खराई का क्या हुआ?
सौ साल से कुछ अधिक समय पहले, हीरों का व्यापारी बार्नी बार्नाटो दक्षिण अफ्रीका से इंग्लैंड लौटा। वहाँ पहुँचने पर, वह अख़बार में उसके बारे में लिखे गए एक लेख से सहमत नहीं हुआ। सो उसने दूसरा लेख छापने के लिए संपादक को काग़ज़ पर कुछ बातें लिखकर दीं, और “बातों को सही-सही बताया,” साथ ही एक बड़ी रक़म का चॆक दिया।
संपादक, जे. के. जॆरोम ने काग़ज़ को कूड़े की टोकरी में फेंक दिया और चॆक वापस कर दिया। चकित होकर, बार्नाटो ने तुरन्त दुगनी क़ीमत देने का प्रस्ताव रखा। उसे भी ठुकरा दिया गया। “आपको कितना चाहिए?” उसने पूछा। उस घटना को याद करते हुए जॆरोम कहता है: “मैंने उन्हें समझाया कि ऐसा नहीं किया जाता—लंदन में तो नहीं।” उसकी संपादकीय खराई किसी क़ीमत पर बिकाऊ नहीं थी।
“खराई” को “नैतिक खरापन; ईमानदारी” के रूप में परिभाषित किया गया है। खराई रखनेवाला व्यक्ति भरोसे के लायक़ होता है। लेकिन आज, बेईमानी—खराई की कमी—समाज के हर वर्ग में बढ़ती जा रही है।
ब्रिटेन में समाचार माध्यमों ने नैतिक खराई की कमी का वर्णन करने के लिए शब्द “स्लीज़” (नीचता) का प्रसार किया है। जैसा दी इंडिपॆंडॆंट अख़बार ने कहा, स्लीज़ में “प्रेम प्रसंगों और स्थानीय सरकार की कूटनीति से लेकर बड़े निर्यात ऑर्डरों पर रिश्वत तक सभी कुछ” सम्मिलित है। जीवन का कोई क्षेत्र इससे अछूता नहीं।
खराई के बदलते स्तर
निःसंदेह, खराई का अर्थ परिपूर्णता नहीं, परन्तु यह व्यक्ति का एक मूल गुण अवश्य दिखाता है। हमारे जल्द-अमीर-बनो संसार में, खराई को सद्गुण नहीं, एक बाधा के रूप में देखा जा सकता है। उदाहरण के लिए, परीक्षाओं में चीटिंग करने के लिए छात्रों द्वारा जटिल यंत्रों का प्रयोग बढ़ रहा है, और इन नए उपकरणों को तलाशना मानो असंभव है। एक ब्रिटिश विश्वविद्यालय प्रोफ़ॆसर दावा करता है कि कुल ब्रिटिश छात्रों में से आधे से ज़्यादा छात्रों ने चीटिंग की है, और निश्चित ही इसमें ब्रिटेन अकेला नहीं।
इस बात को भी अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए कि जब ग़ैर-भरोसेमंद लोग झूठ बोलते और धोखा करते हैं तब निर्दोष लोगों को इसकी क्या क़ीमत चुकानी पड़ती है। भारत में भोपाल शहर का ही किस्सा लीजिए जहाँ १९८४ में, विषैली गैस ने २,५०० से अधिक पुरुषों, स्त्रियों, और बच्चों को लील लिया और लाखों अन्य लोगों को नुक़सान पहुँचाया। द सन्डे टाइम्स ने रिपोर्ट किया: “पीड़ितों की मदद करने की राहत योजनाएँ भ्रष्टाचार में फँसी हुई हैं। . . . हज़ारों झूठे दावेदारों, जाली काग़ज़ातों और नक़ली सबूतों ने असली हक़दारों को छाँटने का काम और कठिन बना दिया है।” फलस्वरूप, दस साल बाद तक १६.४५ अरब रुपये हरजाने में से मुश्किल से १२.२५ करोड़ रुपये ज़रूरतमंदों को बाँटे गए हैं।
धर्म के बारे में क्या? खराई के मामले में वह कितने पानी में है? दुःख की बात है, उसके स्तर प्रायः लौकिक जगत के स्तरों से ऊँचे नज़र नहीं आते। उदाहरण-स्वरूप रोमन कैथोलिक बिशप एमन केसी को लीजिए, जिसने स्वीकार किया कि वह एक नाजायज़ लड़के का पिता है, जो अब एक किशोर है। जैसा ब्रिटेन के गार्जियन अख़बार ने कहा, केसी का किस्सा “अनोखा नहीं।” इसी संदर्भ में, द टाइम्स ने रिपोर्ट किया: “बिशप केसी की थू-थू के बारे में सच्चाई यह नहीं कि उसका कुकर्म अनोखा था, बल्कि यह कि कौमार्यव्रत से आँख मिचौली न तो नयी है न ही विरल।” इसी तर्क का समर्थन करते हुए, द ग्लासगो हॆरल्ड, स्कॉटलैंड, दावा करता है कि अमरीका में केवल २ प्रतिशत रोमन कैथोलिक पादरी इतरलिंगी और समलिंगी संबंधों से दूर रहे हैं। चाहे यह संख्या सही है या नहीं, लेकिन नैतिकता के मामले में कैथोलिक पादरियों का क्या नाम है, इतना अवश्य दिखाती है।
ऐसे उदाहरणों को देखते हुए, क्या एक व्यक्ति के लिए नैतिक खराई बनाए रखना संभव है? क्या यह प्रयास के योग्य है? यह क्या माँग करता है, और ऐसा करने के क्या लाभ हैं?