प्रचार के अपने इलाके में योग्य लोगों को ढूँढ़ना
1 हमारी राज्य सेवकाई के जनवरी 2008 के अंक में एक खास इंसर्ट दिया गया था। इसमें हमें सतर्क किया गया कि हमारे संदेश के बारे में लोगों का रवैया बदलता जा रहा है। इसमें बाइबल से ऐसे सिद्धांत भी बताए गए थे, जो हमें इस बदलाव के मुताबिक खुद को ढालने में मदद देंगे। क्या आपने प्रचार के अपने इलाके में ऐसे बदलाव होते देखे हैं? हमारा विरोध करनेवाले बहुत-से लोग यही सोचते हैं कि हम लालच देकर या ज़बरदस्ती लोगों का धर्म बदलते हैं। इसलिए उन्हें हममें और ईसाईजगत के कट्टर प्रचारकों में कोई फर्क नज़र नहीं आता। नतीजा यह हुआ है कि उन्होंने हमारे कई भाई-बहनों के खिलाफ भीड़ को भड़काया और उन्हें गिरफ्तार भी करवाया है। ऐसे हालात पैदा न हो या अगर पैदा हो भी जाएँ, तो हम उसे बिगड़ने से कैसे रोक सकते हैं? एक तरीका है, हालात के मुताबिक अपनी पेशकश ढालना।
2 हमें याद रखना चाहिए कि चाहे हम घर-घर या दुकानों में प्रचार करें, या मौका देखकर गवाही दें, हम बिन बुलाए लोगों से मिलते हैं। इसलिए हमें, सबसे पहले यह पता करना चाहिए कि क्या सामनेवाले को हमारी बातों में दिलचस्पी है, या क्या वह हमारी बातें सुनकर हमें मारने पर उतारू हो जाएगा या भीड़ को जमा कर लेगा। यह पता करना बेहद ज़रूरी है, खासकर अगर हमारे इलाके में प्रचार का अकसर विरोध होता है। इस तरह हम बेवजह मुसीबत को दावत देने से बच सकते हैं और परमेश्वर का वचन भी हमें यही बढ़ावा देता है।—लूका 10:5, 6.
3 हम कैसे जान सकते हैं कि हम जिस व्यक्ति से बात कर रहे हैं, उसे सचमुच आध्यात्मिक मदद की ज़रूरत है? किसी एक विषय पर बात कीजिए या कोई सवाल पूछिए और फिर गौर कीजिए कि इस बारे में वह क्या कहता है। बाइबल से फौरन हवाला देने या हमारे साहित्य पेश करने के बजाय, कुछ समय के लिए आम बातों पर चर्चा जारी रखिए। कई बार एक मसीही के तौर पर अपनी पहचान बताए बिना, आप पता लगा सकते हैं कि घर-मालिक हमारी बात सुनकर भड़क उठेगा या सच्ची दिलचस्पी दिखाएगा। बातचीत के दौरान घर-मालिक से शायद यह पूछना अच्छा होगा कि क्या उसके पास और भी वक्त है, ताकि हम बातचीत जारी रख सकें। अगर वह ना-नुकुर करता है, या साफ इनकार करता है, तो हमें ज़बरदस्ती नहीं करनी चाहिए। (मत्ती 7:6) अच्छा होगा, अगर हम बातचीत वहीं खत्म करें और उसे धन्यवाद देकर, वहाँ से चले आएँ।
4 आनेवाले दिनों में हमारी राज्य सेवकाई में पेशकश के जो सुझाव दिए जाएँगे, उनमें यही बताया जाएगा कि हम हालात के मुताबिक अपनी पेशकश कैसे ढाल सकते हैं। प्रचार के कुछ इलाकों में ज़्यादा विरोध आता है, तो कुछ में कम। इसलिए प्राचीनों के निकायों को उकसाया गया है कि वे अपनी-अपनी कलीसियाओं के साथ चर्चा करें कि उन्हें किस हद तक हालात के मुताबिक अपनी पेशकश ढालनी है।
5 यीशु ने अपने प्रेरितों को प्रचार में भेजने से पहले कहा था: “जिस किसी नगर या गांव में जाओ, तो पता लगाओ कि वहां कौन योग्य है?” (मत्ती 10:11) यीशु जानता था कि प्रचार में मिलनेवाले सभी लोग योग्य नहीं होंगे। कुछ लोग तो शांति से भी पेश नहीं आएँगे। इसलिए उसने मत्ती 10:12-14 में दर्ज़ हिदायतें दीं। इन हिदायतों को ध्यान में रखते हुए जब हमें लगे कि चर्चा जारी रखने से घर-मालिक भड़क सकता है, तो हमें शांति से वहाँ से निकल जाना चाहिए। और हमें मामले को यहोवा के हाथों में छोड़ देना चाहिए और यह भरोसा रखना चाहिए कि वही ऐसे लोगों का सच्चा न्याय करेगा।