झूठे संदेशवाहकों के लिए कोई शांति नहीं!
“कुकर्मी लोग काट डाले जाएंगे; . . . परन्तु नम्र लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और बड़ी शान्ति के कारण आनन्द मनाएंगे।”—भजन ३७:९, ११.
१. “अन्तसमय” में, हमें क्यों आशा करनी चाहिए कि हमें सच्चे और झूठे दोनों संदेशवाहक मिलेंगे?
संदेशवाहक—झूठे या सच्चे? बाइबल समय में दोनों प्रकार के संदेशवाहक थे। लेकिन हमारे समय के बारे में क्या? दानिय्येल १२:९, १० में, हम पढ़ते हैं कि एक स्वर्गीय संदेशवाहक ने परमेश्वर के भविष्यवक्ता को बताया: “ये बातें अन्तसमय के लिये बन्द हैं और इन पर मुहर दी हुई है। बहुत लोग तो अपने अपने को निर्मल और उजले करेंगे, और स्वच्छ हो जाएंगे; परन्तु दुष्ट लोग दुष्टता ही करते रहेंगे; और दुष्टों में से कोई ये बातें न समझेगा; परन्तु जो बुद्धिमान हैं वे ही समझेंगे।” हम अब उस “अन्तसमय” में जी रहे हैं। क्या हम “दुष्टों” और “जो बुद्धिमान हैं” उनके बीच एक स्पष्ट भिन्नता देखते हैं? निश्चित ही हम देखते हैं!
२. यशायाह ५७:२०, २१ की आज कैसे पूर्ति हो रही है?
२ अध्याय ५७, आयत २० और २१ में, हम परमेश्वर के संदेशवाहक यशायाह के शब्दों को पढ़ते हैं: “दुष्ट तो लहराते हुए समुद्र के समान है जो स्थिर नहीं रह सकता; और उसका जल मैल और कीच उछालता है। दुष्टों के लिये शान्ति नहीं है, मेरे परमेश्वर का यही वचन है।” कितने उपयुक्त ढंग से ये शब्द इस संसार की व्याख्या करते हैं जैसे-जैसे यह २१वीं शताब्दी की ओर बढ़ रहा है! कुछ यहाँ तक पूछते हैं, ‘क्या हम कभी उस शताब्दी तक पहुँचेंगे?’ जो बुद्धिमान हैं उन संदेशवाहकों के पास हमें बताने के लिए क्या है?
३. (क) पहला यूहन्ना ५:१९ में क्या विषमता दी गयी है? (ख) “जो बुद्धिमान हैं” उनका वर्णन प्रकाशितवाक्य अध्याय ७ में कैसे किया गया है?
३ प्रेरित यूहन्ना के पास ईश्वरीय रूप से उत्प्रेरित बुद्धि थी। १ यूहन्ना ५:१९ में कहा गया है: “हम जानते हैं, कि हम परमेश्वर से हैं, और सारा संसार उस दुष्ट के वश में पड़ा है।” इस संसार की विषमता में १,४४,००० आत्मिक इस्राएली हैं, जिनका बूढ़ा होता हुआ शेषवर्ग हमारे साथ आज भी है। इनके साथ आज शामिल होनेवाली “हर एक जाति, और कुल, और लोग और भाषा में से एक . . . बड़ी भीड़” है, आज जिनकी संख्या ५० लाख से भी ज़्यादा है, और इनके पास भी बुद्धि है। “ये वे हैं, जो उस बड़े क्लेश में से निकलकर आए हैं।” और इन्हें प्रतिफल क्यों दिया जा रहा है? इसलिए कि यीशु के छुड़ौती बलिदान में विश्वास रखने से इन्होंने भी “अपने अपने वस्त्र मेम्ने के लोहू में धोकर श्वेत किए हैं।” ज्योति के संदेशवाहकों के तौर पर, वे भी “दिन रात [परमेश्वर] की सेवा करते हैं।”—प्रका. ७:४, ९, १४, १५.
शांति के तथाकथित संदेशवाहक
४. (क) शैतान के संसार के तथाकथित शांति के संदेशवाहकों की असफलता क्यों निश्चित है? (ख) इफिसियों ४:१८, १९ आज कैसे लागू होता है?
४ लेकिन, शैतान की सांसारिक व्यवस्था के तथाकथित शांति के संदेशवाहकों के बारे में क्या? यशायाह अध्याय ३३, आयत ७ में, हम पढ़ते हैं: “देख, उनके शूरवीर बाहर चिल्ला रहे हैं; संधि के दूत [“शान्ति के संदेशवाहक,” NW] बिलक बिलककर रो रहे हैं।” यह उन लोगों के बारे में कितना सच है जो संसार की एक राजधानी से दूसरी राजधानी की ओर शांति लाने के प्रयास में बेतहाशा दौड़ रहे हैं! कितना व्यर्थ! ऐसा क्यों? ऐसा इसलिए है क्योंकि वे बुनियादी कारणों से लड़ने के बजाय संसार की बुराइयों के लक्षणों से जूझते हैं। सबसे पहले, वे शैतान के अस्तित्त्व के प्रति अंधे हैं, जिसका वर्णन प्रेरित पौलुस ‘इस संसार के ईश्वर’ के रूप में करता है। (२ कुरिन्थियों ४:४) शैतान ने मनुष्यजाति में दुष्टता के बीज बो दिए हैं जिसका नतीजा यह हुआ है कि अधिकांश लोग, जिनमें अनेक शासक भी शामिल हैं, अब इफिसियों ४:१८, १९ के वर्णन पर ठीक बैठते हैं: “उनकी बुद्धि अन्धेरी हो गई है और उस अज्ञानता के कारण जो उन में है और उनके मन की कठोरता के कारण वे परमेश्वर के जीवन से अलग किए हुए हैं। और वे सुन्न होकर, लुचपन में लग गए हैं, कि सब प्रकार के गन्दे काम लालसा से किया करें।”
५. (क) मानव संगठन शांतिस्थापकों के रूप में क्यों असफल होते हैं? (ख) भजन ३७ में कौन-सा सांत्वनादायक संदेश दिया गया है?
५ अपरिपूर्ण मनुष्यों का कोई भी मानवी संगठन मानव हृदयों में से उस लालच, स्वार्थ, और घृणा को जड़ से नहीं निकाल सकता जो कि आज इतने व्याप्त हैं। केवल हमारा सृष्टिकर्ता, सर्वसत्ताधारी प्रभु यहोवा, ऐसा कर सकता है! इसके अतिरिक्त, मनुष्यजाति का एक छोटा भाग, केवल नम्र लोग हैं जो उसके मार्गदर्शन पर चलने के लिए इच्छुक हैं। इन लोगों के लिए और इस संसार के दुष्टों के लिए इसके परिणामों के बीच विषमता भजन ३७:९-११ में की गई है: “कुकर्मी लोग काट डाले जाएंगे; और जो यहोवा की बाट जोहते हैं, वही पृथ्वी के अधिकारी होंगे। थोड़े दिन के बीतने पर दुष्ट रहेगा ही नहीं . . . परन्तु नम्र लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और बड़ी शान्ति के कारण आनन्द मनाएंगे।”
६, ७. संसार के धर्मों का कौन-सा रिकार्ड दिखाता है कि वे शांति के संदेशवाहकों के रूप में कार्य करने में असफल रहे हैं?
६ तब, क्या शांति के संदेशवाहक इस रोगी संसार के धर्मों में पाए जा सकते हैं? धर्म का आज तक का रिकार्ड क्या है? इतिहास दिखाता है कि शताब्दियों के दौरान अधिकांश रक्तपात में धर्म शामिल रहा है, जी हाँ, यहाँ तक कि यह उसका उकसानेवाला रहा है। उदाहरण के लिए, अगस्त ३०, १९९५ के सप्ताह की मसीही शताब्दी (अंग्रेज़ी) ने भूतपूर्व यूगोस्लाविया की खलबली के बारे में रिपोर्ट करते हुए कहा: “सर्ब-नियंत्रित बॉसनीया में, पादरी एक स्वघोषित संसद की पहली पंक्ति में बैठते हैं, और जहाँ टुकड़ियों और यहाँ तक कि हथियारों को लड़ाई से पहले आशिष दी जाती है वहाँ भी आगे रहते हैं।”
७ अफ्रीका में मसीहीजगत का शताब्दी-भर का मिशनरी कार्य कोई बेहतर परिणाम नहीं लाया है। इसका एक अच्छा उदाहरण हमें रुवाण्डा में मिलता है, जिसके बारे में ज्ञात है कि उसकी ८०-प्रतिशत जनसंख्या कैथोलिक है। जुलाई ७, १९९५ के द न्यू यॉर्क टाइम्स् (अंग्रेज़ी) ने रिपोर्ट किया: “लीयों [फ्राँस] में प्रकाशित, एक अकट्टर, जन साधारण की कैथोलिक पत्रिका, गॉलया, और २७ रुवाण्डाई पादरियों और चार ननों की पहचान कराने की योजना बना रही है जिन्होंने, इसका कहना है पिछले साल रुवाण्डा में क़त्लेआम किया था या उसे प्रोत्साहित किया था।” लंदन में एक मानवाधिकार संगठन अफ्रीकी अधिकार, का कहना था: “अपनी चुप्पी से ज़्यादा, गिरजों को जातिसंहार में अपने कुछ पादरियों, पास्टरों और ननों की सक्रिय सहअपराधिता के लिए जवाब देना पड़ेगा।” यह इस्राएल की स्थिति से मेल खाता है जब यहोवा के सच्चे संदेशवाहक यिर्मयाह ने, इस्राएल के शासकों, उसके याजकों और उसके भविष्यवक्ताओं समेत, उसकी ‘लज्जा’ की व्याख्या की और कहा: “तेरे घांघरे में निर्दोष और दरिद्र लोगों के लोहू का चिन्ह पाया जाता है।”—यिर्मयाह २:२६, ३४.
८. ऐसा क्यों कहा जा सकता है कि यिर्मयाह शांति का संदेशवाहक था?
८ यिर्मयाह को अकसर विनाश का भविष्यवक्ता कहा गया है, लेकिन उसे परमेश्वर का शांति का संदेशवाहक भी कहा जा सकता है। उसने शांति के बारे में उतनी ही बार ज़िक्र किया जितना कि उससे पहले यशायाह ने किया था। यह कहते हुए, यहोवा ने यिर्मयाह को यरूशलेम पर न्यायदंड की घोषणा करने के लिए इस्तेमाल किया: “यह नगर जब से बसा है तब से आज के दिन तक मेरे क्रोध और जलजलाहट के भड़कने का कारण हुआ है, इसलिये अब मैं इसको अपने साम्हने से इस कारण दूर करूंगा क्योंकि इस्राएल और यहूदा अपने राजाओं, हाकिमों, याजकों और भविष्यद्वक्ताओं समेत, क्या यहूदा देश के, क्या यरूशलेम के निवासी, सब के सब बुराई पर बुराई करके मुझ को रिस दिलाते आए हैं।” (यिर्मयाह ३२:३१, ३२) इसने आज शासकों और मसीहीजगत के पादरीवर्ग पर यहोवा के न्यायदंड का पूर्वसंकेत दिया। सच्ची शांति प्रबल होने के लिए, बुराई और हिंसा के इन उकसानेवालों को हटाना ज़रूरी है! वे निश्चय ही शांति के संदेशवाहक नहीं हैं।
संयुक्त राष्ट्र शांतिस्थापक के तौर पर?
९. संयुक्त राष्ट्र ने कैसे शांति का संदेशवाहक होने का दावा किया है?
९ क्या संयुक्त राष्ट्र शांति का एक सच्चा संदेशवाहक नहीं बन सकता? आख़िरकार, जून १९४५ में प्रस्तुत किए गए उसके घोषणापत्र की प्रस्तावना में, एटम बम से हिरोशिमा के विनाश से केवल ४१ दिन पहले, उसका उद्देश्य बताया था: “आनेवाली पीढ़ियों को युद्ध के अभिशाप से बचाना।” संयुक्त राष्ट्र के ५० भावी सदस्यों को “अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को क़ायम रखने के लिए [अपनी] ताक़त को संयुक्त करना” था। आज संयुक्त राष्ट्र में १८५ सदस्य-राष्ट्र हैं, जिन्हें एक ही उद्देश्य के लिए समर्पित माना जाता है।
१०, ११. (क) धार्मिक अगुवों ने संयुक्त राष्ट्र के अपने समर्थन को कैसे ज़ाहिर किया है? (ख) किस तरीक़े से पोप “परमेश्वर के राज्य के सुसमाचार” का ग़लत प्रतिनिधित्व कर चुके हैं?
१० सालों से, संयुक्त राष्ट्र की ज़ोरदार तारीफ़ की गई है, ख़ासकर धार्मिक नेताओं द्वारा। अप्रैल ११, १९६३ के दिन, पोप जॉन तेईसवें ने “पॉकॆम इन टॆरिस” (“पृथ्वी पर शांति”) नामक अपने विश्वपत्र पर हस्ताक्षर किए जिसमें उसने कहा: “यह हमारी हार्दिक इच्छा है कि संयुक्त राष्ट्र संघ—अपने ढाँचे और अपने साधनों में—अपने काम के विस्तार और उसकी श्रेष्ठता के ज़्यादा क़ाबिल होता चला जाए।” बाद में, जून १९६५ में, धार्मिक अगुवों ने, जो कहा गया कि संसार की आधी जनसंख्या के प्रतिनिधि हैं, सैन फ्रैंसिस्को में संयुक्त राष्ट्र का २०वाँ जन्मदिन मनाया। १९६५ में ही, पोप पॉल छठवें ने, संयुक्त राष्ट्र के एक दौरे पर, उसका वर्णन “मैत्री और शांति की अंतिम आशा” के तौर पर किया। १९८६ में, पोप जॉन पॉल द्वितीय ने संयुक्त राष्ट्र के शांति के अंतर्राष्ट्रीय वर्ष का समर्थन करने में अगुवाई की।
११ एक बार फिर, अक्तूबर १९९५ में अपनी भेंट के दौरान, पोप ने घोषित किया: “आज हम परमेश्वर के राज्य के सुसमाचार का जश्न मना रहे हैं।” लेकिन क्या वह वास्तव में राज्य सुसमाचार का परमेश्वर का संदेशवाहक है? संसार की समस्याओं के बारे में बोलते हुए, उसने आगे कहा: “जब हम इन बड़ी चुनौतियों का सामना करते हैं, हम संयुक्त राष्ट्र संघ की भूमिका को स्वीकार करने से कैसे चूक सकते हैं?” परमेश्वर के राज्य के बजाय, पोप का चुनाव संयुक्त राष्ट्र है।
‘बिलक बिलककर रोने’ के कारण
१२, १३. (क) संयुक्त राष्ट्र ने कैसे यिर्मयाह ६:१४ में वर्णित तरीक़े से कार्य किया है? (ख) यशायाह ३३:७ के वर्णन में क्यों संयुक्त राष्ट्र की अगुवाई भी शामिल है?
१२ संयुक्त राष्ट्र की ५०वीं वर्षगाँठ का उत्सव “पृथ्वी पर शान्ति” की किसी भी वास्तविक आशा को प्रकट करने में असफल हुआ। इसके एक कारण की ओर कनाडा के द टोरोन्टो स्टार में एक लेखक ने इशारा किया, जिसने लिखा: “संयुक्त राष्ट्र बिन दाँतवाला एक शेर है, जो कि तब गुर्राता है जब मानव बर्बरता का सामना करता है, लेकिन इससे पहले कि वह काट सके उसके मुँह में दाँत डालने के लिए उसे अपने सदस्यों का इन्तज़ार करना पड़ता है।” बहुत बार वह काटना बहुत मामूली होता है और बहुत देर से होता है। इस वर्तमान सांसारिक व्यवस्था में और ख़ासकर जो शांति के संदेशवाहक मसीहीजगत में हैं, वे यिर्मयाह ६:१४ के इन शब्दों को दोहराते रहे हैं: “वे, ‘शान्ति है, शान्ति,’ ऐसा कह कहकर मेरी प्रजा के घाव को ऊपर ही ऊपर चंगा करते हैं, परन्तु शान्ति कुछ भी नहीं।”
१३ संयुक्त राष्ट्र के उत्तरोत्तर महासचिवों ने संयुक्त राष्ट्र को सफल बनाने के लिए परिश्रम किया है, और निःसंदेह कर्त्तव्यनिष्ठा से किया है। लेकिन १८५ बहुद्देशीय सदस्यों के बीच, लड़ाइयों को रोकने, नीतियाँ बनाने, और वित्त-व्यवस्था करने के तरीक़ों को लेकर निरंतर लड़ाई-झगड़े ने इसकी सफलता की आशा में रुकावट डाली है। १९९५ की अपनी वार्षिक रिपोर्ट में, उस समय के महासचिव ने लिखा कि पीछे हटती “विश्वव्यापी परमाणु विध्वंस की काली छाया, राष्ट्रों के लिए एक-साथ मिलकर संपूर्ण मानवजाति की आर्थिक और सामाजिक प्रगति की ओर कार्य करने” का एक मार्ग खोल रही है। लेकिन वह आगे लिखता है: “दुःख की बात है, पिछले कुछ सालों के सांसारिक मामलों के रिकार्ड ने काफ़ी हद तक उन आशावादी अपेक्षाओं को झूठा ठहराया है।” सच है कि शान्ति के ये तथाकथित संदेशवाहक ‘बिलक बिलककर रो रहे हैं।’
१४. (क) क्यों कहा जा सकता है कि संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और नैतिक दोनों तरीक़ों से कंगाल है? (ख) यिर्मयाह ८:१५ की पूर्ति कैसे हो रही है?
१४ कैलिफ़ोर्निया के दी ऑरेन्ज काउन्टी रॆजिस्टर के एक मुख्य समाचार ने ऐसा कहा: “संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और नैतिक रूप से कंगाल है।” इस लेख ने कहा कि १९४५ और १९९० के बीच, ८० से ज़्यादा युद्ध हुए हैं, जिन्होंने तीन करोड़ से ज़्यादा जानें ली हैं। इसने अक्तूबर १९९५ के रीडर्स डाइजॆस्ट के अंक के एक लेखक को उद्धृत किया जो “संयुक्त राष्ट्र की सैनिक कार्यवाहियों का वर्णन ऐसे करता है, ‘अयोग्य कमाण्डर, अनुशासनहीन सैनिक, आक्रामकों के साथ मैत्री, नृशंसता को रोकने में असफलता और कई बार आतंक को बढ़ाने में योगदान’ इसकी विशेषता है। इसके अलावा, ‘अपव्यय, धोखाधड़ी, और दुरुपयोग का स्तर बहुत ज़्यादा है।’” द न्यू यॉर्क टाइम्स् में, “५० साल का संयुक्त राष्ट्र” नामक एक भाग में, यह मुख्य समाचार था “कुप्रबंध और अपव्यय ने संयुक्त राष्ट्र के सर्वश्रेष्ठ इरादों को नुक़सान पहुँचाया है।” लंदन, इंग्लैंड के द टाइम्स् के एक लेख का शीर्षक इन शब्दों में था, “पचास में दुर्बल—संयुक्त राष्ट्र को फिर से ठीक होने के लिए कसरत की ज़रूरत है।” वास्तव में, यह ऐसा है जैसा हम यिर्मयाह अध्याय ८, आयत १५ में पढ़ते हैं: “हम शान्ति की बाट जोहते थे, परन्तु कुछ कल्याण नहीं मिला, और चंगाई की आशा करते थे, परन्तु घबराना ही पड़ा है।” और एक परमाणु विध्वंस का ख़तरा अब भी मानवजाति के सिर पर मँडरा रहा है। साफ़ है, संयुक्त राष्ट्र शांति का वह संदेशवाहक नहीं है जिसकी मनुष्यजाति को ज़रूरत है।
१५. प्राचीन बाबुल और उसकी धार्मिक उपज कैसे विनाशकारी और सम्मोहक, दोनों साबित हुई है?
१५ यह सब किस ओर ले जाएगा? यहोवा का भविष्यसूचक वचन कोई सन्देह नहीं छोड़ता। सबसे पहले, संसार के झूठे धर्मों के सामने क्या रखा है जो कि अकसर संयुक्त राष्ट्र के साथ इतने मैत्रीपूर्ण रहे हैं? ये एक ही मूर्तिपूजक मूल-स्रोत, प्राचीन बाबुल की उपज हैं। उचित ही, प्रकाशितवाक्य १७:५ में इनका वर्णन “बड़ा बाबुल पृथ्वी की वेश्याओं और घृणित वस्तुओं की माता” के तौर पर किया गया है। यिर्मयाह ने इस पाखण्डी समूहन के विनाश का वर्णन किया। एक वेश्या की तरह, इन्होंने पृथ्वी के राजनीतिज्ञों को पथभ्रष्ट किया है, संयुक्त राष्ट्र की चापलूसी की है और उसके सदस्य राजनैतिक शक्तियों के साथ अनैतिक संबंध स्थापित किए हैं। इतिहास के युद्धों में वे एक मुख्य भागीदार रहे हैं। एक टीकाकार ने भारत में धार्मिक युद्ध के संबंध में यह कहा: “कार्ल मार्क्स ने धर्म को लोगों के लिए अफ़ीम बताया। लेकिन यह कथन बिलकुल सही नहीं हो सकता क्योंकि अफ़ीम एक शमक है, यह लोगों को मदहोश कर देता है। इसके बजाय, धर्म विशुद्ध कोकीन से ज़्यादा मिलता-जुलता है। यह अत्यधिक हिंसा फैलाता है और बहुत विनाशकारी शक्ति है।” लेकिन वह लेखक भी पूरी तरह से सही नहीं है। झूठा धर्म सम्मोहक और विनाशकारी सम्मोहक दोनों है।
१६. क्यों सत्हृदयी लोगों को अब बड़े बाबुल से भागना चाहिए? (प्रकाशितवाक्य १८:४, ५ भी देखिए।)
१६ तब, सत्हृदयी लोगों को क्या करना चाहिए? परमेश्वर का संदेशवाहक यिर्मयाह हमें जवाब देता है: “बाबुल में से भागो, अपना अपना प्राण बचाओ! . . . क्योंकि यह यहोवा के बदला लेने का समय है।” हम ख़ुश हैं कि लाखों लोग बड़े बाबुल, अर्थात् झूठे धर्म के विश्व साम्राज्य की जकड़ से निकल भागे हैं। क्या आप इनमें से एक हैं? तब आप बहुत अच्छी तरह समझ सकते हैं कि कैसे बड़े बाबुल ने पृथ्वी के राष्ट्रों को प्रभावित किया है: “जाति जाति के लोगों ने उसके दाखमधु में से पिया, इस कारण वे भी बावले हो गए।”—यिर्मयाह ५१:६, ७.
१७. बड़े बाबुल को जल्द ही कौन-सा दंड दिया जाएगा, और उस कार्यवाही के बाद क्या होगा?
१७ जल्द ही, संयुक्त राष्ट्र के “बावले” सदस्य यहोवा द्वारा युक्ति चलाए जाने पर झूठे धर्म पर लपकेंगे, जैसा प्रकाशितवाक्य १७:१६ में वर्णन किया गया है: “वे . . . उस वेश्या से बैर रखेंगे, और उसे लाचार और नङ्गी कर देंगे; और उसका मांस खा जाएंगे, और उसे आग में जला देंगे।” यह बड़े क्लेश की शुरूआत को चिन्हित करेगा जिसका उल्लेख मत्ती २४:२१ में किया गया है और यह सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बड़े दिन की लड़ाई, हरमगिदोन में अपनी चरमसीमा पर पहुँचेगा। प्राचीन बाबुल की तरह, बड़ा बाबुल यिर्मयाह ५१:१३, २५ में घोषित न्यायदंड पाएगा: “हे बहुत जलाशयों के बीच बसी हुई और बहुत भण्डार रखनेवाली, तेरा अन्त आ गया, तेरे लोभ की सीमा पहुंच गई है। हे नाश करनेवाले पहाड़ जिसके द्वारा सारी पृथ्वी नाश हुई है, यहोवा की यह वाणी है कि मैं तेरे विरुद्ध हूं और हाथ बढ़ाकर तुझे ढांगों पर से लुढ़का दूंगा और जला हुआ पहाड़ बनाऊंगा।” भ्रष्ट, युद्धप्रिय राष्ट्र झूठे धर्म के पीछे-पीछे विनाश की ओर जाएँगे जब यहोवा का बदला लेने का दिन उन पर भी आ पड़ेगा।
१८. कब और कैसे यशायाह ४८:२२ का अब भी पूरा होना बाक़ी है?
१८ पहला थिस्सलुनीकियों ५:३ में, दुष्टों के बारे में कहा गया है: “जब लोग कहते होंगे, कि कुशल है, और कुछ भय नहीं, तो उन पर एकाएक विनाश आ पड़ेगा, जिस प्रकार गर्भवती पर पीड़ा; और वे किसी रीति से न बचेंगे।” यही हैं जिनके बारे में यशायाह ने कहा: “देख, . . . संधि के दूत [“शांति के संदेशवाहक,” NW] बिलक बिलककर रो रहे हैं।” (यशायाह ३३:७) वाक़ई, जैसा हम यशायाह ४८:२२ में पढ़ते हैं, “दुष्टों के लिये कुछ शान्ति नहीं, यहोवा का यही वचन है।” लेकिन ईश्वरीय शांति के सच्चे संदेशवाहकों के लिए कौन-सा भविष्य रखा है? हमारा अगला लेख बताएगा।
पुनर्विचार के लिए प्रश्न
◻ किन कड़े शब्दों से परमेश्वर के भविष्यवक्ताओं ने झूठे संदेशवाहकों का पर्दाफ़ाश किया है?
◻ मानवी संगठन स्थायी शांति लाने की कोशिश में क्यों असफल रहे हैं?
◻ शांति के सच्चे संदेशवाहक संयुक्त राष्ट्र के समर्थकों से कैसे अलग हैं?
◻ यहोवा की प्रतिज्ञात शांति में ख़ुशी पाने के लिए नम्र लोगों को क्या करना ज़रूरी है?
[पेज 15 पर तसवीरें]
यशायाह, यिर्मयाह, और दानिय्येल सभी ने अदना मानव के शांति के प्रयासों के असफल होने को पूर्वबतलाया
[पेज 16 पर तसवीर]
“सारा संसार उस दुष्ट के वश में पड़ा है।”—प्रेरित यूहन्ना
[पेज 17 पर तसवीर]
“उनकी बुद्धि अन्धेरी हो गई है।”—प्रेरित पौलुस