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  • “मैं आगे क्या करूँ?”
  • हमारी राज-सेवा—1999
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“मैं आगे क्या करूँ?”

 अगर आप बचपन से जवानी में कदम रख रहें हैं तो आपके मन में यह सवाल ज़रूर आएगा कि “मैं आगे क्या करूँ?” मसीही युवा चाहते हैं कि वे आगे चलकर यहोवा की और भी ज़्यादा सेवा करें। लेकिन भविष्य में आपके कंधों पर और भी ज़िम्मेदारियाँ होंगी, जिसके लिए आपको खुद अपने पैरों पर खड़ा होना पड़ेगा। तो फिर आप अपनी इन ज़िम्मेदारियों को संभालते हुए भी यहोवा की ज़्यादा-से-ज़्यादा सेवा कैसे कर सकते हैं? सही फैसला करना बहुत ही मुश्‍किल हो सकता है।

२ दुनिया में आज की आर्थिक हालत बहुत ही खराब है और कल का भी कोई भरोसा नहीं है। इन सब को देखकर कुछ जवान लोग बहुत ही परेशान हो जाते हैं। वे सोचते हैं: ‘क्या मुझे स्कूल खत्म करने के बाद आगे और भी पढ़ना चाहिए? या मैं फौरन पूर्ण-समय की सेवा शुरू कर दूँ?’ इसके बारे में सही फैसला करने के लिए एक व्यक्‍ति को पहले इस सवाल का सही-सही जवाब पाना होगा, ‘मेरी ज़िंदगी में कौन-सी बात सबसे ज़्यादा मायने रखती है?’ इस तरह उसे अपने दिल की, अपने इरादों की जाँच करनी चाहिए।

३ तो फिर, एक जवान होने के नाते आपके लिए कौन-सी बात सबसे ज़्यादा मायने रखती है? पैसा कमाना, या राज्य के कामों में अपना जीवन लगा देना? आज अगर आपके पास यूनिवर्सिटी की एक डिगरी हो तोभी इसकी कोई गारंटी नहीं है कि आपको नौकरी मिल ही जाएगी। इसलिए कई लोग ऐसे हुनर या ट्रेड सीखते हैं जिससे नौकरी मिलने में आसानी होती है, और जिन्हें सीखने में बहुत कम समय और मेहनत लगती है। इसके लिए वे अप्रेन्टिस के काम करते हैं, कोई वोकेशनल या टॆकनिकल या कोई डिप्लोमा कोर्स करते हैं।

४ यहोवा के वादे पर भरोसा रखिए: सही फैसला करते समय हमें एक सबसे अहम बात कभी नहीं भूलनी चाहिए। यहोवा परमेश्‍वर हमसे वादा करता है कि जो अपनी ज़िंदगी में राज्य के कामों को सबसे पहला स्थान देगा, वह उसकी देखभाल ज़रूर करेगा। (मत्ती ६:३३) और यहोवा का यह वादा कोई खोखला वादा नहीं है। मिनिस्टीरियल ट्रेनिंग स्कूल में जानेवाले कई भाइयों ने सच्चाई सीखने से पहले कॉलेज की डिग्रियाँ हासिल की थीं। लेकिन वे अब क्या कर रहे हैं? उनमें से बहुत ही कम लोग उस पेशे में हैं जिसके लिए उन्होंने पढ़ाई की थी। कई लोग अपना छोटा-मोटा धंधा करके अपना खर्चा अच्छी तरह उठा लेते हैं और इस तरह पायनियरिंग कर पाते हैं। सो, प्रचार के काम में ज़्यादा करने की वज़ह से उन्हें ऐसी बेशुमार आशीषें मिल रही हैं जो रुपये-पैसों से कहीं ज़्यादा कीमती हैं।

५ इसलिए, यह फैसला करते वक्‍त कि हाइ-स्कूल करने के बाद क्या करना है, इन सभी बातों पर ध्यान दीजिए और अपने दिल की, अपने इरादों की अच्छी तरह जाँच कीजिए। सही फैसला करने के लिए अप्रैल ८, १९९८ की सजग होइए! पत्रिका के पेज, २५-२७ में दी गई जानकारी पर विचार कीजिए। अपने माता-पिता से, प्राचीनों से, सर्किट ओवरसियर से और अनुभवी पायनियरों से बात कीजिए। इस तरह आप सही फैसला कर पाएँगे कि आपको आगे चलकर क्या करना चाहिए।—सभो. १२:१, १३.

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