दृढ़ विश्वास के साथ सुसमाचार प्रचार करना
पहली सदी की शुरूआत में यीशु मसीह ने अपने शिष्यों को आज्ञा दी थी कि वे जाकर राज्य की खुशखबरी सुनाएँ और “सब जातियों के लोगों को चेला” बनाएँ। (मत्ती 24:14; 28:19, 20) यीशु की इस आज्ञा को यहोवा के साक्षी पूरी गंभीरता से मानते हैं। इसलिए बीसवीं सदी के आखिर में सच्चे मसीही, दुनिया के 234 देशों में सेवा कर रहे हैं और उनकी गिनती बढ़कर 59,00,000 हो गई है। स्वर्ग में रहनेवाले हमारे पिता, यहोवा की स्तुति में आज आवाज़ कितनी दूर-दूर तक गूँज रही है!
2 अभी हमने 21वीं सदी में कदम रखा है। हमारा दुश्मन शैतान, बहुत धूर्त तरीके अपनाकर राज्य का प्रचार करने और चेला बनाने के सबसे ज़रूरी काम को रोकने की कोशिश कर रहा है। वह इस दुनिया के ज़रिये हम पर दबाव डालता है ताकि हमारा ध्यान प्रचार काम से भटक जाए और हम अपना कीमती समय और शक्ति ढेर सारे गैर-ज़रूरी कामों में लगा दें। लेकिन क्या ज़रूरी है और क्या नहीं, यह बताने के लिए हमें इस दुनिया की ज़रूरत नहीं है। इसके बजाय, हम परमेश्वर के वचन बाइबल की मदद से यह मालूम करते हैं कि आज का सबसे ज़रूरी काम है, यहोवा की इच्छा पूरी करना। (रोमि. 12:2) इसका मतलब है, हमें बाइबल में दी गई आज्ञा के मुताबिक ‘समय और असमय वचन का प्रचार करना चाहिए और अपनी सेवा को पूरा करना चाहिए।’—2 तीमु. 4:2, 5.
3 दृढ़ विश्वास पैदा कीजिए: मसीहियों को “पूर्ण विश्वास के साथ परमेश्वर की इच्छा पर स्थिर” रहना चाहिए। (कुलु. 4:12) शब्द “पूर्ण विश्वास” का मतलब है, “किसी बात पर दृढ़ विश्वास होना; पूरा यकीन होना।” हम मसीहियों को इस बात का पूरा यकीन होना चाहिए कि परमेश्वर की भविष्यवाणी के वचन ज़रूर सच होंगे और यह कि हम अंत के समय की सबसे आखिरी घड़ी में जी रहे हैं। हमें प्रेरित पौलुस की तरह दृढ़ विश्वास रखना चाहिए जिसने कहा कि सुसमाचार ‘हर एक विश्वास करनेवाले के लिए उद्धार के निमित्त परमेश्वर की सामर्थ है।’—रोमि. 1:16.
4 शैतान हमें भरमाने के लिए ऐसे दुष्ट और धोखेबाज़ लोगों को इस्तेमाल करता है, जो खुद गुमराह हो चुके हैं। (2 तीमु. 3:13) इस खतरे के बारे में हमें पहले से ही बता दिया गया है, इसलिए ज़रूरी है कि हम अपने इस विश्वास को मज़बूत करते रहें कि हमारे पास जो है वही सच्चाई है। हम ज़िंदगी की चिंताओं से परमेश्वर के काम के लिए अपना जोश ठंडा नहीं होने देंगे। ऐसा करने से ही हम राज्य के काम को पहला स्थान दे पाएँगे। (मत्ती 6:33, 34) साथ ही हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आज हम सबसे नाज़ुक वक्त में जी रहे हैं, न ही हमें यह सोचना चाहिए कि इस दुनिया का अंत होने में बहुत समय बाकी है। दरअसल अंत का समय दिन-ब-दिन और नज़दीक आ रहा है। (1 पत. 4:7) हम शायद सोचें कि कुछ देशों में प्रचार इतनी अच्छी तरह हो चुका है कि वहाँ अब सुसमाचार पर कोई खास ध्यान नहीं दे रहा है, लेकिन याद रहे कि हमें अंत की चेतावनी देने का काम करते रहना है।—यहे. 33:7-9.
5 अंतिम दिनों की इस आखिरी घड़ी में हमें खुद से ये ज़रूरी सवाल पूछने चाहिए: ‘यीशु ने चेले बनाने का जो काम दिया था, क्या मैं उसे अच्छी तरह पूरा कर रहा हूँ? जब मैं किसी को सुसमाचार सुनाता हूँ तो क्या यह ज़ाहिर होता है कि मुझे खुद पक्का यकीन है कि राज्य सचमुच की एक सरकार है? क्या मैं जान बचाने के इस काम में जितना ज़्यादा हो सकता है, उतना करने की कोशिश करता हूँ?’ अब हम अंतिम दिनों के आखिर में जी रहे हैं, इसलिए हमें प्रचार करने और सिखाने की ज़िम्मेदारी पूरी गंभीरता से निभानी चाहिए। अगर हम ऐसा करेंगे तो हमारा और साथ ही जो हमारी सुनते हैं उनका भी उद्धार होगा। (1 तीमु. 4:16) परमेश्वर के सेवकों के तौर पर हम सब अपना विश्वास किस तरह मज़बूत कर सकते हैं?
6 थिस्सलुनीकियों की मिसाल पर चलिए: प्रेरित पौलुस ने थिस्सलुनीके के भाइयों के कठिन परिश्रम को याद करते हुए उनसे कहा: “हमारा सुसमाचार तुम्हारे पास न केवल वचन मात्र ही में बरन सामर्थ और पवित्र आत्मा, और बड़े निश्चय के साथ पहुंचा है; जैसा तुम जानते हो, कि हम तुम्हारे लिये तुम में कैसे बन गए थे। और तुम बड़े क्लेश में पवित्र आत्मा के आनन्द के साथ वचन को मानकर हमारी और प्रभु की सी चाल चलने लगे।” (1 थिस्स. 1:5, 6) जी हाँ, पौलुस ने थिस्सलुनीकियों की कलीसिया को शाबाशी दी क्योंकि वे कई तकलीफों को झेलते हुए भी जोश और बड़े निश्चय या पूरे विश्वास के साथ प्रचार में लगे हुए थे। लेकिन ऐसा करने में उन्हें किस बात से मदद मिली? काफी हद तक प्रेरित पौलुस और उसके साथियों के जोश और दृढ़ विश्वास या निश्चय का उन पर अच्छा असर पड़ा था। वह कैसे?
7 पौलुस और उसके साथियों की ज़िंदगी इस बात का सबूत थी कि उन पर परमेश्वर की आत्मा है और वे पूरे दिल से मानते हैं कि वे जो प्रचार कर रहे हैं वह बिलकुल सच है। थिस्सलुनीके आने से पहले, पौलुस और सीलास जब फिलिप्पी में थे तो वहाँ उन्हें बहुत बुरी तरह सताया गया था। उनकी सुनवाई किए बगैर ही उन्हें पीटा गया, कैद किया गया और उनके पांव काठ में ठोक दिए गए। इस भयानक दौर से गुज़रने के बावजूद भी, सुसमाचार के लिए उनका जोश बिलकुल कम नहीं हुआ। आखिरकार, परमेश्वर ने चमत्कार करके उन्हें कैद से छुड़ाया और इसे देखकर जेलर और उसके घराने ने मन फिराव किया। और इस वज़ह से ये भाई अपना प्रचार काम जारी रख सके।—प्रेरि. 16:19-34.
8 परमेश्वर की आत्मा की मदद से ही पौलुस थिस्सलुनीके आया था। वहाँ उसने अपनी गुज़र-बसर के लिए खुद काम किया और इसके बाद उसने थिस्सलुनीके में रहनेवालों को सच्चाई सिखाने में खुद को पूरी तरह लगा दिया। उसने सुसमाचार सुनाने के एक भी मौके को नहीं गँवाया। (1 थिस्स. 2:9) पौलुस के इतने दृढ़ विश्वास के साथ प्रचार करने का कुछ थिस्सलुनीकियों पर ऐसा ज़बरदस्त असर हुआ कि वे मूर्तिपूजा को छोड़कर सच्चे परमेश्वर यहोवा के सेवक बन गए।—1 थिस्स. 1:8-10.
9 इन नए मसीहियों को जब सताया जाने लगा तब भी उन्होंने सुसमाचार का प्रचार करना नहीं छोड़ा। उन्हें यकीन था कि जिस सुसमाचार को उन्होंने इतनी खुशी से स्वीकार किया है उसे जब वे दूसरों को सुनाएँगे तो खुद उन्हें भी अनंत आशीषें मिलेंगी। इसलिए अपने इस नए विश्वास से हिम्मत पाकर वे दूसरों को भी सुसमाचार सुनाने लगे। थिस्सलुनीके की कलीसिया में सेवकाई के लिए इतना जोश था और उनका विश्वास इतना मज़बूत था कि इसकी खबर मकिदुनिया की कई और जगहों तक, यहाँ तक कि अखया तक भी पहुँच गई। इसलिए जब पौलुस ने थिस्सलुनीकियों को अपनी पहली पत्री लिखी, तब तक इस कलीसिया के भले कामों के बारे में सभी जानते थे। (1 थिस्स. 1:7) उनकी मिसाल वाकई बहुत बढ़िया थी!
10 उन्हें परमेश्वर और लोगों से प्यार था: आज हम भी थिस्सलुनीकियों की तरह दृढ़ विश्वास के साथ कैसे प्रचार कर सकते हैं? उनके इस तरह प्रचार करने की वज़ह बताते हुए पौलुस ने लिखा: “हम सदा तुम्हारे उस काम की याद करते हैं जो फल है, विश्वास का, प्रेम से पैदा हुए तुम्हारे कठिन परिश्रम का।” (1 थिस्स. 1:3, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) पौलुस के इन शब्दों से ज़ाहिर होता है कि थिस्सलुनीके के मसीहियों को यहोवा परमेश्वर के लिए और लोगों के लिए गहरा प्यार था इसलिए वे प्रचार करते थे। ऐसे प्यार की वज़ह से ही पौलुस और उसके साथी, थिस्सलुनीकियों को ‘न केवल परमेश्वर का सुसमाचार, पर अपना अपना प्राण भी देने को तैयार थे।’—1 थिस्स. 2:8.
11 उसी तरह, हमें भी यहोवा और अपने पड़ोसी से गहरा प्यार है। इसलिए हम परमेश्वर से मिले इस प्रचार काम को तन-मन लगाकर करने की कोशिश करते हैं। इस प्यार की वज़ह से ही हमें इस बात का एहसास है कि परमेश्वर ने हममें से हरेक को सुसमाचार सुनाने की ज़िम्मेदारी सौंपी है। यहोवा ने “सत्य जीवन” पाने में हमारी मदद करने के लिए कितना कुछ किया है। उसकी इन अच्छाइयों के बारे में जब हम गहराई से सोचते हैं और इनकी कदर करते हैं तो हम दूसरों को भी ये अद्भुत सच्चाइयाँ बताना चाहेंगे जिन्हें हम खुद पूरे दिल से मानते हैं।—1 तीमु. 6:19.
12 जब हम प्रचार काम में लगे रहते हैं, तो यहोवा और लोगों के लिए हमारा प्यार और भी बढ़ेगा। ऐसा होने पर, हम न सिर्फ घर-घर के प्रचार में ज़्यादा हिस्सा लेंगे बल्कि सभी तरीकों से गवाही देने की कोशिश करेंगे। हम अपने रिश्तेदारों, पड़ोसियों और जान-पहचानवालों को साक्षी देने का कोई भी मौका नहीं गँवाएँगे। हालाँकि ज़्यादातर लोग हमारे सुसमाचार पर कान नहीं देंगे और कुछ तो हमारे काम में रुकावट भी पैदा करने की कोशिश करेंगे, फिर भी हमें एक अंदरूनी खुशी महसूस होगी। क्यों? क्योंकि हम राज्य का प्रचार करने और लोगों को उद्धार की राह दिखाने में अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं। और हम यकीन रख सकते हैं कि नेक दिल इंसानों को ढूँढ़ने के लिए हम जो मेहनत करते हैं उस पर यहोवा की आशीष ज़रूर होगी। फिर हम पर चाहे जो भी मुसीबत आए या शैतान हमारी खुशी छीनने के लिए हम पर चाहे जो भी ज़ुल्म ढाए, हम दृढ़ विश्वास और जोश के साथ दूसरों को गवाही देना नहीं छोड़ेंगे। जब हम सब अपनी-अपनी ज़िम्मेदारी निभाते हैं तो थिस्सलुनीके कलीसिया जैसी ही कई और कलीसियाएँ बनेंगी जो जोश के साथ यहोवा की सेवा में लगी रहेंगी।
13 परीक्षा के समय कभी हार मत मानिए: जब हम तरह-तरह की परीक्षाओं से गुज़र रहे होते हैं, तब भी हमें दृढ़ विश्वास की ज़रूरत होती है। (1 पत. 1:6, 7) यीशु ने अपने शिष्यों को साफ बताया था कि अगर वे उसके नक्शे-कदम पर चलेंगे तो ‘सब जातियों के लोग उन से बैर रखेंगे।’ (मत्ती 24:9) इस बात को पौलुस और सीलास ने फिलिप्पी में सच होते देखा। प्रेरितों अध्याय 16 में बताया गया है कि फिलिप्पी में पौलुस और सीलास को कैदखाने की भीतरी कोठरी में डाल दिया गया और उनके पांव काठ में ठोंक दिए गए। आम तौर पर, कैदखाने का मुख्य भाग एक बड़े आँगन जैसा होता था, जिसके चारों ओर कई कोठरियाँ होती थीं और ये कोठरियाँ हवादार थीं और इनमें रोशनी रहती थी। लेकिन भीतरी कोठरी अंधेरी और सीलन भरी होती थी। पौलुस और सीलास को इस अंधेरी, सीलन भरी और बदबूदार कोठरी में ही रहना पड़ा। इस कोठरी में डालने से पहले उनकी पीठ पर इतनी ज़ोर से कोड़े मारे गए थे कि खून बहने लगा था। इस हाल में जब उन्हें कई घंटों तक भीतरी कोठरी में रखा गया, तो क्या आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि उन्हें कैसी घुटन महसूस हुई होगी और कितना दर्द सहना पड़ा होगा?
14 लेकिन इन सारी परीक्षाओं के बावजूद पौलुस और सीलास यहोवा के वफादार रहे। उन्होंने दृढ़ विश्वास दिखाया, जिससे उन्हें परीक्षाओं में भी यहोवा की सेवा करने की हिम्मत मिली। उनका विश्वास कितना मज़बूत था, यह हम प्रेरितों अध्याय 16 की आयत 25 में पढ़ सकते हैं जहाँ बताया गया है कि कोठरी में पौलुस और सीलास “प्रार्थना करते हुए परमेश्वर के भजन गा रहे थे।” उन्हें पूरा विश्वास था कि वे यहोवा को खुश कर रहे हैं, इसलिए भीतरी कोठरी में होने पर भी वे इतनी ऊँची आवाज़ में भजन गा रहे थे कि दूसरे कैदी भी उनका भजन सुन सके! आज जब हमारे विश्वास की परीक्षा होती है, तो हमें भी उसी तरह का दृढ़ विश्वास दिखाना चाहिए।
15 आज इबलीस हम पर ढेरों परीक्षाएँ ला रहा है। कुछ लोगों को शायद उनका अपना परिवार ही सताए। हमारे कई भाइयों पर कानूनी मुकद्दमे भी किए जा रहे हैं। यहोवा के संगठन को छोड़ चुके धर्मत्यागियों से भी विरोध आता है। और कुछ लोगों को पैसों की तंगी होती है और रोज़ी-रोटी कमाना ही उनके लिए एक बड़ी समस्या है। जवान साक्षियों को स्कूल के लड़के-लड़कियों से आनेवाले दबाव का सामना करना पड़ता है। इन सभी परीक्षाओं का सामना हम किस तरह कर सकते हैं? इन परीक्षाओं के दौरान भी विश्वास को दृढ़ बनाए रखने के लिए क्या ज़रूरी है?
16 सबसे पहली और सबसे ज़रूरी बात है कि हम यहोवा के साथ एक नज़दीकी रिश्ता बनाए रखें। जब पौलुस और सीलास भीतरी कोठरी में थे तो उन्होंने सारा समय शिकायत करने और अपने हाल पर रोने में नहीं गँवाया। इसके बजाय, वे तुरंत परमेश्वर से प्रार्थना करने लगे और भजन गाकर उसकी स्तुति करने लगे। क्यों? क्योंकि स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता के साथ उनका एक करीबी रिश्ता था। वे जानते थे कि वे सच्चाई की खातिर दुःख सह रहे हैं और उनका उद्धार यहोवा के हाथ में है।—भज. 3:8.
17 आज हम पर भी जब कोई परीक्षा आती है, तो हमें यहोवा पर भरोसा रखना चाहिए। पौलुस हम मसीहियों से कहता है कि हम ‘अपने निवेदन परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित करें, तब परमेश्वर की शान्ति, जो समझ से बिलकुल परे है, हमारे हृदय और हमारे विचारों को सुरक्षित रखेगी।’ (फिलि. 4:6, 7) परीक्षाओं के समय यहोवा हमें अकेला नहीं छोड़ेगा, यह जानकर ही हमें कितनी तसल्ली मिलती है! (यशा. 41:10) अगर हम दृढ़ विश्वास के साथ उसकी सेवा करते रहें, तो वह हमेशा हमारे साथ रहेगा।—भज. 46:7.
18 अपना विश्वास दृढ़ बनाए रखने के लिए एक और ज़रूरी बात यह है कि हम यहोवा की सेवा में हमेशा व्यस्त रहें। (1 कुरि. 15:58) पौलुस और सीलास को इसलिए कैद किया गया था क्योंकि वे सुसमाचार प्रचार करने में व्यस्त रहते थे। लेकिन क्या इन परीक्षाओं की वज़ह से उन्होंने प्रचार करना छोड़ दिया? नहीं, बल्कि उन्होंने कैदखाने में भी अपना प्रचार जारी रखा। और जब उन्हें रिहा किया गया तो वे थिस्सलुनीके गए और वहाँ, यहूदियों के आराधनालय में जाकर उनके साथ ‘पवित्र शास्त्र से दलीलें’ देकर समझाने लगे। (प्रेरि. 17:1-3, हिन्दुस्तानी बाइबल) अगर यहोवा पर हमारा विश्वास अटल है और हमें पूरा यकीन है कि हमारे पास सच्चाई है, तो कोई भी बात ‘हमें परमेश्वर के प्रेम से, जो हमारे प्रभु मसीह यीशु में है, अलग नहीं कर सकेगी।’—रोमि. 8:35-39.
19 आज के ज़माने में दृढ़ विश्वास रखनेवालों की मिसाल: पौलुस और सीलास की तरह आज भी कई लोगों ने साबित किया है कि उनका विश्वास सचमुच दृढ़ है। ऑशविट्ज़ यातना शिविर में रह चुकी एक बहन बताती है कि उस कैंप में कई भाई-बहनों ने किस तरह अपने अटूट विश्वास का सबूत दिया था। वह बताती है: “एक बार पूछताछ करते वक्त एक अफसर अपनी मुट्ठियाँ भींचे हुए मेरे पास आया और कहा: ‘समझ में नहीं आता कि तुम लोगों के साथ क्या करें?’ ‘अगर हम तुम्हें गिरफ्तार करें तो तुम्हें कुछ परवाह नहीं। अगर तुम्हें जेल में डाल दें, तो भी तुम पर कुछ असर नहीं होता। और अगर तुम्हें यातना शिविर में डाल दें, फिर भी तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। अगर मौत की सज़ा दे दें, तो भी तुम बेफिक्र रहते हो। आखिर तुम लोगों के साथ करें भी तो क्या करें?’” ऐसे कठोर हालात के बावजूद हमारे भाई-बहनों ने जो विश्वास दिखाया, उसे देखकर हमारा विश्वास कितना मज़बूत होता है! उन भाई-बहनों ने धीरज के लिए हमेशा यहोवा से मदद माँगी।
20 और हम उन भाइयों के विश्वास को हरगिज़ नहीं भूलते जिनसे पिछले कुछ सालों से जाति के नाम पर नफरत की जा रही है। खतरनाक हालात में भी, हमारे ज़िम्मेदार भाई हमेशा इस बात का पूरा खयाल रखते हैं कि उनके भाई-बहनों को आध्यात्मिक भोजन की कोई कमी न हो। ये सभी भाई-बहन यहोवा के प्रति वफादार रहते हैं और उन्हें पक्का यकीन है कि ‘उनकी हानि के लिए चाहे जितने हथियार भी बनाए जाएँ पर उन में से कोई सफल न होगा।’—यशा. 54:17.
21 हमारे बहुत-से भाई-बहनों के जीवन-साथी सच्चाई में नहीं हैं, फिर भी वे दृढ़ विश्वास और धीरज बनाए रखते हैं। ग्वॉड्लूप में, एक भाई को उसकी अविश्वासी पत्नी ने बहुत सताया। वह उसके लिए खाना नहीं पकाती थी, उसके कपड़े नहीं धोती थी और इस्त्री नहीं करती थी और न ही उसके कपड़े फटने पर उन्हें सीती थी और यह सब इसलिए ताकि भाई निराश हो जाए और मीटिंगों में जाना छोड़ दे। कभी-कभी वह कई दिन तक उससे बात भी नहीं करती थी। लेकिन इस भाई ने यहोवा की सेवा करने के अपने मज़बूत इरादे को कायम रखा। उसने हमेशा प्रार्थना में यहोवा से मदद माँगी। इस तरह वह सभी तकलीफों को झेल सका। कब तक? करीब 20 साल तक और इसके बाद आखिर उसकी पत्नी का रवैया बदला और उसने भी परमेश्वर के राज्य की आशा को अपना लिया। यह देखकर भाई की खुशी का ठिकाना न रहा।
22 हमें अपने उन जवान भाई-बहनों के दृढ़ विश्वास को भी नहीं भूलना चाहिए जो स्कूल में हर दिन बुरे साथियों का और दूसरी कई मुश्किलों का सामना करते हैं। स्कूल में आनेवाले दबावों के बारे में एक जवान बहन ने कहा: “स्कूल में बच्चे अकसर कहते हैं कि तुम्हें किसी की परवाह करने की ज़रूरत नहीं है, अपनी मरज़ी से चलो। अगर तुम ऐसा करोगे तभी तुमको कोई पूछेगा।” वाकई हमारे जवानों पर कैसे-कैसे दबाव आते हैं! इसलिए उन्हें अपने दिलो-दिमाग में यह पक्का इरादा करना होगा कि वे अपने साथियों के दबाव में आकर कभी कोई बुरा काम नहीं करेंगे।
23 हमारे कई जवान भाई-बहन परीक्षाओं के बावजूद अपनी वफादारी बनाए रखने में अच्छी मिसाल हैं। एक मिसाल है, फ्राँस की एक जवान बहन की। स्कूल में एक दिन दोपहर के खाने के बाद कुछ लड़के उसके पास आए और उसे मजबूर करने लगे कि वह उनको चुम्मा दे लेकिन बहन ने प्रार्थना की और साफ इंकार कर दिया। तब उन लड़कों ने उसे परेशान नहीं किया। बाद में उनमें से एक लड़का उसके पास आया और उसने कहा कि उसकी हिम्मत वाकई काबिले-तारीफ है। बहन ने उस लड़के को राज्य के बारे में बहुत बढ़िया गवाही दी। फिर उसने समझाया कि जो यहोवा की आशीष पाना चाहते हैं, उन्हें किस तरह ऊँचे दर्जों पर चलना चाहिए। उस साल, बहन ने अपने विश्वास के बारे में अपनी पूरी क्लास को भी साक्षी दी।
24 यहोवा चाहता है कि हम दृढ़ विश्वास से उसकी इच्छा के बारे में लोगों को बताएँ। इसके लिए यहोवा हमें इस्तेमाल करना चाहता है, यह हमारे लिए क्या ही एक अनमोल आशीष है! (कुलु. 4:12) इतना ही नहीं, जब हमारा विरोधी शैतान, सिंह की तरह हम पर आक्रमण करता है, तो हमें अपनी वफादारी को साबित करने का भी बढ़िया मौका मिलता है। (1 पत. 5:8, 9) कभी मत भूलिए कि राज्य संदेश के प्रचार से यहोवा हम प्रचार करनेवालों का और साथ ही हमारा संदेश सुननेवालों का उद्धार करेगा। हम जो भी फैसले करें, उससे और हमारे जीने के तरीके से यह साबित हो कि हम राज्य को पहला स्थान देते हैं। तो आइए हम दृढ़ विश्वास के साथ सुसमाचार प्रचार करते रहें!