के साम्हने छोड़ दे। और जाकर पहिले अपने भाई से मेल मिलाप कर; तब आकर अपनी भेंट चढ़ा।”—मत्ती ५:२३, २४; १ पतरस ४:८.

लेकिन, यूहन्‍ना २०:२३ का संदर्भ सुझाता है कि यीशु ज़्यादा गम्भीर पापों की ओर संकेत कर रहा था, जैसा इस विशिष्ट श्रोतागण से यीशु ने और भी जो कहा, उससे सूचित होता है। आइए देखें क्यों।

जिस दिन उसका पुनरुत्थान हुआ, यीशु यरूशलेम में एक बन्द कमरे में अपने शिष्यों के पास प्रकट हुआ। वृत्तांत कहता है: “यीशु ने फिर उनसे कहा, ‘तुम्हें शान्ति मिले, जैसे पिता ने मुझे भेजा है, वैसे ही मैं भी तुम्हें भेजता हूँ।’ और जब वह यह कह चुका तो उसने उन पर फूँका और उनसे कहा, ‘पवित्र आत्मा लो। यदि तुम किसी के पाप क्षमा करो, तो वे उनके लिए क्षमा किए गए हैं। यदि तुम किसी के पाप रखो तो वे रखे गए हैं।’”—यूहन्‍ना २०:२१-२३, NHT.

संभवतः, ज़िक्र किए गए शिष्य मुख्यतः विश्‍वासी प्रेरित थे। (आयत २४ से तुलना कीजिए।) उन पर फूँकने और “पवित्र आत्मा लो” कहने के द्वारा, यीशु ने प्रतीकात्मक रूप से उन्हें सूचित कर दिया कि जल्द ही उन पर पवित्र आत्मा उँडेली जाएगी। यीशु ने आगे कहा कि उनके पास पापों की क्षमा के सम्बन्ध में अधिकार होगा। तार्किक रूप से, उसके दोनों कथन जुड़े हुए हैं, एक, दूसरे की ओर ले जाता है।

उसके पुनरुत्थान के पचास दिन बाद, पिन्तेकुस्त के दिन, यीशु ने पवित्र आत्मा उँडेला। उससे क्या निष्पन्‍न हुआ? एक था, जिन्होंने आत्मा पाया उन्होंने स्वर्ग में मसीह के संग सहशासक बनने की आशा के साथ परमेश्‍वर के आत्मिक पुत्रों के रूप में फिर से जन्म लिया। (यूहन्‍ना ३:३-५; रोमियों ८:१५-१७; २ कुरिन्थियों १:२२) लेकिन आत्मा के उस उँडेले जाने ने इससे कुछ ज़्यादा निष्पन्‍न किया। कुछ प्रापकों ने चमत्कारिक शक्‍तियाँ प्राप्त कीं। उसके ज़रिए कुछ लोग ऐसी विदेशी भाषाओं में बात कर सके जिन्हें वे जानते नहीं थे। अन्य लोग भविष्यवाणी कर सके। और भी अन्य लोग बीमारों को चंगा या मृतकों को जीवित कर सके।—१ कुरिन्थियों १२:४-११.

चूँकि यूहन्‍ना २०:२२ में यीशु के शब्दों ने शिष्यों पर पवित्र आत्मा के इस उँडेले जाने की ओर संकेत किया, ऐसा लगता है कि पापों की क्षमा करने के बारे में उसके सम्बद्ध शब्दों का अर्थ है कि आत्मा के एक कार्यान्वयन के ज़रिए प्रेरितों को पापों को क्षमा करने या उन्हें रखने के लिए एक अद्वितीय अधिकार ईश्‍वरीय रूप से प्रदान किया गया था।—मार्च १, १९४९, प्रहरीदुर्ग (अंग्रेज़ी) का पृष्ठ ७८ देखिए।

प्रेरितों ने हर बार जब ऐसे अधिकार का प्रयोग किया उसका पूरा वृत्तांत बाइबल हमें नहीं देती, लेकिन ना ही वह हर मामले को अभिलिखित करती है जब उन्होंने भाषाओं में बात करने, भविष्यवाणी करने, या चंगा करने के चमत्कारिक तोहफ़ों का प्रयोग किया।—२ कुरिन्थियों १२:१२; गलतियों ३:५; इब्रानियों २:४.

एक मामला जिसमें पापों को क्षमा करने या उन्हें रखने का प्रेरितिक अधिकार शामिल था, उसमें हनन्याह और सफीरा सम्मिलित थे, जिन्होंने आत्मा से झूठ बोला। पतरस ने, जिसने यीशु को यूहन्‍ना २०:२२, २३ में जो हम पढ़ते हैं कहते हुए सुना, हनन्याह और सफीरा का पर्दाफ़ाश किया। पतरस ने पहले हनन्याह को सम्बोधित किया, जो उसी क्षण मर गया। बाद में जब सफीरा अन्दर आई और झूठ को बनाए रखी, तब पतरस ने उस पर दण्ड घोषित किया। पतरस ने उसके पाप को क्षमा नहीं किया लेकिन कहा: “देख, तेरे पति के गाड़नेवाले द्वार ही पर खड़े हैं, और तुझे भी बाहर ले जाएंगे।” वह भी उसी क्षण मर गयी।—प्रेरितों ५:१-११.

इस उदाहरण में प्रेरित पतरस ने ख़ास अधिकार का प्रयोग किया ताकि वह पाप के निश्‍चित रखने को व्यक्‍त करे, एक ऐसा चमत्कारिक ज्ञान कि परमेश्‍वर हनन्याह और सफीरा के पाप को माफ़ नहीं करेगा। ऐसा भी लगता है कि प्रेरितों के पास ऐसे मामलों में अलौकिक अन्तर्दृष्टि थी जिसमें वे निश्‍चित थे कि मसीह के बलिदान के आधार पर पापों को क्षमा कर दिया गया था। सो ये आत्मा से सामर्थ-प्राप्त प्रेरित पापों की क्षमा या उन्हें रखने की घोषणा कर सके।a

इसका अर्थ यह कहना नहीं है कि उस समय के सभी आत्मा-अभिषिक्‍त प्राचीनों के पास ऐसा चमत्कारिक अधिकार था। कुरिन्थ की कलीसिया से बहिष्कृत किए गए व्यक्‍ति के बारे में प्रेरित पौलुस ने जो कहा उससे हम यह देख सकते हैं। पौलुस ने यह नहीं कहा, ‘मैं उस व्यक्‍ति के पापों को क्षमा करता हूँ’ या यह भी, ‘मैं जानता हूँ कि उस व्यक्‍ति को स्वर्ग में क्षमा कर दिया गया है, सो उसे वापस स्वीकारो।’ इसके बजाय, पौलुस ने सम्पूर्ण कलीसिया से इस बहाल किए गए मसीही को क्षमा करने और उसके लिए प्रेम दिखाने का आग्रह किया। पौलुस ने आगे कहा: “जिस का तुम कुछ क्षमा करते हो उसे मैं भी क्षमा करता हूं।”—२ कुरिन्थियों २:५-११.

एकबार जब वह व्यक्‍ति कलीसिया में बहाल किया जाता था, सभी मसीही भाई-बहन, उसने जो किया था उसके लिए मनमुटाव नहीं रखने के अर्थ में क्षमा कर सकते थे। लेकिन, सबसे पहले उसे पश्‍चाताप करना होगा और बहाल किया जाना होगा। यह कैसे होता?

ऐसे गम्भीर पाप हैं जिन्हें कलीसिया प्राचीनों को सम्भालना पड़ता है, जैसे चोरी करना, झूठ बोलना, या घोर अनैतिकता। वे ऐसे पापियों को, पश्‍चाताप करने के लिए उन्हें प्रेरित करते हुए, सुधारने और फटकारने की कोशिश करते हैं। लेकिन यदि कोई अपश्‍चातापी रूप से गम्भीर पाप करता रहता है, तो ये प्राचीन पापी को बहिष्कृत करने के ईश्‍वरीय निर्देशन को लागू करते हैं। (१ कुरिन्थियों ५:१-५, ११-१३) यूहन्‍ना २०:२३ में जो यीशु ने कहा, वह ऐसे मामलों में लागू नहीं होता। इन प्राचीनों के पास आत्मा के चमत्कारिक तोहफ़े नहीं हैं, जैसे शारीरिक रूप से बीमार को चंगा करने या मृतकों को जिलाने की क्षमता; उन तोहफ़ों ने पहली शताब्दी में अपने उद्देश्‍य को पूरा किया और फिर समाप्त हो गए। (१ कुरिन्थियों १३:८-१०) इसके अतिरिक्‍त, आज प्राचीनों के पास यहोवा की नज़रों में एक गम्भीर पाप करनेवाले को शुद्ध घोषित करने के अर्थ में गम्भीर पापों को क्षमा करने का ईश्‍वरीय अधिकार नहीं है। इस प्रकार की क्षमा को छुड़ौती बलिदान के आधार पर होना चाहिए, और केवल यहोवा उस आधार पर क्षमा कर सकता है।—भजन ३२:५; मत्ती ६:९, १२; १ यूहन्‍ना १:९.

प्राचीन कुरिन्थ के व्यक्‍ति के मामले के जैसे, जब एक घोर पापी पश्‍चाताप करने से इनकार करता है, तो उसे बहिष्कृत किया जाना चाहिए। यदि वह बाद में पश्‍चाताप करता है और पश्‍चाताप के योग्य कार्य करता है, तो ईश्‍वरीय क्षमा संभव है। (प्रेरितों २६:२०) ऐसी परिस्थिति में, शास्त्र प्राचीनों को यह विश्‍वास करने का कारण देता है कि यहोवा ने वाक़ई पापी को क्षमा कर दिया है। तब, एकबार जब वह व्यक्‍ति बहाल किया जाता है, तो प्राचीन उसे विश्‍वास में दृढ़ बनने के लिए आध्यात्मिक रूप से मदद कर सकते हैं। कलीसिया के अन्य लोग उसे उसी तरह क्षमा कर सकते हैं जिस तरह कुरिन्थ के मसीहियों ने उस बहिष्कृत व्यक्‍ति को क्षमा किया जिसे उस समय बहाल किया गया था।

इस तरह से मामलों को सम्भालने से, प्राचीन न्याय के अपने ख़ुद के स्तर नहीं बनाते। वे बाइबल सिद्धान्तों को लागू करते हैं और यहोवा द्वारा तय की गयीं शास्त्रीय कार्य-पद्धतियों का नज़दीकी से पालन करते हैं। अतः, प्राचीनों की ओर से कुछ क्षमा करना या क्षमा नहीं करना मत्ती १८:१८ पर दिए गए यीशु के शब्दों के अर्थ में होता: “मैं तुम से सच कहता हूं, जो कुछ तुम पृथ्वी पर बान्धोगे, वह स्वर्ग में बन्धेगा और जो कुछ तुम पृथ्वी पर खोलोगे, वह स्वर्ग में खुलेगा।” उनके कार्य, मामलों पर यहोवा के दृष्टिकोण को जैसा बाइबल में पेश किया गया है, मात्र प्रतिबिंबित करता।

फलस्वरूप, यीशु ने जो कहा, जैसा यूहन्‍ना २०:२३ में अभिलिखित है, वह शेष शास्त्र के विरोध में नहीं है, लेकिन वह सूचित करता है कि मसीही कलीसिया के शिशुपन में उनकी विशेष भूमिका के सामंजस्य में, क्षमा के सम्बन्ध में प्रेरितों के पास ख़ास प्राधिकरण था।

[फुटनोट]

a यीशु के मरने और छुड़ौती प्रदान करने से भी पहले, उसके पास यह कहने का अधिकार था कि किसी के पाप क्षमा कर दिए गए हैं।—मत्ती ९:२-६. जून १, १९९५ की प्रहरीदुर्ग के “पाठकों के प्रश्‍न” से तुलना कीजिए।

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