वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी
वॉचटावर
ऑनलाइन लाइब्रेरी
हिंदी
  • बाइबल
  • प्रकाशन
  • सभाएँ
  • w99 2/15 पेज 18-23
  • प्रेम कभी टलता नहीं

इस भाग के लिए कोई वीडियो नहीं है।

माफ कीजिए, वीडियो डाउनलोड नहीं हो पा रहा है।

  • प्रेम कभी टलता नहीं
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1999
  • उपशीर्षक
  • मिलते-जुलते लेख
  • प्रेम के सहारे हम घमंड पर काबू पा सकते हैं
  • प्रेम के सहारे रिश्‍तों में शांति बनाए रखना
  • प्रेम के सहारे हम धीरज धर सकते हैं
  • प्रेम—“सब से उत्तम मार्ग”
  • ‘प्रेम में चलते’ जाओ
    यहोवा के करीब आओ
  • प्रेम (अगापे)—क्या नहीं है और क्या है
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1993
  • ऐसा प्यार बढ़ाइए जो कभी नहीं मिटता
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2009
  • प्रेम से हिम्मत पाइए
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2001
और देखिए
प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1999
w99 2/15 पेज 18-23

प्रेम कभी टलता नहीं

‘तुम बड़े से बड़े वरदानों के धुन में रहो! परन्तु मैं तुम्हें और भी सब से उत्तम मार्ग बताता हूं।’—१ कुरिन्थियों १२:३१.

१-३. (क) दूसरों से प्यार करना सीखना नयी भाषा सीखने के बराबर कैसे है? (ख) दूसरों को प्यार कैसे दिखाएँ यह सीखना क्यों मुश्‍किल हो सकता है?

क्या आपने कभी एक नयी भाषा सीखने की कोशिश की है? कोई भी नयी भाषा सीखना वाकई बहुत मुश्‍किल होता है! लेकिन एक छोटा-सा बच्चा, लोगों की देखा-देखी, किसी भी भाषा को बड़ी आसानी से सीख लेता है। उसका नन्हा-सा दिमाग शब्दों की आवाज़ को और उनके मतलब को बखूबी पहचानने और समझने लगता है और जल्द ही वह बड़ी आसानी से फर्रराँटेदार भाषा बोलने लगता है। लेकिन हम बड़े लोग ऐसा नहीं कर पाते। एक नयी भाषा में सिर्फ छोटी-छोटी और ज़रूरी बातों को बोलने के लिए हमें बार-बार डिक्शनरी देखनी पड़ती है। लेकिन थोड़ी-सी लगन और थोड़े-से अनुभव के साथ हम नयी भाषा में सोचना शुरू कर देते हैं और फिर इसे बोलना आसान हो जाता है।

२ दूसरों से प्यार करना सीखना भी नयी भाषा सीखने के बराबर है। सच है कि परमेश्‍वर का यह गुण हर इंसान में जन्म से थोड़ा-बहुत तो होता ही है। (उत्पत्ति १:२७. १ यूहन्‍ना ४:८ से तुलना कीजिए।) फिर भी, दूसरों से प्रेम करना सीखने में सख्त मेहनत की ज़रूरत होती है, और खासकर आज, जब लोगों में प्यार-मुहब्बत की इतनी कमी है। (२ तीमुथियुस ३:१-५) खुद परिवार में ही हम ऐसे स्नेह और ममता की कमी को देख सकते हैं। बहुत से लोग ऐसे घरानों में पलते हैं जहाँ माहौल इतना सख्त होता है कि प्यार के दो बोल शायद ही कभी सुनाई दें। (इफिसियों ४:२९-३१; ६:४) चाहे हमने खुद कभी प्यार न पाया हो, फिर भी हम दूसरों से प्रेम करना कैसे सीख सकते हैं?

३ ऐसा करने में बाइबल हमारी मदद कर सकती है। पहला कुरिन्थियों १३:४-८ में पौलुस हमें प्रेम का किताबी मतलब नहीं बताता, बल्कि वह हमें एक जीता-जागता ब्यौरा देता है कि यह सच्चा प्यार आखिर होता क्या है और प्यार कैसे दिखाया जाता है। इन आयतों पर ध्यान देकर हम परमेश्‍वर के इस गुण को अच्छी तरह समझ सकेंगे और यह सीखेंगे कि प्यार कैसे दिखाया जाए। आइए ध्यान दें कि पौलुस प्रेम के बारे में कौन-सी बातें बताता है। हम इन बातों को तीन वर्गों में बाँटेंगे: सबसे पहला है हमारा आचरण, फिर दूसरों के साथ हमारा रिश्‍ता और सबसे आखिर में हमारा धीरज।

प्रेम के सहारे हम घमंड पर काबू पा सकते हैं

४. बाइबल जलन के बारे में हमें क्या समझ देती है?

४ प्रेम के बारे में दो शब्द कहकर पौलुस कुरिन्थियों को आगे लिखता है: “प्रेम जलन नहीं रखता।” (१ कुरिन्थियों १३:४, NW) दूसरों का सुख-चैन या उनकी कामयाबी देखकर जब हमारे मन में जलन पैदा होती है, तो उसे ईर्ष्या कहा जाता है। यह खतरनाक होती है। यह हमारे तन और मन को, साथ ही हमारी आध्यात्मिकता को जलाकर राख कर सकती है।—नीतिवचन १४:३०; रोमियों १३:१३; याकूब ३:१४-१६.

५. जब कलीसिया में हमारे बजाय दूसरों को कोई खास ज़िम्मेदारी मिलती है तब हम प्यार के सहारे जलन पर कैसे काबू पा सकते हैं?

५ इसलिए खुद से पूछिए, ‘जब कलीसिया में दूसरों को कोई खास ज़िम्मेदारी मिलती है और मुझे नहीं मिलती, तो क्या मुझे जलन होती है?’ अगर आपका जवाब हाँ है तो परेशान होने की कोई बात नहीं है। क्योंकि बाइबल लेखक याकूब हमें याद दिलाता है कि हम सभी असिद्ध इंसान ‘ईर्ष्या पूर्ण इच्छाओं से भरे’ होते हैं। (याकूब ४:५, ईज़ी टू रीड वर्शन) लेकिन, अगर आप अपने भाई से प्यार करते हैं, तो आप अपने नज़रिए को ठीक करके अपने ऊपर काबू पा सकेंगे। और इस तरह आप खुशी मनानेवालों के साथ खुश हो सकेंगे और जब दूसरों को कोई सम्मान मिलता है या कोई उनकी तारीफ करता है तब आप इसे अपनी बेइज़्ज़ती नहीं समझेंगे।—१ शमूएल १८:७-९.

६. पहली सदी में कुरिन्थ की कलीसिया में कौन-सी समस्या खड़ी हो गयी थी?

६ पौलुस आगे कहता है कि “प्रेम अपनी बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं।” (१ कुरिन्थियों १३:४) अगर हमारे पास कोई काबिलियत या हुनर है, तो दूसरों के सामने इनका डंका पीटने की ज़रूरत नहीं। ऐसा लगता है कि पहली सदी के कुरिन्थ की कलीसिया में यही समस्या थी। वहाँ पर कुछ लोग मतलबी थे और खुद को बड़ा बनाना चाहते थे। उनके पास शायद किसी भी विषय को बखूबी समझाने का हुनर था या फिर वे दूसरों से ज़्यादा अच्छी तरह काम करने की काबिलीयत रखते थे। लेकिन अपने हुनर और काबिलीयत का डंका पीटकर वे लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींच रहे थे, और शायद इसी वज़ह से कलीसिया में फूट पड़ गयी थी। (१ कुरिन्थियों ३:३, ४; २ कुरिन्थियों १२:२०) कलीसिया की हालत इतनी खराब हो गई थी कि पौलुस को कुरिन्थ के भाइयों को ताड़ना देनी पड़ी, क्योंकि वे ‘आनन्द से उन मूर्खों की सह रहे थे’ जिन्हें पौलुस लताड़ते हुए ‘बड़े से बड़े प्रेरित’ कहता है।—२ कुरिन्थियों ११:५, १९, २०.

७, ८. बाइबल से दिखाइए कि हम किसी भी काबिलियत या हुनर को एकता बढ़ाने के लिए कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं।

७ आज भी ऐसी ही समस्या खड़ी हो सकती है। मिसाल के तौर पर, हो सकता है कि कोई भाई प्रचार काम में अपनी कामयाबी के बारे में या परमेश्‍वर के संगठन में अपनी खास ज़िम्मेदारियों के बारे में डींग मारता हो। अगर हमारे पास कोई खास काबिलियत या हुनर है, जो कलीसिया में दूसरों के पास नहीं, तो क्या हमें घमंड से फूल जाना चाहिए? बिलकुल नहीं। हमारे पास चाहे जो भी काबिलीयत या हुनर क्यों न हो, उसे हमें कलीसिया में एकता बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करना चाहिए, खुद को बड़ा बनाने के लिए नहीं।—मत्ती २३:१२; १ पतरस ५:६.

८ पौलुस ने लिखा कि हालाँकि कलीसिया में बहुत से सदस्य होते हैं, लेकिन ‘परमेश्‍वर ने देह को [कई अंग जोड़कर] बनाया है।’ (NW) (१ कुरिन्थियों १२:१९-२६) ‘जोड़कर बनाया’ अनुवादित यूनानी शब्द का मतलब है ‘बराबर मिलाना,’ जैसे रंगों को मिलाना। इसलिए, कलीसिया में किसी भी भाई या बहन को अपनी काबिलियत पर घमंड से फूलना नहीं चाहिए, ना ही उसे दूसरों पर अधिकार जताना चाहिए। घमंड करनेवालों और खुद को बड़ा बनानेवालों के लिए परमेश्‍वर के संगठन में कोई जगह नहीं है।—नीतिवचन १६:१९; १ कुरिन्थियों १४:१२; १ पतरस ५:२, ३.

९. बाइबल चेतावनी देने के लिए उन लोगों की कौन-सी मिसालें देती है जो मतलबी थे और बस अपनी भलाई चाहते थे?

९ प्रेम “अपनी भलाई नहीं चाहता।” (१ कुरिन्थियों १३:५) दूसरों से प्यार करनेवाला इंसान अपने मतलब के लिए चालाकी से दूसरों से काम नहीं निकलवाएगा। बाइबल इस मामले में ऐसी मिसालें देती है जो हमारे लिए एक चेतावनी है। उदाहरण के लिए, बाइबल में दलीला, ईज़ेबेल और अतल्याह की मिसालें दी गयी हैं। ये ऐसी स्त्रियाँ थीं जिन्होंने अपने मतलब के लिए चालाकी करके दूसरों से काम निकलवाया। (न्यायियों १६:१६; १ राजा २१:२५; २ इतिहास २२:१०-१२) राजा दाऊद का बेटा अबशालोम भी ऐसा ही इंसान था। जब कोई मुद्दई न्याय के लिए यरूशलेम आता, तब वह उसके पास जाकर बड़ी ही चालाकी से यह कहता कि राजा के दरबार में उसकी परेशानी को सुननेवाला कोई नहीं है। फिर वह सीधे-सीधे कहता था कि दरबार में मेरी तरह एक इंसान होना चाहिए था जिसके दिल में लोगों की दुःख-तकलीफों के लिए जगह है! (२ शमूएल १५:२-४) लेकिन सच तो यह था कि अबशालोम को दीन-दुखियों की परवाह नहीं थी, बल्कि वह मतलबी था और बस अपनी भलाई के लिए यह सब कर रहा था। राजा के बदले खुद को लोगों का न्यायी ठहराकर, उसने बहुतों का दिल जीत लिया। लेकिन आगे चलकर उसे मुँह की खानी पड़ी। और जब वह मरा तो उसे इतनी भी इज़्ज़त नहीं दी गयी, कि उसे ठीक तरह से दफनाया जाए।—१ शमूएल १८:६-१७.

१०. हम यह कैसे दिखा सकते हैं कि हम अपनी नहीं मगर दूसरों की भलाई चाहते हैं?

१० आज यह मसीहियों के लिए वाकई एक चेतावनी है। चाहे हम पुरुष हों या स्त्री, शायद अपनी बात मनवाकर दूसरों से काम निकलवाना हमारे स्वभाव में ही हो। हो सकता है कि किसी बातचीत में बस अपनी ही तूती बजाकर या अलग राय रखनेवालों की बात काटकर अपनी बात मनवाना हमारे लिए बाँए हाथ का खेल हो। लेकिन अगर हम दूसरों से सचमुच प्यार करते हैं, तो हम पहले अपनी नहीं, बल्कि दूसरों की भलाई के बारे में सोचेंगे। (फिलिप्पियों २:२-४) हम परमेश्‍वर के संगठन में ज़िम्मेदारी के अपने पद की वज़ह से या अपने अनुभव की वज़ह दूसरों का नाजायज़ फायदा नहीं उठाएँगे, ना ही हम अपने मतों और विचारों को दूसरों पर थोपने की कोशिश करेंगे, मानो सिर्फ हमारी राय में ही दम है। इसके बजाय हम बाइबल का यह नीतिवचन याद रखेंगे: “विनाश से पहिले गर्व, और ठोकर खाने से पहिले घमण्ड होता है।”—नीतिवचन १६:१८.

प्रेम के सहारे रिश्‍तों में शांति बनाए रखना

११. (क) हम कैसे वह प्यार दिखा सकते हैं जो कृपाल है और जो अनरीति नहीं चलता? (ख) हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम कुकर्म से आनन्दित नहीं होते?

११ पौलुस ने यह भी लिखा कि प्रेम “कृपाल” है और यह “अनरीति नहीं चलता।” (१ कुरिन्थियों १३:४, ५) जी हाँ, प्यार हमें इसकी इजाज़त नहीं देता कि हम दूसरों के साथ बदतमीज़ी से पेश आएँ, उनसे भद्दी या गंदी बात कहें या उनकी बेइज़्ज़ती करें। इसके बजाय, हम दूसरों की भावनाओं का लिहाज़ करेंगे। मिसाल के तौर पर, दूसरों से प्यार करनेवाला इंसान ऐसा कोई भी काम नहीं करेगा जिससे दूसरों को ठोकर लगे। (१ कुरिन्थियों ८:१३ से तुलना कीजिए।) प्रेम “कुकर्म से आनन्दित नहीं होता, परन्तु सत्य से आनन्दित होता है।” (१ कुरिन्थियों १३:६) अगर हम यहोवा के कानूनों से प्यार करते हैं तो हम बदचलनी को हलकी-सी बात नहीं समझेंगे, ना ही ऐसे मनोरंजन का मज़ा उठाएँगे जिससे यहोवा नफरत करता है। (भजन ११९:९७) इसी प्यार की वज़ह से हम ऐसी बातों से खुश होंगे जिनसे उन्‍नति हो, ना कि उन बातों से जो भ्रष्ट या नाश करें।—रोमियों १५:२; १ कुरिन्थियों १०:२३, २४; १४:२६.

१२, १३. (क) जब हमें कोई ठेस पहुँचाता है, तो हमें क्या करना चाहिए? (ख) यह साबित करने के लिए बाइबल से कुछ उदाहरण बताइए कि हालाँकि हमारा गुस्सा जायज़ हो, फिर भी हम कोई गलत कदम उठा सकते हैं।

१२ पौलुस लिखता है कि प्रेम “झुंझलाता नहीं” (“खीजता नहीं,” फिलिप्स)। (१ कुरिन्थियों १३:५) यह सच है कि हम असिद्ध हैं और इसलिए जब कोई हमें ठेस पहुँचाता है तब हम नाराज़ हो जाते हैं या फिर गुस्सा हो जाते हैं। लेकिन लंबे समय तक अपने दिल में गिला-शिकवा रखना या गुस्से में जलते रहना गलत होगा। (भजन ४:४; इफिसियों ४:२६) और हमारा गुस्सा जायज़ हो, तौभी अगर उसे काबू में न किया जाए तो हम कोई गलत कदम उठा सकते हैं, जिसका लेखा यहोवा हमसे ज़रूर लेगा।—उत्पत्ति ३४:१-३१; ४९:५-७; गिनती १२:३; २०:१०-१२; भजन १०६:३२, ३३.

१३ हम सभी असिद्ध हैं और हममें कई कमज़ोरियाँ होती हैं। लेकिन कई भाइयों ने दूसरों की इन कमज़ोरियों को, सभाओं में न आने और प्रचार काम में न जाने की वज़ह बना लिया है। पहले ये लोग विश्‍वास की अच्छी लड़ाई लड़ रहे थे। शायद उन्होंने अपने परिवार में ही विरोध सहा, अपने दोस्तों और साथ काम करनेवालों के ठट्टों को बरदाश्‍त किया, और ऐसी ही काफी मुसीबतों से गुज़रे। उन्होंने यह सब झेला क्योंकि उन्हें लगा था कि ये उनके विश्‍वास की परीक्षाएँ हैं, और वाकई ये परीक्षाएँ थीं। लेकिन तब क्या होता है जब कोई संगी मसीही उनके खिलाफ कुछ गलत कह देता है या कुछ गलत कर देता है? क्या यह भी उनके विश्‍वास की एक परीक्षा नहीं है? बेशक, यह भी विश्‍वास की एक परीक्षा है। अगर हम गुस्से में जलते रहते हैं तो हम “शैतान को अवसर” दे सकते हैं।—इफिसियों ४:२७.

१४, १५. (क) प्रेम “बुरा नहीं मानता” इसका मतलब क्या है? (ख) जब माफ करने की बात आती है, तब हम यहोवा की नकल कैसे कर सकते हैं?

१४ इसलिए पौलुस ने कहा कि प्रेम “बुरा नहीं मानता” (“बुराई का लेखा नहीं रखता,” NHT)। (१ कुरिन्थियों १३:५) यहाँ पौलुस हिसाब-किताब रखने या लेखा रखने की बात करता है, मानो दूसरों की गलतियों को एक बहीखाते में लिख लेना ताकि वे हमेशा याद रहें। अगर हम अपने खिलाफ की गयी दूसरों की गलतियों या कही गयी गलत बातों को मन में हमेशा के लिए दर्ज़ करके रखेंगे, मानो ज़रूरत पड़ने पर हम उन्हें फौरन बता सकें, तो क्या हम प्यार दिखा रहे होंगे? हमारे लिए यह कितनी खुशी कि बात है कि यहोवा हर मामले में बेरहमी से हमारी नुक्‍ता चीनी नहीं करता। (भजन १३०:३) लेकिन, जब हम पछतावा दिखाते हैं तब वह हमारे अपराधों को पूरी तरह मिटा डालता है।—प्रेरितों ३:१९.

१५ इस मामले में हमें यहोवा की नकल करनी चाहिए। जब हमें ऐसा लगे की दूसरों ने हमारे खिलाफ कुछ किया है, तब हमें हर छोटी-सी बात का फौरन बुरा नहीं मान लेना चाहिए। अगर हम इतने तुनक-मिज़ाज़ होंगे तो असल में हम खुद को चोट पहुंचाएँगे। और यह ज़ख्म बहुत ही गहरा हो सकता है। शायद चोट पहुँचानेवाला व्यक्‍ति भी हमें इतनी गहरी चोट नहीं पहुँचा सके। (सभोपदेशक ७:९, २२) इसके बजाय हमें यह याद रखना चाहिए कि प्रेम “सब बातों की प्रतीति [“विश्‍वास,” NHT] करता है।” (१ कुरिन्थियों १३:७) मगर इसका मतलब यह नहीं कि हम दूसरों को अपना फायदा उठाने दें। नहीं, ऐसी बात नहीं है, मगर हमें बेकार में ही अपने भाइयों की नीयत पर शक भी नहीं करना चाहिए। इसके बजाय, आइए यह मानकर चलें कि उनकी नीयत बुरी नहीं है।—कुलुस्सियों ३:१३.

प्रेम के सहारे हम धीरज धर सकते हैं

१६. किन हालात में हम प्रेम के सहारे धीरज धर सकते हैं?

१६ आगे पौलुस हमसे कहता है कि “प्रेम धीरजवन्त है।” (१ कुरिन्थियों १३:४) यह हमें ऐसे हालात से गुज़रते वक्‍त सहनशक्‍ति देता है, जो शायद लंबे समय तक हमारी परीक्षा लेते रहें। मिसाल के तौर पर, कई मसीही काफी सालों से ऐसे घरों में रहे हैं जिनमें उनके सिवाय और कोई सच्चाई में नहीं है। दूसरों के हालात ऐसे हैं कि उन्होंने शादी नहीं की है। ऐसी बात नहीं है कि वे शादी नहीं करना चाहते, मगर इसलिए कि उन्हें “प्रभु में” शादी करने के लिए कोई सही साथी नहीं मिला है। (१ कुरिन्थियों ७:३९; २ कुरिन्थियों ६:१४) और ऐसे भी लोग हैं जिन्हें हमेशा बीमारियों से लड़ते रहना पड़ता है। (गलतियों ४:१३, १४; फिलिप्पियों २:२५-३०) असल में देखा जाए, तो इस असिद्ध दुनिया में, किसी की भी ज़िंदगी में ऐसी कोई भी हालत नहीं है जिसमें धीरज की परीक्षा न हो।—मत्ती १०:२२; याकूब १:१२.

१७. कौन-सी बात हमें हर हालत में धीरज धरने में मदद करेगी?

१७ पौलुस हमें यकीन दिलाता है कि प्रेम “सब बातें सह लेता है, . . . सब बातों की आशा रखता है, सब बातों में धीरज धरता है।” (१ कुरिन्थियों १३:७) इसीलिए, हम धर्म की खातिर किसी भी भारी-से-भारी परीक्षा से गुज़र सकते हैं क्योंकि हम यहोवा से प्यार करते हैं। (मत्ती १६:२४; १ कुरिन्थियों १०:१३) ऐसी बात नहीं है कि हमें अपनी ज़िंदगी से प्यार नहीं है, हम शहीद होना चाहते हैं। इसके बजाय, हम चाहते हैं कि हम शांति और सुकून के साथ अपनी ज़िंदगी बिताएँ। (रोमियों १२:१८; १ थिस्सलुनीकियों ४:११, १२) मगर जब हमारे विश्‍वास की परीक्षा होती है, तब हम खुशी से इन परीक्षाओं को मसीह के चेले होने की कीमत समझकर सह लेते हैं। (लूका १४:२८-३३) और इस तरह धीरज धरते वक्‍त हम उम्मीद नहीं छोड़ते, मगर परीक्षा की घड़ियों में यही आशा रखते हैं कि इसका अंजाम सबके भले के लिए होगा।

१८. अच्छे समय से गुज़रते हुए भी हमें धीरज की ज़रूरत क्यों है?

१८ धीरज की ज़रूरत सिर्फ परीक्षाओं में ही नहीं पड़ती। धीरज धरने का मतलब यह भी होता है कि आखिर तक टिके रहना, एक ही रास्ते पर बिना रुके चलते रहना, चाहे परीक्षाएँ आएँ या नहीं। धीरज धरने का मतलब यह भी है कि परमेश्‍वर के कामों में लगे रहना। उदाहरण के लिए, क्या आप अपने हालात के मुताबिक पूरे दिल से प्रचार काम में लगे रहते हैं? क्या आप हमेशा परमेश्‍वर के वचन को पढ़ते हैं, उस पर सोचते रहते हैं और अपने स्वर्गीय पिता से हमेशा प्रार्थना में दिल की बात कहते हैं? क्या आप कलीसिया की हर सभा में बिना-नागा हाज़िर होते हैं, और क्या आप आपस में अपने भाई-बहनों से मिलकर हमेशा एक-दूसरे का हौसला बढ़ाते हैं? अगर आप ऐसा करने में लगे रहते हैं, तो चाहे आप अच्छे समय से गुज़र रहे हों या बुरे समय से, आप इन सभी तरीकों से धीरज धर रहे हैं। सो इन कामों में लगे रहिए, क्योंकि “यदि हम ढीले न हों, तो ठीक समय पर कटनी काटेंगे।”—गलतियों ६:९.

प्रेम—“सब से उत्तम मार्ग”

१९. प्रेम किस तरह से “सब से उत्तम मार्ग” है?

१९ पौलुस ने प्रेम को “सब से उत्तम मार्ग” बताकर परमेश्‍वर के इस गुण की अहमियत दिखायी। (१ कुरिन्थियों १२:३१) लेकिन यह प्रेम किस तरह “सब से उत्तम” है? यहाँ पौलुस ने आत्मा के उन वरदानों के बारे में कहा था जो पहली सदी के मसीहियों को मिले थे। कुछ मसीही आत्मा के वरदान की वज़ह से भविष्यवाणी कर सकते थे, कुछ को बीमारियों को चंगा करने का अधिकार मिला था, तो कुछ को अन्य-अन्य भाषाएँ बोलने का वरदान दिया गया था। वाकई ये सभी वरदान एक चमत्कार थे! फिर भी, पौलुस ने कुरिन्थ के भाइयों से कहा: “यदि मैं मनुष्यों और स्वर्गदूतों की बोलियां बोलूं, और प्रेम न रखूं, तो मैं ठनठनाता हुआ पीतल, और झंझनाती हुई झांझ हूं। और यदि मैं भविष्यद्वाणी कर सकूं, और सब भेदों और सब प्रकार के ज्ञान को समझूं, और मुझे यहां तक पूरा विश्‍वास हो, कि मैं पहाड़ों को हटा दूं, परन्तु प्रेम न रखूं, तो मैं कुछ भी नहीं।” (१ कुरिन्थियों १३:१, २) जी हाँ, हम जो भी काम करते हैं, चाहे वह बहुत ही अच्छा और ज़रूरी क्यों न हो, अगर उस काम की वज़ह परमेश्‍वर और दूसरों के लिए प्यार नहीं है, तो वह काम “मरे हुए कामों” के बराबर होगा।—इब्रानियों ६:१.

२०. अगर हमें अपने दिल में प्रेम पैदा करना है तो हमें लगातार मेहनत करते रहने की ज़रूरत क्यों है?

२० परमेश्‍वर के प्रेम के इस गुण को अपने दिल में पैदा करने के लिए यीशु हमें दूसरी वज़ह देता है। उसने कहा: “यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो।” (यूहन्‍ना १३:३५) शब्द “यदि” हर मसीही पर यह ज़िम्मेदारी छोड़ देता है कि वह दूसरों को प्यार करना सीखेगा या नहीं। उदाहरण के लिए अगर आप एक परदेश में रहते हैं तो वहाँ की भाषा सीखना आपकी ज़िम्मेदारी है। यह खुद-ब-खुद नहीं आती। उसी तरह, हम सिर्फ किंगडम हॉल में सभाओं में हाज़िर होकर या अपने भाई-बहनों से सिर्फ मिलकर अपने आप प्यार करना नहीं सीख जाएँगे। इस प्रेम की “भाषा” को सीखने में हमें लगातार मेहनत करते रहने की ज़रूरत है।

२१, २२. (क) पौलुस ने प्यार के बारे में जितनी बातें सिखायी हैं, अगर हम उन्हें पूरी तरह अमल में न ला सकें, तौभी हमें क्या करना चाहिए? (ख) यह क्यों कहा जा सकता है कि “प्रेम कभी टलता नहीं”?

२१ पौलुस ने प्यार के बारे में जितनी बातें सिखायी हैं, हो सकता है आप हमेशा ही उन्हें पूरी तरह अमल में न ला सकें। लेकिन हिम्मत मत हारिए। धीरज धरिए और मेहनत करते रहिए। हमेशा बाइबल से सलाह लेते रहिए और दूसरों के साथ अपने रिश्‍ते में इसके उसूलों को अमल में लाने की कोशिश करते रहिए। और यहोवा परमेश्‍वर की मिसाल पर चलते रहिए। पौलुस ने इफिसियों से कहा: “एक दूसरे पर कृपाल, और करुणामय हो, और जैसे परमेश्‍वर ने मसीह में तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी एक दूसरे के अपराध क्षमा करो।”—इफिसियों ४:३२.

२२ जिस तरह कुछ समय के गुज़रने पर एक नयी भाषा में बात करना आसान हो जाता है, ठीक उसी तरह समय के गुज़रते आप पाएँगे कि दूसरों से प्यार करना भी आसान बन गया है। पौलुस हमें यकीन दिलाता है कि “प्रेम कभी टलता नहीं।” (१ कुरिन्थियों १३:८) आत्मा के चमत्कारी वरदान तो खत्म हो गए, लेकिन प्रेम कभी नहीं मिटेगा। आइए परमेश्‍वर के इस गुण को सीखते रहें और इस तरह दूसरों को प्यार दिखाते रहें, क्योंकि पौलुस ने कहा था कि यही “सब से उत्तम मार्ग” है।

क्या आप समझा सकते हैं?

◻ हम प्रेम के सहारे घमंड पर कैसे जीत हासिल कर सकते हैं?

◻ हम प्रेम के सहारे कलीसिया में शांति कैसे बनाए रख सकते हैं?

◻ हम प्रेम के सहारे कैसे धीरज धर सकते हैं?

◻ प्रेम किस तरह से “सब से उत्तम मार्ग” है?

[पेज 19 पर तसवीर]

प्रेम की वज़ह से हम अपने भाई-बहनों की कमियाँ नहीं देखेंगे

[पेज 23 पर तसवीर]

धीरज धरने का मतलब है कि परमेश्‍वर के कामों में लगे रहना

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
    लॉग-आउट
    लॉग-इन
    • हिंदी
    • दूसरों को भेजें
    • पसंदीदा सेटिंग्स
    • Copyright © 2025 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
    • इस्तेमाल की शर्तें
    • गोपनीयता नीति
    • गोपनीयता सेटिंग्स
    • JW.ORG
    • लॉग-इन
    दूसरों को भेजें