आपकी कमी खलती है!
समय-समय पर शायद हम एकाध कलीसिया सभाओं में न जाएँ, यह सोचकर कि ‘मेरी कमी किसी को नहीं खलेगी; उनको तो पता भी नहीं चलेगा कि मैं नहीं आया।’ यह सच नहीं है! हमारे जिस्म के किसी भी अंग की तरह, हममें से हरेक व्यक्ति कलीसिया को चलाने में एक बहुत ही अहम भूमिका निभाता है। (१ कुरि. १२:१२) साप्ताहिक सभा में हमारी ग़ैर-मौजूदगी वहाँ मौजूद दूसरे लोगों के आध्यात्मिक हित पर असर डाल सकती है। अगर आप नहीं आए हैं, तो यक़ीन मानिए—आपकी कमी खलती है!
२ आपकी अहम भूमिका: पौलुस अपने भाइयों के साथ मिलने-जुलने के लिए तरसता था। रोमियों १:११, १२ समझाता है कि ऐसा क्यों था: “कि मैं तुम्हें कोई आत्मिक बरदान दूं . . . कि मैं तुम्हारे बीच में होकर तुम्हारे साथ उस विश्वास के द्वारा जो मुझ में, और तुम में है, शान्ति पाऊं।” उसी तरह, हमारी टिप्पणियों से, सभा में हमारे भाग लेने से, और हमारी सिर्फ़ मौजूदगी से हम एक दूसरे को वफ़ा की राह पर बने रहने का हौसला देने के लिए बहुत कुछ करते हैं।—१ थिस्स. ५:११.
३ क्या आप कलीसिया सभाओं में दूसरों से मिलने का इंतज़ार नहीं करते? आप उनकी टिप्पणियों को ग़ौर से सुनते हैं और विश्वास की उनकी अभिव्यक्तियों की क़दर करते हैं। उनके आत्मिक वरदान से आपका हौसला बढ़ता है। अगर वे सभा में नहीं आते, तो यक़ीनन आपको लगता कि किसी ज़रूरी चीज़ की कमी थी। अगर आप नहीं आते हैं तो आपके भाई-बहनों को भी आपके बारे में ऐसा ही लगता है।
४ सभाओं की अहम भूमिका: एक बार प्रहरीदुर्ग ने कहा था कि हमारे आध्यात्मिक बचाव के लिए सभाएँ कितनी अहम हैं, और यूँ लिखा: “इस संघर्ष-ग्रस्त, अनैतिक संसार में, मसीही कलीसिया सचमुच एक आध्यात्मिक शरणस्थान . . . , शांति और प्रेम का आशियाना है। इसलिए उसकी सभी सभाओं में नियमित रूप से उपस्थित होइए।” (w९३ ८/१५ ११) हर रोज़, हम ऐसे हालात का सामना करते हैं जो हमें आध्यात्मिक रूप से थका देते हैं। अगर हम होशियार न हों, तो हम अपनी ही चिंताओं में इतने डूब सकते हैं कि हम शायद ज़्यादा ज़रूरी आध्यात्मिक चिंताओं की ओर कोई ध्यान ही न दें। परमेश्वर की सेवा में संयुक्त और जोशीले रहने के लिए ज़रूरी प्रोत्साहन के लिए हम सभी एक दूसरे पर निर्भर रहते हैं।—इब्रा. १०:२४, २५.
५ सभाओं में हमारा आना बहुत ही ज़रूरी है। कभी-कभार बीमारी या किसी अनपेक्षित घटना की वज़ह से शायद हम नहीं आ पाएँ। लेकिन, बाक़ी के समय, आइए हम एक साथ मिलकर यहोवा की स्तुति करनेवाले समूह में हमेशा गिने जाने का दृढ़-निश्चय करें!—भज. २६:१२.