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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1998
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एक कमाल की—शादी

मोज़म्बीक के उत्तर में घास की चादर ओढ़े, हरे-भरे पेड़-पौधों से भरी एक घाटी है जो खूबसूरत पहाड़ियों से घिरी है। कुछ पहाड़ियाँ पथरीली हैं तो कुछ पेड़-पौधों से भरी पड़ी हैं। यहीं पर फिंनगोइ गाँव बसा हुआ है। सर्दी की रातों में जब आसमान सितारों से जगमगाता है तब चाँदनी ऐसी खिलती है कि गाँव के घास-फूस की छतवाले घर चमक उठते हैं। ऐसे गज़ब के माहौल में एक कमाल की शादी हुई।

इस खास मौके पर हाज़िर होने के लिए बहुत-से लोगों को कई घंटे, और कुछ लोगों को तो कई दिनों तक चलना पड़ा। कुछ लोग ऐसे उजाड़ और खतरनाक इलाकों को पार करते हुए पहुँचे जिनमें लकड़बग्घे, शेर और हाथी पाए जाते हैं। बहुत-से मेहमान अपनी समान-पेटी के साथ-साथ मुर्गियाँ, बकरियाँ और सब्ज़ियाँ भी लाए। गाँव में दाखिल होने पर वे एक ऐसी खुली जगह पर पहुँचे जो आम तौर पर मसीही सम्मेलनों के लिए इस्तेमाल की जाती थी। सफर की थकान के बावजूद वे बहुत खुश थे और उनके मुसकुराते चेहरे इस इंतज़ार में चमक रहे थे कि आगे क्या होना है।

वे कौन थे जिनकी शादी हो रही थी? यहाँ तो बहुत सारे हैं! जी हाँ, बहुत सारे जोड़े हैं। मगर यह कोई सनसनीखेज़ सामूहिक-शादी नहीं है। बल्कि ये जोड़े तो ईमानदार और अच्छी नीयत के हैं जो अपनी शादी को पहले रजिस्टर नहीं करा सके थे क्योंकि जहाँ ये रहते हैं वहाँ से रजिस्ट्रेशन आफिस बहुत दूर है। इन सब जोड़ों ने जब यहोवा के साक्षियों से बाइबल का अध्ययन किया तो शादी के बारे में ईश्‍वरीय स्तरों को जाना और यह सीखा कि अगर शादी के रचयिता और सृष्टिकर्ता को खुश करना है तो स्थानीय कानून के मुताबिक शादी करनी चाहिए, जैसे यूसुफ और मरियम ने यीशु की पैदाइश के समय रजिस्ट्रेशन करने की कानूनी माँगों को पूरा किया था।—लूका २:१-५.

तैयारियाँ शुरू होती हैं

मोज़म्बीक में यहोवा के साक्षियों के ब्रांच आफिस ने मदद देने का फैसला किया। सबसे पहले, देश की राजधानी मापूटो में न्याय और गृह मंत्रालय से संपर्क किया गया ताकि यह पक्का किया जा सके कि कानून के मुताबिक क्या-क्या माँगें हैं। उसके बाद टेटे प्रांत की राजधानी में जो मिशनरी थे उन्होंने स्थानीय अधिकारियों से संपर्क किया जिससे कि आगे के प्रबंध किए जा सकें। नोटरी और नागरिक-पहचान कार्यालय के अधिकारियों और मिशनरियों के लिए फिंनगोइ गाँव पहुँचने के लिए एक तारीख तय कर दी गई। इसी बीच ब्रांच आफिस ने सभी संबंधित कलीसियाओं को एक पत्र भेजा जिसमें विस्तृत निर्देशन थे। साक्षी और स्थानीय अधिकारी दोनों अब कमाल की इस घटना का बेसब्री से इंतज़ार करने लगे।

रविवार, मई १८, १९९७ के दिन तीन मिशनरियों के साथ सरकारी अधिकारी फिंनगोइ पहुँचे। स्थानीय अधिकारियों ने इन सरकारी अधिकारियों के रहने के लिए बड़ी आरामदेह जगह का प्रबंध ऐडमिनिस्ट्रेशन बिल्डिंग की बगल में कर दिया था। मगर ये मेहमान अधिकारी यहोवा के साक्षियों द्वारा की गई खातिरदारी से इतने प्रभावित हुए कि अब उन्होंने मिशनरियों के साथ छोटी झोपड़ियों में रहना चाहा। और वे तब हैरान रह गए जब उन्होंने देखा कि खाना बनानेवालों में स्थानीय कलीसिया का एक प्राचीन है और एक सफरी ओवरसियर शादी की तैयारी में छोटे-मोटे काम कर रहा है। इसी तरह उन्होंने मिशनरियों के हँसमुख स्वभाव को भी देखा जिन्होंने बिना कोई शिकायत किए साधारण झोपड़ी में रहना कबूल किया और नहाने के लिए छोटे-से डिब्बे से काम चलाया। अधिकारियों ने ऐसी एकता पहले कभी नहीं देखी थी जो अलग-अलग जातियों को छोड़ कर आए इन लोगों में थी। मगर जिसे देखकर ये अधिकारी सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए वह इन लोगों का विश्‍वास था जिसकी वज़ह से इन्होंने परमेश्‍वर के प्रबंध के अधीन स्थानीय कानून का पालन करने के लिए इतना त्याग किया था।

खुशी का समाँ

जैसे ही दुल्हा-दुल्हन के जोड़े पधारे उनके लिए शादी का पहला कदम था जन्म-प्रमाण पत्र हासिल करना। सब जोड़े सरकारी रजिस्ट्री टीम के सामने लाइन में खड़े होकर अपना-अपना ब्योरा देने के लिए इंतज़ार कर रहे थे। इसके बाद फोटो खिंचवाने के लिए वे दूसरी लाइन में लगे और फिर अपना-अपना पहचान-पत्र लेने के लिए नागरिक पहचान कार्यालय की टीम के पास गए। इसके बाद वे सरकारी रजिस्ट्री टीम के पास वापस गए जो उनके शादी के सर्टिफिकेट तैयार कर रही थी जिसे पाने के लिए वे बहुत उतावले थे। इसके बाद वे इतमीनान से खड़े होकर अपना-अपना नाम भोंपू पर पुकारे जाने का इंतज़ार करने लगे। वो बहुत ही दिल को छू लेनेवाला नज़ारा था जब उनके हाथों में शादी का सर्टिफिकेट दिया जा रहा था। जैसे-जैसे हर एक जोड़ा शादी का सर्टिफिकेट मानो कीमती ट्राफी की तरह पाता जा रहा था वैसे-वैसे वहाँ चारों तरफ खुशी बढ़ती जा रही थी।

ये सब कड़ी धूप में चल रहा था मगर गर्मी और धूल भी इस खुशी के माहौल को बिगाड़ नहीं सकी।

पुरूष सलीकेदार कपड़े पहने हुए थे, अधिकतर ने जैकिट और टाई पहनी हुई थी। महिलाएँ पारंपरिक वस्त्र पहने हुए थीं। जिसमें लंबा-सा रंग-बिरंगा कपड़ा था जिसे कापूलाना कहा जाता है और उसे कमर पर लपेटा जाता है। कुछ महिलाओं ने अपने बच्चों को भी इसी तरह के कपड़े में लपेटकर उठाया हुआ था।

सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था मगर एक दिन में इतने सारे जोड़ों को निपटाना बहुत बड़ा काम था। शाम होने पर सरकारी अधिकारियों ने फैसला किया कि वे काम करते रहेंगे। उन्होंने कहा कि वे “हमारे भाइयों” को छोड़कर नहीं जाएँगे जो यहाँ आने के लिए इतना त्याग करने के बाद अब इंतज़ार कर रहे हैं। उन अधिकारियों की आत्म-त्यागी और मदद करने की भावना हमेशा याद रहेगी।

जैसे-जैसे रात बढ़ने लगी कड़ाके की ठण्ड पड़ने लगी। कुछ लोग झोपड़ियों में ठहरे हुए थे, लेकिन अधिकतर जोड़े बाहर आग की चारों तरफ बैठे हुए थे। इसके बावजूद इस खुशी के माहौल में कोई कमी नहीं आई। आग की चरमराहट से ज़्यादा हँसने और मधुर लय में गाने की आवाज़ सुनाई दे रही थी। उनमें से अधिकतर अभी बने अपने दस्तावेज़ों को थामे अपने सफर की कहानियाँ सुना रहे थे।

सुबह हुई तो कुछ लोग गाँव में अपनी मुर्गी, बकरी और सब्ज़ी बेचने चले गए जिससे वे अपनी शादी के रजिस्ट्रेशन का खर्चा उठा सकें। अधिकतर लोगों ने अपने जानवरों को कम कीमत पर बेचकर मानो उनका “बलिदान” चढ़ाया। गरीब लोगों के लिए बकरी बहुत कीमती और महँगी होती है मगर तब भी ये लोग त्याग करने के लिए खुशी-खुशी तैयार थे जिससे कि वे कानूनन शादी करके अपने परमेश्‍वर को खुश कर सकें।

काँटों-भरा सफर

कुछ जोड़े लंबी दूरी तय करके आए थे। इनमें शामबोको और उसकी पत्नी हाकूलीरा थे। उन्होंने अपनी कहानी इस मौके की दूसरी रात को सुनाई जब वे अपने पाँव आग से सेक रहे थे। जबकि शामबोको ७७ साल का है और सिर्फ एक आँख से देख सकता है और वो भी बहुत कम। वह नंगे पैर अपनी कलीसिया के दूसरे जनों के साथ तीन दिन तक चलता रहा, इस दृढ़ निश्‍चय के साथ कि ५२ साल तक जो संबंध अवैद्य रहा है अब वैद्य हो जाए।

एनसल्मो कैम्बू ७२ साल का है और नैरी के साथ ५० साल बिता चुका है। सफर से कुछ दिन पहले जब वह खेती कर रहा था उसके पैर में एक बड़ा काँटा घुस गया। इलाज के लिए उसे करीब के अस्पताल ले जाया गया। फिर भी उसने सफर तय करने का फैसला किया। सारे रास्ते दर्द और लँगड़ाते हुए चलने के बावजूद वह फिंनगोइ पहुँचा। उसे पहुँचने में तीन दिन लगे। एनसल्मो की खुशी का ठिकाना मत पूछिए जब उसके हाथों में उसकी शादी का सर्टिफिकेट आया।

एक और व्यक्‍ति जिसकी शादी हुई और जिस पर ध्यान दिया जा सकता है वह है ईवान्ज़ सीनोइया, इसकी कई पत्नियाँ थी। जब उसने परमेश्‍वर के वचन से सच्चाई सीखी तो उसने फैसला किया कि वह अब अपनी पहली पत्नी के साथ संबंध को वैद्य करवाएगा। लेकिन उस औरत ने ऐसा करने से मना कर दिया और किसी दूसरे पुरुष के साथ चली गई। उसकी दूसरी पत्नी जो बाइबल का अध्ययन कर रही थी शादी करने के लिए तैयार हो गई। दोनों जन खतरनाक इलाकों को पार करते हुए आए जहाँ शेर और दूसरे जंगली जानवर थे। तीन दिन के सफर के बाद वे भी अपनी शादी को वैद्य करा पाए थे।

मिशनरियों और अधिकारियों के आने के पाँच दिन बाद शुक्रवार को सारा काम पूरा हो गया। इसका परिणाम यह हुआ कि ४६८ पहचान-पत्र और ३७४ जन्म-प्रमाण पत्र दिए गए। और २३३ शादी-सर्टिफिकेट दिए गए! अब खुशी का माहौल था। थकान के बावजूद सबने यह माना कि उनकी मेहनत रंग लाई है। बेशक इस मौके ने वहाँ मौजूद सबके दिलो-दिमाग पर गहरी छाप छोड़ी। वाकई वह कमाल की शादी थी!

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