इपफ्रास—“मसीह का विश्वासयोग्य सेवक”
कुरिन्थ, इफिसुस, और फिलिप्पी में किसने मसीही कलीसियाएँ स्थापित कीं? कदाचित् आपको उत्तर देने में कोई हिचक नहीं होगी: ‘“अन्यजातियों के लिये प्रेरित,” पौलुस’ ने कीं। (रोमियों ११:१३) आप सही होंगे।
लेकिन, कुलुस्से, हियरापुलिस, और लौदीकिया में किसने कलीसियाएँ स्थापित कीं? यद्यपि हम निश्चित तो नहीं हो सकते, वह शायद इपफ्रास नामक व्यक्ति रहा हो। बहरहाल, चूँकि उसे “मसीह का विश्वासयोग्य सेवक” कहा गया है, आप इस सुसमाचारक के बारे में कुछ और जानना चाहेंगे।—कुलुस्सियों १:७.
लाइकुस घाटी का सुसमाचारक
इपफ्रुदीतुस नाम का छोटा रूप इपफ्रास है। परंतु फिलिप्पी के इपफ्रुदीतुस से इस इपफ्रास को न गड़बड़ाइये। इपफ्रास कुलुस्से से था, जो एशिया माइनर के लाइकुस नदी की घाटी में स्थित मसीही कलीसियाओं के तीन केंद्रों में से एक था। फ्रूगिया के प्राचीन इलाके में कुलुस्से, लौदीकिया से बस १८ किलोमीटर और हियरापुलिस से १९ किलोमीटर की दूरी पर स्थित था।
बाइबल स्पष्टतया नहीं बताती है कि फ्रूगिया में परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार कैसे पहुँचा। तथापि, सा.यु. ३३ में पिन्तेकुस्त के दिन फ्रूगिया के लोग यरूशलेम में उपस्थित थे, संभवतः कुछ लोग कुलुस्से से रहे हों। (प्रेरितों २:१, ५,१०) पौलुस की इफिसुस की सेवकाई के दौरान (क़रीबन सा.यु. ५२-५५), उस क्षेत्र में जो गवाही दी गई वह इतनी सशक्त और प्रभावकारी थी कि न केवल इफिसियों ने बल्कि “आसिया के रहनेवाले क्या यहूदी, क्या यूनानी सब ने प्रभु का वचन सुन लिया।” (प्रेरितों १९:१०) ऐसा प्रतीत होता है कि पौलुस ने पूरी लाइकुस घाटी में सुसमाचार का प्रचार नहीं किया था, क्योंकि कई जो उस क्षेत्र में मसीही बन गए थे उन्होंने कभी उसे देखा तक नहीं था।—कुलुस्सियों २:१.
पौलुस के अनुसार, जिसने कुलुस्सियों को ‘सच्चाई से परमेश्वर के अनुग्रह’ के विषय सिखाया वह इपफ्रास था। यह तथ्य कि पौलुस का इस सहकर्मी को “हमारे लिये मसीह का विश्वासयोग्य सेवक” कहकर बुलाना, दिखाता है कि इपफ्रास उस क्षेत्र में एक सक्रिय सुसमाचारक था।—कुलुस्सियों १:६, ७.
प्रेरित पौलुस और सुसमाचारक इपफ्रास दोनों ही को लाइकुस घाटी के अपने सहविश्वासियों के आध्यात्मिक हित की बड़ी चिंता थी। “अन्यजातियों के लिये प्रेरित” के तौर पर, पौलुस अवश्य ही उनकी प्रगति का समाचार पाकर ख़ुश हुआ होगा। पौलुस ने किसी और से नहीं परंतु इपफ्रास से ही कुलुस्सियों की आध्यात्मिक अवस्था के विषय में सुना था।—कुलुस्सियों १:४, ८.
इपफ्रास की रिर्पोट
कुलुस्सियों ने काफ़ी गंभीर समस्याओं का सामना किया होगा जिससे वे इपफ्रास को पौलुस के साथ उन मामलों पर चर्चा करने के ख़ास उद्देश्य से रोम की लंबी यात्रा पर जाने के लिए राज़ी कर सके। ज़ाहिर है, इपफ्रास द्वारा दी गई विस्तृत रिर्पोट ने पौलुस को उन भाइयों के लिए दो पत्रियाँ लिखने को प्रेरित किया, जिन्हें वह अन्यथा नहीं जानता था। एक पत्री कुलुस्सियों के नाम थी। दूसरी पत्री, जो प्रत्यक्षतः संभाली नहीं गयी, लौदीकियों को भेजी गयी थी। (कुलुस्सियों ४:१६) यह सोचना तर्कसंगत है कि उन पत्रियों के अंतर्विषय का अभिप्राय इपफ्रास द्वारा समझी गयी मसीहियों की ज़रूरतों को पूरा करना था। उसने कौन-सी ज़रूरतों को देखा था? और यह उसके व्यक्तित्व के बारे में हमें क्या बताता है?
कुलुस्सियों की पत्री यह दर्शाती प्रतीत होती है कि इपफ्रास कुलुस्से के मसीहियों पर विधर्मी तत्वज्ञान के ख़तरे के कारण चिंतित था जिसमें वैराग्य, प्रेतात्मवाद, और मूर्तिपूजक अंधविश्वास शामिल था। इसके अलावा, भोजन वस्तुओं से परे रहने और कुछ ख़ास दिनों को मनाने की यहूदी शिक्षा ने शायद कलीसिया के कुछ सदस्यों को प्रभावित किया हो—कुलुस्सियों २:४, ८, १६, २०-२३.
यह तथ्य की पौलुस इन विषयों पर लिखता है, यह दर्शाता है कि इपफ्रास अपने संगी मसीहियों की ज़रूरतों के बारे में कितना सचेत एवं संवेदनशील था। उसने उनके आध्यात्मिक हित के लिए प्रेममय चिंता दिखायी क्योंकि जिस परिस्थिति में वे रहते थे वह उसके ख़तरों से अवगत था। इपफ्रास ने पौलुस से सलाह ली, और यह बात प्रकट करती है कि वह नम्र था। हो सकता है उसने अपने से अधिक अनुभवी व्यक्ति से सलाह पाने की ज़रूरत को महसूस किया हो। चाहे जो हो, इपफ्रास ने बुद्धिमानी से काम किया।—नीतिवचन १५:२२.
एक व्यक्ति जिसने प्रार्थना को महत्त्व दिया
कुलुस्से के मसीहियों को जो पत्री उसने भेजी थी उसकी समाप्ति में पौलुस कहता है: “इपफ्रास जो तुम में से है, और मसीह यीशु का दास है, तुम से नमस्कार कहता है और सदा तुम्हारे लिये प्रार्थनाओं में प्रयत्न करता है, ताकि तुम सिद्ध होकर पूर्ण विश्वास के साथ परमेश्वर की इच्छा पर स्थिर रहो। मैं उसका गवाह हूं, कि वह तुम्हारे लिये और लौदीकिया और हियरापुलिसवालों के लिये बड़ा यत्न करता रहता है।”—कुलुस्सियों ४:१२, १३.
जी हाँ, जब इपफ्रास रोम में पौलुस के “साथ कैदी” था, वह कुलुस्से, लौदीकिया, और हियरापुलिस के अपने प्रिय भाइयों के बारे में सोच रहा था और उनके लिए प्रार्थना कर रहा था। (फिलेमोन २३) वस्तुतः, उनके लिए प्रार्थना में ‘उसने यत्न’ किया। विद्वान डी. ऎडमन्ड हाइबर्ट के मुताबिक़, यहाँ प्रयोग किया गया यूनानी शब्द “बड़ा भारी और मेहनत के कार्य” को सूचित करता है, यीशु मसीह द्वारा अनुभूत उस मानसिक “वेदना” से कुछ मिलता-जुलता जब उसने गतसमनी के बग़ीचे में प्रार्थना की थी। (लूका २२:४४) इपफ्रास ने दिल से चाहा कि उसके आध्यात्मिक भाई-बहन स्थिरता और पूर्ण मसीही प्रौढ़ता प्राप्त करें। ऐसे आध्यात्मिक प्रवृत्ति के भाई कलीसियाओं के लिए क्या ही आशीष रहे होंगे!
चूँकि इपफ्रास को “प्रिय सहकर्मी” बुलाया जाता था, इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता कि वह संगी मसीहियों का परम प्रिय बन गया था। (कुलुस्सियों १:७) जब परिस्थितियाँ अनुमति दें, तब कलीसिया के सभी सदस्यों को स्नेह तथा प्रेम से स्वयं को तत्परता से उपलब्ध कराना चाहिए। मसलन, बीमार, बुज़ुर्ग, या अन्य जिन्हें ख़ास ज़रूरत है उन्हें सहायता देने के द्वारा उनकी परवाह की जा सकती है। कलीसिया में संभालने के लिए विभिन्न ज़िम्मेदारियाँ हो सकती हैं या ईश्वरीय निर्माण परियोजनाओं में अंशदान देना संभव हो सकता है।
दूसरों के लिए प्रार्थना करना, जैसा इपफ्रास ने किया, एक प्रकार की पवित्र सेवा है जो सभी कर सकते हैं। ऐसी प्रार्थनाओं में यहोवा के उन उपासकों के लिए चिंता की अभिव्यक्तियाँ शामिल हो सकती हैं जिन्हें आध्यात्मिक या शारीरिक प्रकार के कई ख़तरों या मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इस प्रकार सशक्त रूप से यत्न करने के द्वारा, हम इपफ्रास की तरह बन सकते हैं। यहोवा परमेश्वर के विश्वासयोग्य सेवकों के परिवार में एक “प्रिय सहकर्मी” साबित होने का हम में से हरेक के पास विशेषाधिकार और आनंद हो सकता है।