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  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1998
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1998
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क्या आपको याद है?

क्या आपने प्रहरीदुर्ग के हालिए अंकों पर ध्यानपूर्वक विचार किया है? यदि हाँ, तो आपको नीचे दी गयी बातों को दोहराना रोचक लगेगा:

◻ तकदीर का सिद्धांत क्यों तर्कसंगत नहीं है?

यदि खुदा ने पहले से ही जानकर फैसला कर लिया था कि आदम गुनाह करेगा, तो यहोवा गुनाह का बनानेवाला बना क्येंकि उसने इंसान को बनाया और वह सारी इंसानी बदकारी और दुःखतकलीफों के लिए ज़िम्मेदार होता। यह इस सच्चाई से मेल नहीं खा सकता कि यहोवा मुहब्बत का खुदा है जिसे बदकारी से नफरत है। (ज़बूर ३३:५; अमसाल १५:९; १ यूहन्‍ना ४:८)—४/१५, पृष्ठ ७, ८.

◻ यशायाह २:२-४ की पूर्ति में, कई देशों के लोग क्या कर रहे हैं?

जब वे यहोवा के उपासना के भवन में धारा की नाई आते हैं, वे ‘युद्धविद्या सीखने’ से भी दूर रहते हैं, क्योंकि वे परमेश्‍वर की स्वर्गीय सेनाओं से मिलनेवाली सुरक्षा पर अपना भरोसा रखते हैं। ये स्वर्गीय सेनाएँ शांति के सभी दुश्‍मनों का नाश करने के लिए तैयार खड़ी हैं।—४/१५, पृष्ठ ३०.

◻ योएल ३:१०, ११ में बताए गए परमेश्‍वर के शूरवीर कौन हैं?

बाइबल में कुछ २८० बार, सच्चे परमेश्‍वर को “सेनाओं का यहोवा” पुकारा गया है। (२ राजा ३:१४) ये सेनाएँ स्वर्ग में रहनेवाले शूरवीर स्वर्गदूत हैं जो यहोवा का कहना पूरा करने के लिए तैयार रहते हैं।—५/१, पृष्ठ २३.

◻ यहोवा ने अय्यूब से उसके विरुद्ध पाप करनेवालों की खातिर प्रार्थना करने की माँग की, इससे हम क्या सबक सीख सकते हैं? (अय्यूब ४२:८)

इसके पहले कि अय्यूब स्वस्थ किया गया, यहोवा ने उससे माँग की कि वह उनकी खातिर प्रार्थना करे जिन्होंने उसके विरुद्ध पाप किया था। यह दिखाता है कि यहोवा चाहता है कि हम उन्हें क्षमा करें जिन्होंने हमारे विरुद्ध पाप किया है, इससे पहले की हमारे पाप क्षमा किए जाएँ। (मत्ती ६:१२; इफिसियों ४:३२)—५/१, पृष्ठ ३१.

◻ जब याकूब ने कहा, “धीरज को अपना पूरा काम करने दो,” तब उसका क्या मतलब था? (याकूब १:४)

धीरज को कुछ करना है, एक “काम।” इसका काम हमें हर क्षेत्र में मज़बूत करना है। इसलिए, परीक्षाओं को किसी अशास्त्रीय तरीके से समाप्त करने के बजाय पूरा होने देने से हमारा विश्‍वास परखा जाता और शुद्ध होता है।—५/१५, पृष्ठ १६.

◻ परमेश्‍वर ने मानवजाति की समस्याओं का हल करने के लिए इतने लंबे समय तक क्यों इंतज़ार किया है?

समय के बारे में यहोवा का नज़रिया हमसे अलग है। अनंत परमेश्‍वर के लिए, आदम को बनाने से लेकर अब तक का समय मुश्‍किल से एक सप्ताह ही होता है। (२ पतरस ३:८) लेकिन समय के बारे में हमारा नज़रिया चाहे कुछ भी क्यों न हो, हर गुज़रता दिन हमें यहोवा के दोषनिवारण के “दिन” के और भी निकट ले आता है।—६/१, पृष्ठ ५, ६.

◻ यहोवा के साक्षी किस बात से प्रेरित होते हैं?

यहोवा की शिक्षा का नतीजा एक अलग तरह के लोग हैं। उन्हें सिखाया गया है कि एकदूसरे से और अपने पड़ोसियों से अपने जैसा प्यार करें। (यशायाह ५४:१३) लोगों की बेरुखी और विरोध के बावजूद प्रेम ही यहोवा के साक्षियों को प्रचार करते रहने के लिए प्रेरित करता है। (मत्ती २२:३६-४०; १ कुरिन्थियों १३:१-८)—६/१५, पृष्ठ २०.

◻ यीशु के इन शब्दों का तात्पर्य क्या है: “सकेत द्वार से प्रवेश करने का यत्न करो”? (लूका १३:२४)

यीशु के शब्दों का तात्पर्य है संघर्ष करना, आगे बढ़ना। उसके शब्द यह भी सूचित करते हैं कि कुछ शायद अपनी सहूलियत के अनुसार, ऐसी आरामदायक गति से जो उनको अच्छी लगती है “द्वार से प्रवेश” करना चाहेंगे। सो हम में से हरेक व्यक्‍ति पूछ सकता है, ‘क्या मैं परिश्रम और मेहनत से आगे बढ़ रहा हूँ?’—६/१५, पृष्ठ ३१.

◻ दोबारा जीवित होनेवालों का ‘जैसे उन पुस्तकों में लिखा हुआ था, उन के कामों के अनुसार’ कैसे “न्याय किया” जाएगा? (प्रकाशितवाक्य २०:१२)

ये पुस्तकें उनकी पिछली ज़िंदगी के कामों का लेखा नहीं; क्योंकि जब वे मर गए थे तो अपने उस जीवन के पापों से मुक्‍त हो गए थे। (रोमियों ६:७, २३) लेकिन पुनरुत्थान पानेवाले इंसान अभी-भी आदम के पाप के भागी होंगे। यह तब होगा जब इन पुस्तकों से परमेश्‍वर के नियम बताएँ जाएँगे जिन्हें सभी लोगों को लागू करना होगा ताकि यीशु मसीह के बलिदान से पूरी तरह लाभ उठा सकें।—७/१, पृष्ठ २२.

◻ पड़ोसी-समान सामरी के बारे में यीशु की नीतिकथा में हमारे लिए कौन-कौन से सबक हैं? (लूका १०:३०-३७)

यीशु की नीतिकथा दिखाती है कि सही अर्थ में खरा व्यक्‍ति वो है जो परमेश्‍वर के नियमों को मानता तो है ही साथ ही उसके जैसे गुण भी दिखाता है। (इफिसियों ५:१) यह इस बात को भी दिखाती है कि पड़ोसियों के लिए हमारी सद्‌भावना को, राष्ट्रीय, सांस्कृतिक और धार्मिक बंधनों से मुक्‍त होना चाहिए। (गलतियों ६:१०)—७/१, पृष्ठ ३१.

◻ ऐसे कौन-से तीन क्षेत्र हैं जिनमें आप अपने बच्चों को समझकर उन्हें मार्गदर्शन दे सकते हैं?

(१) किसी उचित प्रकार के लौकिक कार्य चुनने में अपने बच्चों की मदद कीजिए; (२) स्कूल तथा कार्यस्थल में भावात्मक दबाव का सामना करने के लिए उन्हें तैयार कीजिए; (३) उन्हें अपनी आध्यात्मिक ज़रूरतों को पूरा करने का तरीका दिखाइए।—७/१५, पृष्ठ ४.

◻ किस उद्देश्‍य से परमेश्‍वर ने “सातवें दिन” को आराम किया? (उत्पत्ति २:१-३)

परमेश्‍वर ने इसलिए नहीं आराम किया क्योंकि वो थका हुआ था। इसके बजाय, उसने पृथ्वी पर अपना कार्य रोक दिया जिससे कि उसकी हस्तकला खिलकर अपनी पूरी महिमा में आए, और उसकी स्तुति और सम्मान हो।—७/१५, पृष्ठ १८.

◻ कौन-से तीन तरीके हैं जिनमें हम न्याय से काम कर सकते हैं?

पहला, हमें परमेश्‍वर के नैतिक स्तरों के मुताबिक चलना चाहिए। (यशायाह १:१७) दूसरा, जब हम दूसरों के साथ उसी तरह बर्ताव करते हैं जिस तरह हम चाहते हैं कि यहोवा हमसे बर्ताव करे, तब हम न्याय से काम करते हैं। (भजन १३०:३, ४) तीसरा, जब हम प्रचार के कार्य में मेहनत करते हैं तब हम ईश्‍वरीय न्याय प्रदर्शित करते हैं। (नीतिवचन ३:२७)—८/१, पृष्ठ १४, १५.

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