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  • “कितनी सुंदर तसवीरें हैं!”
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“कितनी सुंदर तसवीरें हैं!”

इस पत्रिका के किसी नए अंक को खोलकर देखते वक्‍त, आपने कितनी बार यह बात खुद से या दूसरों से कही है? पत्रिका में दी जानेवाली खूबसूरत तसवीरें बहुत मेहनत से खींची या बनायी जाती हैं और हर तसवीर का एक मकसद होता है। ये सिखाने का एक ज़रिया हैं, जो हमें सोचने पर मजबूर कर देती हैं और हमारे अंदर भावनाएँ जगाती हैं। ये खास तौर से तब और भी ज़्यादा मददगार साबित हो सकती हैं, जब हम प्रहरीदुर्ग अध्ययन की तैयारी करते हैं और इसमें हिस्सा लेते हैं।

उदाहरण के लिए, सोचिए कि हर अध्ययन लेख की शुरूआत में दी तसवीर, क्यों उस लेख के लिए चुनी गयी है। उस तसवीर में क्या दिखाया गया है? लेख के शीर्षक या खास आयत से इसका क्या नाता है? हर तसवीर पर गौर करते समय सोचिए कि यह तसवीर चर्चा किए जा रहे विषय से और आपकी अपनी ज़िंदगी से कैसे ताल्लुक रखती है।

प्रहरीदुर्ग अध्ययन चलानेवाले भाई को मंडली में सबको समय देना चाहिए कि वे हर तसवीर के बारे में कुछ बताएँ। भाई-बहन बता सकते हैं कि कैसे वह तसवीर लेख के विषय से जुड़ी है या उस तसवीर का खास तौर से उन पर क्या असर हुआ है। कुछ तसवीरों के साथ दी जानकारी में यह भी बताया जाता है कि वह तसवीर किस पैराग्राफ से जुड़ी है, जबकि कुछ तसवीरों के साथ ऐसी कोई जानकारी नहीं दी जाती। ऐसे में, प्रहरीदुर्ग अध्ययन चलानेवाला भाई यह फैसला कर सकता है कि उस तसवीर पर किस पैराग्राफ के साथ चर्चा करना अच्छा रहेगा। इस तरह, परमेश्‍वर के वचन में पायी जानेवाली घटनाओं की कल्पना करने में मदद देने के लिए जो तसवीरें शामिल की जाती हैं, उससे मंडली में सभी को पूरा-पूरा फायदा होगा।

एक भाई कहता है, बेहतरीन ढंग से लिखा एक लेख पढ़ने के बाद, तसवीरें ऐसी होती हैं मानो स्वादिष्ट खीर पर बादाम बुरक दिया गया हो!

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