परमेश्वर की सेवा स्कूल में सीखी बातों पर चर्चा
31 अक्टूबर, 2011 से शुरू होनेवाले हफ्ते में, परमेश्वर की सेवा स्कूल में नीचे दिए सवालों पर चर्चा होगी।
1. हमें यहोवा की चितौनियों से क्यों लिपटे रहना चाहिए? (भज. 119:60, 61) [प्रहरीदुर्ग 00 12/1 पेज 14 पैरा. 3]
2. भजन 133:1-3 से हम क्या सबक सीखते हैं? [प्रहरीदुर्ग 06 9/1 पेज 21 पैरा. 4]
3. यहोवा ने किस तरह दाविद को “जांचकर जान लिया” और उसके “चलने और लेटने” की “छानबीन” की? (भज. 139:1, 3) [प्रहरीदुर्ग 06 9/1 पेज 21 पैरा. 7; प्रहरीदुर्ग 93 10/1 पेज 9 पैरा. 6]
4. यहोवा अपने सेवकों को कौन-सी मुश्किलों के दौरान “संभालता” है और “सीधा खड़ा करता” है? (भज. 145:14) [प्रहरीदुर्ग 04 1/15 पेज 17 पैरा. 11]
5. नीतिवचन 6:12-14 में बताए गए आदमी के किस व्यवहार की वजह से उसे ओछा कहा गया है? [प्रहरीदुर्ग 00 9/15 पेज 26 पैरा. 5-6]
6. एक बुद्धिमान इंसान क्यों “आज्ञाओं को स्वीकार करता है”? (नीति. 10:8) [प्रहरीदुर्ग 01 7/15 पेज 26 पैरा. 1]
7. जब अपमान या आलोचना की जाती है, तो बुद्धिमान और मूर्ख व्यक्ति किस तरह अलग-अलग रवैया दिखाते हैं? (नीति. 12:16) [प्रहरीदुर्ग 03 3/15 पेज 27 पैरा. 3-4]
8. अच्छा नज़रिया बनाए रखने से कैसे हम “नित्य भोज” का मज़ा उठा पाते हैं? (नीति. 15:15) [प्रहरीदुर्ग 05 8/1 पेज 6 पैरा. 3]
9. “बुद्धि प्राप्त” करने में क्या शामिल है? (नीति. 19:8) [प्रहरीदुर्ग 99 7/1 पेज 19 पैरा. 4]
10. समझ से कैसे एक घराना मज़बूत होता है? (नीति. 24:3) [प्रहरीदुर्ग 06 10/1 पेज 14 पैरा. 11; सेवा स्कूल पेज 32 पैरा. 1]