जीवन-कहानी
बढ़िया मिसालों पर चलने की मेरी कोशिश
मैंने पूछा, “क्या आप जानते हैं, मेरी उम्र क्या है?” भाई आयज़ैक मरे ने कहा, “हाँ, मैं जानता हूँ।” भाई आयज़ैक ने न्यू यॉर्क राज्य के पैटरसन से मुझे फोन किया था। उस वक्त मैं कोलोराडो में था। इस बातचीत के पीछे एक लंबी कहानी है।
मेरा जन्म 10 दिसंबर, 1936 को अमरीका में कन्सास राज्य के विचिटा शहर में हुआ। हम चार भाई-बहन थे और मैं सबसे बड़ा था। मेरे माता-पिता विलियम और जीन यहोवा के वफादार सेवक थे। मेरे पिताजी कंपनी सेवक थे, जिसे आज प्राचीनों के निकाय का संयोजक कहा जाता है। मेरी माँ को सच्चाई मेरी नानी, एम्मा वैगनर से मिली थी। मेरी नानी ने और भी लोगों को सच्चाई सिखायी थी। उनमें से एक थी गरट्रूड स्टील जिसने प्यूर्टो रिको में मिशनरी सेवा की।a इसलिए मेरे सामने बहुत-सी बढ़िया मिसालें थीं जिनसे मुझे यहोवा की सेवा करने का बढ़ावा मिला।
बढ़िया मिसालों को याद करना
मेरे पिताजी सड़क किनारे खड़े होकर पत्रिकाएँ दे रहे हैं
जब मैं पाँच साल का था तब एक शनिवार की शाम, मैं अपने पिताजी के साथ सड़क पर खड़े होकर आते-जाते लोगों को प्रहरीदुर्ग और कन्सोलेशन (अब सजग होइए!) पत्रिकाएँ दे रहा था। उन दिनों अमरीका दूसरा विश्व-युद्ध लड़ रहा था। मेरे पिताजी ने निष्पक्षता की वजह से युद्ध में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया था। हम सड़क पर गवाही दे रहे थे कि तभी एक डॉक्टर वहाँ आया। वह शराब के नशे में चूर था। उसने मेरे पिताजी को कायर कहा और यह भी कहा कि वे युद्ध में न जाने का बहाना बना रहे हैं। उसने पिताजी के एकदम पास आकर कहा, “हिम्मत है तो मुझे मारकर दिखा! कायर कहीं का!” यह सब देखकर मैं डर गया। मगर पिताजी शांत रहे और वहाँ जो भीड़ इकट्ठा हुई थी, उन्हें पत्रिकाएँ दिए जा रहे थे। यह देखकर मुझे पिताजी पर नाज़ हुआ! फिर एक सैनिक वहाँ से गुज़रा। डॉक्टर ने उसे रोककर ज़ोर से कहा, “इस कायर का कुछ करो!” सैनिक समझ गया कि वह पीया हुआ है। इसलिए उसने डॉक्टर से कहा, “घर जाइए, आप अभी नशे में हैं।” फिर वे दोनों वहाँ से चले गए। यहोवा ने वाकई मेरे पिताजी को हिम्मत दी थी! दरअसल, विचिटा में पिताजी की दो नाई की दुकानें थीं और वह डॉक्टर उनका एक ग्राहक था!
1940 के दशक में अपने माता-पिता के साथ विचिटा में एक अधिवेशन के लिए जाते हुए
जब मैं आठ साल का था तब मेरे माता-पिता ने अपना घर और अपनी दुकानें बेच दीं। उन्होंने एक गाड़ी पर अपना घर बनाया और हमारा पूरा परिवार कोलोराडो राज्य गया जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत थी। हम ग्रैंड जंक्शन नाम के शहर के पास बस गए। वहाँ मेरे माता-पिता आधे दिन पायनियर सेवा करते थे और आधे दिन खेतों में काम करते थे और जानवरों की देखभाल करते थे। यहोवा की आशीष से और प्रचार में उनके जोश की वजह से वहाँ एक मंडली की शुरूआत हुई। फिर 20 जून, 1948 को मेरे पिताजी ने वहाँ की एक नदी में मुझे और उन लोगों को भी बपतिस्मा दिया, जिन्होंने सच्चाई अपनायी थी। उनमें बिली निकोल्स और उसकी पत्नी भी थी। बाद में उन्होंने सर्किट का काम किया और आगे चलकर उनके बेटे और बहू ने भी यही काम किया।
हमारी ऐसे कई भाई-बहनों के साथ अच्छी दोस्ती थी जो पूरी तरह यहोवा की सेवा में लगे हुए थे। हम खासकर स्टील परिवार के करीब थे, जैसे डॉन और अर्लीन, डेव और जूलिया, साई और मार्था। उनके साथ बाइबल पर चर्चा करना हमें बहुत अच्छा लगता था। उन सबका मेरी ज़िंदगी पर गहरा असर हुआ। उन्हीं से मैंने सीखा कि अगर हम राज के कामों को पहली जगह देंगे तो हमें जीने का एक मकसद और ढेर सारी खुशियाँ मिलेंगी।
एक नयी जगह जाना
जब मैं 19 साल का था तब हमारे परिवार के एक दोस्त बड हेस्टी ने मुझसे पूछा कि क्या तुम मेरे साथ अमरीका के दक्षिण में पायनियर सेवा करने आओगे। मैंने ‘हाँ’ कह दिया। सर्किट निगरान ने हमें लुईज़ियाना राज्य के रस्टन शहर जाने के लिए कहा, जहाँ बहुत-से साक्षियों ने सभाओं और प्रचार में जाना छोड़ दिया था। उसने हमसे कहा कि लोग आएँ या न आएँ, हमें हर हफ्ते सभाएँ रखनी हैं। हमें वहाँ सभाओं के लिए एक जगह मिल गयी और जैसा हमें बताया गया था हमने वैसा ही किया। हमने हर हफ्ते सभाएँ रखीं। कुछ समय तक कोई नहीं आया, सिर्फ हम दोनों थे। हम बारी-बारी से सभाओं के भाग पेश करते थे। जब हममें से कोई एक भाग पेश करता था तो दूसरा सारे सवालों के जवाब देता था। अगर किसी भाग में प्रदर्शन होता था तो हम दोनों स्टेज पर होते थे और दर्शकों में कोई नहीं होता था! मगर फिर एक बुज़ुर्ग बहन सभाओं में आने लगी। कुछ समय बाद कुछ बाइबल विद्यार्थी और दूसरे साक्षी भी आने लगे, जिन्होंने सभाओं और प्रचार में जाना छोड़ दिया था। फिर देखते-ही-देखते हमारा समूह एक मंडली बन गया।
एक दिन प्रचार में मुझे और बड को ‘चर्च ऑफ क्राइस्ट’ का एक पादरी मिला। उसने बाइबल की ऐसी आयतों पर बात की जिनके बारे में मुझे मालूम तक नहीं था। इससे मैं एकदम हिल गया और अपने विश्वास के बारे में गहराई से सोचने लगा। मैंने पूरे हफ्ते देर रात तक जागकर बाइबल का अध्ययन किया ताकि मैं उसके सवालों के जवाब ढूँढ़ सकूँ। इस अध्ययन से यहोवा के साथ मेरा रिश्ता बहुत मज़बूत हुआ और मैं किसी भी पादरी से चर्चा करने के लिए तैयार था।
कुछ ही समय बाद सर्किट निगरान ने मुझे अरकन्सास राज्य के एल डोराडो शहर जाने के लिए कहा, क्योंकि वहाँ मंडली को मदद की ज़रूरत थी। वहाँ से मुझे अकसर कोलोराडो जाना पड़ता था ताकि मैं उस समिति से मिलूँ जो यह तय करती थी कि किसे फौज में भर्ती होना है। एक बार मैं कुछ पायनियरों के साथ अपनी गाड़ी से कोलोराडो जा रहा था। टेक्सस से गुज़रते वक्त हमारे साथ एक हादसा हुआ और मेरी गाड़ी पूरी तरह टूट-फूट गयी। हमने एक भाई को बुलाया और वह हमें अपने घर ले गया और फिर मंडली की सभा में भी लेकर गया। सभा में हमारे साथ हुए हादसे के बारे में घोषणा की गयी और वहाँ के भाइयों ने हमें कुछ पैसे दिए। इसके अलावा, जिस भाई को हमने मदद के लिए बुलाया था उसने मेरी गाड़ी 25 डॉलर में बिकवा दी।
फिर हम विचिटा पहुँचे। हमारे परिवार के एक दोस्त वहाँ पायनियर सेवा कर रहे थे। उनका नाम था ई. एफ. मकार्टनी और हम उन्हें प्यार से डॉक बुलाते थे। उनके जुड़वा बेटे थे, फ्रैंक और फ्रांसिस जो आज तक मेरे जिगरी दोस्त हैं। उनके पास एक पुरानी गाड़ी थी। उन्होंने वह गाड़ी मुझे 25 डॉलर में बेच दी, उतने ही पैसों में जितने मुझे अपनी टूटी-फूटी गाड़ी के लिए मिले थे! पहली बार मैंने देखा कि राज के कामों को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह देने से यहोवा ने मुझे एक ऐसी चीज़ दी जिसकी मुझे ज़रूरत थी। इसी दौरान मकार्टनी परिवार ने मुझे एक प्यारी बहन, बेथेल क्रेन से मिलवाया। बेथेल की माँ रूत, कन्सास के वैलिंगटन शहर में जोश के साथ प्रचार करती थी और 90 साल की उम्र के बाद भी वह पायनियर सेवा करती रही। फिर एक साल के अंदर यानी 1958 में मेरी बेथेल के साथ शादी हो गयी और वह मेरे साथ एल डोराडो में पायनियर सेवा करने लगी।
एक रोमांचक बुलावा
बचपन से हम जिन लोगों को जानते थे, हम उनकी बढ़िया मिसालों पर चलना चाहते थे। इसलिए हमने तय किया कि हमें यहोवा के संगठन से जो भी बुलावा मिलेगा हम उसे स्वीकार करेंगे। हमें खास पायनियर बनाया गया और अरकन्सास के वॉलनट रिड्ज शहर भेजा गया। सन् 1962 में हमें गिलियड की 37वीं क्लास के लिए बुलाया गया। हमारी खुशी का कोई ठिकाना न रहा! हमारी खुशी तब और बढ़ गयी जब हमें पता चला कि डॉन स्टील भी उसी क्लास के लिए आ रहा है। गिलियड से ग्रेजुएट होने के बाद मुझे और बेथेल को केन्या देश के नाइरोबी शहर भेजा गया। न्यू यॉर्क छोड़ते वक्त हमें बहुत दुख हुआ। मगर जब हम नाइरोबी के हवाई अड्डे पहुँचे और हमने उन भाइयों को देखा जो हमारे स्वागत के लिए आए थे, तो हमारा दुख खुशी में बदल गया!
नाइरोबी में क्रिस और मैरी कनाया के साथ प्रचार में
कुछ ही समय में हमें केन्या से प्यार हो गया और वहाँ प्रचार करने में खुशी मिलने लगी। हमारे बाइबल विद्यार्थियों में से जिन्होंने सबसे पहले तरक्की की, वे थे क्रिस और मैरी कनाया। वे आज भी पूरे समय की सेवा कर रहे हैं। उसके अगले साल हमें यूगांडा देश की राजधानी कम्पाला भेजा गया। हम उस देश में पहले मिशनरी थे। वह एक रोमांचक दौर था क्योंकि बहुत-से लोगों में बाइबल की सच्चाइयाँ सीखने की ललक थी। कुछ समय बाद वे हमारे भाई-बहन बन गए। लेकिन अफ्रीका में साढ़े तीन साल रहने के बाद हम अमरीका लौट गए क्योंकि हमारा परिवार बढ़नेवाला था। न्यू यॉर्क छोड़ते वक्त हमें जितना दुख हुआ था उससे कहीं ज़्यादा दुख हमें अफ्रीका छोड़ते वक्त हुआ। हम अफ्रीका के लोगों से बहुत प्यार करते थे और इस उम्मीद के साथ अमरीका गए कि एक दिन हम ज़रूर वापस आएँगे।
एक नयी ज़िम्मेदारी
हम पश्चिम कोलोराडो में जा बसे जहाँ मेरे माता-पिता रहते थे। हमारी पहली बेटी किम्बर्ली के पैदा होने के 17 महीने बाद हमारी दूसरी बेटी स्टेफनी पैदा हुई। माँ-बाप होने के नाते हमने अपनी नयी ज़िम्मेदारी को गंभीरता से लिया। हमने अपनी प्यारी बेटियों के दिल में सच्चाई बिठाने के लिए खूब मेहनत की। इस मामले में भी हम उन लोगों के नक्शे-कदम पर चलना चाहते थे जो हमारे लिए बढ़िया मिसाल थे। हालाँकि यह सच है कि बढ़िया मिसालों का बच्चों पर अच्छा असर हो सकता है, मगर यह इस बात की कोई गारंटी नहीं कि वे बड़े होकर यहोवा की सेवा करते रहेंगे। मैंने यह सच्चाई तब समझी जब मेरा छोटा भाई और मेरी एक छोटी बहन ने सच्चाई छोड़ दी। फिर भी हम उम्मीद करते हैं कि एक दिन वे दोबारा उन मिसालों पर चलेंगे जो उनके सामने रखी गयी थीं।
अपनी बेटियों की परवरिश करने में हमें बहुत खुशी मिली। हमारी हमेशा यही कोशिश रहती थी कि हम सबकुछ मिलकर करें। हम कोलोराडो के एस्पन शहर के पास रहते थे, इसलिए हम सबने बर्फीली ढलानों में स्की करना सीखा ताकि समय-समय पर पूरा परिवार स्की करने जा सके। इस दौरान हमें अपनी बेटियों से बात करने के कई मौके मिलते थे। हम उनके साथ कैम्पिंग के लिए भी जाते थे और आग के पास बैठकर ढेर सारी बातें करते थे। हालाँकि वे छोटी थीं, फिर भी वे इस तरह के सवाल करती थीं, “मैं बड़ी होकर क्या बनूँगी?” या “मुझे कैसे लड़के से शादी करनी चाहिए?” हमने अपनी बेटियों के दिल में यहोवा के स्तर बिठाने की पूरी कोशिश की। हमने उन्हें पूरे समय की सेवा का लक्ष्य रखने का बढ़ावा दिया और उन्हें यह सलाह भी दी कि वे ऐसे लड़के से शादी करें जिसका लक्ष्य भी यही हो। हमने उन्हें समझाया कि अच्छा होगा अगर वे कम उम्र में शादी न करें। हमने मिलकर एक कहावत बनायी थी, “23 के नहीं जब तक, शादी नहीं तब तक।”
मैंने और बेथेल ने अपने माता-पिताओं की मिसाल पर चलने की पूरी कोशिश की। हमने एक परिवार के तौर पर सभी सभाओं में जाने और प्रचार में लगातार हिस्सा लेने में मेहनत की। हम पूरे समय के कुछ सेवकों को अपने घर रहने के लिए बुलाते थे। इसके अलावा, हम अपनी मिशनरी सेवा की मीठी यादें अपनी बेटियों के साथ बाँटते थे। हमने उन्हें यह भी बताया कि एक दिन हम चारों मिलकर अफ्रीका घूमने जाएँगे। यह सुनकर मेरी बेटियाँ खुश हो गयीं क्योंकि उनकी भी यही इच्छा थी।
हम बिना नागा पारिवारिक अध्ययन करते थे। हम अध्ययन में कभी-कभी स्कूल में उठनेवाले हालात का अभिनय करते। हमारी बेटियाँ साक्षी बनतीं और दूसरों के सवालों के जवाब देने की कोशिश करतीं। इस तरह सीखने में उन्हें बड़ा मज़ा आता था और उनकी हिम्मत भी बढ़ती थी। मगर जैसे-जैसे वे बड़ी होती गयीं, वे कभी-कभी पारिवारिक अध्ययन से आनाकानी करने लगीं। एक बार तो मैंने चिढ़कर कहा कि वे वापस अपने कमरे में चली जाएँ क्योंकि आज हम अध्ययन नहीं करेंगे। इस पर वे चौंक गयीं और रो-रोकर कहने लगीं कि वे अध्ययन करना चाहती हैं। तब हमें एहसास हुआ कि उन्हें यहोवा के बारे में सिखाने में हमारी मेहनत रंग ला रही है। धीरे-धीरे उन्हें अध्ययन करना बहुत अच्छा लगने लगा और वे खुलकर हमें अपनी सोच और भावनाएँ बताने लगीं। कभी-कभी जब वे कहतीं कि बाइबल में लिखी किसी बात से वे सहमत नहीं, तो यह मानना हमारे लिए मुश्किल होता था। लेकिन कम-से-कम हमें यह तो पता चलता था कि वे मन में क्या सोच रही हैं। फिर जब हम उनके साथ तर्क करते थे, तो वे मान लेती थीं कि यहोवा के स्तर ही सही हैं।
और भी बदलाव
अपनी बेटियों की परवरिश करने में समय कब बीत गया, पता ही नहीं चला। परमेश्वर के संगठन से मिलनेवाली मदद और मार्गदर्शन से हम अपनी बेटियों की अच्छी परवरिश कर पाए। हम उन्हें यहोवा से प्यार करना सिखा पाए। और हम यहोवा के बहुत शुक्रगुज़ार हैं कि हमारी दोनों बेटियों ने हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद पायनियर सेवा शुरू की। उन्होंने कुछ हुनर भी सीखे ताकि पायनियर सेवा के साथ-साथ वे अपना गुज़ारा भी कर सकें। मेरी बेटियाँ दो बहनों के साथ मिलकर टेनेसी राज्य के क्लीवलैंड शहर में सेवा करने चली गयीं, जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत थी। हमें उनकी बहुत याद आती थी, मगर हम खुश थे कि वे अपनी ज़िंदगी पूरे समय की सेवा में लगा रही हैं। इस बीच मैं और बेथेल फिर से पायनियर सेवा करने लगे। इस वजह से मुझे बाद में सेवा के दूसरे मौके भी मिले। जैसे जब कोई सर्किट निगरान दौरे पर नहीं जा पाता था तो उनकी जगह मुझे भेजा जाता था। मुझे अधिवेशन के काम में हाथ बँटाने का भी मौका मिला।
हमारी बेटियाँ टेनेसी जाने से पहले इंग्लैंड के लंदन शहर घूमने गयी थीं और वहाँ के शाखा दफ्तर भी गयी थीं। स्टेफनी उस वक्त 19 साल की थी। वहाँ उसकी मुलाकात एक जवान भाई पॉल नोर्टन से हुई। कुछ समय बाद जब किम्बर्ली दोबारा लंदन गयी तब उसकी मुलाकात पॉल के साथी ब्रायन लुएलन से हुई। जब स्टेफनी 23 की हुई तो उसने पॉल से शादी की। इसके एक साल बाद, जब किम्बर्ली 25 की हुई तो उसने ब्रायन से शादी कर ली। हमें खुशी है कि हमारी बेटियों ने 23 साल के बाद शादी की। हम उनकी पसंद से भी खुश थे, इसलिए हमने उन्हें अपनी रज़ामंदी दे दी।
सन् 2002 में मलावी के शाखा दफ्तर में पॉल, स्टेफनी, किम्बर्ली और ब्रायन के साथ
हमारी बेटियों ने हमें बताया कि हमारी मिसाल से, साथ ही दादा-दादी और नाना-नानी की बढ़िया मिसाल से उन्होंने यीशु की यह आज्ञा मानना सीखा कि ‘पहले राज की खोज करो।’ (मत्ती 6:33) उन्हें जब पैसों की समस्या थी तब भी उन्होंने यीशु की यह आज्ञा मानी। अप्रैल 1998 में पॉल और स्टेफनी को गिलियड की 105वीं क्लास के लिए बुलाया गया। इसके बाद उन्हें अफ्रीका के मलावी देश में सेवा करने के लिए भेजा गया। उसी दौरान, ब्रायन और किम्बर्ली को लंदन बेथेल में सेवा करने का बुलावा मिला। फिर वहाँ से उन्हें मलावी बेथेल भेजा गया। हम बहुत खुश थे क्योंकि जवानों के लिए अपनी ज़िंदगी बिताने का इससे बढ़िया तरीका और क्या हो सकता है!
एक और रोमांचक बुलावा
जनवरी 2001 में मेरे साथ वह किस्सा हुआ जो लेख की शुरूआत में बताया गया है। भाई आयज़ैक, अनुवाद सेवा विभाग के निगरान हैं। उन्होंने मुझे फोन पर समझाया कि कुछ भाई एक कोर्स तैयार कर रहे हैं जिससे पूरी दुनिया के अनुवादकों को अँग्रेज़ी भाषा और अच्छी तरह समझने में मदद मिलेगी। वे कई भाइयों को यह कोर्स सिखाने की तालीम दे रहे थे। हालाँकि मैं 64 साल का था, फिर भी वे चाहते थे कि मैं एक शिक्षक बनूँ। मैंने और बेथेल ने इस बारे में प्रार्थना की और हम दोनों ने अपनी-अपनी माँ से सलाह-मशविरा किया। उनकी उम्र काफी हो चुकी थी और हमारे जाने से उन्हें अकेले ही सबकुछ करना पड़ता, फिर भी वे दोनों चाहती थीं कि हम इस काम के लिए जाएँ। मैंने भाई आयज़ैक को फोन किया और उन्हें बताया कि हमें सेवा का यह बढ़िया मौका स्वीकार करने में खुशी होगी।
मगर तभी मेरी माँ को पता चला कि उन्हें कैंसर है। मैंने उनसे कहा कि हम नहीं जाएँगे बल्कि अपनी बहन लिंडा के साथ मिलकर उनकी देखभाल करेंगे। माँ ने मना कर दिया और कहा, “अगर तुम लोग नहीं जाओगे तो मुझे बहुत बुरा लगेगा।” लिंडा भी माँ की बात से सहमत थी। हम माँ और लिंडा के बड़े एहसानमंद हैं कि उन्होंने हमारी खातिर इतना त्याग किया। हम भाई-बहनों के भी शुक्रगुज़ार हैं जिन्होंने हमारे परिवार की मदद की। जिस दिन हम पैटरसन के वॉचटावर शिक्षा केंद्र के लिए निकले उसके एक दिन बाद लिंडा ने हमें फोन किया और बताया कि माँ की मौत हो गयी है। अगर वे ज़िंदा रहतीं तो यही बढ़ावा देतीं कि हम वापस न आएँ बल्कि हमें जो नया काम मिला है उसी में लगे रहें। इसलिए हमने ऐसा ही किया।
प्रशिक्षण मिलने के बाद हमें सबसे पहले मलावी के शाखा दफ्तर जाने के लिए कहा गया, जहाँ हमारी बेटियाँ और दामाद थे। यह सुनकर हम फूले न समाए! हमारा पूरा परिवार फिर से एक हो गया! मलावी से हमें ज़िम्बाबवे भेजा गया और उसके बाद ज़ाम्बिया। साढ़े तीन साल अनुवादकों को सिखाने के बाद हम मलावी लौट आए ताकि उन साक्षियों के अनुभव लिख सकें जिन्हें मसीही निष्पक्षता की वजह से कई ज़ुल्म सहने पड़े थे।b
अपनी नातिनों के साथ प्रचार में
सन् 2005 में एक बार फिर हमें अफ्रीका छोड़ने का बहुत दुख हुआ। अमरीका में हम कोलोराडो के बसॉल्ट शहर आए और हमने पायनियर सेवा जारी रखी। सन् 2006 में ब्रायन और किम्बर्ली हमारे पड़ोस में रहने आ गए ताकि वे अपनी दो बेटियों, मकिंज़ी और एलिज़बेथ की परवरिश कर सकें। पॉल और स्टेफनी आज भी मलावी में हैं और पॉल शाखा समिति के एक सदस्य के तौर पर सेवा करता है। आज मैं करीब 80 साल का हो गया हूँ और यह देखकर मुझे बहुत खुशी होती है कि जिन जवान भाइयों के साथ मैंने काम किया था वे आज उन ज़िम्मेदारियों को सँभाल रहे हैं जो मैं सँभाला करता था। अब भी हम उन लोगों के नक्शे-कदम पर चलने की कोशिश कर रहे हैं जो हमारे लिए बढ़िया मिसाल थे ताकि हम भी अपने बच्चों और नातिनों के लिए बढ़िया मिसाल रख सकें। इससे हमें बहुत खुशी मिली है!
a स्टील परिवार के कई सदस्यों ने मिशनरी सेवा की। उनके बारे में ज़्यादा जानने के लिए अँग्रेज़ी प्रहरीदुर्ग के ये अंक देखिए: 1 मई, 1956, पेज 269-272 और 15 मार्च, 1971, पेज 186-190.
b उदाहरण के लिए, 15 अप्रैल, 2015 की प्रहरीदुर्ग के पेज 14-18 पर ट्रॉफिम नसॉम्बा की जीवन-कहानी देखिए।