आम रीति-रिवाज़ और सच्ची उपासना
आम तौर पर लोग दोस्ताना होते हैं और यही वजह है कि वे अकसर अपनी परंपरा के मुताबिक मनाए जानेवाले रस्मों-रिवाज़ में हिस्सा लेने के लिए हमें न्यौता देते हैं। ये मौके बच्चे के जन्म, ब्याह-शादी, या फिर किसी की मौत से जुड़े हो सकते हैं। अगर हमारे अविश्वासी दोस्त या रिश्तेदार हमें ऐसे रीति-रिवाज़ों में हिस्सा लेने का न्यौता दें, तो एक मसीही होने के नाते हमें क्या करना चाहिए?
2 अपने प्रांत के किसी आम रिवाज़ में हमें शरीक होना है या नहीं, इसका हमें बहुत सोच-समझकर फैसला करना चाहिए। हमें कुछ ऐसी बातों पर ध्यान देने की ज़रूरत है जैसे, इस रिवाज़ की शुरूआत कैसे हुई या आज लोग इसे क्यों मनाते हैं? क्या ये रिवाज़ परमेश्वर के वचन की शिक्षाओं के खिलाफ हैं? अगर हम वहाँ सिर्फ देखने के लिए भी जाएँ, तो क्या ऐसे हालात पैदा होने का खतरा है जहाँ हम अपने विश्वास से समझौता कर सकते हैं? अगर हम किसी रिवाज़ में हिस्सा लें या उससे दूर रहें तो क्या कोई बुरा मान सकता है या किसी को ठोकर लग सकती है?
3 बच्चे का जन्म: जब घर में नया मेहमान आता है तो सभी खुशियाँ मनाते हैं, और कुछ ही समय बाद, उसके नामकरण के लिए दोस्तों और रिश्तेदारों को न्यौता भेजा जाता है। यह एक धार्मिक समारोह होता है जिसे पुजारी की देख-रेख में किया जाता है। इसमें हिंदू शास्त्रों में बतायी रीतियों के मुताबिक बच्चे की जन्म-तिथि के आधार पर उसकी जन्म कुंडली तैयार की जाती है।
4 जब बच्चा सात महीने का होता है, तब अन्न-प्राशन नाम के एक और समारोह के लिए न्यौते भेजे जाते हैं। उस वक्त पहली बार बच्चे को अन्न खिलाया जाता है। इस रस्म को अलग-अलग राज्यों में भले ही अपने तरीके से मनाया जाता हो, मगर हर जगह इसे एक धार्मिक रस्म माना जाता है। और कभी-कभी पुजारियों को पूजा-पाठ करने या मंत्र पढ़ने के लिए बुलाया जाता है। ईसाईजगत के कुछ लोगों में भी इस तरह की रस्म मनायी जाती है, जिसमें इलाके का पादरी अगुवाई करता है।
5 बाइबल के ज़माने में भी बच्चे का नाम रखने और उसका दूध छुड़ाने के अवसर को खास अहमियत दी जाती थी। और उन मौकों पर अकसर खुशियाँ और जश्न मनाए जाते थे। (उत्प. 21:8; लूका 1:59; 2:21) लेकिन जहाँ तक आज मनाए जानेवाले नामकरण और अन्न-प्राशन की बात है, ऊपर दी गयी जानकारी से ज़ाहिर होता है कि ये रस्म असल में एक तरह की पूजा है जिसमें हाज़िर लोग भाग लेते हैं। इन समारोह में ऐसी धारणाओं और प्रथाओं को माना जाता है जो बाइबल के खिलाफ हैं, और उनमें हाज़िर लोगों को प्रसाद दिया जाता है या उन्हें पुजारी के ज़रिए की गयी प्रार्थना में हिस्सा लेना पड़ता है। लेकिन, प्रकाशितवाक्य 18:4 की आज्ञा को मद्देनज़र रखते हुए एक मसीही ऐसे रीति-रिवाज़ों में हिस्सा नहीं ले सकता।
6 शादी: हमें सबसे ज़्यादा न्यौता शादी और रिसेप्शन के लिए मिलता है। आम तौर पर दोस्तों और दूर के रिश्तेदारों से बस इतनी उम्मीद की जाती है कि वे शादी के रिसेप्शन में आएँ, वर-वधु को शुभकामनाएँ दें और दावत में हिस्सा लें। यह सच है कि कभी-कभी रिसेप्शन की जगह पर पुजारी कुछ पूजा-पाठ करता है, मगर आम तौर पर, ये पूजा मुहूर्त देखकर की जाती है जो कि हमेशा रिसेप्शन के वक्त नहीं पड़ती। इसलिए उस पूजा में मेहमानों के शामिल होने पर ज़ोर नहीं दिया जाता। मगर जहाँ तक करीबी रिश्तेदारों की बात है, उनसे माँग की जाती है कि वे शादी के सभी “विधि-विधान” में हिस्सा लें। इसके तहत, धार्मिक अनुष्ठानों को निभाने से लेकर उन आम रस्मों को निभाने की बात आती है जो एक ज़माने में धार्मिक मानी जाती थीं, मगर आज समाज में उन्हें बस शादी की एक परंपरा माना जाता है। मगर इस मामले में भी हम ऐसे हर काम से दूर रहना चाहेंगे जिनका सीधा-सीधा संबंध यहोवा से न होकर, झूठे देवी-देवताओं की उपासना, झूठे धर्म के विश्वासों, या फिर दुष्टात्माओं को नाराज़ करने के डर या उनको खुश करने की इच्छा से है।
7 मौत से जुड़े रीति-रिवाज़: जब हमारे दोस्त या अज़ीज़ के घर में किसी की मौत हो जाती है, तो हम हमदर्दी और प्यार की वजह से उनका दुःख बाँटना चाहेंगे और उन्हें सांत्वना देना चाहेंगे। लेकिन हमारे बहुत-से सगे-संबंधी, जो सच्चाई में नहीं हैं, वे यही उम्मीद करेंगे कि हम अंत्येष्टि क्रियाओं में हाज़िर रहें या उनमें हिस्सा लें। परिवार के पुरुषों से उम्मीद की जाती है कि वे, हो सके तो मौत के दिन ही अरथी निकालकर शमशान घाट ले जाएँ और अंतिम-संस्कार के कुछ ही समय बाद अस्थि-संचय करें यानी अस्थियों को बटोरकर उसे गंगा या किसी और नदी में बहाएँ। उसके बाद करीबी रिश्तेदारों को कुछ दिनों तक शोक मनाना पड़ता है, जिस दौरान उन्हें खाने-पहनने में खास विधियों को मानना होता है और कुछ रस्में निभानी होती हैं। ये सब मौत के तेरहवें दिन यानी श्राद्ध के दिन खत्म होती हैं। उसके बाद परिवार के लोग आम भोजन करना शुरू करते हैं और रिश्तेदारों और शुभ-चिंतकों को घर पर बुलाया जाता है ताकि वे गुज़रे व्यक्ति की आत्मा के लिए श्रद्धांजलि अर्पित कर सकें। आम तौर पर लोगों को श्राद्ध यानी पूजा के बाद होनेवाली दावत में बुलाया जाता है।
8 शुद्ध विवेक रखना: ऊपर बताए सभी मौकों पर, वैदिक मंत्र पढ़े जाते हैं और एक पुजारी, एक ब्राह्मण या रिश्तेदारों में से कोई पुरुष कुछ ऐसे पूजा-पाठ करता है जो आत्मा की अमरता के विश्वास पर आधारित होते हैं। ऐसे हालात उन मसीहियों के घरों में भी पैदा हो सकते हैं जिनके परिवार चर्च जानेवाले हैं और जिनके यहाँ पादरी, नामकरण संस्कार, शादी या अंत्येष्टि में अगुवाई करते हैं।
9 एक सच्चे मसीही पर उसके रिश्तेदार दबाव डाल सकते हैं कि वह परिवार के साथ ऐसे रीति-रिवाज़ में शरीक हो जिनमें झूठे देवी-देवताओं की आराधना की जाती है, दुष्टात्माओं को खुश किया जाता है, और जो आत्मा की अमरता के विश्वास पर आधारित होते हैं। ऐसे मौकों पर हाज़िर होने का दबाव एक मसीही पत्नी, बहू या बालिग बेटे पर आ सकता है। ऐसे में उसे क्या करना चाहिए?
10 यह सच है कि ऐसे वक्त पर शायद एक मसीही, नामान के उदाहरण पर चलना चाहे। अपने कोढ़ से ठीक होने के बाद उसने ठान लिया था कि वह यहोवा को छोड़ किसी और देवता की उपासना नहीं करेगा। मगर फिर भी राजा का सेवक होने के नाते उसे राजा को जगह-जगह जाने में मदद करनी थी और इसलिए उसे राजा के साथ झूठे देवता, रिम्मोन के मंदिर में भी जाना पड़ता था। यहाँ तक कि उसे राजा को देवता के सामने दण्डवत करने में भी मदद देनी पड़ती थी। इसलिए उसने यहोवा परमेश्वर से बिनती की कि वह उसे माफ करे और उसे जवाबदेह न ठहराए। नामान अपनी मरज़ी से उस मंदिर में हाज़िर नहीं होता था क्योंकि वह यहोवा का एक सच्चा उपासक बन गया था; वह सिर्फ राजा के हुक्म से वहाँ हाज़िर रहता था।—2 राजा 5:1-19.
11 इसलिए हम भी शायद यह सोचें कि ऐसे मौकों पर हाज़िर होना गलत नहीं है बशर्ते, हम झूठे धर्म के किसी भी काम में भाग न लें। यह हर मसीही का अपना फैसला है। उन्हें यह तय करना होगा कि वे अपने जीवन-साथी या माता-पिता की इच्छा का आदर करने और बाइबल से तालीम पाए अपने विवेक के मुताबिक यहोवा की आज्ञा मानने के बीच कैसा तालमेल बिठाएँगे।—इफि. 6:1; 1 पत. 3:16.
12 ध्यान रखिए कि अगर आप ऐसे मौकों पर हाज़िर रहें, तो जो लोग आपके विश्वास के बारे में नहीं जानते, वे इस नतीजे पर पहुँच सकते हैं कि आप उस पूरे धार्मिक अनुष्ठान में भाग ले रहे हैं या फिर कि आप उन विचारों से सहमत हैं जिनको लेकर ये रस्में मनायी जा रही हैं। इसलिए प्रेरित पौलुस की इस सलाह पर चलना कितनी बुद्धिमानी होगी: ‘यह जानने की कोशिश करो कि ज़रूरी बातें क्या हैं, ताकि तुम मसीह के दिन तक निर्दोष बने रह सको और दूसरों को ठोकर ना दिलाओ।’—फिलि. 1:10, NW.
13 बाइबल के मुताबिक हमारे जो विश्वास हैं, उनके बारे में क्या अपने रिश्तेदारों को समझाना बेहतर नहीं होगा? इससे पहले कि हमें कोई न्यौता मिले हमारे सामने ऐसे कई मौके आते हैं, जब हम उन्हें इस बारे में बता सकते हैं। इसके लिए हमें ऐसा समय चुनना होगा जब उनका मिज़ाज अच्छा हो और वे हमारी बात सुनने को तैयार हों, ठीक जैसे रानी एस्तेर ने भी अपनी बात कहने के लिए एक सही समय चुना था। फिर हम उन्हें समझ-बूझ के साथ बता सकते हैं कि ऐसे मौकों पर हाज़िर होना क्यों हमारे विवेक के खिलाफ है और हम उन्हें अपने विश्वास के बारे में गवाही दे सकते हैं। हम उन्हें यह भी बता सकते हैं कि अगर हम हाज़िर होंगे और किसी भी रस्म में हिस्सा नहीं लेंगे, तो परिवार के बाकी लोगों को शर्मिंदा होना पड़ सकता है।—एस्ते. 5:1-8.
14 एक सच्चे मसीही का विवेक उसे ऐसी किसी भी प्रार्थना या धार्मिक समारोह में हिस्सा लेने की इजाज़त नहीं देगा जिसके बारे में उसे पता है कि वह बाइबल की शिक्षा के खिलाफ है। ना ही वह यह देखने की कोशिश करेगा कि वह झूठे धर्म के कामों में किस हद तक हिस्सा ले सकता है। उस पर बाइबल की इस आज्ञा को मानने का फर्ज़ है: “अविश्वासियों के साथ असमान जूए में न जुतो, क्योंकि धार्मिकता और अधर्म का क्या मेल जोल? . . . या विश्वासी के साथ अविश्वासी का क्या नाता? . . . इसलिये प्रभु कहता है, कि उन के बीच में से निकलो और अलग रहो; और अशुद्ध वस्तु को मत छूओ।”—2 कुरि. 6:14-17.
15 इस तरह के धार्मिक अनुष्ठानों से दूर रहकर, हम लोगों को यह एहसास नहीं दिलाना चाहेंगे कि हम अपने नाते-रिश्तेदारों से कोई संबंध नहीं रखना चाहते हैं। इसलिए हमें दूसरे तरीकों से उनके लिए चिंता और प्यार ज़ाहिर करने के लिए मौकों की तलाश करनी चाहिए। जैसे जब हमारे किसी रिश्तेदार के घर में बच्चे का जन्म होता है, तो हम माँ-बाप को तोहफा देकर दिखा सकते हैं कि नए मेहमान के आने से हम भी खुश हैं मगर तोहफा देने के लिए हम किसी मौके का इंतज़ार नहीं करते। हम शादी के रिसेप्शन की तैयारियाँ करने में भी उनका हाथ बँटा सकते हैं या रिसेप्शन में आनेवाले मेहमानों और परिवार के लोगों का स्वागत कर सकते हैं। ऐसा करने पर हम धार्मिक रस्मों से दूर रहेंगे और उन्हें यह भी नहीं लगेगा कि हमें घर में हो रही शादी में कोई दिलचस्पी नहीं है। ऐसे ही किसी रिश्तेदार के यहाँ मौत होने पर जब दूसरे लोग रीति-रिवाज़ में व्यस्त होते हैं, तब हम दूसरे तरीकों से अपने रिश्तेदारों की मदद कर सकते हैं। हम मेहमानों और मिलने आए लोगों की देखभाल और उनके ठहरने का इंतज़ाम कर सकते हैं, उन बच्चों या नाती-पोतों के लिए जो आम खाना खाते हैं और स्कूल जाते हैं, खाना तैयार कर सकते हैं। मौत से जुड़ी कानूनी कार्यवाही और पंजीकरण के मामले में उनकी मदद कर सकते हैं। तब परिवार के लोग समझ पाएँगे कि भले ही हम अन्न-प्राशन, श्राद्ध और दूसरे धार्मिक समारोह में हिस्सा नहीं लेते, फिर भी हम उनसे प्यार करते हैं।