मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले
© 2024 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
3-9 मार्च
पाएँ बाइबल का खज़ाना नीतिवचन 3
दिखाइए कि आप यहोवा पर भरोसा करते हैं
बाइबल के वचनों की समझ 14 पै 4-5, अँग्रेज़ी
नीतिवचन 3:5, 6—“तू अपनी समझ का सहारा न लेना”
“पूरे दिल से यहोवा पर भरोसा रखना।” हम यह कैसे कर सकते हैं? बाइबल में आम तौर पर “दिल” का मतलब है, अंदर का इंसान जिसमें एक व्यक्ति की भावनाएँ, इरादे, सोच और रवैया शामिल है। इसलिए जब हम पूरा यकीन रखेंगे कि सृष्टिकर्ता ही सबसे अच्छी तरह जानता है कि हमारी भलाई किस में है और हम हर काम उसकी मरज़ी के मुताबिक करेंगे, तो हम दिखाएँगे कि हम उस पर पूरे दिल से भरोसा करते हैं।—रोमियों 12:1.
“तू अपनी समझ का सहारा न लेना।” हम सब अपरिपूर्ण हैं। इसलिए अगर हम सिर्फ अपनी बुद्धि लगाकर कोई फैसला लेंगे, तो शायद शुरू-शुरू में हमें वह ठीक लगे, लेकिन बाद में हमें पछताना पड़ेगा। (नीतिवचन 14:12; यिर्मयाह 17:9) लेकिन परमेश्वर की बुद्धि हमारी बुद्धि से कहीं बढ़कर है। (यशायाह 55:8, 9) इसलिए अगर हम परमेश्वर की सलाह मानकर कोई फैसला लेंगे, तो इससे हमें अच्छे नतीजे मिलेंगे।—भजन 1:1-3; नीतिवचन 2:6-9; 16:20.
बाइबल के वचनों की समझ 14 पै 6-7, अँग्रेज़ी
नीतिवचन 3:5, 6—“तू अपनी समझ का सहारा न लेना”
“उसी को ध्यान में रखकर सब काम करना।” परमेश्वर पर भरोसा करने का एक और तरीका है, ज़िंदगी के हर ज़रूरी मामले में परमेश्वर का नज़रिया जानने की कोशिश करना, खासकर तब जब हमें कोई बड़ा फैसला लेना होता है। यह हम कैसे कर सकते हैं? परमेश्वर से प्रार्थना में बुद्धि माँगकर और बाइबल में दी उसकी सलाह मानकर।—भजन 25:4; 2 तीमुथियुस 3:16, 17.
“तब वह तुझे सही राह दिखाएगा।” यहोवा हमारी मदद करता है कि हम उसके नेक स्तरों के मुताबिक जीएँ। (नीतिवचन 11:5) इस तरह वह हमें सही राह दिखाता है। उसकी राह पर चलकर हम कई मुश्किलों से बच पाते हैं और ज़्यादा खुश रहते हैं।—भजन 19:7, 8; यशायाह 48:17, 18.
आगे बढ़ते जाइए—तरक्की करते रहिए
जिस इंसान ने अपनी ज़िंदगी में बहुत-से उतार-चढ़ाव देखें हों, वह यह सोच सकता है: ‘पहले भी कई बार मैं ऐसे हालात से गुज़र चुका हूँ, इसलिए मुझे मालूम है कि मुझे क्या करना चाहिए।’ लेकिन क्या इस तरह सोचना अक्लमंदी है? नीतिवचन 3:7 हमें सावधान करता है: ‘अपनी दृष्टि में बुद्धिमान न हो।’ यह सही है कि ज़िंदगी में तजुर्बा हासिल करने से हम हालात को और भी अच्छी तरह समझने के काबिल बनते हैं। लेकिन अगर हम आध्यात्मिक तौर पर तरक्की कर रहे हैं, तो अपने तजुर्बे से हमारे दिलो-दिमाग में यह बात अच्छी तरह बैठ जानी चाहिए कि कामयाब होने के लिए हमें यहोवा की आशीषों की ज़रूरत है। तो फिर हमारी तरक्की इस बात से ज़ाहिर नहीं होगी कि क्या हम अपने बलबूते पर, पूरे आत्मा-विश्वास के साथ हालात का सामना कर सकते हैं बल्कि इससे कि ज़िंदगी में कैसे भी हालात आने पर क्या हम फौरन यहोवा से मार्गदर्शन माँगते हैं। हमारी तरक्की यह विश्वास रखने पर ज़ाहिर होगी कि परमेश्वर की इजाज़त के बगैर कुछ नहीं हो सकता। और इस बात से भी कि हमारा स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता यहोवा के साथ हर हाल में प्यार भरा और भरोसे का रिश्ता बना हुआ है।
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
नीतिवचन किताब की झलकियाँ
3:3. हमें कृपा और सच्चाई को एक बेशकीमती हार की तरह अनमोल समझना चाहिए। और जिस तरह हम अपना हार सभी को दिखाना पसंद करते हैं, उसी तरह हमें इन गुणों को सब पर ज़ाहिर करना चाहिए। साथ ही, इन गुणों को हमें अपने हृदय पर लिख लेना चाहिए, यानी इन्हें अपने स्वभाव का एक अहम हिस्सा बना लेना चाहिए।
10-16 मार्च
पाएँ बाइबल का खज़ाना नीतिवचन 4
“अपने दिल की हिफाज़त कर”
अपने दिल की हिफाज़त कैसे करें?
4 नीतिवचन 4:23 में इस्तेमाल हुए शब्द “दिल” का मतलब है, एक व्यक्ति की सोच, भावनाएँ, इच्छाएँ और उसके इरादे। दूसरे शब्दों में कहें तो “दिल” हमारे अंदर के इंसान को दर्शाता है, न कि इस बात को कि हम बाहर से कैसे दिखते हैं।
अपने दिल की हिफाज़त कैसे करें?
10 अपने दिल की हिफाज़त करने के लिए हमें सबसे पहले खतरों को पहचानना होगा और फिर तुरंत कदम उठाना होगा। नीतिवचन 4:23 में जिस शब्द का अनुवाद “हिफाज़त” किया गया है, उससे हमें एक पहरेदार की याद आती है। राजा सुलैमान के दिनों में पहरेदार शहरपनाह के ऊपर तैनात होते थे और अगर उन्हें कोई खतरा नज़र आता, तो वे तुरंत आवाज़ लगाकर दूसरों को खबरदार करते थे। इस तसवीर को मन में रखकर हम अच्छी तरह समझ पाते हैं कि हमें क्या करना चाहिए, ताकि शैतान हमारी सोच को भ्रष्ट न कर दे।
11 पुराने ज़माने में पहरेदार और फाटक पर तैनात दरबान साथ-साथ काम करते थे। (2 शमू. 18:24-26) जब भी कोई दुश्मन शहर के पास आता, तो पहरेदार की आवाज़ सुनकर दरबान शहर के फाटक बंद कर देते थे। इस तरह वे मिलकर शहर की हिफाज़त करते थे। (नहे. 7:1-3) बाइबल से प्रशिक्षण पाया हमारा ज़मीर एक पहरेदार की तरह काम करता है। जब भी शैतान हमारे दिल में घुसपैठ करने यानी हमारी सोच, भावनाओं, इच्छाओं और हमारे इरादों को भ्रष्ट करने की कोशिश करता है, तो हमारा ज़मीर हमें खबरदार करता है। जब ऐसा होता है, तो हमें ज़मीर की आवाज़ सुननी चाहिए और अपने दिल के दरवाज़े बंद कर देने चाहिए।
अपने दिल की हिफाज़त कैसे करें?
14 दिल की हिफाज़त करने के लिए हमें बुरी बातों के लिए न सिर्फ अपने दिल के दरवाज़े बंद करने चाहिए, बल्कि अच्छी बातों के लिए इन्हें खोलना भी चाहिए। एक बार फिर उस शहर के बारे में सोचिए, जिसके चारों तरफ शहरपनाह है। जब दुश्मन धावा बोलते थे, तो उन्हें रोकने के लिए दरबान शहर के फाटक बंद कर देते थे। मगर दूसरे मौकों पर वे फाटक खोल देते थे, ताकि राशन-पानी और दूसरी ज़रूरी चीज़ें शहर के अंदर लायी जा सकें। अगर शहर के फाटक हमेशा बंद रहते, तो वहाँ के निवासी भूखों मर जाते। उसी तरह यहोवा की सोच को अपने दिल में जगह देने के लिए हमें समय-समय पर अपने दिल के दरवाज़े खोलने चाहिए।
प्र12 5/1 पेज 32 पै 2, अँग्रेज़ी
‘अपने दिल की हिफाज़त कर!’
हमें अपने दिल की हिफाज़त क्यों करनी चाहिए? यहोवा ने राजा सुलैमान के ज़रिए लिखवाया, “सब चीज़ों से बढ़कर अपने दिल की हिफाज़त कर, क्योंकि जीवन के सोते इसी से निकलते हैं।” (नीतिवचन 4:23) हमारी आज की और आगे की ज़िंदगी कैसी होगी, यह इस बात पर निर्भर करता है कि हमारा दिल कैसा है। याद रखिए, यहोवा हमारा बाहरी रूप नहीं बल्कि हमारा दिल देखता है। (1 शमूएल 16:7) वह हमारे “अंदर के इंसान” को देखकर तय करता है कि हम सच में कैसे हैं।—1 पतरस 3:4.
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
क्या आप यहोवा के वक्त का इंतज़ार करेंगे?
4 नीतिवचन 4:18 में लिखा है, “नेक जनों की राह सुबह की रौशनी जैसी है, जिसका तेज, दिन चढ़ने के साथ-साथ बढ़ता जाता है।” इस आयत से पता चलता है कि यहोवा अपने लोगों को अपनी मरज़ी के बारे में धीरे-धीरे बताता है। इस आयत में दिए सिद्धांत से हम यह भी समझ सकते हैं कि मसीही खुद में धीरे-धीरे बदलाव करते हैं और यहोवा के करीब आते हैं। जब एक व्यक्ति बाइबल का अध्ययन करता है और उसके मुताबिक चलता है और संगठन की हिदायतें मानता है, तो वह खुद में मसीह जैसे गुण बढ़ा पाता है। और यहोवा को अच्छी तरह जान पाता है। आइए देखें कि इस बात को समझाने के लिए यीशु ने कौन-सी मिसाल दी।
17-23 मार्च
पाएँ बाइबल का खज़ाना नीतिवचन 5
नाजायज़ यौन-संबंधों से कोसों दूर रहिए
अनैतिक संसार में भी बेदाग रहना मुमकिन है
इस नीतिवचन में बदचलन व्यक्ति की तुलना “पराई स्त्री” या वेश्या से की गयी है। उसकी बातें मधु जैसी मीठी और तेल से भी ज़्यादा चिकनी होती हैं, इसलिए वह पुरुषों को बड़ी आसानी से अपने जाल में फँसा लेती है। क्या यह सच नहीं कि अनैतिक काम करनेवाले शुरू-शुरू में मीठी-मीठी बातों से ही दूसरों को फुसलाते हैं? 27 साल की एक खूबसूरत लड़की एमी की बात लीजिए जो एक सॆक्रेट्री का काम करती है। वह कहती है: “मेरे साथ एक आदमी काम करता है, जो हमेशा मेरी मदद करना चाहता है और जब देखो तब मेरी तारीफ करता रहता है। यह सच है कि तारीफ हमें अच्छी लगती है। लेकिन मैंने देखा कि उसके इरादे ठीक नहीं हैं। दरअसल वह मुझे अनैतिक काम करने के लिए फुसलाना चाहता है। लेकिन मैं उसके बहकावे में नहीं आनेवाली।” हमें ऐसे गलत इरादे रखनेवालों को पहचानना ज़रूरी है ताकि हम उनके चँगुल में न फँसें। और यह तभी मुमकिन होगा जब हमारी सोच सही होगी।
अनैतिक संसार में भी बेदाग रहना मुमकिन है
अनैतिक काम करनेवाले स्त्री-पुरुषों का अंजाम सचमुच ज़हर सा कड़ुवा और दोधारी तलवार सा पैना यानी बहुत ही दर्दनाक और घातक होता है। उनका ज़मीर उन्हें कोसता रहता है, भयानक बीमारियाँ लग जाती हैं और औरतें गर्भवती हो जाती हैं। इतना ही नहीं, सोचकर देखिए कि जो ऐसे नाजायज़ संबंध रखते हैं वे अपने जीवन-साथी को भी कितना गहरा सदमा पहुँचाते हैं। एक बार किसी के साथ गलत काम करके वे अपने साथी को ऐसा ज़ख्म दे देते हैं जो उम्र भर नहीं भर सकता। जी हाँ, सचमुच अनैतिक कामों का असर बहुत दर्द भरा होता है।
अनैतिक संसार में भी बेदाग रहना मुमकिन है
जी हाँ, अनैतिक लोगों से दूर रहने में ही हमारी भलाई है। इसका मतलब है कि हमें अश्लील संगीत से, अनैतिक कार्यक्रमों, फिल्मों और गंदी तस्वीरों से भी दूर रहना चाहिये, नहीं तो अनैतिक विचार हमारे अंदर भी पनपने लगेंगे। (नीतिवचन 6:27; 1 कुरिन्थियों 15:33; इफिसियों 5:3-5) इसके अलावा अगर हमारी बोल-चाल, पहनावे और बनाव-श्रंगार में दुनिया का रंग झलकेगा तो हम खुद उन्हें अपने पास बुला रहे होंगे। ऐसा करना तो खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा।—1 तीमुथियुस 4:8; 1 पतरस 3:3, 4.
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
अनैतिक संसार में भी बेदाग रहना मुमकिन
सुलैमान बताता है कि अनैतिक काम करनेवालों को कितनी भारी कीमत चुकानी पड़ती है। यह बात सोलह आने सच है कि जो लोग व्यभिचार करते हैं, वे अपनी ही नज़रों में गिर जाते हैं। ज़रा सोचिए, बस अपनी वासना पूरी करने के लिए अनैतिक काम कर बैठना क्या सचमुच एक शर्म की बात नहीं होगी? अपने जीवन-साथी को छोड़ किसी और के साथ नाजायज़ संबंध रखने से क्या यह ज़ाहिर नहीं होगा कि हमारे अंदर आत्म-सम्मान की कमी है?
24-30 मार्च
पाएँ बाइबल का खज़ाना नीतिवचन 6
हम चींटियों से क्या सीख सकते हैं?
इंसाइट-1 पेज 115 पै 1-2
चींटी
परमेश्वर की दी बुद्धि: चींटियों को अपनी बुद्धि सृष्टिकर्ता से मिली है। बाइबल में बताया है कि चींटियाँ ‘गरमियों में अपने खाने का इंतज़ाम करती हैं और कटनी के समय खाने की चीज़ें बटोरती हैं।’ (नीत 6:8) पैलिस्टाइन में एक तरह की चींटी अकसर देखने को मिलती है, जो वसंत और गरमियों में बहुत सारा अनाज इकट्ठा कर लेती है ताकि सर्दियों जैसे खराब मौसम में वह काम आए। अगर अनाज बारिश में भीग जाता है, तो वह उसे धूप में सुखाने के लिए बाहर लाती है। वह बीज का एक हिस्सा भी निकाल देती है ताकि रखे-रखे उसमें अंकुर ना फूटे।
सीखने लायक बातें: बाइबल में लिखा है, “हे आलसी, चींटी के पास जा, उसके तौर-तरीके देख और बुद्धिमान बन।” (नीत 6:6) चींटियों के बारे में अध्ययन करने से हम इन शब्दों के पीछे छिपे मतलब को समझ पाते हैं। वे ना सिर्फ भविष्य के लिए तैयारी करती हैं बल्कि बिना रुके काम करती रहती हैं। वे अपने वज़न से दुगना या उससे ज़्यादा वज़न उठा सकती हैं या खींच सकती हैं। वे हर हाल में अपना काम पूरा करती हैं। चाहे वे कितनी ही बार गिर जाएँ, फिसल जाएँ या ढलान से लुढ़क जाएँ, वे हार नहीं मानतीं। यही नहीं, चींटियाँ एक-दूसरे का अच्छा साथ देती हैं, अपनी बस्तियाँ साफ रखती हैं और जब किसी चींटी को चोट लग जाती है या वह थक जाती है, तो उसे बस्ती तक वापस लाती हैं।
अच्छा नाम बनाए रखना
तो क्या इन चींटियों की तरह हमें भी मेहनती नहीं होना चाहिए? चाहे हम पर लोग नज़र रखें या नहीं, हमें हमेशा मेहनत करते रहना चाहिए और अपने काम को सुधारने की कोशिश भी करनी चाहिए। चाहे हम स्कूल में हों, नौकरी पर हों, मीटिंग में हों या प्रचार में हों, हमें जी-तोड़ मेहनत करनी चाहिए। जैसे चींटी को अपनी मेहनत का फायदा होता है, उसी तरह परमेश्वर चाहता है कि हम भी ‘अपने सब परिश्रम में सुखी रहें’ और उसका फायदा उठाएँ। (सभोपदेशक 3:13, 22; 5:18) क्योंकि मेहनत करने से हमें खुशी मिलती है और हमारा मन साफ रहता है।—सभोपदेशक 5:12.
अब सुलैमान सोये हुए आलसी को जगाने के लिए दो सवाल पूछता है: “हे आलसी, तू कब तक सोता रहेगा? तेरी नींद कब टूटेगी?” फिर सुलैमान उसे उसके आलस का अंजाम समझाते हुए कहता है: “कुछ और सो लेना, थोड़ी सी नींद, एक और झपकी, थोड़ा और छाती पर हाथ रखे लेटे रहना, तब तेरा कंगालपन बटमार की नाईं और तेरी घटी हथियारबन्द के समान आ पड़ेगी।” (नीतिवचन 6:9-11) जब आलसी खटिया तोड़ता रहता है और खर्रांटे भरता रहता है, तभी गरीबी उस पर बटमार या डकैतों की तरह अचानक हमला करती है और उसकी ज़रूरतें या कमियाँ किसी हथियारबंद इंसान की तरह उस पर टूट पड़ती हैं। आलसी इंसान का खेत जल्द ही ऊँट-कटारों से भर जाता है। (नीतिवचन 24:30, 31) कुछ ही समय में नौकरी-धंधे में उसे भारी नुकसान होने लगता है। आखिर एक मालिक किसी आलसी निठल्ले को कितने दिन बरदाश्त करेगा? एक आलसी विद्यार्थी की भी यही दशा होती है। वह स्कूल में अच्छे नंबर लाने की सोच भी नहीं सकता।
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
अच्छा नाम बनाए रखना
बुराई इंसान के विचारों, उसकी बातों या उसके कामों में होती है। नीतिवचन में इन्हीं बुराइयों का ज़िक्र किया गया है। “घमण्ड से चढ़ी हुई आंखें” और “अनर्थ कल्पना गढ़नेवाला मन,” ये मन के विचारों में किए गए पाप हैं। “झूठ बोलनेवाली जीभ” और “झूठ बोलनेवाला साक्षी,” ये अपनी बातों से किए गए पाप हैं। और “निर्दोष का लोहू बहानेवाले हाथ” और “बुराई करने को वेग दौड़नेवाले पांव” ये बुरे काम या पाप के काम हैं। मगर यहोवा को सबसे ज़्यादा उस व्यक्ति से नफरत है जो प्यार और मेलजोल से रहनेवाले लोगों में झगड़ा लगाने के लिए बहुत उतावला होता है। सुलैमान ने छः बुराइयों में एक और बुराई जोड़ दी थी, जिसका मतलब है कि बुराइयों का सिलसिला कभी खत्म नहीं होता।
31 मार्च–6 अप्रैल
पाएँ बाइबल का खज़ाना नीतिवचन 7
ऐसे हालात से बचिए जिसमें आपको लुभाया जा सकता है
‘मेरी आज्ञाएँ मान और जीता रह’
जिस खिड़की से सुलैमान बाहर देख रहा था उसमें लकड़ी के फट्टों से बना झरोखा था जिस पर शायद बड़ी सुंदर नक्काशी की हुई थी। शाम का उजियाला धीरे-धीरे कम हो रहा था और रात का अंधेरा सड़कों पर छाने लगा था। तब वह एक ऐसे नौजवान को देखता है जिसे कोई भी अपने फँदे में फँसा सकता है। यह नौजवान समझदार नहीं है या अच्छे-बुरे में फर्क करने की अक्ल नहीं रखता, इसलिए उसे निर्बुद्धि कहा गया है। शायद उसे पता है कि वह किस किस्म के इलाके में आ गया है और यहाँ उसके साथ क्या हो सकता है। फिर भी वह नौजवान उस “कोने” के पास जाता है, जो दरअसल उस स्त्री के घर के रास्ते में पड़ता है। यह स्त्री कौन है? उसका इरादा क्या है?
‘मेरी आज्ञाएँ मान और जीता रह’
यह औरत बड़ी मीठी-मीठी बातें करती है। वह बड़ी बेशर्मी से और आत्मविश्वास के साथ बोलती है। इस नौजवान को लुभाने के लिए वह बहुत चुन-चुनकर शब्द इस्तेमाल करती है। यह कहकर कि उसने उसी दिन मेलबलियाँ चढ़ायी हैं और अपनी मन्नतें पूरी की हैं, वह धर्मी होने का दिखावा कर रही है और एक तरह से कहना चाहती है कि उसमें भी परमेश्वर के लिए भक्ति है। यरूशलेम के मंदिर में जो मेलबलियाँ चढ़ायी जाती थीं उनमें मांस, मैदा, तेल और दाखमधु हुआ करता था। (लैव्यव्यवस्था 19:5, 6; 22:21; गिनती 15:8-10) मेलबलि चढ़ानेवाला, चढ़ावे की चीज़ों में से अपने और अपने परिवार के लिए कुछ हिस्सा ले सकता था, इसलिए वह यह कहना चाहती है कि उसके घर में खाने-पीने का ढेर सारा सामान है। इसका मतलब साफ है: उसके घर में जाकर यह नौजवान मज़े कर सकता है। फिर वह कहती है कि वह उसी को ढूँढ़ने निकली थी। ऐसी झूठी कहानी को भला कौन हज़्म कर सकता है! एक बाइबल विद्वान कहता है, “बेशक वह किसी शिकार को ढूँढ़ने निकली थी, मगर क्या वह खास इसी नौजवान को ढूँढ़ रही थी? ऐसे झूठ को इस नौजवान जैसा कोई मूर्ख ही सच मान सकता था।”
अपने कपड़ों की सुंदरता से, अपने गिने-चुने शब्दों के जादू से, उसे गले लगाकर स्पर्श करने से और अपने होठों के रस से यह औरत इस जवान का मन मोह लेती है और अब वह खुशबू का एहसास दिलाकर उसे अपने वश में करना चाहती है। वह कहती है: “मैं ने अपने पलंग के बिछौने पर मिस्र के बेलबूटेवाले कपड़े बिछाए हैं; मैं ने अपने बिछौने पर गन्धरस, अगर और दालचीनी छिड़की है।” (नीतिवचन 7:16, 17) उसने बड़े करीने से मिस्र की रंग-बिरंगी बेल-बूटोंवाली चादर से अपने पलंग को खूब सजाया है और उस पर गन्धरस, अगर और दालचीनी का इत्र छिड़का है।
वह कहती है, “इसलिये अब चल हम प्रेम से भोर तक जी बहलाते रहें; हम परस्पर की प्रीति से आनन्दित रहें।” वह उसे अपने साथ सिर्फ लज़ीज़ खाना खाने के लिए नहीं बुला रही है। वह वादा कर रही है कि उस पर अपना सबकुछ लुटा देगी। उस नौजवान को यह न्यौता बहुत ही अनोखा और लुभावना लगता है! उसे और उकसाने के लिए, वह कहती है: “क्योंकि मेरा पति घर में नहीं है; वह दूर देश को चला गया है; वह चान्दी की थैली ले गया है; और पूर्णमासी को लौट आएगा।” (नीतिवचन 7:18-20) वह उसे यकीन दिलाती है कि डरने की कोई बात नहीं है, क्योंकि उसका पति व्यापार करने के लिए गया हुआ है और कुछ दिनों तक वह घर लौटनेवाला नहीं। किसी जवान को अपने वश में करने में यह औरत कितनी माहिर है! “ऐसी ही बातें कह कहकर, उस ने उसको अपनी प्रबल माया में फंसा लिया; और अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से उसको अपने वश में कर लिया।” (नीतिवचन 7:21) ऐसे लुभावने बुलावे का विरोध यूसुफ जैसा उसूलों का पक्का आदमी ही कर सकता था। (उत्पत्ति 39:9, 12) क्या इस नौजवान ने भी वही किया?
‘मेरी आज्ञाएँ मान और जीता रह’
यह जवान इस बुलावे के लिए ना नहीं कह पाता। समझ-बूझ को ताक पर रखकर, वह उस औरत के पीछे ऐसे जा रहा है “जैसे बैल कसाई-खाने को” जाता है। जैसे बेड़ियों से बँधा आदमी अपनी सज़ा से भाग नहीं सकता वैसे ही यह नौजवान खिंचकर पाप के रास्ते पर चलता चला जा रहा है। उसे अभी इस राह पर कोई खतरा नज़र नहीं आता, लेकिन आखिर में ‘उसका कलेजा तीर से बेधा जाएगा,’ यानी उसे ऐसी चोट लगेगी जो उसकी मौत का सबब बन जाएगी। उसकी मौत इसलिए हो सकती है क्योंकि वह ऐसे नाजायज़ संबंधों से फैलनेवाली जानलेवा बीमारियों को न्यौता दे रहा है। इस चोट से आध्यात्मिक मायने में भी उसकी मौत हो सकती है; ‘जिसमें उसके प्राण जाएंगे।’ उसके सारे वजूद और उसकी ज़िंदगी पर इसका बुरा असर होगा और वह परमेश्वर के खिलाफ बहुत बड़ा पाप करेगा। वह मानो दौड़कर मौत के फँदे में जा फँसता है जैसे कोई पक्षी जाल में फँस जाता है!
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
‘मेरी आज्ञाएँ मान और जीता रह’
सुलैमान आगे कहता है, “उनको [मेरी आज्ञाओं को] अपनी उंगलियों में बान्ध, और अपने हृदय की पटिया पर लिख ले।” (नीतिवचन 7:3) जैसे उंगलियाँ हर वक्त हमारी नज़र में रहती हैं और काम करने के लिए ज़रूरी होती हैं, उसी तरह माता-पिता द्वारा सिखाए गए सबक और बाइबल से मिला ज्ञान हमें हमेशा याद रखना चाहिए और अपने हर काम में इनकी मदद लेनी चाहिए। ये आज्ञाएँ हमारे हृदय की पटिया पर अंकित होनी चाहिए और इनका पालन करना हमारे स्वभाव में ही होना चाहिए।
7-13 अप्रैल
पाएँ बाइबल का खज़ाना नीतिवचन 8
यीशु की बुद्धि-भरी बातें सुनिए
“मैं पिता से प्यार करता हूँ”
7 आयत 22 में बुद्धि कहती है: “यहोवा ने मुझे काम करने के आरम्भ में, वरन अपने प्राचीनकाल के कामों से भी पहिले उत्पन्न किया।” यहाँ बुद्धि की नहीं शायद किसी और की बात की गयी है, क्योंकि बुद्धि को तो कभी “उत्पन्न” नहीं किया गया। इसकी कोई शुरूआत नहीं क्योंकि यहोवा हमेशा से वजूद में रहा है और वह हमेशा से बुद्धिमान है। (भजन 90:2) लेकिन परमेश्वर का बेटा “सारी सृष्टि में पहलौठा है।” उसे उत्पन्न किया गया था, यानी उसकी सृष्टि की गयी थी। उसे यहोवा ने अपने प्राचीनकाल के सभी कामों से पहले उत्पन्न किया था। (कुलुस्सियों 1:15) जैसा कि नीतिवचन में बताया गया है, यह बेटा धरती और स्वर्ग के बनाए जाने से पहले वजूद में था। परमेश्वर उसके ज़रिए अपनी बातें लोगों तक पहुँचाता था, इसलिए उसे वचन कहा गया है। वह यहोवा की बुद्धि का सबसे बेहतरीन उदाहरण है।—यूहन्ना 1:1.
“मैं पिता से प्यार करता हूँ”
8 धरती पर आने से पहले परमेश्वर का बेटा युगों तक स्वर्ग में था। इतने लंबे समय तक उसने क्या किया? आयत 30 बताती है कि वह एक “कुशल कारीगर,” (NHT) के तौर पर परमेश्वर के साथ था। इसका क्या मतलब है? कुलुस्सियों 1:16 में समझाया गया है: “उसी के ज़रिए स्वर्ग में और धरती पर बाकी सब चीज़ें सिरजी गयीं, . . . बाकी सब चीज़ें उसके ज़रिए और उसी के लिए सिरजी गयी हैं।” इसका मतलब सृष्टिकर्ता यहोवा ने सृष्टि की बाकी सारी चीज़ें अपने बेटे यानी कुशल कारीगर के ज़रिए बनायीं: स्वर्ग के सारे आत्मिक प्राणी, विशाल अंतरिक्ष की सारी चीज़ें, धरती और उस पर तरह-तरह के खूबसूरत पेड़-पौधे और जानवर और धरती की सबसे बेहतरीन रचना इंसान। पिता और बेटे ने जिस तरह साथ मिलकर काम किया, उसकी तुलना हम कुछ-कुछ एक आर्किटेक्ट (इमारतों या मकानों का नक्शा बनानेवाला) और ठेकेदार से कर सकते हैं। ठेकेदार, आर्किटेक्ट के बनाए एक-से-बढ़कर-एक नक्शों के मुताबिक इमारतें खड़ी करता है। जब हम सृष्टि की कोई चीज़ देखकर हैरान होते हैं, तो हम दरअसल सबसे महान आर्किटेक्ट की महिमा कर रहे होते हैं। (भजन 19:1) लेकिन उस वक्त हमें यह भी याद आना चाहिए कि सृष्टिकर्ता और उसके “कुशल कारीगर” ने किस तरह लंबे समय तक साथ मिलकर खुशी-खुशी काम किया।
9 जब दो असिद्ध इंसान साथ मिलकर काम करते हैं, तो कभी-कभी उनके रिश्ते में खटास पैदा हो जाती है और उनके लिए साथ मिलकर काम करना मुश्किल हो जाता है। लेकिन यहोवा और उसके बेटे के साथ ऐसा नहीं हुआ। बेटे ने युगों-युगों तक अपने पिता के साथ काम किया और वह ‘हर समय उसके सामने आनंदित रहता था।’ (नीतिवचन 8:30) जी हाँ, उसे पिता के साथ रहने में बहुत खुशी होती थी और उसके पिता को भी ऐसा ही महसूस होता था। ज़ाहिर है कि इस तरह बेटा अपने पिता के जैसा बनता गया और पिता में जो गुण हैं उन्हें अपने अंदर बढ़ाता गया। कोई ताज्जुब नहीं कि पिता और बेटे के बीच का रिश्ता इतना मज़बूत बन गया! इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि उनके बीच जो प्यार का रिश्ता है, वह पूरे विश्व में सबसे पुराना और सबसे मज़बूत है।
यीशु मसीह की कदर करना जो दाविद और सुलैमान से महान है
14 यीशु ने खुद के बारे में कहा कि वह “सुलैमान से भी बड़ा” है। (मत्ती 12:42) पूरे इतिहास में वही अकेला इंसान था जो बुद्धि में सुलैमान से भी बढ़कर था। यीशु ने जो बुद्धि की बातें सिखायीं, वे “हमेशा की ज़िंदगी की बातें” हैं। (यूह. 6:68) उसके पहाड़ी उपदेश का उदाहरण लीजिए। उसने इस उपदेश में ऐसे कई सिद्धांत बताए जिनसे सुलैमान के नीतिवचनों के बारे में ज़्यादा जानकारी और गहरी समझ मिलती है। सुलैमान ने अपने नीतिवचनों में ऐसी कई बातों का ज़िक्र किया जिनसे यहोवा के एक सेवक को खुशी मिलती है। (नीति. 3:13; 8:32, 33; 14:21; 16:20) यीशु ने इस बारे में और भी बेहतरीन जानकारी दी। उसने बताया कि सच्ची खुशी सिर्फ यहोवा की उपासना से जुड़ी बातों से और उसकी भविष्यवाणियों के पूरा होने से मिलती है। उसने कहा: “सुखी हैं वे जिनमें परमेश्वर से मार्गदर्शन पाने की भूख है, क्योंकि स्वर्ग का राज उन्हीं का है।” (मत्ती 5:3) जो लोग यीशु की शिक्षाओं पर अमल करते हैं, वे ‘जीवन के सोते’ यहोवा के और भी करीब आते हैं। (भज. 36:9; नीति. 22:11; मत्ती 5:8) मसीह “परमेश्वर की बुद्धि” का साकार रूप है। (1 कुरिं. 1:24, 30) मसीहाई राजा, यीशु के पास ‘ज्ञान की आत्मा’ है।—यशा. 11:2.
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
सज 7/14 पेज 16
‘बुद्धि पुकारती है’—क्या आप सुन पा रहे हैं?
▪ द वर्ल्ड बुक इनसाइक्लोपीडिया कहती है: “बाइबल, इतिहास में सबसे ज़्यादा बाँटी जानेवाली किताब है। किसी दूसरी किताब के मुकाबले बाइबल का सबसे ज़्यादा बार और सबसे ज़्यादा भाषाओं में अनुवाद किया गया है।” पूरी बाइबल या इसके कुछ हिस्से अब तक करीब 2,600 भाषाओं में मौजूद हैं। इसे दुनिया के 90 प्रतिशत से भी ज़्यादा लोग अपनी भाषा में पढ़ सकते हैं।
▪ इतना ही नहीं, बुद्धि सचमुच “ऊंचे स्वर से [पुकारती] है।” कैसे? मत्ती 24:14 में हम पढ़ते हैं: “राज की इस खुशखबरी का सारे जगत में प्रचार किया जाएगा ताकि सब राष्ट्रों पर गवाही हो; और इसके बाद [मौजूदा दुनिया का] अंत आ जाएगा।”
14-20 अप्रैल
पाएँ बाइबल का खज़ाना नीतिवचन 9
बुद्धिमान बनिए, खिल्ली उड़ानेवाले नहीं
“बुद्धिमान की बातों पर कान लगा”
4 जब कोई हमें सलाह देता है, तो शायद हमें उसे मानने में मुश्किल हो। हमें शायद बुरा भी लग जाए। ऐसा क्यों होता है? हालाँकि हम यह बात मानते हैं कि हम अपरिपूर्ण हैं और हमसे गलतियाँ हो जाती हैं, लेकिन जब कोई दूसरा हमारी गलती बताता है और हमें सलाह देता है, तो शायद हमें अच्छा न लगे। (सभोपदेशक 7:9 पढ़िए।) हो सकता है हम सफाई देने लगें, सलाह देनेवाले के इरादे पर शक करने लगें या उसका सलाह देने का तरीका हमें पसंद न आए। हम शायद उसमें नुक्स भी निकालने लगें और सोचने लगें, ‘वह कौन होता है मुझे सलाह देनेवाला? उसमें भी तो कमियाँ हैं!’ फिर शायद हम उसकी सलाह अनसुनी कर दें या किसी ऐसे व्यक्ति से सलाह लें, जो वही कहेगा जो हम सुनना चाहते हैं।
“बुद्धिमान की बातों पर कान लगा”
12 सलाह मानने के लिए हमें क्या करना चाहिए? हमें नम्र रहना चाहिए और याद रखना चाहिए कि हम सब अपरिपूर्ण हैं और कई बार बिना सोचे-समझे कुछ कर बैठते हैं। जैसा हमने पहले सीखा, अय्यूब की सोच गलत थी, लेकिन बाद में उसने अपनी सोच बदली और यहोवा ने उसे आशीषें दीं। वह अपनी सोच क्यों बदल पाया? क्योंकि वह नम्र था। और इसी वजह से वह एलीहू की बात मान पाया, जबकि एलीहू उससे उम्र में बहुत छोटा था। (अय्यू. 32:6, 7) कई बार शायद हमें लगे कि हमें बेवजह सलाह दी जा रही है या शायद कोई ऐसा व्यक्ति हमें सलाह दे, जो हमसे बहुत छोटा है। ऐसे में अगर हम नम्र होंगे, तो हम सलाह मान पाएँगे। कनाडा में रहनेवाला एक प्राचीन कहता है, “बिना दूसरों की सलाह के, हम तरक्की नहीं कर पाएँगे।” इस भाई ने जो कहा, सही कहा! हम सबको तरक्की करनी है, यानी पवित्र शक्ति के फल के गुण बढ़ाने हैं और खुशखबरी का अच्छा प्रचारक और शिक्षक बनना है। इसलिए हमें सलाह की ज़रूरत है।—भजन 141:5 पढ़िए।
13 हमें याद रखना चाहिए कि सलाह परमेश्वर के प्यार का सबूत है। यहोवा हमारी भलाई चाहता है। (नीति. 4:20-22) वह हमसे बहुत प्यार करता है। इसलिए वह बाइबल, प्रकाशनों और दूसरे भाई-बहनों के ज़रिए हमें सलाह देता है। वह “हमारे फायदे के लिए हमें सुधारता है।”—इब्रा. 12:9, 10.
14 हमें सलाह पर ध्यान देना चाहिए, सलाह देने के तरीके पर नहीं। कई बार शायद हमें लगे कि हमें जिस तरीके से सलाह दी गयी, वह सही नहीं है। यह सच है कि जो व्यक्ति सलाह देता है, उसे इस तरह सलाह देनी चाहिए कि सामनेवाले को उसे मानने में आसानी हो। (गला. 6:1) लेकिन अगर हमें सलाह मिल रही है, तो हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि हमें क्या बताया जा रहा है। हम खुद से पूछ सकते हैं, ‘भले ही मुझे सलाह देने का उसका तरीका अच्छा नहीं लगा, लेकिन क्या उसकी बात में सच्चाई है? क्या मैं उसकी खामियाँ नज़रअंदाज़ करके सलाह मान सकता हूँ?’ समझदारी इसी में होगी कि हम सलाह मानने की पूरी कोशिश करें।—नीति. 15:31.
‘बुद्धि से हमारी आयु बढ़ेगी’
ताड़ना के प्रति एक बुद्धिमान व्यक्ति की प्रतिक्रिया ठट्ठा करनेवाले की प्रतिक्रिया से बिलकुल अलग होती है। सुलैमान कहता है: “बुद्धिमान को डांट, वह तो तुझ से प्रेम रखेगा। बुद्धिमान को शिक्षा दे, वह अधिक बुद्धिमान होगा।” (नीतिवचन 9:8ख, 9क) बुद्धिमान व्यक्ति जानता है कि “वर्तमान में हर प्रकार की ताड़ना आनन्द की नहीं, पर शोक ही की बात दिखाई पड़ती है, तौभी जो उस को सहते सहते पक्के हो गए हैं, पीछे उन्हें चैन के साथ धर्म का प्रतिफल मिलता है।” (इब्रानियों 12:11) ताड़ना दिए जाने पर शायद हमें बुरा लग सकता है लेकिन अगर उसे मानने से हम बुद्धिमान बन सकते हैं, तो उसे कबूल करने से भला हम मुँह क्यों मोड़ें?
बुद्धिमान राजा आगे कहता है: “धर्मी को चिता दे, वह अपनी विद्या बढ़ाएगा।” (नीतिवचन 9:9ख) कोई भी व्यक्ति इतना बुद्धिमान नहीं होता कि उसे और सीखने की ज़रूरत न हो, ना ही सीखने के लिए उम्र की कोई सीमा होती है। यह देखकर हमें कितनी खुशी होती है कि ऐसे लोग भी जिनकी उम्र ढल चुकी है, सच्चाई को स्वीकार करते हैं और यहोवा को समर्पण करते हैं! आइए हम भी सीखने की इच्छा को हमेशा बरकरार रखें और अपने दिमाग का अच्छा इस्तेमाल करते रहें।
‘बुद्धि से हमारी आयु बढ़ेगी’
बुद्धि पाने के लिए जी-तोड़ कोशिश करना हमारी खुद की ज़िम्मेदारी है। इसी बात पर ज़ोर देते हुए सुलैमान कहता है: “यदि तू बुद्धिमान हो, तो बुद्धि का फल तू ही भोगेगा; और यदि तू ठट्ठा करे, तो दण्ड केवल तू ही भोगेगा।” (नीतिवचन 9:12) बुद्धिमान व्यक्ति को अपनी बुद्धि का फायदा मिलता है और ठट्ठा करनेवाले को जो दुःख पहुँचेगा, उसके लिए वह खुद ज़िम्मेदार होता है। यह बात बिलकुल पक्की है कि हम जो बोएँगे वही काटेंगे। तो आइए हम “बुद्धि की बात ध्यान से सुने।”—नीतिवचन 2:2.
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
नीतिवचन किताब की झलकियाँ
9:17—“चोरी का पानी” क्या है और वह “मीठा” क्यों होता है? बाइबल, पति-पत्नी के बीच के लैंगिक संबंध की तुलना, कुए के ताज़े पानी से करती है। इसलिए चोरी का पानी नाजायज़ संबंधों को दर्शाता है। (नीतिवचन 5:15-17) और ऐसे घिनौने काम करके पकड़े न जाना, मानो मीठे पानी पीने के बराबर है।
21-27 अप्रैल
पाएँ बाइबल का खज़ाना नीतिवचन 10
सच में अमीर होने के लिए क्या ज़रूरी है?
प्र01 7/15 पेज 24 पै 8–पेज 25 पै 2
‘धर्मी आशीष पाते हैं’
धर्मी व्यक्ति को एक और तरीके से आशीष मिलती है। “जो काम में ढिलाई करता है, वह निर्धन हो जाता है, परन्तु कामकाजू लोग [“परिश्रमी,” NHT] अपने हाथों के द्वारा धनी होते हैं। जो बेटा धूपकाल में बटोरता है वह बुद्धि से काम करनेवाला है, परन्तु जो बेटा कटनी के समय भारी नींद में पड़ा रहता है, वह लज्जा का कारण होता है।”—नीतिवचन 10:4, 5.
राजा के ये शब्द खासकर उन मज़दूरों के लिए मायने रखते हैं जो कटनी के वक्त काम करते हैं। कटनी का समय ऊँघने का नहीं होता है बल्कि मेहनत और घंटों तक काम करने का होता है। वाकई वक्त की नज़ाकत को देखते हुए परिश्रम करने की बेहद ज़रूरत है।
यीशु ने अपने शिष्यों से कहा: “पक्के खेत तो बहुत हैं पर मजदूर थोड़े हैं। इसलिये खेत के स्वामी [यहोवा परमेश्वर] से बिनती करो कि वह अपने खेत काटने के लिये मजदूर भेज दे।” (मत्ती 9:35-38) यहाँ यीशु अनाज की कटनी की बात नहीं कर रहा था बल्कि वह इंसानों की बात कर रहा था। साल 2000 में, 1.4 करोड़ से भी ज़्यादा लोग यीशु की मौत के स्मारक में हाज़िर हुए थे और यह संख्या यहोवा के साक्षियों की संख्या के दुगुनी से भी ज़्यादा थी। तो फिर कौन इस बात को नकार सकता है कि ‘खेत कटनी के लिये पक चुके हैं’? (यूहन्ना 4:35) सच्चे उपासक अपने स्वामी से और भी मज़दूर भेजने के लिए प्रार्थना करते हैं, साथ ही वे चेला बनाने के काम को पूरी मेहनत और लगन से करते हैं। (मत्ती 28:19, 20) और यहोवा ने उनकी मेहनत पर क्या ही भरपूर आशीष दी है! सन् 2000 के सेवा साल में 2,80,000 से भी ज़्यादा लोगों ने बपतिस्मा लिया है। ये सभी परमेश्वर के वचन के सिखानेवाले बनने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। आइए हम भी कटनी के इस समय में पूरी तरह से चेला बनाने के काम में जुट जाएँ और इससे खुशी और संतुष्टि पाएँ।
‘सच्चाई के मार्ग’ पर चलिए
सुलैमान, धार्मिकता की अहमियत बताते हुए लिखता है: “धनी का धन उसका दृढ़ नगर है; किन्तु गरीब की गरीबी उसके विनाश का कारण है। धार्मिक मनुष्य का परिश्रम उसको जीवन की ओर ले जाता है; पर दुर्जन की कमाई उसको पाप की ओर अग्रसर करती है।”—नीतिवचन 10:15, 16, नयी हिन्दी बाइबिल।
जिस तरह दृढ़ नगर की चारदीवारी उसमें रहनेवालों को बहुत-से खतरों से बचाती है ठीक उसी तरह धन-दौलत भी इंसान को जीवन में आनेवाली कई मुश्किलों से बचा सकती है। दूसरी तरफ गरीबी, ज़िंदगी के मुश्किल हालात को बद से बदतर बना सकती है। (सभोपदेशक 7:12) लेकिन हो सकता है कि इस आयत में सुलैमान एक ऐसे फंदे की ओर इशारा कर रहा हो जिसमें अमीर-गरीब दोनों फँस सकते हैं। एक अमीर आदमी धन-संपत्ति को एक “शहरपनाह” मानकर ज़रूरत से ज़्यादा उस पर भरोसा कर सकता है। (नीतिवचन 18:11) जबकि एक गरीब आदमी अपनी दरिद्रता को अपना नसीब मानकर हाथ-पर-हाथ रखकर बैठ सकता है। इस तरह दोनों ही हालात में एक इंसान परमेश्वर के साथ अपने रिश्ते की अहमियत भूल सकता है।
इंसाइट-1 पेज 340
आशीष, आशीर्वाद
जो आशीष यहोवा इंसानों को देता है। “यहोवा की आशीष ही एक इंसान को अमीर बनाती है और वह उसके साथ कोई दर्द नहीं देता।” (नीत 10:22) यहोवा जिन्हें मंज़ूर करता है, उन्हें आशीष देता है। कैसे? वह उनकी हिफाज़त करता है, उन्हें राह दिखाता है, उनकी ज़रूरतें पूरी करता है और उन्हें कामयाब होने में मदद देता है। यहोवा की आशीष से इंसानों का बहुत भला होता है।
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
खराई की राह पर चलने से मिलनेवाली खुशियाँ
18 “यहोवा के वरदान” से ही उसके लोगों को आध्यात्मिक धन हासिल हुआ है। और हमें पूरा यकीन है कि “उसके साथ वह कोई दु:ख नहीं जोड़ता।” (नीतिवचन 10:22, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) अगर ऐसा है तो फिर परमेश्वर के कई वफादार सेवकों पर इतनी परीक्षाएँ और मुसीबतें क्यों आती हैं और इनकी वजह से उन्हें इतना दुःख-दर्द क्यों सहना पड़ता है? हम तीन खास वजहों से दुःख-तकलीफों और मुसीबतों का सामना करते हैं। (1) हमारा अपना पापी स्वभाव। (उत्पत्ति 6:5; 8:21; याकूब 1:14, 15) (2) शैतान और उसकी दुष्टात्माएँ। (इफिसियों 6:11, 12) (3) यह दुष्ट संसार। (यूहन्ना 15:19) यहोवा हमारे साथ बुरा होने की इजाज़त देता है, मगर वह खुद हमारे साथ बुरा नहीं करता। सच तो यह है कि “हर एक अच्छा वरदान और हर एक उत्तम दान ऊपर ही से है, और ज्योतियों के पिता की ओर से मिलता है।” (याकूब 1:17) यहोवा आशीषों के साथ कभी दुःख नहीं देता।
28 अप्रैल–4 मई
पाएँ बाइबल का खज़ाना नीतिवचन 11
ऐसी बातें मत बोलिए!
खराई, सीधे लोगों की अगुवाई करती है
जिस तरह सीधे लोगों की खराई का लोगों पर असर होता है, उसी तरह दुष्टों की दुष्टता का भी असर पड़ता है। इस्राएल का राजा कहता है: “भक्तिहीन जन अपने पड़ोसी को अपने मुंह की बात से बिगाड़ता है, परन्तु धर्मी लोग ज्ञान के द्वारा बचते हैं।” (नीतिवचन 11:9) इस बात को कौन नकार सकता है कि जो दूसरों को बदनाम करते, नुकसानदेह गपशप करते, अश्लील बोल-चाल का इस्तेमाल करते और बेफज़ूल की बातें करते हैं, उनसे दूसरों का बुरा होता है? दूसरी तरफ, धर्मी इंसान की बातचीत हमेशा खरी होती है, वह दूसरों की भावनाओं का लिहाज़ करते हुए सोच-समझकर बोलता है। उसका ज्ञान उसे बचाता है क्योंकि अपनी खराई के कारण उसे ऐसे सबूत मिलते हैं जिनसे वह साबित कर सकता है कि उसकी निंदा करनेवाले झूठे हैं।
खराई, सीधे लोगों की अगुवाई करती है
नगर के जो लोग सीधे मार्ग पर चलते हैं, उनसे समाज में शांति और खुशहाली बढ़ती है और वे दूसरों को भी अच्छा इंसान बनने का बढ़ावा देते हैं। इस तरह नगर में बढ़ती होती है, वह समृद्ध होता जाता है। लेकिन जो लोग दूसरों को बदनाम करते और उनको चोट पहुँचानेवाली और गलत बातें करते हैं, उनसे नगर में कोलाहल मच जाता है, समस्याएँ, फूट और तकलीफें पैदा होती हैं। यह खासकर तब होता है जब ऊँची पदवी रखनेवाले ऐसी बातें करते हैं। तब पूरे नगर में गड़बड़ी और भ्रष्टाचार फैल जाता है, चालचलन गिर जाता है, यहाँ तक कि वह नगर बदहाल हो सकता है।
नीतिवचन 11:11 में दिया गया सिद्धांत, यहोवा के लोगों पर भी उतने ही ज़बरदस्त ढंग से लागू होता है क्योंकि वे भी नगर समान कलीसियाओं में एक-दूसरे के साथ संगति करते हैं। जिस कलीसिया के लोग आध्यात्मिक बातों पर मन लगानेवाले होते हैं यानी जो खराई के मार्ग पर चलनेवाले सीधे इंसान होते हैं, वे हमेशा खुशहाल, जोशीले और मददगार होते हैं और परमेश्वर की महिमा करते हैं। ऐसी कलीसिया पर यहोवा आशीष देता है, इसलिए वह आध्यात्मिक रूप से फलती-फूलती है। कलीसिया में शायद एकाध लोग ऐसे भी हों जो कलीसिया के इंतज़ामों से कभी-कभी नाखुश होते, कुड़कुड़ाते, उनकी नुक्ताचीनी करते और उनके बारे में कड़वी बातें बोलते हों। वे “कड़वी जड़” की तरह होते हैं जो दूर-दूर तक फैल जाती है। इसलिए वे अच्छे लोगों को भी अपनी ज़हरीली जकड़ में ले लेते हैं। (इब्रानियों 12:15) ऐसे लोग अकसर कलीसिया में अधिकार और बड़ा नाम पाने की ख्वाहिश रखते हैं। वे शायद कलीसिया के लोगों या प्राचीनों के बारे में अफवाहें फैलाएँ कि वे नाइंसाफी कर रहे हैं, जाति को लेकर भेद-भाव कर रहे हैं या ऐसे दूसरे गलत काम कर रहे हैं। उनके मुँह यानी उनकी बातों से सचमुच कलीसिया में फूट पैदा हो सकती है। तो क्या हमें उनकी बातों से कान नहीं फेर लेना चाहिए और ऐसे आध्यात्मिक लोग नहीं बनना चाहिए जो कलीसिया की शांति और एकता को बढ़ावा देते हैं?
खराई, सीधे लोगों की अगुवाई करती है
सचमुच, जो “निर्बुद्धि” है यानी परख-शक्ति नहीं रखता, वह दूसरों को कितनी तकलीफ पहुँचा सकता है! वह अपनी ज़बान पर लगाम नहीं लगाता इसलिए वह दूसरों की निंदा करने और उनके बारे में खरी-खोटी सुनाने से भी नहीं हिचकिचाता। कलीसिया में ऐसी बुराई फैलने से रोकने के लिए प्राचीनों को फौरन कदम उठाना चाहिए। लेकिन परख-शक्ति रखनेवाला मनुष्य, “निर्बुद्धि” से बिलकुल अलग होता है, वह जानता है कि चुप रहने का समय कौन-सा है। वह विश्वासघात करने के बजाय, बात को छिपाकर रखता है। परख-शक्ति रखनेवाला जानता है कि अगर जीभ को वश में न किया जाए, तो वह एक चिंगारी की तरह ज्वाला भड़का सकती है, इसलिए वह “विश्वासयोग्य” होता है। वह अपने भाई-बहनों का वफादार रहता और उन गुप्त बातों का भेद नहीं खोलता जिनसे उन्हें खतरा हो सकता है। खराई के रास्ते पर चलनेवाले ऐसे लोग कलीसिया के लिए कितनी बड़ी आशीष हैं!
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
सज20.1 पेज 11, बक्स
तनाव का सामना कैसे करें?
कृपा कीजिए और तनाव से बचिए
“कृपा करनेवाला अपना ही भला करता है, लेकिन बेरहम इंसान खुद पर आफत लाता है।”—नीतिवचन 11:17.
डॉक्टर टिम कैनटेफर की किताब के एक अध्याय का शीर्षक है, ‘कृपा कीजिए और तनाव से बचिए।’ उसमें उन्होंने बताया कि अगर आप दूसरों के साथ कृपा से पेश आएँगे, तो आपकी सेहत अच्छी रहेगी और आप खुश रहेंगे। वहीं दूसरी तरफ, जो व्यक्ति दूसरों से रूखा व्यवहार करता है, लोग उसे पसंद नहीं करते और उससे दूर-दूर रहते हैं। इस वजह से वह व्यक्ति खुश नहीं रहता।
दूसरों के साथ-साथ हमें खुद के साथ भी नरमी से पेश आना चाहिए। इससे हमें तनाव से राहत मिल सकता है। यीशु ने कहा था, “तू अपने पड़ोसी से वैसे ही प्यार करना जैसे तू खुद से करता है।” (मरकुस 12:31) यीशु की यह बात मानने के लिए ज़रूरी है कि पहले हम खुद से प्यार करें। इसका मतलब है कि हम खुद से बहुत ज़्यादा की उम्मीद न करें, सख्ती से पेश न आएँ और न ही खुद को नाकाबिल समझें।