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  • मरियम “उत्तम भाग” चुनती है
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1999
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1999
w99 9/1 पेज 30-31

उन्होंने यहोवा की इच्छा पूरी की

मरियम “उत्तम भाग” चुनती है

यीशु के ज़माने में रब्बियों ने अपनी परंपराओं से यहूदी स्त्रियों पर कई पाबंदियाँ लगा रखी थीं। स्त्रियों को मूसा की व्यवस्था पढ़ने से मना किया गया था। मिशनाह में तो यह भी कहा गया था: “अगर कोई अपनी बेटी को व्यवस्था पढ़ाता है तो यह उसे बदचलनी सिखाने के बराबर है।”—सोतह ३:४.

इसलिए पहली सदी की ज़्यादातर यहूदी स्त्रियाँ इतनी पढ़ी-लिखी नहीं थीं। दि ऐंकर बाइबल डिक्शनरी कहती है, “यीशु ही वो पहला गुरू था जिसने यहूदी स्त्रियों को अपना शिष्य बनने दिया। इस बात का कोई सबूत नहीं कि उससे पहले किसी और बड़े गुरू ने स्त्रियों को अपना शिष्य बनने की इजाज़त दी हो। स्त्रियों को सिर्फ अपने बच्चों को सिखाने की इजाज़त थी और किसी गुरू के साथ जगह-जगह जाकर लोगों को प्रचार करने की बात तो वे सोच भी नहीं सकती थीं।” स्त्रियों को इतना तुच्छ समझा जाता था कि धर्म के ठेकेदारों ने यह कानून तक बना दिया था कि अगर कोई पुरुष सबके सामने किसी स्त्री से बात करेगा तो यह उस पुरुष के लिए शर्म की बात होगी!

लेकिन यीशु ने इन नियमों को नहीं माना क्योंकि ये नियम परमेश्‍वर की मरज़ी के खिलाफ थे। यीशु के शिष्यों में स्त्री और पुरुष दोनों थे। (लूका ८:१-३) एक बार मार्था और मरियम ने यीशु को अपने घर बुलाया। (लूका १०:३८) ये दोनों, लाज़र की बहने थीं और ये तीनों भाई-बहन यीशु के शिष्य और उसके अच्छे दोस्त भी थे। (यूहन्‍ना ११:५) जब लाज़र की मौत हुई तो मार्था और मरियम को तसल्ली देने के लिए बहुत सारे लोग आए, इससे लगता है कि लाज़र के परिवार की गाँव में काफी इज़्ज़त रही होगी। यीशु जब एक मेहमान बनकर मार्था और मरियम के घर आया तब उनके घर में जो हुआ उससे न सिर्फ उन्हें फायदा हुआ, बल्कि हमें भी एक ज़रूरी सबक सीखने को मिलता है।

यीशु के पाँवों के पास बैठकर सीखना

इसमें कोई शक नहीं कि मार्था और मरियम, यीशु को एक बहुत बढ़िया दावत देना चाहती थीं और शायद ऐसा करने की उनकी हैसियत भी थी। (यूहन्‍ना १२:१-३ से तुलना कीजिए।) लेकिन जब उनका मेहमान, यीशु उनके घर आया तो मरियम “प्रभु के पांवों के पास बैठकर उसका वचन” सुनने लगी। (लूका १०:३९) उसमें यीशु के वचनों को सुनने की प्यास थी और यीशु ने उस वक्‍त की परंपराओं की परवाह किए बिना उसे सिखाया! हम मन में यह तस्वीर खींच सकते हैं कि किस तरह मरियम यीशु के सामने एक शिष्य की तरह बैठी है और ध्यान लगाकर अपने गुरू की बातें सुन रही है।—व्यवस्थाविवरण ३३:३; प्रेरितों २२:३ से तुलना कीजिए।

लेकिन मार्था लज़ीज़ खाना तैयार करने के लिए “तरह तरह की तैयारियों में लगी” हुई है। इसलिए वह काफी व्यस्त है। मगर यह देखकर उसका माथा ठनक जाता है कि सारा काम वह अकेली कर रही है और मरियम यीशु के पाँवों के पास बैठकर सिर्फ उसकी बातें सुन रही है! इसलिए वह तुरंत यीशु के पास आती है और शायद उसकी बात को काटते हुए कहती है: “हे प्रभु, क्या तुझे चिंता नहीं है कि मेरी बहन ने सारा काम बस मुझ ही पर डाल दिया है? इसलिए उससे मेरी सहायता करने को कह।”—लूका १०:४०, ईज़ी टू रीड वर्शन।

मार्था की यह गुज़ारिश अपने-आप में गलत नहीं थी। आखिर, सभी लोगों के लिए खाना बनाना कोई आसान काम तो नहीं था और सारा बोझ बस एक जन पर ही नहीं पड़ना चाहिए था। लेकिन यीशु ने सोचा कि मार्था की इस बात को लेकर एक अच्छी बात सिखाई जा सकती है। उसने कहा, “मार्था, हे मार्था; तू बहुत बातों के लिए चिन्ता करती और घबराती है। परन्तु एक बात (“थोड़ी या एक ही वस्तु,” फुटनोट) अवश्‍य है, और उस उत्तम भाग को मरियम ने चुन लिया है: जो उस से छीना न जाएगा।”—लूका १०:४१, ४२.

यीशु यह नहीं कह रहा था कि मार्था को आध्यात्मिक बातों में दिलचस्पी नहीं है। उसे मालूम था कि मार्था परमेश्‍वर के लिए गहरी भक्‍ति रखती है।a आखिर, इसीलिए तो उसने यीशु को अपने घर बुलाया था। लेकिन यीशु प्यार से मार्था को यही समझाना चाहता था कि बढ़िया खाना बनाने की चिंता में वह परमेश्‍वर के पुत्र के पास बैठकर उसके वचन सुनने का सुनहरा मौका गँवा रही है।

यह सच है कि उस समाज में स्त्रियों से सिर्फ यही उम्मीद की जाती थी कि वे अपना घर-बार अच्छी तरह सँभालें। लेकिन यीशु ने जो कहा उससे ज़ाहिर हुआ कि पुरुषों की तरह स्त्रियाँ भी परमेश्‍वर के पुत्र के पाँवों के पास बैठकर उसके वचन सुन सकती हैं, जिससे उन्हें जीवन मिलेगा! (यूहन्‍ना ४:७-१५; प्रेरितों ५:१४) इसलिए अगर मार्था खाने के लिए सिर्फ कुछ ही चीज़ें या फिर एक ही चीज़ बनाती तो उसके लिए बहुत अच्छा होता क्योंकि ऐसा करने से उसे अपने गुरू के पाँवों के पास बैठकर सीखने का मौका तो मिलता।—मत्ती ६:२५ से तुलना कीजिए।

हमारे लिए सबक

आज भी यीशु लोगों को “जीवन का जल सेंतमेंत” लेने के लिए बुला रहा है। और इस जल को पाने के लिए पुरुष और स्त्रियाँ दोनों ही यीशु के पास आ रहे हैं। (प्रकाशितवाक्य २२:१७) इनमें से कुछ लोग मार्था की तरह हैं, जो जी-जान से भाई-बहनों की सेवा करके उनके लिए अपना प्यार दिखाते हैं। ज़रूरत पड़ने पर वे फौरन अपने भाइयों की मदद करते हैं। उनकी इस प्यार-भरी सेवा के लिए यहोवा उन्हें आशीष देने का वादा करता है। (इब्रानियों ६:१०; १३:१६) कुछ लोग शायद मरियम की तरह हों। वे ज़्यादातर शांत रहते हैं और आध्यात्मिक बातों के बारे में सोचते रहते हैं। वे परमेश्‍वर के वचन पर गहराई से मनन करते हैं और इसलिए विश्‍वास में मज़बूती से जड़ पकड़ने में उन्हें मदद मिलती है।—इफिसियों ३:१७-१९.

मसीही कलीसिया में इन दोनों तरह के लोगों की बराबर ज़रूरत है। मगर, कलीसिया के सभी लोगों को ‘उत्तम भाग चुनना’ चाहिए, यानी आध्यात्मिक बातों को सबसे ज़्यादा अहमियत देनी चाहिए। अगर हम उत्तम से उत्तम बातों को प्रिय जानेंगे तो यहोवा हमसे खुश होगा और हमें आशीष देगा।—फिलिप्पियों १:९-११.

[फुटनोट]

a मार्था को आध्यात्मिक बातों में गहरी दिलचस्पी थी और उसका विश्‍वास बहुत मज़बूत था। यह मार्था की उन बातों से ज़ाहिर होता है जो उसने अपने भाई, लाज़र की मौत के बाद यीशु से कहीं। उस वक्‍त अपने गुरू से मिलने के लिए वही पहले गई।—यूहन्‍ना ११:१९-२९.

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