वृद्ध जन बिना रुके प्रचार करते हैं
जब लोग वृद्ध होने लगते हैं, तो अधिकतर अपनी नौकरी से रिटायर होकर अपने बाक़ी बचे सालों के दौरान एक चिंतामुक्त जीवन जीने की आशा रखते हैं। वे शायद ऐसा महसूस करें कि उन्होंने काफ़ी मेहनत की है और अब उन्हें आरामदेह ज़िंदगी जीने का हक़ है। या शायद वे अब बस बाक़ी बचे जीवन का आनंद लेना चाहते हों।—लूका १२:१९.
२ यहोवा के समर्पित सेवकों की हैसियत से जीवन के प्रति हमारा दृष्टिकोण भिन्न है। हम जानते हैं कि परमेश्वर की सेवा से अवकाश नहीं है। हमारा दृष्टिकोण सकारात्मक है क्योंकि हम ‘अनन्त जीवन की आशा देखते रहते हैं।’ (यहू. २१) सालों तक हासिल किया गया ज्ञान और अनुभव एक व्यक्ति की परखशक्ति और अंतर्दृष्टि को बढ़ा सकते हैं। यह उसे ज़्यादा बुद्धिमान और संतुलित बनने में और जीवन के लिए और गहरी क़दरदानी दिखाने में समर्थ कर सकता है। सुसमाचार के सेवक की हैसियत से, ये सभी गुण एक व्यक्ति के बहुत काम आते हैं।
३ वृद्ध होना सिर्फ़ शारीरिक बुढ़ापा नहीं है; इसमें एक व्यक्ति की मनोवृत्ति भी शामिल है। अगर आप लंबे समय तक जीने की आशा रखें और अपने दृष्टिकोण में जवाँ रहने का प्रयास करें तो इन दोनों को पाने की संभावना बढ़ सकती है। वृद्ध जन अपना आध्यात्मिक ज्ञान बढ़ाने और उसको दूसरों के साथ बाँटने के द्वारा जीवन में और संतुष्टि पा सकते हैं।—१ कुरि. ९:२३.
४ जीवन के असली उदाहरण: छियासी साल की एक बहन ने कहा: “सच्चाई सीखने के बाद पिछले ६० सालों के बारे में जब मैं सोचती हूँ तब परमेश्वर की आश्वासन देनेवाली प्रतिज्ञा मेरे दिल में उभर आती है। जी हाँ, यहोवा जो निष्ठावान के साथ अपने को निष्ठावान दिखाता है हमें आनंद ही आनंद देता है।” (भजन १८:२५, NW) एक वृद्ध भाई ने बताया कि कैसे उसकी पत्नी की मौत से उसे गहरा सदमा पहुँचा, जिसके बाद उसकी सेहत निहायत ख़राब होने लगी। उसने कहा: “फिर भी, यहोवा की मेहरबानी से, मैं इस हद तक तंदुरुस्त हुआ कि दो साल बाद मैं पायनियर सेवा शुरू कर सका। मैं यहोवा का कितना एहसानमंद हूँ कि प्रचार गतिविधियों को बढ़ाने से मेरी सेहत वास्तव में सुधर गई है!”
५ कितना सराहनीय है कि इतने सारे वृद्ध जन उस हद तक—बिना रुके— प्रचार कार्य में लगे रहने के लिए दृढ़ हैं, जिस हद तक उनकी सेहत और शक्ति उन्हें अनुमति दे! उन्हें यह कहने के लिए उचित कारण है: “हे परमेश्वर, तू तो मुझ को बचपन ही से सिखाता आया है, और अब तक मैं तेरे आश्चर्य कर्मों का प्रचार करता आया हूं।”—भज. ७१:१७.