आप उदासीनता के प्रति कैसी प्रतिक्रिया दिखाते हैं?
उदासीनता का मतलब है भावना या संवेदना की कमी, दिलचस्पी या चिंता का अभाव। यह बहुत ही आम और बहुत ही कठिन मनोवृत्ति है जिसका हम सेवकाई में सामना करते हैं। आप इसके प्रति कैसी प्रतिक्रिया दिखाते हैं? क्या इसके कारण आप अपनी सेवकाई में धीमे पड़ गए हैं? आप इस पर कैसे जीत हासिल कर सकते हैं ताकि राज्य संदेश लोगों तक पहुँचा सकें?
२ सबसे पहले तो यह पता लगाइए कि आपके क्षेत्र के लोग उदासीन क्यों हैं। क्या उसकी वज़ह यह है कि अपने राजनैतिक नेताओं और धर्म गुरुओं से उनकी उम्मीदें टूट चुकी हैं? क्या वे यह सोचते हैं कि जिन समस्याओं का वे सामना कर रहे हैं उनका कोई हल नहीं है? क्या वे बेहतरी के वायदों को शक की निगाहों से देखते हैं? क्या वे तब तक आध्यात्मिक बातों पर सोचने के लिए राज़ी नहीं होते जब तक कि वे उनके तात्कालिक लाभ अपनी आँखों से नहीं देख लेते?
३ राज्य आशा पर ज़ोर दीजिए: ऐसी कोई समस्या नहीं है जिसे राज्य नहीं सुलझाएगा। सो जब हमसे बन पड़े, हमें राज्य प्रतिज्ञाओं के बारे में बात करनी चाहिए और मुख्य शास्त्रीय कथनों का ज़िक्र करना चाहिए, चाहे बाइबल पाठ दिखाना संभव या व्यावहारिक न भी हो। (इब्रा. ४:१२) लेकिन, हम चर्चा को उस मुक़ाम तक कैसे ला सकते हैं?
४ लोगों को समझने की ज़रूरत है कि हम उनसे क्यों भेंट करते हैं। उन्हें इस बात का एहसास करने की ज़रूरत है कि हम पड़ोसी के प्रेम और समाज की चिंता की ख़ातिर उनके पास आए हैं। हम एक अच्छे से सोचा-विचारा हुआ सवाल पूछ सकते हैं, जैसे कि, “आपकी राय में [समाज को प्रभावित करनेवाली एक समस्या] का क्या हल है?” अगर एक तरह की प्रस्तावना से काम नहीं बनता, तो दूसरी आज़माइए।
५ एक बहुत ही धनी क्षेत्र में जहाँ गृहस्वामी राज्य संदेश के प्रति बेरुखे थे, प्रकाशकों ने एक ऐसी प्रस्तावना ढूँढ़ने की कोशिश की जो दिलचस्पी जगाती। ज्ञान पुस्तक को पेश करते समय, एक दंपति ने इस प्रस्तावना को आज़माया: “क्या आपको लगता है कि आज दुनिया में क़ामयाबी हासिल करने के लिए अच्छी शिक्षा ज़रूरी है? क्या आप इससे सहमत हैं कि व्यापक शिक्षा में बाइबल का ज्ञान शामिल होगा?” एक ही दोपहर में उन्होंने तीन पुस्तकें वितरित कीं। उनमें से एक उस स्त्री ने ली जिसने बाद में कहा कि उसने पूरी ज्ञान पुस्तक पढ़ ली थी और वह एक बाइबल अध्ययन के लिए राज़ी हो गयी।
६ जब आप उदासीनता का सामना करें, तो अलग-अलग प्रस्तावनाएँ आज़माइए, ऐसे सवाल पूछिए जो सोचने पर मज़बूर करें और परमेश्वर के वचन की ताक़त का इस्तेमाल कीजिए। इस तरह आप शायद हमारी शानदार राज्य आशा को दिल से लगाने में दूसरों की मदद कर पाएँ।