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पृथ्वी—इसे किसलिए बनाया गया?

एक सवाल है जिस पर आपको गौर करना चाहिए: क्या हमारे रमणीय ग्रह को किसी बुद्धिमान सृष्टिकर्ता ने बनाया है जिसने पृथ्वी के लिए और उस पर रहनेवाले मनुष्यों के लिए एक उद्देश्‍य रखा है? इस सवाल का संतोषजनक जवाब पाने से आपको यह समझने में मदद मिलेगी कि हमारे ग्रह का भविष्य क्या है।

इस विश्‍व-मंडल और हमारी पृथ्वी का अच्छी तरह अध्ययन कर चुके अनेक वैज्ञानिकों ने सबूत देखे हैं जो यह दिखाते हैं कि सृष्टिकर्ता अस्तित्त्व में है और परमेश्‍वर इन सबके पीछे है। सिर्फ एक वैज्ञानिक की टिप्पणियों पर गौर कीजिए:

प्रोफॆसर पॉल डेवीज़ परमेश्‍वर का मन (अंग्रेज़ी) में लिखता है: “व्यवस्थित, सुसंगत विश्‍व-मंडल के कायम रहने के लिए, जिसमें संतुलित, संगठित, जटिल संरचनाएँ हैं, बहुत ही खास किस्म के नियमों और स्थितियों की ज़रूरत है।”

ऐसे अनेक “संयोगों” पर चर्चा करने के बाद, जिन्हें खगोल-भौतिकविज्ञानियों या दूसरे वैज्ञानिकों ने देखा है, प्रोफॆसर पॉल डेवीज़ आगे कहता है: “ऐसे सब ‘संयोगों’ पर विचार करें, तो वे हमें इस बात का प्रभावशाली सबूत देते हैं कि जीवन बहुत ज़्यादा भौतिकी के नियमों के मूल रूप पर और उन वास्तविक अंकों पर निर्भर करता है जिन्हें प्रकृति ने मानो संयोगवश अलग-अलग अणुओं के द्रव्यमान, बल सांद्रता इत्यादि के लिए चुना है। . . . इतना कहना काफी है कि अगर हम परमेश्‍वर की जगह होते और अपनी मरज़ी से इन अंकों को मानो कोई बटन घुमाकर चुन सकते, तो हम पाते कि लगभग सभी स्थितियों में विश्‍व-मंडल जीवन के योग्य न रहता। कुछ मामलों में ऐसा लगता है कि मानो अलग-अलग बटनों को बहुत ही बारीकी से घुमाकर सही जगह पर लाना है जिससे विश्‍व-मंडल में जीवन फले-फूले। . . . यह सच्चाई कि विश्‍व की वर्तमान व्यवस्था में ज़रा-सा फेर-बदल करने से मनुष्य इस विश्‍व-मंडल को देख नहीं पाएगा, निश्‍चय ही गहरा अर्थ रखती है।”

अनेक लोगों के लिए इसका अर्थ है कि हमारी पृथ्वी, साथ ही बाकी सारा विश्‍व-मंडल उद्देश्‍य रखनेवाले एक सृष्टिकर्ता ने बनाया था। अगर ऐसा है तो हमें यह पता लगाने की ज़रूरत है कि उसने पृथ्वी को बनाया ही क्यों। और हो सके तो हमें यह भी पता लगाना है कि पृथ्वी के लिए उसका उद्देश्‍य क्या है। इस संबंध में एक अजीबोगरीब विडंबना सामने आती है। नास्तिकवाद के इतना लोकप्रिय होने के बावजूद, बुद्धिमान सृष्टिकर्ता में विश्‍वास रखनेवाले लोगों की संख्या देखकर आश्‍चर्य होता है। मसीहीजगत के अधिकांश चर्च नाममात्र के लिए सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर और हमारे विश्‍व-मंडल के सृष्टिकर्ता के बारे में बात करते हैं। लेकिन, इनमें से विरले ही कोई धर्म परमेश्‍वर के उद्देश्‍य में पृथ्वी के भविष्य के बारे में विश्‍वास और निश्‍चय से बात करता है।

बाइबल क्या कहती है?

जानकारी पाने के लिए उस ज़रिये की ओर देखना उचित है जिसे ज़्यादातर लोग सृष्टिकर्ता की ओर से मानकर स्वीकार करते हैं। वह ज़रिया है बाइबल। हमारी पृथ्वी के भविष्य के बारे में एक बहुत ही सरल और स्पष्ट वाक्य सभोपदेशक १:४ में है। वहाँ लिखा है: “एक पीढ़ी जाती है, और दूसरी पीढ़ी आती है, परन्तु पृथ्वी सर्वदा बनी रहती है।” बाइबल साफ-साफ समझाती है कि यहोवा परमेश्‍वर ने पृथ्वी की सृष्टि क्यों की। वह यह भी दिखाती है कि परमेश्‍वर ने पृथ्वी को विश्‍व-मंडल में बिलकुल सही स्थिति में और सूरज से इतनी दूरी पर रखा कि इस पर जीवन कायम रहे। सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर ने प्राचीन भविष्यवक्‍ता यशायाह को यह लिखने के लिए प्रेरित किया: “यहोवा जो आकाश का सृजनहार है, वही परमेश्‍वर है; उसी ने पृथ्वी को रचा और बनाया, उसी ने उसको स्थिर भी किया; उस ने उसे सुनसान रहने के लिये नहीं परन्तु बसने के लिये उसे रचा है। वही यों कहता है, मैं यहोवा हूं, मेरे सिवा दूसरा और कोई नहीं है।”—यशायाह ४५:१८.

लेकिन मनुष्य ने पृथ्वी पर जीवन का अंत करने के लिए जो साधन विकसित किए हैं उनके बारे में क्या? परमेश्‍वर की बुद्धि बेमिसाल है, उसी का कहना है कि इससे पहले कि मनुष्य हमारे ग्रह पर सब प्रकार के जीवन का अंत कर दे वह हस्तक्षेप करेगा। बाइबल की आखिरी किताब, प्रकाशितवाक्य में इस विश्‍वास बढ़ानेवाले वादे पर ध्यान दीजिए: “अन्यजातियों ने क्रोध किया, और तेरा प्रकोप आ पड़ा, और वह समय आ पहुंचा है, कि मरे हुओं का न्याय किया जाए, और तेरे दास भविष्यद्वक्‍ताओं और पवित्र लोगों को और उन छोटे बड़ों को जो तेरे नाम से डरते हैं, बदला दिया जाए और पृथ्वी के बिगाड़नेवाले नाश किए जाएं।”—प्रकाशितवाक्य ११:१८.

इस पृथ्वी की सृष्टि करने में, जिसे एक अंतरिक्ष-यात्री ने अंतरिक्ष का रत्न कहा, यहोवा का मूल उद्देश्‍य क्या था इसके बारे में वह खुद हमें बताता है। परमेश्‍वर का उद्देश्‍य था कि यह एक विश्‍वव्यापी परादीस बने, जिस पर सब मनुष्य, यानी स्त्री-पुरुष शांति और एकता में आराम से रहें। उसने प्रबंध किया कि पहले मानव जोड़े को संतान पैदा करने की अनुमति देकर इस ग्रह को धीरे-धीरे आबाद करे। पहले मानव जोड़े की खुशी और उनके सुख के लिए, यहोवा ने पृथ्वी के एक छोटे भाग को परादीस बनाया था। जैसे-जैसे मानव परिवार सालों और सदियों तक बढ़ते जाते, अदन का बाग तब तक बढ़ता जाता जब तक कि उत्पत्ति १:२८ की पूर्ति न हो जाती: “परमेश्‍वर ने . . . उन से कहा, फूलो-फलो, और पृथ्वी में भर जाओ, और उसको अपने वश में कर लो।”

अब क्योंकि हम पृथ्वी और उसके निवासियों की ऐसी दुर्दशा देखते हैं, क्या इसका यह अर्थ है कि पृथ्वी के लिए परमेश्‍वर का मूल उद्देश्‍य विफल हो चुका है? या क्या उसने अपना उद्देश्‍य बदल डाला है और सोचा है कि मानवजाति के भटक जाने के कारण वह इस ग्रह का संपूर्ण विनाश होने देगा और फिर एक नयी शुरूआत करेगा? नहीं, हम निश्‍चित हो सकते हैं कि इनमें से कोई भी बात सच नहीं है। बाइबल हमें बताती है कि यहोवा ने जो कुछ उद्देश्‍य किया है वह आखिरकार ज़रूर पूरा होगा, कि जो कुछ वह फैसला करता है उसके पूरा होने में कोई व्यक्‍ति या आकस्मिक घटना भी रुकावट नहीं डाल सकती। वह हमें विश्‍वास दिलाता है: “उसी प्रकार से मेरा वचन भी होगा जो मेरे मुख से निकलता है; वह व्यर्थ ठहरकर मेरे पास न लौटेगा, परन्तु, जो मेरी इच्छा है उसे वह पूरा करेगा, और जिस काम के लिये मैं ने उसको भेजा है उसे वह सुफल करेगा।”—यशायाह ५५:११.

परमेश्‍वर के उद्देश्‍य में रुकावट आयी, बदलाव नहीं

आदम और हव्वा के विद्रोह करने और अदन के बाग से उनके निकाले जाने से, यह स्पष्ट हो गया कि परादीस पृथ्वी के बारे में परमेश्‍वर का उद्देश्‍य उनके बिना ही पूरा किया जाएगा। लेकिन, यहोवा ने वहीं उसी वक्‍त ज़ाहिर किया कि उनकी संतानों में से कुछ लोग उसके मूल आदेश को पूरा करेंगे। हाँ, इसमें वक्‍त लगता, शायद कई सदियाँ गुज़र जातीं, लेकिन इस बात का कोई संकेत नहीं है कि अगर आदम और हव्वा दोनों परिपूर्ण जीवन जीते रहते तो उस मूल आदेश को पूरा करने में कितना समय लगता। सच्चाई यह है कि मसीह यीशु के सहस्राब्दिक शासन के अंत तक—जो अब से एक हज़ार से थोड़े ज़्यादा साल बाद आएगा—अदन की परादीस स्थिति सारी पृथ्वी पर फैल जाएगी और पृथ्वी ग्रह पहले मानव जोड़े के शांतिपूर्ण और सुखी वंशजों से भर जाएगा। जी हाँ, अपने उद्देश्‍य में कभी असफल न होनेवाले के रूप में यहोवा की काबिलीयत सदा के लिए सिद्ध हो जाएगी!

उस वक्‍त वे उत्तेजक भविष्यवाणियाँ पूरी होंगी जिनको लिखने की प्रेरणा परमेश्‍वर ने बहुत पहले से दी है। यशायाह ११:६-९ जैसे शास्त्रवचन बहुत ही शानदार रीति से पूरे होंगे: “तब भेड़िया भेड़ के बच्चे के संग रहा करेगा, और चीता बकरी के बच्चे के साथ बैठा करेगा, और बछड़ा और जवान सिंह और पाला पोसा हुआ बैल तीनों इकट्ठे रहेंगे, और एक छोटा लड़का उनकी अगुवाई करेगा। गाय और रीछनी मिलकर चरेंगी, और उनके बच्चे इकट्ठे बैठेंगे; और सिंह बैल की नाईं भूसा खाया करेगा। दूधपिउवा बच्चा करैत के बिल पर खेलेगा, और दूध छुड़ाया हुआ लड़का नाग के बिल में हाथ डालेगा। मेरे सारे पवित्र पर्वत पर न तो कोई दुःख देगा और न हानि करेगा; क्योंकि पृथ्वी यहोवा के ज्ञान से ऐसी भर जाएगी जैसा जल समुद्र में भरा रहता है।”

बीमारी और गंभीर रोग बीती बात बन चुके होंगे, और हाँ मौत भी। इसको बाइबल की आखिरी किताब में पाए गए इन सरल शब्दों से और ज़्यादा स्पष्ट कैसे बताया जा सकता है? “परमेश्‍वर का डेरा मनुष्यों के बीच में है; वह उन के साथ डेरा करेगा, और वे उसके लोग होंगे, और परमेश्‍वर आप उन के साथ रहेगा; और उन का परमेश्‍वर होगा। और वह उन की आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा; और इस के बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहिली बातें जाती रहीं।”—प्रकाशितवाक्य २१:३, ४.

जी हाँ हम ढाढ़स बाँध सकते हैं—हमारा रमणीय पृथ्वी ग्रह कायम रहेगा। हमारी दुआ है कि इस दुष्ट रीति-व्यवस्था और इसके पृथ्वी को बिगाड़नेवाले सब कामों के अंत से बचना आपका विशेषाधिकार हो। परमेश्‍वर की ओर से आनेवाला वह साफ-सुथरा नया संसार बहुत ही निकट है। और अनेक प्रियजन पुनरुत्थान के चमत्कार के द्वारा मृत्यु से जाग उठेंगे। (यूहन्‍ना ५:२८, २९) सचमुच, हमारी पृथ्वी कायम रहेगी, और इसके साथ हम भी कायम रहकर इसका आनंद उठा सकते हैं।

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