जीवन कहानी
कहीं पर भी यहोवा की सेवा करने के लिए तैयार
इससे पहले मैं कभी प्रचार में अकेले नहीं गया था। मैं इतना घबराता था कि हर बार जब मैं प्रचार के लिए जाता, मेरे पैर काँपते थे। और-तो-और, ज़्यादातर लोग हमारे संदेश में बिलकुल दिलचस्पी नहीं लेते थे, जिस वजह से प्रचार करना मेरे लिए और मुश्किल हो गया। कुछ लोग तो बहुत गुस्सा हो जाते थे और मुझे पीटने की धमकी भी देते थे। अपनी पायनियर सेवा के उस पहले महीने, मैं प्रचार में सिर्फ एक बुकलेट ही दे पाया था!—मारकुस।
यह थी सन् 1949 की बात, आज से 60 से भी ज़्यादा साल पहले की बात। लेकिन मेरी कहानी इससे कई साल पहले शुरू हुई थी। मेरे पिता, हेनड्रिक, नेदरलैंड्स के ड्रेन्थे प्रांत के उत्तरी इलाके में बसे डोनडरन नाम के एक छोटे-से गाँव में मोची और माली का काम करते थे। सन् 1927 में मेरा जन्म उसी गाँव में हुआ था। मैं सात बच्चों में से चौथे नंबर पर था। हमारा घर एक कच्ची सड़क से सटकर था। हमारे ज़्यादातर पड़ोसी किसान थे और मुझे किसान की ज़िंदगी बहुत पसंद थी। सन् 1947 में, जब मैं 19 साल का था, तब मेरे एक पड़ोसी ने मुझे सच्चाई के बारे में बताया। उसका नाम था टयूनेस बेन। मुझे याद है जब मैं पहली बार टयूनेस से मिला था, तो वह मुझे अच्छा नहीं लगा था। लेकिन दूसरे विश्व युद्ध के कुछ ही समय बाद, वह यहोवा का साक्षी बन गया और मैंने गौर किया कि वह पहले के मुकाबले काफी मिलनसार हो गया था। मैं जानना चाहता था कि आखिर किस वजह से उसमें यह बदलाव आया, इसलिए जब उसने मुझे बताया कि परमेश्वर ने वादा किया है कि वह इस धरती को फिरदौस बना देगा, तो मैंने उसकी बात सुनी। मैंने जल्द ही सच्चाई कबूल की और हम पक्के दोस्त बन गए।a
सन् 1948 में मई के महीने में मैंने प्रचार करना शुरू किया और उसके अगले ही महीने, 20 जून को यूट्रेक्ट कस्बे में हुए एक अधिवेशन में मेरा बपतिस्मा हो गया। एक जनवरी 1949 को मैंने पायनियर सेवा शुरू की और मुझे पूर्वी नेदरलैंड्स के बॉरकूलो गाँव में प्रचार करने भेजा गया जहाँ एक छोटी-सी मंडली थी। वहाँ पहुँचने के लिए मुझे करीब 130 किलोमीटर का सफर तय करना था, इसलिए मैंने सोचा कि मैं अपनी साइकिल पर जाऊँगा। मुझे लगा कि मैं करीब 6 घंटे में वहाँ पहुँच जाऊँगा, लेकिन उस दिन जमकर बारिश हुई और इतनी तेज़ हवा चली कि मुझे पूरे 12 घंटे लग गए, जबकि आखिरी 90 किलोमीटर का सफर मैंने ट्रेन से तय किया था! आखिरकार देर शाम को मैं एक साक्षी परिवार के घर पहुँच गया। जब तक मैंने उस इलाके में पायनियर सेवा की, मैं उसी परिवार के साथ रहा।
दूसरे विश्व युद्ध के बाद, लोगों के पास बहुत कम सामान था। मेरे पास सिर्फ एक सूट था, जो बहुत बड़ा था और एक पैंट, जो बहुत छोटी थी! जैसा कि मैंने शुरूआत में बताया था, बॉरकूलो में मेरा पहला महीना बहुत मुश्किल में बीता। लेकिन यहोवा ने मुझे आशीष के रूप में ढेरों बाइबल अध्ययन दिए। नौ महीने बाद, मुझे ऐमस्टरडैम शहर में सेवा करने भेजा गया।
गाँव से शहर तक
कहाँ मैं खेती-बाड़ीवाले एक छोटे-से गाँव में रहता था और अब ऐमस्टरडैम चला आया जो नेदरलैंड्स का सबसे बड़ा शहर है। यहाँ के लोग खुशखबरी में बहुत दिलचस्पी लेते थे। पहले महीने में ही, मैंने प्रचार में इतना साहित्य पेश किया जितना मैंने पिछले नौ महीनों में भी नहीं किया था। जल्द ही, मैं आठ से भी ज़्यादा बाइबल अध्ययन चलाने लगा। कॉन्ग्रिगेशन सर्वेन्ट (जिसे आज प्राचीनों के निकाय का संयोजक कहते हैं) नियुक्त किए जाने के बाद, मुझे अपना पहला जन भाषण देने के लिए कहा गया। मेरे लिए यह बहुत मुश्किल काम था। इसलिए जब भाषण देने से बस कुछ ही समय पहले मुझे दूसरी मंडली में भेज दिया गया, तब मैंने राहत की साँस ली। मुझे उस वक्त इस बात का ज़रा भी एहसास नहीं था कि आनेवाले सालों में, मैं 5,000 से भी ज़्यादा भाषण दूँगा!
ऊपर: मारकुस (एकदम दायीं तरफ) सन् 1950 में ऐमस्टरडैम के पास सड़क पर गवाही देते हुए
सन् 1950 में मई के महीने में, मुझे हारलम नाम के एक शहर में सेवा करने भेजा गया। फिर मुझे सर्किट का काम करने का न्यौता मिला। मैं तीन दिन तक सो नहीं पाया। मैंने शाखा दफ्तर में सेवा करनेवाले एक भाई, रोबर्ट विंकलर से कहा कि मैं खुद को इस काम के काबिल नहीं समझता। लेकिन उन्होंने मुझे कहा: “बस तुम कागज़ात भर दो। तुम सीख जाओगे।” इसके जल्द बाद, मुझे एक महीने की ट्रेनिंग मिली और मैं सर्किट निगरान के तौर पर सेवा करने लगा। एक मंडली में दौरा करते वक्त मेरी मुलाकात यानी टाटखेन से हुई, एक हँसमुख पायनियर बहन जिसके दिल में यहोवा के लिए गहरा प्यार था और जो प्रचार काम में बहुत मेहनत करती थी। सन् 1955 में हमने शादी कर ली। इससे पहले कि मैं आपको अपनी कहानी आगे बताऊँ, यानी आपको बताएगी कि वह एक पायनियर कैसे बनी और हम दोनों कैसे मिले।
साथ मिलकर सेवा करना
यानी: सन् 1945 में मेरी माँ साक्षी बन गयी। उस वक्त मैं 11 साल की थी। वह तुरंत समझ गयी कि अपने तीनों बच्चों के साथ बाइबल का अध्ययन करना कितना ज़रूरी है। लेकिन मेरे पिता सच्चाई के खिलाफ थे इसलिए जब वे घर पर नहीं होते थे, तब माँ हम बच्चों को सिखाया करती थी।
पहली सभा जिसमें मैं हाज़िर हुई, वह सन् 1950 में द हेग नाम के शहर में हुआ एक अधिवेशन था। एक हफ्ते बाद, मैं ड्रेन्थे के ऑसन शहर के राज-घर में अपनी पहली सभा में हाज़िर हुई। यह सब देखकर मेरे पिताजी गुस्से से तमतमा उठे और उन्होंने मुझे घर से निकाल दिया। मेरी माँ ने कहा: “तुम जानती हो तुम कहाँ रह सकती हो।” मैं जानती थी कि वह मंडली के भाई-बहनों के बारे में बात कर रही थी। मैं पहले एक साक्षी परिवार के घर रहने चली गयी, जो हमारे घर के पास ही रहते थे। लेकिन तब भी पिताजी ने मेरा जीना दूभर कर रखा था इसलिए मैं डावनटर शहर की मंडली में चली गयी, जो करीब 95 किलोमीटर दूर थी। उस वक्त मैं नाबालिग थी, इसलिए मुझे घर से निकालने के लिए अधिकारियों ने पिताजी के खिलाफ कार्रवाई की। इस पर पिताजी ने मुझसे कहा कि मैं घर वापस आ सकती हूँ। वह इसलिए कि अधिकारियों को इस बात का पता चल गया था कि मेरे नाबालिग होने पर भी पिताजी ने मुझे घर से निकाल दिया और इस वजह से पिताजी मुसीबत में फँस गए थे। हालाँकि उन्होंने कभी सच्चाई नहीं अपनायी लेकिन आगे चलकर उन्होंने मुझे सारी सभाओं में और प्रचार में जाने की इजाज़त दे दी!
नीचे: यानी (एकदम दायीं तरफ) सन् 1952 में वेकेशन पायनियर सेवा करते हुए
मेरे घर वापस आने के जल्द बाद, मेरी माँ बहुत बीमार पड़ गयी और घर का सारा काम करने की ज़िम्मेदारी मुझ पर आ गयी। इसके बावजूद, मैं सच्चाई में तरक्की करती गयी और सन् 1951 में 17 साल की उम्र में मेरा बपतिस्मा हो गया। सन् 1952 में, जब मेरी माँ ठीक हो गयी, तो मैंने तीन पायनियर बहनों के साथ मिलकर दो महीने तक वेकेशन (सहयोगी) पायनियर सेवा की। उस दौरान हम एक हाउस-बोट (नौकाघर) पर रहे और हमने ड्रेन्थे के दो कसबों में प्रचार किया। सन् 1953 में, मैं पायनियर बन गयी। एक साल बाद, एक जवान सर्किट निगरान हमारी मंडली का दौरा करने आए। वे मारकुस थे। हमें लगा कि हम मिलकर यहोवा की और भी अच्छी तरह सेवा कर सकते हैं, इसलिए हमने सन् 1955 में मई के महीने में शादी कर ली।—सभो. 4:9-12.
दायीं तरफ: सन् 1955 में हमारी शादी के दिन
मारकुस: शादी के बाद, सबसे पहले हमें पायनियर के तौर पर ग्रोनिनगन प्रांत के वेनडाम भेजा गया। हम एक छोटे-से कमरे में रहते थे जिसकी लंबाई सिर्फ सात फुट और चौड़ाई दस फुट थी। हम हर रात अपनी मेज़ और दो छोटी कुर्सियाँ सरका देते थे, ताकि हम दीवार के सहारे खड़ा किया हुआ बिस्तर नीचे लगा सकें। हमारा कमरा था तो छोटा-सा पर यानी ने उसे सुंदर और आरामदायक बना दिया था।
छ: महीने बाद, हमें बेलजियम में सफरी काम करने का न्यौता मिला। सन् 1955 में, उस देश में सिर्फ 4,000 प्रचारक थे। आज वहाँ 24,000 से ज़्यादा प्रचारक हैं! फ्लैंडर्स् में, जो उत्तरी बेलजियम में है, वही भाषा बोली जाती है जो नेदरलैंड्स के लोग बोलते हैं। मगर बेलजियम के लोगों के बोलने का लहज़ा अलग होता है, इसलिए शुरू-शुरू में हमें उनकी बात समझने में थोड़ी दिक्कत होती थी।
यानी: सफरी निगरान के काम में एक इंसान को त्याग की भावना दिखानी होती है। हम मंडली का दौरा करने साइकिल से जाते थे और भाई-बहनों के घर पर ठहरते थे। हमारे पास अपना कोई घर नहीं था इसलिए हम सोमवार तक भाई-बहनों के घर ठहरते थे और मंगलवार की सुबह अगली मंडली का दौरा करने निकल जाते थे। लेकिन हमने हमेशा अपनी सेवा को यहोवा की तरफ से दी एक आशीष के रूप में देखा।
मारकुस: शुरू-शुरू में हम बेलजियम की मंडलियों में किसी भी भाई-बहन को नहीं जानते थे, लेकिन वे बहुत प्यारे थे और दिल खोलकर मेहमान-नवाज़ी दिखाते थे। (इब्रा. 13:2) सालों के दौरान, हमने बेलजियम में डच भाषा बोलनेवाली सभी मंडलियों का कई बार दौरा किया। इससे हमें ढेरों आशीष मिलीं। उदाहरण के लिए, हमें डच भाषा बोलनेवाले ज़िले के लगभग सभी भाई-बहनों को जानने का मौका मिला और वे हमारे बहुत अज़ीज़ हो गए। हमने सैकड़ों जवान भाई-बहनों को बड़े होते देखा और सच्चाई में तरक्की करते देखा। उन्होंने अपनी ज़िंदगी यहोवा को समर्पित की और राज के कामों को पहली जगह दी। और उनमें से बहुत-से भाई-बहनों को पूरे समय की सेवा में वफादारी से यहोवा की सेवा करते देखकर हमें बहुत खुशी मिलती है। (3 यूह. 4) इस तरह ‘एक-दूसरे का हौसला बढ़ाने’ से हमारे लिए पूरे दिल से यहोवा की सेवा में लगे रहना आसान हो गया।—रोमि. 1:12.
एक बड़ी चुनौती और एक बड़ी आशीष
मारकुस: जिस दिन से हमारी शादी हुई, हमारी तमन्ना थी कि हम गिलियड स्कूल में हाज़िर हों। हम हर दिन कम-से-कम एक घंटा अँग्रेज़ी पढ़ते थे। लेकिन किताबों से अँग्रेज़ी सीखना इतना आसान नहीं था। इसलिए हमने फैसला किया कि छुट्टियों के दौरान हम इंग्लैंड चले जाएँगे ताकि प्रचार करते वक्त हम अँग्रेज़ी बोलने का अभ्यास कर सकें। आखिरकार सन् 1963 में, हमें ब्रुकलिन में विश्व मुख्यालय से एक लिफाफा मिला। उसमें दो चिट्ठियाँ थीं, एक मेरे लिए और एक यानी के लिए। मेरी चिट्ठी में गिलियड स्कूल में हाज़िर होने का न्यौता था। यह दस महीने की खास क्लास थी, जिसमें खास तौर से भाइयों को तालीम देने पर ज़ोर दिया जाता कि वे कैसे प्रचार काम को बेहतर ढंग से संगठित कर सकते हैं। इस क्लास में 100 विद्यार्थी थे, जिनमें से 82 भाई थे।
यानी: उस दिन मुझे जो चिट्ठी मिली थी, उसमें मुझसे पूछा गया था कि जब मारकुस गिलियड के लिए जाएँगे, तो उस दौरान क्या मैं बेलजियम में रहने के लिए तैयार हूँ। मुझसे कहा गया था कि मैं इस बारे में प्रार्थना करूँ। मुझे यह मानना पड़ेगा कि पहले तो मैं निराश हो गयी थी। मुझे लगा जैसे मेरी मेहनत पर यहोवा ने आशीष नहीं दी। लेकिन फिर मैंने खुद को याद दिलाया कि गिलियड स्कूल का मकसद है, विद्यार्थियों की मदद करना ताकि वे दुनिया-भर में खुशखबरी का प्रचार कर सकें। इसलिए मैं बेलजियम में ही रुकने के लिए राज़ी हो गयी और मुझे बेलजियम के घेन्ट शहर में आना और मरीआ कोलपर्ट नाम की दो अनुभवी खास पायनियर बहनों के साथ खास पायनियर सेवा करने के लिए कहा गया।
मारकुस: मुझे अपनी अँग्रेज़ी सुधारनी थी, इसलिए स्कूल शुरू होने से पहले मुझे पाँच महीने के लिए ब्रुकलिन बुलाया गया। वहाँ मैंने शिपिंग विभाग और सेवा विभाग में काम किया। विश्व मुख्यालय में सेवा करने से और एशिया, यूरोप और दक्षिण अमरीका के लिए साहित्य भेजने में शिपिंग विभाग की मदद करने से मुझे एहसास हुआ कि हमारा अंतर्राष्ट्रीय भाईचारा कितनी दूर-दूर तक फैला है। एक भाई जिनका मुझ पर गहरा असर हुआ, वे थे भाई ए. एच. मैकमिलन, जो भाई रसल के ज़माने में पिलग्रिम (सफरी निगरान) के तौर पर सेवा करते थे। हालाँकि भाई मैकमिलन तब तक बूढ़े हो चुके थे और उन्हें ठीक से सुनायी नहीं देता था, लेकिन फिर भी वे सारी सभाओं में बिना नागा हाज़िर होते थे। उनकी इस बेहतरीन मिसाल से मैंने सीखा कि हमें मसीही संगति की हमेशा कदर करनी चाहिए।—इब्रा. 10:24, 25.
यानी: मारकुस और मैं एक-दूसरे को हफ्ते में कई बार खत लिखा करते थे। हमें एक-दूसरे की बहुत याद आती थी! लेकिन वहाँ मारकुस गिलियड में मिल रही ट्रेनिंग का मज़ा ले रहे थे और यहाँ मैं प्रचार का लुत्फ उठा रही थी। जब तक मारकुस अमरीका से घर लौटे, मैं 17 बाइबल अध्ययन चला रही थी! हालाँकि 15 महीने एक-दूसरे से अलग रहना हमारे लिए बहुत मुश्किल था, लेकिन मुझे महसूस हुआ कि हमने जो त्याग किए उनके लिए यहोवा ने हमें आशीषें दीं। जिस दिन मारकुस वापस आ रहे थे, उनका हवाई-जहाज़ कई घंटे देर से आया। जब वे आखिरकार पहुँचे, तो हम एक-दूसरे से गले मिलकर रो पड़े। उस दिन के बाद से हम कभी अलग नहीं हुए हैं।
सेवा में मिले हर सम्मान के लिए शुक्रगुज़ार
मारकुस: दिसंबर 1964 में जब मैं गिलियड से लौटा, तो हमें बेथेल में सेवा करने का न्यौता मिला। उस वक्त हमें पता नहीं था कि हम वहाँ ज़्यादा समय सेवा नहीं करेंगे। तीन महीने बाद ही, हमें ज़िला काम के लिए फ्लैंडर्ज़ भेज दिया गया। जब आल्ज़न और एल्स वीखर्समा को मिशनरी के तौर पर बेलजियम भेजा गया, तो उन्हें ज़िला काम दिया गया और हम वापस बेथेल में सेवा करने चले गए जहाँ मैंने सेवा विभाग में काम किया। सन् 1968 से 1980 के सालों के दौरान, कभी हमने बेथेल में सेवा की, तो कभी सफरी काम में। आखिरकार, सन् 1980 से सन् 2005 तक मैंने फिर से ज़िला निगरान के तौर पर सेवा की।
हालाँकि अकसर यहोवा की सेवा में हमारा काम बदलता रहता था, लेकिन हम कभी नहीं भूले कि हमने दिलो-जान से यहोवा की सेवा करने के लिए अपनी ज़िंदगी उसे समर्पित की है। हमें जो भी काम मिला, हमने उसका पूरा मज़ा लिया। हमें पूरा यकीन था कि हमारी सेवा में जो भी बदलाव हुए, उनका मकसद था राज के काम को आगे बढ़ाना।
यानी: मुझे इतनी खुशी हुई जब मुझे मारकुस के साथ सन् 1977 में ब्रुकलिन जाने का और सन् 1997 में पैटरसन जाने का मौका मिला, जब उन्हें शाखा-समिति के सदस्य के तौर पर और ट्रेनिंग मिली।
यहोवा हमारी ज़रूरतें जानता है
मारकुस: सन् 1982 में, यानी का ऑपरेशन हुआ और वक्त के गुज़रते वह ठीक हो गयी। तीन साल बाद, लूवैन शहर की मंडली ने अपने राज-घर के ऊपर बना घर हमें रहने के लिए दिया। तीस सालों में पहली बार, हमारे पास रहने के लिए अपनी एक छोटी-सी जगह थी। हर मंगलवार को जब हम किसी मंडली का दौरा करने जाते, तो मुझे सामान नीचे ले जाने के लिए 54 सीढ़ियाँ कई बार उतरनी-चढ़नी पड़ती थीं! इसलिए सन् 2002 में, जब हमें रहने के लिए निचली मंज़िल पर एक घर दिया गया, तो हम बहुत शुक्रगुज़ार थे। जब मैं 78 साल का हुआ, तब हमें लोकेरे नगर में खास पायनियर के तौर पर सेवा करने भेजा गया। हमें बेहद खुशी है कि हम आज भी खास पायनियर के तौर पर सेवा कर रहे हैं और हर दिन प्रचार में जा पाते हैं।
“हमारा मानना है कि यह बात मायने नहीं रखती कि हम कहाँ सेवा करते हैं या किस ओहदे पर सेवा करते हैं, बल्कि यह बात मायने रखती है कि हम किसकी सेवा करते हैं”
यानी: हम दोनों ने कुल मिलाकर 120 से भी ज़्यादा साल पूरे समय की सेवा में बिताए हैं! हमने अपनी ज़िंदगी में यहोवा के इस वादे को पूरा होते देखा है कि ‘वह हमें कभी नहीं छोड़ेगा’ और अगर हम उसके वफादार रहें, तो हमें ‘कुछ घटी नहीं होगी।’—इब्रा. 13:5; व्यव. 2:7.
मारकुस: जब हम जवान थे, तब हमने यहोवा को अपनी ज़िंदगी समर्पित की। हमने कभी अपने लिए बड़ी-बड़ी चीज़ें पाने की ख्वाहिश नहीं रखी। हमें यहोवा की सेवा में जो भी काम मिला, हमने उसे खुशी-खुशी कबूल किया, क्योंकि हमारा मानना है कि यह बात मायने नहीं रखती कि हम कहाँ सेवा करते हैं या किस ओहदे पर सेवा करते हैं, बल्कि यह बात मायने रखती है कि हम किसकी सेवा करते हैं।
a मेरे पिताजी, माँ, बड़ी बहन और दो भाई भी साक्षी बन गए।