साथियों का असर—क्या यह आपके लिए फायदेमंद हो सकता है?
हम सभी में यह पैदाइशी ख्वाहिश होती है कि हमारे साथी हमें पसंद करें। हर कोई अपने साथियों को खुश करना और उनकी वाहवाही पाना चाहता है। इसलिए चाहे ज़्यादा चाहे कम, हम पर अपने साथियों का असर ज़रूर पड़ता है।
“समाज में बराबर प्रतिष्ठा के व्यक्ति को, . . . एक ही वर्ग और खासकर एक ही उम्र और दर्जे या ओहदे के . . . किसी व्यक्ति” को साथी कहा जा सकता है। कई बार हम पर साथियों का ऐसा असर होता है कि हम जाने-अनजाने में उनकी तरह ही सोचने या काम करने लगते हैं। अकसर साथियों के ऐसे असर को अच्छा नहीं माना जाता। लेकिन, जैसा हम आगे देखेंगे कि साथियों का असर हमारे लिए फायदेमंद भी हो सकता है और यह हम पर निर्भर करता है।
हर उम्र के लोगों पर असर
सिर्फ जवानों पर ही नहीं बल्कि हर उम्र के लोगों पर अपने साथियों का असर पड़ता है। और यह असर तब ज़ाहिर होता है जब हम अपने आप से ये सवाल पूछने लगते हैं: “सभी ऐसा करते हैं, तो मैं क्यों नहीं कर सकता?” “मुझे ही सबसे अलग क्यों होना पड़ता है?” “दूसरे मेरे बारे में क्या सोचेंगे?” “मुझे छोड़ मेरे बाकी सभी दोस्त प्यार-मुहब्बत करके शादी कर रहे हैं। कहीं मुझ में कुछ कमी तो नहीं है?”
हालाँकि हर उम्र के लोगों पर अपने साथियों जैसा बनने का दबाव होता है, मगर देखा गया है कि यह दबाव खासकर जवानी में बहुत ज़बरदस्त होता है। द वर्ल्ड बुक एन्साइक्लोपीडिया कहती है कि “ज़्यादातर नौजवान अपने दोस्तों के बहुत ही करीब आ जाते हैं और वे अपनी एक टोली बना लेते हैं। और उनके लिए अपने माता-पिता से ज़्यादा अपने साथियों की नज़रों में सही लगना मायने रखता है और उनकी वाहवाही पाने के लिए वे अपने आपको बदलने के लिए भी तैयार हो जाते हैं।” इसमें आगे कहा गया कि नौजवान “सोचते हैं कि अगर उनके साथी उन्हें पसंद करते हैं तो इसका मतलब है कि उनमें कोई कमी नहीं है।” इसलिए उन्हें बस “इस बात की फिक्र रहती है कि अपने साथियों का दिल जीतने के लिए अच्छे-से-अच्छे कपड़े पहनें, दूसरों पर रोब जमाएँ और डेटिंग में कामयाब हों।”
शादी-शुदा जोड़े भी अपने समाज, अपने दोस्तों या अपनी जाति की पसंद के मुताबिक कई फैसले करते हैं, जैसे कि वे किस तरह का घर खरीदेंगे या किराए पर लेंगे, गाड़ी का कौन-सा मॉडल खरीदेंगे, बच्चे पैदा करेंगे या नहीं, वगैरह वगैरह। कई परिवार तो अपने पड़ोसियों और साथियों की तरह सुख-सुविधा की चीज़ें जुटाने के लिए भारी कर्ज़ भी लेते हैं। जी हाँ, हम अपनी ज़िंदगी में जो पाना चाहते हैं, हम जिस तरह सोचते और फैसले करते हैं उससे ज़ाहिर होता है कि हम पर अपने साथियों का कितना असर हुआ है लेकिन हमें इसका एहसास तक नहीं होता। साथियों के ऐसे ज़बरदस्त असर को ध्यान में रखते हुए, क्या हम कुछ ऐसा कर सकते हैं कि यह असर हमारे लिए फायदेमंद हो और ज़िंदगी में हम जो करना चाहते हैं उसे करने में हमें मदद मिले? जी हाँ, हम ऐसा ज़रूर कर सकते हैं!
अच्छे साथियों का फायदा उठाना
डॉक्टर जानते हैं कि एक मरीज़ के आस-पास ऐसे लोगों का होना बहुत ज़रूरी है जिनके सोच-विचार अच्छे हैं और जो खुशमिज़ाज हैं। अच्छे माहौल में रहने से मरीज़ जल्दी ठीक हो सकता है। मिसाल के तौर पर, जो लोग अपंग हो जाते हैं उन्हें ऐसे लोगों की अच्छी मिसाल और हौसला बढ़ानेवाली बातों से मदद दी जाती है जो उनके जैसे ही तकलीफों से गुज़र चुके हैं। इस तरह उन्हें पहले की तरह ही ज़िंदगी जीने और जज़्बाती तौर पर सँभलने में मदद मिलती है। तो यह साफ ज़ाहिर है कि अगर हम भी खुशमिज़ाज और अच्छे आदर्श रखनेवाले साथियों से घिरे रहें तो उनका असर हमारे लिए फायदेमंद होगा।
यही उसूल मसीही कलीसिया पर भी लागू होता है। यहोवा जानता है कि अच्छे साथियों से घिरे रहना बहुत फायदेमंद है इसलिए वह अपने लोगों को नियमित रूप से एक-दूसरे के साथ इकट्ठा होने की आज्ञा देता है। परमेश्वर हमसे आग्रह करता है कि हम ‘प्रेम और भले कामों में एक दूसरे को उस्काएं और एक दूसरे को समझाएं’ यानी प्रोत्साहित करें। (इब्रानियों १०:२४, २५) इस तरह का प्रोत्साहन बहुत ज़रूरी है क्योंकि आज हम मसीहियों पर ऐसे दबाव आते हैं जिनसे हम बहुत ही निराश और दुःखी हो जाते हैं। और इसीलिए, आध्यात्मिक रूप से मज़बूत रहने के लिए हमें बहुत “यत्न” करना पड़ता है। (लूका १३:२४) और हमें अपने आध्यात्मिक भाई-बहनों के प्यार और मदद की ज़रूरत होती है जिसकी हम कदर भी करते हैं। इसके अलावा, हम में से कुछ ऐसे होंगे जिन्हें “शरीर में एक कांटा” यानी बीमारी और अपंगता जैसी तकलीफें सहनी पड़ती होंगी। (२ कुरिन्थियों १२:७) हमारे कुछ भाई-बहन शायद बुरी आदतों या मायूसी पर काबू पाने के लिए लड़ रहे होंगे या कुछ ऐसे होंगे जिन्हें अपनी सभी ज़िम्मेदारियाँ निभा पाना मुश्किल लगता होगा। इसलिए अक्लमंदी इसी में होगी कि हम उन लोगों के बीच रहें जिनका यहोवा परमेश्वर के साथ नज़दीकी रिश्ता है और जो खुशी से उसकी सेवा करते हैं। ऐसे साथी हमारे अंदर भी जोश पैदा करेंगे और ‘अन्त तक धीरज धरने’ में हमारी मदद करेंगे।—मत्ती २४:१३.
तो फिर, अगर हम अच्छे साथी चुनते हैं तो हम उनके अच्छे असर का फायदा उठा सकेंगे। हमें ऐसे साथियों से हौसला तो मिलता ही है और उस पर जब हम मसीही सभाओं में बढ़िया आध्यात्मिक भोजन लेते हैं और ज़िंदगी की मुश्किलों का सामना करना सीखते हैं तो यह हमारी हिम्मत बढ़ाने के लिए सोने पर सुहागे का काम करता है।
यह सच है कि मसीही सभाओं में जाना हमेशा आसान नहीं होता। कुछ भाई-बहनों के अविश्वासी साथी उनको बहुत कम या बिलकुल भी मदद नहीं देते, कुछ परिवारों को मीटिंग जाने के लिए बच्चों को भी तैयार करना पड़ता है तो कुछ लोगों के लिए मीटिंग में आने-जाने के लिए गाड़ी की समस्या होती है। लेकिन ज़रा सोचिए: इन मुश्किलों के बावजूद अगर आप मीटिंगों में लगातार जाते रहें तो आपकी मिसाल से उन लोगों को कितना हौसला मिलेगा जिनके हालात भी बिलकुल आप जैसे हैं। दूसरे शब्दों में, आप और आपके जैसे बाकी लोग भी न सिर्फ एक अच्छी मिसाल कायम करते हैं बल्कि अपने साथियों पर अच्छा असर डालते हैं और वह भी बिना किसी ज़ोर-ज़बरदस्ती के।
दरअसल, प्रेरित पौलुस ने भी कई मुश्किलों और रुकावटों का सामना किया। फिर भी उसने अपने मसीही भाई-बहनों को, अपनी और दूसरे अनुभवी मसीहियों की बढ़िया मिसाल पर चलने के लिए उसकाया। उसने कहा: “हे भाइयो, तुम सब मिलकर मेरी सी चाल चलो, और उन्हें पहिचान रखो, जो इस रीति पर चलते हैं जिस का उदाहरण तुम हम में पाते हो।” (फिलिप्पियों ३:१७; ४:९) पहली सदी में थिस्सलुनीके के मसीही, पौलुस की बढ़िया मिसाल पर चले। उनके बारे में पौलुस ने लिखा: “तुम बड़े क्लेश में पवित्र आत्मा के आनन्द के साथ वचन को मानकर हमारी और प्रभु की सी चाल चलने लगे। यहां तक कि मकिदुनिया और अखया के सब विश्वासियों के लिये तुम आदर्श बने।” (१ थिस्सलुनीकियों १:६, ७) उसी तरह अगर हम सही नज़रिया और अच्छा आदर्श रखें तो इसका हमारे साथियों पर अच्छा असर पड़ेगा।
बुरे असर से बचिए
अगर हम चाहते हैं कि हम पर बुरा असर न हो तो हमें ऐसे लोगों से दूर रहना है जो ‘शरीर के अनुसार चलते हैं।’ (रोमियों ८:४, ५; १ यूहन्ना २:१५-१७) नहीं तो, इनकी वज़ह से हम यहोवा की बुद्धिमानी-भरी सलाह को ठुकराकर उससे दूर चले जाएँगे। नीतिवचन १३:२० कहता है: “बुद्धिमानों की संगति कर, तब तू भी बुद्धिमान हो जाएगा, परन्तु मूर्खों का साथी नाश हो जाएगा।” क्या आप किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं जो बुरे साथियों की वज़ह से बिगड़ गया? कुछ मसीहियों पर उनके साथियों का ऐसा असर हुआ है कि वे धन-दौलत के पीछे भागने, गंदे और अनैतिक काम करने, साथ ही शराब और नशीली दवाओं के जाल में फँस गए हैं।
मसीही कलीसिया में भी, अगर हम आध्यात्मिक रूप से कमज़ोर लोगों के साथ दोस्ती करते हैं तो इनका हम पर बुरा असर पड़ सकता है। (१ कुरिन्थियों १५:३३; २ थिस्सलुनीकियों ३:१४) ये लोग खुद तो कभी आध्यात्मिक बातों की चर्चा नहीं करते और जिन्हें ऐसी बातों की चर्चा करना अच्छा लगता है उनका भी वे मज़ाक उड़ाते हैं। अगर हम इन लोगों को अपना नज़दीकी दोस्त बना लेते हैं तो जल्द ही हम भी इनकी तरह बन जाएँगे, इनके जैसा ही सोचने और व्यवहार करने लगेंगे। शायद हम ऐसे लोगों के बारे में भी बुरा सोचने लगें जो सच्चाई की दिल से कदर करते हैं और जो आध्यात्मिक बातों में तरक्की करने की कोशिश करते हैं।—१ तीमुथियुस ४:१५.
दूसरी ओर, उन लोगों से दोस्ती करना कितनी अक्लमंदी की बात होगी जो यहोवा को खुश करना चाहते हैं और आध्यात्मिक बातों के लिए बहुत ही जोशीले हैं! ऐसे साथी हमें परमेश्वर के “ज्ञान” के मुताबिक चलने में मदद करते हैं। यह ज्ञान “पहिले तो पवित्र होता है फिर मिलनसार, कोमल और मृदुभाव और दया, और अच्छे फलों से लदा हुआ और . . . कपट रहित होता है।” (याकूब ३:१७) पर इसका मतलब यह नहीं कि जो आध्यात्मिक बातों में दिलचस्पी लेते हैं वे इनके अलावा किसी और विषय पर बात ही नहीं कर पाते। सजग होइए! पत्रिका और इसके जैसी ही वॉच टावर संस्था की अन्य किताबों में अलग-अलग विषयों पर जो लेख छापे जाते हैं वे कितने दिलचस्प होते हैं। चर्चा करने के लिए अच्छे विषयों की कमी नहीं है और ऐसे अलग-अलग विषयों में दिलचस्पी दिखाकर हम साबित करते हैं कि हमें ज़िंदगी से प्यार है और यहोवा की हस्तकला बेहद पसंद है।
जिस तरह टेनिस का एक अच्छा खिलाड़ी दूसरे अच्छे खिलाड़ियों के साथ खेलकर और भी कुशल होता है उसी तरह अगर हमारे साथी अच्छे होंगे तो वे हमें मानसिक, जज़्बाती और आध्यात्मिक मायनों में उन्नति करने में मदद करेंगे। लेकिन गलत किस्म के साथी हमें कपट की ज़िंदगी जीने के लिए उकसाएँगे और हम बाहर से कुछ और होने का ढोंग करेंगे और अंदर से कुछ और होंगे। ऐसी ज़िंदगी जीने के बजाय, साफ विवेक और आत्म-सम्मान के साथ जीना कितना अच्छा होगा!
कुछ लोग जिन्हें फायदा हुआ
ज़्यादातर लोगों को बाइबल की शिक्षाएँ, साथ ही उसमें परमेश्वर की उपासना और चालचलन के बारे में दिए गए नियमों को सीखना ज़्यादा मुश्किल नहीं लगता। लेकिन हाँ, इन शिक्षाओं और नियमों को अमल में लाना उन्हें मुश्किल लग सकता है। नीचे बताए गए उदाहरण दिखाते हैं कि अच्छे साथियों का असर कैसे हमें यहोवा की सेवा तन-मन से करने में मदद दे सकते हैं।
एक साक्षी ने बताया कि कैसे अपने साथियों की मिसाल देखकर उसने अपनी ज़िंदगी का मकसद बदला। वह आज अपनी पत्नी के साथ-साथ पूरे समय प्रचार का काम कर रहा है। जब वह बड़ा हो रहा था तब उसे बुरे लोगों के असर से दूर रहने के लिए संघर्ष करना पड़ा। साथ ही, उसने ऐसे लोगों से दोस्ती की जो प्रचार काम में हिस्सा लेने और मसीही सभाओं में नियमित रूप से आने के लिए उसका हौसला बढ़ाते थे। इन दोस्तों के करीब रहने की वज़ह से वह आध्यात्मिक तरक्की करता गया।
एक और साक्षी लिखता है: “शादी के बाद मैं अपनी पत्नी के साथ दूसरे इलाके में जा बसा। वहाँ की कलीसिया में हमारी उम्र का एक जोड़ा रेगुलर पायनियरिंग कर रहा था। उनकी मिसाल भी एक वज़ह थी जिससे हमें पायनियर बनने का हौसला मिला। फिर हमने भी कलीसिया के बाकी लोगों में पायनियर सेवा के लिए जोश भरा। नतीजा यह हुआ कि कई और लोग पायनियर बन गए।”
अगर हम ऐसे लोगों के साथ उठते-बैठते हैं जिनकी ज़िंदगी का मकसद परमेश्वर की सेवा में आगे बढ़ना है तो यहोवा की आज्ञा मानना हमारे लिए आसान होगा। अच्छे साथियों के असर से मिलनेवाला यह एक और फायदा है। एक भाई ने जवानी में ही पूरे समय प्रचार का काम शुरू किया। बाद में वह सफरी ओवरसियर बना और अब वॉच टावर संस्था के एक ब्रांच ऑफिस में सेवा कर रहा है। वह लिखता है: “पूरे समय प्रचार करनेवाले सेवक हमेशा हमारे घर आया-जाया करते थे और ये मेरे बचपन की कुछ सुनहरी यादें हैं। हमारे घर में हमेशा एक मेहमान के लिए खाना तैयार रहता था। जब मैं दस साल का था तब एक सर्किट ओवरसियर ने मुझे सेवकाई के लिए एक बैग तोहफे में दी थी। उस बैग को मैंने आज तक सँभालकर रखा है।”
अपनी जवानी के दिन याद करते हुए यह भाई आगे कहता है: “कलीसिया में कई नौजवान भाई कलीसिया का काम करने के लिए हमेशा तैयार रहते थे और उनकी मिसाल देखकर हम बाकी लड़के भी उन्हीं की तरह बनना चाहते थे।” अच्छे साथियों ने इस भाई को सही तरह से बढ़ने और एक अच्छा मसीही बनने में मदद की, वैसे ही जैसे एक अंकुर फूटकर धीरे-धीरे एक बड़ा पेड़ बन जाता है। माता-पिताओ, क्या आप अपने घर में ऐसे लोगों को बुलाते हैं जिनके साथ मिलने-जुलने से आपके बच्चों पर अच्छा असर पड़ सकता है?—मलाकी ३:१६.
माना कि हम में से हर कोई इन लोगों की तरह पूरा समय प्रचार का काम नहीं कर सकता। लेकिन कम-से-कम हम सब यहोवा को “अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ” प्रेम कर सकते हैं। (मत्ती २२:३७) यहोवा के लिए ऐसा प्यार बढ़ाने, और इस तरह आगे चलकर हमेशा की ज़िंदगी पाने में हमारे साथियों का बहुत बड़ा हाथ होता है।
भजनहार ने ज़िंदगी में सही मायनों में कामयाब होने के लिए एक सरल लेकिन असरदार बात बताई: “क्या ही धन्य है वह पुरुष जो दुष्टों की युक्ति पर नहीं चलता, और न पापियों के मार्ग में खड़ा होता; और न ठट्ठा करनेवालों की मण्डली में बैठता है! परन्तु वह तो यहोवा की व्यवस्था से प्रसन्न रहता; और उसकी व्यवस्था पर रात दिन ध्यान करता रहता है। वह उस वृक्ष के समान है, जो बहती नालियों के किनारे लगाया गया है। और अपनी ऋतु में फलता है, और जिसके पत्ते कभी मुरझाते नहीं। इसलिये जो कुछ वह पुरुष करे वह सफल होता है।”—भजन १:१-३.
यह क्या ही बढ़िया वादा है! हालाँकि हम असिद्ध हैं और गलतियाँ करते हैं, मगर फिर भी हम ज़िंदगी में कामयाब हो सकते हैं। ऐसा तभी हो सकता है अगर हम यहोवा की बतायी हुई राह पर चलें और उसने हमें अच्छे साथियों की जो दौलत दी है, यानी हमारे “भाई जो [पूरे] संसार में हैं,” उनके अच्छे असर का हम पूरा-पूरा फायदा उठाएँ।—१ पतरस ५:९.
[पेज 24 पर तसवीर]
अच्छे साथी कलीसिया में मिलते हैं
[पेज 25 पर तसवीर]
माता-पिताओ, अपने बच्चों को उकसाइए कि वे हमेशा अच्छे लोगों से दोस्ती करें