यहोवा को क्यों दें?
सारपत के छोटे सीदोनी नगर में जैसे-जैसे सूर्य तेज़ी से चमकता है, एक विधवा लकड़ियाँ इकट्ठा करने के लिए नीचे झुकती है। उसे आग जलाने की ज़रूरत थी ताकि वह एक अल्प भोजन पका सके—संभवतः वह आख़िरी भोजन जो वह और उसका बेटा खाते। उसने ख़ुद को और अपने बेटे को लम्बे सूखे और अकाल के दौरान जीवित रखने के लिए संघर्ष किया था, और यह सब यहाँ आकर इस दुःखद परिणाम में समाप्त हुआ। वे भूख से मर रहे थे।
एक पुरुष पास आया। उसका नाम एलिय्याह था, और जल्द ही विधवा ने देखा कि वह यहोवा का एक भविष्यवक्ता था। ऐसा लगता है कि उसने इस परमेश्वर के बारे में सुना था। यहोवा बाल से भिन्न था, जिसकी क्रूर, विकृत उपासना उसके देश सीदोन में प्रचलित थी। सो जब एलिय्याह ने उससे पीने के लिए पानी माँगा, तो वह सहायता करने के लिए उत्सुक थी। संभवतः उसने महसूस किया कि ऐसा करना उसे यहोवा का अनुग्रह दिलाता। (मत्ती १०:४१, ४२) लेकिन तब एलिय्याह ने और ज़्यादा माँगा—भोजन का एक टुकड़ा। उसने समझाया कि उसके पास सिर्फ़ एक आख़िरी भोजन के लिए ही पर्याप्त खाना था। फिर भी, एलिय्याह ने ज़िद्द की, और उसे इस बात से आश्वस्त किया कि यहोवा तब तक उसके लिए चमत्कारिक रूप से भोजन प्रदान करेगा जब तक कि अकाल समाप्त नहीं हो जाता। उसने क्या किया? बाइबल कहती है: “तब वह चली गई, और एलिय्याह के वचन के अनुसार किया।” (१ राजा १७:१०-१५) इन साधारण शब्दों ने बड़े विश्वास के एक कार्य का उल्लेख किया—वास्तव में, इतना बड़ा विश्वास, कि लगभग पूरे एक हज़ार वर्ष बाद यीशु मसीह ने उस विधवा की सराहना की!—लूका ४:२५, २६.
फिर भी, शायद यह अटपटा लगे कि यहोवा एक ऐसी स्त्री से इतनी ज़्यादा माँग करता जिसके पास इतना कम था। ऐसा तब भी लगता है जब हम एक बहुत ही प्रमुख व्यक्ति द्वारा एक बार की गई प्रार्थना पर ध्यान देते हैं। राजा दाऊद का अपने बेटे सुलैमान को मंदिर के निर्माण में इस्तेमाल करने के लिए अंशदानों को जमा करने से बड़ी उदारता को बढ़ावा मिला। आधुनिक शब्दों में, दान की गई भेंटों की क़ीमत अरबों डॉलर है। लेकिन, दाऊद ने यहोवा से प्रार्थना में कहा: “मैं क्या हूं? और मेरी प्रजा क्या है? कि हम को इस रीति से अपनी इच्छा से तुझे भेंट देने की शक्ति मिले? तुझी से तो सब कुछ मिलता है, और हम ने तेरे हाथ से पाकर तुझे दिया है।” (१ इतिहास २९:१४) जैसा दाऊद ने कहा, सब कुछ यहोवा का है। सो जब कभी-भी हम शुद्ध उपासना की उन्नति के लिए देते हैं, हम यहोवा को मात्र वही दे रहे होते हैं जो पहले से ही उसका है। (भजन ५०:१०) अतः, सवाल उठता है, सबसे पहले यहोवा हमसे क्यों चाहता है कि हम दें?
सच्ची उपासना का एक अनिवार्य हिस्सा
सबसे सरल जवाब यह है कि आरंभिक समय से ही यहोवा ने देने को शुद्ध उपासना का एक अनिवार्य भाग बनाया है। वफ़ादार पुरुष हाबिल ने यहोवा को अपने कुछ मूल्यवान पशुधन का बलिदान चढ़ाया। कुलपिता, नूह, इब्राहीम, इसहाक, याकूब, और अय्यूब ने ऐसे ही बलिदान चढ़ाए।—उत्पत्ति ४:४; ८:२०; १२:७; २६:२५; ३१:५४; अय्यूब १:५.
मूसा की व्यवस्था ने यहोवा को अंशदान देने की आज्ञा दी और उसे विनियमित भी किया। उदाहरण के लिए, सभी इस्राएलियों को दशमांश, या भूमि की उपज का और अपने पशुधन की बढ़त का दसवाँ भाग दान करने की आज्ञा दी गई थी। (गिनती १८:२५-२८) अन्य अंशदानों को इतनी सख़्ती से विनियमित नहीं किया गया था। उदाहरण के लिए, हरेक इस्राएली को अपने पशुधन और उपज का पहला-फल यहोवा को देने की ज़रूरत थी। (निर्गमन २२:२९, ३०; २३:१९) फिर भी, व्यवस्था ने इस बात को हरेक व्यक्ति को निर्धारित करने के लिए छोड़ दिया कि वह कितनी मात्रा में अपने पहले-फल दे, जब तक कि उसने सर्वोत्तम दिया। व्यवस्था में धन्यवाद और मन्नत की बलियों का भी प्रयोजन था, जो पूर्ण रूप से स्वैच्छिक थीं। (लैव्यव्यवस्था ७:१५, १६) यहोवा ने अपने लोगों को प्रोत्साहित किया कि जिस रीति से उसने उन्हें आशिष दी है उसके अनुपात में दान दें। (व्यवस्थाविवरण १६:१७) जैसा कि निवासस्थान और बाद में मंदिर के निर्माण के समय में हुआ था, हरेक ने वही दिया जितना देने के लिए उसके हृदय ने उसे प्रेरित किया। (निर्गमन ३५:२१; १ इतिहास २९:९) निश्चित रूप से ऐसे स्वैच्छिक अंशदान यहोवा को अति प्रीतिकर थे!
“मसीह की व्यवस्था” के अधीन सभी प्रकार का देना स्वैच्छिक होना था। (गलतियों ६:२; २ कुरिन्थियों ९:७) इसका अर्थ यह नहीं था कि मसीह के अनुयायियों ने देना छोड़ दिया या उन्होंने कम दिया। इसके विपरीत! जैसे-जैसे यीशु और उसके प्रेरितों ने इस्राएल में प्रचार किया, स्त्रियों का एक समूह उनके पीछे हो लिया और अपनी सम्पत्ति से उनकी सेवा की। (लूका ८:१-३) इसी प्रकार प्रेरित पौलुस ने भेंट प्राप्त कीं जिन्होंने उसके मिशनरी कार्य में सहायता दी, और बदले में उसने कुछ कलीसियाओं को ज़रूरत के समय में दूसरों को अंशदान देने के लिए प्रोत्साहित किया। (२ कुरिन्थियों ८:१४; फिलिप्पियों १:३-५) यरूशलेम के शासी निकाय ने इस बात को निश्चित करने के लिए ज़िम्मेदार पुरुषों को नियुक्त किया कि दान दी गई वस्तुओं को ज़रूरतमन्दों को वितरित किया जाए। (प्रेरितों ६:२-४) स्पष्ट रूप से, ऐसे तरीक़ों से शुद्ध उपासना का समर्थन करने को प्रारम्भिक मसीहियों ने एक विशेषाधिकार के रूप में देखा।
फिर भी, हम शायद विचार करें कि क्यों यहोवा देने को अपनी उपासना का एक भाग बनाता है। चार कारणों पर ध्यान दीजिए।
हम क्यों देते हैं
पहले, यहोवा देने को सच्ची उपासना का एक भाग बनाता है क्योंकि ऐसा करना हमारे लिए भला है। यह परमेश्वर की भलाई के प्रति हमारे मूल्यांकन पर ज़ोर देता है। उदाहरण के लिए, यदि एक बच्चा माता-पिता के लिए एक भेंट ख़रीदता या बनाता है, तो माता-पिता क्यों ख़ुशी से खिल उठते हैं? क्या भेंट किसी ऐसी सख़्त ज़रूरतों को पूरा करती है जिसे अन्यथा माता-पिता पूरी नहीं कर सकते थे? संभवतः नहीं। इसके बजाय, माता-पिता बच्चे को मूल्यांकन दिखानेवाली और देने की भावना को विकसित करते देखने से ख़ुश हैं। ऐसे ही कारणों के लिए यहोवा हमें देने के लिए प्रोत्साहित करता है और जब हम ऐसा करते हैं तो हर्षित होता है। इसी प्रकार हम उसे दिखाते हैं कि हम उसकी असीम कृपा और हमारे लिए उसकी उदारता का वाक़ई मूल्यांकन करते हैं। वह “हर एक अच्छा वरदान और हर एक उत्तम दान” का देनेवाला है, सो हमारे पास उसका धन्यवाद करने के कारणों का कभी आभाव नहीं होगा। (याकूब १:१७) सबसे बढ़कर, यहोवा ने स्वयं अपने प्रिय पुत्र को दे दिया, उसे मरने की अनुमति दी ताकि हम सर्वदा जीवित रह सकें। (यूहन्ना ३:१६) क्या हम कभी-भी उसका पूरी तरह से धन्यवाद कर सकते हैं?
दूसरा, यदि हम देने की आदत बनाते हैं, तो हम इस प्रकार सबसे महत्त्वपूर्ण तरीक़े में यहोवा और उसके पुत्र, यीशु मसीह का अनुकरण करना सीखते हैं। यहोवा अविरोध दे रहा है, लगातार उदार है। जैसा कि बाइबल कहती है, वह हमें “जीवन और स्वास और सब कुछ” प्रदान करता है। (प्रेरितों १७:२५) हम शायद उसे उचित रूप से उस हर साँस के लिए जो हम लेते हैं, भोजन के हरेक टुकड़े के लिए जिसका हम आनन्द लेते हैं, जीवन में हरेक आनन्दमय और संतुष्टिदायक क्षण के लिए धन्यवाद दें। (प्रेरितों १४:१७) यीशु ने, अपने पिता के समान, देने की भावना दिखाई। उसने स्वयं को उदारता से दे दिया। क्या आप जानते थे कि जब यीशु ने चमत्कार किए, तो उसने ऐसा करके ख़ुद की हानि उठाई? एक से ज़्यादा बार शास्त्र हमें बताता है कि जब उसने बीमार लोगों को चंगा किया, तो सामर्थ ‘उस में से निकली।’ (लूका ६:१९; ८:४५, ४६) यीशु इतना उदार था कि उसने अपना प्राण भी, अपना जीवन, मृत्यु तक उंडेल दिया।—यशायाह ५३:१२.
सो जब हम देते हैं, चाहे हमारा समय, हमारी शक्ति, या हमारी सम्पत्ति, हम यहोवा का अनुसरण करते हैं और उसके हृदय को आनन्दित करते हैं। (नीतिवचन २७:११; इफिसियों ५:१) हम भी मानवी चालचलन के उस परिपूर्ण आदर्श का अनुसरण करते हैं जो यीशु मसीह ने हमारे लिए छोड़ा।—१ पतरस २:२१.
तीसरा, देना वास्तविक और महत्त्वपूर्ण ज़रूरतों को पूरा करता है। सच है, यहोवा राज्य हितों की ज़रूरतों को बिना हमारी मदद के आसानी से पूरा कर सकता है, बिलकुल वैसे ही जैसे वह वचन का प्रचार करने के लिए हमें इस्तेमाल करने के बजाय पत्थरों को चिल्लाने का प्रबन्ध कर सकता है। (लूका १९:४०) लेकिन उसने हमें इन विशेषाधिकारों से गरिमान्वित करने के लिए चुना। सो जब हम राज्य हितों को बढ़ावा देने के लिए अपनी सम्पत्ति का इस्तेमाल करते हैं, तो हमें यह जानकर बड़ी सन्तुष्टि होती है कि हम इस संसार में हो रहे सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य में एक वास्तविक भूमिका निभा रहे हैं।—मत्ती २४:१४.
यह कहने की कोई ज़रूरत नहीं कि यहोवा के साक्षियों के विश्व-व्यापी कार्य की अर्थव्यवस्था के लिए पैसे की ज़रूरत है। १९९५ के सेवा वर्ष के दौरान, संस्था ने खास पायनियरों, मिशनरियों, और सफ़री ओवरसियरों की उनकी क्षेत्र सेवा कार्य-नियुक्तियों में देखभाल करने में क़रीब-क़रीब $६ करोड़ ख़र्च किए। लेकिन, सारे संसार में निर्माण और शाखा दत्नतरों के कार्य और उन में छपाई सुविधाओं की तुलना में यह अपेक्षाकृत बहुत कम ख़र्च है। फिर भी, ये सभी स्वैच्छिक अंशदानों से संभव किया जाता है!
आम तौर पर यहोवा के लोग यह अनुमान नहीं लगाते कि यदि वे स्वयं समृद्ध नहीं हैं तो शायद वे दूसरों को भार उठाने के लिए छोड़ दें। ऐसी मनोवृत्ति हमें अपनी उपासना के इस पहलू से चूक जाने की ओर ले जा सकती है। प्रेरित पौलुस के अनुसार, मकिदुनिया के मसीही “भारी कंगालपन” से पीड़ित थे। फिर भी, उन्होंने देने के विशेषाधिकार के लिए बिनती की। और जो उन्होंने दिया था, पौलुस उसकी गवाही देता है, वह ‘उनकी सामर्थ से भी बाहर’ था!—२ कुरिन्थियों ८:१-४.
चौथा, यहोवा ने देने को सच्ची उपासना का भाग बनाया क्योंकि देना आनन्दित रहने में हमारी मदद करेगा। यीशु ने स्वयं कहा: “लेने से देना धन्य है।” (प्रेरितों २०:३५) यहोवा ने इसी प्रकार हमारी रचना की है। यह एक और कारण है कि क्यों हमें शायद महसूस हो कि चाहे हम उसे कितना ही क्यों न दें, हम अपने हृदयों में उसके लिए जो महसूस करते हैं उस मूल्यांकन के बराबर कभी-भी नहीं दे सकते। लेकिन, ख़ुशी की बात है, यहोवा हमसे उससे ज़्यादा की आशा नहीं करता जितना कि हम दे सकते हैं। हम आश्वस्त हो सकते हैं कि जब हम सहर्ष उतना देते हैं जितना हम दे सकते हैं तो वह प्रसन्न होता है!—२ कुरिन्थियों ८:१२; ९:७.
देने की भावना दिखाने से आशिषें परिणित होती हैं
आरम्भ में दिए गए हमारे उदाहरण पर फिर से विचार करने पर, कल्पना कीजिए कि सारपत की उस विधवा ने यह तर्क किया होता कि कोई दूसरा व्यक्ति एलिय्याह की भोजन की ज़रूरत का ध्यान रख सकता है। तब वह क्या ही आशिष से वंचित रह जाती!
इसमें कोई प्रश्न नहीं कि यहोवा उनको आशिष देता है जो देने की भावना दिखाते हैं। (नीतिवचन ११:२५) सारपत की विधवा को वह देकर पीड़ित नहीं होना पड़ा जो उसने सोचा था कि उसका अन्तिम भोजन था। यहोवा ने एक चमत्कार से उसको प्रतिफल दिया। जैसी एलिय्याह ने प्रतिज्ञा की थी, उसके बर्तन का मैदा और कुप्पी का तेल अकाल के समाप्त होने तक समाप्त नहीं हुआ। लेकिन उसने उससे भी बड़ा प्रतिफल पाया। जब उसका बेटा बीमार होकर मर गया, तो परमेश्वर के जन एलिय्याह ने, उसे उसको वापस लौटा दिया। इसने उसे आध्यात्मिक रूप से कितना दृढ़ किया होगा!—१ राजा १७:१६-२४.
आज हम चमत्कारों से आशिष पाने की उम्मीद नहीं रखते। (१ कुरिन्थियों १३:८) लेकिन यहोवा हमें वाक़ई आश्वस्त करता है कि वह उनको संभाले रहेगा जो पूर्ण-मन से उसकी सेवा करते हैं। (मत्ती ६:३३) सो हम इस सम्बन्ध में सारपत की विधवा की तरह हो सकते हैं, उदारता से देते हुए, और इस बात से आश्वस्त कि यहोवा हमारी देख-भाल करेगा। इसी प्रकार, हम महान आध्यात्मिक प्रतिफल का आनन्द उठा सकते हैं। कभी-कभी, तत्काल प्रेरित होने के बजाय, यदि देना हमारी नियमित आदत का भाग है, तो यह हमें हमारी आँख निर्मल रखने और राज्य हितों पर केन्द्रित रखने में मदद देगा, जैसे कि यीशु ने पुष्टि की। (लूका ११:३४. १ कुरिन्थियों १६:१, २ से तुलना कीजिए।) यह हमें अपने सहकर्मियों के तौर पर यहोवा और यीशु के नज़दीक महसूस करने में मदद देगा। (१ कुरिन्थियों ३:९) और यह उदार, देने की भावना में योगदान देगा जो पहले ही संसार-भर में यहोवा के साक्षियों को विशिष्ट करती है।
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वे तरीक़े जिनसे कुछ लोग देने का निर्णय करते हैं
विश्वव्यापी कार्य के लिए अंशदान
अनेक लोग कुछ धनराशि एक तरफ़ रखते हैं या बजट करते हैं जिसे वे उन अंशदान बक्सों में डालते हैं जिन पर लिखा होता है: “संस्था के विश्वव्यापी कार्य के लिए अंशदान—मत्ती २४:१४.” हर महीने कलीसियाएँ इन धनराशियों को या तो ब्रुकलिन, न्यू यॉर्क में विश्व मुख्यालय को या स्थानीय शाखा दत्नतर को भेज देती हैं।
पैसे के रूप में स्वैच्छिक चंदा भी सीधे Watch Tower Bible and Tract Society of India, H-58 Old Khandala Road, Lonavla, 410 401, Mah., को या आपके देश में जो शाखा का दत्नतर कार्य करता है, उसको भेजा जा सकता है। गहने या अन्य मूल्यवान वस्तुएँ भी चंदे के रूप में दी जा सकती हैं। इन अंशदानों के साथ एक संक्षिप्त पत्र भेजा जाना चाहिए जिसमें कहा गया हो कि यह पूर्णतया भेंट है।
शर्तबन्द-चंदा व्यवस्था
वॉच टावर संस्था को दाता की मृत्यु तक न्यास (ट्रस्ट) में रखने के लिए पैसा दिया जा सकता है, इस शर्त के साथ कि व्यक्तिगत ज़रूरत के समय, यह दाता को लौटा दिया जाएगा। अधिक जानकारी के लिए, कृपया संस्था के साथ उपरोक्त पते पर सम्पर्क कीजिए।
योजनाबद्ध दान
पैसों की पूर्णतया भेंटों और पैसों के शर्तबन्द-चंदों के अतिरिक्त, विश्वव्यापी राज्य सेवा को लाभ पहुँचाने के लिए देने के और भी तरीक़े हैं। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
बीमा: वॉच टावर संस्था को जीवन बीमा पॉलिसी या सेवा-निवृत्ति/पेंशन योजना का लाभग्राही बनाया जा सकता है। संस्था को ऐसी किसी भी व्यवस्था के बारे में सूचना दी जानी चाहिए।
बैंक खाते: बैंक खाते, जमा प्रमाण-पत्र, या व्यक्तिगत निवृत्ति खाते, स्थानीय बैंक की माँगों के अनुरूप, वॉच टावर संस्था के लिए न्यास में रखे जा सकते हैं या वॉच टावर संस्था को मृत्यु पर देय किए जा सकते हैं। संस्था को ऐसी किसी भी व्यवस्था के बारे में सूचना दी जानी चाहिए।
शेयर और ऋणपत्र: शेयर और ऋणपत्र वॉच टावर संस्था को पूर्णतया भेंट के रूप में या ऐसी एक व्यवस्था के अधीन दान किए जा सकते हैं जिसमें आमदनी पहले की तरह ही दाता को दी जाती है।
भू-सम्पत्ति: विक्रेय भू-सम्पत्ति वॉच टावर संस्था को पूर्णतया भेंट करने के द्वारा दी जा सकती है या दाता के लिए आजीवन-सम्पदा सुरक्षित रखने के द्वारा दान की जा सकती है, जो वहाँ अपने जीवनकाल के दौरान रह सकता या सकती है। ऐसी किसी भी भू-सम्पत्ति का संस्था के नाम दानपत्र बनाने से पहले व्यक्ति को संस्था के साथ संपर्क करना चाहिए।
वसीयत और न्यास (ट्रस्ट): सम्पत्ति या पैसा वॉच टावर संस्था के नाम एक क़ानूनी तौर पर निष्पादित वसीयत के द्वारा किया जा सकता है, या संस्था को एक न्यास अनुबन्ध पत्र का लाभग्राही बनाया जा सकता है। किसी धार्मिक संगठन को लाभ पहुँचानेवाले एक न्यास से करों में कुछ लाभ मिल सकते हैं। वसीयत या न्यास अनुबन्ध पत्र की एक प्रति संस्था को भेजी जानी चाहिए।
जो लोग ऐसी किसी भी योजनाबद्ध दान व्यवस्थाओं में दिलचस्पी रखते हैं उन्हें उपरोक्त पते पर संस्था से या आपके देश में जो शाखा का दत्नतर कार्य करता है, से सम्पर्क करना चाहिए। संस्था को ऐसी किन्हीं भी व्यवस्थाओं के बारे में संबद्ध क़ाग़ज़ातों की एक प्रति प्राप्त होनी चाहिए।