परमेश्वर की सेवा स्कूल की चर्चा
फरवरी 28, 2005 से शुरू होनेवाले हफ्ते में, परमेश्वर की सेवा स्कूल में नीचे दिए गए सवालों की ज़बानी चर्चा होगी। स्कूल ओवरसियर, 30 मिनट के लिए जनवरी 3 से फरवरी 28, 2005 तक के हफ्तों में पेश किए भागों पर दोबारा चर्चा करेगा। [ध्यान दीजिए: अगर किसी सवाल के बाद कोई हवाले नहीं दिए गए हैं, तो वहाँ जवाब के लिए आपको खुद खोजबीन करनी होगी।—सेवा स्कूल किताब के पेज 36-7 देखिए।]
भाषण के गुण
1. हमें अपनी बात कैसे कहनी चाहिए ताकि दूसरे आसानी से समझ सकें? [be-HI पेज 226 पैरा. 1–पेज 227 पैरा. 2]
2. किस तरह के शब्दों को हमें और समझाने की ज़रूरत होती है? [be-HI पेज 227 पैरा. 3–पेज 228 पैरा. 1]
3. जानकारी पेश करने के लिए हमें कौन-सा तरीका अपनाना चाहिए जिससे सुननेवाले सीख सकें? [be-HI पेज 231 पैरा. 1-3]
4. हम किसी जानी-पहचानी आयत को कैसे पेश कर सकते हैं ताकि सुननेवाले उससे कुछ सीख सकें? [be-HI पेज 231 पैरा. 4-5]
5. जब हम अपने सुननेवालों को बाइबल की जानी-मानी घटनाओं की बारीकियों पर ध्यान देने के लिए उकसाते हैं, तो इसका उन पर कैसा असर होता है? [be-HI पेज 232 पैरा. 2-4]
भाग नं. 1
6. लोगों को ‘परमेश्वर का भय मानने और उसकी आज्ञाओं का पालन करना’ सिखाने में क्या शामिल है? (सभो. 12:13) [be-HI पेज 272 पैरा. 3-4]
7. हम किस तरह लोगों का ध्यान न सिर्फ परमेश्वर के नाम, यहोवा पर बल्कि उसके गुणों पर भी खींच सकते हैं? (योए. 2:32) [be-HI पेज 274 पैरा. 3-5]
8. यीशु का ज्ञान लेना और उसके बारे में गवाही देना कितना ज़रूरी है? (यूह. 17:3) [be-HI पेज 275 पैरा. 7]
9. यीशु की भूमिका को समझे बिना, परमेश्वर के साथ एक अच्छा रिश्ता कायम करना और बाइबल की समझ पाना क्यों नामुमकिन है? [be-HI पेज 276 पैरा. 1]
10. हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम वाकई यीशु मसीह को राजा मानते हैं? [be-HI पेज 277 पैरा. 4]
हफ्ते की बाइबल पढ़ाई
11. क्या इब्राहीम का पिता, तेरह मूर्तियों की पूजा करता था? (यहो. 24:2)
12. यहोवा से मिले काम को पूरा करने के लिए क्या गिदोन में हिम्मत की कमी थी? आप किस आधार पर जवाब देंगे? (न्यायि. 6:25-27)
13. गिदोन ने जिस तरह एप्रैमी गोत्र के लोगों के साथ बात की, उससे हम क्या सीख सकते हैं? (न्यायि. 8:1-3)
14. गिबा के लोग मेहमाननवाज़ी दिखाने को तैयार नहीं थे, इस बात से क्या ज़ाहिर होता है? (न्यायि. 19:14, 15)
15. इस्राएल में हर इंसान को “जो ठीक सूझ पड़ता था वही वह करता था” तो क्या इससे गड़बड़ी पैदा हुई? (न्यायि. 21:25)