मसीह से पहले की व्यवस्था
“अहा! मैं तेरी व्यवस्था में कैसी प्रीति रखता हूं! दिन भर मेरा ध्यान उसी पर लगा रहता है।” —भजन ११९:९७.
१. आकाशीय पिण्डों की गतिविधि को क्या नियंत्रित करता है?
बचपन ही से, अय्यूब ने ऊपर तारों की ओर संभवतः ताज्जुब से ताका था। संभवतः, उसके माता-पिता ने बड़े तारामण्डलों के नामों के बारे में और आकाश में तारामण्डलों की गतिविधि को नियंत्रित करनेवाले नियमों के बारे में वे जो जानते थे उसे सिखाया था। आख़िरकार, प्राचीन समय में लोग इन विशाल, मनोहर तारामण्डलों की स्थिर गति को ऋतुओं के बदलने के एक चिन्ह के रूप में प्रयोग करते थे। लेकिन उसने जितनी बार उनकी ओर विस्मित हो कर देखा, अय्यूब नहीं जानता था कि कौन-सी महान शक्तियाँ इन तारा संरचनाओं को एक साथ बाँधे रखती हैं। अतः, वह मुश्किल से जवाब दे सका, जब यहोवा ने उससे पूछा: “क्या तू खगोलीय नियमों को समझता है?” (अय्यूब ३८:३१-३३, द न्यू जॆरूसलम बाइबल) जी हाँ, तारे नियमों द्वारा नियंत्रित होते हैं—ऐसे नियम जो इतने सुनिश्चित और जटिल हैं कि आज के वैज्ञानिक उन्हें पूरी तरह नहीं समझ पाए हैं।
२. यह क्यों कहा जा सकता है कि सारी सृष्टि नियमों द्वारा नियंत्रित है?
२ विश्वमण्डल में यहोवा सर्वोच्च नियम-दाता है। उसके सारे कार्य नियमों द्वारा नियंत्रित हैं। उसका प्रिय पुत्र, “सारी सृष्टि में पहिलौठा,” इस भौतिक विश्वमण्डल के अस्तित्व में आने से पहले अपने पिता के नियमों का वफ़ादारी से पालन कर रहा था! (कुलुस्सियों १:१५) स्वर्गदूत भी नियमों द्वारा मार्गदर्शित होते हैं। (भजन १०३:२०) पशु भी नियमों द्वारा नियंत्रित होते हैं क्योंकि वे उस सहजवृत्ति की आज्ञाओं का पालन करते हैं जिसे उनके सृष्टिकर्ता ने उनमें पूर्वनिर्धारित किया है।—नीतिवचन ३०:२४-२८; यिर्मयाह ८:७.
३. (क) मनुष्यजाति को नियमों की ज़रूरत क्यों है? (ख) किस माध्यम से यहोवा ने इस्राएली जाति को शासित किया?
३ मनुष्यजाति के बारे में क्या? हालाँकि हमें ऐसी योग्यताओं की आशिष प्राप्त है जैसे बुद्धि, नैतिकता, और आध्यात्मिकता, फिर भी हमें इन क्षमताओं को इस्तेमाल करने में मार्गदर्शन देने के लिए कुछ हद तक अब भी ईश्वरीय नियम की ज़रूरत है। हमारे पहले माता-पिता, आदम और हव्वा परिपूर्ण थे, तो इसलिए उनको मार्गदर्शित करने के लिए मात्र कुछ नियमों की ज़रूरत थी। अपने स्वर्गीय पिता के प्रति प्रेम को उन्हें प्रसन्नतापूर्वक आज्ञा मानने के पर्याप्त कारण प्रदान करने चाहिए थे। लेकिन उन्होंने अवज्ञा की। (उत्पत्ति १:२६-२८; २:१५-१७; ३:६-१९) परिणामस्वरूप, उनकी सन्तान पापपूर्ण प्राणी थे जिन्हें मार्गदर्शन के लिए और अनेक नियमों की ज़रूरत थी। समय बीतने पर, यहोवा ने प्रेमपूर्वक इस ज़रूरत को पूरा किया। उसने नूह को सुनिश्चित नियम दिए जो उसे अपने परिवार को सौंपने थे। (उत्पत्ति ९:१-७) शताब्दियों बाद, मूसा द्वारा परमेश्वर ने नई इस्राएल जाति को एक विस्तृत, लिखित व्यवस्था संहिता प्रदान की। यह पहला अवसर था जब यहोवा ने समस्त जाति को ईश्वरीय व्यवस्था द्वारा शासित किया। उस व्यवस्था की जाँच करना हमें उस महत्त्वपूर्ण भूमिका को समझने में मदद देगा जो ईश्वरीय नियम आज मसीहियों के जीवन में अदा करता है।
मूसा की व्यवस्था—उसका उद्देश्य
४. इब्राहीम के चुने हुए वंशजों के लिए प्रतिज्ञात वंश उत्पन्न करना एक चुनौती क्यों होता?
४ व्यवस्था के एक गहन विद्यार्थी, प्रेरित पौलुस ने पूछा: “तो फिर व्यवस्था की क्या आवश्यकता रही?” (गलतियों ३:१९, NHT) जवाब देने के लिए, हमें याद करने की ज़रूरत है कि यहोवा ने अपने मित्र इब्राहीम से प्रतिज्ञा की थी कि उसका पारिवारिक वंश-क्रम एक वंश उत्पन्न करता जो सभी जातियों के लिए महान आशिषें लाता। (उत्पत्ति २२:१८) लेकिन इसमें एक चुनौती मौजूद थी: इब्राहीम के चुने हुए वंशजों, अर्थात् इस्राएलियों में से सभी व्यक्ति ऐसे नहीं थे जो यहोवा को प्रेम करते थे। जैसे-जैसे समय बीतता गया, अधिकांश लोग हठीले, बलवई सिद्ध हुए—कुछ तो बिलकुल अनियंत्रणीय थे! (निर्गमन ३२:९; व्यवस्थाविवरण ९:७) ऐसे लोगों के लिए, परमेश्वर के लोगों में होना मात्र जन्म के कारण था, न कि चुनाव के कारण।
५. (क) मूसा की व्यवस्था के माध्यम से यहोवा ने इस्राएलियों को क्या सिखाया? (ख) किस प्रकार व्यवस्था उस पर चलनेवालों के आचरण पर प्रभाव डालने के लिए रची गयी थी?
५ ऐसे लोग कैसे प्रतिज्ञात वंश को उत्पन्न कर सकते थे और उससे लाभान्वित हो सकते थे? उन्हें यंत्रमानव की तरह नियंत्रित करने के बजाय, यहोवा ने उन्हें नियम के माध्यम से सिखाया। (भजन ११९:३३-३५; यशायाह ४८:१७) वास्तव में, “नियम” के लिए इब्रानी शब्द तोराह का अर्थ है “निर्देश।” इसने क्या सिखाया? मुख्यतः इसने इस्राएलियों को मसीहा की उनकी ज़रूरत के बारे में सिखाया, जो उन्हें उनकी पापपूर्ण अवस्था से छुड़ाता। (गलतियों ३:२४) इस व्यवस्था ने ईश्वरीय भय और आज्ञाकारिता भी सिखायी। इब्राहिमी प्रतिज्ञा के सामंजस्य में, इस्राएलियों को दूसरी सभी जातियों के लिए यहोवा के साक्षियों के रूप में कार्य करना था। सो इस व्यवस्था को उन्हें एक उच्च-स्तरीय, उत्कृष्ट आचार-संहिता सिखानी थी जो कि यहोवा को महिमा लाती; यह इस्राएल को चारों ओर की जातियों के भ्रष्ट रीति-व्यवहारों से अलग रहने में मदद देती।—लैव्यव्यवस्था १८:२४, २५; यशायाह ४३:१०-१२.
६. (क) मूसा की व्यवस्था में लगभग कितने नियम थे, और उन्हें अत्यधिक क्यों नहीं समझा जाना चाहिए? (फुटनोट देखिए।) (ख) मूसा की व्यवस्था का अध्ययन करने से हम शायद कौन-सी अन्तर्दृष्टि पाएँ?
६ तो फिर, कोई ताज्जुब नहीं कि मूसा की व्यवस्था में अनेक—६०० से ज़्यादा नियम थे।a इस लिखित संहिता ने उपासना, शासन, नैतिक-नियमों, न्याय, यहाँ तक कि आहार और स्वच्छता के क्षेत्रों को भी नियंत्रित किया। लेकिन, क्या इसका यह अर्थ है कि व्यवस्था मात्र निष्ठुर नियमों और रूखी आज्ञाओं का एक ढेर थी? निश्चित ही नहीं! इस व्यवस्था संहिता का अध्ययन यहोवा के प्रेममय व्यक्तित्व के बारे में अन्तर्दृष्टि का एक ख़ज़ाना प्रस्तुत करता है। कुछ उदाहरणों पर ध्यान दीजिए।
व्यवस्था जिसने दया और करुणा को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित किया
७, ८. (क) व्यवस्था ने दया और करुणा पर कैसे ज़ोर दिया? (ख) दाऊद के मामले में यहोवा ने व्यवस्था को कैसे दयापूर्वक लागू किया?
७ व्यवस्था ने दया और करुणा पर ज़ोर दिया, ख़ास तौर पर दरिद्र या निःसहाय लोगों के लिए। विधवाओं और अनाथों को ख़ास सुरक्षा दी जाती थी। (निर्गमन २२:२२-२४) काम करनेवाले पशुओं की क्रूरता से रक्षा की जाती थी। संपत्ति के मूल अधिकारों को आदर दिया जाता था। (व्यवस्थाविवरण २४:१०; २५:४) जबकि व्यवस्था हत्या के लिए मृत्युदण्ड की माँग करती थी, इसने अनजाने में हत्या करने के मामलों में दया प्रदान की। (गिनती ३५:११) प्रमाणतः, इस्राएली न्यायियों को कुछ अपराधों में लगाए गए दण्ड निर्धारित करने की छूट थी, जो अपराधी की मनोवृत्ति पर आधारित था।—निर्गमन २२:७ और लैव्यव्यवस्था ६:१-७ से तुलना कीजिए।
८ जहाँ आवश्यक है वहाँ व्यवस्था को कड़ाई से लागू करने और जहाँ कहीं संभव है वहाँ दया दिखाने के द्वारा यहोवा ने न्यायियों के लिए उदाहरण प्रस्तुत किया। राजा दाऊद को, जिसने परस्त्रीगमन और हत्या की थी, दया दिखाई गई। यह नहीं कि उसे दण्ड नहीं मिला, क्योंकि यहोवा ने उसके पाप से उत्पन्न होनेवाले भयंकर परिणामों से उसकी रक्षा नहीं की। फिर भी, राज्य वाचा के कारण और क्योंकि दाऊद स्वभाव से दयावन्त पुरुष था और उसके पास गहराई से पश्चाताप करनेवाली हृदय की मनोवृत्ति थी, उसे मृत्युदण्ड नहीं दिया गया।—१ शमूएल २४:४-७; २ शमूएल ७:१६; भजन ५१:१-४; याकूब २:१३.
९. मूसा की व्यवस्था में प्रेम ने क्या भूमिका निभाई?
९ साथ ही, मूसा की व्यवस्था ने प्रेम पर ज़ोर दिया। आज के राष्ट्रों में से किसी की कल्पना कीजिए जिसके पास एक ऐसी नियम संहिता हो जो वास्तविक रूप से प्रेम की माँग करती हो! अतः, मूसा की व्यवस्था ने न केवल हत्या को वर्जित किया; उसने आज्ञा दी: “तू . . . अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखना।” (लैव्यव्यवस्था १९:१८, NHT) इसने न सिर्फ़ परदेशियों के साथ अनुचित व्यवहार की मनाही की; इसने आज्ञा दी: “उस से अपने ही समान प्रेम रखना; क्योंकि तुम भी मिस्र देश में परदेशी थे।” (लैव्यव्यवस्था १९:३४) इसने न सिर्फ़ परस्त्रीगमन को अवैध ठहराया; इसने पति को अपनी पत्नी को प्रसन्न करने की आज्ञा दी! (व्यवस्थाविवरण २४:५) अकेले व्यवस्थाविवरण की पुस्तक में, प्रेम के गुण को सूचित करनेवाले इब्रानी शब्दों को लगभग २० बार प्रयोग किया गया है। यहोवा ने इस्राएलियों को उसके अपने प्रेम का आश्वासन दिया—भूतकाल में, वर्तमान में, और भविष्य में। (व्यवस्थाविवरण ४:३७; ७:१२-१४) वाक़ई, मूसा की व्यवस्था की सबसे बड़ी आज्ञा थी: “तू अपने परमेश्वर यहोवा से अपने सारे मन, और सारे जीव, और सारी शक्ति के साथ प्रेम रखना।” (व्यवस्थाविवरण ६:५) यीशु ने कहा कि सारी व्यवस्था इस आज्ञा पर और इसके साथ अपने पड़ोसी को प्रेम रखने पर आधारित है। (लैव्यव्यवस्था १९:१८; मत्ती २२:३७-४०) कोई ताज्जुब नहीं कि भजनहार ने लिखा: “अहा! मैं तेरी व्यवस्था में कैसी प्रीति रखता हूं! दिन भर मेरा ध्यान उसी पर लगा रहता है।”—भजन ११९:९७.
व्यवस्था का दुरुपयोग
१०. अधिकांश यहूदियों ने, मूसा की व्यवस्था के साथ कैसा बर्ताव किया?
१० तब, यह कितना दुःखद है कि इस्राएल ने ज़्यादातर, मूसा की व्यवस्था के प्रति मूल्यांकन की कमी दिखाई! उन लोगों ने व्यवस्था की अवज्ञा की, उसे नज़रअंदाज़ किया, या उसके बारे में भूल गए। उन्होंने शुद्ध उपासना को अन्य जातियों की घृणित धार्मिक रीतियों से दूषित किया। (२ राजा १७:१६, १७; भजन १०६:१३, ३५-३८) और दूसरे तरीक़ों से भी उन्होंने व्यवस्था के साथ विश्वासघात किया।
११, १२. (क) एज्रा के दिनों के बाद धार्मिक अगुवों ने किस तरह नुक़सान पहुँचाया? (बक्स देखिए) (ख) प्राचीन रब्बियों ने ‘व्यवस्था के चारों ओर बाड़ा बनाना’ आवश्यक क्यों समझा?
११ व्यवस्था को कुछ भारी नुक़सान उन्हीं लोगों द्वारा किया गया था जिन्होंने उसे सिखाने और उसे सुरक्षित रखने का दावा किया। ऐसा सा.यु.पू. पाँचवीं शताब्दी के वफ़ादार शास्त्री एज्रा के दिनों के बाद हुआ। एज्रा ने दूसरी जातियों के भ्रष्ट प्रभावों के विरुद्ध कड़ी लड़ाई की और व्यवस्था को पढ़ने और सिखाने पर ज़ोर दिया। (एज्रा ७:१०; नहेमायाह ८:५-८) व्यवस्था के कुछ शिक्षक एज्रा के पदचिन्हों पर चलने का दावा करते थे और उसकी स्थापना की जिसे “बड़ा आराधनालय” नाम दिया गया। इसकी कहावतों के बीच यह निदेश था: “व्यवस्था के चारों ओर बाड़ा बनाओ।” इन शिक्षकों ने तर्क किया कि व्यवस्था एक मूल्यवान बग़ीचे के समान थी। इसलिए कि कोई भी व्यक्ति इसके नियमों का उल्लंघन करने के द्वारा इस बग़ीचे में घुसपैठ न करे, उन्होंने अन्य नियम बनाए, “मौखिक नियम,” ताकि लोगों को ऐसे अपराध के पास आने से रोका जाए।
१२ कुछ लोग शायद तर्क करें कि इस प्रकार सोचने के लिए यहूदी अगुवे न्यायोचित थे। एज्रा के दिन के बाद यहूदियों पर विदेशी शक्तियों ने शासन किया, ख़ासकर यूनान ने। यूनानी तत्वज्ञान और संस्कृति के प्रभाव से लड़ने के लिए, यहूदियों के बीच धार्मिक अगुवों के समूह उठ खड़े हुए। (बक्स देखिए, पृष्ठ १०.) कुछ समय बाद इन समूहों ने व्यवस्था के शिक्षकों के तौर पर लेवीय याजकवर्ग को भी मात दे दी, यहाँ तक कि उनसे आगे निकल गए। (मलाकी २:७ से तुलना कीजिए।) सामान्य युग पूर्व २०० तक मौखिक नियम यहूदियों के जीवन में जगह बना रहा था। पहले पहल इन नियमों को नहीं लिखा जाना था, इस डर से कि उन्हें लिखित व्यवस्था के समान लिया जाने लगता। लेकिन धीरे-धीरे, मानवी सोच-विचार को ईश्वरीय समझ से आगे रखा गया, जिसकी वजह से अन्ततः इस ‘बाड़े’ ने उसी “बग़ीचे” को नष्ट कर दिया जिसकी इसे रक्षा करनी थी।
फरीसीवाद का प्रदूषण
१३. अनेक नियमों का बनाना कुछ यहूदी धार्मिक अगुवों ने कैसे उचित ठहराया?
१३ रब्बियों ने तर्क किया कि चूँकि तोरह, या मूसा की व्यवस्था परिपूर्ण थी, उसे प्रत्येक सवाल का जवाब देना ज़रूरी है जो शायद उठे। यह धारणा वास्तव में श्रद्धापूर्ण नहीं थी। वास्तव में, इसने रब्बियों को चालाक मानवी तर्क को प्रयोग करने की छूट दी, जिससे ऐसा लगा कि सब प्रकार के मसलों पर—कुछ व्यक्तिगत, अन्य मात्र मामूली नियमों के लिए परमेश्वर का वचन आधार था।
१४. (क) यहूदी धार्मिक अगुवे जातियों से अलगाव के शास्त्रीय नियम को एक अशास्त्रीय हद तक कैसे ले गए? (ख) क्या दिखाता है कि यहूदी लोगों को विधर्मी प्रभावों से बचाने में रब्बिनी नियम असफल रहे?
१४ बारम्बार धार्मिक अगुवों ने शास्त्रीय नियमों को लेकर बढ़ाकर हद से बाहर ले गए। उदाहरण के लिए, मूसा की व्यवस्था ने जातियों से अलगाव को बढ़ावा दिया, लेकिन रब्बियों ने जो कुछ भी ग़ैर-यहूदी था उसके प्रति एक प्रकार के असंगत तिरस्कार का प्रचार किया। उन्होंने सिखाया कि एक यहूदी को अपने मवेशी अन्यजातियों की सराय में नहीं छोड़ने चाहिए, क्योंकि अन्यजाति “पशुगमन के अपराधी समझे जाते हैं।” एक यहूदी स्त्री को एक अन्यजाति स्त्री की प्रसव में सहायता करने की अनुमति नहीं थी क्योंकि इस प्रकार वह “मूर्तिपूजा के लिए एक बालक के जन्म में सहायता करती।” चूँकि वे यूनानी व्यायामशालाओं के बारे में उचित रूप से संदेही थे, रब्बियों ने सभी प्रकार के खेल-कूद के अभ्यासों पर प्रतिबन्ध लगा दिया। इतिहास साबित करता है कि यहूदियों को अन्यजातीय विश्वासों से सुरक्षित रखने के लिए इन सभी बातों ने कुछ ख़ास नहीं किया। वास्तव में, ख़ुद फरीसी प्राण की अमरता का यूनानी धर्म-सिद्धान्त सिखाने लगे!—यहेजकेल १८:४.
१५. शुद्धीकरण और कौटुम्बिक व्यभिचार पर नियमों को यहूदी धार्मिक अगुवों ने कैसे बिगाड़ दिया?
१५ फरीसियों ने शुद्धीकरण नियमों को भी बिगाड़ दिया। यह कहा गया कि यदि मौक़ा दिया जाए तो फरीसी सूर्य को भी शुद्ध करते। उनके नियम की मान्यता थी कि “दिशा फिरने” में देरी एक पुरुष को अशुद्ध करती! हाथ धोना एक जटिल रीति बन गया, ऐसे नियमों से जैसे कौन-सा हाथ पहले धोया जाना चाहिए और कैसे। ख़ास तौर पर स्त्रियों को अशुद्ध माना जाता था। किसी सगे-सम्बन्धी के ‘पास न जाने’ की शास्त्रीय आज्ञा (वास्तव में कौटुम्बिक व्यभिचार के विरुद्ध एक नियम) के आधार पर, रब्बियों ने आदेश दिया कि एक पति को अपनी पत्नी के पीछे नहीं चलना था; और न ही उसे उसके साथ बाज़ार में बात करनी चाहिए।—लैव्यव्यवस्था १८:६.
१६, १७. साप्ताहिक सब्त मानने की आज्ञा पर मौखिक नियम ने कैसे व्याख्या दी, और किस परिणाम के साथ?
१६ मौखिक नियम ने सब्त के नियम का जो आध्यात्मिक मज़ाक बनाकर रख दिया वह ख़ास तौर पर कुख्यात है। परमेश्वर ने इस्राएल को एक साधारण आज्ञा दी: सप्ताह के सातवें दिन कोई भी काम न करना। (निर्गमन २०:८-११) लेकिन, मौखिक नियम ने क़रीब ३९ विभिन्न प्रकार के वर्जित कामों का विवरण दिया, जिसमें गाँठ बाँधना या खोलना, दो टाँके सिलना, दो इब्रानी शब्द लिखना इत्यादि शामिल थे। और इनमें से हर प्रकार के लिए अन्तहीन अन्य नियमों की ज़रूरत थी। कौन-सी गाँठें वर्जित थीं और किनकी अनुमति थी? मौखिक नियमों ने मनमानी विधियों के साथ जवाब दिया। चंगाई को भी एक वर्जित कार्य की तरह देखा गया। उदाहरण के लिए, सब्त के दिन एक टूटे अंग को बिठाना वर्जित था। जिस व्यक्ति को दाँत का दर्द हो वह अपने भोजन को सिरके से स्वादिष्ट कर सकता था, लेकिन उसे सिरके को अपने दाँतों से चूसना नहीं चाहिए था। जो शायद उसके दाँत को चंगा कर दे!
१७ जहाँ तक ज़्यादातर यहूदियों का सवाल था इस प्रकार मानव-निर्मित सैकड़ों नियमों के नीचे दफ़न, सब्त का नियम अपना आध्यात्मिक अर्थ खो बैठा। जब ‘सब्त के दिन के प्रभु’ यीशु मसीह ने सब्त के दिन प्रभावशाली, हृदयस्पर्शी चमत्कार किए, तो शास्त्री और फरीसियों पर असर नहीं हुआ। उन्हें सिर्फ़ इस बात की परवाह थी कि वह उनकी विधियों को नज़रअंदाज़ करता जान पड़ रहा था।—मत्ती १२:८, १०-१४.
फरीसियों की ग़लतियों से सीखना
१८. मूसा की व्यवस्था में मौखिक नियमों और परम्पराओं को जोड़ने का क्या प्रभाव पड़ा? उदाहरण दीजिए।
१८ संक्षिप्त में, हम शायद कहें कि ये जोड़े गए नियम और परम्पराएँ मूसा की व्यवस्था से ठीक उसी प्रकार चिपक गए जैसे कि बार्नेकल एक पोत के खोल से चिपक जाता है। एक पोत मालिक अपने जहाज़ से इन दुःखदायी जीवों को खुरचने में बहुत समय और मेहनत लगाता है क्योंकि ये पोत को धीमा बना देते हैं और उसके ज़ंग प्रतिरोधी पेन्ट को नष्ट कर देते हैं। इसी तरह, मौखिक नियमों और परम्पराओं ने व्यवस्था को बोझ बना डाला और उसे क्षयकारी दुरुपयोग के सामने खुला छोड़ दिया। लेकिन, ऐसे अतिरिक्त नियमों को खुरचकर निकालने के बजाय, वे रब्बी उसमें और बढ़ाते गए। उस समय तक जब मसीहा व्यवस्था को पूरा करने आया, उस “पोत” पर “बार्नेकल” की इतनी पपड़ी जम चुकी थी कि वह मुश्किल से तैर रहा था! (नीतिवचन १६:२५ से तुलना कीजिए।) व्यवस्था वाचा की रक्षा करने के बजाय, इन धार्मिक अगुवों ने उसका विश्वासघात करने की ग़लती की। लेकिन, उनके नियमों का “बाड़ा” क्यों असफल रहा?
१९. (क) ‘व्यवस्था के चारों ओर का बाड़ा’ क्यों असफल रहा? (ख) क्या दिखाता है कि यहूदी धार्मिक अगुवों में असली विश्वास की कमी थी?
१९ यहूदी धर्म के अगुवे यह समझने में असफल रहे कि भ्रष्टता के विरुद्ध लड़ाई हृदय में लड़ी जाती है न कि नियम-पुस्तकों के पन्नों पर। (यिर्मयाह ४:१४) विजय की कुंजी प्रेम है—यहोवा के लिए प्रेम, उसके नियम, और उसके धर्मी सिद्धान्तों के लिए प्रेम। यहोवा जिससे घृणा करता है ऐसा प्रेम साथ-साथ वैसी घृणा उत्पन्न करता है। (भजन ९७:१०; ११९:१०४) इस प्रकार जिन लोगों के हृदय प्रेम से भरे रहते हैं वे इस भ्रष्ट संसार में यहोवा के नियमों के प्रति वफ़ादार रहते हैं। यहूदी धार्मिक अगुवों के पास इस प्रकार के प्रेम को बढ़ावा देने और प्रेरित करने के लिए लोगों को सिखाने का बड़ा विशेषाधिकार था। वे ऐसा करने में असफल क्यों रहे? स्पष्टतः उनमें विश्वास की कमी थी। (मत्ती २३:२३, NW फुटनोट) यदि उन्होंने वफ़ादार मनुष्यों के हृदयों में यहोवा की आत्मा के कार्य करने की शक्ति पर विश्वास रखा होता, तो उन्होंने दूसरों के जीवन पर कड़ा नियंत्रण रखने की ज़रूरत को महसूस नहीं किया होता। (यशायाह ५९:१; यहेजकेल ३४:४) विश्वास की कमी के साथ, उन्होंने विश्वास प्रदान नहीं किया; उन्होंने लोगों पर मानव-निर्मित आज्ञाओं का बोझ डाल दिया।—मत्ती १५:३, ९; २३:४.
२०, २१. (क) यहूदी धर्म पर परम्परा-प्रवृत मनोवृत्ति का कुल मिलाकर क्या प्रभाव पड़ा? (ख) यहूदी धर्म के साथ जो हुआ उससे हम क्या सबक़ सीखते हैं?
२० यहूदी अगुवों ने प्रेम को बढ़ावा नहीं दिया। उनकी परम्पराओं ने एक ऐसा धर्म उत्पन्न किया जो दिखावे से ग्रस्त, दिखावे के लिए यांत्रिक आज्ञाकारिता से भरा हुआ—कपट पैदा करने के लिए एक उपजाऊ भूमि था। (मत्ती २३:२५-२८) उनकी विधियों ने दूसरों पर दोष लगाने के लिए अनगिनित कारण पैदा किए। अतः उन घमण्डी, अधिकारवादी फरीसियों ने स्वयं यीशु मसीह की आलोचना करने में न्यायोचित महसूस किया। वे व्यवस्था के मूल उद्देश्य के महत्त्व को भूल गए और एकमात्र सच्चे मसीहा को ठुकरा दिया। इसके परिणामस्वरूप, उसे यहूदी जाति से कहना पड़ा: “देखो, तुम्हारा घर तुम्हारे लिये उजाड़ छोड़ा जाता है।”—मत्ती २३:३८; गलतियों ३:२३, २४.
२१ हमारे लिए क्या सबक़ है? स्पष्ट रूप से, एक कठोर, परम्परा-प्रवृत्त मनोवृत्ति यहोवा की शुद्ध उपासना को बढ़ावा नहीं देती! लेकिन क्या इसका यह अर्थ है कि आज यहोवा के उपासकों के पास कोई नियम नहीं होते जब तक कि उन्हें ख़ास तौर पर पवित्र शास्त्र से स्पष्ट नहीं किया जाता? जी नहीं। पूरे जवाब के लिए, आइए हम इसके बाद ध्यान दें कि कैसे यीशु मसीह ने मूसा की व्यवस्था को एक नई और उससे उत्तम व्यवस्था से बदल दिया।
[फुटनोट]
a निःसन्देह, आधुनिक राष्ट्रों की कानूनी व्यवस्थाओं की तुलना में फिर भी इनकी संख्या बहुत कम है। उदाहरण के लिए, १९९० की शुरुआत तक, अमरीका के संघीय नियमों से १,२५,००० पृष्ठ भरे हुए थे, और प्रत्येक वर्ष हज़ारों नए नियम जोड़े जाते रहे हैं।
क्या आप समझा सकते हैं?
◻ सारी सृष्टि ईश्वरीय नियम द्वारा कैसे नियंत्रित है?
◻ मूसा की व्यवस्था का मूल उद्देश्य क्या था?
◻ क्या दिखाता है कि मूसा की व्यवस्था ने दया और करुणा पर ज़ोर दिया?
◻ मूसा की व्यवस्था में यहूदी धार्मिक अगुवों ने अनगिनित नियम क्यों जोड़ दिए, और किस परिणाम के साथ?
[पेज 10 पर बक्स]
यहूदी धार्मिक अगुवे
शास्त्री: वे ख़ुद को एज्रा के उत्तराधिकारी और व्यवस्था के समझानेवाले मानते थे। पुस्तक यहूदियों का इतिहास (अंग्रेज़ी) के अनुसार, “सभी शास्त्री उत्कृष्ट आत्माएँ नहीं थीं, और व्यवस्था में छिपे अर्थ निकालने की उनकी कोशिशें अकसर अर्थहीन नुस्ख़ों और मूर्खतापूर्ण प्रतिबन्धों में विकृत हो जाती थीं। और ये रीति-रिवाज़ पक्के बनकर परम्परा बन गए, जो कि जल्द ही निष्ठुर तानाशाह बन गयी।”
हाशिदी: इस नाम का अर्थ है “पवित्र जन” या “सन्त।” पहली बार एक वर्ग के तौर पर सा.यु.पू., २०० में इनका ज़िक्र किया गया, वे राजनैतिक रूप से शक्तिशाली, यूनानी प्रभाव की निरंकुशता के विरुद्ध व्यवस्था की शुद्धता के कट्टर रक्षक थे। हाशिदी तीन वर्गों में विभाजित हो गए: फरीसी, सदूकी, और इसीनी।
फरीसी: कुछ विद्वानों का मानना है कि यह नाम शब्द “अलग किए हुए लोगों,” या “अलगाववादियों” से लिया गया है। ख़ुद को अन्यजातियों से अलग करने की धुन में वे निश्चित ही कट्टर थे, लेकिन वे अपनी बिरादरी को साधारण यहूदी लोगों से अलग—और श्रेष्ठ—समझते थे, जो मौखिक नियमों की जटिलताओं के प्रति अज्ञानी थे। एक इतिहासकार ने फरीसियों के बारे में ऐसा कहा: “कुल मिलाकर, उन्होंने पुरुषों के साथ बच्चों की तरह व्यवहार किया, विधि-पालन के छोटे-से-छोटे विवरणों को स्वीकृति दी और उनकी स्पष्ट व्याख्या दी।” एक अन्य विद्वान ने कहा: “फरीसीवाद ने सभी स्थितियों से निपटने के लिए कानूनी नियमों का एक ढेर बनाया, उन्होंने तुच्छ बातों को महत्त्व दिया और ऐसा करने से महत्त्वपूर्ण बातों को तुच्छ कर दिया। (मत्ती २३:२३)।”
सदूकी: एक वर्ग जो नज़दीकी से कुलीन-वर्ग से और याजकवर्ग से जुड़ा हुआ था। उन्होंने यह कहते हुए शास्त्रियों और फरीसियों का ज़ोरदार विरोध किया, कि मौखिक नियम को लिखित व्यवस्था की मान्यता नहीं थी। वे यह लड़ाई हार चुके थे इसे मिशनाह ने ख़ुद प्रदर्शित किया: “[लिखित] व्यवस्था के शब्दों [के पालन] से ज़्यादा शास्त्रियों के शब्दों [का पालन] पर ज़्यादा कड़ाई लागू होती है।” तलमूद ने, जिसमें ज़्यादातर मौखिक नियम पर व्याख्या शामिल थी, बाद में यहाँ तक कहा: “शास्त्रियों के शब्द . . . तोरह के शब्दों से ज़्यादा मूल्यवान हैं।”
इसीनी: सन्यासियों का वह समूह जिन्होंने ख़ुद को पृथक समुदायों में अलग कर रखा था। बाइबल के अनुवादक का शब्दकोश (अंग्रेज़ी), के अनुसार, इसीनी फरीसियों से भी ज़्यादा असामाजिक थे और “कभी-कभी फरीसियों को भी मात दे सकते थे।”
[पेज 8 पर तसवीरें]
तारामण्डलों को नियंत्रित करनेवाले नियमों के बारे में संभवतः अय्यूब को उसके माता-पिता ने सिखाया