प्रश्न बक्स
▪ “भाई” और “बहन” पदों का उचित इस्तेमाल क्या है?
जब शाब्दिक अर्थ में प्रयोग किया जाता है तो “भाई” और “बहन” पद ऐसे व्यक्तियों को सूचित करते हैं जिनके समान माता-पिता हैं। यह सगा रिश्ता प्रायः एक स्नेहिल लगाव उत्पन्न करता है, और जो नज़दीकी ये व्यक्ति अनुभव करते हैं, वह सामाजिक, पारिस्थितिक, और भावात्मक बन्धनों द्वारा और भी बढ़ायी जाती है।
यीशु ने अपने शिष्यों को सिखाया कि वे प्रार्थना में यहोवा को “हमारे पिता” करके सम्बोधित करें। इस अभिव्यक्ति का प्रयोग सूचित करता है कि मसीहियों के तौर पर, हम सभी एक घनिष्ठ पारिवारिक दायरे का भाग हैं जहाँ हम बहुमूल्य आध्यात्मिक सम्बन्धों का आनन्द उठाते हैं। इस बात पर यीशु द्वारा और भी ज़ोर दिया गया जब उसने अपने अनुयायियों से कहा कि “तुम सब भाई हो।”—मत्ती ६:९; २३:८.
परमेश्वर के घराने में हमारे घनिष्ठ आध्यात्मिक बन्धनों की वजह से, हम एक दूसरे को “भाई” और “बहन” करके सम्बोधित करते हैं, विशेषकर कलीसिया सभाओं में। इन आध्यात्मिक अवसरों के दौरान, सभा में अध्यक्षता करनेवाला भाई अभिव्यक्ति “भाई” या “बहन” के बाद सम्बोधित व्यक्ति का कुलनाम प्रयोग करने के द्वारा बपतिस्मा-प्राप्त व्यक्तियों को मान्यता देता है।
तब क्या जब एक बपतिस्मा-रहित व्यक्ति सभाओं में भाग लेने की इच्छा रखता हो? जब एक व्यक्ति यहोवा के लोगों के साथ कुछ समय से संगति करता रहा है और अपने आपको एक यहोवा का साक्षी समझते हुए समर्पण की ओर आ रहा है, तो कुलनाम के आगे “भाई” या “बहन” लगाने में कोई आपत्ति नहीं होगी। यदि वह व्यक्ति एक बपतिस्मा-रहित प्रकाशक बन चुका है तो यह विशेषकर सही होगा।
दूसरी ओर, दिलचस्पी रखनेवाले लोग जिन्होंने हाल ही में हमारी सभाओं में उपस्थित होना शुरू किया है, उन्होंने अब तक ऐसे क़दम नहीं उठाए हैं जो उन्हें परमेश्वर के घराने का भाग के रूप में पहचान कराते। इन व्यक्तियों को “भाई” या “बहन” करके सम्बोधित नहीं किया जाएगा, क्योंकि इनके मामले में परमेश्वर के परिवार का आध्यात्मिक सम्बन्ध मौजूद नहीं है। सो सभाओं के दौरान, हम उन्हें उनके कुलनाम के साथ “श्री.” जैसे उपयुक्त आदरसूचक का प्रयोग करते हुए और भी औपचारिक तरीक़े से सम्बोधित करेंगे।
हमारी कलीसिया सभाओं में अभिव्यक्तियाँ “भाई” और “बहन” का प्रयोग करना ऐसे बन्धन की ओर संकेत करता है जो पहले नामों के प्रयोग से सूचित किसी बन्धन से कहीं ज़्यादा घनिष्ठ और ज़्यादा बहुमूल्य है। यह हमें उस अति आशीष-प्राप्त सम्बन्ध की याद दिलाता है जिसका हम एक आध्यात्मिक परिवार के तौर पर, एक पिता, यहोवा परमेश्वर के अधीन आनन्द उठाते हैं। हमें एक दूसरे के लिए जो गहरा प्रेम और प्रीति है, यह हमें उसकी भी याद दिलाता है।—इफि. २:१९; १ पत. ३:८.