धर्म की स्वतंत्रता को जापान में समर्थन दिया गया
अनेक वर्षों से जापान में, युवा विद्यार्थियों ने जो यहोवा के साक्षी हैं, एक दुविधा का सामना किया है: क्या उन्हें अपने बाइबल-प्रशिक्षित अन्तःकरण का अनुसरण करना चाहिए, या उन्हें एक स्कूली पाठ्यक्रम का अनुसरण करना चाहिए जो उनके अन्तःकरण को दूषित करता है। यह दुविधा क्यों? क्योंकि उनके स्कूलों में सामरिक युद्ध-कला के अभ्यास शारीरिक शिक्षा पाठ का एक भाग हैं। युवा साक्षियों ने महसूस किया कि ऐसे अभ्यास बाइबल सिद्धान्तों के सामंजस्य में नहीं हैं, वह जो यशायाह अध्याय २, आयत ४ में पाया जाता है। इसमें लिखा है: “वे अपनी तलवारें पीटकर हल के फाल और अपने भालों को हंसिया बनाएंगे; तब एक जाति दूसरी जाति के विरुद्ध फिर तलवार न चलाएगी, न लोग भविष्य में युद्ध की विद्या सीखेंगे।”
सामरिक कौशल सीखने की इच्छा न रखते हुए, जिसमें दूसरे व्यक्ति को चोट पहुँचाना शामिल है, युवा मसीही साक्षियों ने अपने अध्यापकों को समझाया कि वे सामरिक युद्ध-कला में निष्कपट रूप से भाग नहीं ले सकते थे। इस स्कूली पाठ्यक्रम को स्वीकार करवाने के लिए इन विद्यार्थियों के पीछे पड़ने के बाद, अनेक विचारशील अध्यापक आख़िरकार उन विद्यार्थियों के अन्तःकरण का सम्मान करने और उन्हें वैकल्पिक गतिविधियाँ प्रदान करने के लिए राज़ी हुए।
लेकिन, कुछ अध्यापक भावुक हो गए, और कुछ स्कूलों ने युवा साक्षियों को शारीरिक शिक्षा में प्रत्यय देने से इनकार किया। १९९३ में, कम-से-कम नौ साक्षियों को शैक्षिक उन्नति से इनकार किया गया और स्कूल छोड़ने या प्रतिरक्षक युद्ध-कला में हिस्सा न लेने के लिए निकाले जाने पर मजबूर किया गया।
स्पष्ट रूप से, अपने अन्तःकरण का समझौता किए बिना शिक्षा पाने के इन युवा मसीहियों के अधिकार की प्रतिरक्षा करने का यह समय था। कोबे नगर-पालिका औद्योगिक तकनीकी कॉलेज (संक्षिप्त में कोबे टॆक कहलाता है) के जिन पाँच विद्यार्थियों को दूसरी श्रेणी में चढ़ाने से इनकार कर दिया गया था उन्होंने क़ानूनी कार्यवाही करने का फ़ैसला किया।
कौन-सी बात दाँव पर थी?
वर्ष १९९० के वसंत में जब इन विद्यार्थियों ने कोबे टॆक में प्रवेश किया, उन्होंने अध्यापकों को समझाया कि वे अपने बाइबल-आधारित दृष्टिकोण के कारण कॆन्डो (जापानी तलवारबाज़ी) अभ्यासों में भाग नहीं ले सकते थे। शारीरिक शिक्षण प्रभाग कड़ाई से इसके विरुद्ध था और शारीरिक शिक्षण के प्रत्यय प्राप्त करने के लिए किसी भी वैकल्पिक माध्यम का इनकार किया। आख़िरकार, विद्यार्थी शारीरिक शिक्षण कक्षा में अनुत्तीर्ण हो गए और इसके परिणामस्वरूप उन्हें पहली श्रेणी (कॉलेज पाठ्यक्रम के पहले वर्ष) को दोबारा करना पड़ा। इस बात का दावा करते हुए कि स्कूल की कार्यवाही धर्म की स्वतंत्रता की संवैधानिक गारंटी के विरुद्ध गई थी, अप्रैल १९९१ में उन्होंने कोबे ज़िला न्यायालय में एक मुकद्दमा दायर किया।a
उस स्कूल ने दावा किया कि वैकल्पिक गतिविधियों को प्रदान करना एक ख़ास धर्म का पक्ष लेने के बराबर होता और इस प्रकार सार्वजनिक शिक्षण की तटस्थता का अतिलंघन करना होता। इसके अलावा, उन्होंने दावा किया कि एक वैकल्पिक शारीरिक शिक्षण कार्यक्रम प्रदान करने के लिए उनके पास न तो सुविधाएँ थीं न ही कर्मचारी।
ज़िला न्यायालय का निर्णय जानकारों में हलचल मचाता है
जबकि मुक़द्दमे की सुनवाई हो रही थी, उन पाँच विद्यार्थियों में से दो विद्यार्थी फिर से शारीरिक शिक्षण में उत्तीर्ण होने के अंकों में अनुत्तीर्ण हो गए, जबकि बाक़ी तीन बड़ी मुश्किल से उत्तीर्ण हुए और अगली श्रेणी में गए। स्कूल के नियमों में लिखा हुआ था कि ऐसे विद्यार्थी जिनकी शैक्षिक उपलब्धियाँ निम्न थीं और जिन्होंने एक ही श्रेणी को किन्हीं दो लगातार वर्ष दोहराया हो, निकाले जा सकते थे। इस बात को ध्यान में रखते हुए, दो विद्यार्थियों में से एक ने इससे पहले की उसे निकाला जाता, स्कूल छोड़ने का निर्णय किया, लेकिन दूसरे, कुनीहीटो कोबॉयॉशी ने, छोड़ने से इनकार कर दिया। सो उसे निकाल दिया गया। दिलचस्पी की बात है, सभी विषयों के लिए, जिसमें शारीरिक शिक्षण भी शामिल है और जिसमें वह ४८ अंकों के योग से अनुत्तीर्ण हो गया था, कुनीहीटो की औसत १०० में से ९०.२ अंक थीं। वह ४२ विद्यार्थियोंवाली अपनी कक्षा में प्रथम आया था।
फरवरी २२, १९९३ के दिन, कोबे ज़िला न्यायालय ने कोबे टॆक के पक्ष में फ़ैसला दिया और कहा: “स्कूल द्वारा की गई कार्यवाही संविधान का उल्लंघन नहीं करती,” हालाँकि उसने स्वीकार किया कि “इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि मुद्दई की उपासना की स्वतंत्रता को कॆन्डो अभ्यासों में हिस्सा लेने की स्कूल की माँग द्वारा थोड़ा-बहुत सीमित कर दिया गया था।”
प्रथम शताब्दी में प्रेरित पौलुस की तरह, इन मुद्दइयों ने उच्चतम क़ानूनी अधिकारियों से अपील करने का निर्णय किया। (प्रेरितों २५:११, १२) मुक़द्दमा ओसाका उच्च न्यायालय में गया।
मुद्दइयों की अस्वार्थी मनोवृत्ति
एक जाने-माने विद्वान, ट्सूकूबॉ विश्वविद्यालय के प्रॉफ़ॆसर टॆट्सूओ शीमोमुरॉ, ओसाका उच्चतम न्यायालय में एक विशेषज्ञ गवाह के तौर पर साक्ष्य देने के लिए तैयार हो गए। शिक्षा और क़ानून में एक विशेषज्ञ के तौर पर, उसने ज़ोर दिया कि विद्यार्थियों के साथ व्यवहार करने में स्कूल की कार्यवाहियाँ कितनी विचार-शून्य थीं। कुनीहीटो कोबॉयॉशी ने न्यायालय में अपनी भावनाओं को व्यक्त किया, और उसकी निष्कपट मनोवृत्ति ने अदालत में मौजूद लोगों के हृदयों को मोम बना दिया था। इसके अलावा, फरवरी २२, १९९४ में, कोबे न्यायालय समिति ने, इस बात की घोषणा करते हुए कि स्कूल की कार्यवाही ने कुनीहीटो की उपासना की स्वतंत्रता और शिक्षा प्राप्त करने के उसके अधिकार का अतिलंघन किया है, यह सिफ़ारिश की कि स्कूल उसे वापस ले ले।
जैसे-जैसे ओसाका उच्च न्यायालय में फ़ैसला सुनाने का समय निकट आया, सम्मिलित सभी युवा मसीही अन्त तक संघर्ष का भाग बने रहने के लिए उत्सुक थे। उन्हें महसूस हुआ कि सभी जापान के स्कूलों में इसी विवाद का सामना कर रहे हज़ारों युवा साक्षियों के पक्ष में वे एक क़ानूनी लड़ाई लड़ रहे थे। लेकिन क्योंकि उन्हें स्कूल से नहीं निकाला गया था, इस बात की अधिक संभावना थी कि न्यायालय उनके मुक़द्दमे को ख़ारिज कर देता। और वे देख सकते थे कि यदि उन्होंने अपनी याचिका को वापस ले लिया होता, तो कुनीहीटो को निकालने की स्कूल की अनुचितता विशिष्ट होती। इसलिए, कुनीहीटो को छोड़ बाक़ी सभी विद्यार्थियों ने मुक़द्दमे को छोड़ देने का फ़ैसला किया।
दिसम्बर २२, १९९४ को, ओसाका उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रेसुकी शीमॉडॉ ने एक ऐसा फ़ैसला सुनाया जिसने कोबे ज़िला न्यायालय के फ़ैसले को पलट दिया। न्यायालय ने पाया कि कॆन्डो अभ्यास से इनकार करने का कुनीहीटो का कारण निष्कपट था और उसके धार्मिक विश्वास पर आधारित उसके कार्य के लिए उसे होनेवाला नुक़सान बहुत ज़्यादा था। स्कूल को, मुख्य न्यायाधीश ने कहा, वैकल्पिक गतिविधियाँ प्रदान करनी चाहिए थीं। इस उत्तम फ़ैसले ने उन लोगों के हृदयों में एक प्रतिक्रियात्मक तार को छू लिया जो मानव अधिकारों के लिए चिन्तित थे। लेकिन, स्कूल ने कुनीहीटो को एक और वर्ष से ज़्यादा शिक्षण से वंचित करते हुए, जापान के सर्वोच्च न्यायालय में मुक़द्दमे की अपील की।
सर्वोच्च न्यायालय को
समाचार-पत्र कोबे शीमबून में एक लेख ने बाद में यह कहा: “कोबे नगर स्कूल बोर्ड और स्कूल को श्री. कोबॉयॉशी को उस वक़्त [ओसका उच्च न्यायालय के फ़ैसले के बाद] स्कूल में वापस ले लेना चाहिए . . . उनकी बेवजह झगड़ेवाली मनोवृत्ति ने एक व्यक्ति को उसकी जवानी की एक महत्त्वपूर्ण अवधि से वंचित कर दिया।” इसके बावजूद भी, कोबे टॆक ने इस मामले में कठोर स्थिति धारण की। परिणामस्वरूप, यह राष्ट्र-भर की समाचार रिपोर्टों का विषय बन गया। पूरे देश के अध्यापकों और स्कूल अधिकारियों ने इस बात पर ध्यान दिया, और देश के सर्वोच्च न्यायालय का फ़ैसला भविष्य में इसी प्रकार के मुक़द्दमों के लिए एक अधिक मज़बूत क़ानूनी पूर्ववर्ती के रूप को चित्रित करता।
जनवरी १७, १९९५ के दिन, स्कूल द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने के एक सप्ताह बाद, ऑशीयॉ शहर में कोबे भूकम्प हुआ, जहाँ कुनीहीटो और उसका परिवार रहता था। उस सुबह लगभग साढ़े पाँच बजे, उस क्षेत्र में भूकम्प होने के कुछ ही मिनट पहले, कुनीहीटो अपनी अंश-कालिक नौकरी के लिए अपने घर से निकला। वह हॉनशीन एक्सप्रॆसवे के नीचे की सड़क पर साईकल चलाता हुआ जा रहा था, और जब भूकम्प हुआ, वह उस हिस्से तक पहुँचनेवाला ही था जो ढह गया था। उसी वक़्त वह वापस घर गया और अपने घर की पहली मंजिल को पूरी तरह से चूर-चूर पाया। कुनीहीटो ने देखा कि वह भूकम्प में आसानी से अपना जीवन खो सकता था और उसने उसे जीवित रहने की अनुमति देने के लिए यहोवा का धन्यवाद किया। यदि वह मर गया होता, तो यह संभव है कि कॆन्डो मुक़द्दमा सर्वोच्च न्यायालय के फ़ैसले के बिना समाप्त हो जाता।
आम तौर पर जापान में सर्वोच्च न्यायालय केवल काग़ज़ों पर अपीलों की जाँच करता है और यह फ़ैसला करता है कि क्या निम्न-न्यायालय के फ़ैसले सही थे या नहीं। जब तक कि निम्न-न्यायालय के फ़ैसले को बदलने का कोई गंभीर कारण न हो, तो कोई भी सुनवाई नहीं होती। न्यायालय संबद्ध मुद्दइयों को इस बात की सूचना नहीं देता की फ़ैसला कब दिया जाएगा। सो कुनीहीटो को मार्च ८, १९९६ की सुबह को आश्चर्य हुआ, जब उसे बताया गया कि फ़ैसला उसी सुबह दिया जाएगा। उसके आनन्द और ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा, जब उसने जान लिया कि सर्वोच्च न्यायालय ने ओसाका उच्च न्यायालय के फ़ैसले को समर्थन दिया है।
न्यायधीश शीनीची कॉवाई की अध्यक्षता में, चार न्यायाधीशों ने सर्वसम्मति से यह फ़ैसला दिया कि “की गई कार्यवाही पर सवाल को सामाजिक तौर पर स्वीकृत मानदण्डों के दृष्टिकोण से अत्यधिक रूप से अनुचित माना जाना चाहिए, जो विवेकशील अधिकारों के क्षेत्र से परे हटा, और इसलिए अवैध है।” न्यायालय ने कुनीहीटो के कॆन्डो अभ्यासों को करने से इनकार की निष्कपटता को स्वीकारा और कहा: “प्रतिवादी का कॆन्डो अभ्यासों में हिस्सा लेने से इनकार करना उत्साहपूर्ण और उसके विश्वास की बुनियाद से गहरा सम्बन्ध रखनेवाला था।” सर्वोच्च न्यायालय ने फ़ैसला दिया कि स्कूल वैकल्पिक गतिविधियाँ दे सकता था या उसे देना चाहिए था ताकि प्रतिवादी के धार्मिक विश्वासों का आदर हो सके।
दूरगामी प्रभाव
स्कूलों में उपासना की स्वतंत्रता के पक्ष में यह फ़ैसला निःसन्देह एक पूर्ववर्ती रखेगा। द जापान टाइम्स् ने कहा: “सर्वोच्च न्यायालय द्वारा शिक्षा और धर्म की स्वतंत्रता के वाद-विषय पर यह पहला फ़ैसला है।” लेकिन, यह फ़ैसला हर एक युवा विद्यार्थी की विश्वास की परीक्षाओं का सामना करते वक़्त ख़ुद एक निष्कपट स्थिति लेने की ज़िम्मेदारी को समाप्त नहीं करता।
ट्सुकुबा विश्वविद्यालय के प्रॉफ़ॆसर मॉसॉयुकी युचीनो ने टिप्पणी की कि एक कारण जिसने न्यायाधीशों को कुनीहीटो को विजय देने के लिए प्रेरित किया वह यह था कि वह “एक गंभीर छात्र था जिसकी शैक्षिक उपलब्धियाँ उत्कृष्ट थीं।” बाइबल उन मसीहियों को यह सलाह देती है जो अपने विश्वास की परीक्षाओं का सामना करते हैं: “अन्यजातियों में तुम्हारा चालचलन भला हो; इसलिये कि जिन जिन बातों में वे तुम्हें कुकर्मी जानकर बदनाम करते हैं, वे तुम्हारे भले कामों को देखकर; उन्हीं के कारण कृपा दृष्टि के दिन परमेश्वर की महिमा करें।” (१ पतरस २:१२) वफ़ादार युवा मसीही दिखा सकते हैं कि अपना सारा जीवन बाइबल स्तरों के अनुसार बिताने के द्वारा उनकी बाइबलीय स्थिति लोगों के आदर के योग्य है।
सर्वोच्च न्यायालय के फ़ैसले के बाद, कुनीहीटो कोबॉयॉशी को कोब टॆक में दोबारा दाख़िल किया गया। अधिकांश विद्यार्थी जिन्होंने कुनीहीटो के साथ स्कूल में दाख़िला लिया था पहले ही स्नातकता प्राप्त कर चुके थे। अब कुनीहीटो ऐसे विद्यार्थियों के साथ पढ़ रहा था जो उससे पाँच वर्ष छोटे थे। संसार के अनेक लोगों की नज़रों में, उसकी जवानी के पाँच मूल्यावान वर्ष बरबाद होते दिख रहे थे। लेकिन, कुनीहीटो की खराई यहोवा परमेश्वर की नज़रों में मूल्यवान है, और उसका बलिदान निश्चित ही व्यर्थ नहीं गया है।
[फुटनोट]
a विवरण के लिए, कृपया वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित सजग होइए! (अंग्रेज़ी) के अक्तूबर ८, १९९५ के अंक के पृष्ठ १० से १४ देखिए।
[पेज 20 पर तसवीरें]
बाएँ: भूकम्प के बाद कुनीहीटो का घर
नीचे: आज कुनीहीटो