व्यक्तिगत अध्ययन आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता है
यहोवा प्रगतिशील परमेश्वर है। पृथ्वी की सृष्टि में यह स्पष्ट था। सृष्टि के प्रत्येक दौर ने मनुष्यजाति के अनंत अस्तित्त्व के लिए एक सुंदर ग्रह प्रदान करने की प्रगति को देखा। तब भी जब मनुष्य ने शुद्ध उपासना को अवज्ञाकारितापूर्वक छोड़ दिया, प्रेम ने यहोवा को प्रेरित किया कि पृथ्वी पर अंततः परादीस पुनःस्थापित करने के लिए प्रगतिशील प्रबंध में लग जाए।—उत्प. ३:१५.
२ मनुष्य, जिसे आरंभ में परमेश्वर के स्वरूप में बनाया गया था, उसमें प्रगतिशील स्वभाव डाला गया है। फिर भी, आज अनेक लोग प्रगति को केवल भौतिक साधनों की वृद्धि के तौर पर देखते हैं। क्या इस समय यहोवा अपने सेवकों में इसी तरह की प्रगति को देखता है? आपके जीवन में किस प्रकार की प्रगति विशेष रूप से प्रत्यक्ष है?
३ परमेश्वर और पड़ोसी के लिए प्रेम आध्यात्मिक प्रगति को प्रोत्साहित करता है: जबकि मसीहियों को अपने परिवार की ज़रूरतों को पर्याप्त रूप से पूरा करने की आवश्यकता को समझने की ज़रूरत है, उन्हें यह भी समझने की ज़रूरत है कि यह उनके ध्यान का मुख्य केंद्र-बिंदू नहीं होना चाहिए। एक युवक के तौर पर, यीशु ने आध्यात्मिक प्रगति को जीवन में सबसे महत्त्वपूर्ण लक्ष्य समझा। (लूका २:५२) आगे चलकर, उसने अपनी आध्यात्मिक प्रगति की प्रेरणा के बारे में बताया जब उसने मरकुस १२:२९-३१ में अभिलिखित शब्द कहे।
४ जो आध्यात्मिक प्रगति हम कर रहे हैं उसके बारे में सोचने के लिए थोड़ा समय निकालिए। जब हमने शुरू-शुरू में यहोवा और उसके व्यक्तित्व के बारे में सीखना शुरू किया था, तो उसके प्रति हमारे मूल्यांकन और प्रेम ने हमें अपने सोचविचार और जीवन शैली में कुछ समंजन करने के लिए प्रेरित किया। यह प्रेम विकसित होता रहा जब तक कि इसने हमारे अंदर अपने जीवन को परमेश्वर के प्रति समर्पित करने और पानी के बपतिस्मे द्वारा इसे सार्वजनिक रूप से चिन्हित करने की इच्छा पैदा न कर दी। इसने परमेश्वर की सेवा में प्रगति करने और अपने संगी मनुष्यों के लिए प्रेममय परवाह दिखाने के हमारे दृढ़ फ़ैसले का प्रमाण दिया। अब वह समय बीत चुका है, हमें फिलिप्पियों ३:१६ के उत्प्रेरित वचनों के महत्ता पर ध्यान देने की ज़रूरत हो सकती है।
५ परमेश्वर के प्रति हमारे समर्पण के लिए, जो हमारे जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण फ़ैसला था जो हमने कभी किया था, हमें अपनी जीवन शैली में बड़े परिवर्तन करने पड़े। हमने स्वेच्छा से यह क़दम उठाया और ख़ुशी से अपने जीवन को परमेश्वर के मार्गों के अनुसार ढाला क्योंकि हमारे लिए परमेश्वर के प्रेम के अनेक प्रदर्शनों से हम प्रेरित हुए थे, जिसने बदले में उसके प्रति हमारे प्रेम को बढ़ाया। तब से, क्या परमेश्वर के प्रति हमारे प्रेम ने प्रगति की है? क्या यह हमारे जीवन में एक ज़्यादा मज़बूत शक्ति बन गई है? या कहीं ऐसा तो नहीं कि हम इफिसुस कलीसिया के मसीहियों की तरह बन गए हैं जिन्होंने “अपना पहिला-सा प्रेम छोड़ दिया” था?—प्रका. २:४, ५.
६ परमेश्वर के प्रति प्रेम उदासीन या निष्क्रिय नहीं है, यह प्रगतिशील है। हम जीवन में कभी-भी एक ऐसी सीमा पर नहीं पहुँचेंगे जहाँ हमें महसूस हो कि परमेश्वर के प्रति हमारा प्रेम चरम सीमा पर पहुँच गया है, और प्रगति करने की कोई और गुंजाइश नहीं है। जैसे-जैसे हम परमेश्वर के बारे में अपना ज्ञान बढ़ाते जाते हैं, वैसे-वैसे उसके लिए हमारा प्रेम बढ़ता जाता है। यह अनंतकाल तक बढ़ता रहेगा। पौलुस ने इसे रोमियों ११:३३-३६ में कितनी अच्छी तरह बताया है। हम भी, इस सवाल की सच्चाई को नम्रतापूर्वक मानते हैं, “प्रभु की बुद्धि को किस ने जाना?”
७ इन शब्दों की वज़ह से हमें अपने व्यक्तिगत जीवन के बारे में सोचना और यहोवा के लिए हमारे प्रेम की गहराई को जाँचना चाहिए। क्या हम प्रगति कर रहे हैं, या जीवन के दबावों के कारण, क्या हम यह पा रहे हैं कि आध्यात्मिक बातों के लिए समय कम है? क्या मसीही कलीसिया के बाहर हमारे पड़ोसियों या हमारे नज़दीक़ी पड़ोसियों, हमारे भाइयों और बहनों के प्रति प्रेम दिखाने के लिए समय निकालना कठिन हो रहा है? यदि ऐसा है, तो फिलिप्पियों ३:१६ का पूर्वउद्धृत शास्त्रवचन हमारे लिए एक ख़ास महत्त्व रखता है।
८ हम कैसे पता लगा सकते हैं कि परमेश्वर और पड़ोसियों के लिए हमारा प्रेम हमारी आध्यात्मिक प्रगति को प्रेरित करने के लिए पर्याप्त है कि नहीं? क्या हमारे निर्णय हमेशा परमेश्वर और मनुष्य के लिए प्रेम द्वारा प्रेरित होते हैं? २ कुरिन्थियों १३:५ के सामंजस्य में हम इसका विश्लेषण कैसे करते हैं? इसे कलीसिया में दूसरों के साथ तुलना करने के द्वारा नहीं किया जाता। परमेश्वर और पड़ोसियों के प्रति प्रेम एक व्यक्तिगत मामला है। हमारे अपने लाक्षणिक हृदय में प्रकट प्रेम महत्त्वपूर्ण बात है। पौलुस ने गलतियों ६:४ में सही मनोवृत्ति व्यक्त की। उसने इसी विचार पर रोमियों १४:१२ में ज़ोर दिया।
९ क्या हम परमेश्वर के प्रति अपने प्रेम को ठंडा होते हुए महसूस करते हैं जिसके कारण हम ढीले पड़ गए हैं? क्या आध्यात्मिक गतिविधियों में हिस्सा लेने की हमारी इच्छा क्षीण पड़ गई है? कुछ प्रारंभिक मसीहियों ने इसी तरह महसूस किया और शायद इसी ने पौलुस को २ थिस्सलुनीकियों ३:१३ में पाए जानेवाले प्रोत्साहक वचन लिखने के लिए प्रेरित किया हो। पौलुस जानता था कि मसीहियों को उन माँगों के बावजूद जो संसार उन पर लादने की कोशिश करता है, आध्यात्मिक प्रगति करते रहना चाहिए। जब हम उसके वचनों को अपने जीवन में लागू करते हैं तो हम आध्यात्मिक सफलता के बारे में आश्वस्त हो सकते हैं। उसने फिलिप्पियों ४:१३ में हमें और प्रोत्साहन दिया।
१० बाइबल पठन और व्यक्तिगत अध्ययन द्वारा आध्यात्मिक शक्ति: यहोवा अपने लिखित वचन द्वारा शक्ति और बल प्रदान करता है। (इब्रा. ४:१२) इस संसार के दबावों के कारण ढीले पड़ जाने के किसी-भी झुकाव से लड़ने में हम बाइबल का प्रयोग कैसे कर सकते हैं? अनेक लोगों ने यहोवा की वफ़ादार सेवा में दशकों, यहाँ तक बीसियों वर्ष बिताएँ, और अब वे बीमारी या ढलती उम्र का सामना करते हैं। यदि हम उस स्थिति में हैं, तो हम इब्रानियों ६:१० के शब्दों से प्रोत्साहन पा सकते हैं। लेकिन तब क्या जब हमें यह मालूम पड़े कि आध्यात्मिक गतिविधि में हमारी कमी का कारण उम्र या बीमारी नहीं। तब परमेश्वर का वचन हमें आध्यात्मिक शक्ति कैसे प्रदान कर सकता है?
११ हम संक्षिप्त में दो तरीक़ों के बारे में चर्चा करेंगे जिनमें परमेश्वर के वचन को पढ़ना और अध्ययन करना मदद कर सकता है। पहली बात, बाइबल को रोज़ पढ़ना और जो हम पढ़ते हैं उस पर मनन करना हमें यहोवा के व्यक्तित्व के बारे में गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। हम उसके सभी व्यवहारों और सिद्धांतों में प्रकट बुद्धि और प्रेम का मूल्यांकन करना सीखते हैं। हम उसी तरह महसूस करते हैं जैसा भजनहार ने महसूस किया, जिसने भजन ११९:९७ के शब्द लिखे। जब परमेश्वर के वचन के लिए हमारा प्रेम बढ़ता है, तब इस वचन के रचयिता के प्रति हमारा प्रेम बढ़ता है। परमेश्वर के लिए हमारा गहरा प्रेम हमारे जीवन में एक शक्तिशाली प्रेरक बन जाता है। (श्रेष्ठ. ८:६, ७) यह हमें उसकी सेवा में ‘यत्न करने’ के लिए आध्यात्मिक इच्छा और शक्ति प्रदान करता है।—लूका १३:२४.
१२ दूसरी बात, बाइबल पवित्र आत्मा द्वारा रचित है। परमेश्वर के वचन का दैनिक पठन पवित्र आत्मा के एक शानदार स्रोत को खोल देता है। यह पवित्र आत्मा ही है जिसने वफ़ादार सेवकों को जो सही है उसे करने में कभी-भी हियाव न छोड़ने की शक्ति प्रदान की थी। वही पवित्र आत्मा आज सभी को उपलब्ध है, लेकिन इसे प्राप्त करने, क़ायम रखने, और अपने जीवन को प्रभावित करने देने के लिए हमें प्रयास करने की ज़रूरत है।
१३ क्या निम्नलिखित अभिव्यक्तियाँ हमारी भावनाओं को व्यक्त करती हैं? “मुझे पढ़ने में दिलचस्पी नहीं है।” “अध्ययन मुझे भारी काम लगता है।” “मैं अच्छा विद्यार्थी नहीं हूँ इसलिए मुझे पढ़ने और अध्ययन करने में ज़्यादा मज़ा नहीं आता।” “मैं अपनी व्यस्त दिनचर्या में पढ़ने और अध्ययन करने के लिए समय निकालना मुश्किल पाता हूँ।” “मैं अच्छे इरादों से शुरूआत करता हूँ, लेकिन तब दूसरी बातें बीच में आ जाती हैं, और पढ़ने और अध्ययन करने का मेरा समय निकल जाता है।” क्या हम इनमें से एक या कई समस्याओं का सामना करते हैं? यदि हाँ, तो हम क्या कर सकते हैं? पहली बात होगी हमारे दिल में परमेश्वर के प्रति भावनाओं को जाँचना। यदि हमें किसी प्रेममय नज़दीक़ी मित्र या रिश्तेदार से एक चिट्ठी मिले, तो क्या हम यह कहेंगे कि हमारे पास पढ़ने का समय नहीं है, या हम उसे खोलने का भी कष्ट नहीं करेंगे क्योंकि हमें पढ़ना अच्छा नहीं लगता? जी नहीं। हम उसे खोलने और पढ़ने के लिए बेताब होते हैं। तो क्या हमें बाइबल के रूप में हमारे स्वर्गीय पिता से संचार के बारे में ऐसा ही नहीं महसूस करना चाहिए?
१४ संस्था या प्राचीन हमारे लिए बाइबल पठन की कठोर समय-सारणी नहीं बना सकते, क्योंकि हरेक व्यक्ति की परिस्थितियाँ भिन्न हैं। परमेश्वर के लिए हमारा प्रेम और उसे गहरा करने की हमारी इच्छा बाइबल पठन और व्यक्तिगत अध्ययन को हमारी दैनिक गतिविधि के नियमित पहलू बनाने के लिए हमें प्रेरित करेगी। हरेक परिवार के मुखिया को इसे परिवार के आध्यात्मिक हितों की देखभाल और बच्चों के प्रशिक्षण के एक महत्त्वपूर्ण भाग के रूप में देखना चाहिए। माता-पिता को अपने बच्चों के हृदयों में प्रतिदिन परमेश्वर के प्रेम को बैठाने की हिदायत दी गई थी। (व्यव. ६:४-९) बाइबल पठन परमेश्वर की इस माँग को पूरा करने का एक उत्तम तरीक़ा है। जो सही है उसे करने में आइए हम कभी-भी हियाव न छोड़ें! ऐसा हो कि परमेश्वर और मसीह के लिए हमारा प्रेम हमें नियमित बाइबल पठन के लिए प्रेरित करे। (२ कुरि. ५:१४) दूसरे लोग हमारी आध्यात्मिक उन्नति को परमेश्वर के प्रति हमारे प्रेम के प्रकटन के रूप में देखेंगे।—१ तीमु. ४:१५.
१५ ज्ञान पुस्तक पृष्ठ १५८ पर, दैनिक बाइबल पठन के बारे में ऐसा कहती है: “जिस तरह हमें उस भौतिक भोजन के लिए स्वाद विकसित करने की ज़रूरत हो सकती है जो हमारे लिए अच्छा है, उसी तरह हमसे आग्रह किया गया है कि ‘वचन के शुद्ध दूध के लिए लालसा विकसित करें।’ परमेश्वर के वचन को प्रतिदिन पढ़ने के द्वारा आध्यात्मिक भोजन के लिए स्वाद विकसित कीजिए। . . . आप बाइबल से जो पढ़ते हैं उस पर मनन कीजिए। . . . इसका अर्थ है विषय पर चिन्तन करना। . . . जो आप पढ़ रहे हैं, उसको उन बातों के साथ जोड़ने के द्वारा जिन्हें आप पहले से ही जानते हैं, आप आध्यात्मिक भोजन को पचा सकते हैं। विचार कीजिए कि वह जानकारी कैसे आपके जीवन को प्रभावित करती है, या मनन कीजिए कि वह यहोवा के गुणों और व्यवहार के बारे में क्या प्रकट करती है। अतः व्यक्तिगत अध्ययन के द्वारा आप वह आध्यात्मिक भोजन ले सकते हैं जो यहोवा प्रदान करता है। यह आपको परमेश्वर के और निकट लाएगा और दिन-प्रति-दिन की समस्याओं से निपटने में आपकी मदद करेगा।”
१६ इसलिए, व्यक्तिगत अध्ययन को कभी-भी नज़रअंदाज़ मत कीजिए; यह आध्यात्मिक प्रगति के लिए अनिवार्य है और आध्यात्मिक प्रगति परमेश्वर के शानदार नए संसार में बचकर जाने के लिए अनिवार्य है। आइए हम यहोवा से और अपने पड़ोसियों से पर्याप्त प्रेम करना जारी रखें, जिससे हममें प्रगति करने की इच्छा हो, और ऐसा हो कि हम अपने व्यक्तिगत अध्ययन में परिश्रमी होने के द्वारा इस प्रगति को हासिल करें।—नीति. २:१-९.