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प्रश्‍न बक्स

◼ हम दूसरों को जो साहित्य देते हैं, क्या उस पर अपने ई-मेल पते का ठप्पा लगाना या स्टिकर चिपकाना सही है?

देखा गया है कि कुछ प्रचारक दूसरों को बाँटी जानेवाली पत्रिकाओं या ट्रैक्टों पर अपने ई-मेल पते का ठप्पा लगाते हैं, या फिर उसका स्टिकर चिपकाते हैं। इससे साहित्य लेनेवाले लोग उन प्रचारकों से संपर्क करके ज़्यादा जानकारी के लिए गुज़ारिश कर पाते हैं। यह सच है कि दिलचस्पी दिखानेवाले लोगों को इस तरह की मदद देने का इरादा नेक है। लेकिन संस्था की वेब साइट का पता पहले से पत्रिकाओं और ट्रैक्टों के एकदम आखिरी पेज पर दिया होता है। इसलिए अच्छा होगा अगर हम सहित्यों पर अपने ई-मेल पते का ठप्पा या स्टिकर न लगाएँ।

लेकिन प्रचार में मिले लोगों को, खासकर वापसी भेंट करते समय, एक अलग-से परचे पर संपर्क की जानकारी देने के बारे में क्या? यह हरेक प्रचारक का निजी फैसला है। दरअसल, दिलचस्पी दिखानेवालों से दोबारा मिलने के लिए खुद हमें पहल करनी चाहिए, बजाय इसके कि हम यह ज़िम्मेदारी उन पर छोड़ें कि वह हमसे संपर्क करें। दूसरों में सच्ची दिलचस्पी दिखाने का सबसे बढ़िया तरीका है, उनसे मिलकर आमने-सामने बात करना।

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