वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी
वॉचटावर
ऑनलाइन लाइब्रेरी
हिंदी
  • बाइबल
  • प्रकाशन
  • सभाएँ
  • w97 12/1 पेज 29-31
  • क्या शिकायत करना हमेशा बुरा है?

इस भाग के लिए कोई वीडियो नहीं है।

माफ कीजिए, वीडियो डाउनलोड नहीं हो पा रहा है।

  • क्या शिकायत करना हमेशा बुरा है?
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1997
  • उपशीर्षक
  • मिलते-जुलते लेख
  • ख़ुद पर और दूसरों पर बुरे असर
  • क्या सभी तरह की शिकायत करने की निंदा की गई है?
  • मसीही कलीसिया
  • सही अधिकारी को
  • हमें क्यों कुड़कुड़ाना नहीं चाहिए?
    हमारी मसीही ज़िंदगी और सेवा — सभा पुस्तिका—2021
  • कुड़कुड़ाने से दूर रहिए
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2006
  • कंधे-से-कंधा मिलाकर सेवा करते रहो
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2002
  • पाठकों के प्रश्‍न
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2000
और देखिए
प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1997
w97 12/1 पेज 29-31

क्या शिकायत करना हमेशा बुरा है?

उन ज़ख़्मों से बढ़कर दर्द हमें और क्या चीज़ दे सकती है जिनकी हम शिकायत नहीं कर सकते?—मारकी डी कस्टीन, १७९०-१८५७.

दो साल तक वह एक संगी कर्मचारी से लैंगिक उत्पीड़न सहती रही। जब उसने विरोध किया तो गालियाँ खाईं और नज़रअंदाज़ की गई। मन में भरा तनाव उसके स्वास्थ्य पर असर डाल रहा था लेकिन वह क्या कर सकती थी? इसी तरह, एक विद्यार्थी को, जो अपनी क्लास में अव्वल था, निकाल दिया गया क्योंकि उसका अंतःकरण उसे स्कूल की एक अनिवार्य मार्श्‍यल-आट्‌र्स ड्रिल में भाग लेने की इजाज़त नहीं देता। दोनों ने महसूस किया कि उनके साथ अन्याय हुआ है, लेकिन क्या उन्हें शिकायत करनी चाहिए? अगर वे करें भी, तो क्या राहत की उम्मीद कर सकते हैं या इससे मामला सिर्फ़ बदतर ही होगा?

ऐसी और इससे मिलती-जुलती शिकायतें आज आम हो गई हैं, क्योंकि हम एक अधूरे संसार में अपरिपूर्ण लोगों के बीच जी रहे हैं। शिकायत कैसी भी हो सकती है, अंदरूनी नाराज़गी, दुःख, पीड़ा, या किसी हालात से नफ़रत दिखाने से लेकर किसी पर खुलकर दोष लगाने तक। ज़्यादातर लोग शिकायत करने और सामना करने से दूर रहना पसंद करते हैं; फिर भी, क्या एक व्यक्‍ति को हमेशा ही चुप रहना चाहिए? इसके बारे में बाइबल का क्या दृष्टिकोण है?

ख़ुद पर और दूसरों पर बुरे असर

इसमें कोई शक नहीं कि हर घड़ी शिकायती मनोवृत्ति रखना नुक़सानदेह है और बाइबल में इसकी निन्दा की गई है। शिकायत करनेवाला अपना शारीरिक और आध्यात्मिक नुक़सान तो करेगा ही साथ ही वह जिसकी शिकायत कर रहा है उसे भी पीड़ा पहुँचाएगा। शिकायत करनेवाली पत्नी का ज़िक्र करते हुए बाइबल नीतिवचन कहता है: “झड़ी के दिन पानी का लगातार टपकना, और झगड़ालू पत्नी दोनों एक से हैं।” (नीतिवचन २७:१५) यहोवा या उसके किसी एक प्रबंध के ख़िलाफ़ शिकायत करना ख़ास तौर पर दंडनीय कार्य है। अपने ४० सालों की जंगल की यात्रा के दौरान जब इस्राएली राष्ट्र ने चमत्कारिक रूप से दिए गए मन्‍ना के बारे में “निकम्मी रोटी” कहकर शिकायत की, तब यहोवा ने उन अनादर करनेवाले शिकायतियों को सज़ा देने के लिए ज़हरीले सर्प भेजे और अनेक लोग मारे गए।—गिनती २१:५, ६.

इसके अलावा, यीशु ने अपने अनुयायियों को अपने संगी मनुष्यों में देखे गए “तिनके” जैसी कमी के बारे में शिकायत करने के बजाय अपने अंदर ‘लट्ठे’ जैसी बड़ी कमियों के बारे में जागरूक रहने की सलाह दी। (मत्ती ७:१-५) इसी तरह पौलुस ने दूसरों पर दोष लगानेवालों की (शिकायत करने के एक रूप की) निंदा की कि वे “निरुत्तर” हैं ‘जबकि वे आप ही वही काम करते हों।’ शिकायत करने के ख़िलाफ़ इन चेतावनियों से हमें बेवज़ह आलोचना करने और शिकायत करने की आदत न डालने के लिए प्रेरित होना चाहिए।—रोमियों २:१.

क्या सभी तरह की शिकायत करने की निंदा की गई है?

तो क्या हमें यह निष्कर्ष निकालना चाहिए कि हर शिकायत की निंदा की जानी है? जी नहीं, हमें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। बाइबल सूचित करती है कि ख़ामियों से भरे इस संसार में बहुत अन्याय है जिसे वाक़ई सुधारने की ज़रूरत है। एक दृष्टांत में यीशु ने एक अधर्मी न्यायी का ज़िक्र किया जिसने कुढ़ते हुए एक दुखियारी विधवा का न्याय इसलिए चुकाया कि कहीं वह “घड़ी घड़ी आकर अन्त को [उसकी] नाक में दम [न] कर दे।” (लूका १८:१-८) एक मायने में शायद हमें भी अपनी शिकायतें करते रहनी पड़े जब तक कि ग़लती को ठीक न किया जाए।

परमेश्‍वर का राज्य आने के लिए हमें प्रार्थना करने का प्रोत्साहन देने के द्वारा, क्या यीशु ने हमसे इस वर्तमान संसार की कमियों को पहचानने और इसके समाधान के लिए परमेश्‍वर को ‘पुकारने’ का आग्रह नहीं किया? (मत्ती ६:१०) जब प्राचीन सदोम और अमोरा की दुष्टता के बारे में “चिल्लाहट” यहोवा के कानों में पहुँची, तो उसने यह ‘देखने के लिए कि जैसी चिल्लाहट उस तक पहुंची है, उन्होंने ठीक वैसा ही काम किया है कि नहीं’ और उसका समाधान करने के लिए उसने अपने दूत भेजे। (उत्पत्ति १८:२०, २१) उन लोगों को राहत देने के लिए जिन्होंने यहोवा से शिकायत की थी, यहोवा ने आख़िरकार उन दोनों नगरों और उनके अनैतिक निवासियों को नाश करने के द्वारा उस स्थिति का समाधान किया।

मसीही कलीसिया

मसीही कलीसिया में भाइयों के बीच क्या यह बात कुछ भिन्‍न होनी चाहिए? हालाँकि मसीही अपरिपूर्ण पुरुष और स्त्रियाँ हैं, वे शांति और एकता में रहकर परमेश्‍वर की सेवा करने का कड़ा प्रयास कर रहे हैं। फिर भी, उनके बीच ऐसे हालात पैदा होंगे जो कुछ हद तक शिकायत का कारण देते हैं और जिनका समाधान करने की ज़रूरत पड़ती है। पहली शताब्दी में, पिन्तेकुस्त के कुछ ही समय बाद अभिषिक्‍त जनों की कलीसिया में एक स्थिति पैदा हो गई थी। अनेक नए-नए परिवर्तित मसीही ज़्यादा निर्देश और प्रोत्साहन के लिए यरूशलेम में रह गए थे। जो भोजन उपलब्ध था उसे आपस में बाँटा जा रहा था। लेकिन, “यूनानी भाषा बोलनेवाले इब्रानियों पर कुड़कुड़ाने लगे, कि प्रति दिन की सेवकाई में हमारी विधवाओं की सुधि नहीं ली जाती।” इन शिकायत करनेवालों की गड़बड़ी फैलानेवाले कहकर निंदा करने के बजाय, प्रेरितों ने स्थिति को सुधारने के लिए क़दम उठाया। जी हाँ, आदर के साथ और साफ़ दिल से की गई जायज़ शिकायतों को नम्रतापूर्वक सुना जाएगा और जो कलीसिया में ज़िम्मेदार हैं वे उनके लिए सही क़दम उठाएँगे।—प्रेरितों ६:१-६; १ पतरस ५:३.

सही अधिकारी को

क्या आपने ऊपर दिए गए उदाहरणों से देखा कि शिकायत साफ़ दिल से और सही अधिकारी को की जानी चाहिए? उदाहरण के लिए, एक पुलिसवाले से भारी टैक्स के बोझ के बारे में या एक जज से अपनी सेहत के बारे में शिकायत करना बेकार होगा। इसी तरह, कलीसिया के अंदर या बाहर, दोनों जगहों में किसी परिस्थिति के बारे में ऐसे व्यक्‍ति से शिकायत करना ठीक नहीं होगा जिसके पास न तो अधिकार है न ही मदद करने की योग्यता।

आज अधिकांश देशों में, ऐसे न्यायालय और दूसरे उचित कार्यालय हैं जिनसे कुछ हद तक राहत पाने की आशा के साथ अपील की जा सकती है। लेख के शुरू में जिस विद्यार्थी का ज़िक्र किया गया है, जब उसने अपनी शिकायत न्यायालय में दर्ज़ की, तो जजों ने उसके पक्ष में फ़ैसला सुनाया और स्कूल ने माफ़ी-नामा देते हुए उसे वापस ले लिया। इसी तरह, लैंगिक रूप से उत्पीड़ित उस महिला कर्मचारी ने, एक कर्मचारी-महिला संघ के माध्यम से राहत पायी। उसे माफ़ी-नामा मिला। उसके मालिकों ने लैंगिक उत्पीड़न को रोकने के लिए क़दम उठाए।

लेकिन इस बात की उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि सभी शिकायतों का नतीजा ऐसा ही होगा। बुद्धिमान राजा सुलैमान ने ठीक-ठीक कहा: “जो टेढ़ा है, वह सीधा नहीं हो सकता।” (सभोपदेशक १:१५) यह बात समझकर हम अच्छा करते हैं कि कई मामलों को ठीक करने के लिए हमें परमेश्‍वर की बाट जोहनी होगी कि वह उसे अपने नियत समय में ठीक करे।

[पेज 31 पर तसवीर]

जायज़ शिकायतों को प्राचीन सुनते हैं और उनके लिए क़दम उठाते हैं

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
    लॉग-आउट
    लॉग-इन
    • हिंदी
    • दूसरों को भेजें
    • पसंदीदा सेटिंग्स
    • Copyright © 2025 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
    • इस्तेमाल की शर्तें
    • गोपनीयता नीति
    • गोपनीयता सेटिंग्स
    • JW.ORG
    • लॉग-इन
    दूसरों को भेजें