परमेश्वर की सेवा स्कूल की चर्चा
27 अप्रैल, 2009 से शुरू होनेवाले हफ्ते में, परमेश्वर की सेवा स्कूल में नीचे दिए सवालों पर चर्चा होगी। स्कूल अध्यक्ष, 20 मिनट के लिए 2 मार्च से 27 अप्रैल, 2009 तक के हफ्तों में पेश किए भागों पर हाज़िर लोगों के साथ चर्चा करेगा।
1. यूसुफ की कहानी कैसे दिखाती है कि अपने ज़मीर को तालीम देना और उसकी आवाज़ को सुनना निहायत ज़रूरी है? (उत्प. 39:7-12) [w07 11/1-HI पेज 10 पैरा. 16]
2. जब कोई हमारे खिलाफ पाप करता है, तो हमें उसे माफ कर देना चाहिए। इस मामले में यूसुफ कैसे एक बढ़िया मिसाल है? (उत्प. 45:4,5) [w99 1/1-HI पेज 31 पैरा. 2-3]
3. “राजदण्ड” का क्या मतलब है? (उत्प. 49:10) [w04 1/15-HI पेज 29]
4. यूसुफ की इस आज्ञा का क्या असर हुआ: ‘तू मेरी हड्डियों को यहां से ले जाना’? (उत्प. 50:25) [w07 6/1-HI पेज 28 पैरा. 10]
5. जब हमें एक मुश्किल काम सौंपा जाता है, तो उसे पूरा करने का हौसला हमें कहाँ से मिल सकता है? (निर्ग. 4:10,13) [w04 3/15-HI पेज 25 पैरा. 4]
6. यहोवा ने फिरौन के मामले को जिस तरह निपटाया, उससे क्या फायदा हुआ? उन घटनाओं का हम पर कैसा असर पड़ना चाहिए? (निर्ग. 9:13-16) [w05 5/15-HI पेज 21 पैरा. 8]
7. निर्गमन 14:30,31 में दर्ज़ शब्द, आज हमारे लिए क्या मायने रखते हैं? [w04 3/15-HI पेज 26 पैरा. 5]
8. निर्गमन 16:1-3 के मुताबिक, शिकायत करने के क्या खतरे हैं? [w06 8/1-HI पेज 7 पैरा. 4-5]
9. निर्गमन 19:5,6 में व्यवस्था वाचा की जो शर्तें दी गयी हैं, उनके मुताबिक प्राचीन इसराएल किन मायनों में “याजकों का राज्य और पवित्र जाति” था? [w95 7/1-HI पेज 16 पैरा. 8]
10. लालच से दूर रहने की दसवीं आज्ञा कैसे इंसान के बनाए कानून से बढ़कर है? (निर्ग. 20:17) [w06 7/1-HI पेज 15-16 पैरा. 16]