मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले
© 2025 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
5-11 मई
पाएँ बाइबल का खज़ाना नीतिवचन 12
कड़ी मेहनत करने से इनाम मिलता है
परमेश्वर का एक गुण हीरे से भी अनमोल
यहोवा के कुछ सेवकों के लिए शायद अपनी बुनियादी ज़रूरतें पूरी करना भी मुश्किल हो। लेकिन इसके लिए वे आसान, मगर बेईमानी का रास्ता नहीं चुनते। वे कड़ी मेहनत करते हैं। इस तरह वे दिखाते हैं कि उनके लिए ईमानदारी और परमेश्वर के दूसरे गुण सुख-सुविधा की चीज़ों से ज़्यादा अनमोल हैं।—नीति. 12:24; इफि. 4:28.
प्र15 2/1 पेज 5 पै 4-6, अँग्रेज़ी
अपनी मेहनत से खुशी कैसे पाएँ?
सबसे आखिर में जो सवाल है, उस पर सोचना बहुत ज़रूरी है क्योंकि हमें अपने काम से तभी संतुष्टि मिलेगी जब हम यह देख पाएँगे कि इससे दूसरे लोगों को कैसे फायदा होता है। यीशु ने कहा था, “लेने से ज़्यादा खुशी देने में है।” (प्रेषितों 20:35) ग्राहकों और हमारे मालिक को तो हमारे काम से सीधे-सीधे फायदा होता ही है, लेकिन और भी लोग हैं जिन्हें हमारी मेहनत से फायदा होता है। वे हैं, हमारे परिवार के सदस्य और कुछ ज़रूरतमंद लोग।
परिवार के सदस्य। जब परिवार का मुखिया अपने परिवार के सदस्यों की ज़रूरतें पूरी करने के लिए मेहनत करता है, तो इससे वह उन्हें कम-से-कम दो तरीकों से फायदा दे रहा होता है। एक, वह इस बात का खयाल रखता है कि जीने के लिए जो ज़रूरी चीज़ें हैं जैसे रोटी, कपड़ा और मकान, वे उन्हें मिलें। इस तरह वह परमेश्वर से मिली अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करता है कि एक मुखिया को ‘अपनों की देखभाल करनी’ चाहिए। (1 तीमुथियुस 5:8) दूसरा, वह अपनी मिसाल से अपने घरवालों को सिखाता है कि कैसे कड़ी मेहनत करके रोटी कमाई जाती है। शेन कहता है, “मेरे पिता अच्छी तरह काम करने के मामले में एक अच्छी मिसाल हैं। वे एक ईमानदार इंसान हैं और उन्होंने अपनी ज़िंदगी के ज़्यादातर साल बढ़ई के तौर पर काम करने में लगाए। उनसे मैंने सीखा कि जब हम खुद अपने हाथ से काम करते हैं, तो हम ऐसी चीज़ें बना सकते हैं जो दूसरों के काम आती हैं।”
ज़रूरतमंद लोग। प्रेषित पौलुस ने मसीहियों को सलाह दी कि वे ‘कड़ी मेहनत करें, ताकि किसी ज़रूरतमंद को देने के लिए उनके पास कुछ हो।’ (इफिसियों 4:28) जब हम अपने और अपने परिवार की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं, तब हम ज़रूरतमंदों की भी मदद कर पाते हैं। (नीतिवचन 3:27) इस तरह मेहनत करने से हमें वह खुशी मिल सकती है, जो दूसरों को देने से मिलती है।
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
नौजवानों के सवाल 95 पै 10-11, अँग्रेज़ी
क्या मुझमें परेशानियाँ सहने की ताकत है?
● अपनी परेशानियों के बारे में सही नज़रिया रखिए। यह फर्क करना सीखिए कि कौन-सी परेशानी सच में बड़ी है और कौन-सी छोटी है। बाइबल में लिखा है, “मूर्ख बड़ी जल्दी झुँझला उठता है, मगर होशियार इंसान बेइज़्ज़ती को अनदेखा करता है।” (नीतिवचन 12:16) हर परेशानी के बारे में हद-से-ज़्यादा मत सोचिए।
“मेरी क्लास के बच्चे अकसर छोटी-मोटी परेशानियों के बारे में बढ़ा-चढ़ाकर बताते हैं। और जब सोशल मीडिया पर उनके दोस्त उन्हें बताते हैं कि उनकी शिकायत करना सही है, तो उन्हें अपनी परेशानियाँ और भी बड़ी दिखने लगती हैं। फिर उनके लिए सही सोच बनाए रखना मुश्किल हो जाता है।”—जोएन।
12-18 मई
पाएँ बाइबल का खज़ाना नीतिवचन 13
‘दुष्टों के दीपक’ से धोखा मत खाइए
इंसाइट-2 पेज 196 पै 2-3
दीपक, दीया
दूसरे लाक्षणिक मतलब: बाइबल में दीपक या दीए का मतलब कोई ऐसी बात भी हो सकती है, जिससे एक व्यक्ति का मार्गदर्शन होता है। इसलिए एक नीतिवचन में नेक जनों और दुष्टों के बीच फर्क बताते हुए लिखा है, “नेक जन की रौशनी तेज़ चमकती है, लेकिन दुष्टों का दीपक बुझ जाएगा।” (नीत 13:9) नेक जनों की रौशनी और भी तेज़ होती जाएगी। लेकिन दुष्ट चाहे कितने भी चमकें या कितने भी कामयाब नज़र आएँ, पर आखिरकार वे अंधेरे में गिर पड़ेंगे। वे जो गलत काम करते हैं, परमेश्वर उन्हें उनके अंजाम भुगतने देगा।
“दुष्टों का दीपक बुझ जाएगा,” इन शब्दों का यह भी मतलब है कि उनका कोई भविष्य नहीं है। इसलिए एक और नीतिवचन में लिखा है, “क्योंकि बुराई करनेवालों का कोई भविष्य नहीं, दुष्टों का दीपक बुझा दिया जाएगा।”—नीत 24:20.
आज़ादी दिलानेवाले परमेश्वर की सेवा कीजिए
3 अगर शैतान दो सिद्ध इंसानों और कई स्वर्गदूतों को परमेश्वर की हुकूमत ठुकराने के लिए बहका सकता है, तो बेशक वह हमें भी बहका सकता है। वह आज भी वही हथकंडे अपनाता है जो उसने पहले अपनाए थे। वह इस सोच को बढ़ावा देता है कि परमेश्वर के नियम एक बोझ हैं। ये इतने सख्त हैं कि अगर हम इनके मुताबिक जीएँ तो ज़िंदगी में कोई मस्ती और मज़ा ही नहीं रहेगा। (1 यूह. 5:3) अगर हमारा उठना-बैठना अकसर ऐसे लोगों के साथ हो जो इस तरह की सोच रखते हैं, तो इसका हम पर बहुत बुरा असर पड़ सकता है। चौबीस साल की एक बहन, जो अनैतिकता में फँस गयी थी, बताती है: “मुझ पर बुरी सोहबत का बहुत असर पड़ा, क्योंकि मैं कुछ ऐसा नहीं करना चाहती थी जो मेरे साथियों को पसंद न हो।” शायद आपको भी इसी तरह के दबाव का सामना करना पड़ा हो।
“सब चतुर तो ज्ञान से काम करते हैं”
सच्चे ज्ञान के हिसाब से काम करनेवाले एक अक्लमंद और खरे इंसान को आशीष मिलेगी। सुलैमान हमें यकीन दिलाता है: “धर्मी पेट भर खाने पाता है, परन्तु दुष्ट भूखे ही रहते हैं।” (नीतिवचन 13:25) यहोवा जानता है कि ज़िंदगी के हर दायरे में हमारे लिए क्या अच्छा है, फिर चाहे वह परिवार हो, दूसरों के साथ हमारा रिश्ता हो, हमारी सेवा हो या फिर जब हमें ताड़ना मिल रही हो। और अगर हम बुद्धिमानी से उसके वचन की सलाह पर चलें, तो बेशक हमारी ज़िंदगी सबसे बेहतरीन होगी।
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
इंसाइट-2 पेज 276 पै 2
प्यार
प्यार ज़ाहिर करने का गलत तरीका: अगर हम सही तरीके से प्यार ज़ाहिर करना चाहते हैं, तो ज़रूरी है कि हम परमेश्वर से सीखें और उसके वचन में लिखी बातें समझकर उन्हें मानें। जैसे एक माता-पिता शायद अपने बच्चे से बहुत प्यार करते हों, पर उनके प्यार ज़ाहिर करने का तरीका गलत हो सकता है। वे शायद उसकी हर फरमाइश पूरी करें, उसे किसी चीज़ के लिए मना ना करें और उसके गलती करने पर उसे सुधारें भी नहीं। (नीत 22:15) लोग इस तरीके से प्यार इसलिए ज़ाहिर करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि बच्चे को रोकना-टोकना उनके परिवार की शान के खिलाफ है। पर ऐसी सोच दिखाती है कि माता-पिता सिर्फ अपने बारे में सोच रहे होते हैं। इसलिए बाइबल में लिखा है कि ऐसे माता-पिता अपने बच्चों से प्यार नहीं बल्कि नफरत कर रहे होते हैं। वे वे सब नहीं कर रहे होते जिनसे उनके बच्चे की जान बच सकती है।—नीत 13:24; 23:13, 14.
19-25 मई
पाएँ बाइबल का खज़ाना नीतिवचन 14
विपत्ति आने पर हर कदम सोच-समझकर उठाइए
जीवन परमेश्वर से मिला तोहफा है, इसकी कदर करें!
10 कुछ विपत्तियाँ ऐसी होती हैं जिन्हें आने से हम रोक नहीं सकते, जैसे प्राकृतिक विपत्तियाँ, महामारियाँ और दंगे-फसाद। लेकिन जब इस तरह की विपत्तियाँ आती हैं, तो हम अपने बचाव के लिए काफी कुछ कर सकते हैं। जैसे, हम जिस इलाके में रहते हैं वहाँ अगर कर्फ्यू लग जाए या कुछ पाबंदियाँ लगा दी जाएँ या उस इलाके को खाली करने के लिए कहा जाए, तो हम वे हिदायतें मानेंगे। (रोमि. 13:1, 5-7) कुछ विपत्तियों के बारे में पहले से पता लग जाता है। ऐसे में अधिकारी जो निर्देश देते हैं, उन्हें मानकर हम विपत्ति का सामना करने के लिए पहले से तैयार हो सकते हैं। जैसे, हम इस बात का ध्यान रख सकते हैं कि हमारे पास काफी मात्रा में पानी हो, खाने-पीने की ऐसी चीज़ें हों जो जल्दी खराब नहीं होतीं और ज़रूरी दवाइयाँ हों।
11 हम जहाँ रहते हैं, अगर वहाँ कोई ऐसी बीमारी फैल रही है जो बड़ी जल्दी एक-से-दूसरे को लग जाती है, तो हम क्या कर सकते हैं? ऐसे में अधिकारी हमें जो हिदायतें दें, हमें उन्हें मानना चाहिए। जैसे शायद हमसे कहा जाए कि हम लगातार हाथ धोएँ, उचित दूरी बनाए रखें, मास्क पहनें और अगर हममें बीमारी के लक्षण नज़र आएँ, तो खुद को दूसरों से अलग रखें। जब हम इस तरह एहतियात बरतते हैं, तो हम दिखाते हैं कि परमेश्वर ने हमें जो जीवन दिया है, उसकी हम कदर करते हैं।
12 इन हालात में शायद हमें अपने दोस्तों या पड़ोसियों से या फिर खबरों में ऐसी बातें सुनने को मिलें जो सच नहीं होतीं। लोगों की “हर बात पर” आँख मूँदकर यकीन करने के बजाय हमें सरकारी अधिकारियों और डॉक्टरों की तरफ से मिलनेवाली भरोसेमंद जानकारी पर ध्यान देना चाहिए। (नीतिवचन 14:15 पढ़िए।) शासी निकाय और शाखा दफ्तर के भाई सही जानकारी पाने के लिए बहुत मेहनत करते हैं और इसके बाद ही सभाओं या प्रचार के बारे में कोई निर्देश देते हैं। (इब्रा. 13:17) अगर हम उन निर्देशों को मानें, तो उससे हमारी और दूसरों की हिफाज़त होगी। और इससे शायद हमारे इलाके के लोग यहोवा के साक्षियों की और भी इज़्ज़त करने लगें।—1 पत. 2:12.
सादोक की तरह हिम्मतवाले बनिए!
11 अगर किसी खतरनाक हालात में हमें अपने भाई-बहनों की मदद करनी पड़े, तो हम कैसे सादोक की तरह हिम्मत से काम ले सकते हैं? (1) हिदायतें मानिए। ऐसे हालात में बहुत ज़रूरी होता है कि हम अपने बीच एकता बनाए रखें। इसलिए शाखा दफ्तर से जो हिदायतें मिलती हैं, उन्हें मानिए। (इब्रा. 13:17) विपत्ति आने पर क्या किया जाना चाहिए, इस बारे में हरेक मंडली में कुछ इंतज़ाम किए जाते हैं और संगठन भी इस बारे में कुछ हिदायतें देता है। प्राचीनों को समय-समय पर उन इंतज़ामों और हिदायतों पर गौर करना चाहिए। (1 कुरिं. 14:33, 40) (2) हिम्मत से काम लीजिए, पर सतर्क भी रहिए। (नीति. 22:3) कुछ भी करने से पहले सोचिए और बेवजह खतरा मोल मत लीजिए। (3) यहोवा पर भरोसा रखिए। याद रखिए कि यहोवा को आपकी और सभी भाई-बहनों की बहुत फिक्र है। उनकी रक्षा करने में वह आपकी मदद ज़रूर करेगा।
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
इंसाइट-2 पेज 1094
सोचने-परखने की शक्ति
जो इंसान गहराई से सोचता है और जिसके पास सोचने-परखने की शक्ति होती है, उससे भी लोग नफरत कर सकते हैं। शायद नीतिवचन 14:17 का यही मतलब हो, जहाँ लिखा है, “जो रुककर सोचता है उससे नफरत की जाती है।” जो लोग सही तरह से सोचते-समझते नहीं हैं, वे अकसर उन लोगों को नीची नज़रों से देखते हैं जो ऐसा करते हैं। उसी तरह, जो लोग परमेश्वर की मरज़ी पूरी करने की सोचते हैं और उस पर अपना पूरा ध्यान लगाते हैं, उनसे भी शायद लोग नफरत करें। यीशु ने कहा था, “मगर तुम दुनिया के नहीं हो बल्कि मैंने तुम्हें दुनिया से चुन लिया है, इसलिए दुनिया तुमसे नफरत करती है।” (यूह 15:19) बाइबल के मूल पाठ में “रुककर सोचता है” के लिए जो शब्द इस्तेमाल हुए हैं, उनका मतलब साज़िश रचना भी हो सकता है। इसलिए नीतिवचन 14:17 में शायद एक ऐसे इंसान की भी बात की गयी हो, जो साज़िशें रचता है और इसलिए उससे नफरत की जाती है।
26 मई–1 जून
पाएँ बाइबल का खज़ाना नीतिवचन 15
दूसरों में खुशियाँ बाँटिए
हम खराई से चलते रहेंगे!
16 अय्यूब मेहमान-नवाज़ था। (अय्यू. 31:31, 32) हो सकता है कि हम अमीर न हों, लेकिन फिर भी हम “मेहमान-नवाज़ी” दिखा सकते हैं। (रोमि. 12:13) हम भाई-बहनों को बुलाकर सादा-सा खाना भी खिला सकते हैं, याद रखिए कि “प्रेम वाले घर में सागपात का भोजन, बैर वाले घर में पले हुए बैल का मांस खाने से उत्तम है।” (नीति. 15:17) खराई रखनेवाले भाई-बहनों के साथ एक प्यार भरे माहौल में सादा खाना भी ज़ायकेदार बन जाएगा और उनकी संगति से हमें आध्यात्मिक रूप से फायदा भी होगा।
एक-दूसरे की हिम्मत बँधाओ और “यह और भी ज़्यादा किया करो”
16 हो सकता है, आपके लिए दूसरों को यह बताना मुश्किल हो कि आप उनके बारे में कैसा महसूस करते हैं। क्या इसका मतलब है कि आप उनका हौसला नहीं बढ़ा सकते? ऐसी बात नहीं। देखा जाए तो हौसला बढ़ाना इतना मुश्किल काम नहीं। एक मीठी-सी मुस्कान ही काम कर जाती है। लेकिन अगर कोई भाई या बहन आपकी मुस्कान देखकर नहीं मुस्कुराता, तो शायद वह किसी बात को लेकर परेशान हो। ऐसे में उसकी बात सुनने से उसे काफी राहत मिल सकती है।—याकू. 1:19.
17 हेनरी नाम के एक जवान भाई की मिसाल लीजिए। वह बहुत दुखी था क्योंकि उसके परिवार के कई लोगों ने यहोवा को छोड़ दिया। उनमें से एक उसके पिता थे जो मंडली में प्राचीन थे। सर्किट निगरान ने गौर किया कि हेनरी उदास है इसलिए वह उसे कॉफी पिलाने ले गया। हेनरी जब अपनी दिल की बात बता रहा था, तो भाई ने ध्यान से उसकी सुनी। भाई से बात करने के बाद हेनरी को एहसास हुआ कि अगर वह चाहता है कि उसका परिवार सच्चाई में लौट आए, तो खुद उसे यहोवा का वफादार रहना होगा। इसके अलावा, उसे बाइबल के इन वचनों से भी दिलासा मिला जैसे भजन 46, सपन्याह 3:17 और मरकुस 10:29, 30.
18 मारथा और हेनरी की मिसालों से हम क्या सीखते हैं? यही कि हम सब ज़रूरत की घड़ी में अपने भाई-बहनों का हौसला बढ़ा सकते हैं और उन्हें दिलासा दे सकते हैं। राजा सुलैमान ने लिखा, “सही वक्त पर कही गयी बात क्या खूब होती है!” उसने यह भी कहा कि एक अच्छी मुस्कान से “दिल झूम उठता है और अच्छी खबर हड्डियों में जान फूँक देती है।” (नीति. 15:23, 30) क्या आप किसी को जानते हैं जो निराश या दुखी है? आप उसे प्रहरीदुर्ग से या हमारी वेबसाइट से कोई लेख पढ़कर सुना सकते हैं। इसके अलावा, पौलुस ने कहा कि राज-गीत गाने से हमें हिम्मत मिल सकती है। उसने लिखा, “भजन गाकर, परमेश्वर का गुणगान करके और एहसान-भरे दिल से उपासना के गीत गाकर एक-दूसरे को सिखाते रहो और एक-दूसरे की हिम्मत बँधाते रहो और अपने दिलों में यहोवा के लिए गीत गाते रहो।”—कुलु. 3:16; प्रेषि. 16:25.
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
पवित्र शास्त्र से जवाब जानिए 39 पै 3, अँग्रेज़ी
क्या एक मसीही खुद का इलाज करवा सकता है?
2. क्या मुझे और दो-तीन डॉक्टरों को दिखाना चाहिए? इलाज के मामले में “बहुतों की सलाह” लेने से काफी मदद हो सकती है, खासकर अगर आपको सेहत से जुड़ी कोई बड़ी समस्या हो।—नीतिवचन 15:22.
2-8 जून
पाएँ बाइबल का खज़ाना नीतिवचन 16
सही फैसले लेने के लिए तीन सवाल
जवानी में बुद्धिमानी से फैसले लीजिए
11 यहोवा की सेवा करने से ही हमें सबसे ज़्यादा खुशी मिल सकती है। (नीति. 16:20) लेकिन ऐसा लगता है कि यिर्मयाह का सहायक, बारूक यह बात भूल गया था। उसकी ज़िंदगी में एक वक्त ऐसा आया, जब उसे यहोवा की सेवा से खुशी नहीं मिल रही थी। इस पर यहोवा ने उससे कहा: “क्या तू अपने लिये बड़ाई खोज रहा है? उसे मत खोज; क्योंकि . . . मैं सारे मनुष्यों पर विपत्ति डालूंगा; परन्तु जहां कहीं तू जाएगा वहां मैं तेरा प्राण बचाकर तुझे जीवित रखूंगा।” (यिर्म. 45:3, 5) आपको क्या लगता है, बारूक को किस बात से ज़्यादा खुशी मिलती, अपनी मरज़ी पूरी करके पछताकर या यहोवा की मरज़ी पूरी करके यरूशलेम के नाश से बचकर?—याकू. 1:12.
12 रामीरो नाम के एक भाई को दूसरों की सेवा करने से खुशी मिली। वह बताता है: “मैं एक गरीब परिवार से हूँ, जो एंडीज़ पर्वतमाला में बसे एक गाँव में रहता है। इसलिए जब मेरे बड़े भाई ने यूनिवर्सिटी की पढ़ाई के लिए मेरा खर्च उठाने की पेशकश रखी, तो यह मेरे लिए आगे बढ़ने का अच्छा मौका था। लेकिन हाल ही में मैं बपतिस्मा लेकर यहोवा का साक्षी बना था और इसके बाद मुझे एक और न्यौता मिला था। एक पायनियर ने मुझे न्यौता दिया था कि मैं एक छोटे कसबे में जाकर उसके साथ प्रचार करूँ। मैं वहाँ गया, वहाँ मैंने बाल काटना सीखा और अपना गुज़ारा चलाने के लिए नाई की दुकान खोल ली। जब हमने लोगों के आगे बाइबल सिखाने की पेशकश रखी, तो कई लोगों ने इसे कबूल किया। कुछ समय बाद, मैं हाल ही में शुरू हुई एक मंडली के साथ जुड़ गया, जिसमें वहाँ बोली जानेवाली एक भाषा में सभाएँ चलायी जाती थीं। आज मुझे पूरे समय की सेवा करते हुए दस साल हो गए हैं। यहाँ दूसरों को उनकी मातृभाषा में सच्चाई सिखाने से मुझे जो खुशी मिल रही है, वह और किसी भी पेशे से नहीं मिल सकती।”
क्या आपकी कायापलट हुई है?
हम सभी पर अपनी परवरिश और हमारे आस-पास के माहौल का ज़बरदस्त असर होता है। इसलिए हमें खास किस्म का खान-पान पसंद होता है, हम फलाँ तरीके से पेश आते हैं, या फलाँ तरह का पहनावा पसंद करते हैं।
2 लेकिन हमारे माहौल का कुछ दूसरी चीज़ों पर भी असर होता है, जो हमारे खाने-पहनने से कहीं ज़्यादा अहमियत रखती हैं। उदाहरण के लिए, हम जैसे-जैसे बड़े होते हैं, हमें सिखाया जाता है कि क्या सही है और क्या गलत। मगर सही और गलत के बारे में हरेक की अपनी राय होती है। दूसरों के अलावा, कभी-कभी हमारे अंदर की आवाज़, यानी हमारा ज़मीर भी हमसे कहता है कि क्या सही है और क्या गलत। बाइबल कहती है कि अकसर “राष्ट्रों के लोग, जिनके पास परमेश्वर का कानून नहीं है, वे . . . अपने आप इस कानून के मुताबिक चलते हैं।” (रोमि. 2:14) तो क्या इसका यह मतलब है कि अगर किसी मामले में परमेश्वर की तरफ से दिया कोई कानून नहीं है, तो हम आँख मूँदकर उन स्तरों के मुताबिक फैसले ले सकते हैं, जिन्हें हमारे परिवारवाले या इलाके के लोग मानते हैं?
3 मसीही ऐसा नहीं करते। क्यों? इसकी कम-से-कम दो खास वजहें हैं। पहली वजह, बाइबल हमें याद दिलाती है: “ऐसा भी मार्ग है, जो मनुष्य को सीधा देख पड़ता है, परन्तु उसके अन्त में मृत्यु ही मिलती है।” (नीति. 16:25) असिद्ध होने की वजह से हम इंसान अपने कदमों को सही राह नहीं दिखा पाते। (नीति. 28:26; यिर्म. 10:23) और दूसरी वजह, बाइबल कहती है कि दुनिया के तौर-तरीकों और स्तरों के पीछे किसी और का नहीं, “इस दुनिया की व्यवस्था के ईश्वर” शैतान का हाथ है। (2 कुरिं. 4:4; 1 यूह. 5:19) इसलिए अगर हम यहोवा से आशीषें और उसकी मंज़ूरी पाना चाहते हैं, तो ज़रूरी है कि हम रोमियों 12:2 में दी सलाह मानें।—पढ़िए।
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
इंसाइट-1 पेज 629
शिक्षा
शिक्षा मानने और ठुकराने के नतीजे: दुष्ट और मूर्ख लोग यहोवा से मिलनेवाली शिक्षा को ठुकरा देते हैं। (भज 50:16, 17; नीत 1:7) नतीजा, उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है, जैसे गरीबी, बदनामी, बीमारी, यहाँ तक कि वक्त से पहले मौत। इन मुश्किलों से उन्हें अच्छा सबक मिल सकता है। कई बार तो ये मुश्किलें उनके लिए कड़ी सज़ा साबित हो सकती हैं। ऐसा ही कुछ इसराएलियों के साथ हुआ। यहोवा ने भविष्यवक्ताओं के ज़रिए उन्हें शिक्षा दी, पर उन्होंने उसे ठुकरा दिया। इसलिए यहोवा ने उनकी हिफाज़त करना और उन्हें आशीष देना बंद कर दिया। आखिर में दूसरे राष्ट्रों ने उन्हें हरा दिया और जैसे भविष्यवाणी की गयी थी, उन्हें बंदी बनाकर दूसरे देश ले जाया गया।—यिर्म 2:30; 5:3; 7:28; 17:23; 32:33; हो 7:12-16; 10:10; सप 3:2.
9-15 जून
पाएँ बाइबल का खज़ाना नीतिवचन 17
पति-पत्नियो, घर में शांति बनाए रखने के लिए मेहनत कीजिए
सज 10/14 पेज 9 पै 2
नाराज़गी कैसे दूर करें
ईमानदारी से खुद की जाँच कीजिए। बाइबल इस बात को मानती है कि कुछ लोग ‘क्रोध करनेवाले’ और कुछ ‘अत्यन्त क्रोध करनेवाले’ होते हैं। (नीतिवचन 29:22) क्या आपका स्वभाव भी कुछ ऐसा है? अगर हाँ, तो खुद से पूछिए: ‘क्या मैं अकसर कड़वाहट पालता हूँ? मुझे कितनी जल्दी गुस्सा आता है? क्या मैं बात-बात पर राई का पहाड़ बना देता हूँ?’ बाइबल कहती है, “जो [व्यक्ति] बात की चर्चा बार बार करता है, वह परम मित्रों में भी फूट करा देता है।” (नीतिवचन 17:9; सभोपदेशक 7:9) यही सिद्धांत शादीशुदा ज़िंदगी में भी लागू होता है। इसलिए नाराज़गी पालना अगर आपकी आदत है, तो खुद से पूछिए, ‘क्या मैं अपने जीवन-साथी के साथ थोड़ा और सब्र से पेश आ सकता हूँ?’—बाइबल सिद्धांत: 1 पतरस 4:8.
प्र08 7/1 पेज 10 पै 6–पेज 11 पै 1
समस्याओं को सुलझाना
1. मसले पर बात करने के लिए एक समय तय कीजिए। “हर एक बात का . . . एक समय है। . . . चुप रहने का समय, और बोलने का भी समय है।” (सभोपदेशक 3:1, 7) जैसा कि हमने इस लेख की शुरूआत में देखा, कुछ समस्याएँ ऐसी होती हैं, जिनमें पति-पत्नी के लिए अपनी भावनाओं को काबू में रखना मुश्किल होता है। अगर आपके साथ भी ऐसा होता है, तो खुद पर संयम रखिए और इससे पहले कि आप या आपका साथी भड़क उठे, कुछ वक्त के लिए ‘चुप रहिए।’ यानी उस समस्या के बारे में बात मत कीजिए। बाइबल सलाह देती है: “झगड़े का आरम्भ बान्ध के छेद के समान है, झगड़ा बढ़ने से पहिले उसको छोड़ देना उचित है।” इस सलाह को मानने से आप अपने रिश्ते को बिगड़ने से बचा सकते हैं।—नीतिवचन 17:14.
लेकिन “बोलने का भी समय” होता है। समस्याएँ जंगली घास की तरह होती हैं, जिन्हें अगर यूँ ही छोड़ दिया जाए तो वे बहुत जल्द बढ़ जाती हैं। इसलिए यह सोचकर किसी समस्या को अनदेखा मत कीजिए कि वह अपने-आप ही सुलझ जाएगी। अगर किसी मसले पर हो रही चर्चा को आप बीच में ही रोक देते हैं, तो तय कीजिए कि आप फिर कब उस समस्या पर चर्चा करेंगे। ऐसा करके आप अपने साथी के लिए आदर दिखा रहे होंगे। इतना ही नहीं, इससे आप दोनों बाइबल की इस सलाह को मान पाएँगे: “सूर्य अस्त होने तक तुम्हारा क्रोध न रहे।” (इफिसियों 4:26) लेकिन ध्यान रहे कि आप इस समस्या पर बाद में ज़रूर बात करें।
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
इंसाइट-1 पेज 790 पै 2
आँख
एक इंसान अपनी आँखों से जो इशारा करता है उससे पता चलता है कि उसके मन में क्या चल रहा है। (व्य 19:13, फु.; भज 35:19; नीत 6:13; 16:30) बाइबल में लिखा है कि मूर्खों की आँखें बिना किसी वजह के यहाँ-वहाँ फिरती रहती हैं। उनकी नज़रें एक चीज़ पर नहीं टिकी रहतीं। यह दिखाता है कि उन्हें जिस बारे में सोचना चाहिए वे वह नहीं सोचते बल्कि यहाँ-वहाँ की बेकार की बातों के बारे में सोचते रहते हैं। (नीत 17:24)
16-22 जून
पाएँ बाइबल का खज़ाना नीतिवचन 18
जिन्हें सेहत से जुड़ी समस्याएँ हैं, उन्हें हौसला दीजिए
सच्ची बुद्धि पुकार रही है!
17 सोच-समझकर बात कीजिए। अगर हम बिना सोचे-समझे बोलें, तो इससे बहुत नुकसान हो सकता है। बाइबल में लिखा है, “बिना सोचे-समझे बोलना, तलवार से वार करना है, लेकिन बुद्धिमान की बातें मरहम का काम करती हैं।” (नीति. 12:18) अगर हम दूसरों की बुराई करते फिरें, तो इससे लोगों के आपसी रिश्ते खराब हो सकते हैं। (नीति. 20:19) ऐसी बातें करने के बजाय हमें कोशिश करनी चाहिए कि हमारी बातें मरहम का काम करें, उनसे लोगों का हौसला बढ़े। हम ऐसा तभी कर पाएँगे जब हम रोज़ बाइबल पढ़ेंगे और अपने दिल में अच्छी बातें भरेंगे। (लूका 6:45) और जब हम बाइबल में लिखी बातों के बारे में मनन करेंगे, तो हम हमेशा बुद्धि-भरी बातें करेंगे और इससे लोगों को नदी के पानी की तरह ताज़गी मिलेगी।—नीति. 18:4.
कुछ और विषय 19 बक्स, अँग्रेज़ी
अचानक बीमार पड़ने पर क्या करें?
ध्यान से सुनिए: अपने किसी दोस्त की मदद करने का एक अच्छा तरीका है, जब उसका बात करने का मन करे तो ध्यान से उसकी सुनना। ज़रूरी नहीं कि आप उसकी कही हर बात का जवाब दें। अकसर उसकी सुनना ही काफी होता है। खुले विचार से उसकी सुनिए और उसके बारे में कोई गलत राय कायम मत कीजिए। यह मत मान बैठिए कि आपको पता है कि आपके दोस्त पर क्या बीत रही है, खासकर अगर उसकी बीमारी के लक्षण साफ नज़र नहीं आते।—नीतिवचन 11:2.
अच्छी बात कहिए: शायद आपको समझ ना आए कि आप क्या बोलें, फिर भी अगर आप चंद शब्द कहकर अपने दोस्त के हालात समझने की कोशिश करें तो इससे उसे काफी दिलासा मिल सकता है। या फिर आप दिल से कुछ ऐसा कह सकते हैं, “मैं बस इतना कहना चाहता हूँ कि मुझे आपकी परवाह है।” ऐसा कुछ मत कहिए जैसे, “इससे भी खराब हो सकता था” या “शुक्र है, कम-से-कम आपको . . . तो नहीं है।”
अपने दोस्त की बीमारी के बारे में जानने की कोशिश कीजिए। उसे यह जानकर बहुत अच्छा लगेगा। और इससे आपको सही बात कहना भी आएगा। (नीतिवचन 18:13) सिर्फ इस बात का ध्यान रखिएगा कि आप उसे सलाह तभी दें जब वह माँगे।
मदद कीजिए: यह मत सोचिए कि आपको पता है कि अपने दोस्त की कैसे मदद करनी है। इसके बजाय उससे पूछिए कि आप उसके लिए क्या कर सकते हैं। याद रखिए कि शायद वह मदद लेने से मना कर दे क्योंकि वह किसी पर बोझ नहीं बनना चाहता। ऐसे में आप सीधे-सीधे उससे पूछ सकते हैं कि क्या वह चाहता है कि आप उसके लिए खरीददारी करें, साफ-सफाई में उसकी मदद करें या कुछ और काम करें।—गलातियों 6:2.
हार मत मानिए: कभी-कभी हो सकता है कि आपके दोस्त ने आपके साथ मिलकर कुछ करने की सोची हो, पर फिर वह मना कर देता है। या फिर शायद उसका आपसे बात करने का मन ना करे। याद रखिए कि वह बीमारी से जूझ रहा है और इस तरह पेश आना आम है। इसलिए सब्र रखिए और उसकी मदद करते रहिए।—नीतिवचन 18:24.
जन23 अंक1 पेज 14 पै 3–पेज 15 पै 1
मदद का हाथ बढ़ाइए
“अपनी बातों से तसल्ली दो।”—1 थिस्सलुनीकियों 5:14.
आपका दोस्त शायद बहुत चिंता में हो या खुद को बेकार समझे। ऐसे में आप उसे यकीन दिला सकते हैं कि आपको उसकी परवाह है। आपको शायद समझ न आए कि आप उसे ठीक-ठीक क्या बोलें, फिर भी आप उसे दिलासा देने और उसका हौसला बढ़ाने की कोशिश कर सकते हैं।
“सच्चा दोस्त हर समय प्यार करता है।”—नीतिवचन 17:17.
अलग-अलग तरीकों से मदद कीजिए। खुद-ब-खुद सोचने के बजाय कि आप उसकी कैसे मदद करेंगे, उससे पूछिए कि उसे क्या मदद चाहिए। लेकिन अगर वह आपको बताने से हिचकिचाए, तो फिर आप साथ मिलकर कुछ करने के लिए कह सकते हैं, जैसे आप सैर पर जा सकते हैं। या फिर आप उससे पूछ सकते हैं कि क्या उसे खरीदारी करने, घर की साफ-सफाई करने या दूसरे किसी काम में मदद चाहिए।—गलातियों 6:2.
“सब्र से पेश आओ।”—1 थिस्सलुनीकियों 5:14.
कई बार शायद आपके दोस्त का बात करने का मन न हो। तब आप उससे कह सकते हैं कि जब भी उसका बात करने का मन करे, वह आपको बुला सकता है और आप उसकी सुनेंगे। यह भी हो सकता है कि मानसिक बीमारी की वजह से आपका दोस्त कुछ ऐसा कह दे या कर दे जिससे आपको ठेस पहुँचे। जैसे, आप दोनों को कहीं जाना था या कुछ करना था मगर ऐन मौके पर वह आपको मना कर देता है। या फिर अचानक वह बात-बात पर चिढ़ने लगता है। ऐसे में सब्र रखिए और उसे समझने की कोशिश कीजिए।—नीतिवचन 18:24.
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
इंसाइट-2 पेज 271-272
चिट्ठियाँ डालना
पुराने ज़माने में कोई भी फैसला लेने के लिए लोग चिट्ठियाँ डालते थे। ये चिट्ठियाँ छोटे-छोटे पत्थर या लकड़ी के टुकड़े होती थीं। इन्हें कपड़े की तह या एक बरतन में डालकर हिलाया जाता था। जिसके नाम का पत्थर या लकड़ी का टुकड़ा बाहर गिरता या निकाला जाता था उसी को चुना जाता था। कई बार चिट्ठियाँ डालने का मतलब था, यहोवा से प्रार्थना करना और उसकी मरज़ी जानना। (यह 15:1; भज 16:5; 125:3; यश 57:6; यिर्म 13:25) प्राचीन इसराएल में ज़्यादातर झगड़े सुलझाने के लिए चिट्ठियाँ डाली जाती थीं।—नीत 18:18; 16:33.
23-29 जून
पाएँ बाइबल का खज़ाना नीतिवचन 19
भाई-बहनों के सच्चे दोस्त बनिए
एक-दूसरे के लिए प्यार कैसे बढ़ाएँ?
16 भाई-बहनों की खूबियों पर ध्यान दीजिए, ना कि उनकी खामियों पर। ज़रा इस बारे में सोचिए। कुछ भाई-बहन एक साथ इकट्ठा हैं और आप भी उनके साथ हैं। सब एक-दूसरे के साथ मज़े कर रहे हैं। सबके जाने से पहले आप सबके साथ एक फोटो लेते हैं। आप एक नहीं, दो-तीन फोटो लेते हैं ताकि अगर कोई फोटो खराब आए, तो आपके पास कोई-न-कोई अच्छी फोटो हो। बाद में जब आप फोटो देखते हैं, तो आप ध्यान देते हैं कि एक फोटो में एक भाई की शक्ल अजीब-सी आयी है। तब आप क्या करते हैं? वह फोटो डिलीट कर देते हैं, क्योंकि आपके पास दो और फोटो हैं जिनमें वह भाई और सभी अच्छे-से मुस्कुरा रहे हैं।
17 हम जो फोटो सँभालकर रखते हैं, वे उन यादों की तरह हैं जिन्हें हम सँजोकर रखते हैं। हम भाई-बहनों के साथ जो पल बिताते हैं, उनकी हमारे पास बहुत-सी मीठी यादें होती हैं। लेकिन सोचिए, ऐसे ही एक मौके पर कोई भाई या बहन कुछ ऐसा कर देता है जिससे आपको बुरा लग जाता है। ऐसे में आप क्या करेंगे? कितना अच्छा होगा कि आप उस कड़वी याद को भुला दें जैसे हम खराब फोटो डिलीट कर देते हैं। (नीति. 19:11; इफि. 4:32) हम उस भाई की छोटी-मोटी गलतियाँ भुला सकते हैं या उस कड़वी याद को डिलीट कर सकते हैं, क्योंकि उस भाई के साथ बिताए पलों की हमारे पास बहुत-सी मीठी यादें हैं। और हम सब ऐसी ही मीठी यादें तो सँजोकर रखना चाहते हैं!
अपना प्यार बढ़ाते जाइए
10 हम भी अपने भाई-बहनों की मदद करने के लिए मौकों की तलाश में रहते हैं। (इब्रा. 13:16) ज़रा बहन ऐना के अनुभव पर गौर कीजिए, जिनका पिछले लेख में ज़िक्र किया गया था। उनके इलाके में एक भयंकर तूफान आया था। तूफान के बाद वे और उनके पति एक मसीही परिवार से मिलने गए। वहाँ जाने पर पता चला कि उनके घर की छत गिर गयी है। इस वजह से उस परिवार के पास एक भी साफ कपड़ा नहीं रह गया था। बहन ऐना कहती हैं, “हम उनके कपड़े लेकर गए, उन्हें धोया, इस्त्री की और फिर अच्छे-से रखकर उनके यहाँ पहुँचा दिए। हमारे लिए तो यह छोटा-सा काम था, पर इस वजह से हमारी उनके साथ बहुत गहरी दोस्ती हो गयी और हम आज तक अच्छे दोस्त हैं।” बहन ऐना और उनके पति भाई-बहनों से बहुत प्यार करते थे, इसी वजह से उन्होंने उनकी मदद की।—1 यूह. 3:17, 18.
11 जब हम दूसरों के साथ प्यार से पेश आते हैं और उनकी मदद करते हैं, तो अकसर वे ध्यान देते हैं कि हम किस तरह यहोवा की सोच अपना रहे हैं और उसकी तरह बनने की कोशिश कर रहे हैं। हमें शायद एहसास भी ना हो कि हम उनके लिए जो करते हैं, उसकी वे कितनी कदर करते हैं। ज़रा फिर से बहन कायला के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। उन्हें वह वक्त आज भी याद है जब सालों पहले कुछ बहनों ने उनकी मदद की थी। वे कहती हैं, “मैं उन सब बहनों का बहुत एहसान मानती हूँ जो मुझे प्रचार के लिए ले जाती थीं। वे मुझे घर लेने आती थीं, मुझे खाने या नाश्ते के लिए ले जाती थीं और वापस घर भी छोड़ देती थीं। आज जब मैं उस बारे में सोचती हूँ, तो मुझे एहसास होता है कि उन्होंने मेरे लिए कितना कुछ किया और वह भी बस प्यार की खातिर।” हो सकता है, हम जिनकी मदद करते हैं, उनमें से हर कोई बदले में हमारे लिए कुछ कर ना पाए। जिन्होंने बहन कायला की मदद की, उनके बारे में वे कहती हैं, “उन्होंने मेरे लिए इतना कुछ किया, काश! मैं भी बदले में उनके लिए कुछ कर पाती। पर मैं नहीं जानती कि अब वे सब कहाँ रहते हैं। लेकिन यहोवा जानता है और मैं दुआ करती हूँ कि वह उनके लिए मेरी तरफ से कुछ-न-कुछ करे।” बहन कायला ने एकदम सही कहा। अगर हम किसी की थोड़ी-सी भी मदद करें, तो यहोवा उस पर ध्यान देता है। वह उसे एक अनमोल बलिदान की तरह समझता है। यहोवा ऐसा सोचता है मानो हमने उस पर उपकार किया है और वह उसके लिए हमें ज़रूर इनाम देगा।—नीतिवचन 19:17 पढ़िए।
एक-दूसरे से अटल प्यार करते रहिए
6 अगर कोई व्यक्ति सालों से एक ही कंपनी में काम करता है, तो उसे एक वफादार कर्मचारी कहा जा सकता है। लेकिन इतने सालों में वह शायद एक बार भी अपने मालिकों से न मिला हो। कई बार शायद वह उनके फैसलों से सहमत भी न हो। तो फिर, वह वहाँ क्यों काम करता रहता है? इसलिए नहीं कि उसे कंपनी से प्यार है, बल्कि इसलिए कि इससे उसका गुज़ारा चल रहा है। अगर उसे दूसरी जगह अच्छी नौकरी मिल जाए, तो वह शायद यह कंपनी छोड़ दे।
7 इससे साफ पता चलता है कि कई बार एक इंसान मजबूर होकर वफादार रहता है। लेकिन जहाँ तक अटल प्यार की बात है, तो यह दिल से आता है। बाइबल में लिखा है कि परमेश्वर के लोग एक-दूसरे से अटल प्यार मजबूरी में नहीं, बल्कि दिल से करते थे। दाविद का उदाहरण लीजिए। वह अपने जिगरी दोस्त योनातान से अटल प्यार करता था, जबकि योनातान का पिता उसकी जान के पीछे पड़ा था। उसका यह प्यार किसी मजबूरी की वजह से नहीं, बल्कि उसके दिल ने उसे ऐसा करने के लिए उभारा था। योनातान की मौत के सालों बाद भी दाविद उसके बेटे मपीबोशेत से अटल प्यार करता रहा।—1 शमू. 20:9, 14, 15; 2 शमू. 4:4; 8:15; 9:1, 6, 7.
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
इंसाइट-1 पेज 515
सलाह, सलाहकार
यहोवा जैसा बुद्धिमान और कोई नहीं है। इसलिए किसी मामले में उसकी सोच क्या है, यह ध्यान में रखकर हमें दूसरों को सलाह देनी चाहिए। (यश 40:13; रोम 11:34) उसका बेटा यीशु “बेजोड़ सलाहकार” है, क्योंकि वह अपने पिता की सलाह मानता है और उस पर परमेश्वर की पवित्र शक्ति है। (यश 9:6; 11:2; यूह 5:19, 30) अगर हम हमेशा यहोवा से मार्गदर्शन माँगकर सलाह दें, तो हमारी सलाह से दूसरों को फायदा होगा। लेकिन अगर कोई इंसान अपनी बुद्धि लगाता है और यहोवा की सोच से हटकर कोई सलाह देता है, तो उसकी सलाह बेकार होगी।—नीत 19:21; 21:30.
30 जून–6 जुलाई
पाएँ बाइबल का खज़ाना नीतिवचन 20
डेटिंग कैसे करें ताकि सही फैसला ले पाएँ?
डेटिंग करते वक्त एक अच्छा फैसला कैसे लें?
3 डेटिंग का सफर मज़ेदार तो होता है, लेकिन डेटिंग करना कोई हलकी बात नहीं है। वह क्यों? क्योंकि डेटिंग करके एक लड़का और लड़की तय करते हैं कि वे शादी करेंगे या नहीं। और अगर वे शादी करने का फैसला करते हैं, तो वे यहोवा के सामने जीवन-भर साथ निभाने की शपथ लेंगे और वादा करेंगे कि वे हमेशा एक-दूसरे से प्यार करेंगे और एक-दूसरे का आदर करेंगे। यहोवा के सामने यह शपथ लेना एक गंभीर बात है। बाइबल में बताया गया है कि कोई शपथ लेने से पहले हमें उस बारे में गहराई से सोचना चाहिए। (नीतिवचन 20:25 पढ़िए।) जब एक लड़का-लड़की डेटिंग करते हैं, तो उन्हें एक-दूसरे को अच्छी तरह जानने का मौका मिलता है और फिर वे सोच-समझकर अच्छा फैसला कर पाते हैं। कुछ लड़के-लड़कियाँ शायद शादी करने का फैसला करें और कुछ शायद डेटिंग करना बंद कर दें। अगर वे तय करते हैं कि वे एक-दूसरे के साथ डेटिंग करना बंद कर देंगे, तो यह कोई बुरी बात नहीं है। हमें यह समझने की ज़रूरत है कि डेटिंग का मकसद पूरा हो गया है। उन्होंने एक-दूसरे को अच्छे-से जान लिया है और वे समझ गए हैं कि वे एक-दूसरे के लिए अच्छे जीवन-साथी होंगे या नहीं।
4 हमें डेटिंग के बारे में सही सोच रखनी चाहिए। वह क्यों? क्योंकि जब एक लड़का-लड़की डेटिंग के बारे में सही सोच रखेंगे, तो वे किसी ऐसे व्यक्ति के साथ डेटिंग नहीं करेंगे जिससे शादी करने का उनका कोई इरादा ही नहीं है। इस बारे में सिर्फ अविवाहित लोगों को ही नहीं, बल्कि हम सबको सही सोच रखनी चाहिए। जैसे कुछ लोग सोचते हैं कि अगर एक लड़का-लड़की डेटिंग कर रहे हैं, तो उन्हें शादी करनी ही होगी और वे अब पीछे नहीं हट सकते। ऐसी सोच का अविवाहित लोगों पर क्या असर हो सकता है? अमरीका में रहनेवाली एक अविवाहित बहन, मलिसा कहती है, “कुछ भाई-बहन सोचते हैं कि डेटिंग करनेवालों को शादी करनी ही चाहिए। इस वजह से कई बार ऐसा होता है कि एक लड़का-लड़की डेटिंग बंद करना चाहते हैं, लेकिन लोगों के डर की वजह से वे ऐसा नहीं करते। और कुछ भाई-बहन तो किसी के साथ डेटिंग ही नहीं करना चाहते। मैं बता नहीं सकती कि यह सब सोचकर लड़के-लड़कियों को कितनी टेंशन होती है।”
एक अच्छा जीवन-साथी कैसे ढूँढ़ें?
8 अगर आपको कोई पसंद आता है, तो आप कैसे उसके बारे में और जान सकते हैं? सभाओं में या दूसरे मौकों पर जब भाई-बहन इकट्ठा होते हैं, तो ध्यान दीजिए कि वह दूसरों के साथ कैसे पेश आता है और उसका स्वभाव कैसा है। क्या उसकी बातों और कामों से पता चलता है कि परमेश्वर के साथ उसका एक अच्छा रिश्ता है? उसके दोस्त कैसे हैं और वह किन बातों के बारे में बात करता है? (लूका 6:45) उसके लक्ष्य क्या हैं? क्या वे आपके लक्ष्यों से मिलते हैं? आप चाहें तो उसकी मंडली के प्राचीनों से या ऐसे अनुभवी भाई-बहनों से बात कर सकते हैं, जो उसे अच्छी तरह जानते हों। (नीति. 20:18) आप उनसे पूछ सकते हैं कि मंडली में उसका कैसा नाम है और उसमें कौन-से अच्छे गुण हैं। (रूत 2:11) लेकिन ध्यान रखिए कि आप उसके बारे में हर छोटी-छोटी बात जानने की कोशिश ना करें, ना ही चौबीसों घंटे उसके आस-पास घूमते रहें। कहने का मतलब, ऐसा कुछ मत कीजिए जिससे उसे बुरा लगे।
डेटिंग करते वक्त एक अच्छा फैसला कैसे लें?
7 आप कैसे जान सकते हैं कि जिसके साथ आप डेटिंग कर रहे हैं, वह अंदर से कैसा है? एक-दूसरे से खुलकर बात कीजिए और कुछ मत छिपाइए। एक-दूसरे से सवाल कीजिए और फिर ध्यान से सुनिए। (नीति. 20:5; याकू. 1:19) इसके लिए आप चाहें तो साथ मिलकर कुछ ऐसे काम कर सकते हैं जिनमें आपको एक-दूसरे से बात करने का मौका मिले। जैसे, साथ में खाना खाइए, सैर पर जाइए और साथ मिलकर प्रचार कीजिए। एक-दूसरे को और अच्छी तरह जानने के लिए आप अपने दोस्तों और परिवारवालों के साथ मिलकर समय बिता सकते हैं। इसके अलावा, साथ मिलकर कुछ ऐसे काम भी कीजिए जिससे आप देख पाएँ कि वह व्यक्ति अलग-अलग हालात में और अलग-अलग लोगों के साथ कैसे पेश आता है। नीदरलैंड्स के रहनेवाले ऐश्विन के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। वह बताता है कि जब वह एलीशा के साथ डेटिंग कर रहा था, तो उन्होंने क्या किया: “हम साथ मिलकर ऐसे छोटे-छोटे काम करने की कोशिश करते थे जिनसे हम एक-दूसरे को जान सकें। जैसे हम अकसर साथ मिलकर खाना बनाते थे या घर का कोई काम करते थे। इस तरह हम एक-दूसरे की खूबियाँ और खामियाँ जान पाए।”
8 एक-दूसरे को और अच्छी तरह जानने के लिए आप साथ मिलकर बाइबल के किसी विषय पर अध्ययन भी कर सकते हैं। वैसे भी अगर आप आगे चलकर शादी करते हैं, तो आप पारिवारिक उपासना करेंगे ही ताकि परमेश्वर आपके बंधन में तीसरी डोरी हो। (सभो. 4:12) तो क्यों ना अभी से साथ मिलकर अध्ययन करने के लिए समय निकालें? माना कि अभी आप दोनों पति-पत्नी नहीं बने हैं और वह भाई मुखिया नहीं बना है, फिर भी साथ मिलकर अध्ययन करने से आप जान पाएँगे कि आप दोनों का यहोवा के साथ कैसा रिश्ता है। अमरीका के रहनेवाले माक्स और लीसा ने बताया कि ऐसा करने से उन्हें एक और फायदा हुआ। माक्स कहता है, “जब हमने डेटिंग करनी शुरू ही की थी, तो हमने ऐसे प्रकाशनों का अध्ययन किया जिनमें डेटिंग, शादी और पारिवारिक जीवन जैसे विषयों के बारे में बताया गया था। ऐसा करने से हम कई ज़रूरी मामलों के बारे में खुलकर बात कर पाए, जिन पर बात करना शायद हमारे लिए मुश्किल होता।”
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
इंसाइट-2 पेज 196 पै 7
दीपक, दीया
नीतिवचन 20:27 में लिखा है, “इंसान की साँस यहोवा के लिए दीपक है, जो अंदर के इंसान पर रौशनी डालता है।” “इंसान की साँस” का मतलब है, उसकी कही हुई हर अच्छी-बुरी बात जो अंदर के इंसान पर रौशनी डालती है। यानी उसकी कही हुई बातों से पता चलता है कि वह सचमुच में अंदर से कैसा है।—प्रेष 9:1 से तुलना करें।