गिलियड स्कूल मिश्नरियों को “पृथ्वी की छोर तक” भेजता है
वॉच टावर बाइबल स्कूल ऑफ गिलियड पचास से भी ज़्यादा सालों से मिश्नरियों को प्रचार करने के लिए दुनिया के कोने-कोने में भेज रहा है। सितंबर ११, १९९९ का दिन गिलियड की १०७वीं क्लास का ग्रैजुएशन दिन था। उस क्लास में ११ देशों से आए ४८ विद्यार्थी थे। ट्रेनिंग के बाद उन्हें २४ देशों में प्रचार करने के लिए भेजा गया। ये मिश्नरी दूसरे हज़ारों मिश्नरियों की तरह दुनिया के कोने-कोने में जाकर प्रचार करेंगे। इस तरह वे यीशु के उन आखिरी शब्दों को पूरा करने में अहम भूमिका अदा करेंगे जो उसने स्वर्ग वापस जाने से पहले कहे थे। तब यीशु ने भविष्यवाणी की थी कि उसके शिष्य “पृथ्वी की छोर तक” जाकर उसकी गवाही देंगे।—प्रेरितों १:८.
ग्रैजुएशन प्रोग्राम न्यू यॉर्क के पैटरसन में वॉच टावर ऐजूकेशनल सॆंटर में रखा गया था। यह एक बहुत ही शानदार प्रोग्राम था और आस-पास का नज़ारा भी देखने में बहुत खूबसूरत था। सभी विद्यार्थियों के चेहरे मुस्कुराहट से खिले हुए थे। और इस खुशी के मौके पर उनके रिश्तेदार और दोस्त भी आए हुए थे। ब्रुकलिन और वॉलकिल ब्राँच से भी भाई-बहनों ने ऑडियो और विडियो के ज़रिए इस प्रोग्राम का आनंद लिया। कुल मिलाकर प्रोग्राम की हाज़िरी ४,९९२ थी।
वफादारी से यहोवा और पड़ोसी की सेवा कीजिए
पहले भाषण का विषय था, “यहोवा की तरफ कौन है?” इस भाषण को ग्रैजुएशन प्रोग्राम के चेयरमैन और गवर्निंग बॉडी के सदस्य, भाई कैरी बार्बर ने दिया था। उन्होंने बताया कि मूसा के दिनों के इस्राएलियों को भी इस सवाल का जवाब देना पड़ा था। विद्यार्थियों और हाज़िर लोगों को याद दिलाया गया कि किस तरह ज़्यादातर इस्राएली यहोवा की तरफ नहीं बने रहे और इसलिए उन्हें वीराने में ही अपनी जान गँवानी पड़ी। उन इस्राएलियों ने मूर्ति-पूजा की, फिर “बैठकर खाया पिया, और उठकर खेलने लगे।” (निर्गमन ३२:१-२९) मसीहियों को भी इस खतरे से होशियार करते हुए यीशु ने कहा था: “सावधान रहो, ऐसा न हो कि तुम्हारे मन खुमार और मतवालेपन, और इस जीवन की चिन्ताओं से सुस्त हो जाएं, और वह दिन तुम पर फन्दे की नाईं अचानक आ पड़े।”—लूका २१:३४-३६.
दूसरा भाषण, राइटिंग डिपार्टमेंट के सदस्य, भाई जीन स्मॉली ने दिया। उनके भाषण का विषय था, “क्या आप एक दर्द-निवारक दवा साबित होंगे?” कुलुस्सियों ४:११ में पौलुस ने कहा कि कलीसिया के भाई-बहन उसके लिए “शान्ति का कारण” थे। यह बताने के लिए कि वे “शान्ति का कारण” थे, पौलुस ने यूनानी शब्द पारीगोरीआ का इस्तेमाल किया। और इसी यूनानी शब्द से अँग्रेज़ी शब्द, “पैरागॉरिक” निकला है, जो दर्द से राहत दिलानेवाली एक दवा का नाम है। न्यू वर्ल्ड ट्रान्सलेशन बाइबल में इस शब्द का अनुवाद “हौसला बढ़ानेवाले” किया गया है।
अब ग्रैजुएशन के बाद, जब ये विद्यार्थी मिश्नरी के रूप में पृथ्वी के कोने-कोने तक पहुँचेंगे तो वे भी कलीसिया के भाई-बहनों के लिए दर्द से राहत दिलानेवाली दवा की तरह काम आ सकते हैं। इसके लिए ज़रूरी है कि वे दूसरे मिश्नरियों के साथ मिलकर नम्रता से अपनी कलीसिया के भाई-बहनों की सेवा करें और मुसीबतों में उनकी हौसला-अफज़ाई करें।
तीसरा भाषण, गवर्निंग बॉडी के सदस्य, भाई डैनियल सिड्लिक ने दिया। उनके भाषण का विषय था, “सुनहरे नियम को मानना।” यह नियम हम मत्ती ७:१२ में पाते हैं जहाँ यीशु ने कहा है: “जो कुछ तुम चाहते हो, कि मनुष्य तुम्हारे साथ करें, तुम भी उन के साथ वैसा ही करो।” भाई सिड्लिक ने समझाया कि इस नियम को मानने का मतलब दूसरों को नुकसान पहुँचाने से दूर रहना ही नहीं बल्कि उनकी भलाई करना भी है।
उन्होंने आगे कहा कि इस नियम पर चलने के लिए तीन बातें बहुत ज़रूरी हैं। पहली, दूसरों का दर्द समझना, दूसरी, हमदर्दी जताना और तीसरी, उनकी मदद के लिए हमेशा तैयार रहना। आखिर में भाई सिड्लिक ने कहा: “जब हमारे अंदर दूसरों की मदद करने की इच्छा पैदा होती है, तो हमें मदद करने के लिए फौरन आगे बढ़ना चाहिए। जैसा व्यवहार दूसरों से हम चाहते हैं, वैसा ही व्यवहार हमें दूसरों के साथ करने के लिए कुछ-न-कुछ त्याग करना पड़ेगा।” और इस तरह की त्याग की भावना खासकर मिश्नरियों में होना बेहद ज़रूरी है क्योंकि वे दूसरे देशों में जाकर लोगों को सच्चे मसीही धर्म पर चलना सिखाएँगे।
शिक्षकों की प्यार भरी हिदायतें
गिलियड स्कूल के एक शिक्षक भाई, कार्ल ऐडम्स ने एक जोशीला भाषण दिया जिसका विषय था, “आगे बढ़ते चलो।” विद्यार्थियों को किन बातों में आगे बढ़ते रहने के लिए कहा गया? सबसे पहले, ज्ञान हासिल करने और उस पर अमल करने में। स्कूल में विद्यार्थियों को सिखाया गया था कि जब वे बाइबल में किसी घटना के बारे में पढ़ते हैं तो उसे अच्छी तरह समझने के लिए रिसर्च कैसे करें जिससे वे जान सकें कि वह घटना कब और किन हालात में लिखी गई थी। उन्हें यह भी बताया गया था कि बाइबल में दी गई हर घटना का उनकी ज़िंदगी से कुछ-न-कुछ ताल्लुक है इसलिए उन्हें उसे समझने की कोशिश करनी चाहिए। उन्हें बताया गया था कि वे रिसर्च करना कभी न छोड़ें।
भाई ऐडम्स ने कहा, “दूसरी बात यह है कि आपको प्रेम दिखाने में आगे बढ़ते रहना है। प्रेम एक पौधे की तरह है जिसे रोज़ पानी दिया जाए तो वह बढ़ता रहेगा। और अगर पानी देना छोड़ दें, तो वह सूखकर मर जाएगा।” (फिलिप्पियों १:९) उन्होंने विद्यार्थियों को बताया कि वे अब मिश्नरी बन गए हैं और उन्हें अलग-अलग हालात में प्रेम दिखाने में आगे बढ़ते जाना है। तीसरी बात है: “हमारे प्रभु, और उद्धारकर्त्ता यीशु मसीह के अनुग्रह और पहचान में बढ़ते जाओ।” (२ पतरस ३:१८) भाई ने कहा: “यहोवा ने अपने बेटे के ज़रिए हमें जो प्रेम दिखाया है, वह वाकई बेमिसाल है। हमें परमेश्वर के इस प्रेम के लिए हमेशा कदरदानी दिखाते रहने की ज़रूरत है, तभी हम परमेश्वर की इच्छा पर चलने में और मिश्नरी सेवा में ज़्यादा खुशी पा सकेंगे।”
गिलियड के एक और शिक्षक, भाई मार्क नूमैर के भाषण का विषय था, “अगर आप में प्रेम होगा तो मुश्किलों से लड़ने की हिम्मत भी होगी।” उन्होंने सलाह दी: “मिश्नरी सेवा में आपके सामने जो भी समस्या आए उसका सामना करने के लिए तैयार रहना सीखिए तभी आप इसमें कामयाब हो सकते हैं। यहोवा उन्हीं लोगों को सुधारना चाहता है जिन्हें वह प्यार करता है। अगर आपको कोई भाई सलाह दे तो आपको लग सकता है कि उसकी सलाह बेमतलब की है या आप सोचें कि वह भाई तो आपकी नुक्ताचीनी कर रहा है। लेकिन अगर हम यहोवा से प्यार करते हैं और उसके साथ अपना रिश्ता बनाए रखना चाहते हैं, तो हम हर सलाह को दिल से कबूल करेंगे।”
भाई नूमैर ने बताया कि मिश्नरी सेवा में प्रचार के अलावा और भी बहुत से काम शामिल हैं। “लेकिन अगर आपको परमेश्वर से प्यार नहीं है तो आप ये काम सिर्फ अपनी ड्यूटी समझकर करेंगे और इससे आपको खुशी नहीं मिलेगी। यहोवा और अपने मिश्नरी भाई-बहनों से प्यार नहीं, तो मिश्नरी होम में किए जानेवाले सभी घरेलू काम उबाऊ लगेंगे, चाहे वह फल धोना हो या खाना पकाना, खरीददारी करना हो या पानी उबालना। ये काम करते वक्त आपको खुद से पूछना चाहिए, ‘आखिर मैं ये काम क्यों कर रहा हूँ?’ अगर आपका जवाब होता है, ‘मैं ये काम अपने मिश्नरी भाई-बहनों की खातिर कर रहा हूँ क्योंकि मैं चाहता हूँ कि वे सेहतमंद और खुश रहें।’ तो आपको ये सारे काम मुश्किल नहीं लगेंगे।” आखिर में उन्होंने हौसला बढ़ाते हुए कहा: “अगर आप परमेश्वर से प्यार करते हैं तो आप मिश्नरी सेवा में ज़रूर कामयाब होंगे। चाहे आपको सलाह कुबूल करनी पड़े या मिश्नरी सेवा का कोई वादा निभाना पड़े, गलत-फहमियाँ दूर करनी पड़ें या फिर दूसरा और कोई भी काम क्यों न हो आप कैसे भी हालात का सामना कर पाएँगे। मिश्नरी सेवा में कामयाब होने का राज़ प्रेम है क्योंकि ‘प्रेम कभी टलता नहीं।’”—१ कुरिन्थियों १३:८.
गिलियड स्कूल के शिक्षक, भाई वॉलस लिवरन्स ने अगला भाषण दिया। इसमें कई प्रदर्शन दिखाए गए थे कि जब गिलियड के विद्यार्थियों ने वहाँ की कलीसियाओं के भाई-बहनों के साथ मिलकर प्रचार काम किया तो उन्हें कौन-से अच्छे अनुभव हुए। मिश्नरी स्कूल से मिल रही ट्रेनिंग का इस्तेमाल करके उन्होंने न सिर्फ घर-घर जाकर प्रचार किया बल्कि पार्किंग की जगहों में, पब्लिक लॉन्ड्री, रेल्वे स्टेशनों और दूसरी जगहों में भी जाकर साक्षी दी।
तजुर्बेकार मिश्नरियों द्वारा हौसला-अफज़ाई
जब नए मिश्नरी विदेश जाते हैं तो क्या उन्हें चिंता करने की ज़रूरत है कि वे मिश्नरी सेवा में कामयाब होंगे या नहीं? विदेश में सेवा करते वक्त जो मुश्किलें आएँगी, क्या वे उनका सामना कर पाएँगे? नए मिश्नरियों की मदद करने के लिए ब्राँच ऑफिस क्या करते हैं? ऐसे कई सवालों का जवाब देने के लिए सर्विस डिपार्टमेंट के भाई स्टीवन लॆट और राइटिंग डिपार्टमेंट के भाई डेविड स्प्लॆन ने ब्राँच कमिटी के कुछ सदस्यों का इंटरव्यू लिया जो वॉच टावर एजूकेशनल सॆंटर में ब्राँच स्कूल के लिए आए हुए थे। जिन देशों के ब्राँच कमिटी के भाइयों का इंटरव्यू लिया गया था वे देश हैं, स्पेन, हॉन्ग कॉन्ग, लाइबीरिया, बेनिन, मैडागास्कर, ब्राज़िल और जापान।
ब्राँच कमिटी के इन भाइयों को यहोवा की सेवा में काफी तजुर्बा है। इनमें से ज़्यादातर भाइयों ने कई साल मिश्नरी सेवा भी की है। उन्होंने ग्रैजुएशन कर रहे विद्यार्थियों, वहाँ हाज़िर उनके माता-पिताओं और रिश्तेदारों की हिम्मत बँधाई। ब्राँच कमिटियों के ये भाई न सिर्फ तजुर्बेकार हैं बल्कि वे दूसरे मिश्नरियों के साथ भी रहे हैं इसलिए उन्होंने बताया कि किस तरह मिश्नरी सेवा में आनेवाली समस्याओं का सामना किया जा सकता है। मैडागास्कर के मिशनरी, भाई राइमो क्वोकानेन ने बताया कि मिश्नरियों को शायद बड़ी-बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़े “मगर उन्हें हल किया जा सकता है और संस्था भी हमारी मदद करती है।” ब्राज़िल में सेवा कर रहे एक मिश्नरी, ऊस्टन गस्टावसौन ने कहा कि “मिश्नरी का काम हमने खुद नहीं चुना बल्कि यह काम हमें सौंपा गया है इसलिए इसमें टिके रहने के लिए हमें जी-जान से कोशिश करनी चाहिए।” जापान के मिश्नरी भाई, जेम्स लिंटन ने बताया कि किस बात ने उन्हें इस सेवा में टिके रहने में मदद की। उन्होंने कहा, “तजुर्बेकार मिश्नरियों के साथ रहकर” उन्होंने काफी कुछ सीखा। मिश्नरी सेवा में वाकई खुशी मिलती है क्योंकि इसमें यहोवा की सेवा करने और उसकी भेड़ों की देखभाल करने का सुअवसर जो मिलता है।
उस बीमारी से दूर रहना जो आध्यात्मिक तरीके से जानलेवा है
आखिरी भाषण, गवर्निंग बॉडी के सदस्य, भाई थियोडोर जारेज़ ने दिया। इस भाई ने भी १९४६ में गिलियड स्कूल की सातवीं कक्षा से ग्रैजुएशन किया था। उनके भाषण का विषय था, “मुसीबतों का सामना करते हुए परमेश्वर की राह पर चलते रहना।” उन्होंने कहा कि आज दुनिया में बहुत-सी भयानक घटनाएँ नज़र आ रही हैं लेकिन सच तो यह है कि बहुत सी ऐसी भयानक घटनाएँ भी हैं जो आज इंसान को पीड़ित तो कर रही हैं मगर ये नज़र नहीं आतीं।
भजन ९१ से भाई जारेज़ ने बताया कि इस भजन में ज़िक्र की गई “मरी” और “महारोग” कौन सा है जिसकी वज़ह से दुनिया के लाखों लोग आध्यात्मिक रूप से बीमार होकर जान गँवा रहे हैं। उन्होंने बताया कि शैतान और उसके संसार ने दुनियावी ज्ञान और धन-दौलत के लालच को बढ़ावा दिया है और यह एक मरी या महारोग की तरह फैलता चला जा रहा है। इस रोग ने लोगों को आध्यात्मिक तौर पर मौत के घाट उतार दिया है। लेकिन खुशी की बात है कि यहोवा हमें यकीन दिलाता है कि यह रोग ऐसे किसी भी व्यक्ति को नहीं लगेगा “जो परमप्रधान के छाए हुए स्थान में बैठा” रहता है।—भजन ९१:१-७.
भाई जारेज़ ने कहा कि “विश्वास को मज़बूत बनाए रखना और परमप्रधान के अनुग्रह में बने रहना एक चुनौती हो सकता है। हमें ठट्ठा करनेवालों की तरह नहीं होना चाहिए क्योंकि वे परमेश्वर की इच्छा पर नहीं चलते। लेकिन आज परमेश्वर की राह पर बने रहना एक बहुत बड़ी चुनौती है। और यह चुनौती यहोवा के संगठन में हर किसी के सामने है। ज़ाहिर है कि आपको भी मिश्नरी सेवा में इस चुनौती का सामना करना पड़ेगा।” (यहूदा १८, १९) भाई ने सभी विद्यार्थियों की हिम्मत बँधाते हुए कहा कि किसी भी मुश्किल के बावजूद वे परमेश्वर के साथ अपना रिश्ता मज़बूत बनाए रख सकते हैं और मिश्नरी सेवा में ज़रूर कामयाब हो सकते हैं। उन्हें यह भी बताया गया कि अपना विश्वास मज़बूत बनाए रखने के लिए उन्हें क्या करना होगा। मिसाल के तौर पर, उन्हें रूस, एशिया और अफ्रीका के देशों में रहनेवाले भाई-बहनों पर विचार करने के लिए बताया गया था। इन देशों में प्रचार काम पर पाबंदी लगी हुई है, साक्षियों को बेदर्दी से सताया जाता है, उनका मज़ाक उड़ाया जाता है, उन पर झूठे इल्ज़ाम भी लगाए जाते हैं। और इन देशों में ज़्यादा से ज़्यादा लोग नास्तिक बन रहे हैं इसलिए यहाँ प्रचार करना बहुत मुश्किल हो गया है। और कुछ भाई-बहन तो बहुत ही गरीब हैं और जाति-भेद के नाम पर होनेवाली लड़ाइयों की वज़ह से उन्हें कई मुश्किलें झेलनी पड़ती है। लेकिन इन सताहटों के बावजूद वे भाई-बहन धीरज धरते हुए यहोवा की सेवा में लगे हुए हैं।
जब हम आध्यात्मिक बातों में ढीले पड़ने लगते हैं तो “यह जानने की ज़रूरत होगी कि हमारी समस्या की जड़ क्या है और फिर परमेश्वर के वचन के ज़रिए उस पर काबू पाने की कोशिश करनी चाहिए।” इस बात को समझाने के लिए बाइबल की मिसालें दी गईं। यहोशू को बताया गया था कि वह व्यवस्था की अपनी किताब रोज़ाना पढ़ा करे। (यहोशू १:८) योशिय्याह राजा के दिनों में जब व्यवस्था की किताब मिली तो लोगों ने उसमें दी गई हिदायतों को पढ़कर उनके मुताबिक काम किया, तब यहोवा ने उन को आशीष दी। (२ राजा २३:२, ३) तीमुथियुस बालकपन से ही पवित्र-शास्त्र की बातों से वाकिफ था। (२ तीमुथियुस ३:१४, १५) बिरीया के लोग परमेश्वर के वचन को न सिर्फ ध्यान से सुनते थे बल्कि वे उसकी जाँच भी करते थे। इसलिए उन्हें “भले” लोग कहा गया है। (प्रेरितों १७:१०, ११) और सबसे बड़ी मिसाल तो यीशु मसीह की है, जो परमेश्वर के वचन से अच्छी तरह वाकिफ था और हमेशा उसका इस्तेमाल भी करता था।—मत्ती ४:१-११.
आखिर में, भाई जारेज़ ने सभी नए मिश्नरियों का हौसला बढ़ाते हुए कहा: “अब आप मिश्नरी सेवा शुरू करने के लिए तैयार हैं। आप विदेश जानेवाले हैं, सचमुच आप दुनिया के कोने-कोने में जा रहे हैं। अगर आप आध्यात्मिक रूप से ज़िंदा रहने की चुनौती को पूरा करेंगे तो आप ज़रूर अपनी मंज़िल पा लेंगे। कोई बात आपके आड़े नहीं आ सकती। आप पूरे जोश के साथ प्रचार करेंगे और दूसरे भी आपके विश्वास की मिसाल पर चलने के लिए आगे बढ़ेंगे। हम आपके लिए दुआ करेंगे कि आप जिन लोगों को सिखाएँगे उन्हें भी यहोवा आध्यात्मिक रूप से ज़िंदा करे जिस तरह उसने हमें ज़िंदा किया है। तब और भी ज़्यादा से ज़्यादा लोग उस आध्यात्मिक रोग से बच पाएँगे जो पूरी दुनिया में फैल रहा है। वे भी हमारी भीड़ में शामिल हो जाएँगे और यहोवा की इच्छा पूरी करेंगे। इस मुकाम तक पहुँचने में यहोवा आपके साथ रहे!”
इसके बाद चेयरमैन ने नए मिश्नरियों को दुनिया के अलग-अलग देशों से भेजी गई शुभकामनाएँ पढ़कर सुनाईं। इसके बाद उनको डिप्लोमा दिया गया। फिर विद्यार्थियों की एक चिट्ठी पढ़कर सुनाई गई जो उन्होंने गिलियड स्कूल के लिए अपनी कदरदानी ज़ाहिर करते हुए लिखी थी। वे यहोवा और उसके संगठन के कितने शुक्रगुज़ार थे कि उन्हें यह खास ट्रेनिंग दी गई और उन्हें मिश्नरी बनाकर भेजा जा रहा है, जिससे कि वे गवाही देने के लिए “पृथ्वी की छोर तक” तक जा सकें!—प्रेरितों १:८.
[पेज 29 पर बक्स]
कक्षा के आँकड़े
जितने देशों से विद्यार्थी आए: ११
जितने देशों में भेजे गए:२४
विद्यार्थियों की संख्या: ४८
विवाहित दंपत्तियों की संख्या: २४
औसत उम्र: ३४
सच्चाई में बिताए औसत साल: १७
पूर्ण-समय सेवकाई में औसत साल: १२
[पेज 26 पर तसवीर]
वॉच टावर बाइबल स्कूल ऑफ गिलियड की १०७वीं क्लास
नीचे दी गयी सूची में, पंक्तियों का क्रम आगे से पीछे की ओर है और हर पंक्ति में नाम बाएँ से दाएँ दिए गए हैं।
१. पेरॉल्टा, सी.; हॉलनबेक, बी.; शॉ, आर.; हसान, ऐन.; मार्टिन, डी.; हच्चिन्सन, ए. २. एडवर्डस्, एल.; वीज़र, टी.; सेरूटी, क्यू.; एन्टज़्मिंगर, जी.; डालोयीज़, एल.; बाल्येरी, एल.; ३. नाइट, पी.; क्राउज़, ए.; कज़स्की, डी.; रोस, एम.; फ्रीड्ल, के.; न्येटो, आर. ४. रोस, ई.; बैकस, टी.; टैली, एस.; ऊन्बर, डी.; बर्नहार्ट, ए.; पेरॉल्टा, एम. ५. डालोयीज़, ए.; ऊन्बर, डी.; डन्न, एच.; गैटलिंग, जी.; शॉ, जे.; सेरूटी, एम. ६. बाल्येरी, एस.; क्राउज़, जे.; हॉलनबेक, टी.; मार्टिन, एम.; बर्नरार्ट, जे.; हच्चिन्सन, एम. ७. बैकस, ए.; डन्न, ओ.; गैटलिंग, टी.; वीज़र, आर.; नाइट, पी.; हसान, ओ. ८. न्येटो, सी.; टैली, एम; फ्रीड्ल, डी.; कज़स्की, ए.; एडवर्डस्, जे.; एन्टज़्मिंगर, एम.