क्या पृथ्वी ग्रह का सर्वनाश होना है?
बीसवीं सदी जल्द ही खत्म होने जा रही है और २१वीं सदी की शुरूआत होने ही वाली है। इस स्थिति में, ज़्यादातर लोग जो आम तौर पर विनाश की भविष्यवाणियों पर बहुत कम या ज़रा भी ध्यान नहीं देते, सोच रहे हैं कि क्या कोई ऐसी घटना जल्द ही घटनेवाली है जो पूरे संसार में हाहाकार मचा देगी।
आपने इस बारे में शायद समाचार-पत्र और पत्रिकाओं के लेख देखे होंगे—यहाँ तक कि पूरी-पूरी किताबें इस विषय पर लिखी गयी हैं। २१वीं सदी की शुरूआत किन घटनाओं से होगी, इसका हमें इंतज़ार करना होगा। कुछ लोग कहते हैं कि सन् २००० के अंत तक पहुँचने का केवल यह मतलब है कि एक साल का जाना और दूसरे का आना (या २००० के आखिरी मिनट का जाना और सन् २००१ का शुरू होना) और इसलिए इससे कोई बड़ा फर्क नहीं पड़नेवाला। अनेक लोगों को हमारे ग्रह के आगे के भविष्य की बड़ी चिंता है।
आजकल एक भविष्यवाणी जो बार-बार हमारे सामने आती है वह यह है कि ऐसा समय आएगा—चाहे निकट या दूर भविष्य में—जब पृथ्वी ग्रह का ही सर्वनाश हो जाएगा। ऐसे निराशाजनक पूर्वकथनों में से केवल दो पर गौर कीजिए।
अपनी किताब संसार का अंत—मानवी विनाश का शास्त्र और सिद्धांत (अंग्रेज़ी) में, जो पहली बार १९९६ में प्रकाशित हुई, लेखक और दार्शनिक जॉन लॆसली ने तीन संभावनाएँ पेश कीं कि पृथ्वी पर मानव जीवन कैसे खत्म हो सकता है। पहले वह पूछता है: “क्या ऐसा हो सकता है कि संसार भर में परमाणु युद्ध मानवजाति का अंत कर दे?” इसके बाद वह कहता है: “बहुत ज़्यादा संभव है कि घटनाओं का सिलसिला यूँ होगा, . . . रेडिएशन के असर से विनाश होगा: कैंसर, शरीर के रोग-प्रतिरक्षा तंत्र का कमज़ोर होना जिससे संक्रामक रोग चारों तरफ फैल सकते हैं या बच्चों में पैदाइशी अपंगता बढ़ सकती है। सूक्ष्म जीव जो वातावरण के लिए ज़रूरी हैं उनका भी अंत हो सकता है।” श्री लॆसली तीसरी संभावना पेश करते हैं कि पृथ्वी से शायद कोई धूम-केतु या ग्रहिका टकराए: “कुछ धूम-केतुओं और ग्रहिकाओं की कक्षाएँ ऐसी हैं कि वे शायद किसी दिन पृथ्वी से टकरा जाएँ, ऐसे लगभग दो हज़ार आकाशीय पिंड हैं जिनका व्यास एक और दस किलोमीटर के बीच है। इनसे भी बड़े-बड़े पिंड बहुत कम संख्या में हैं (जिनका अनुमान लगाना महज़ तुक्का मारना होगा), और छोटे-छोटे पिंड बड़ी संख्या में हैं।”
‘सर्वनाश के दिन’ का स्पष्ट वर्णन
या ऑस्ट्रेलिया की यूनीवर्सिटी ऑफ अडिलेड के एक प्रोफॆसर, पॉल डेवीज़ पर गौर कीजिए। वॉशिंगटन टाइम्स् ने उसे “संसार भर में बहुत ही जाना-माना विज्ञान लेखक” कहा। सन् १९९४ में उसने आखिरी तीन मिनट (अंग्रेज़ी) किताब लिखी जिसे “सर्वनाश के दिन पर लिखी किताबों में आदर्श” कहा गया। इस किताब के पहले अध्याय का नाम है “सर्वनाश का दिन,” और इसमें उन काल्पनिक घटनाओं का वर्णन दिया गया है जो किसी धूम-केतु के पृथ्वी ग्रह से टकराने पर घट सकती हैं। इस डरावने वर्णन का एक अंश पढ़िए:
“हमारा ग्रह दस हज़ार भूकंपों के जितने झटके से काँप उठता है। हवा की प्रचंड आँधी सारी पृथ्वी पर तेज़ी से चलती है, सारी इमारतें मिट्टी में मिला देती है, रास्ते में आनेवाली हर वस्तु का नामो-निशान मिटा देती है। धूम-केतु के टक्कर लगने की जगह के आस-पास की सपाट ज़मीन, तरल पदार्थ के पहाड़ों का एक घेरा बनाकर कई किलोमीटर ऊपर उठती है, जिससे डेढ़ सौ किलोमीटर बड़े गड्ढे में पृथ्वी के अंदर का भाग नज़र आता है। . . . वायुमंडल में बड़ी तादाद में धूल उड़कर एक छतरी का आकार बना लेती है, और पूरे ग्रह पर सूरज की रोशनी को आने से रोक देती है। अब सूरज की रोशनी के बजाय, अरबों उल्काओं की डरावनी, बार-बार आँखों को चौंधियाती रोशनी है। ये उल्काएँ बड़े वेग से अंतरिक्ष से निकलकर वायुमंडल में आती हैं और नीचे गिरकर अपनी तेज़ गर्मी से ज़मीन को झुलसा देती हैं।”
प्रोफॆसर डेवीज़ आगे चलकर इन काल्पनिक घटनाओं को इस पूर्वकथन के साथ जोड़ता है कि स्विफ्ट-टटिल धूम-केतु पृथ्वी से टकराएगा। वह आगे चेतावनी देता है कि हालाँकि ऐसी घटना शायद निकट भविष्य में संभव न हो, उसकी राय में “देर-सवेर स्विफ्ट-टटिल या उसके जैसी कोई चीज़ पृथ्वी से टकराएगी ज़रूर।” उसका निष्कर्ष उन अनुमानों पर आधारित है जो संकेत देते हैं कि ऐसे १०,००० पिंड हैं जिनका व्यास आधा किलोमीटर या उससे ज़्यादा है और ये पृथ्वी के रास्ते में आते हैं।
क्या आप मानते हैं कि ऐसी डरावनी संभावना सच है? बहुत बड़ी तादाद में लोग इसे सच मानते हैं। लेकिन वे खुद को यह तसल्ली देकर कि ऐसा उनके जीवनकाल में नहीं होगा, चिंता को रफा-दफा कर देते हैं। लेकिन, पृथ्वी ग्रह का—चाहे अब या अब से हज़ारों साल बाद—नाश हो ही क्यों? निश्चय ही, खुद पृथ्वी तो अपने निवासियों, यानी मानव और पशुओं के लिए मुसीबत का बड़ा कारण नहीं है। इसके उलट, क्या खुद इंसान इस २०वीं सदी की ज़्यादातर समस्याओं के लिए ज़िम्मेदार नहीं है, जिसमें पूरी तरह ‘पृथ्वी को बिगाड़ने’ की संभावना भी शामिल है?—प्रकाशितवाक्य ११:१८.
मनुष्य की लापरवाही उलट दी गयी
इस संभावना के बारे में क्या जिसके सच होने के आसार ज़्यादा हैं कि मनुष्य खुद अपनी लापरवाही और लालच से इस पृथ्वी को पूरी तरह बिगाड़ सकता है या खराब कर सकता है? इसमें कोई दो राय नहीं कि बहुत ज़्यादा वन-कटाई, वायुमंडल को हद से ज़्यादा दूषित करने और पानी को खराब करने से पृथ्वी के कुछ भागों का विनाश हो चुका है। कुछ २५ साल पहले अपनी किताब केवल एक पृथ्वी (अंग्रेज़ी) के लेखकों, बॉरब्रा वॉर्ड और रिने ड्यूबो ने इसका सार बहुत अच्छी तरह दिया था: “प्रदूषण के तीन बड़े क्षेत्र जिन्हें हमें जाँचना है—हवा, पानी और मिट्टी हैं। और यही हमारे ग्रह पर जीवन के तीन बुनियादी तत्त्व हैं।” और तब से स्थिति बेहतर नहीं हुई है, है ना?
अपनी मूर्खता से मनुष्य के इस पृथ्वी को बिगाड़ने या विनाश करने की संभावना पर गौर करते वक्त, हम इस बात पर विचार करके ढाढ़स बाँध सकते हैं कि पृथ्वी ग्रह में फिर से बसने और फलने-फूलने की असाधारण क्षमता है। बहाल होने की इस आश्चर्यजनक क्षमता का वर्णन करते हुए, रिने ड्यूबो एक और किताब, पारितंत्र का लचीलापन (अंग्रेज़ी) में उत्साह पैदा करनेवाले ये शब्द कहता है:
“अनेक लोगों को यह डर है कि वातावरण के पतन की चेतना लोगों में बहुत देर से जागी है, क्योंकि पारितंत्र में किए गए ज़्यादातर नुकसान को अब ठीक नहीं किया जा सकता। मेरे विचार में ऐसी निराशा का कोई आधार नहीं है क्योंकि पारितंत्र में विपत्तियों से गुज़रकर बहाल होने की बहुत बड़ी शक्ति है।
“पारितंत्र में ऐसे अनेक तरीके हैं जिनसे वह अपना इलाज खुद करता है। . . . ये तरीके पारितंत्र में हुई किसी गड़बड़ी के असर को ठीक करने में मदद करते हैं। पारितंत्र का संतुलन जो पहले था उसे धीरे-धीरे फिर से स्थापित करके वे ऐसा करते हैं।”
यह हो सकता है
हाल के सालों में इसका एक अच्छा उदाहरण है लंदन की मशहूर नदी टेम्ज़् का धीरे-धीरे साफ होना। जेफ्री हैरिसन और पीटर ग्रैंट की लिखी किताब, बदली हुई टेम्ज़् (अंग्रेज़ी) में इस असाधारण उपलब्धि को दर्ज़ किया गया है जो दिखाती है कि जब सबकी भलाई के लिए इंसान मिलकर काम करते हैं तो क्या-क्या किया जा सकता है। ब्रिटॆन के ड्यूक ऑफ एडिनबर्ग ने इस किताब के अपने प्राक्कथन में कहा: “अब जाकर हमें कहीं इतनी बड़ी सफलता मिली है कि इसे जग-ज़ाहिर करना उचित है, फिर चाहे इससे लोग यह मान बैठें कि संरक्षण की समस्याएँ इतनी भी गंभीर नहीं हैं जितनी कि उन्हें बतायी गयी थीं। . . . टेम्ज़् में जो हासिल किया गया है उससे उन सबकी हिम्मत बँध सकती है। खुशखबरी यह है कि ऐसा हो सकता है और उनकी योजनाएँ भी सफल हो सकती हैं।”
“एक बड़ी साफ-सफाई” अध्याय में, हैरिसन और ग्रैंट पिछले ५० साल में जो हासिल किया गया है उसके बारे में उत्साह से लिखते हैं: “संसार में पहली बार, बहुत ही दूषित और फैक्ट्रियों की गंदगीवाली नदी को इस हद तक साफ किया गया है कि बड़ी तादाद में जल के पक्षी और मछलियाँ लौट आयी हैं। ऐसा बदलाव इतनी जल्दी और ऐसी स्थिति में हुआ है, जो पहले बहुत ही निराशाजनक लग रही थी, इस बात से सबसे अधिक निराशावादी वन्यजीवन संरक्षक में भी उत्साह पैदा हुआ है।”
उसके बाद वे उस बदलाव का वर्णन करते हैं: “इस नदी की हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती चली गयी, और शायद आखिरी प्रहार दूसरे विश्व युद्ध के दौरान हुआ जब गंदे पानी के बड़े-बड़े पाइप और गटर टूट-फूट गए या बेकार हो गए। १९४० और १९५० के दशकों में टेम्ज़् की गंदगी अपने शिखर पर पहुँच चुकी थी। यह नदी किसी खुले नाले जैसी ही थी; पानी का रंग काला था, उसमें ऑक्सीजन नहीं था और गर्मी के महीनों में टेम्ज़् की दुर्गंध दूर-दूर तक फैल जाती थी। . . . पहले इसमें मछलियों की भरमार थी अब आखिरकार वे भी नहीं रहीं, सिर्फ कुछ ईल मछलियाँ रह गयी थीं जो इसलिए जी पा रही थीं क्योंकि वे पानी की सतह से सीधे श्वास ले सकती हैं। लंदन और वुलिच के बीच के क्षेत्र में जहाँ नदी के दोनों तरफ इमारतें हैं, मुट्ठी भर पक्षी रह गए थे। ये जंगली बत्तखें और हँस थे, और ये प्राकृतिक भोजन पाने के बजाय जहाज़-घाट से, जहाँ अनाज उतारा जाता, गिरनेवाले अनाज से गुज़ारा करते थे। . . . उस वक्त किसने उस बढ़िया परिवर्तन पर विश्वास किया होता जो जल्द ही होनेवाला था? दस साल में नदी का वही क्षेत्र जो लगभग पक्षियों से खाली हो चुका था, बदलकर अनेक किस्म के जल पक्षियों का आशियाना बननेवाला था, जिनमें जाड़ों में आनेवाले १०,००० जंगली पक्षियों और १२,००० जलचर पक्षियों की तादाद भी शामिल है।”
बेशक, यह पृथ्वी के एक छोटे हिस्से में केवल एक बदलाव का वर्णन करता है। फिर भी, हम इस उदाहरण से सबक सीख सकते हैं। यह दिखाता है कि ऐसा मानने की ज़रूरत नहीं कि इंसान की लापरवाही, लालच और नासमझी के कारण पृथ्वी ग्रह सर्वनाश की राह पर है। सही शिक्षा और सारी मानवजाति की भलाई के लिए मिलकर की गई कोशिश से पृथ्वी के पारितंत्र, वातावरण और ज़मीन को पहुँचाए गए बहुत भारी नुकसान को भी उलटने में पृथ्वी की मदद की जा सकती है। लेकिन बाहरी शक्तियों से, जैसे किसी भटकते धूम-केतु या ग्रहिका से हो सकनेवाले सर्वनाश के बारे में क्या?
अगले लेख में ऐसे पेचीदा सवाल के संतोषजनक जवाब की कुंजी बतायी गयी है।
[पेज 5 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
शिक्षा और मिलकर की गई कोशिश से पृथ्वी को पहुँचाए गए बहुत भारी नुकसान को भी उलटने में उसकी मदद की जा सकती है