मनुष्य की कमज़ोरी यहोवा के सामर्थ्य की महिमा दिखाती है
“हर कोई सोचता था कि मैं बहुत ही ख़ुश और उत्साहपूर्ण पूर्ण-समय सेविका हूँ। मैं हमेशा दूसरों को उनकी कठिनाइयों में मदद करती थी। लेकिन, वहीं मैं महसूस कर रही थी मानो मैं अंदर ही अंदर ख़त्म हो रही हूँ। बुरे-बुरे विचारों और मानसिक वेदना का मुझ पर बहुत बुरा असर हो रहा था। मैं लोगों से अलग-अलग महसूस करने लगी। मैं घर पर रहकर सिर्फ़ सोना चाहती थी। महीनों तक, मैं ने यहोवा से बिनती की कि मुझे मौत दे दें।”—वॆनॆसा
ऊपर बताए गए उदाहरण में जैसा है, सहज ही यह आशा की जाती है कि यहोवा के सेवक कभी-कभी इस “कठिन समय” में जीने के प्रभावों को महसूस करेंगे। (२ तीमुथियुस ३:१) कुछ लोग शायद निराश भी हो जाएँ। (फिलिप्पियों २:२५-२७) जब उदासी देर तक बनी रहती है तो हमारी शक्ति घट सकती है, क्योंकि बाइबल कहती है: “यदि तू विपत्ति के दिन साहस छोड़ दे, तो तेरा सामर्थ्य बहुत कम है।” (नीतिवचन २४:१०, NHT) जी हाँ, जब हम निरुत्साहित होते हैं, हमें सामर्थ्य की ज़रूरत होती है—शायद उसकी जिसे प्रेरित पौलुस ने “असीम सामर्थ” कहा।—२ कुरिन्थियों ४:७.
यहोवा परमेश्वर असीम सामर्थ्य का स्रोत है। उसकी सृष्टि को ध्यान से देखने पर यह बात स्पष्ट होती है। (रोमियों १:२०) उदाहरण के लिए, सूर्य को लीजिए। पृथ्वी सूर्य की निरंतर लगभग २,४०० खरब हॉर्सपावर ऊर्जा को रोकती है। फिर भी, यह आँकड़ा सूर्य द्वारा पैदा की गयी ऊर्जा के दो अरब हिस्सों का केवल एक हिस्सा है। और सुपरजाइन्ट नामक तारों की तुलना में सूर्य छोटा है। इनमें से मृग तारामंडल में एक तारा है, राइगेल जो हमारे सूर्य से ५० गुना बड़ा है और उससे १,५०,००० गुना ज़्यादा ऊर्जा छोड़ता है!
ऐसे आकाशीय बिजलीघरों का सृष्टिकर्ता ख़ुद “विशाल सामर्थ्य” का मालिक होना चाहिए। (यशायाह ४०:२६; भजन ८:३, ४) असल में, भविष्यवक्ता यशायाह ने कहा कि यहोवा “न थकता, न श्रमित होता है।” और परमेश्वर ऐसे किसी भी व्यक्ति के साथ अपना सामर्थ्य बाँटना चाहता है जिसे, मानवी कमज़ोरी के कारण, लगता है कि वह थक गया है। (यशायाह ४०:२८, २९) वह यह कैसे करता है इसका उदाहरण मसीही प्रेरित पौलुस के किस्से से मिलता है।
परीक्षाओं का सामना करना
पौलुस ने कुरिन्थियों को एक बाधा के बारे में बताया जो उसे सहन करनी पड़ी। उसने इसे “शरीर में एक कांटा” कहा। (२ कुरिन्थियों १२:७) यह “कांटा” कोई स्वास्थ्य समस्या हो सकती थी, शायद कमज़ोर नज़र। (गलतियों ४:१५; ६:११) या पौलुस शायद झूठे प्रेरितों और दूसरे उथल-पुथल मचानेवालों का ज़िक्र कर रहा था जिन्होंने उसके प्रेरितपद और कार्य पर प्रश्न उठाया। (२ कुरिन्थियों ११:५, ६, १२-१५; गलतियों १:६-९; ५:१२) चाहे जो भी था, यह “शरीर में एक कांटा” पौलुस को बहुत ज़्यादा तकलीफ़ दे रहा था, और उसने बार-बार प्रार्थना की कि वह निकाला जाए।—२ कुरिन्थियों १२:८.
लेकिन, यहोवा ने पौलुस के निवेदन को स्वीकार नहीं किया। इसके बजाय, उसने पौलुस से कहा: “मेरा अनुग्रह तेरे लिये बहुत है।” (२ कुरिन्थियों १२:९) ऐसा कहने में यहोवा का अर्थ क्या था? हम मसीहियों को सताने के पौलुस के जीवन को लें, तो परमेश्वर के साथ एक संबंध हासिल कर सकना उसके लिए केवल अपात्र अनुग्रह के द्वारा संभव था—प्रेरित के तौर पर सेवा करना तो दूर की बात थी!a (जकर्याह २:८; प्रकाशितवाक्य १६:५, ६ से तुलना कीजिए।) यहोवा शायद पौलुस से असल में यह कह रहा हो कि शिष्य होने का विशेषाधिकार ही “बहुत” है। उसके साथ जीवन की व्यक्तिगत समस्याओं का चमत्कारिक समाधान नहीं होता। वास्तव में, कुछ कठिनाइयाँ अतिरिक्त विशेषाधिकारों के परिणामस्वरूप भी आ सकती हैं। (२ कुरिन्थियों ११:२४-२७; २ तीमुथियुस ३:१२) हर हाल में, पौलुस को उस ‘शरीर में एक कांटे’ को बस सहना था।
लेकिन, किसी भी तरह यहोवा पौलुस को निर्दयता से त्याग नहीं रहा था। इसके बजाय, उसने उससे कहा: “मेरी सामर्थ निर्बलता में सिद्ध होती है।” (२ कुरिन्थियों १२:९) जी हाँ, यहोवा प्रेमपूर्वक पौलुस को उस स्थिति का सामना करने की शक्ति देता। इस तरह, पौलुस का “शरीर में एक कांटा” एक सबक़ बन गया। इसने उसे अपनी शक्ति के बजाय यहोवा की शक्ति पर निर्भर रहना सिखाया। स्पष्ट है कि पौलुस यह सबक़ अच्छी तरह सीखा, क्योंकि कुछ साल बाद उसने फिलिप्पियों को लिखा: “मैं ने यह सीखा है कि जिस दशा में हूं, उसी में सन्तोष करूं। जो मुझे सामर्थ देता है उस में मैं सब कुछ कर सकता हूं।”—फिलिप्पियों ४:११, १३.
आपके बारे में क्या? क्या आपको किसी क़िस्म के ‘शरीर में एक कांटे’ को सहन करना पड़ रहा है, शायद कोई बीमारी या जीवन में ऐसी परिस्थिति जिसके कारण आपको बहुत चिंता होती है? अगर ऐसा है तो ढाढ़स बाँधिए। जबकि यहोवा चमत्कारिक रीति से बाधा को नहीं हटाएगा, वह आपको बुद्धि और धैर्य दे सकता है ताकि आप उसका सामना कर सकें साथ ही जीवन में राज्य हितों को प्रथम स्थान देना जारी रखें।—मत्ती ६:३३.
अगर बीमारी या बढ़ती उम्र, मसीही कार्य में आप जितना करना चाहते हैं उतना करने से आपको रोकती है तो निराश मत होइए। इसे यहोवा के प्रति आपकी सेवा कम करनेवाली कठिनाई समझने के बजाय, उस पर अपना भरोसा बढ़ाने के एक अवसर के रूप में देखिए। यह भी याद रखिए, एक मसीही का मूल्य, उसके कार्यों के स्तर से नहीं, बल्कि उसके विश्वास और प्रेम की गहराई से आँका जाता है। (मरकुस १२:४१-४४ से तुलना कीजिए।) यहोवा से अपने पूरे मन से प्रेम करने का अर्थ है कि आप अपनी—न कि किसी और की—यथाशक्ति से उसकी सेवा करें।—मत्ती २२:३७; गलतियों ६:४, ५.
अगर आपके ‘शरीर में एक कांटे’ में जीवन में एक दुःखदायक परिस्थिति शामिल है, जैसे कि किसी प्रियजन की मृत्यु, तो बाइबल की सलाह पर चलिए: “अपना बोझ यहोवा पर डाल दे वह तुझे सम्भालेगा; वह धर्मी को कभी टलने न देगा।” (भजन ५५:२२) सिल्विया नामक एक मसीही स्त्री ने यह किया। केवल कुछ ही सालों के दरमियान, विवाह के ५० साल बाद उसके पति और साथ ही परिवार के नौ अन्य सदस्यों—जिनमें दो छोटे पोता-पोती थे—की मृत्यु हो गयी। “अगर यहोवा न होता,” सिल्विया कहती है, “तो मेरे दुःख की कोई सीमा न होती। लेकिन प्रार्थना से मुझे बहुत ज़्यादा शांति मिलती है। मैं असल में यहोवा के साथ लगातार बातचीत करती हूँ। मैं जानती हूँ कि सहने के लिए वह मुझे बल देता है।”
यह जानने से कितना आश्वासन मिलता है कि “सब प्रकार की शान्ति का परमेश्वर,” शोक करनेवालों को सहन करने का सामर्थ्य दे सकता है! (२ कुरिन्थियों १:३; १ थिस्सलुनीकियों ४:१३) इस बात को समझते हुए, हम इस मामले पर पौलुस के निष्कर्ष को समझ सकते हैं। उसने लिखा: “इस कारण मैं मसीह के लिये निर्बलताओं, और निन्दाओं में, और दरिद्रता में और उपद्रवों में, और संकटों में, प्रसन्न हूं; क्योंकि जब मैं निर्बल होता हूं, तभी बलवन्त होता हूं।”—२ कुरिन्थियों १२:१०.
अपरिपूर्णताओं का सामना करना
हम सभी ने अपने प्रथम मानव माता-पिता से अपरिपूर्णता उत्तराधिकार में प्राप्त की है। (रोमियों ५:१२) इसके परिणामस्वरूप, हम पतित शरीर की इच्छाओं के विरुद्ध लड़ रहे हैं। यह जानना कितना निरुत्साहित कर सकता है कि “पुराने मनुष्यत्व” के लक्षणों की, जितना हमने सोचा था उससे ज़्यादा शक्तिशाली पकड़ हम पर है! (इफिसियों ४:२२-२४) ऐसे समय पर हम प्रेरित पौलुस की तरह महसूस कर सकते हैं, जिसने लिखा: “मैं भीतरी मनुष्यत्व से तो परमेश्वर की व्यवस्था से बहुत प्रसन्न रहता हूं। परन्तु मुझे अपने अंगों में दूसरे प्रकार की व्यवस्था दिखाई पड़ती है, जो मेरी बुद्धि की व्यवस्था से लड़ती है, और मुझे पाप की व्यवस्था के बन्धन में डालती है जो मेरे अंगों में है।”—रोमियों ७:२२, २३.
यहाँ भी, हम यहोवा की ओर से सामर्थ्य का प्रयोग कर सकते हैं। किसी निजी कमज़ोरी से संघर्ष करते वक़्त, प्रार्थना में उसके पास जाना कभी न छोड़िए, सच्चे दिल से उससे क्षमा माँगिए, चाहे आपको उसी समस्या के लिए कितनी ही बार उसके पास क्यों न जाना पड़े। उसके अपात्र अनुग्रह के कारण, यहोवा जो “मन को जांचता है” और जो आपकी निष्कपटता की गहराई देख सकता है, आपको एक शुद्ध अंतःकरण देगा। (नीतिवचन २१:२) अपनी पवित्र आत्मा के माध्यम से, यहोवा आपको शारीरिक कमज़ोरियों के विरुद्ध लड़ाई जारी रखने के लिए बल देगा।—लूका ११:१३.
जब हम दूसरों की अपरिपूर्णताओं का सामना करते हैं तब भी यहोवा की ओर से हमें बल की ज़रूरत होती है। उदाहरण के लिए, एक संगी मसीही शायद हमसे ‘बिना सोचविचार के बोले’ जो ‘तलवार की नाईं चुभ जाए।’ (नीतिवचन १२:१८) इससे हमें बहुत ज़्यादा चोट लग सकती है, ख़ासकर अगर कोई ज़िम्मेदार व्यक्ति ऐसा करता है जिसे सही-ग़लत का पता होना चाहिए। हम शायद बहुत ज़्यादा परेशान हो जाएँ। कुछ लोगों ने यहोवा को छोड़ने के लिए ऐसे दुर्व्यवहार को आड़ बनाया है—सबसे बड़ी ग़लती!
तथापि, एक संतुलित मनोवृत्ति दूसरों की ग़लतियों का उचित दृष्टिकोण रखने के लिए हमारी मदद करेगी। हम अपरिपूर्ण मनुष्यों से पूर्णता की अपेक्षा नहीं कर सकते। “निष्पाप तो कोई मनुष्य नहीं है,” बुद्धिमान पुरुष सुलैमान हमें याद दिलाता है। (१ राजा ८:४६) आर्थर ने, एक अभिषिक्त मसीही जिसने निष्ठा से यहोवा की सेवा कुछ सात दशकों तक की, कहा: “संगी मसीहियों में कमज़ोरियाँ, परमेश्वर के प्रति हमारी खराई साबित करने का एक अवसर पैदा करती हैं, हमारे मसीही स्वभाव को परखती हैं। अगर हम यहोवा की हमारी सेवा में, मनुष्यों द्वारा कही गयी बातों या किए गए कामों को बाधा डालने देते हैं, तो हम मनुष्यों की सेवा कर रहे हैं। इसके अलावा हमारे भाई भी यहोवा से प्रेम करते हैं। अगर हम उनमें अच्छाई देखें, तो हम जल्द ही पाते हैं कि वे ऐसे भी बुरे नहीं हैं।”
प्रचार करने के लिए सामर्थ्य
स्वर्ग पर चढ़ने से पहले, यीशु ने अपने शिष्यों से कहा: “जब पवित्र आत्मा तुम पर आएगा तब तुम सामर्थ पाओगे; और यरूशलेम और सारे यहूदिया और सामरिया में, और पृथ्वी की छोर तक मेरे गवाह होगे।”—प्रेरितों १:८.
यीशु के शब्दों के कहे अनुसार, इस कार्य को यहोवा के साक्षी अब संसार-भर में २३३ देशों में कर रहे हैं। सामूहिक रूप से, वे हर साल यहोवा का ज्ञान पाने में दूसरों की मदद करने के लिए एक अरब घंटों से ज़्यादा समय बिताते हैं। इस कार्य को करना हमेशा आसान नहीं है। कुछ देशों में राज्य प्रचार कार्य पर प्रतिबंध या पाबंदी है। साथ ही, विचार कीजिए कि कौन यह काम कर रहा है—कमज़ोर, अपरिपूर्ण मनुष्य, जिनमें से हरेक को अपनी समस्याएँ और चिंताएँ हैं। फिर भी, काम जारी रहता है, और इसके परिणामस्वरूप पिछले तीन सालों में, दस लाख से ज़्यादा लोगों ने यहोवा को अपना जीवन समर्पित किया है और पानी के बपतिस्मे के द्वारा अपने समर्पण को चिन्हित किया है। (मत्ती २८:१८-२०) सचमुच, यह कार्य केवल परमेश्वर के बल से पूरा किया जा रहा है। यहोवा ने भविष्यवक्ता जकर्याह के माध्यम से कहा: “न तो बल से, और न शक्ति से, परन्तु मेरे आत्मा के द्वारा होगा।”—जकर्याह ४:६.
अगर आप सुसमाचार के एक प्रकाशक हैं, तो उस महान उपलब्धि में आपका एक हिस्सा है—चाहे वह कितना ही छोटा क्यों न लगे। चाहे कितने ही ‘कांटों’ को पार करना पड़े, आप आश्वस्त हो सकते हैं कि यहोवा ‘आपके काम और उस प्रेम को नहीं भूलेगा जो आपने उसके नाम के लिये दिखाया।’ (इब्रानियों ६:१०) सो सहारे के लिए सारे विशाल सामर्थ्य के स्रोत पर निर्भर रहना जारी रखिए। याद रखिए, कि केवल यहोवा के बल से हम धीरज धर सकते हैं; उसका सामर्थ्य हमारी कमज़ोरियों में सिद्ध होता है।
[फुटनोट]
a निश्चय ही, क्योंकि “सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं,” परमेश्वर के साथ कोई भी व्यक्ति एक संबंध हासिल कर सके यही उसकी दया का एक प्रमाण है।—रोमियों ३:२३.
[पेज 26 पर तसवीर]
प्रचार कार्य केवल यहोवा के सामर्थ्य से पूरा किया जाता है