मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले
1-7 अप्रैल
पाएँ बाइबल का खज़ाना | 1 कुरिंथियों 7-9
“अविवाहित रहना—एक तोहफा”
अविवाहित हालात का पूरा-पूरा फायदा उठाइए
3 अकसर शादीशुदा इंसान के मुकाबले एक कुँवारे व्यक्ति के पास ज़्यादा वक्त और आज़ादी होती है। (1 कुरिं. 7:32-35) इस वजह से वह खासकर दूसरों को ज़्यादा प्यार दिखा पाता है, परमेश्वर की सेवा में ज़्यादा वक्त बिता पाता है और यहोवा के और करीब आ पाता है। कुँवारेपन के फायदों को देखते हुए बहुत-से मसीहियों ने कम-से-कम कुछ वक्त के लिए “अविवाहित” रहने का फैसला किया है। कुछ ऐसे भी हैं, जो शायद कुँवारे नहीं रहना चाहते थे लेकिन हालात की वजह से जब वे अकेले रह गए तो उन्होंने इस बारे में प्रार्थना की और इस नतीजे पर पहुँचे कि यहोवा की मदद से वे भी अविवाहित रहने का इरादा कर सकते हैं। इस तरह उन्होंने अपने हालात कबूल करके कुँवारे रहने की सोच ली।—1 कुरिं. 7:37, 38.
कुरिन्थियों को लिखी पत्रियों की झलकियाँ
7:33, 34—‘संसार की बातें’ क्या हैं, जिनके लिए शादीशुदा स्त्री-पुरुष चिंता करते हैं? पौलुस रोज़मर्रा की ज़िंदगी की बातों का ज़िक्र कर रहा था, जिनके लिए शादीशुदा मसीहियों को चिंता करनी चाहिए। इसमें रोटी, कपड़ा, मकान जैसी चीज़ें शामिल हैं। लेकिन इसमें दुनिया की बुरी चीज़ें शामिल नहीं, जिनसे मसीहियों को दूर रहना चाहिए।—1 यूह. 2:15-17.
अविवाहित अवस्था—निर्विघ्न गतिविधि का द्वार
14 एक अविवाहित मसीही जो अपनी अविवाहित अवस्था को स्वार्थी लक्ष्यों का पीछा करने के लिए प्रयोग करता है वह विवाहित मसीहियों से “और भी अच्छा” नहीं कर रहा है। वह “स्वर्ग के राज्य के लिये” नहीं, बल्कि निजी कारणों के लिए अविवाहित रह रहा है। (मत्ती 19:12) अविवाहित पुरुष या स्त्री को चाहिए कि “प्रभु की बातों की चिन्ता” में रहे, चिन्ता करे कि “प्रभु को कैसे प्रसन्न करे,” और “प्रभु की सेवा में निर्विघ्न लगा रहे।” इसका अर्थ है यहोवा और मसीह यीशु की सेवा करने में एकचित्त ध्यान लगाना। केवल ऐसा करने के द्वारा ही अविवाहित मसीही पुरुष और स्त्रियाँ विवाहित मसीहियों से “और भी अच्छा” कर रहे हैं।
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
प्यार के लायक पेज 251, ज़्यादा जानकारी
तलाक देना या अलग होना
कुछ मसीहियों ने तलाक तो नहीं लिया है, लेकिन वे अपने साथी से अलग हुए हैं, जबकि दोनों में से किसी ने भी नाजायज़ संबंध नहीं रखे हैं। (1 कुरिंथियों 7:11) नीचे बताए कारणों से एक मसीही चाहे तो अलग होने की सोच सकता है।
• जब साथी परिवार की ज़िम्मेदारी न निभाए: एक पति जानबूझकर अपने परिवार की ज़रूरतें पूरी नहीं करता, जिस वजह से बीवी-बच्चे खाने तक को मोहताज हो जाते हैं।—1 तीमुथियुस 5:8.
• जब साथी बहुत मारे-पीटे: कोई अपने साथी को इतना मारता-पीटता है कि उसकी सेहत खराब हो जाती है या उसकी जान खतरे में पड़ जाती है।—गलातियों 5:19-21.
• जब साथी की वजह से यहोवा के साथ रिश्ता कायम रखना ही मुश्किल हो जाए: साथी इतनी मुश्किलें खड़ी करता है कि एक मसीही यहोवा की सेवा नहीं कर पाता।—प्रेषितों 5:29.
अनैतिक संसार में भी बेदाग रहना मुमकिन है
और जवानो, आप भी यह ध्यान रखिए कि जब शुरू-शुरू में आपमें लैंगिक इच्छाएँ बढ़ने लगे, तब जल्दबाज़ी में शादी न करें। शादी कोई गुड्डे-गुड़ियों का खेल नहीं है। इसमें पति-पत्नी को उम्र भर एक-दूसरे का साथ निभाना होता है। और इसके लिए समझदारी की ज़रूरत है। (उत्पत्ति 2:24) तो अच्छा होगा कि आप शादी के लिए ‘भरी जवानी के ढल जाने’ का इंतज़ार करें। क्योंकि भरी जवानी में लैंगिक इच्छाएँ बहुत प्रबल होती हैं और इसलिये जवान सही फैसले नहीं कर पाते। (1 कुरिन्थियों 7:36) और अगर किसी लड़के या लड़की को जीवन-साथी नहीं मिलता और इस वज़ह से वह अपनी ख्वाहिश पूरी करने के लिये अनैतिक काम करता है, तो यह न सिर्फ बेवकूफी होगी बल्कि यह बहुत घिनौना पाप भी है।
8-14 अप्रैल
पाएँ बाइबल का खज़ाना | 1 कुरिंथियों 10-13
“यहोवा विश्वासयोग्य है”
आपने पूछा
प्रेषित पौलुस ने लिखा कि यहोवा “तुम्हें ऐसी किसी भी परीक्षा में नहीं पड़ने देगा जो तुम्हारी बरदाश्त के बाहर हो।” (1 कुरिं. 10:13) तो क्या इसका मतलब है कि यहोवा पहले से जान लेता है कि हम क्या बरदाश्त कर सकते हैं और फिर तय करता है कि कौन-सी परीक्षाएँ हम पर आएँगी?
▪ अगर यह बात सच है तो ज़रा सोचिए इसका क्या मतलब होगा। एक भाई जिसके बेटे ने खुदकुशी की, वह पूछता है, ‘क्या यहोवा ने पहले से जान लिया था कि मुझमें और मेरी पत्नी में इस हादसे को सहने की ताकत है? क्या यह घटना इसीलिए हुई क्योंकि परमेश्वर ने तय कर लिया था कि हम इसे बरदाश्त कर लेंगे?’ क्या इस बात को मानने की कोई ठोस वजह है कि यहोवा हमारी ज़िंदगी में ऐसा कुछ करता है?
पहला कुरिंथियों 10:13 के शब्दों की जाँच करने पर हम इस नतीजे पर पहुँचते हैं: बाइबल में ऐसा कहीं नहीं बताया गया है कि यहोवा पहले से यह जान लेता है कि हममें बरदाश्त करने की कितनी ताकत है और फिर वह तय करता है कि हम पर कौन-सी परीक्षाएँ आएँगी। हम ऐसा क्यों कह सकते हैं, आइए इसकी चार वजहों पर गौर करें।
पहली वजह, यहोवा ने इंसान को खुद फैसला करने की आज़ादी दी है। वह चाहता है कि हम खुद अपने फैसले करें। (व्यव. 30:19, 20; यहो. 24:15) अगर हम ऐसे फैसले लें जो यहोवा को खुश करते हैं, तो हम भरोसा रख सकते हैं कि वह हमें सही राह दिखाएगा। (नीति. 16:9) लेकिन अगर हम गलत फैसले करेंगे, तो हमें इसके बुरे अंजाम भुगतने पड़ेंगे। (गला. 6:7) ज़रा सोचिए, अगर यहोवा ने हमें आज़ादी दी है तो क्या उसका यह तय करना सही होगा कि हम पर कौन-सी परीक्षाएँ आएँगी? अगर ऐसा है, तो हमारे पास फैसला करने की आज़ादी कहाँ रही?
दूसरी वजह, यहोवा ‘मुसीबत की घड़ी और हादसों’ से हमें नहीं बचाता। (सभो. 9:11) कभी-कभी लोग इत्तफाक से ऐसी जगह होते हैं जहाँ अचानक कोई हादसा होता है और वे उसके शिकार हो जाते हैं। यीशु ने भी एक ऐसी घटना के बारे में बताया था जिसमें एक मीनार के गिरने से 18 लोगों की मौत हो गयी थी। उसने साफ-साफ बताया कि उन लोगों की मौत के पीछे परमेश्वर का हाथ नहीं था। (लूका 13:1-5) तो क्या यह मानना सही होगा कि कोई हादसा होने से पहले परमेश्वर तय कर लेता है कि उसमें कौन बचेगा और कौन मरेगा?
तीसरी वजह, हममें से हरेक को यहोवा के वफादार बने रहना है। शैतान ने दावा किया कि यहोवा के सभी सेवक स्वार्थी हैं और मुश्किलें आने पर यहोवा के वफादार नहीं रहेंगे। (अय्यू. 1:9-11; 2:4; प्रका. 12:10) अगर यहोवा हम पर कुछ परीक्षाएँ नहीं आने देता क्योंकि उसे लगता है कि हम उन्हें बरदाश्त नहीं कर सकते, तो क्या वह शैतान के दावे को सच साबित नहीं कर रहा होगा?
चौथी वजह, यहोवा पहले से यह जानने की कोशिश नहीं करता कि हमारे साथ क्या-क्या होगा। यह सच है कि अगर वह चाहे तो भविष्य में होनेवाली घटनाओं को पहले से जान सकता है। (यशा. 46:10) लेकिन बाइबल बताती है कि वह हर मामले में ऐसा नहीं करता। (उत्प. 18:20, 21; 22:12) यहोवा एक प्यार करनेवाला और नेक परमेश्वर है। इसलिए वह ऐसा कुछ नहीं करता जिससे फैसला करने की हमारी आज़ादी हमसे छिन जाए।—व्यव. 32:4; 2 कुरिं. 3:17.
तो फिर पौलुस के इन शब्दों का क्या मतलब था कि यहोवा “तुम्हें ऐसी किसी भी परीक्षा में नहीं पड़ने देगा जो तुम्हारी बरदाश्त के बाहर हो”? यहाँ पौलुस समझा रहा था कि यहोवा परीक्षाओं के दौरान क्या करता है, न कि परीक्षाएँ आने से पहले क्या करता है। पौलुस हमें यकीन दिला रहा था कि अगर हम यहोवा पर भरोसा रखें तो वह किसी भी परीक्षा का सामना करने में हमारी मदद कर सकता है। (भज. 55:22) पौलुस ऐसा क्यों कह पाया, आइए इसकी दो वजहों पर गौर करें।
पहली वजह है, हम पर ऐसी कोई परीक्षा नहीं आती है, “जो दूसरे इंसानों पर न आयी हो।” जब तक हम शैतान की दुनिया में जी रहे हैं हमें मुश्किल हालात का सामना करना पड़ेगा और हमारे साथ कोई बुरी घटना भी हो सकती है। लेकिन अगर हम यहोवा पर भरोसा रखें, तो हम इन परीक्षाओं का सामना कर सकते हैं और उसके वफादार बने रह सकते हैं। (1 पत. 5:8, 9) पहला कुरिंथियों अध्याय 10 की पहली कुछ आयतों में पौलुस ने उन परीक्षाओं के बारे में बताया जो वीराने में इसराएलियों पर आयी थीं। (1 कुरिं. 10:6-11) जिन इसराएलियों ने यहोवा पर भरोसा रखा वे उन परीक्षाओं का सामना कर पाए। लेकिन कुछ इसराएलियों ने यहोवा पर भरोसा नहीं रखा, इसलिए उन्होंने उसकी आज्ञा नहीं मानी और उसके वफादार नहीं रहे।
दूसरी वजह है कि “परमेश्वर विश्वासयोग्य है।” इसका क्या मतलब है? जब हम गौर करते हैं कि पुराने समय में यहोवा ने अपने लोगों को किस तरह सँभाला था, तो हम समझ पाते हैं कि “जो उससे प्यार करते हैं और उसकी आज्ञाएँ मानते हैं” उनसे वह वफादारी निभाता है और उनकी मदद करता है। (व्यव. 7:9) हम यह भी सीखते हैं कि यहोवा हमेशा अपने वादे पूरे करता है। (यहो. 23:14) इससे हमें दो बातों का यकीन होता है: (1) यहोवा किसी भी परीक्षा को उस हद तक नहीं जाने देगा कि हम उसे बरदाश्त न कर सकें और (2) वह ‘उससे निकलने का रास्ता निकालेगा।’
यहोवा उन लोगों के लिए कैसे ‘रास्ता निकालता है’ जो उस पर भरोसा रखते हैं? बेशक यहोवा चाहे तो किसी भी परीक्षा को हटा सकता है। लेकिन याद कीजिए पौलुस ने कहा था कि यहोवा “उससे निकलने का रास्ता भी निकालेगा ताकि तुम इसे सह सको।” इसलिए ज़्यादातर मामलों में यहोवा हमें ज़रूरी मदद देता है ताकि हम परीक्षाओं को सह सकें और वफादार बने रह सकें। इस तरह वह हमारे लिए रास्ता निकालता है। आइए कुछ तरीकों पर ध्यान दें कि यहोवा किस तरह हमारी मदद करता है:
▪ यहोवा “हमारी सब परीक्षाओं में हमें दिलासा देता है।” (2 कुरिं. 1:3, 4) परीक्षाओं के दौरान यहोवा बाइबल, अपनी पवित्र शक्ति और विश्वासयोग्य दास के ज़रिए हमारे बेचैन दिल और मन को शांत कर सकता है।—मत्ती 24:45; यूह. 14:16, फु.; रोमि. 15:4.
▪ यहोवा अपनी पवित्र शक्ति के ज़रिए हमें राह दिखा सकता है। (यूह. 14:26) पवित्र शक्ति हमें बाइबल के ऐसे ब्यौरे और सिद्धांत याद दिला सकती है जो बुद्धि-भरे फैसले लेने में हमारी मदद कर सकते हैं।
▪ यहोवा अपने स्वर्गदूतों के ज़रिए भी हमारी मदद कर सकता है।—इब्रा. 1:14.
▪ यहोवा हमारी मदद करने के लिए मसीही भाई-बहनों को भी उभार सकता है। वे अपनी बातों और कामों से हमारी हिम्मत बढ़ा सकते हैं।—कुलु. 4:11.
तो हमने 1 कुरिंथियों 10:13 में दर्ज़ पौलुस के शब्दों से क्या सीखा? यहोवा यह तय नहीं करता कि हम पर कौन-सी परीक्षाएँ आएँगी। लेकिन हम इस बात का यकीन रख सकते हैं कि अगर हम यहोवा पर भरोसा रखें तो हम किसी भी परीक्षा का सामना कर सकते हैं। हमने यह भी जाना है कि यहोवा हमेशा हमारे लिए रास्ता निकालेगा ताकि हम उसके वफादार बने रहें।
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
पाठकों के प्रश्न
पहला कुरिन्थियों 10:8 में ऐसा क्यों कहा गया है कि व्यभिचार करने की वजह से एक ही दिन में 23,000 इस्राएली मारे गए, जबकि गिनती 25:9 में मरनेवालों की संख्या 24,000 बतायी गयी है?
इन दोनों आयतों में अलग-अलग संख्या देने की कई वजह हो सकती हैं। एक सीधी-सी वजह यह हो सकती है कि मरनेवालों की असल संख्या 23,000 और 24,000 के बीच रही होगी, इसलिए पूर्ण संख्या इस्तेमाल करने के लिए 23,000 और 24,000 लिखा गया है।
एक और वजह पर गौर कीजिए। प्राचीन कुरिन्थ शहर लुचपन के लिए बहुत बदनाम था, इसलिए प्रेरित पौलुस ने वहाँ के मसीहियों को चेतावनी देने के लिए इस्राएलियों के साथ शित्तीम में हुए वाकये का ज़िक्र किया। उसने लिखा: “न हम व्यभिचार करें; जैसा उन में से कितनों ने किया: और एक दिन में तेईस हजार मर गये।” व्यभिचार करने की वजह से जिन लोगों को खुद यहोवा ने मारा था, सिर्फ उनकी संख्या पौलुस ने 23,000 बतायी।—1 कुरिन्थियों 10:8.
लेकिन गिनती किताब का अध्याय 25 बताता है कि ‘इस्राएली बालपोर देवता के संग मिल गए; और यहोवा का क्रोध इस्राएल पर भड़क उठा।’ (NW ) उसके बाद, यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी कि वह “प्रजा के सब प्रधानों” को मार डाले। और मूसा ने न्यायियों को इस आज्ञा का पालन करने का हुक्म दिया। आखिर में, जब पीनहास ने एक ऐसे इस्राएली को मारने के लिए फौरन कदम उठाया, जो इस्राएल के डेरे में एक मिद्यानी स्त्री को लाया, तो ‘मरी थम गई।’ उस वृत्तांत के आखिर में लिखा गया है: “मरी से चौबीस हज़ार मनुष्य मर गए।”—गिनती 25:1-9.
ज़ाहिर है कि गिनती की किताब में मरनेवालों की संख्या में, ‘प्रजा के सब प्रधान’ शामिल होंगे जिन्हें न्यायियों ने मारा था और दूसरे इस्राएली जिन्हें खुद यहोवा ने नाश किया था। न्यायियों के हाथ मरनेवाले प्रधानों की संख्या हज़ार के आस-पास रही होगी जिसकी वजह से मरनेवालों की कुल गिनती 24,000 हुई। इन प्रधानों यानी बलवा करनेवालों के सरदारों ने व्यभिचार किया या नहीं, जश्न में हिस्सा लिया या नहीं, या फिर इसमें शामिल होने के लिए लोगों को इजाज़त दी कि नहीं, इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी गयी है, लेकिन एक बात तय है कि वे “बालपोर के संग मिल” जाने के दोषी थे।
बाइबल के बारे में लिखी एक किताब कहती है कि ‘मिल जाने’ के लिए जो शब्द इस्तेमाल किया गया है, उसका मतलब “किसी इंसान के साथ खुद को बाँध लेना” हो सकता है। इस्राएली यहोवा के समर्पित लोग थे जिसकी वजह से परमेश्वर के साथ उनका एक खास रिश्ता था। लेकिन जब वे “बालपोर के संग मिल” गए, तो उन्होंने परमेश्वर से रिश्ता तोड़ दिया। करीब 700 साल बाद, यहोवा ने अपने भविष्यवक्ता होशे के ज़रिए इन इस्राएलियों के बारे में कहा: “उन्हों ने पोर के बाल के पास जाकर अपने तईं को लज्जा का कारण होने के लिये अर्पण कर दिया, और जिस पर मोहित हो गए थे, वे उसी के समान घिनौने हो गए।” (होशे 9:10) जिन-जिन लोगों ने यह घिनौना काम किया, वे सब परमेश्वर से कड़ी-से-कड़ी सज़ा पाने के लायक थे। इसलिए मूसा ने इस्राएल की संतानों को याद दिलाया: “तुम ने तो अपनी आंखों से देखा है कि बालपोर के कारण यहोवा ने क्या क्या किया; अर्थात् जितने मनुष्य बालपोर के पीछे को लिये थे उन सभों को तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम्हारे बीच में से सत्यानाश कर डाला।”—व्यवस्थाविवरण 4:3.
आपने पूछा
अगर एक मसीही बहन, एक प्रचारक की मौजूदगी में बाइबल अध्ययन चलाती है, तो क्या उसे सिर ढकने की ज़रूरत है?
▪ 15 जुलाई, 2002 की प्रहरीदुर्ग में छपे लेख “पाठकों के प्रश्न” में बताया गया था कि अगर एक बहन किसी प्रचारक की मौजूदगी में बाइबल अध्ययन चलाती है, तो उस बहन को अपना सिर ढकना चाहिए, फिर चाहे वह प्रचारक बपतिस्मा-शुदा हो या न हो। लेकिन इस मामले की गहराई से जाँच करने के बाद, इस निर्देशन में कुछ फेरबदल किया गया है।
अगर एक बपतिस्मा-शुदा प्रचारक भाई, एक बहन के साथ कुछ समय से चल रहे एक बाइबल अध्ययन पर जाता है और वह बहन बाइबल अध्ययन चलाती है, तो बेशक बहन को अध्ययन चलाते वक्त अपना सिर ढकना चाहिए। ऐसा करके वह बहन मसीही मंडली में यहोवा के ठहराए मुखियापन के इंतज़ाम के लिए आदर दिखा रही होगी। क्योंकि उस वक्त वह बहन बाइबल अध्ययन चलाकर एक ऐसी ज़िम्मेदारी निभा रही होगी, जो आम तौर पर एक भाई को निभानी चाहिए। (1 कुरिं. 11:5, 6, 10) या फिर, अगर वह भाई अध्ययन चलाने के काबिल है, और वह अध्ययन चला सकता है, तो बहन चाहे तो उस भाई को अध्ययन चलाने के लिए कह सकती है।
वहीं दूसरी तरफ, अगर एक बपतिस्मा-रहित प्रचारक एक बहन के साथ कुछ समय से चल रहे एक बाइबल अध्ययन पर जाता है, और वह प्रचारक उस बहन का पति नहीं है, तो शास्त्र के मुताबिक अध्ययन चलाते वक्त बहन को सिर ढकने की ज़रूरत नहीं है। लेकिन ऐसे हालात में भी, हो सकता है कुछ बहनों का ज़मीर उन्हें अपना सिर ढकने के लिए उभारे।
22-28 अप्रैल
पाएँ बाइबल का खज़ाना | 1 कुरिंथियों 14-16
“परमेश्वर ‘सबके लिए सबकुछ’ होगा”
‘मृत्यु को नाश किया जाएगा’
10 “अन्त” मसीह के हज़ार साल के राज्य का अंत है, जब यीशु नम्रता और निष्ठा के साथ अपना राज्य अपने परमेश्वर और पिता के हाथों में सौंप देता है। (प्रकाशितवाक्य 20:4) परमेश्वर का यह उद्देश्य पूरा हो जाएगा कि “सब कुछ वह मसीह में एकत्र करे।” (इफिसियों 1:9, 10) लेकिन इससे पहले मसीह परमेश्वर की अटल इच्छा के विरोधियों की “सारी प्रधानता और सारा अधिकार और सामर्थ का अन्त” करेगा। इसमें अरमगिदोन में होनेवाले विनाश से और भी ज़्यादा शामिल है। (प्रकाशितवाक्य 16:16; 19:11-21) पौलुस कहता है: “जब तक कि [मसीह] अपने बैरियों को अपने पांवों तले न ले आए, तब तक उसका राज्य करना अवश्य है। सब से अन्तिम बैरी जो नाश किया जाएगा वह मृत्यु है।” (1 कुरिन्थियों 15:25, 26) जी हाँ, आदम से मिलनेवाले पाप और मृत्यु का नामो-निशान मिटा दिया जाएगा। और इसे पूरा करने के लिए ज़रूरी कदम उठाकर परमेश्वर मरे हुओं को जीवित करने के द्वारा “कब्रों” को खाली कर चुका होगा।—यूहन्ना 5:28.
परमेश्वर का राज धरती पर उसकी मरज़ी पूरी करेगा
21 लेकिन बीमारी और पाप के खतरनाक अंजाम, मौत का क्या होगा? मौत हमारा “आखिरी दुश्मन” है। यह ऐसा दुश्मन है जिससे हर पापी इंसान एक-न-एक-दिन हार जाता है। (1 कुरिं. 15:26) लेकिन क्या मौत इतनी ताकतवर है कि यहोवा भी उसे हरा नहीं सकता? यशायाह की इस भविष्यवाणी पर गौर कीजिए: “वह मौत को हमेशा के लिए निगल जाएगा, सारे जहान का मालिक यहोवा हर इंसान के आँसू पोंछ देगा।” (यशा. 25:8) क्या आप मन की आँखों से वह समय देख सकते हैं? न शोक सभाएँ होंगी, न कब्रिस्तान होंगे, न ही कोई दुख के आँसू बहाएगा! इसके बजाय, हमारी आँखों में खुशी के आँसू होंगे क्योंकि जब यहोवा अपने वादे के मुताबिक मरे हुओं को ज़िंदा करेगा तो वह बड़ा ही रोमांचक समय होगा! (यशायाह 26:19 पढ़िए।) मौत ने हमें जो बेहिसाब ज़ख्म दिए हैं वे सब मिट जाएँगे।
शांति का बोलबाला—हज़ार साल तक और उसके बाद भी!
17 हज़ार साल के आखिर के बारे में हम पढ़ते हैं कि “परमेश्वर ही सबके लिए सबकुछ हो।” इससे अच्छा वर्णन हमें शायद ही कहीं मिले! लेकिन इन शब्दों का मतलब क्या है? ज़रा उस वक्त को याद कीजिए जब अदन के बाग में सिद्ध इंसान आदम और हव्वा परमेश्वर के परिवार का हिस्सा थे, उस परिवार का जिसमें शांति और एकता थी। पूरे जहान का महाराजा और मालिक यहोवा इस परिवार पर सीधे-सीधे हुकूमत करता था, जो इंसानों और स्वर्गदूतों से मिलकर बना था। वे परमेश्वर से बात कर सकते थे, उसकी उपासना करते थे और उससे आशीषें पाते थे। यहोवा ही “सबके लिए सबकुछ” था।
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
प्र12 9/1 पेज 9, बक्स, अँग्रेज़ी
क्या प्रेषित पौलुस ने स्त्रियों को मंडली में बोलने से मना किया था?
प्रेषित पौलुस ने लिखा, “मंडलियों में औरतें चुप रहें।” (1 कुरिंथियों 14:34) पौलुस के कहने का क्या मतलब था? क्या वह यह कह रहा था कि स्त्रियों में समझ नहीं होती? नहीं। पौलुस ने कुछ आयतों में कहा कि स्त्रियाँ अच्छी बातें सिखा सकती हैं। (2 तीमुथियुस 1:5; तीतुस 2:3-5) कुरिंथियों के नाम चिट्ठी में पौलुस ने न सिर्फ स्त्रियों को बल्कि उन लोगों को भी ‘चुप रहने’ की सलाह दी जिन्हें दूसरी भाषाएँ बोलने और भविष्यवाणी करने का वरदान मिला था। जब कोई मसीही बात कर रहा होता, तो उन्हें बीच में नहीं बोलना था। (1 कुरिंथियों 14:26-30, 33) शायद कुछ स्त्रियों को मसीही बने कुछ ही समय हुआ था और वे इतनी जोशीली थीं कि मंडली में जब कोई भाई सिखा रहा होता, तो वे बीच में ही उससे सवाल करने लगती थीं। कुरिंथ शहर में बाहर के लोगों में इस तरह बीच में बोलना आम बात थी। मगर मसीही सभा में ऐसा करने की वजह से गड़बड़ी हो रही थी, इसलिए पौलुस ने स्त्रियों को सलाह दी कि अगर उन्हें कुछ जानना हो, तो वे “घर पर अपने-अपने पति से सवाल करें।”—1 कुरिंथियों 14:35.
इंसाइट-1 पेज 1197-1198
अनश्वरता
यीशु के संगी वारिसों को उनकी मौत के बाद जब ज़िंदा किया जाता है, तो वे स्वर्ग के प्राणी बनकर न सिर्फ हमेशा की ज़िंदगी पाते हैं बल्कि यीशु की तरह अमर और अनश्वर हो जाते हैं। धरती पर रहते समय उनका शरीर नश्वर होता है। लेकिन वफादारी से सेवा करने के बाद जब उनकी मौत हो जाती है, तो उन्हें अदृश्य शरीर मिलता है जो अनश्वर होता है। पौलुस ने यह बात 1 कुरिंथियों 15:42-54 में साफ बतायी है। अमरता का मतलब है ऐसा जीवन जो कभी खत्म या नष्ट नहीं होगा। और अनश्वरता का मतलब ऐसा शरीर है जो कभी नष्ट नहीं होगा और कभी नहीं सड़ेगा। इससे पता चलता है कि परमेश्वर उन्हें ऐसी शक्ति देता है कि उन्हें दूसरे प्राणियों और स्वर्गदूतों की तरह ऊर्जा के किसी बाहरी स्रोत की ज़रूरत नहीं होती, उनका जीवन अपने आप कायम रह पाता है। यह दिखाता है कि यहोवा को उन पर कितना भरोसा है। मगर इस तरह आत्म-निर्भर होने और अनश्वर होने का यह मतलब नहीं कि परमेश्वर का उन पर कोई अधिकार नहीं। इसके बजाय, वे अपने मुखिया यीशु मसीह की तरह हमेशा अपने पिता के अधीन रहेंगे, उसकी मरज़ी पूरी करेंगे और उसके निर्देशों को मानते रहेंगे।—1कुर 15:23-28.
अप्रैल 29–5 मई
पाएँ बाइबल का खज़ाना | 2 कुरिंथियों 1-3
“यहोवा—‘हर तरह का दिलासा देनेवाला परमेश्वर’”
“रोनेवालों के साथ रोओ”
4 हमारे प्यारे पिता ने भी यह गम सहा है। उसने अब्राहम, इसहाक, याकूब, मूसा और राजा दाविद जैसे अपने अज़ीज़ों की मौत का दुख झेला है। (गिन. 12:6-8; मत्ती 22:31, 32; प्रेषि. 13:22) बाइबल बताती है कि यहोवा अपने इन वफादार सेवकों को ज़िंदा करने के लिए तरस रहा है। (अय्यू. 14:14, 15) ज़िंदा किए जाने के बाद उनकी ज़िंदगी खुशियों से भर जाएगी और वे सेहतमंद रहेंगे। लेकिन इन सेवकों के अलावा यहोवा ने अपने बेटे की मौत का गम भी सहा है। बाइबल बताती है कि यीशु परमेश्वर को बहुत “प्यारा” था। (मत्ती 3:17) हम सोच भी नहीं सकते कि यहोवा को कितनी तकलीफ हुई होगी जब उसने अपने बेटे को दर्दनाक मौत मरते देखा।—यूह. 5:20; 10:17.
“रोनेवालों के साथ रोओ”
14 कभी-कभी हमें शायद यह समझ न आएँ कि हम गम सहनेवालों से क्या कहेंगे। लेकिन बाइबल बताती है, “बुद्धिमान की बातें मरहम का काम करती हैं।” (नीति. 12:18) जब आपका कोई अपना मर जाए ब्रोशर में अच्छे सुझाव दिए गए हैं कि हम दिलासा देने के लिए क्या कह सकते हैं। लेकिन अकसर देखा गया है कि दिलासा देने का सबसे बेहतरीन तरीका है, ‘रोनेवालों के साथ रोना।’ (रोमि. 12:15) गैबी जिसके पति की मौत हो चुकी है कहती है, “कभी-कभी मैं अपना दुख बता नहीं पाती, बस रो पड़ती हूँ। जब मेरे दोस्त मेरे साथ रोते हैं तो मेरा मन हलका हो जाता है। उस वक्त मुझे लगता है कि मेरे दोस्त मेरा गम समझते हैं।”
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
आपने पूछा
पौलुस ने जब यह कहा कि हर अभिषिक्त मसीही को परमेश्वर से “बयाना” मिलता है और उस पर “मुहर” लगायी जाती है, तो उसका क्या मतलब था?—2 कुरिं. 1:21, 22.
▪ बयाना: एक किताब के मुताबिक, 2 कुरिंथियों 1:22 में जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “बयान” किया गया है, वह “एक कानूनी और व्यापारिक शब्द” था। उसका मतलब था ‘पहली किश्त, जमा राशि या पेशगी, जो कोई चीज़ खरीदने के लिए तय रकम का कुछ हिस्सा होता है और यह पहले से दे दिया जाता है। इस तरह खरीदी जानेवाली चीज़ कानूनी तौर पर खरीददार की मानी जाती है या सौदा पक्का हो जाता है।’ अभिषिक्त मसीहियों के मामले में यहोवा ने उस इनाम के लिए बयाना दिया है, जो उन्हें मिलेगा। दूसरा कुरिंथियों 5:1-5 में बताया गया है कि पूरी रकम या इनाम के तौर पर उन्हें स्वर्ग में अनश्वर शरीर मिलेगा। इस इनाम में अमरता का तोहफा भी शामिल होगा।—1 कुरिं. 15:48-54.
आजकल बोली जानेवाली यूनानी में, इसी से मिलता-जुलता शब्द सगाई की अँगूठी के लिए इस्तेमाल होता है। यह उनके लिए बिलकुल सही उदाहरण है, जो मसीह की लाक्षणिक पत्नी का हिस्सा होंगे।—2 कुरिं. 11:2; प्रका. 21:2, 9.
▪ मुहर: पुराने ज़माने में, मुहर यह पक्का करने के लिए दस्तखत की तरह इस्तेमाल की जाती थी कि फलाँ चीज़ किसकी है या उस पर किसका अधिकार है। इससे किसी करार को भी पक्का किया जाता था। अभिषिक्त मसीहियों पर पवित्र शक्ति के ज़रिए लाक्षणिक तौर पर इस बात की “मुहर” या छाप लगायी गयी है कि वे परमेश्वर की जागीर हैं। (इफि. 1:13, 14) लेकिन यह मुहर पक्की नहीं होती। इसे एक वफादार व्यक्ति की मौत से कुछ समय पहले पक्का किया जाता है, या महा-संकट के शुरू होने से कुछ समय पहले पक्का किया जाएगा।—इफि. 4:30; प्रका. 7:2-4.
क्या आप जानते थे?
जब पौलुस ने “जीत के जुलूस” का ज़िक्र किया, तब उसके मन में क्या था?
▪ पौलुस ने लिखा: “परमेश्वर . . . हमेशा हमारे आगे-आगे चलता हुआ हमें जीत के जुलूस में मसीह के संग लिए चलता है और हमारे ज़रिए अपने ज्ञान की सुगंध हर जगह फैलाता है! इसलिए कि परमेश्वर के सामने हम, उद्धार की राह पर चलनेवालों और विनाश की राह पर चलनेवालों, दोनों के लिए मसीह के बारे में समाचार की सुगंध हैं, यानी कितनों के लिए मौत की वह गंध जिसका अंजाम मौत होता है और कितनों के लिए जीवन की वह सुगंध जिसका अंजाम ज़िंदगी होता है। और कौन ऐसी सेवा के लिए ज़रूरी योग्यता रखता है?”—2 कुरिं. 2:14-16.
रोमियों का एक रिवाज़ था कि जब कोई सेनापति देश के दुश्मनों पर जीत हासिल करके लौटता तो उसकी खुशी में एक जुलूस निकाला जाता और पौलुस के मन में इसी जुलूस की बात थी। इसमें, युद्ध में हारे हुए कैदियों और लूट के माल का प्रदर्शन किया जाता, बलिदान के लिए बैल ले जाए जाते और जनता ज़ोर-ज़ोर से विजेता सेनापति और उसकी सेना की जयजयकार करती। आखिर में बैलों की बलि चढ़ायी जाती और बहुत-से कैदियों को मौत के घाट उतार दिया जाता।
किताब द इंटरनैशनल स्टैंडर्ड बाइबल इनसाइक्लोपीडिया कहती है, “रोमियों के जुलूस में धूप जलाने का रिवाज़ था और शायद इसी से” यह रूपक “मसीह . . . की सुगंध” या “गंध” लिया गया, जो कुछ के लिए तो ज़िंदगी, मगर कुछ के लिए मौत का सूचक था। “वह महक, एक तरफ विजय हासिल करनेवालों की जीत को दर्शाती थी, मगर दूसरी तरफ उन कैदियों को एहसास दिलाती थी कि उनकी मौत सामने खड़ी है।”