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  • “मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका” के लिए हवाले

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  • “मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका” के लिए हवाले
  • मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले—2025
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मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले—2025
mwbr25 सितंबर पेज 1-16

मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले

© 2025 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania

1-7 सितंबर

पाएँ बाइबल का खज़ाना नीतिवचन 29

ऐसे रीति-रिवाज़ और शिक्षाएँ मत मानिए, जो यहोवा को पसंद नहीं

जन16 अंक6 पेज 6, बक्स, अँग्रेज़ी

स्वर्ग के प्राणियों के बारे में दर्शन

आज लाखों लोग अंधविश्‍वास की बेड़ियों में जकड़े हुए हैं। वे बुरी आत्माओं से भी डरते हैं। इसलिए इनसे बचने के लिए वे तावीज़ पहनते हैं, धागा बाँधते हैं, नज़र बट्टू लटकाते हैं, टोना-टोटका करते हैं वगैरह। पर हमें यह सब करने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि बाइबल में हमें यकीन दिलाया गया है, “यहोवा की आँखें सारी धरती पर इसलिए फिरती रहती हैं कि वह उन लोगों की खातिर अपनी ताकत दिखाए जिनका दिल उस पर पूरी तरह लगा रहता है।” (2 इतिहास 16:9) यहोवा सच्चा परमेश्‍वर है और शैतान से कहीं ज़्यादा ताकतवर है। अगर हम यहोवा पर भरोसा रखें तो वह हमारी हिफाज़त करेगा।

अगर हम चाहते हैं कि यहोवा हमारी हिफाज़त करे, तो पहले हमें जानना होगा कि वह किन कामों से खुश होता है। और फिर हमें वे काम करने होंगे। उदाहरण के लिए, पहली सदी में इफिसुस शहर के मसीहियों ने जादूगरी की अपनी सारी किताबें जला दी थीं। (प्रेषितों 19:19, 20) उसी तरह, हमें भी जादू-टोने से जुड़ी हर चीज़ नष्ट कर देनी चाहिए, जैसे तावीज़, धागा, जादूगरी की किताबें वगैरह।

प्र19.04 पेज 17 पै 13

मौत से जुड़ी सच्चाई का समर्थन कीजिए

13 वहीं दूसरी तरफ अगर आपको ठीक-ठीक नहीं पता कि कोई रिवाज़ बाइबल की शिक्षाओं के खिलाफ है या नहीं, तब आप क्या करेंगे? यहोवा से प्रार्थना कीजिए और उससे बुद्धि माँगिए। (याकूब 1:5 पढ़िए।) फिर इस बारे में हमारे प्रकाशनों में खोजबीन कीजिए। अगर आपको और मदद चाहिए, तो मंडली के प्राचीनों से सलाह लीजिए। वे आपके लिए फैसले तो नहीं करेंगे, लेकिन आपको बाइबल के कुछ सिद्धांत याद दिलाएँगे, जैसे इस लेख में बताए गए हैं। इस तरह आप अपनी “सोचने-समझने की शक्‍ति” को प्रशिक्षित कर पाएँगे और “सही-गलत में फर्क” करना सीखेंगे।​—इब्रा. 5:14.

प्र18.11 पेज 11 पै 12

“मैं तेरी सच्चाई की राह पर चलूँगा”

12 रीति-रिवाज़ और त्योहार जो परमेश्‍वर को पसंद नहीं। शायद हमारे परिवारवाले, साथ काम करनेवाले या स्कूल में साथ पढ़नेवाले हम पर ऐसे रीति-रिवाज़ या त्योहार मनाने का दबाव डालें, जो परमेश्‍वर को पसंद नहीं। इस तरह के दबाव का सामना करने के लिए हमें क्या करना चाहिए? हमें अच्छी तरह पता होना चाहिए कि यहोवा किन कारणों से हमें ऐसे त्योहार मनाने से मना करता है। हमें प्रकाशनों में खोजबीन करनी चाहिए और याद रखना चाहिए कि इन त्योहारों की शुरूआत कैसे हुई। इन बातों पर मनन करने से हमें यकीन होगा कि हम उस राह पर चल रहे हैं, जिसे ‘प्रभु स्वीकार करता है।’ (इफि. 5:10) यहोवा और उसके वचन पर भरोसा रखने से हमें कभी यह डर नहीं होगा कि लोग क्या सोचेंगे।​—नीति. 29:25.

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इंसाइट “चापलूसी” पै 1

“चापलूसी”

चापलूसी करने का मतलब है, चिकनी-चुपड़ी बातें करना, किसी की हद-से-ज़्यादा और बढ़ा-चढ़ाकर या झूठी तारीफ करना। इससे उसका नुकसान हो सकता है। वह सिर्फ अपने बारे में सोचने लग सकता है, खुद को कुछ ज़्यादा ही बड़ा समझने लग सकता है, यहाँ तक कि घमंडी बन सकता है। लोग दूसरों को खुश करने या उनसे अपना मतलब निकालने के लिए उनकी चापलूसी करते हैं। और जिसकी चापलूसी की जाती है उस पर दबाव बन जाता है कि वह चापलूसी करनेवाले के लिए कुछ करे। यह दिखाता है कि किसी की झूठी तारीफ करना उसके लिए जाल बिछाने जैसा है। (नीत 29:5) जब कोई चापलूसी करता है तो वह दिखाता है कि उसमें स्वर्ग से मिलनेवाली बुद्धि नहीं है। इसके बजाय उसकी सोच दुनिया के लोगों जैसी है जो सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं, कपटी हैं और ऐसे लोगों से दोस्ती करते हैं जिनसे उन्हें कुछ फायदा हो सकता है। (याकू 3:17) चिकनी-चुपड़ी बातें करना, किसी की झूठी या बढ़ा-चढ़ाकर तारीफ करना, उसके घमंड को और भी हवा देना, यह सब परमेश्‍वर को पसंद नहीं है।​—2कुर 1:12; गल 1:10; इफ 4:25; कुल 3:9; प्रक 21:8.

8-14 सितंबर

पाएँ बाइबल का खज़ाना नीतिवचन 30

“मुझे न गरीबी दे, न अमीरी”

प्र18.01 पेज 24-25 पै 10-12

किस तरह का प्यार सच्ची खुशी देता है?

10 बेशक पैसा हम सबकी एक ज़रूरत है और यह कुछ हद तक हमारी हिफाज़त करता है। (सभो. 7:12) लेकिन अगर हमारे पास सिर्फ इतना पैसा है कि हमारी बुनियादी ज़रूरतें पूरी हों, तो क्या हम खुश रह सकते हैं? बिलकुल! (सभोपदेशक 5:12 पढ़िए।) याके के बेटे आगूर ने लिखा, “मुझे न गरीबी दे, न अमीरी। मुझे बस मेरे हिस्से का खाना दे।” हम समझ सकते हैं कि आगूर ने क्यों कहा कि मुझे बहुत गरीब मत बना। वह इसलिए कि गरीबी एक इंसान को चोरी करने के लिए लुभा सकती है जिससे परमेश्‍वर का नाम बदनाम हो सकता है। लेकिन वह अमीर क्यों नहीं बनना चाहता था? उसने कहा, “ऐसा न हो कि मेरे पास बहुत हो जाए और मैं तुझसे मुकरकर कहूँ, ‘यहोवा कौन है?’” (नीति. 30:8, 9) आज कई लोग हैं जो परमेश्‍वर से ज़्यादा पैसों पर भरोसा रखते हैं और आप शायद ऐसे कुछ लोगों को जानते हों।

11 पैसे से प्यार करनेवाला इंसान कभी परमेश्‍वर को खुश नहीं कर सकता। वह क्यों? यीशु ने कहा, “कोई भी दास दो मालिकों की सेवा नहीं कर सकता। क्योंकि या तो वह एक से नफरत करेगा और दूसरे से प्यार या वह एक से जुड़ा रहेगा और दूसरे को तुच्छ समझेगा। तुम परमेश्‍वर के दास होने के साथ-साथ धन-दौलत की गुलामी नहीं कर सकते।” उसने यह भी कहा, “अपने लिए पृथ्वी पर धन जमा करना बंद करो, जहाँ कीड़ा और ज़ंग उसे खा जाते हैं और चोर सेंध लगाकर चुरा लेते हैं। इसके बजाय, अपने लिए स्वर्ग में धन जमा करो, जहाँ न तो कीड़ा, न ही ज़ंग उसे खाते हैं और न चोर सेंध लगाकर चुराते हैं।”​—मत्ती 6:19, 20, 24.

12 यहोवा के कई सेवकों ने अपनी ज़िंदगी को सादा किया है। इस वजह से वे यहोवा की सेवा में ज़्यादा कर पाए हैं और बहुत खुश हैं। अमरीका के रहनेवाले जैक को लीजिए। उसने अपना आलीशान घर और कारोबार बेच दिया ताकि अपनी पत्नी के साथ पायनियर सेवा कर सके। वह कहता है, “मेरा एक खूबसूरत घर और ज़मीन-जायदाद थी। इन्हें छोड़ना मेरे लिए आसान नहीं था। लेकिन कई सालों से मैं अपने काम को लेकर परेशान था और मुझे कोई खुशी नहीं मिल रही थी। वहीं मेरी पत्नी जो एक पायनियर है, हमेशा खुश नज़र आती थी। वह कहती थी, ‘मेरा बॉस दुनिया का सबसे अच्छा बॉस है!’ आज मैं भी एक पायनियर हूँ और हम दोनों एक ही बॉस, यहोवा के लिए काम करते हैं!”

प्र87 10/1 पेज 29 पै 5

यहोवा का भय मानो तो आप खुश रहोगे

◆ 30:15, 16​—क्या उद्देश्‍य है इन उदहारणों को देने का?

वे बतलाते हैं कि अति लोभीपन। जोंक अपना पेट खून से भरते हैं, जैसा कि एक लोभी व्यक्‍ति हमेशा अधिक रूपये और अधिकार की लालसा करता है। उसी तरह शीओल (कब्र) कभी तृप्त नहीं होती है बल्की और मृत्यु के शिकार को निगलने को मुंह खोले तैयारी रहती है। एक बांझ स्त्री बच्चे के लिए ‘मांग करती’ है। (उत्पत्ति 30:1) सूखा ग्रस्त भूमि वर्षा का पानी पी लेती है और जल्द फिर सूखी दिखाई देने लगती है। और अग्नी जो उसमें फेंकी हुई चीज़े भस्म करके बाहर आग फेंकती है और अपने पहुँच की सार ज्वलनशील चीज़े चट कर जाती है ऐसी बात लोभी व्यक्‍ति की है। परन्तु जो परमेश्‍वरी बुद्धि से चलते हैं ना की अपना जीवन को इस प्रकार के स्वार्थता से समाप्त कर देते हैं।

प्र12 1/1 पेज 10 पै 4

आमदनी के हिसाब से खर्च चलाना​—यह कैसे किया जा सकता है

खरीदने से पहले बचत कीजिए। हो सकता है यह सोच दकियानूसी लगे, लेकिन तंगी से बचने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि कोई भी सामान खरीदने से पहले, आप उसके लिए बचत करें। ऐसा न करने से आप उधार में फँस सकते हैं, साथ ही आपको इससे जुड़ी और भी कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। जैसे कि ब्याज की ऊँची दरें, जो कि आखिर में उस सामान की कीमत में जुड़ जाती हैं और इस तरह सामान जितने का होता है आप उससे कहीं ज़्यादा पैसे चुका रहे होते हैं। बाइबल में चींटी को “बुद्धिमान” कहा गया है, क्योंकि वह भविष्य के लिए “कटनी के समय अपनी भोजनवस्तु बटोरती” है।​—नीतिवचन 6:6-8; 30:24, 25.

प्र24.06 पेज 13 पै 18

हमेशा यहोवा के तंबू में रहिए!

18 पैसों के बारे में हमारी क्या सोच है, यह जानना बहुत ज़रूरी है। इसलिए खुद से पूछिए: ‘क्या मैं हमेशा पैसों के बारे में ही सोचता रहता हूँ और यह सोचता रहता हूँ कि मैं क्या-क्या खरीदूँगा? अगर मैं किसी से उधार लेता हूँ, तो क्या मैं उसे चुकाने में आनाकानी करता हूँ और यह सोचता हूँ कि उसे तो पैसों की ज़रूरत नहीं है, मैं बाद में चुका दूँगा? क्या पैसा होने की वजह से मैं खुद को दूसरों से बड़ा समझता हूँ और कंजूस बन गया हूँ? क्या मैं अमीर भाई-बहनों के बारे में यह सोचता हूँ कि वे पैसों से प्यार करते हैं? क्या मैं सिर्फ अमीर लोगों के साथ दोस्ती करता हूँ और गरीब लोगों पर कोई ध्यान नहीं देता?’ यहोवा के तंबू में मेहमान होना हम सबके लिए बहुत बड़ी बात है। और अगर हम उसके तंबू में रहना चाहते हैं, तो यह बहुत ज़रूरी है कि हम पैसों से प्यार ना करें। तब यहोवा हमें कभी नहीं छोड़ेगा, ना कभी त्यागेगा।​—इब्रानियों 13:5 पढ़िए।

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प्र09 4/15 पेज 16-17 पै 11-13

सृष्टि यहोवा की बुद्धि का बखान करती है

11 शापान या चट्टानी बिज्जू एक और छोटा जानवर है, जिससे हमें अहम सीख मिलती है। (नीतिवचन 30:26 पढ़िए।) बिज्जू दिखने में एक बड़े खरगोश जैसा होता है लेकिन उसके कान छोटे और गोल होते हैं और उसके पैर भी छोटे होते हैं। बिज्जू चट्टानी इलाकों में रहता है। इसकी नज़र बहुत तेज़ होती है जिस वजह से वह दूर से ही खतरा भाँप लेता है और खबरदार हो जाता है। वह खड़ी चट्टानों में रहता है, इसलिए शिकारी जानवरों से उसे कोई खतरा नहीं होता। बिज्जू की एक और खासियत यह है कि वह हमेशा दूसरे बिज्जुओं के साथ-साथ रहता है। यह उसके लिए ज़रूरी भी है क्योंकि अगर वह अकेला रहे, तो दूसरे जानवरों का शिकार बन सकता है या फिर सर्दियों में ठिठुरकर मर सकता है।

12 चट्टानी बिज्जू हमें क्या सिखाता है? सबसे पहले ध्यान दीजिए कि यह जानवर खुद को खतरे में नहीं डालता। इसके बजाय, वह अपनी पैनी नज़र से शिकारी जानवरों को दूर से ही भाँप लेता है। वह चट्टान की छेदों और दरारों के पास ही घूमता-फिरता है ताकि खतरे की भनक पड़ते ही अपनी जान बचाने के लिए अंदर भाग सके। बिज्जू से हमें यह सीख मिलती है कि हमें आध्यात्मिक खतरों से बचने के लिए हमेशा चौकन्‍ना रहने की ज़रूरत है। क्योंकि शैतान की इस दुनिया में हम मसीहियों के लिए ऐसे कई खतरे हैं जो हमें परमेश्‍वर से दूर ले जा सकते हैं। हमें उन खतरों को भाँपने के लिए सतर्क रहना चाहिए ताकि हम परमेश्‍वर के साथ अपने रिश्‍ते की हिफाज़त कर सकें। प्रेषित पतरस ने मसीहियों को यह सलाह दी: “अपने होश-हवास बनाए रखो, चौकन्‍ने रहो। तुम्हारा दुश्‍मन शैतान, गरजते हुए शेर की तरह इस ताक में घूम रहा है कि किसे निगल जाए।” (1 पत. 5:8) इस मामले में यीशु हमारे लिए एक अच्छी मिसाल है। धरती पर रहते समय वह शैतान की चालों से हमेशा सतर्क रहता था, इसलिए शैतान की लाख कोशिशों के बावजूद वह अपनी वफादारी से नहीं मुकरा।​—मत्ती 4:1-11.

13 आज हम भी सतर्क रहने के लिए क्या कर सकते हैं? एक तरीका है, यहोवा ने हमारी हिफाज़त के लिए जो इंतज़ाम किए हैं, उनका पूरा-पूरा फायदा उठाना। जैसे, परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करना और मसीही सभाओं में हाज़िर होना। (लूका 4:4; इब्रा. 10:24, 25) हमें इन बातों को कभी-भी हलका नहीं समझना चाहिए। इसके अलावा, जिस तरह बिज्जू हमेशा दूसरे बिज्जुओं के साथ-साथ रहता है, उसी तरह हमें लगातार अपनी मंडली के भाई-बहनों के साथ संगति करनी चाहिए ताकि हम “एक-दूसरे का हौसला बढ़ा सकें।” (रोमि. 1:12) यहोवा के किए इन इंतज़ामों का फायदा उठाने से हम यह दिखा रहे होंगे कि हम भी यहोवा के बारे में वैसा ही महसूस करते हैं, जैसा भजनहार दाविद ने महसूस किया था: “यहोवा मेरी चट्टान, और मेरा गढ़ और मेरा छुड़ानेवाला है; मेरा ईश्‍वर, मेरी चट्टान है, जिसका मैं शरणागत हूं, वह मेरी ढाल और मेरी मुक्‍ति का सींग, और मेरा ऊंचा गढ़ है।”​—भज. 18:2.

15-21 सितंबर

पाएँ बाइबल का खज़ाना नीतिवचन 31

एक माँ की प्यार-भरी नसीहत से सीख

प्र11 7/1 पेज 26 पै 7-8

बच्चों के दिल में नैतिक स्तरों के लिए लगाव पैदा कीजिए

सैक्स के बारे में पूरी सच्चाई बताइए। सैक्स के बारे में चेतावनी देना बहुत ज़रूरी है। (1 कुरिंथियों 6:18; याकूब 1:14, 15) लेकिन यह भी सच है कि बाइबल सैक्स को परमेश्‍वर की तरफ से तोहफा कहती है, न कि शैतान के ज़रिए इस्तेमाल होनेवाला कोई फँदा। (नीतिवचन 5:18, 19; श्रेष्ठगीत 1:2) इसलिए अगर आप सिर्फ सैक्स से जुड़े खतरों के बारे में ही बताएँगे तो बच्चे सैक्स के बारे में बाइबल का सही नज़रिया नहीं समझ पाएँगे। फ्रांस की रहनेवाली कॉरीना कहती है: “मेरे माता-पिता ने अनैतिक लैंगिक कामों के बारे में मुझे इतना चिताया कि मेरे दिमाग में सैक्स की एक गलत तसवीर बन गयी।”

ध्यान रखिए कि आप बच्चों को सैक्स के बारे में पूरी सच्चाई बताएँ। मेक्सिको में रहनेवाली एक माँ नाडिया कहती है: “मैंने हमेशा बच्चों से कहा है कि सैक्स, यहोवा परमेश्‍वर की तरफ से इंसानों के लिए एक खूबसूरत तोहफा है और वह चाहता है कि हम इससे खुशी पाएँ। लेकिन ऐसा हमें सिर्फ शादी के रिश्‍ते में ही करना चाहिए। इस तोहफे से हमें खुशी मिलेगी या दुख, यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम इसका इस्तेमाल कैसे करेंगे।”

परिवार के लिए मदद 4 पै 11-13

शराब के बारे में बच्चों से बात कीजिए

इस विषय पर बात करने के लिए पहल कीजिए। ब्रिटेन में रहनेवाला मार्क नाम का एक पिता कहता है, “बच्चों के लिए शराब के बारे में हर चीज़ समझना मुश्‍किल हो सकता है। एक बार जब मैं और मेरा आठ साल का बेटा आराम से बैठकर बात कर रहे थे, तब मैंने उससे पूछा कि शराब पीना सही है या नहीं। ऐसे माहौल में वह खुलकर अपने दिल की बात कह पाया।”

अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा शराब के इस्तेमाल के बारे में अच्छी तरह समझे, तो उससे इस विषय पर बार-बार बात कीजिए। बच्चे की उम्र को ध्यान में रखकर समझाइए। जब आप उससे सड़क के नियमों या सेक्स के बारे में या फिर ऐसी ही किसी दूसरे विषय के बारे में समझाते हैं, तब आप शराब के इस्तेमाल के बारे में भी बात कर सकते हैं।

अच्छी मिसाल बनिए। बच्चे स्पंज की तरह होते हैं। उनके आस-पास जो कुछ होता है, उसे वे जल्दी से सोख लेते हैं। रिसर्च से पता चला है कि बच्चों पर सबसे ज़्यादा असर उनके माता-पिता का होता है। इसलिए अगर आप तनाव से राहत पाने के लिए अकसर शराब पीते हैं, तो इससे आपके बच्चे को लग सकता है कि शराब से हर परेशानी दूर हो सकती है। इस वजह से ध्यान रखिए कि आप बच्चों के लिए एक अच्छी मिसाल बनें और सोच-समझकर शराब का इस्तेमाल करें।

सज17.6 पेज 9 पै 5

बच्चों को नम्र बनना सिखाइए

दूसरों की सेवा करना सिखाइए। पवित्र शास्त्र में लिखा है, “लेने से ज़्यादा खुशी देने में है।” (प्रेषितों 20:35) दूसरों को देने का मतलब उनकी मदद या सेवा करना भी होता है। आप यह बात बच्चे के दिल में कैसे बिठा सकते हैं? आप उसके साथ बैठकर उन लोगों के नाम लिख सकते हैं, जिन्हें कोई मदद चाहिए। जैसे खरीदारी करने, कहीं आने-जाने या घर की मरम्मत करने में। फिर जब आप यह काम करने जाएँ, तो बच्चे को साथ लेकर जाइए। जब वह देखेगा कि दूसरों की मदद करने से आपको कितनी खुशी मिलती है, तो वह भी दूसरों की सेवा करने के लिए आगे आएगा। बच्चे को नम्रता सिखाने का इससे बढ़िया तरीका और कोई नहीं हो सकता कि आप खुद नम्र बनें।​—पवित्र शास्त्र से सलाह: लूका 6:38.

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प्र25.01 पेज 13 पै 16

पतियो, अपनी पत्नी का आदर कीजिए

16 कदर ज़ाहिर कीजिए। अगर एक पति अपनी पत्नी का आदर करता है, तो वह उसे बताएगा कि वह उसकी कितनी कदर करता है और उसका हौसला भी बढ़ाएगा। जैसे वह इस बात के लिए कदर ज़ाहिर करेगा कि उसकी पत्नी उसका साथ देने के लिए कितना कुछ करती है। (कुलु. 3:15) जब एक पति सच्चे दिल से अपनी पत्नी की तारीफ करेगा, तो उसकी पत्नी को बहुत अच्छा लगेगा। उसे एहसास होगा कि उसका पति उसकी परवाह करता है, उससे प्यार करता है और उसका आदर करता है।​—नीति. 31:28.

22-28 सितंबर

पाएँ बाइबल का खज़ाना सभोपदेशक 1-2

अगली पीढ़ी को सिखाते रहिए

प्र17.01 पेज 27-28 पै 3-4

“वे बातें विश्‍वासयोग्य आदमियों को सौंप दे”

3 हमें यहोवा की सेवा करना बहुत अच्छा लगता है और उसकी सेवा में हमें जो काम मिलता है, वह किसी खज़ाने से कम नहीं। हममें से कई लोगों को अपना काम इतना पसंद है कि हम इसे हमेशा तक करते रहना चाहते हैं। लेकिन अफसोस, जब लोगों की उम्र ढल जाती है तो वे उतना नहीं कर पाते जितना जवानी में करते थे। (सभो. 1:4) इससे यहोवा के सेवकों के सामने नयी मुश्‍किलें खड़ी होती हैं। आज प्रचार काम बढ़ता ही जा रहा है और यहोवा का संगठन नयी टेकनॉलजी का इस्तेमाल करके ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों तक खुशखबरी पहुँचा रहा है। लेकिन कभी-कभी बुज़ुर्ग मसीहियों के लिए ये नए-नए तरीके सीखना मुश्‍किल हो सकता है। (लूका 5:39) यही नहीं, ढलती उम्र की वजह से आम तौर पर इंसान की ताकत और दमखम कम हो जाता है। (नीति. 20:29) इसलिए बुज़ुर्ग मसीही, जवान भाइयों को यहोवा के संगठन में और भी ज़िम्मेदारी सँभालने के लिए प्रशिक्षण देते हैं। इस तरह वे उनके लिए अपना प्यार ज़ाहिर करते हैं और इससे कई फायदे भी होते हैं।​—भजन 71:18 पढ़िए।

4 ज़िम्मेदारी के पद पर काम करनेवाले भाइयों के लिए यह हमेशा आसान नहीं होता कि वे किसी जवान भाई को ज़िम्मेदारी दें। कुछ भाई यह सोचकर परेशान हो सकते हैं कि उन्हें उस काम से हाथ धोना पड़ेगा जिससे उन्हें बहुत लगाव है। वे शायद यह सोचकर बहुत दुखी भी हो जाएँ। या फिर उन्हें यह चिंता हो सकती है कि अगर वे किसी काम की निगरानी खुद नहीं करेंगे, तो वह काम ठीक से नहीं होगा। यह भी हो सकता है कि उन्हें लगे कि उनके पास दूसरों को प्रशिक्षण देने का समय नहीं है। वहीं दूसरी तरफ, जब जवान भाइयों को और ज़िम्मेदारी नहीं मिलती तो उन्हें सब्र रखना चाहिए।

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इंसाइट “सभोपदेशक” पै 1

“सभोपदेशक”

सभोपदेशक किताब का इब्रानी नाम है कोहेलेथ, जिसका मतलब है “उपदेशक, सभा बुलानेवाला या लोगों को इकट्ठा करनेवाला।” राजा सुलैमान को एक “उपदेशक” या “लोगों को इकट्ठा करनेवाला” इसलिए कहा गया है, क्योंकि उसकी ज़िम्मेदारी थी कि वह इसराएल के लोगों को परमेश्‍वर की उपासना करने के लिए इकट्ठा करे। (सभ 1:1, फु., 12) उसे लोगों को यहोवा के वफादार बने रहने में मदद देना था और अपनी मिसाल से उन्हें सच्ची उपासना करना सिखाना था। (1रा 8:1-5, 41-43, 66) अगर वह अपनी यह ज़िम्मेदारी निभाता तो वह एक अच्छा राजा माना जाता। (2रा 16:1-4, 18:1-6) पर सुलैमान पहले से ही लोगों को मंदिर में यहोवा की उपासना करने के लिए इकट्ठा कर चुका था। इसलिए सभोपदेशक किताब के ज़रिए उसने लोगों को बढ़ावा दिया कि वे दुनिया के बेकार कामों के बजाय ऐसे काम करने पर ध्यान लगाएँ जिनसे यहोवा की महिमा होती है।

29 सितंबर–5 अक्टूबर

पाएँ बाइबल का खज़ाना सभोपदेशक 3-4

तीन धागों से बटी अपनी डोरी को मज़बूत कीजिए

परिवार के लिए मदद 10 पै 2-8

टेकनॉलजी का सही इस्तेमाल कैसे करें?

● अगर मोबाइल या टैबलेट का सही इस्तेमाल किया जाए, तो इससे पति-पत्नी को काफी फायदा हो सकता है। जैसे, जब पति-पत्नी दिन भर एक-दूसरे से दूर रहते हैं, तो वे मोबाइल के ज़रिए बात कर सकते हैं।

“एक छोटे-से मैसेज से भी बहुत फर्क पड़ता है। जैसे, ‘आई लव यू’ या ‘तुम्हारी याद आ रही है।’”​—जॉनाथन।

● अगर मोबाइल या टैबलेट का सही इस्तेमाल न किया जाए, तो इससे पति-पत्नी का रिश्‍ता कमज़ोर हो सकता है। जैसे, कुछ लोग दिन-रात मोबाइल पर लगे रहते हैं और इस वजह से वे अपने साथी को समय नहीं दे पाते।

“कई बार ऐसा होता है कि मेरे पति मुझसे बात करना चाहते हैं, पर नहीं कर पाते। क्योंकि मैं अपने फोन में लगी रहती हूँ।”​—जूलिसा।

● कुछ लोग कहते हैं कि वे अपनी पत्नी या पति से बात करने के साथ-साथ मोबाइल का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन समाज के बारे में खोजबीन करनेवाली शेरी टर्कल कहती है, ‘लोगों को लगता है कि वे एक वक्‍त पर कई काम कर सकते हैं। मगर यह सच नहीं। क्योंकि एक-साथ बहुत सारे काम करने से काम बनते नहीं, बिगड़ जाते हैं।’

“जब मैं अपने पति से बात करती हूँ, तो मुझे खुशी होती है। लेकिन बात करते-करते जब वे कुछ और काम करने लगते हैं, तो मुझे अच्छा नहीं लगता। ऐसा लगता है मानो मेरे वहाँ होने या न होने से उन्हें कोई फर्क ही नहीं पड़ता।”​—सारा।

सौ बात की एक बात: आप जिस तरह मोबाइल या टैबलेट का इस्तेमाल करेंगे, उससे या तो आपका रिश्‍ता मज़बूत होगा या फिर कमज़ोर।

प्र23.05 पेज 23-24 पै 12-14

“याह की लपटें” बुझने मत दीजिए

12 पति-पत्नियो, आप अक्विला और प्रिस्किल्ला से क्या सीख सकते हैं? सोचिए कि आप दोनों को क्या-क्या काम करने होते हैं। क्या उनमें से कुछ काम आप साथ मिलकर कर सकते हैं? अक्विला और प्रिस्किल्ला साथ में प्रचार करते थे। क्या आप अकसर साथ मिलकर प्रचार करते हैं? अक्विला और प्रिस्किल्ला साथ में काम भी करते थे। शायद आप और आपका साथी एक-साथ नौकरी ना करते हों। पर क्या आप घर के काम एक-साथ कर सकते हैं? (सभो. 4:9) जब पति-पत्नी किसी काम में एक-दूसरे का हाथ बँटाते हैं, तो उनके पास बात करने का अच्छा मौका होता है और वे एक-दूसरे के और भी करीब महसूस करते हैं। ज़रा भाई रॉबर्ट और बहन लिंडा के उदाहरण पर ध्यान दीजिए, जिनकी शादी को 50 साल से भी ज़्यादा हो गए हैं। भाई रॉबर्ट कहते हैं, “सच कहूँ तो हमारे पास इतना समय नहीं होता कि हम एक-दूसरे के साथ फुरसत के पल बिता पाएँ। पर जब मैं बरतन धोता हूँ और मेरी पत्नी पास खड़े होकर उन्हें कपड़े से पोंछती है या जब मैं बगीचे में काम करता हूँ और वह आकर मेरी मदद करती है, तो मुझे बहुत अच्छा लगता है। साथ मिलकर काम करने से हम एक-दूसरे के करीब महसूस करते हैं और एक-दूसरे के लिए हमारा प्यार बढ़ जाता है।”

13 पति-पत्नियो, याद रखिए कि सिर्फ साथ होने से आप एक-दूसरे के करीब नहीं आ जाएँगे। ब्राज़ील में रहनेवाली एक शादीशुदा बहन बताती हैं, “कभी-कभी हमें लग सकता है कि हम एक छत के नीचे रह रहे हैं, तो एक-साथ वक्‍त बिता रहे हैं। पर असल में ऐसा सोचकर हम खुद को धोखा दे रहे होंगे, क्योंकि आज इतनी सारी ध्यान भटकानेवाली चीज़ें हैं कि हम साथ रहकर भी साथ नहीं होते। मुझे एहसास हुआ कि एक-साथ होना ही काफी नहीं है। मुझे अपने पति पर पूरा ध्यान भी देना है।” गौर कीजिए कि भाई ब्रूनो और उनकी पत्नी टाईज़ कैसे इस बात का खयाल रखते हैं कि वे एक-दूसरे पर ध्यान दें। भाई बताते हैं, “जब हम साथ होते हैं, तो हम अपने फोन एक तरफ रख देते हैं ताकि एक-दूसरे के साथ अच्छा समय बिता पाएँ।”

14 हो सकता है, आपको एक-दूसरे के साथ वक्‍त बिताना अच्छा ना लगता हो। शायद आपकी पसंद-नापसंद अलग हो या आप दोनों एक-दूसरे की बातों से चिढ़ जाते हों। ऐसे में आप क्या कर सकते हैं? ज़रा एक बार फिर आग के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। आग जलाने पर तुरंत ही उससे लपटें नहीं उठने लगतीं। हमें धीरे-धीरे उसमें लकड़ियाँ डालनी होती हैं, पहले छोटी और फिर बड़ी। उसी तरह क्यों ना पहले हर दिन कुछ पल साथ बिताएँ? ध्यान रखिए कि आप ऐसा कोई काम ना करें जिससे आपके साथी को गुस्सा आए, बल्कि कुछ ऐसा करने की कोशिश कीजिए जिसमें आप दोनों को मज़ा आए। (याकू. 3:18) इस तरह जब आप थोड़ा-थोड़ा वक्‍त बिताकर शुरूआत करेंगे, तो शायद आपके प्यार की लौ फिर से जलने लगे।

प्र23.05 पेज 21 पै 3

“याह की लपटें” बुझने मत दीजिए

3 पति-पत्नियो, अगर आप चाहते हैं कि आपकी शादीशुदा ज़िंदगी में “याह की लपटें” ना बुझें, तो आप दोनों को यहोवा के साथ अपना रिश्‍ता मज़बूत करना होगा। इससे आपका आपसी रिश्‍ता भी मज़बूत होगा। वह कैसे? जब एक पति-पत्नी यहोवा के साथ अपने रिश्‍ते को अहमियत देते हैं, तो वे आसानी से उसकी सलाह मान पाते हैं। इस तरह वे काफी हद तक ऐसी समस्याओं से बच पाते हैं जिनसे उनका प्यार ठंडा पड़ सकता है। और अगर ऐसी समस्याएँ आती भी हैं, तो वे उन्हें सुलझा पाते हैं। (सभोपदेशक 4:12 पढ़िए।) इसके अलावा, जिनका यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्‍ता होता है, वे उसके जैसा बनने की कोशिश करते हैं। यहोवा की तरह वे सब्र रखते हैं, दूसरों को माफ कर देते हैं और सबके साथ प्यार से पेश आते हैं। (इफि. 4:32–5:1) इस वजह से उनके बीच प्यार की लौ जलती रहती है। बहन लीना की शादी को 25 साल से भी ज़्यादा हो चुके हैं। वे कहती हैं, “जिस व्यक्‍ति का यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्‍ता होता है, उससे प्यार करना और उसका आदर करना आसान होता है।”

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इंसाइट “प्यार” पै 39

“प्यार”

“प्यार करने का समय”: जब यहोवा किसी व्यक्‍ति को प्यार के लायक नहीं समझता या जब वह व्यक्‍ति बुरे काम करने में लगा रहता है, तो उससे प्यार नहीं किया जाता। वैसे तो यहोवा सभी इंसानों से प्यार करता है, लेकिन जब कोई उससे नफरत करता है, तो उस व्यक्‍ति से “प्यार करने का समय” खत्म हो जाता है। यहोवा परमेश्‍वर और यीशु मसीह, दोनों नेकी से प्यार करते हैं और बुराई से नफरत। (भज 45:7; इब्र 1:9) जो लोग परमेश्‍वर से नफरत करते हैं, उन्हें प्यार दिखाने का कोई फायदा नहीं है क्योंकि वे परमेश्‍वर के प्यार का सबूत देखकर भी उससे प्यार नहीं करेंगे। (भज 139:21, 22; यश 26:10) इसलिए यह सही है कि परमेश्‍वर उनसे नफरत करता है और उसने एक समय तय किया है जब वह उन्हें सज़ा देगा।​—भज 21:8, 9; सभ 3:1, 8.

6-12 अक्टूबर

पाएँ बाइबल का खज़ाना सभोपदेशक 5-6

हम अपने महान परमेश्‍वर का गहरा आदर कैसे करते हैं?

प्र08 8/15 पेज 15-16 पै 17-18

गरिमा दिखाकर यहोवा का आदर कीजिए

17 हमें उपासना में यहोवा को आदर देने पर खास ध्यान देना चाहिए। सभोपदेशक 5:1 कहता है: “जब तू परमेश्‍वर के भवन में जाए, तब सावधानी से चलना।” मूसा और यहोशू को अपनी जूतियाँ उतारने की आज्ञा दी गयी थी, क्योंकि वे पवित्र जगह पर खड़े थे। (निर्ग. 3:5; यहो. 5:15) उनका जूतियाँ उतारना श्रद्धा या आदर की निशानी थी। इस्राएली याजकों से यह माँग की गयी थी कि वे ‘अपने खुले अंगों को ढकने’ के लिए सन के कपड़े से बना जांघिया पहनें। (निर्ग. 28:42, 43, NHT) यह माँग इसलिए की गयी थी ताकि वेदी पर बलि या धूप चढ़ाते वक्‍त उनकी नग्नता ज़ाहिर न हो, जो यहोवा की नज़र में एक घिनौनी बात थी। लेकिन याजकों के अलावा, उनके परिवार के हर सदस्य को भी परमेश्‍वर के स्तरों के मुताबिक गरिमा ज़ाहिर करनी थी।

18 यहोवा के उपासक होने के नाते हमें अपनी ज़िंदगी के हर पहलू में गरिमा दिखानी चाहिए। ऐसा करने से बदले में हमें भी आदर और सम्मान मिलता है। हम जो गरिमा ज़ाहिर करते हैं, वह महज़ एक दिखावा नहीं होनी चाहिए। और ना ही यह एक पोशाक की तरह होनी चाहिए, जिसे जब चाहा पहन लिया और जब चाहा उतार दिया। हम इंसानों को दिखाने के लिए नहीं, बल्कि दिलों को जाँचनेवाले हमारे परमेश्‍वर को खुश करने के लिए गरिमा ज़ाहिर करते हैं। (1 शमू. 16:7; नीति. 21:2) इसलिए गरिमा हमारी शख्सियत का अटूट हिस्सा बन जानी चाहिए। और हमारे बर्ताव, हमारे सोच-विचार, दूसरों के साथ हमारे रिश्‍ते, यहाँ तक कि खुद के बारे में हमारे नज़रिए से भी यह गरिमा ज़ाहिर होनी चाहिए। जी हाँ, हमारी बातों और कामों से हर समय गरिमा झलकनी चाहिए। इसलिए जब हमारे चालचलन, पहनावे और बनाव-श्रृंगार की बात आती है, तो हम पौलुस के इन शब्दों को दिल से मानते हैं: “हम किसी बात में ठोकर खाने का कोई भी अवसर नहीं देते, कि हमारी सेवा पर कोई दोष न आए। परन्तु हर बात से परमेश्‍वर के सेवकों की नाईं अपने सद्‌गुणों को प्रगट करते हैं।” (2 कुरि. 6:3, 4) हम “सब बातों में हमारे उद्धारकर्त्ता परमेश्‍वर के उपदेश को शोभा” देते हैं।​—तीतु. 2:10.

प्र09 11/15 पेज 11 पै 21

बाइबल के अध्ययन से अपनी प्रार्थनाएँ निखारिए

21 यीशु भी गहरे विस्मय और पूरे विश्‍वास के साथ प्रार्थना करता था। मिसाल के लिए, लाज़र को ज़िंदा करने से पहले, “यीशु ने आँखें उठाकर स्वर्ग की तरफ देखा और कहा: ‘पिता, मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ कि तू ने मेरी सुनी है। मैं जानता था कि तू हमेशा मेरी सुनता है।’” (यूह. 11:41, 42) क्या आपकी प्रार्थनाओं में ऐसा विस्मय और विश्‍वास ज़ाहिर होता है? यीशु की सिखायी आदर्श प्रार्थना का अध्ययन कीजिए, जो विस्मय से प्रार्थना करने की एक बढ़िया मिसाल है। उसमें आप पाएँगे कि यीशु ने खासकर यहोवा के नाम के पवित्र किए जाने, उसके राज के आने और उसकी मरज़ी पूरी होने के बारे में प्रार्थना की। (मत्ती 6:9, 10) अब ज़रा अपनी प्रार्थनाओं के बारे में सोचिए। क्या वे दिखाती हैं कि आपको यहोवा के राज में, उसकी मरज़ी पूरी करने और उसके नाम के पवित्र किए जाने में गहरी दिलचस्पी है? आपकी प्रार्थनाओं में यह ज़ाहिर होना चाहिए।

प्र17.04 पेज 6 पै 12

“तू जो भी मन्‍नत माने उसे पूरा करना”

12 बपतिस्मा बस एक शुरूआत है। इसके बाद भी हमें अपने समर्पण के मुताबिक जीना चाहिए और वफादारी से यहोवा की सेवा करते रहना चाहिए। इसलिए हमें खुद से ये सवाल करने चाहिए: ‘बपतिस्मे के बाद से यहोवा के साथ मेरा रिश्‍ता कितना मज़बूत हुआ है? क्या मैं अभी-भी तन-मन से उसकी सेवा कर रहा हूँ? (कुलु. 3:23) क्या मैं अकसर प्रार्थना करता हूँ? हर दिन बाइबल पढ़ता हूँ? क्या मैं बिना नागा मंडली की हर सभा में हाज़िर होता हूँ? क्या मैं लगातार प्रचार में जाता हूँ? या क्या इन कामों में मेरा जोश पहले से कम हो गया है?’ प्रेषित पतरस ने समझाया था कि हम यहोवा की सेवा में ठंडे पड़ने से कैसे बच सकते हैं। उसने कहा था कि हमें अपने विश्‍वास के साथ ज्ञान, धीरज और परमेश्‍वर की भक्‍ति को बढ़ाते जाना है।​—2 पतरस 1:5-8 पढ़िए।

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प्र20.09 पेज 31 पै 3-5

आपने पूछा

सभोपदेशक 5:8 में ऐसे अधिकारी के बारे में बताया गया है जो गरीबों पर ज़ुल्म करता है और उनके साथ अन्याय करता है। उस अधिकारी को याद रखना चाहिए कि उससे भी ऊपर एक सरकारी अधिकारी है जो उसकी करतूतें देख रहा है। और उस बड़े अधिकारी के ऊपर भी कुछ लोग होते हैं जो उससे ज़्यादा अधिकार रखते हैं। अफसोस की बात है कि ज़्यादातर अधिकारी, छोटे से लेकर बड़े तक सब भ्रष्ट होते हैं और आम लोगों को उनके हाथों ज़ुल्म सहना पड़ता है।

अगर हम कभी अन्याय सहते हैं और हमें अधिकारियों से न्याय नहीं मिलता, तो हम इस बात से दिलासा पा सकते हैं कि यहोवा उन ‘ऊँचे अधिकारियों को देख रहा है।’ हम अपना बोझ यहोवा पर डाल सकते हैं और उससे बिनती कर सकते हैं कि वह हमारी मदद करे। (भज. 55:22; फिलि. 4:6, 7) हम जानते हैं कि “यहोवा की आँखें सारी धरती पर इसलिए फिरती रहती हैं कि वह उन लोगों की खातिर अपनी ताकत दिखाए जिनका दिल उस पर पूरी तरह लगा रहता है।”​—2 इति. 16:9.

तो जैसा हमने देखा, सभोपदेशक 5:8 में इंसानी अधिकारियों के बारे में एक हकीकत बतायी गयी है। वह यह कि हर अधिकारी के ऊपर कोई-न-कोई होता है जो उससे ज़्यादा अधिकार रखता है। इस आयत से हमें एक और ज़रूरी बात पता चलती है। वह यह कि यहोवा ही सबसे बड़ा अधिकारी है। वह परम-प्रधान है। आज वह अपने बेटे यीशु मसीह के ज़रिए हुकूमत कर रहा है। वह सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर है और सबकुछ देख रहा है। हम भरोसा रख सकते हैं कि वह और उसका बेटा कभी अन्याय नहीं करेंगे।

13-19 अक्टूबर

पाएँ बाइबल का खज़ाना सभोपदेशक 7-8

‘मातमवाले घर में जाओ’

इंसाइट “मातम मनाना” पै 9

“मातम मनाना”

मातम मनाने का समय: सभोपदेशक 3:1, 4 में लिखा है, “रोने का समय और हँसने का समय” होता है, “छाती पीटने का समय और नाचने का समय” होता है। सभी इंसानों को एक-न-एक-दिन मरना है, इसलिए एक बुद्धिमान व्यक्‍ति का मन जश्‍न की जगह के बजाय “मातमवाले घर” पर लगा रहता है। (सभ 7:2, 4. नीत 14:13 से तुलना करें।) वह दूसरों को मातम मनाते देखकर उन्हें दिलासा देता है और उनके गम में शामिल होता है, ना कि मौज-मस्ती करने के बारे में सोचता है। इससे वह याद रख पाता है कि एक दिन उसकी भी मौत हो सकती है और उसे इस तरह जीना चाहिए कि वह परमेश्‍वर के सामने अच्छा नाम कमा सके।

प्र19.06 पेज 23-24 पै 15

चिंताओं का सामना करने में दूसरों की मदद कीजिए

15 भाई विलियम पर ध्यान दीजिए, जिसकी पत्नी की कुछ साल पहले मौत हो गयी थी। वह कहता है, “जब लोग मेरी पत्नी को याद करते हैं और उसके बारे में कुछ अच्छी बातें बताते हैं, तो मुझे बहुत अच्छा लगता है। इससे मुझे एहसास होता है कि उन्हें मेरी पत्नी से लगाव था और वे उसकी कितनी इज़्ज़त करते थे। उनकी बातों से मेरे मन को चैन मिलता है, क्योंकि मेरी पत्नी मेरे लिए बहुत अनमोल थी और वह मेरी ज़िंदगी का एक बड़ा हिस्सा थी। मैं उनकी इस मदद के लिए शुक्रगुज़ार हूँ।” बीयांका नाम की एक विधवा बहन कहती है, “दुख की इस घड़ी में कुछ भाई-बहनों ने मेरे साथ प्रार्थना की और एक-दो आयतें दिखाकर मेरा हौसला बढ़ाया। इससे मुझे बहुत दिलासा मिला। जब मैं अपने पति के बारे में बात करती थी और लोग ध्यान से सुनते थे या जब वे मेरे पति के बारे में बात करते थे, तो मुझे अच्छा लगता था।”

प्र17.07 पेज 16 पै 16

“रोनेवालों के साथ रोओ”

16 प्रार्थना करके हम गम सहनेवाले भाई-बहनों की मदद कर सकते हैं। हम या तो उनके साथ या उनके लिए प्रार्थना कर सकते हैं। आप शायद उनके साथ प्रार्थना करने से झिझकें, इस डर से कि कहीं आप रो न पड़ें। लेकिन आपकी प्रार्थना उनके दिल को छू सकती है और उन्हें दिलासा दे सकती है। डालीन कहती है, “कभी-कभी जब बहनें मुझसे मिलने आती हैं तो मैं उन्हें प्रार्थना करने के लिए कहती हूँ। जैसे ही वे प्रार्थना शुरू करती हैं, उनका गला भर आता है। लेकिन फिर वे खुद को सँभाल लेती हैं और दिल छू लेनेवाली प्रार्थना करती हैं। ऐसा कई बार हुआ है। उन बहनों का मज़बूत विश्‍वास, प्यार और परवाह देखकर मेरा विश्‍वास मज़बूत हुआ है।”

प्र17.07 पेज 16 पै 17-19

“रोनेवालों के साथ रोओ”

17 एक व्यक्‍ति को गम से उबरने में कितना वक्‍त लगेगा, यह कहा नहीं जा सकता। जब उसके अज़ीज़ की मौत होती है तो शुरू-शुरू में कई दोस्त और रिश्‍तेदार उसे दिलासा देने आते हैं। कुछ समय बाद वे सब अपने-अपने कामों में व्यस्त हो जाते हैं, मगर उसे अभी-भी दिलासे की ज़रूरत होती है। इसलिए उसकी मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहिए। बाइबल बताती है, “सच्चा दोस्त हर समय प्यार करता है और मुसीबत की घड़ी में भाई बन जाता है।” (नीति. 17:17) हमें गम सहनेवालों को तब तक दिलासा देते रहना चाहिए जब तक उन्हें हमारी ज़रूरत हो।​—1 थिस्सलुनीकियों 3:7 पढ़िए।

18 कभी-कभी ऐसा होता है कि कुछ तसवीरों, संगीत, खुशबू, आवाज़ या कामों से एक व्यक्‍ति को अपने अज़ीज़ की याद आए और उसके घाव हरे हो जाए। ऐसा तब भी होता है जब कोई मौसम या कुछ खास मौके आते हैं। जब एक मसीही पहली बार अपने जीवन-साथी के बगैर कोई काम करता है जैसे, किसी सम्मेलन या स्मारक में जाता है तो यह उसके लिए बहुत मुश्‍किल वक्‍त हो सकता है। एक भाई कहता है, “मेरी पत्नी के गुज़रने के बाद जब हमारी शादी की सालगिरह पास आ रही थी, तो मुझे लगा कि मैं यह दिन उसके बगैर कैसे गुज़ारूँगा। लेकिन फिर कुछ भाई-बहनों ने मेरे लिए एक कार्यक्रम रखा और मेरे करीबी दोस्तों को बुलाया ताकि मैं इस मौके पर अकेला न रहूँ।”

19 गम सहनेवालों को दूसरे मौकों पर भी दिलासे की ज़रूरत होती है। यूनिया कहती है, “जब भाई-बहन किसी खास मौके का इंतज़ार नहीं करते बल्कि कभी-भी घर आकर मेरे साथ वक्‍त बिताते हैं और मेरी मदद करते हैं तो मुझे बहुत खुशी होती है। उनके साथ बिताए ये पल बहुत कीमती हैं और इससे मुझे बहुत दिलासा मिला है।” यह सच है कि हम ऐसे लोगों का गम या अकेलापन पूरी तरह दूर नहीं कर सकते, लेकिन हम अलग-अलग तरीकों से मदद करके उन्हें दिलासा दे सकते हैं। (1 यूह. 3:18) गैबी कहती है, “मैं उन प्राचीनों के लिए यहोवा का बहुत एहसान मानती हूँ जिन्होंने मुश्‍किल घड़ी में मेरा साथ दिया। उनका प्यार और परवाह देखकर मुझे ऐसा लगा जैसे यहोवा मेरे लिए प्यार और परवाह दिखा रहा है।”

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प्र23.03 पेज 31 पै 18

“इसी से सब जानेंगे कि तुम मेरे चेले हो”

18 शायद कई बार हमें लगे कि जिस भाई ने हमें चोट पहुँचायी है, उससे हमें बात करनी चाहिए। पर ऐसा करने से पहले हमें इस बारे में सोचना चाहिए, ‘जो कुछ हुआ था, क्या उस बारे में मुझे सबकुछ पता है?’ (नीति. 18:13) ‘कहीं ऐसा तो नहीं कि उससे अनजाने में गलती हो गयी?’ (सभो. 7:20) ‘क्या मुझसे भी कभी ऐसी गलती हुई है?’ (सभो. 7:21, 22) ‘अगर मैं उससे जाकर बात करूँ, तो कहीं ऐसा तो नहीं कि बात बनने के बजाय और बिगड़ जाए?’ (नीतिवचन 26:20 पढ़िए।) जब हम समय निकालकर इन सवालों के बारे में सोचेंगे, तो उस भाई के लिए हमारे दिल में और भी प्यार बढ़ेगा। और फिर हम शायद उस भाई की गलती को भुला पाएँ और उसे माफ कर पाएँ।

20-26 अक्टूबर

पाएँ बाइबल का खज़ाना सभोपदेशक 9-10

समस्याओं के बारे में सही नज़रिया रखिए

प्र13 8/15 पेज 14 पै 20-21

कभी-भी “यहोवा से चिढ़ने” मत लगिए

20 हमारी समस्याओं की असली वजह याद रखिए। हमें इस बात का एहसास होना चाहिए कि हमारी कुछ समस्याओं के लिए हम खुद ज़िम्मेदार होते हैं। (गला. 6:7) इनके लिए हमें यहोवा को कसूरवार नहीं ठहराना चाहिए। क्यों? एक मिसाल लीजिए। अगर एक ड्राइवर सड़क के मोड़ पर भी अपनी गाड़ी तेज़ रफ्तार से मोड़ेगा, तो क्या होगा? उसकी गाड़ी कहीं टकरा सकती है। इसके लिए क्या इस ड्राइवर का कार बनानेवाली कंपनी को दोष देना सही होगा? नहीं। उसी तरह, यहोवा ने हमें अपने फैसले खुद करने की आज़ादी दी है। मगर साथ ही, उसने हमें यह भी सिखाया है कि अच्छे फैसले कैसे लिए जा सकते हैं। इसलिए अगर हम कोई गलती करते हैं, तो हमें यहोवा को दोष नहीं देना चाहिए।

21 मगर हमारी सारी मुसीबतें हमारी अपनी गलती या गलत कामों का नतीजा नहीं होतीं। कुछ मुसीबतें हम पर “समय और संयोग” की वजह से आती हैं। (सभो. 9:11) इसके अलावा, यह भी कभी मत भूलिए कि असल में शैतान इब्‌लीस इस दुनिया में फैली बुराई के लिए ज़िम्मेदार है। (1 यूह. 5:19; प्रका. 12:9) हमारा असली दुश्‍मन शैतान है, न कि यहोवा!​—1 पत. 5:8.

प्र19.09 पेज 4-5 पै 10

यहोवा अपने नम्र सेवकों को अनमोल समझता है

10 नम्र रहने का एक और फायदा यह है कि हमारे लिए मुश्‍किलों का सामना करना थोड़ा-बहुत आसान हो जाता है। कभी-कभी हमारे साथ या किसी और के साथ कुछ ऐसा होता है जिससे हमें लगे, ‘यह तो सरासर नाइंसाफी है!’ इस बारे में बुद्धिमान राजा सुलैमान ने कहा था, “मैंने देखा है कि नौकर घोड़े पर सवार होते हैं जबकि हाकिम नौकर-चाकरों की तरह पैदल चलते हैं।” (सभो. 10:7) उसकी बात कितनी सच है! अकसर देखा जाता है कि जिन लोगों में बहुत हुनर होता है, उन्हें अपने काम का श्रेय नहीं मिलता जबकि जिनमें कोई खास हुनर नहीं होता, उन्हें खूब आदर-सम्मान मिलता है। लेकिन जैसा सुलैमान ने कहा, इस तरह की बातों के बारे में सोचकर हमें बहुत ज़्यादा परेशान नहीं होना चाहिए। (सभो. 6:9) अगर हम नम्र हैं, तो हम इस बात को मानेंगे कि ज़िंदगी में कुछ बातें ऐसी हैं जिन्हें हम बदल नहीं सकते। इस तरह हम मुश्‍किलों का धीरज से सामना कर पाएँगे।

प्र11 10/15 पेज 8 पै 1-2

क्या आपका मनोरंजन सही है?

यहोवा न सिर्फ यह चाहता है कि हम ज़िंदगी जीएँ बल्कि यह भी कि हम उसका लुत्फ उठाएँ। बाइबल की कई आयतें इस बात की ओर इशारा करती हैं। उदाहरण के लिए भजन 104:14, 15 से पता चलता है कि यहोवा “भोजन-वस्तुएं उत्पन्‍न करता है, और दाखमधु जिस से मनुष्य का मन आनन्दित होता है, और तेल जिस से उसका मुख चमकता है, और अन्‍न जिस से वह सम्भल जाता है।” अनाज, तेल और मदिरा परमेश्‍वर की ही देन है और ये हमारे लिए ज़रूरी हैं। लेकिन बाइबल यह भी कहती है कि मदिरा से “मन आनन्दित होता है।” इससे पता चलता है कि परमेश्‍वर ने हमें बस ज़िंदा रहने के लिए ज़रूरी चीज़ें ही नहीं दीं बल्कि ऐसी चीज़ें भी दी हैं, जो ज़िंदगी को और मज़ेदार बनाती हैं। (सभो. 9:7; 10:19) जी हाँ, यहोवा चाहता है कि हम खुश रहें और हमारा मन ‘आनंद से भरा’ रहे।​—प्रेषि. 14:16, 17.

2 इसलिए जब हम कभी-कभार “आकाश में उड़नेवाले पंछियों” और “मैदान में उगनेवाले सोसन के फूलों” को निहारते हैं या कुछ और मौज-मस्ती के लिए वक्‍त निकालते हैं, तो हमें अफसोस नहीं करना चाहिए कि हमने वक्‍त बरबाद कर दिया। (मत्ती 6:26, 28; भज. 8:3, 4) खुशियों से भरी ज़िंदगी “परमेश्‍वर का दान है।” (सभो. 3:12, 13) फुरसत और आराम के पल भी परमेश्‍वर के इस दान का हिस्सा हैं। अगर हम यह ध्यान रखें तो हम इस तोहफे का ऐसा इस्तेमाल कर पाएँगे जिससे परमेश्‍वर को खुशी मिलेगी।

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इंसाइट “गपशप, झूठी बातें फैलाकर बदनाम करना” पै 4, 8

“गपशप, झूठी बातें फैलाकर बदनाम करना”

किसी के बारे में गपशप करने से एक व्यक्‍ति उसके बारे में झूठी बातें करने और उसे बदनाम करने लग सकता है। नतीजा, बदनाम करनेवाले को नुकसान पहुँचता है। सभोपदेशक 10:12-14 में लिखी बात कितनी सच है, “मूर्ख के होंठ उसे बरबाद कर देते हैं। मूर्ख मूर्खता की बातों से शुरूआत करता है और पागलपन की बातों से अंत करता है, जिससे मुसीबत खड़ी हो जाती है। फिर भी वह बोलने से बाज़ नहीं आता।”

कभी-कभी लग सकता है कि गपशप करने में कुछ गलत नहीं है। लेकिन देखते-ही-देखते हम किसी के बारे में झूठी बातें फैलाकर उसे बदनाम कर सकते हैं। इससे हमेशा नुकसान होता है, दूसरों को चोट पहुँच सकती है और रिश्‍ते बिगड़ सकते हैं। भले ही दूसरों को बदनाम करने का हमारा इरादा ना हो, फिर भी हमारी बातों से उनका नाम खराब हो सकता है। चाहे हम अनजाने में या जानबूझकर दूसरों को बदनाम करें, हम परमेश्‍वर की मंज़ूरी खो सकते हैं। परमेश्‍वर ‘भाइयों में फूट डालनेवाले आदमी’ से नफरत करता है। (नीत 6:16-19) इसके अलावा, जो झूठी बातें फैलाकर दूसरों को बदनाम करता है, वह शैतान की तरह पेश आ रहा होता है। “बदनाम करनेवाला” या “दोष लगानेवाला” का यूनानी शब्द है दियाबोलोस। यह शब्द शैतान के लिए भी इस्तेमाल हुआ है जिसने परमेश्‍वर को सबसे ज़्यादा बदनाम किया है।​—यूह 8:44; प्रक 12:9, 10; उत 3:2-5.

27 अक्टूबर–2 नवंबर

पाएँ बाइबल का खज़ाना सभोपदेशक 11-12

सेहतमंद और खुश रहिए

सज 3/15 पेज 13 पै 6-7, अँग्रेज़ी

ताज़ी हवा और खिली धूप​—कुदरती “दवा”?

सूरज की रौशनी से हानिकारक रोगाणु खत्म हो सकते हैं, जिनसे बीमारियाँ फैलती हैं। एक पत्रिका के मुताबिक, हवा में पाए जानेवाले ज़्यादातर रोगाणु सूरज की रौशनी में खत्म हो जाते हैं।

आप इसका कैसे फायदा उठा सकते हैं? आप बाहर खिली धूप में कुछ समय बिता सकते हैं और ताज़ी हवा ले सकते हैं। ऐसा करना सेहत के लिए बहुत अच्छा है।

प्र23.02 पेज 21 पै 6-7

जीवन परमेश्‍वर से मिला तोहफा है, इसकी कदर करें!

6 बाइबल कोई ऐसी किताब नहीं जिसमें यह बताया गया हो कि हम अपनी सेहत कैसे बना सकते हैं या इसके लिए हमें क्या खाना चाहिए और क्या नहीं। लेकिन बाइबल से हम यह ज़रूर जान सकते हैं कि इस बारे में यहोवा की क्या सोच है। जैसे, बाइबल में यहोवा ने हमें सलाह दी है कि हम ऐसी हर बात से दूर रहें जो हमारे शरीर को नुकसान पहुँचा सकती है। (सभो. 11:10) बाइबल में यह भी बताया गया है कि हम बहुत ज़्यादा शराब ना पीएँ, ना ही हद-से-ज़्यादा खाएँ। ऐसा करने से हमारी सेहत खराब हो सकती है, यहाँ तक कि हमारी जान भी जा सकती है। (नीति. 23:20) यहोवा चाहता है कि जब हम यह फैसला करते हैं कि हम क्या खाएँगे-पीएँगे या कितना खाएँगे-पीएँगे, तो हम खुद पर काबू रखें।​—1 कुरिं. 6:12; 9:25.

7 जब हम सबकुछ सोच-समझकर करते हैं, तो भी हम दिखाते हैं कि यहोवा ने हमें जो जीवन दिया है, उसकी हम बहुत कदर करते हैं। (भज. 119:99, 100; नीतिवचन 2:11, 12 पढ़िए।) खाने-पीने की ही बात ले लीजिए। अगर हमें पता हो कि कोई खाना खाने से हम बीमार पड़ जाते हैं, तो समझदारी इसी में होगी कि हम उसे ना खाएँ। हम तब भी समझदारी से काम लेते हैं जब हम अच्छी नींद लेते हैं, लगातार कसरत करते हैं और खुद को और अपने घर को साफ-सुथरा रखते हैं।

प्र24.09 पेज 2 पै 2-3

“वचन पर चलनेवाले बनो”

2 जी हाँ, यहोवा के सेवकों के पास खुश रहने की कई वजह हैं। लेकिन एक बड़ी वजह यह है कि हम हर दिन परमेश्‍वर का वचन पढ़ते हैं और हम इससे जो भी सीखते हैं, उसके हिसाब से चलने की पूरी कोशिश करते हैं।​—याकूब 1:22-25 पढ़िए।

3 जब हम ‘वचन पर चलते हैं,’ तो हमें बहुत-सी आशीषें मिलती हैं। सबसे पहले तो हमें इस बात से खुशी मिलती है कि बाइबल में दी बातें मानकर हम यहोवा का दिल खुश कर रहे हैं। (सभो. 12:13) यही नहीं, बाइबल में दी सलाह मानकर हमारे परिवार में सुख-शांति रहती है और मंडली के भाई-बहनों के साथ हमारा एक अच्छा रिश्‍ता बना रहता है। और आपने भी ज़रूर यह बात देखी होगी! इसके अलावा, हम उन तकलीफों से बचे रहते हैं जो उन लोगों पर आती हैं, जो परमेश्‍वर की बात नहीं मानते। दाविद ने बिलकुल सही कहा था कि यहोवा का कानून, उसके आदेश और उसके फैसले “मानने से बड़ा इनाम मिलता है।”​—भज. 19:7-11.

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इंसाइट “परमेश्‍वर की प्रेरणा से” पै 10

“परमेश्‍वर की प्रेरणा से”

सबूत दिखाते हैं कि परमेश्‍वर ने जिन आदमियों के ज़रिए बाइबल लिखवायी, उन्हें उसने सिर्फ शब्द-ब-शब्द लिखने को नहीं कहा। परमेश्‍वर ने उन्हें खुद शब्द चुनने भी दिया और उन्होंने जो दर्शन देखे उन्हें अपने शब्दों में लिखने दिया। (हब 2:2) लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि उसने उन्हें पूरी तरह छूट दे दी। उसने कुछ हद तक उनका मार्गदर्शन किया। इस तरह परमेश्‍वर देख पाया कि पूरी बाइबल में लिखी बातें सही हों, सच्ची हों और उसके मकसद के मुताबिक हों। (नीत 30:5, 6) बाइबल लिखनेवाले सभी आदमियों ने खूब मेहनत की। उन्होंने गहराई से सोचा, काफी खोजबीन की और शब्दों को बहुत ही बढ़िया तरीके से पिरोया। उनकी इसी मेहनत के बारे में सभोपदेशक 12:9, 10 में बताया गया है। (लूक 1:1-4 से तुलना करें।) उदाहरण के लिए, परमेश्‍वर प्रकाशितवाक्य की किताब में जो बातें लिखवाना चाहता था, वे बातें उसने एक स्वर्गदूत के ज़रिए प्रेषित यूहन्‍ना को बतायीं। फिर यूहन्‍ना ने परमेश्‍वर के निर्देशन में वे सारी बातें लिखीं।​—प्रक 1:1, 2, 10, 11.

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