अस्सी की उम्र में कार्य-नियुक्ति बदली
ग्वॆनडलन मैथ्यूस की ज़बानी
जब मैं ८० की हुई तब मेरे पति और मैंने किराए पर एक ट्रक लिया और उसमें अपना बोरिया-बिस्तर डाल, हमने इंग्लैंड से स्पेन जाने की ठान ली। हम स्पैनिश बोल तो नहीं सकते थे पर हम दक्षिण-पश्चिमी स्पेन जा रहे थे, जहाँ अंग्रेज़ी-बोलनेवाले पर्यटक विरले ही जाते थे। हमारे बहुत-से दोस्तों ने सोचा हमारा दिमाग फिर गया है, लेकिन मैंने खुद को बड़े जोश के साथ यह याद दिलाया कि इब्राहीम ७५ का था जब उसने ऊर देश छोड़ा।
जैसा की होना ही था, अप्रैल १९९२ में जब से हम स्पेन में आए हैं, यहाँ हमारे जीवन का बड़ा ही संतोषदायक समय रहा है। लेकिन इसके पहले कि मैं बताऊँ कि हम यहाँ क्यों आए, मैं यह बताना चाहती हूँ कि कैसे यहोवा की हमारी आजीवन सेवा ने हमें इतना बड़ा फैसला करने के लिए उकसाया।
बाइबल की सच्चाई हमारा जीवन बदलती है
दक्षिण-पश्चिमी लंदन, इंग्लैंड के एक धार्मिक परिवार में मेरी परवरिश हुई थी। माँ, मुझे और मेरी बहन को उपासना की अलग-अलग जगहों में ले जाया करती थीं क्योंकि वे आध्यात्मिक संतुष्टि की खोज में थीं। मेरे पिता जिन्हें काफी समय से तपेदिक की बीमारी थी, हमारे साथ नहीं आते थे। लेकिन वे बाइबल को बड़े चाव से पढ़ते थे और वे उन सभी वाक्यांशों को रेखांकित करते जो उन्हें प्रबुद्ध करते। वही फटी-पुरानी बाइबल मेरी सबसे प्यारी अमानत है जो उनके लिए बहुत मायने रखती थी।
वर्ष १९२५ में जब मैं १४ साल की थी, एक ट्रैक्ट हमारे दरवाज़े के नीचे छोड़ा गया था जिसमें हमें वॆस्ट हैम टाउन हॉल में जन भाषण सुनने के लिए आमंत्रित किया गया था। मेरी माँ और हमारी पड़ोसन ने भाषण सुनने का निश्चय किया और मैं तथा मेरी बहन भी उनके साथ गए। “अभी जीवित लाखों लोग कभी नहीं मरेंगे,” इस भाषण ने माँ के हृदय में बाइबल सच्चाई के बीज बो दिए।
कुछ महीनों के बाद, ३८ की उम्र में पिताजी चल बसे। उनकी मौत एक बड़ा धक्का थी चूँकि इसने हम सबको चूर-चूर कर दिया और बेसहारा छोड़ दिया। अंत्येष्टि के दौरान जो चर्च ऑफ इंग्लैंड के स्थानीय गिरजे में हुई थी, पादरी के ऐसा कहने पर माँ हैरान रह गई थीं कि पिताजी की आत्मा स्वर्ग में है। वे बाइबल से बखूबी जानती थीं कि मृत लोग कब्र में सो रहे हैं और उनका अटल विश्वास था कि अनंत जीवन जीने के लिए एक दिन पिताजी को इसी पृथ्वी पर पुनरुत्थित किया जाएगा। (भजन ३७:९-११, २९; १४६:३, ४; सभोपदेशक ९:५; प्रेरितों २४:१५; प्रकाशितवाक्य २१:३, ४) पूरी तरह आश्वस्त होने के बाद कि जो परमेश्वर का वचन सिखाते हैं उन्हीं लोगों के साथ ही मेल-जोल रखना है, माँ ने निश्चय किया कि वे अंतर्राष्ट्रीय बाइबल विद्यार्थियों के साथ संगति करना शुरू करेंगी, जैसा कि अब इन्हें यहोवा के साक्षी कहा जाता है।
चूँकि हम किराए का खर्चा उठा नहीं पाते थे, हम हर हफ्ते अपने घर से दो घंटे पैदल चलकर यहोवा के साक्षियों की सभाओं में जाते थे। फिर, और दो घंटे चलकर हम जैसे-तैसे पैर घसीटते घर लौटते। परंतु हम उन सभाओं की बड़ी कदर करते थे और एक भी सभा नहीं छोड़ते थे तब भी जब लंदन का भयानक कुहरा पूरे शहर पर छाया रहता था। माँ ने जल्द ही यहोवा को अपना जीवन समर्पित कर बपतिस्मा लेने का फैसला किया और १९२७ में मैंने भी बपतिस्मा लिया।
हमारी आर्थिक समस्याओं के बावजूद माँ ने हमेशा मुझे यही सिखाया कि आध्यात्मिकता को प्रथम स्थान पर रखना महत्त्वपूर्ण है। मत्ती ६:३३ उनका एक पसंदीदा वचन था और उन्होंने वास्तव में ‘पहिले धर्म की खोज’ की थी। जब १९३५ में माँ की कैंसर के कारण असमय मृत्यु हुई, उससे पहले वे पूर्ण-समय सेवकाई करने के लिए फ्रांस जाने की योजना बना रही थीं, जहाँ लोगों को इस कार्य के लिए आमंत्रित किया गया था।
आदर्श जिन्होंने हमें दृढ़ किया
लंदन में उन दिनों के दौरान सभाओं में उपस्थित होनेवाले कुछ लोग अपने ही विचारों को थोपना चाहते थे और ऐसे लोगों ने झगड़े और कड़वाहट को उत्पन्न कर दिया था। फिर भी, माँ ने हमेशा ही कहा कि यहोवा के संगठन को त्याग देना गद्दारी होगी, आखिरकार हमने यही तो उसमें से सिखा है। वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी के तब के अध्यक्ष जोसॆफ एफ. रदरफर्ड की भेंट ने हमें वफादारी से सेवा करते रहने के लिए प्रोत्साहित किया।
मुझे याद है कि भाई रदरफर्ड बड़े ही दयालु और मिलनसार व्यक्ति थे। जब मैं किशोरी ही थी, लंदन की कलीसिया ने एक बार सैर का आयोजन किया था जिसमें वे भी थे। उनकी नज़र मुझ पर पड़ी—कुछ शर्मीली किस्म की किशोरी थी—मेरे पास कैमरा था और उन्होंने पूछा कि क्या तुम मेरा एक फोटो खींचना चाहोगी? वह फोटो अब एक मीठी याद बन गयी है।
इसके बाद मसीही कलीसिया में अगुवाई लेनेवालों और संसार के प्रमुख व्यक्तियों के बीच भिन्नता के बारे में एक अनुभव ने मुझ पर गहरा प्रभाव डाला। मैं लंदन के एक बड़े घर में बैरा का काम करती थी जहाँ फ्रांट्स वोन पापन, हिटलर के एक प्रतिनिधि को भोजन पर आमंत्रित किया गया था। उन्होंने खाने के दौरान अपनी म्यानवाली वर्दी निकालने से इंकार कर दिया और उस म्यान से ठोकर खाकर मेरे हाथ से सारा सूप गिर गया। वह भड़ककर बोले कि जर्मनी में ऐसी लापरवाही पर मुझे गोली मार दी जाती। फिर भोजन के बाकी समय मैं उससे दस हाथ दूर ही रही!
वर्ष १९३१ में एलग्ज़ैंड्रा पैलेस का अधिवेशन एक यादगार अधिवेशन था, जहाँ मैंने भाई रदरफर्ड को भाषण देते हुए सुना। वहाँ हमने बड़े उत्साह के साथ अपना नया नाम, यहोवा के साक्षी धारण किया। (यशायाह ४३:१०, १२) मैंने दो साल बाद १९३३ में पायनियर सेवा शुरू की जैसा कि पूर्ण-समय की सेवकाई को कहा जाता है। उन सालों के दौरान मिली एक और आशीष जो मुझे याद है, वह उन अच्छे नौजवानों के साथ संगति करना जो बाद में पृथ्वी के दूरगामी भागों में मिशनरी की हैसियत से गए। इनमें क्लॉड गुडमॆन, हेरॉल्ड किंग, जॉन कुक और एडविन स्किन्नर शामिल थे। ऐसे निष्ठावान उदाहरणों ने मुझे विदेशी क्षेत्रों में काम करने के लिए प्रेरित किया।
पूर्वी ऐन्गलिया में पायनियर-कार्य
मेरी पायनियर कार्य-नियुक्ति पूर्वी ऐन्गलिया (पूर्वी इंग्लैंड) में थी और वहाँ प्रचार करने के लिए उत्साह और जोश की ज़रूरत थी। अपना विशाल क्षेत्र पूरा करने के लिए हम शहर-शहर और गाँव-गाँव साइकिल से ही जाते थे और किराए के घरों में रहते थे। उस क्षेत्र में बहुत कम कलीसियाएँ थीं इसलिए मैं और मेरी साथी खुद ही नियमित साप्ताहिक सभाओं के हर भाग की चर्चा मिलकर किया करती थीं। अपनी सेवकाई में हमने सैंकड़ों किताबें एवं पुस्तिकाएँ वितरित कीं जो परमेश्वर का उद्देश्य बयान करती थीं।
एक और यादगार भेंट थी पादरी के घर में जहाँ हमने इंग्लैंड के चर्च के स्थानीय पादरी से बात की। अधिकांश क्षेत्रों में हम ऐन्गलिकन पादरियों को जब तक टाल सकते थे टालते और आखिर में ही मिलते थे क्योंकि जब वह जान जाता था कि हम उस क्षेत्र में सुसमाचार प्रचार कर रहे हैं तो वह अकसर हमारे लिए बखेड़ा खड़ा कर देता। परंतु इस गाँव के सभी लोगों ने पादरी के बारे में अच्छी बात कही। वह बीमारों से मिलने जाता, जिन्हें पढ़ने का शौक होता उन्हें किताबें उधार देता, यहाँ तक कि वह अपने क्षेत्र में रहनेवालों के घर जाकर भी उन्हें बाइबल सिखाता था।
तो ज़ाहिर है जब हम पहुँचे, वह हमसे बड़े प्यार से मिला और उसने हमारी कई किताबें भी लीं। उसने हमें यह भी आश्वासन दिया कि इस गाँव में अगर कोई हमारी किताबें चाहता तो है पर खरीद नहीं सकता तो वह उनका खर्च उठाएगा। हमें बाद में यह पता चला कि प्रथम विश्व युद्ध के भयानक अनुभव ने उसे ऐसा इंसान बना दिया था और इसलिए उसने अपने क्षेत्र में शांति और सद्भाव को बढ़ावा देने का निश्चय किया था। हमारे निकलने से पहले उसने हमें आशीष दी और इस अच्छे काम को करते रहने के लिए हमें प्रोत्साहित किया। उसके आखिरी शब्द जो उसने हमसे कहे वे गिनती ६:२४ से थे: “[प्रभु] तुझे आशीष दे और तेरी रक्षा करे।”
मेरे पायनियर-कार्य शुरू करने के दो साल बाद माँ का देहांत हो गया और मैं अकेली खाली हाथ लंदन पहुँची। एक प्यारी स्कॉटिश साक्षी ने मुझे अपने यहाँ पनाह दी। उन्होंने माँ की मौत के सदमे से बाहर निकलने में मेरी मदद की और पूर्ण-समय की सेवकाई करते रहने के लिए प्रोत्साहित किया। सो मैं अपनी नयी पायनियर साथी जूलीया फॆरफेक्स के साथ पूर्वी ऐन्गलिया लौट गयी। हमने एक पुराने ट्रेलर की मरम्मत की जो हमारे लिए चलता-फिरता घर का काम करता था; हम उसे एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए ट्रेक्टर या ट्रक का इस्तेमाल करते थे। हमने आलबर्ट और एथेल एबट इस बुज़ुर्ग जोड़े के साथ मिलकर सेवकाई ज़ारी रखा, इनके पास भी एक छोटा ट्रेलर था। आलबर्ट और एथेल मेरे लिए माता-पिता समान हो गए।
केम्ब्रिजशायर में पायनियर-कार्य करते वक्त मैं जॉन मैथ्यूस से मिली जो एक अच्छे मसीही भाई थे और कठिन परिस्थितियों के दौरान इन्होंने अपनी वफादारी साबित कर दिखाई थी। दूसरा विश्व युद्ध शुरू होने के कुछ ही समय बाद हमने १९४० में विवाह कर लिया।
युद्धकाल और परिवार
जब हमारी नयी-नयी शादी हुई थी तब हमारा घर एक छोटा-सा ट्रेलर था जो एक छोटे रसोई-रूम की तरह था और अपनी सेवकाई के लिए हम अपनी भरोसेमंद मोटरबाइक पर जाते थे। हमारी शादी के एक साल बाद ही जॉन को खेत में मजदूरी करने की सज़ा मिली क्योंकि उन्होंने बाइबल आधारित विश्वास के कारण फौज में भरती होने से इंकार कर दिया था। (यशायाह २:४) हालाँकि इसका अर्थ था हमारे पायनियर-कार्य की समाप्ति, फिर भी जॉन की सज़ा समयोचित थी क्योंकि तभी मेरे पाँव भारी हो गए थे और इस वज़ह से वे हमारी देखरेख कर सकते थे।
युद्धकाल के दौरान हमने विशेष सभाओं का आनंद उठाया जो कठिनाइयों के बावजूद आयोजित हुईं थी। वर्ष १९४१ में जॉन, मैं और हमारा बच्चा जो अभी मेरे पेट ही में था, अपनी मोटरबाइक से ३०० किलोमीटर दूर मैंचेस्टर गए। रास्ते में हम बम से ध्वस्त हुए कई शहरों को पार करते गए और हम यह सोच रहे थे कि भला ऐसी परिस्थितियों में सभा होगी या नहीं। पर वह हुई। मैंचेस्टर के केंद्र में जो फ्री ट्रेड हॉल था, इंग्लैंड के कई भागों से आए साक्षियों से खचाखच भरा था और सभी कार्यक्रम आयोजित हुए।
अधिवेशन के आखिरी वक्ता ने, भाषण के अंत में श्रोताओं को तुरंत ही जगह खाली कर देने को कहा क्योंकि हवाई हमला होने का अंदेशा था। और यह चेतावनी बिलकुल ऐन वक्त पर थी। हम हॉल से ज़्यादा दूर नहीं गए थे कि हमने सायरन और बंदूकों की आवाज़ें सुनीं। पीछे मुड़कर देखा तो दर्जनों हवाई जहाज़ शहर के केंद्र में बम-वर्षा कर रहे थे। वहाँ गोलाबारी और धुएँ के मध्य से हम देख सके कि थोड़ी देर पहले जिस हॉल में हम बैठे थे वह अब पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका है! शुक्र है, हमारे सभी मसीही भाई-बहन बच निकले।
अपने बच्चों की परवरिश के दौरान हम पायनियर-कार्य तो न कर सके लेकिन हमने अपना घर ऐसे सफरी ओवरसियरों और पायनियरों के लिए खोल रखा था जिनके रहने की कोई व्यवस्था न थी। एक समय छः पायनियर हमारे घर में कुछ महीनों के लिए रहे थे। इसमें कोई शक नहीं कि इनकी संगति ही एक कारण हुई जिसकी वज़ह से हमारी बेटी यूनिस ने १९६१ में पायनियर बनने का फैसला किया, तब वह मात्र १५ साल की थी। अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि हमारे एक बेटे डेविड ने बड़े होने पर यहोवा की सेवा करनी छोड़ दी और दूसरी बेटी लिन्डा युद्ध के दौरान दर्दनाक परिस्थितियों में अपनी जान गवाँ बैठी।
स्पेन जाने का हमारा फैसला
माँ के उदाहरण और प्रोत्साहन ने मुझमें मिशनरी बनने की ख्वाहिश पैदा की थी और यह लक्ष्य मेरी आँखों से कभी ओझल न हुआ। इसलिए हम बड़े खुश हुए जब १९७३ में यूनिस ने स्पेन जाने के लिए इंग्लैंड छोड़ा, जहाँ राज्य उद्घोषक की ज़रूरत अधिक थी। बेशक हम उसके चले जाने से बहुत दुःखी हुए फिर भी हमें गर्व था कि वह विदेश में सेवा करना चाहती थी।
हम यूनिस को कई बार मिलने गए थे और इसलिए हम स्पेन से अच्छी तरह वाकिफ हो गए थे। दरअसल, जॉन और मैंने तो उसके चार अलग-अलग कार्य-नियुक्ति क्षेत्र में जाकर उससे भेंट की थी। लेकिन, फिर समय के साथ-साथ हमारी शक्ति भी जाती रही। एक बार जॉन गिर पड़े थे जिस कारण उनका स्वास्थ्य बुरी तरह खराब हो गया और मुझे दिल की तथा गलग्रंथि की बीमारी थी। इसके अलावा हम दोनों संधिशोथ से पीड़ित थे। जबकि हमें वाकई यूनिस की ज़रूरत थी फिर भी हम नहीं चाहते थे कि हमारी खातिर वह अपनी कार्य-नियुक्ति छोड़े।
हमने अपने विकल्प के बारे में यूनिस से बात की और मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना की। वह हमारी मदद करने के लिए घर आने को तैयार थी। लेकिन हमने तय किया कि जॉन और मेरे लिए यही सबसे अच्छा होगा की हम ही स्पेन जाकर उसके साथ रहें। अगर मैं खुद मिशनरी नहीं बन सकती तो कम-से-कम अपनी बेटी और पूर्ण-समय सेवा कर रही उसकी दो पायनियर साथियों की मदद तो कर सकती हूँ। फिर मैंने और जॉन ने यूनिस की १५ साल से रही दो पायनिर साथियों, नूरिया और आना को अपनी ही बेटियों की तरह समझा। और जहाँ कहीं भी उनकी कार्य-नियुक्ति होती वहाँ हमें अपने साथ ले जाने के लिए वे खुश थीं।
उस फैसले को किए अब छः साल से ज़्यादा समय हो चुका है। हमारा स्वास्थ्य और ज़्यादा खराब नहीं हुआ और हमारा जीवन वाकई बहुत दिलचस्प हो गया है। मैं अब भी ठीक से स्पैनिश बोल नहीं पाती हूँ लेकिन इस वज़ह से मेरा प्रचार काम बंद नहीं हुआ। जॉन और मैं दक्षिण-पश्चिमी स्पेन, एक्सट्रीमाडूरा की छोटी-सी कलीसिया में बहुत ही अपनापन महसूस करते हैं।
स्पेन में रहने से मैं जान पायी हूँ कि हमारा राज्य प्रचार कार्य वाकई अंतर्राष्ट्रीय है और अब मैं स्पष्ट रूप से समझ रही हूँ जैसा यीशु ने कहा कि कैसे “खेत संसार है।”—मत्ती १३:३८.
[पेज 28 पर तसवीरें]
१९३० के दशक में पायनियर-कार्य करते वक्त