हम अपने परमेश्वर के भवन को न छोड़ेंगे
“क्या पुरुष, क्या स्त्री, क्या बालक, क्या तुम्हारे फाटकों के भीतर के परदेशी, सब लोगों को इकट्ठा करना कि वे सुनकर सीखें, और तुम्हारे परमेश्वर यहोवा का भय मानकर, इस व्यवस्था के सारे वचनों के पालन करने में चौकसी करें।” (व्यव. ३१:१२) इस्राएल की प्राचीन जाति को दिया गया यह प्रबोधन आज भी यहोवा के सभी सच्चे उपासकों को लागू होता है क्योंकि पौलुस ने मसीहियों को इब्रानियों १०:२५ में नियमित रूप से एकत्रित होने की सलाह दी। अतः सभाएँ हमारी उपासना का एक अत्यावश्यक भाग हैं। स्पष्टतः, इस प्रकार एकसाथ मिलने का उद्देश्य है सुनना और सीखना और यहोवा द्वारा सिखलाए जाना। (यशा. ५४:१३) ऐसी सभाएँ, जैसे ये प्राचीन इस्राएल में थीं, आनन्दपूर्ण अवसर होती हैं, जो हममें दाऊद के जैसी एक प्रतिक्रिया पैदा करती हैं जिसने लिखा: “जब लोगों ने मुझ से कहा, कि हम यहोवा के भवन को चलें, तब मैं आनन्दित हुआ।” (भज. १२२:१) यहोवा के भवन के लिए नहेमायाह के उत्साह ने उसे यह कहने के लिए प्रेरित किया, “हम अपने परमेश्वर के भवन को न छोड़ेंगे।”—नहे. १०:३९.
२ मसीहीजगत के गिरजों के विपरीत, जो कभी-कभी वास्तुशिल्पीय रूप से बहुत ही शानदार होते हैं, यहोवा के साक्षी जिन स्थानों में उपासना के लिए मिलते हैं वे साधारण, फिर भी सजीव और स्नेहिल स्थान होते हैं जो राज्यगृह कहलाते हैं। स्पष्टतया यह नाम १९३५ में पहली बार संस्था के उस समय के अध्यक्ष जे. एफ़. रदरफ़ोर्ड द्वारा इस्तेमाल किया गया था जब उन्होंने हवाई में भेंट की और वहाँ सभागृह के निर्माण का प्रबन्ध किया। यह नाम अब तक पृथ्वी भर में फैल गया है। १९६१ वॆबस्टर्स् अनॆब्रिज्ड डिक्शनरी राज्यगृह को इस प्रकार परिभाषित करती है, “यहोवा के साक्षियों का स्थानीय सभागृह जहाँ धार्मिक सेवाएँ की जाती हैं।” उपासना के एक स्थान के रूप में राज्यगृह को एक दिखावटी इमारत नहीं होना चाहिए जो दूसरों को प्रभावित करने के लिए बनायी गयी हो। जबकि उसकी वास्तुशिल्प शायद अलग-अलग जगह पर अलग-अलग हो, उसका उद्देश्य कार्यात्मक होना चाहिए।—प्रेरि. १७:२४.
क्या हर कलीसिया के पास अपना एक राज्यगृह होना चाहिए?
३ संस्था इसका फ़ैसला नहीं करती कि किसी स्थानीय कलीसिया के पास अपना राज्यगृह होना चाहिए या नहीं। यह एक ऐसा मामला है जिसका फ़ैसला स्थानीय कलीसिया द्वारा किया जाना चाहिए। कुछ कलीसियाओं ने स्वयं अपना सभागृह बनाया है; औरों ने अपनी सभाओं को आयोजित करने के लिए इमारतों को किराए पर लिया है। बात चाहे जो भी हो, यह ज़रूरी है कि सभागृह शालीन, और स्वच्छ हो, और यहोवा की उपासना के उच्च स्तरों को प्रतिबिम्बित करता हो। जब इसे इस्तेमाल किया जा रहा हो, तो इसमें दर्शनीय रूप से एक मैत्रीपूर्ण माहौल होना चाहिए। एक यूनियन मॆथोडिस्ट सेवक एक बार हमारे एक राज्यगृह में यहोवा के साक्षियों की सभा में उपस्थित हुआ, और उसने कहा: “हमने इन लोगों की तरफ़ से असली परवाह की अपेक्षा नहीं की थी। लेकिन, कभी-भी उन्होंने हम पर कोई दबाव नहीं डाला, हमने अपनी छुट्टियों के दौरान जिन २० कलीसियाओं में भेंट की थी उसकी बराबरी में उनका स्वागत सच्चा था। यहाँ एक प्रेम से मुस्कुराती, तनावमुक्त लोगों की कलीसिया थी जो स्पष्टतः एक दूसरे की और अजनबी की गहरी चिन्ता करते हैं, ठीक जैसे वे परमेश्वर के वचन को समझने की गहरी चिन्ता करते थे।”
४ इस बात को स्वीकार किया जाना चाहिए कि अनेक कलीसियाओं की आर्थिक स्थिति उन्हें इस समय स्वयं अपना एक राज्यगृह बनाने पर विचार करने की अनुमति नहीं देती। इसके अतिरिक्त, कुछ क्षेत्रों में सभागृह को किराए पर लेना, उसे ख़रीदने या उसका निर्माण करने से ज़्यादा सुविधाजनक है। बहरहाल, बड़ी संख्या में कलीसियाओं ने ज़मीन ख़रीदने और अपनी ज़रूरतों के अनुसार स्वयं अपने राज्यगृह का निर्माण करने का चुनाव किया है। या उन्होंने किसी इमारत को ख़रीदकर उसकी मरम्मत की है। अगर प्रत्येक कलीसिया के पास अपना राज्यगृह है तो इसके सुनिश्चित लाभ हैं। उदाहरण के लिए, केरला के एक सर्किट ओवरसियर रिपोर्ट करते हैं कि दो कलीसियाओं ने स्वयं अपने राज्यगृहों का निर्माण किया और पहले साल के भीतर ही उपस्थिति इतनी बढ़ गयी कि कलीसियाओं को अलग-अलग समयों में सभाओं के दो सत्र आयोजित करने की ज़रूरत पड़ी। साक्षियों को न केवल राज्यगृह परियोजना को आर्थिक रूप से सहायता करने को बल्कि उसके निर्माण, और फिर उसके रख-रखाव—उसे स्वच्छ, प्रदर्शनीय, और अच्छी अवस्था में रखने—के लिए अपनी सेवाओं को अर्पित करने को भी एक विशेषाधिकार समझना चाहिए। अंदर और बाहर दोनों से, राज्यगृह को यहोवा और उसके संगठन का उचित रूप से प्रतिनिधित्व करना चाहिए।
५ तब क्या जब एक कलीसिया महसूस करती है कि वह स्वयं अपने राज्यगृह का निर्माण करने की स्थिति में है? इस बात का फ़ैसला स्थानीय भाइयों द्वारा किया जाना चाहिए। संस्था द्वारा दी गयी कई कार्यविधियाँ हैं जिनका ज़मीन ख़रीदते, योजना बनाते, और एक सभागृह का निर्माण करते समय बाक़ायदा पालन किया जाना चाहिए। पहला क़दम है कलीसिया का इस कार्रवाई को मंज़ूर करते हुए एक प्रस्ताव पारित करना और अतिरिक्त निर्देशनों के लिए संस्था के राज्यगृह विभाग से सम्पर्क करना। कलीसिया द्वारा ज़मीन ख़रीदने का कार्य आरम्भ करने से पहले कई एहतियाती क़दम उठाए जाने चाहिए। क्षेत्रीकरण नियम, भवन-निर्माण संहिता, और धार्मिक उद्देश्यों के लिए निर्माण करने की अनुमति कुछ ऐसी प्राथमिक बातें हैं जिनकी जाँच किए जाने की ज़रूरत है।
क्षेत्रीय निर्माण समिति की भूमिका
६ संस्था ने आध्यात्मिक रूप से प्रौढ़ प्राचीनों की एक क्षेत्रीय निर्माण समिति (क्षे.नि.स.) गठित की है जो राज्यगृह बनाने से सम्बन्धित मामलों में मदद और मार्गदर्शन देने के लिए सक्षम हैं। पाँच सदस्यों की यह समिति आपके क्षेत्र के लिए उपयुक्त राज्यगृहों की ख़रीदारी या निर्माण पर निर्देशन देगी, जिसमें कलीसिया के आर्थिक संसाधनों और ज़रूरी आकार को मद्देनज़र रखा जाएगा। यह क्षेत्रीय निर्माण समिति स्थानीय राज्यगृह निर्माण समिति की जगह नहीं लेगी, बल्कि निर्माण कार्यक्रम में उसकी सहायता करेगी। यह सलाह दी जाती है कि ज़मीन ख़रीदने से पहले ही स्थानीय निर्माण समिति क्षे.नि.स. से सुझाव के लिए परामर्श करे। क्योंकि क्षे.नि.स. में लागत और निर्माण के विभिन्न पहलुओं में निपुणता रखनेवाले योग्य पुरुष हैं, ऐसे जोखिमों में उनकी मदद मूल्यवान होगी।
७ एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र जहाँ अच्छी पूर्व-योजना की माँग की जाती है वह है राज्यगृह का आकार—उसकी योजना और बैठने की क्षमता। एक सरल फिर भी व्यावहारिक योजना सर्वोत्तम होती है। क्षे.नि.स. के पास ऐसी अनेक योजनाएँ हैं लेकिन मूलतः यह तीन तरह की बैठने की ज़रूरतों पर ध्यान देती है: १००, १५०, और २५० लोगों के लिए। सभागृह के कुल फ़र्शी क्षेत्रफल का हिसाब एक सूत्र के आधार पर लगाया जाता है, अर्थात बैठनेवाले लोगों की संख्या को १.८ वर्ग-मीटर से गुणा कीजिए। उदाहरण के लिए, अगर १०० लोगों की क्षमतावाले गृह की इच्छा है, तो १८० वर्ग-मीटर की ज़रूरत है। इसमें अन्य आवश्यकताओं के लिए जगह होगी जैसे कि शौचालय, पत्रिका और साहित्य काउन्टर, दूसरा स्कूल, इत्यादि। ऐसा हिसाब और योजना करना राज्यगृह को आरामदेह बनाएगा और जगह की कमी नहीं होगी। क्षेत्रीय निर्माण समिति उचित प्लैटफ़ॉर्म, ध्वनि व्यवस्था का स्थान, बत्तियों और पंखों की स्थिति और अन्य इलॆक्ट्रिकल विवरण, जनरॆटर कमरा और नलकारी व्यवस्था तथा मलजल व्यवस्था के सम्बन्ध में सुझाव देने के लिए भी सक्षम है।
८ कुछ मामलों में, एक से ज़्यादा कलीसियाएँ उसी राज्यगृह का इस्तेमाल कर सकती हैं जिससे इन सहूलियतों का पूरा-पूरा इस्तेमाल हो सकता है और आर्थिक बोझ ज़्यादा व्यक्तियों पर पड़ता है। दो या अधिक कलीसियाओं के बीच ऐसा सहयोग निर्माण कार्यक्रम की आर्थिक व्यवहार्यता को उल्लेखनीय रूप से बढ़ाएगा। बहरहाल, जहाँ तक पेशगी और अन्य प्रबंधों का सवाल है, संस्था केवल एक कलीसिया के साथ व्यवहार करती है। इस बात के विवरणों पर फ़ैसला हिस्सेदार कलीसियाओं के प्राचीनों के निकायों को करना चाहिए कि कलीसियाएँ अपनी सभाएँ कब आयोजित करेंगी।
राज्यगृह की अर्थ-व्यवस्था करना
९ यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि राज्यगृह के लिए ज़मीन के पैसे संस्था नहीं देती, हालाँकि विरल मामलों में, जिस शहर में कार्य अच्छी प्रगति कर रहा है जहाँ दो से अधिक कलीसियाएँ एक सभागृह को इस्तेमाल कर सकती हैं, संस्था ने भूमि की ख़रीदारी के लिए अर्थ-व्यवस्था करने की मदद की है। यहोवा के आधुनिक दिन सेवक उसी आत्मा को दिखाना जारी रखेंगे जिसका २ कुरिन्थियों ८:१०-१५ में पौलुस द्वारा प्रोत्साहन दिया गया है: “इस बात में मेरा विचार . . . यह नहीं, कि औरों को चैन और तुम को क्लेश मिले। परन्तु बराबरी के विचार से इस समय तुम्हारी बढ़ती उनकी घटी में काम आए, ताकि उन की बढ़ती भी तुम्हारी घटी में काम आए, कि बराबरी हो जाए। जैसा लिखा है, कि जिस ने बहुत बटोरा उसका कुछ अधिक न निकला, और जिस ने थोड़ा बटोरा उसका कुछ कम न निकला।” नए राज्यगृहों के निर्माण में सहायता करने के लिए अपने समय और संसाधनों को देना यहोवा का आदर करने का एक उत्तम तरीक़ा है।—नीतिवचन ३:९.
१० कुछ ३,५०० साल पहले की स्थिति पर विचार कीजिए जब उदार अंशदानों की ज़रूरत उठी। यहोवा ने मूसा को अपनी उपासना में इस्तेमाल किए जाने के लिए एक निवासस्थान, या “मिलापवाले तम्बू” का निर्माण करवाने के लिए निर्देशित किया था। ईश्वरीय रूप से दी गयी रूप-रेखा ने विविध बहुमूल्य वस्तुओं की माँग की। यहोवा ने आज्ञा दी: “तुम्हारे पास से यहोवा के लिये भेंट ली जाए, अर्थात् जितने अपनी इच्छा से देना चाहें वे यहोवा की भेंट करके ये वस्तुएं ले आएं।” (निर्ग. ३५:४-९) लोगों ने कैसी प्रतिक्रिया दिखायी? वह वृत्तान्त हमें बताता है कि “जितनों को उत्साह हुआ, और जितनों के मन में ऐसी इच्छा उत्पन्न हुई थी, वे मिलापवाले तम्बू के काम करने और उसकी सारी सेवकाई और पवित्र वस्त्रों के बनाने के लिये यहोवा की भेंट ले आने लगे।” स्वेच्छा से दी हुई ये भेंट आहिस्ते-आहिस्ते इतनी ज़्यादा हो गयी कि जिस काम को करने की यहोवा ने आज्ञा दी थी उसके लिए जितना ज़रूरी था ये “उससे अधिक” था। (निर्ग. ३५:२१-२९; ३६:३-५) लोगों ने क्या ही निःस्वार्थ, उदार आत्मा प्रदर्शित की!
११ ऐसी ही एक पुकार कुछ ५०० साल बाद इस्राएलियों से उदार अंशदान के लिए की गयी। यरूशलेम में यहोवा के लिए एक स्थायी भवन का निर्माण करने की दाऊद की मंशा उसके पुत्र सुलैमान द्वारा पूरी होनेवाली थी। जो ज़रूरी होगा उसका बड़ा हिस्सा स्वयं दाऊद ने इकट्ठा किया और दान किया। दूसरे लोग भी शामिल हो गए जब दाऊद ने ‘यहोवा के लिए भेंट’ लाने की पुकार की। उसका परिणाम? “प्रजा के लोग आनन्दित हुए, क्योंकि हाकिमों ने प्रसन्न होकर खरे मन और अपनी अपनी इच्छा से यहोवा के लिये भेंट दी थी; और दाऊद राजा बहुत ही आनन्दित हुआ।।” (१ इतिहास २२:१४; २९:३-९) केवल सोना और चान्दी का मूल्य ही वर्तमान मूल्यों के अनुसार २० खरब रुपए होगा!—२ इतिहास ५:१.
१२ आधुनिक दिनों में भी पृथ्वी के अलग-अलग भागों में हमारे भाइयों द्वारा वैसी ही आत्मा प्रदर्शित की जाती है। यह जानना कितना प्रोत्साहक है कि हमारे सर्वसत्ताधारी प्रभु, यहोवा की उपासना के एक स्थान के निर्माण करने की इच्छा रोचक अनुभवों के साथ प्रत्यक्ष रही है, जो हमारे भाइयों के ‘खरे और इच्छुक मन’ को दिखाते हैं। उदाहरण के लिए, पोलैंड के कुछ भागों में, भाई ख़ेत किराए पर लेते हैं, अनाज़ उगाते हैं, और उपज को बेचते या बेरियाँ बटोरते हैं ताकि पैसे मिल सके जिससे समय आने पर वे लोग एक राज्यगृह का निर्माण कर सकें। कुछ लोगों ने ऐसी परियोजनाओं की ख़ातिर पैसे दिए हैं, औरों ने गहने और सम्पत्ति दी है। संस्था को अपनी अट्ठनी-चवन्नी भेजने के द्वारा अनेक बच्चों ने निर्माण परियोजनाओं के लिए क़दर व्यक्त की है—सांसारिक मूल्य में बहुत ही छोटी रक़म, लेकिन यहोवा की नज़रों में बड़ी।
१३ आर्थिक मदद देना शास्त्रीय बात है। “अंशदान” अनुवादित इब्रानी शब्द का अर्थ है “पवित्र भाग।” (निर्ग. २५:२, NW, रॆफ़रॆन्स बाइबल, फुटनोट, अंग्रेज़ी) मसीही लोग राज्य हितों को बढ़ावा देने के लिए ठीक-ठीक अपने समय, ताक़त, और भौतिक सम्पत्तियों का दान देने की इच्छा करते हैं। जब एक कलीसिया एक राज्यगृह का निर्माण करने की योजना बनाती है, तो कुछ लोग व्यक्तिगत रूप से परियोजना के लिए फ़ौरन दान करना या निधि को उधार देना सम्भव पाएँ जिसकी शायद उन्हें अभी ज़रूरत न हो। इसके अतिरिक्त, सभी लोग निर्धारित कर सकते हैं कि वे लोग हर महीने कितना अंशदान करेंगे। जबकि यह कोई दसमांश या माँग नहीं है, और क्योंकि यह पूरी तरह स्वेच्छा पर आधारित है, योजनाएँ बनाने में उनकी मदद करने के लिए प्राचीन कलीसियाओं के सदस्यों से यह जानकारी ले सकते हैं। बिना हस्ताक्षर के कागज़ जिस पर रक़म लिखी हो, यह अनुमान देने के लिए काफ़ी है।
१४ राज्यगृह निर्माण के लिए तैयार निधि जुटाने का एक व्यावहारिक तरीक़ा है राज्यगृह में एक अंशदान बक्स रखना जिस पर लिखा हो ‘निर्माण निधि,’ और भाइयों को इस उद्देश्य के लिए दान देने के लिए प्रोत्साहित करना। अगस्त १९९५ में, संस्था ने भारत की सभी कलीसियाओं को एक ऐसा बक्स रखने के लिए कहा। जिन कलीसियाओं के पास पहले से ही अपना एक राज्यगृह है और जिसके पैसे वे दे चुके हैं, या वे कलीसियाएँ जो अभी अपनी राज्यगृह निर्माण परियोजना में शामिल नहीं हैं और जो नज़दीकी भविष्य में एक ऐसी परियोजना के बारे में नहीं सोच रहे हैं, उन्हें इस बक्स से प्राप्त सभी पैसों को प्रत्येक महीने संस्था को प्रेषित कर देना चाहिए। ये प्रेषण ‘राष्ट्रीय राज्यगृह निधि’ के लिए अलग रखे जाते हैं। यह रा.रा.नि. एक ‘परिक्रामी निधि’ है जिसमें से देश भर में कलीसियाओं की अपनी राज्यगृह परियोजनाओं की अर्थ-व्यवस्था करने में सहायता करने के लिए पेशगियाँ दी जाती हैं। ये प्रतिदेय पेशगियाँ हैं जिन्हें व्यवहार का ख़र्च पूरा करने और अन्य गृहों की अर्थ-व्यवस्था करने में समर्थ होने के लिए नाममात्र तीन प्रतिशत अधिशुल्क के साथ लौटाया जाना चाहिए। सभी को स्थानीय कलीसिया ख़र्च के लिए उनके सामान्य अंशदानों के अतिरिक्त, इस निधि के लिए अपनी क्षमता और इच्छा के अनुसार नियमित रूप से कुछ अलग रखने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। (१ कुरि. १६:१-४ से तुलना कीजिए।) प्रारम्भिक मसीही कलीसिया के बारे में इतिहासकार टर्टूलियन ने लिखा: “प्रत्येक व्यक्ति महीने में एक बार एक छोटा सिक्का—या जो कुछ वह इच्छा करता है लाता है, और केवल तब यदि उसकी इच्छा है और यदि वह ऐसा कर सकता है; क्योंकि किसी को विवश नहीं किया जाता; यह एक स्वैच्छिक भेंट है।” आज अनेक धर्मों के विपरीत जो दान की माँग करने के लिए थालियाँ घुमाते हैं, मसीही कलीसिया में सभी भौतिक भेंट हृदय से स्वेच्छापूर्वक दी जाती हैं।—२ कुरिन्थियों ९:७.
१५ जब एक बार क्षे.नि.स. के सुझावों को लागू करने के बाद, स्थानीय प्राचीनों के निकाय द्वारा निर्माण की योजनाएँ अनुमोदित की जाती हैं, तब फिर एक बार क्षेत्रीय निर्माण समिति की सहायता से सम्पूर्ण परियोजना के ख़र्च का अनुमान लगाया जाना चाहिए। अब तक कलीसिया को यह भी पता लग जाएगा कि स्थानीय रूप से कितना पैसा उपलब्ध है। इस चरण पर, अगर इस पेशगी की आवश्यकता हो तो, कलीसिया संस्था को एक पेशगी के लिए आवेदन भर सकती है। संस्था उस निवेदन की जाँच करके फ़ैसला करेगी कि क्या पैशगी दी जाए जो दस वर्षों की अवधि में मासिक क़िस्तों में प्रतिदेय है। संस्था से एक ऐसी पेशगी का निवेदन करने से पहले यह आवश्यक है कि भाई बैठकर यथार्थ और वास्तविक रूप से लगनेवाला ख़र्च जोड़ें, ताकि उसी परियोजना के लिए अतिरिक्त पेशगियाँ माँगने से दूर रहें। (लूका १४:२८) एक राज्यगृह का रूप देने के लिए किसी फ़्लैट अथवा अन्य इमारत को ख़रीदने के लिए पेशगी के निवेदनों पर भी ग़ौर किया जाएगा यदि योजना व्यावहारिक पायी जाती है।
राज्यगृह सहायता प्रबन्ध
१६ यदि आपके पास एक अपना राज्यगृह है या किराए पर है और आप उस इमारत को अथवा अंदर की क़ीमती चल वस्तुओं को सुरक्षित रखना चाहते हैं, तो संस्था के पास एक राज्यगृह सहायता प्रबन्ध (रा.स.प्र.) है। इस पर जानकारी को सभी कलीसियाओं को वितरित कर दिया गया है। जिन कठिन समयों में हम जी रहे हैं इसे नज़र में रखते हुए, जिनमें चोरी और बर्बरता के अन्य कृत्यों की गुंजाइश बहुत बढ़ गयी है, यह एक बहुत ही लाभदायक प्रबन्ध है। हर साल केवल एक छोटा-सा दान देने के द्वारा, जिसकी रक़म संस्था द्वारा निर्धारित की जाती है, कलीसिया अपने आप को सम्पत्ति अथवा क़ीमती वस्तुओं के नुक़सान की भरपाई में मदद की अवस्था में लाती है। क़ीमती वस्तुएँ जैसे कि ध्वनि व्यवस्था और फ़र्नीचर की इस प्रकार सुरक्षा की जा सकती है। यह एक बहुत ही प्रेममय प्रबन्ध है और सभी कलीसियाओं को इसका इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
१७ देने की आत्मा यहोवा परमेश्वर से उत्पन्न होती है। वह अपने पार्थिव बच्चों को हर भले वरदान और परिपूर्ण भेंट का सबसे उदार दाता है। (याकू. १:१७) जो सभी अद्भुत चीज़ें उसने दी हैं उनके लिए वह हमसे क्या अपेक्षा करता है? भजनहार ने यह सवाल उठाया जब उसने कहा: “यहोवा ने मेरे जितने उपकार किए हैं, उनका बदला मैं उसको क्या दूं?” (भज. ११६:१२) उसकी सभी प्रेमपूर्ण कृपा और अनन्त जीवन की प्रत्याशाओं के लिए हम यहोवा को क्या दे सकते हैं? इसके उत्तर में स्वयं भजनहार ने कहा: “मैं उद्धार का कटोरा उठाकर, यहोवा से प्रार्थना करूंगा, मैं तुझ को धन्यवादबलि चढ़ाऊंगा।” (भज. ११६:१३, १७) जी हाँ, जो सबसे बहुमूल्य भेंट हम यहोवा को दे सकते हैं वह है हमारी अटल निष्ठा जैसे-जैसे हम उसके नाम को पुकारते हैं और अपने क्षेत्र में शुद्ध उपासना को बढ़ावा देते हैं। ऐसा करने का एक सर्वोत्तम तरीक़ा है स्वयं अपना राज्यगृह बनाना जहाँ लोग यह कहते हुए आएँगे “हम तुम्हारे संग चलेंगे, क्योंकि हम ने सुना है कि परमेश्वर तुम्हारे साथ है।”—जकर्याह ८:२३.
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क्या आपका हृदय आपको एक राज्यगृह बनाने के लिए दान करने को विवश करता है?
ऐसे अनेक तरीक़े हैं जिनसे आप एक राज्यगृह बनाने के लिए अपनी क़दरदानी और इच्छा दिखा सकते हैं। संस्था के पास ऐसी परियोजनाओं की अर्थ-व्यवस्था में मदद करने के लिए राष्ट्रीय राज्यगृह निधि है। आप निम्नलिखित तरीक़ों से सहायता कर सकते हैं:
१. भेंट: पैसे के स्वैच्छिक चंदे सीधे वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी को भेजे जा सकते हैं। गहने या अन्य मूल्यवान वस्तुएँ भी चंदे के रूप में दी जा सकती हैं। इन अंशदानों के साथ एक संक्षिप्त पत्र भेजा जाना चाहिए जिसमें कहा गया हो कि यह राष्ट्रीय राज्यगृह निधि के लिए बिनाशर्त भेंट है।
२. शर्तबन्द-चंदा व्यवस्था: वॉच टावर संस्था को दाता की मृत्यु तक न्यास (ट्रस्ट) में रखने के लिए पैसा दिया जा सकता है, इस शर्त के साथ कि व्यक्तिगत ज़रूरत के समय, यह दाता को लौटा दिया जाएगा। इस पैसे को ऊपरोक्त निधि के लिए स्पष्ट रूप से चिन्हित होना चाहिए।
३. बैंक खाते: बैंक खाते, जमा प्रमाण-पत्र, या व्यक्तिगत निवृत्ति खाते, स्थानीय बैंक की माँगों के अनुरूप, वॉच टावर संस्था के लिए न्यास में रखे जा सकते हैं या वॉच टावर संस्था को मृत्यु पर देय किए जा सकते हैं। विशिष्ट कीजिए कि ये रक़म ऊपरोक्त निधि के लिए इस्तेमाल की जानी चाहिए। संस्था को ऐसी किसी भी व्यवस्था के बारे में सूचना दी जानी चाहिए।
४. स्टॉक और शेयर: स्टॉक और शेयर वॉच टावर संस्था को या तो बिनाशर्त भेंट के रूप में या ऐसी एक व्यवस्था के अधीन दान किए जा सकते हैं जिसमें आमदनी पहले की तरह ही दाता को दी जाती है। यदि कोई प्राप्ति हो तो उन्हें संस्था पर आश्रित राज्यगृह निधि के लिए उद्देष्ट होना चाहिए।
५. भू-सम्पत्ति: विक्रेय भू-सम्पत्ति वॉच टावर संस्था को बिनाशर्त भेंट करने के द्वारा दी जा सकती है या दाता के लिए आजीवन-सम्पदा सुरक्षित रखने के द्वारा दान की जा सकती है, जो वहाँ अपने जीवनकाल के दौरान रह सकता या सकती है। किसी भी भू-सम्पत्ति का संस्था के नाम दानपत्र बनाने से पहले व्यक्ति को संस्था के साथ संपर्क करना चाहिए। इससे प्राप्त पैसे को स्पष्ट रूप से राज्यगृह निधि के लिए विशिष्ट किया जाना चाहिए।
६. वसीयत और न्यास: सम्पत्ति या पैसा वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी के नाम एक क़ानूनी तौर पर निष्पादित वसीयत के द्वारा किया जा सकता है, या संस्था को एक न्यास अनुबन्ध पत्र का लाभग्राही बनाया जा सकता है। किसी धार्मिक संगठन को लाभ पहुँचानेवाले एक न्यास से करों में कुछ लाभ मिल सकते हैं। वसीयत या न्यास अनुबन्ध पत्र की एक प्रति संस्था को भेजी जानी चाहिए और उस वसीयत या न्यास की आय को राज्यगृह निधि के लिए स्पष्ट रूप से चिन्हित होना चाहिए।
ऐसे मामलों पर अधिक जानकारी के लिए, Watch Tower Bible and Tract Society of India, H-58 Old Khandala Road, Lonavla 410 401, MAH., INDIA को लिखिए