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  • “मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका” के लिए हवाले

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  • “मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका” के लिए हवाले
  • मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले—2025
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  • 24-30 नवंबर
  • 1-7 दिसंबर
  • 8-14 दिसंबर
  • 15-21 दिसंबर
  • 22-28 दिसंबर
  • 29 दिसंबर–4 जनवरी
मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले—2025
mwbr25 नवंबर पेज 1-16

मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले

© 2025 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania

3-9 नवंबर

पाएँ बाइबल का खज़ाना श्रेष्ठगीत 1-2

सच्चे प्यार की दास्तान

प्र15 1/15 पेज 30-31 पै 9-10

क्या हमेशा तक कायम रहनेवाला प्यार मुमकिन है?

9 आज यहोवा की सेवा करनेवाले पति-पत्नियों के लिए शादी महज़ दो लोगों के बीच किया गया कॉन्ट्रैक्ट नहीं, बल्कि उससे कहीं बढ़कर है। वे सच्चे दिल से एक-दूसरे से प्यार करते हैं और उसे जताते भी हैं। दरअसल, प्यार मसीही पति-पत्नियों के रिश्‍ते की पहचान है। लेकिन किस तरह का प्यार? बाइबल के सिद्धांतों पर आधारित प्यार? (1 यूह. 4:8) या वह प्यार जो रिश्‍तेदारों के बीच देखा जाता है? दो करीबी दोस्तों के बीच पाया जानेवाला प्यार? (यूह. 11:3) या रोमानी प्यार? (नीति. 5:15-20) असल में अगर देखा जाए, तो पति-पत्नी के रिश्‍ते में प्यार के ये सभी पहलू शामिल होने चाहिए। तभी उनका रिश्‍ता गहरा और अटूट हो सकता है। लेकिन सिर्फ दिल में प्यार होना काफी नहीं। उन्हें अपने कामों और अपनी बातों से इसे जताने की भी ज़रूरत है। तभी उनका घर प्यार का आशियाना कहलाएगा। कितना ज़रूरी है कि पति-पत्नी अपने रोज़मर्रा के कामों में इतने व्यस्त न हो जाएँ कि एक-दूसरे को प्यार का इज़हार करने से ही चूक जाएँ। कुछ संस्कृतियों में, जहाँ घर के बड़े-बुज़ुर्ग रिश्‍ता तय करते हैं, वहाँ शायद पति-पत्नी एक-दूसरे को शादी के दिन से पहले जानते भी न हों। ऐसे में क्या बात उन्हें अपने रिश्‍ते को मज़बूत और खुशहाल बनाने में मदद देगी? एक-दूसरे को अपनी बातों से अपने प्यार का एहसास दिलाना। जब वे ऐसा करेंगे, तो वे एक-दूसरे के और भी करीब आएँगे।

10 जब पति-पत्नी एक-दूसरे को अपने प्यार का इज़हार करते हैं, तो इसका एक और फायदा होता है। वह क्या? इसका जवाब जानने के लिए एक बार फिर कहानी पर ध्यान दीजिए। राजा सुलैमान ने लड़की को “चान्दी के फूलदार सोने के आभूषण” देने का वादा किया। उसने उसकी खूबसूरती की तारीफ करते हुए कहा कि वह “सुन्दरता में चन्द्रमा, और निर्मलता में सूर्य” जैसी है। (श्रेष्ठ. 1:9-11; 6:10) लेकिन राजा की किसी भी बात से उसका दिल नहीं पिघला, क्योंकि वह चरवाहे से सच्चा प्यार करती थी। आखिर किस बात ने उसे अपने चरवाहे का वफादार बने रहने और अपनी जुदाई का गम सहने में मदद दी? वह खुद बताती है। (श्रेष्ठगीत 1:2, 3 पढ़िए।) चरवाहे के साथ बितायी मीठी यादों ने उसे तनहाई में सहारा दिया। चरवाहे का “प्रेम,” या उसके “प्यार का इज़हार” (एन.डब्ल्यू.) इस जुदाई के वक्‍त उसके लिए “दाखमधु से उत्तम” और सिर पर लगाए जानेवाले खुशबूदार तेल या “इत्र” के समान था। (भज. 23:5; 104:15) वाकई, जब पति-पत्नी एक-दूसरे को अपने प्यार का इज़हार करते हैं, तो उस प्यार की मीठी यादें उन्हें एक-दूसरे के वफादार बने रहने में मदद देती हैं और उनके रिश्‍ते को अटूट बनाती हैं। इसलिए कितना ज़रूरी है कि वे अकसर एक-दूसरे से अपने प्यार का इज़हार करते रहें।

ढूँढ़ें अनमोल रत्न

प्र15 1/15 पेज 31 पै 11

क्या हमेशा तक कायम रहनेवाला प्यार मुमकिन है?

11 अगर आप शादी करने की सोच रहे हैं, तो आप शूलेम्मिन लड़की से क्या सीख सकते हैं? वह राजा सुलैमान को नहीं चाहती थी। इसलिए उसने राजमहल की स्त्रियों से साफ कह दिया: “जब तक प्रेम आप से न उठे, तब तक उसको न उसकाओ न जगाओ।” (श्रेष्ठ. 2:7; 3:5) क्यों? क्योंकि जो मिले उसे दिल दे बैठना सही नहीं। शादी करने का इरादा रखनेवाले मसीही जवान को सब्र रखना चाहिए और उसी व्यक्‍ति से शादी करनी चाहिए, जिससे वह सच्चे दिल से प्यार कर सके।

10-16 नवंबर

पाएँ बाइबल का खज़ाना श्रेष्ठगीत 3-5

अंदरूनी खूबसूरती, सबसे ज़रूरी

प्र15 1/15 पेज 30 पै 8

क्या हमेशा तक कायम रहनेवाला प्यार मुमकिन है?

8 पूरी किताब में चरवाहा और लड़की बस एक-दूसरे की सुंदरता की तारीफ के पुल ही नहीं बाँधते रहे। गौर कीजिए कि चरवाहे ने लड़की के बात करने के तरीके के बारे में क्या कहा। (श्रेष्ठगीत 4:7, 11 पढ़िए।) उसने कहा: “हे मेरी दुल्हिन, तेरे होंठों से मधु टपकता है; तेरी जीभ के नीचे मधु और दूध रहता है।” लड़की की बातें इतनी मन को भानेवाली थीं कि चरवाहे ने उनकी तुलना दूध और मधु से की। जब चरवाहे ने अपनी प्रेमिका से कहा कि “तू सर्वांग सुन्दरी है” (हिंदी​—आर.ओ.वी.) और “तुझ में कोई दोष नहीं,” तो वह सिर्फ उसकी खूबसूरती की नहीं, बल्कि उसके सभी खूबसूरत गुणों की तारीफ कर रहा था।

प्र00 11/1 पेज 11 पै 17

नैतिक शुद्धता के बारे में परमेश्‍वर का नज़रिया

17 नैतिक खराई रखनेवालों में तीसरी मिसाल है, कुँवारी शूलेम्मिन। वह इतनी खूबसूरत और जवान थी कि ना सिर्फ एक नौजवान चरवाहा उससे प्यार करने लगा बल्कि इस्राएल का सबसे अमीर राजा, सुलैमान भी उसका दीवाना हो गया था। सुलैमान के लिखे श्रेष्ठगीत की खूबसूरत कहानी में वह अपने चालचलन में शुद्ध रहती है और इसीलिए उसके आस-पास के लोग उसकी इज़्ज़त करते हैं। सुलैमान उसका प्यार जीत नहीं पाता, फिर भी उसने परमेश्‍वर की प्रेरणा से शूलेम्मिन की कहानी को लिखा। जिस चरवाहे से वह प्रेम करती थी वह भी उसके शुद्ध चालचलन का आदर करता था। एक बार वह कहता है कि शूलेम्मिन “किवाड़ लगाई हुई बारी के समान,” है। (श्रेष्ठगीत 4:12) प्राचीन इस्राएल में खूबसूरत बगीचों में तरह-तरह की सब्ज़ियाँ, खुशबूदार फूल और रसीले फलों के पेड़ हुआ करते थे। ऐसी बारियाँ या बाग कटीली झाड़ियों से या दीवार से घिरे होते थे और उनके अंदर जाने के लिए सिर्फ एक दरवाज़ा होता था जिस पर ताला लगा होता था। (यशायाह 5:5) उस चरवाहे के लिए शूलेम्मिन की नैतिक शुद्धता एक ऐसे बाग की तरह थी जिसकी खूबसूरती अनूठी हो। वह पूरी तरह से पवित्र थी। वह सिर्फ अपने होनेवाले पति पर ही अपना प्यार निछावर करती।

सज04 12/22 पेज 9 पै 2-5, अँग्रेज़ी

क्या बात एक इंसान को सच में सुंदर बनाती है?

क्या अंदरूनी खूबसूरती पर लोगों का ध्यान जाता है? जॉर्जीना, जिसकी शादी को करीब 10 साल हो चुके हैं, कहती है, “सालों के चलते मैं अपने पति को और प्यार करने लगी हूँ, क्योंकि वे मुझसे कुछ नहीं छिपाते बल्कि हमेशा सच बोलते हैं। उनकी ज़िंदगी में यहोवा को खुश करने से बढ़कर कुछ नहीं है। और यही वजह है कि क्यों वे मुझसे प्यार करते हैं, मेरी परवाह करते हैं। जब भी वे कोई फैसला लेते हैं, मेरी राय पूछते हैं। वे हमेशा मेरी कदर करते हैं। सच में, वे मुझसे बहुत प्यार करते हैं।”

डैनियल, जिसकी शादी 1987 में हुई थी, कहता है, “मेरी पत्नी दिखने में खूबसूरत तो है ही, पर वह दिल की भी बहुत अच्छी है। इसलिए मैं उससे बहुत प्यार करता हूँ। वह हमेशा दूसरों के बारे में सोचती है और उनके लिए बहुत कुछ करती है। उसमें कई अच्छे-अच्छे गुण हैं, इसलिए उसके साथ रहने में मुझे खुशी होती है।”

दुनिया में लोग रंग-रूप को बहुत अहमियत देते हैं। पर हमें सिर्फ बाहरी रूप नहीं देखना चाहिए। दुनिया में “सुंदरता” का जो स्तर है, उस पर खरे उतरना बहुत ही मुश्‍किल है और किसी काम का नहीं है। लेकिन सच्ची सुंदरता हम सब हासिल कर सकते हैं। इसके लिए ज़रूरी है कि हम अपने अंदर अच्छे गुण बढ़ाएँ। बाइबल में लिखा है, “आकर्षण झूठा हो सकता है और खूबसूरती पल-भर की, मगर जो औरत यहोवा का डर मानती है वह तारीफ पाएगी।” दूसरी तरफ “जो औरत सुंदर है मगर समझ से काम नहीं लेती, वह ऐसी है जैसे सूअर की नाक में सोने की नथ।”​—नीतिवचन 11:22; 31:30.

परमेश्‍वर के वचन की मदद से हम “अंदर के इंसान” की कदर करना सीखते हैं, जो ‘शांत और कोमल स्वभाव से सँवारा गया है। यह ऐसी सजावट है जो कभी पुरानी नहीं पड़ती और परमेश्‍वर की नज़रों में अनमोल है।’ (1 पतरस 3:4) सच में, अंदरूनी खूबसूरती बाहरी खूबसूरती से कहीं ज़्यादा मायने रखती है। और हम सब यह खूबसूरती हासिल कर सकते हैं।

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प्र06 12/1 पेज 4 पै 4

श्रेष्ठगीत किताब की झलकियाँ

2:7; 3:5​—महल की दासियों को “चिकारियों और मैदान की हरिणियों” के नाम से क्यों शपथ दिलायी गयी? चिकारा और हिरण, दोनों अपनी खूबसूरती और चंचलता के लिए जाने जाते हैं। इसलिए शूलेम्मिन लड़की ने महल की दासियों को शपथ दिलाकर कहा कि अगर उन्हें खूबसूरत और मनोहर चीज़ों के लिए ज़रा भी आदर है, तो वे उसके अंदर प्रेम को उकसाने की कोशिश नहीं करेंगी।

17-23 नवंबर

पाएँ बाइबल का खज़ाना श्रेष्ठगीत 6-8

दीवार बनिए, दरवाज़ा नहीं

इंसाइट “श्रेष्ठगीत” पै 11

श्रेष्ठगीत

शूलेम्मिन लड़की के एक भाई ने कहा, “हमारी एक छोटी बहन है, उसकी छाती अभी तक उभरी नहीं है। जिस दिन कोई उसका हाथ माँगने आएगा, उस दिन हम अपनी बहन के लिए क्या करेंगे?” (श्रेष 8:8) इस पर दूसरे भाई ने कहा, “अगर वह एक दीवार होगी, तो हम उसकी मुँडेर को चाँदी से सजाएँगे। लेकिन अगर वह एक दरवाज़ा होगी, तो हम देवदार का तख्ता ठोंककर उसे बंद कर देंगे।” (श्रेष 8:9) शूलेम्मिन लड़की ने भी ठान लिया था कि वह कोई गलत काम नहीं करेगी। इसलिए बार-बार लुभाए जाने पर भी वह अपने साजन की वफादार रही। वह अपने फैसले से खुश थी। (श्रेष 8:6, 7, 11, 12) इसलिए वह बेझिझक कह पायी, “मैं एक दीवार हूँ और मेरे स्तन मीनारों के समान हैं। इसलिए मेरा साजन देख सकता है कि मुझे मन का सुकून है।”​—श्रेष 8:10.

युवाओं के प्रश्‍न पेज 188 पै 2

विवाह से पहले सॆक्स के बारे में क्या?

लेकिन, निष्कलंक रहना एक युवा को गंभीर परिणामों से बचने में मदद देने के अलावा भी कुछ करता है। बाइबल एक कुँवारी युवती के बारे में बताती है जो अपने प्रेमी के लिए तीव्र प्रेम के बावजूद निष्कलंक रही। फलस्वरूप, वह गर्व के साथ कह सकी: “मैं शहरपनाह थी और मेरी छातियां उसके गुम्मट।” वह कोई ‘झूलता किवाड़’ नहीं थी जो अनैतिक दबाव में आसानी से ‘खुल जाता।’ नैतिक रूप से, वह एक शहरपनाह की दुर्गम दीवार की तरह खड़ी थी जिसके गुम्मट अगम्य थे! वह इस योग्य थी कि उसे “शुद्ध” (NW) कहा जाए और अपने भावी पति के बारे में कह सकी, “मैं अपने प्रेमी की दृष्टि में शान्ति लानेवाले के नाईं थी।” उसके अपने मन की शान्ति ने उन दोनों के बीच संतुष्टि में योग दिया।​—श्रेष्ठगीत 6:9, 10; 8:9, 10.

नौजवानों के सवाल2 पेज 33, अँग्रेज़ी

अच्छी मिसाल​—शूलेम्मिन लड़की

शूलेम्मिन लड़की जानती थी कि प्यार के मामले में उसे भावनाओं में बहकर नहीं बल्कि सोच-समझकर फैसला लेना चाहिए। इसलिए उसने अपनी सहेलियों से कहा, “कसम खाओ, जब तक प्यार खुद मेरे अंदर न जागे, तुम उसे जगाने की कोशिश नहीं करोगी।” उसे पता था कि उसकी भावनाएँ आसानी से उस पर हावी हो सकती हैं। वह यह भी समझती थी कि दूसरे उस पर किसी ऐसे व्यक्‍ति से रिश्‍ता जोड़ने का दबाव डाल सकते हैं, जो उसके लिए सही नहीं है। इतना ही नहीं, उसे यह भी पता था कि अगर वह सिर्फ अपने दिल की सुनेगी, तो सही फैसला लेना उसके लिए और भी मुश्‍किल हो जाएगा। इसलिए वह “एक दीवार” की तरह अपने इरादे पर डटी रही।​—श्रेष्ठगीत 8:4, 10.

क्या आप भी प्यार के मामले में शूलेम्मिन लड़की की तरह समझ से काम लेते हैं? क्या आप अपने दिल के साथ-साथ अपने दिमाग की भी सुन सकते हैं? (नीतिवचन 2:10, 11) कभी-कभी दूसरे आप पर डेटिंग करने का दबाव डाल सकते हैं, जबकि आप शादी के लिए तैयार ना हों। या शायद आप खुद ही यह दबाव महसूस करें। उदाहरण के लिए, जब आप किसी लड़के-लड़की को हाथ पकड़ते हुए देखते हैं, तो क्या आपको लगता है कि आपकी भी एक गर्लफ्रेंड या बॉयफ्रेंड होना चाहिए? अगर आपको मंडली में कोई मिल ही ना रहा हो, तो क्या आपको लगता है कि कोई बाहरवाला भी चलेगा? शूलेम्मिन लड़की की तरह आप भी प्यार के मामले में समझ से काम ले सकते हैं!

ढूँढ़ें अनमोल रत्न

प्र15 1/15 पेज 29 पै 3

क्या हमेशा तक कायम रहनेवाला प्यार मुमकिन है?

3 श्रेष्ठगीत 8:6 पढ़िए। इस आयत में प्यार को ‘परमेश्‍वर की ज्वाला,’ या अ न्यू हिंदी ट्रांस्लेशन बाइबल के मुताबिक ‘यहोवा की लपटें’ बताया गया है। क्यों? क्योंकि यहोवा परमेश्‍वर ही इस सच्चे प्यार का स्रोत है। उसका सबसे खास गुण प्यार है और उसने हमें इस काबिल बनाया है कि हम उसकी तरह दूसरों को प्यार दिखा सकते हैं। (उत्प. 1:26, 27) पहले इंसान, आदम को बनाने के बाद जब यहोवा ने उसकी खूबसूरत पत्नी, हव्वा को उसके सामने पेश किया, तो आदम खुशी से फूला न समाया और उसकी तारीफ में कविता करने से खुद को रोक न सका। हव्वा भी खुद को अपने पति के बहुत ही करीब महसूस करने लगी। और क्यों न हो, आखिर उसे उसकी पसली से जो रचा गया था। (उत्प. 2:21-23) अगर यहोवा ने इंसानों को प्यार करने के काबिल बनाया है, तो बेशक स्त्री और पुरुष के बीच हमेशा तक कायम रहनेवाला प्यार मुमकिन है।

24-30 नवंबर

पाएँ बाइबल का खज़ाना यशायाह 1-2

चाहे हमारे पाप गंभीर हो, तब भी उम्मीद है

यशायाह-1 पेज 14 पै 8

एक पिता और उसके विद्रोही बच्चे

8 यशायाह बड़े ही ज़बरदस्त शब्दों में यहूदा देश के खिलाफ यहोवा का संदेश सुनाना जारी रखता है: “हाय, यह जाति पाप से कैसी भरी है! यह समाज अधर्म से कैसा लदा हुआ है! इस वंश के लोग कैसे कुकर्मी हैं, ये लड़केबाले कैसे बिगड़े हुए हैं! उन्हों ने यहोवा को छोड़ दिया, उन्हों ने इस्राएल के पवित्र को तुच्छ जाना है! वे पराए बनकर दूर हो गए हैं।” (यशायाह 1:4) दुष्टता के काम बढ़ते-बढ़ते इतना भारी बोझ बन जाते हैं जो किसी को भी पीसकर चकनाचूर कर सकता है। इब्राहीम के दिनों में यहोवा ने सदोम और अमोरा के पापों को भी “बहुत भारी” कहा था। (उत्पत्ति 18:20) अब यहूदा के लोगों के काम भी कुछ ऐसे ही हो गए हैं, क्योंकि यशायाह कहता है कि वे लोग ‘अधर्म से लदे हुए हैं।’ इसके अलावा, वह उन्हें ‘कुकर्मी वंश’ और ‘बिगड़े हुए लड़केबाले’ कहता है। जी हाँ, यहूदा के लोग वे बच्चे हैं जो अपराधी बन गए हैं। वे ‘पराए हो गए’ हैं या जैसे नयी हिन्दी बाइबिल कहती है, वे अपने पिता से “मुंह मोड़ कर दूर हो गए” हैं।

यशायाह-1 पेज 28-29 पै 15-17

‘आओ, हम मामलों को सुलझा लें’

15 अब यहोवा की आवाज़ में पहले से ज़्यादा प्यार और करुणा है। “यहोवा कहता है, ‘अब आओ, लोगो, हम आपस में मामलों को सुलझा लें। चाहे तुम लोगों के पाप किरमिजी रंग के हों, तौभी वे हिम की तरह श्‍वेत किए जाएंगे; चाहे वे गहरे लाल रंग के कपड़े की तरह हों, वे ऊन की तरह उजले हो जाएंगे।’” (यशायाह 1:18, NW) दिल को छू लेनेवाली इस बेहतरीन आयत की शुरूआत में दिए गए यहोवा के बुलावे का अकसर गलत अर्थ निकाला जाता है। मिसाल के तौर पर, हिन्दी बाइबल कहती है, “आओ, हम आपस में वादविवाद करें।” इससे ऐसा लगता है मानो एक समझौते तक पहुँचने के लिए दोनों पक्षों को थोड़ा-थोड़ा झुकना पड़ेगा। मगर यहोवा को झुकने की कोई ज़रूरत नहीं! अपने विद्रोही और कपटी लोगों के साथ व्यवहार करते वक्‍त यहोवा ने ऐसा कोई काम नहीं किया जिसकी वजह से उसे झुकना पड़े। (व्यवस्थाविवरण 32:4, 5) इस आयत में बतायी गयी बहस, बराबर दर्जे के दो लोगों के बीच की बातचीत नहीं है, बल्कि एक अदालती कार्यवाही है जिसमें न्याय किया जाना है। मानो, यहोवा इस अदालत में इस्राएल को, अपनी तरफ से सफाई पेश करने की चुनौती दे रहा है।

16 यहोवा के साथ मुकद्दमा लड़ने की बात सोचकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं, मगर यहोवा सबसे दयालु और करुणामयी न्यायाधीश है। उसकी तरह क्षमा करनेवाला और कोई नहीं। (भजन 86:5) सिर्फ वही इस्राएल के “किरमिजी रंग” जैसे गहरे पापों को धोकर “हिम की तरह श्‍वेत” कर सकता है। इंसान की अपनी किसी भी कोशिश, जतन या विधि, बलिदान या प्रार्थना से उसके माथे पर लगा पाप का कलंक नहीं धोया जा सकता। केवल यहोवा की क्षमा से ही पाप धुल सकता है। मगर इसके लिए कुछ शर्तें भी हैं। उनमें से एक यह है कि हम अपने पापों को छोड़ दें और दिल से सच्चा पछतावा दिखाएँ।

17 इस बात की अहमियत को समझाने के लिए यहोवा यही बात दूसरे शब्दों में दोहराता है​—“गहरे लाल” रंग के पाप, नई ऊन के समान उजले हो जाएँगे। यहोवा हमें बताना चाहता है कि वह वाकई पापों का क्षमा करनेवाला क्षमाशील परमेश्‍वर है। अगर हम सच्चे दिल से पश्‍चाताप करें तो वह गंभीर से गंभीर पापों को भी क्षमा कर सकता है। जिन लोगों को लगता है कि उनके पाप इतने गंभीर हैं कि यहोवा उन्हें कभी माफ नहीं करेगा, उन्हें राजा मनश्‍शे जैसी मिसालों पर गौर करना चाहिए। मनश्‍शे ने बरसों तक बहुत ही घिनौने पाप किए थे। मगर जब उसने पश्‍चाताप किया तो उसे माफ किया गया। (2 इतिहास 33:9-16) ऐसे पापियों के साथ-साथ हम सभी को यहोवा यह बता देना चाहता है, इससे पहले कि बहुत देर हो जाए अभी वक्‍त रहते उसके पास आकर ‘आपस में मामले सुलझा लें।’

ढूँढ़ें अनमोल रत्न

यशायाह-1 पेज 39-40 पै 9

यहोवा का भवन ऊँचा किया गया

9 बेशक, आज परमेश्‍वर के लोग सचमुच के पर्वत पर पत्थरों से बने किसी मंदिर में इकट्ठा नहीं होते। यरूशलेम में जो यहोवा का मंदिर था उसे रोम की सेना ने सा.यु. 70 में तहस-नहस कर डाला था। इसके अलावा, प्रेरित पौलुस ने एकदम साफ बता दिया था कि यरूशलेम का मंदिर और उससे पहले का निवासस्थान आनेवाली वस्तुओं की बस एक छाया ही थे। वे उनसे भी कहीं महान और बड़ी, एक आत्मिक असलियत का नमूना थे, यानी ‘उस सच्चे तम्बू का, जिसे किसी मनुष्य ने नहीं, बरन यहोवा ने खड़ा किया था।’ (इब्रानियों 8:2) यह आत्मिक तंबू, यीशु मसीह के छुड़ौती बलिदान के आधार पर यहोवा के करीब आने और उसकी उपासना करने का इंतज़ाम है। (इब्रानियों 9:2-10, 23) तो इसके मुताबिक, यशायाह 2:2 में बताया गया “यहोवा के भवन का पर्वत,” हमारे ज़माने में यहोवा की सर्वश्रेष्ठ शुद्ध उपासना को दर्शाता है। आज जो शुद्ध उपासना करनेवालों में शामिल हो रहे हैं, वे पृथ्वी की किसी खास जगह पर इकट्ठे नहीं हो रहे; बल्कि वे एक ही परमेश्‍वर की उपासना करते हैं, इसलिए हम कह सकते हैं कि वे इकट्ठे हैं।

1-7 दिसंबर

पाएँ बाइबल का खज़ाना यशायाह 3-5

यहोवा का यह उम्मीद करना सही था कि उसके लोग उसकी आज्ञा मानें

यशायाह-1 पेज 73-74 पै 3-5

विश्‍वासघात करनेवाली दाख की बारी पर हाय!

3 हम नहीं जानते कि यशायाह सचमुच गाकर यह कहानी सुनाता है या नहीं, मगर एक बात तो सच है कि इससे सुननेवालों का ध्यान ज़रूर खिंचता है। इन सुननेवालों में ज़्यादातर लोग दाख की बारी लगाने का काम अच्छी तरह जानते हैं, साथ ही यशायाह का यह दृष्टांत सरल है और हकीकत से मेल भी खाता है। आज, दाख उगानेवालों की तरह इस दृष्टांत में बारी का मालिक अंगूर के बीज नहीं बोता बल्कि अंगूर की “उत्तम जाति की” अच्छी “दाखलता” की कलम या बेल लेकर लगाता है। इतना ही नहीं, वह अपनी दाख की बारी “एक अति उपजाऊ टीले पर” लगाता है, ताकि दाख की बारी बहुत फल-फूल सके।

4 दाख की बारी से फल पाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। यशायाह बताता है कि बारी के मालिक ने ‘मिट्टी खोदी और उसके पत्थर बीने।’ ऐसे काम में ना सिर्फ घंटों सख्त मेहनत करनी पड़ती है बल्कि इसमें हालत भी पस्त हो जाती है! फिर इस मालिक ने इनमें से बड़े-बड़े पत्थर लेकर “एक गुम्मट बनाया।” पुराने ज़माने में ऐसे गुम्मट पहरेदारों के लिए चौकी का काम करते थे, जहाँ खड़े होकर वे बारी पर नज़र रखते थे और चोरों और जानवरों से फसल की रक्षा करते थे। उसने सीढ़ीदार बारी के किनारे-किनारे पत्थर की दीवारें भी बनायीं। (यशायाह 5:5) यह अकसर इसलिए किया जाता था ताकि मिट्टी की ऊपरी उपजाऊ परत जो पौधों के लिए बहुत ज़रूरी थी, पानी में बह न जाए।

5 अपनी दाख की बारी की देखभाल करने में खून-पसीना एक करने के बाद, मालिक का यह उम्मीद करना वाजिब है कि उसकी बारी अच्छा फल लाए। इसी उम्मीद के सहारे वह दाखरस निकालने के लिये एक कुण्ड भी खोदता है। लेकिन क्या उसकी उम्मीदें पूरी होती हैं? जी नहीं, अच्छे फल के बजाय दाख की बारी में जंगली अंगूर पैदा होते हैं।

यशायाह-1 पेज 76 पै 8-9

विश्‍वासघात करनेवाली दाख की बारी पर हाय!

8 यशायाह, दाख की बारी के मालिक, यानी यहोवा को ‘मेरा प्रिय’ कहता है। (यशायाह 5:1) यशायाह परमेश्‍वर के बारे में इतने अपनेपन से सिर्फ इसलिए बोल सका क्योंकि यहोवा के साथ उसका बहुत ही गहरा और करीबी रिश्‍ता था। (अय्यूब 29:4; भजन 25:14 से तुलना कीजिए।) लेकिन इस भविष्यवक्‍ता का प्यार, परमेश्‍वर के उस प्यार के सामने कुछ भी नहीं जो उसने अपनी “दाख की बारी,” यानी उस जाति के लिए दिखाया जिसे उसने अपने हाथों से ‘लगाया’ था।​—निर्गमन 15:17; भजन 80:8, 9 से तुलना कीजिए।

9 यहोवा ने अपनी इस जाति को कनान देश में ‘लगाया’ था और उन्हें अपने नियम और कानून दिए थे। ये नियम एक ऐसी दीवार या बाड़े की तरह थे जो उन्हें दूसरी जातियों से अलग रखकर भ्रष्ट होने से बचाए रखते। (निर्गमन 19:5, 6; भजन 147:19, 20; इफिसियों 2:14) इसके अलावा, यहोवा ने उनके लिए न्यायी, याजक और भविष्यवक्‍ता भी ठहराए थे जो लोगों को समझाया और सिखाया करते थे। (2 राजा 17:13; मलाकी 2:7; प्रेरितों 13:20) और जब-जब इस्राएल पर दूसरे देश हमला करते थे तो यहोवा उन्हें छुटकारा देने के लिए छुड़ानेवालों को भेजता था। (इब्रानियों 11:32, 33) इसलिए, यहोवा का यह पूछना मुनासिब है: “मेरी दाख की बारी के लिये और क्या करना रह गया जो मैं ने उसके लिये न किया हो?”

प्र06 6/15 पेज 18 पै 1, अँग्रेज़ी

“इस बेल की देखभाल कर”!

भविष्यवक्‍ता यशायाह ने “इसराएल” की तुलना एक ऐसे अंगूरों के बाग से की, जहाँ “जंगली अंगूर” या सड़े हुए अंगूर उग आए। (यशायाह 5:2, 7) जंगली अंगूर उन अंगूरों से काफी छोटे होते हैं जिनकी खेती की जाती है। जंगली अंगूरों में गूदा कम, बीज ज़्यादा होते हैं। इसलिए ये बेकार होते हैं। इन्हें ना तो खाया जा सकता है, ना ही इनसे वाइन बनायी जा सकती है। जब इसराएल राष्ट्र अपने परमेश्‍वर से दूर हो गया तो उसके लोगों का भी यही हाल हुआ। वे अच्छे फल के बजाय बुरे फल पैदा करने लगे, यानी वे यहोवा के नेक स्तरों के मुताबिक जीने के बजाय उसका कानून तोड़ने लगे। उनके इस बेकार के फल के लिए बाग का मालिक कसूरवार नहीं था। यहोवा ने कहा, “मैंने अपने बाग के लिए क्या-कुछ नहीं किया।” (यशायाह 5:4) उसने सबकुछ किया था ताकि उसके लोग अच्छे फल पैदा करें।

प्र06 6/15 पेज 18 पै 2, अँग्रेज़ी

“इस बेल की देखभाल कर”!

इसराएल राष्ट्र अच्छे फल नहीं पैदा कर रहे थे, इसलिए यहोवा ने कहा कि वह अपने लोगों के चारों तरफ खड़ी हिफाज़त की दीवार को ढा देगा। वह अपने बाग की छँटाई नहीं करेगा और ना ही कुदाल चलाकर मिट्टी को ढीली करेगा। वसंत में फसल को जिस बारिश की ज़रूरत थी, वह नहीं आएगी। पूरा बाग कँटीली झाड़ियों और जंगली पौधों से भर जाएगा।​—यशायाह 5:5, 6.

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यशायाह-1 पेज 80 पै 18-19

विश्‍वासघात करनेवाली दाख की बारी पर हाय!

18 प्राचीन इस्राएल में सारी ज़मीन का मालिक आखिरकार यहोवा ही था। परमेश्‍वर ने हर इस्राएली परिवार को विरासत में ज़मीन दी थी, जिसे वे किराये पर या ठेके पर किसी और को दे सकते थे। मगर वे ज़मीन को ‘सदा के लिये नहीं बेच’ सकते थे। (लैव्यव्यवस्था 25:23) इस कानून की वजह से, उनके बीच ज़मींदारी जैसे अपराध नहीं होते थे और कोई एक व्यक्‍ति सारी ज़मीन का मालिक नहीं बन पाता था। इस कानून की वजह से इस्राएली परिवार गरीबी के दलदल में नहीं गिरते थे। मगर, यहूदा में कुछ लोग लालच की वजह से ज़मीन-जायदाद के बारे में परमेश्‍वर के नियमों को तोड़ रहे थे। मीका ने लिखा: “वे खेतों का लालच करके उन्हें छीन लेते हैं, और घरों का लालच करके उन्हें भी ले लेते हैं; और उसके घराने समेत पुरुष पर, और उसके निज भाग समेत किसी पुरुष पर अन्धेर और अत्याचार करते हैं।” (मीका 2:2) मगर नीतिवचन 20:21 हमें चेतावनी देता है: “जो भाग पहिले उतावली [“लोभ,” NW] से मिलता है, अन्त में उस पर आशीष नहीं होती।”

19 यहोवा वादा करता है कि इन लोभियों ने नाजायज़ तरीकों से जितनी भी ज़मीन-जायदाद हड़प ली है वह सब उनसे छीन लेगा। जो घर उन्होंने दूसरों से छीने हैं, वे “निर्जन हो जाएंगे।” जिस ज़मीन का उन्होंने लालच किया था, उसकी पैदावार घटकर न के बराबर रह जाएगी। यह शाप कैसे और कब पूरा होगा यह नहीं बताया गया। शायद यह कुछ हद तक उस वक्‍त की तरफ इशारा करता है जब यहूदियों को बंधुआ बनाकर बाबुल ले जाया जाता।​—यशायाह 27:10.

8-14 दिसंबर

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“मैं यहाँ हूँ! मुझे भेज!”

यशायाह-1 पेज 93-95 पै 13-14

यहोवा परमेश्‍वर अपने पवित्र मंदिर में है

13 आइए यशायाह के साथ हम भी सुनें। “तब मैं ने प्रभु का यह वचन सुना, मैं किस को भेजूं, और हमारी ओर से कौन जाएगा? तब मैं ने कहा, मैं यहां हूं! मुझे भेज।” (यशायाह 6:8) ज़ाहिर है कि यहोवा ने यशायाह से जवाब पाने के लिए ही ऐसा सवाल पूछा था, क्योंकि दर्शन में उसके अलावा कोई और भविष्यवक्‍ता मौजूद नहीं है। यह बिलकुल साफ है कि यहोवा का दूत बनकर लोगों के पास जाने के लिए यशायाह को बुलावा दिया जा रहा है। मगर यहोवा यह क्यों पूछता है, “हमारी ओर से कौन जाएगा?” (तिरछे टाइप हमारे।) वह एकवचन “मैं” का इस्तेमाल करने के बाद, बहुवचन “हमारी” इस्तेमाल करता है। यहोवा अपने साथ अब कम-से-कम एक और व्यक्‍ति को शामिल कर रहा है। किसे? क्या यह उसका एकलौता पुत्र नहीं होगा, जो बाद में इंसान के रूप में यीशु मसीह बना? जी हाँ, यह वही पुत्र था जिससे परमेश्‍वर ने कहा था, “हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार ... बनाएं।” (उत्पत्ति 1:26; नीतिवचन 8:30, 31) जी हाँ, स्वर्गीय दरबार में परमेश्‍वर के साथ उसका एकलौता पुत्र भी मौजूद है।​—यूहन्‍ना 1:14.

14 यशायाह जवाब देने में हिचकिचाता नहीं! चाहे उसे परमेश्‍वर का कोई भी हुक्म क्यों न मिले, वह तुरंत जवाब देता है: “मैं यहां हूं! मुझे भेज।” वह यह भी नहीं पूछता कि इस काम से उसका क्या फायदा होगा। परमेश्‍वर का काम करने में उसकी तत्परता, आज परमेश्‍वर के सभी सेवकों के लिए एक बढ़िया मिसाल है, जिन्हें ‘राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में’ प्रचार करने का काम सौंपा गया है। (मत्ती 24:14) यशायाह की तरह वे अपनी ज़िम्मेदारी को पूरी वफादारी से निभाते हैं और ज़्यादातर लोगों के न सुनने के बावजूद वे ‘सब जातियों को गवाही’ देने में लगे हुए हैं। और वे यशायाह की तरह पूरे भरोसे के साथ आगे बढ़ते जाते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि उन्हें यह काम इस पूरे जहान के सबसे बड़े अधिकारी से मिला है।

यशायाह-1 पेज 95-96 पै 15-16

यहोवा परमेश्‍वर अपने पवित्र मंदिर में है

15 यहोवा अब बताता है कि यशायाह को क्या कहना है और जवाब में उसे क्या सुनने को मिलेगा: “जा, और इन लोगों से कह, सुनते ही रहो, परन्तु न समझो; देखते ही रहो, परन्तु न बूझो। तू इन लोगों के मन को मोटे और उनके कानों को भारी कर, और उनकी आंखों को बन्द कर; ऐसा न हो कि वे आंखों से देखें, और कानों से सुनें, और मन से बूझें, और मन फिरावें और चंगे हो जाएं।” (यशायाह 6:9, 10) क्या इसका मतलब यह था कि यशायाह को यहूदियों का ज़रा भी लिहाज़ नहीं करना था और उन्हें खरी-खरी सुनानी थी ताकि उन्हें नफरत होने लगे और वे यहोवा से दूर ही रहें? बिलकुल नहीं! ये तो यशायाह के अपने लोग हैं जिनके लिए उसके दिल में अपनापन है। मगर यहोवा के वचन दिखाते हैं कि यशायाह चाहे कितनी ही लगन से अपना काम क्यों न करे, फिर भी लोग उसका संदेश सुनकर नहीं बदलेंगे।

16 इसमें दोष लोगों का ही है। यशायाह उन्हें ‘सुनाता ही रहेगा’ मगर वे न तो उसके संदेश को सुनेंगे न ही उसे समझेंगे। ज़्यादातर लोग ढीठ बने रहेंगे और उनके कानों पर जूँ तक नहीं रेंगेगी मानो वे पूरी तरह अंधे और बहरे हो चुके हों। “इन लोगों” के पास बार-बार जाकर यशायाह उन्हें यह दिखाने का मौका देगा कि असल में वे समझना चाहते हैं या नहीं। वे खुद यह साबित करेंगे कि उन्होंने अपने दिलो-दिमाग को बंद कर लिया है और यशायाह के संदेश को यानी परमेश्‍वर के संदेश को नहीं सुनना चाहते। यह आज के लोगों के बारे में भी कितना सच है! जब यहोवा के साक्षी उन्हें आनेवाले परमेश्‍वर के राज्य का सुसमाचार सुनाते हैं तो कितने उनकी बात सुनने से इनकार कर देते हैं।

यशायाह-1 पेज 99-100 पै 23

यहोवा परमेश्‍वर अपने पवित्र मंदिर में है

23 यशायाह का हवाला देते हुए, यीशु दिखा रहा था कि उसके दिनों में यह भविष्यवाणी पूरी हो रही थी। इक्का-दुक्का लोगों को छोड़ पूरी जाति का रवैया यशायाह के दिनों के यहूदियों जैसा था। जब यीशु ने उन्हें संदेश सुनाया तो उन्होंने खुद को अंधा और बहरा बना लिया और इसीलिए उन पर भी विनाश आया। (मत्ती 23:35-38; 24:1, 2) यह तब हुआ जब सा.यु. 70 में, जनरल टाइटस अपनी रोमी फौजों को लेकर आया और यरूशलेम नगर और उसके मंदिर को तहस-नहस कर दिया। फिर भी, कुछ लोगों ने यीशु की बात सुनी थी और उसके चेले भी बने। यीशु ने उन्हें “धन्य” कहा था। (मत्ती 13:16-23, 51) उसने उन्हें आगाह किया था कि जब वे “यरूशलेम को सेनाओं से घिरा हुआ” देखें, तब उन्हें “पहाड़ों पर भाग” जाना चाहिए। (लूका 21:20-22) इस तरह विश्‍वास रखनेवाला, इन लोगों का यह “पवित्र वंश” बचा रहा जो एक आत्मिक जाति, यानी ‘परमेश्‍वर का इस्राएल’ बन चुका था।​—गलतियों 6:16.

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प्र06 12/1 पेज 13 पै 4

यशायाह किताब की झलकियाँ​—I

7:3, 4​—यहोवा ने दुष्ट राजा आहाज से उद्धार का वादा क्यों किया? अराम और इस्राएल के राजा, यहूदा के राजा आहाज को राजगद्दी से हटाकर “ताबेल के पुत्र” को राजा बनाना चाहते थे, जो उनके हाथों की कठपुतली होता। लेकिन ताबेल, दाऊद के वंश से नहीं था। दरअसल, यह शैतान की एक साज़िश थी। क्योंकि यहोवा ने दाऊद के साथ राज्य की वाचा बाँधी थी और शैतान इस वाचा को लागू होने से रोकना चाहता था। इसलिए यहोवा ने आहाज को उद्धार देने का वादा किया ताकि “शान्ति का शासक” जिस वंश से आनेवाला था, वह बरकरार रहे।​—यशायाह 9:6, नयी हिन्दी बाइबिल।

15-21 दिसंबर

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“तेज़ रौशनी” की भविष्यवाणी

यशायाह-1 पेज 125-126 पै 16-17

शान्ति के शासक के आने का वादा

16 यशायाह ने जिन “बाद के दिनों” की भविष्यवाणी की थी, वे इस धरती पर मसीह की सेवकाई के दिन थे। यीशु की ज़्यादातर ज़िंदगी गलील में ही बीती थी। गलील प्रांत में ही उसने अपनी सेवकाई शुरू की और यह प्रचार करने लगा: “स्वर्ग का राज्य निकट आया है।” (मत्ती 4:17) गलील में ही उसने अपना मशहूर पहाड़ी उपदेश दिया था, वहीं अपने प्रेरितों को चुना था, वहीं पहला चमत्कार किया था और अपने पुनरुत्थान के बाद लगभग 500 चेलों को वहीं दिखायी दिया था। (मत्ती 5:1–7:27; 28:16-20; मरकुस 3:13, 14; यूहन्‍ना 2:8-11; 1 कुरिन्थियों 15:6) इस तरह, यीशु ने “जबूलून और नप्ताली के देशों” की महिमा करके यशायाह की भविष्यवाणी पूरी की। बेशक, यीशु ने सिर्फ गलील के लोगों को ही प्रचार नहीं किया था। उसने सारे देश में सुसमाचार का प्रचार करके, सारी इस्राएल जाति को और यहूदा को भी ‘महिमान्वित किया।’

17 लेकिन, मत्ती ने गलील में जिस “बड़ी ज्योति” का ज़िक्र किया उसके बारे में क्या कहा जा सकता है? यह भी यशायाह की भविष्यवाणी का ही हवाला था। यशायाह ने लिखा: “जो लोग अन्धियारे में चल रहे थे उन्हों ने बड़ा उजियाला देखा; और जो लोग घोर अन्धकार से भरे हुए मृत्यु के देश में रहते थे, उन पर ज्योति चमकी।” (यशायाह 9:2) पहली सदी तक, झूठे धर्म की शिक्षाओं की वजह से सच्चाई की ज्योति छिपी हुई थी। और-तो-और, यहूदी धर्मगुरुओं ने इस मुश्‍किल को और भी बढ़ा दिया, क्योंकि वे अपनी धार्मिक परंपराओं से बुरी तरह चिपके रहे जिनसे उन्होंने “परमेश्‍वर के वचन को व्यर्थ कर दिया” था। (मत्ती 15:6, NHT) जो दीन थे उन्हें सताया जा रहा था, उन्हें समझ नहीं आता था कि वे कहाँ जाएँ, इसलिए वे इन ‘अन्धे अगुवों’ की बतायी राह पर चलते थे। (मत्ती 23:2-4, 16) मगर जब मसीहा यानी यीशु प्रकट हुआ, तो बहुत से दीन जनों की आँखें अद्‌भुत तरीके से खुल गयीं। (यूहन्‍ना 1:9, 12) यीशु ने इस धरती पर जो काम किए और उसके बलिदान से जो आशीषें मिलीं, उन्हें यशायाह की भविष्यवाणी में सही मायनों में “बड़ा उजियाला” या ज्योति कहा गया है।​—यूहन्‍ना 8:12.

यशायाह-1 पेज 128 पै 18-19

शान्ति के शासक के आने का वादा

18 जिन लोगों ने इस उजियाले को स्वीकार किया उन्हें ढेरों खुशियाँ मिलीं। यशायाह आगे कहता है: “तू ने जाति को बढ़ाया, तू ने उसको बहुत आनन्द दिया; वे तेरे साम्हने कटनी के समय का सा आनन्द करते हैं, और ऐसे मगन हैं जैसे लोग लूट बांटने के समय मगन रहते हैं।” (यशायाह 9:3) यीशु और उसके चेलों के प्रचार की वजह से, सच्चे दिल के लोग आगे आए और उन्होंने आत्मा और सच्चाई से यहोवा की उपासना करने की इच्छा ज़ाहिर की। (यूहन्‍ना 4:24) चार साल से भी कम समय के अंदर, हज़ारों लोग मसीही बने। सा.यु. 33 में पिन्तेकुस्त के दिन तीन हज़ार लोगों का बपतिस्मा हुआ। और उसके कुछ ही समय बाद, “उन की गिनती पांच हजार पुरुषों के लगभग हो गई।” (प्रेरितों 2:41; 4:4) जब यीशु के चेलों ने पूरे जोश के साथ यह उजियाला फैलाया, तब “यरूशलेम में चेलों की गिनती बहुत बढ़ती गई; और याजकों का एक बड़ा समाज इस मत के आधीन हो गया।”​—प्रेरितों 6:7.

19 यीशु के चेलों को यह बढ़ोतरी देखकर वैसी ही खुशी मिल रही थी जैसी भरपूर फसल काटने पर या लड़ाई में दुश्‍मन को हराकर उसका लूटा हुआ धन आपस में बाँटने पर मिलती है। (प्रेरितों 2:46, 47) कुछ समय बाद, यहोवा ने यह उजियाला अन्यजाति के लोगों पर भी फैलाना शुरू किया। (प्रेरितों 14:27) इसलिए सारी जातियों के लोग इस बात से आनंदित हुए कि यहोवा के करीब जाने का रास्ता अब उनके लिए भी खुल गया है।​—प्रेरितों 13:48.

यशायाह-1 पेज 128-129 पै 20-21

शान्ति के शासक के आने का वादा

20 मसीहा ने जो कुछ किया उसका असर सदा तक रहेगा, जैसे कि यशायाह के अगले शब्दों से नज़र आता है: “तू ने उसकी गर्दन पर के भारी जूए और उसके बहंगे के बांस, उस पर अंधेर करनेवाले की लाठी, इन सभों को ऐसा तोड़ दिया है जैसे मिद्यानियों के दिन में किया था।” (यशायाह 9:4) यशायाह के ज़माने से कई सदियाँ पहले, मिद्यानियों ने मोआबियों के साथ मिलकर साज़िश रची ताकि वे इस्राएलियों को फंदे में फँसाकर उनसे पाप करवाएँ। (गिनती 25:1-9, 14-18; 31:15, 16) बाद में, मिद्यानी सात साल तक आतंक मचाते रहे, इस्राएलियों के गाँवों और खेतों पर हमला करके उन्हें लूटते रहे। (न्यायियों 6:1-6) मगर, तब यहोवा ने अपने सेवक गिदोन के ज़रिए मिद्यान की सेना को इतनी बुरी तरह से मारा कि “मिद्यानियों के [उस] दिन” के बाद, यह ज़िक्र नहीं मिलता कि उन्होंने फिर कभी यहोवा के लोगों पर ज़ुल्म ढाए हों। (न्यायियों 6:7-16; 8:28) इसी तरह बहुत जल्द महान गिदोन, यीशु मसीह भी आज के ज़माने में यहोवा के लोगों के दुश्‍मनों का सर्वनाश कर देगा। (प्रकाशितवाक्य 17:14; 19:11-21) उस वक्‍त, किसी इंसान की ताकत से नहीं बल्कि “जैसे मिद्यानियों के दिन में” हुआ था, वैसे ही यहोवा की शक्‍ति से पूरी तरह और हमेशा के लिए जीत हासिल होगी। (न्यायियों 7:2-22) परमेश्‍वर के लोगों को फिर कभी ज़ुल्म का जूआ नहीं सहना पड़ेगा!

21 परमेश्‍वर ने कभी-भी युद्ध और हिंसा को बढ़ावा देने के मकसद से अपनी शक्‍ति का प्रदर्शन नहीं किया है। पुनरुत्थान पा चुका यीशु, शान्ति का शासक है और वह सदा की शान्ति लाने के लिए ही अपने दुश्‍मनों का नामो-निशान मिटाएगा। यशायाह अब बताता है कि युद्ध में इस्तेमाल होनेवाली हर चीज़ कैसे आग में भस्म कर दी जाएगी: “युद्ध में धप धप करने वाले प्रत्येक योद्धा के जूते, और खून में सने कपड़े जलाने के लिए आग का ईंधन ही होंगे।” (यशायाह 9:5, NHT) युद्ध लड़ने के लिए जा रहे सैनिकों के जूतों की कदम-ताल फिर कभी सुनायी नहीं पड़ेगी। पत्थर-दिल सैनिकों के खून से सने कपड़े फिर कभी नज़र नहीं आएँगे। फिर कभी युद्ध नहीं होगा, वह हमेशा के लिए मिट जाएगा!​—भजन 46:9.

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यशायाह-1 पेज 130 पै 23-24

शान्ति के शासक के आने का वादा

23 परामर्शदाता वह होता है जो किसी को सलाह दे या समझाए। पृथ्वी पर रहते वक्‍त यीशु मसीह ने बहुत ही अद्‌भुत सलाहें दी थीं। बाइबल में लिखा है कि “भीड़ उसके उपदेश से चकित हुई” थी। (मत्ती 7:28) वह बहुत ही बुद्धिमान और दूसरों की भावनाओं को समझनेवाला सलाहकार है। उसे इंसान के स्वभाव की असाधारण समझ है। वह परामर्श देते वक्‍त सिर्फ ताड़ना या फटकार नहीं सुनाता, बल्कि ज़्यादातर समय वह बड़े प्यार से समझाता है कि हमें क्या करना चाहिए। यीशु की सलाह इसलिए अद्‌भुत है, क्योंकि यह बुद्धि से भरी और एकदम सिद्ध है और हमेशा अचूक होती है। अगर हम यीशु की सलाह को मानें तो इससे हमें अनंत जीवन मिलेगा।​—यूहन्‍ना 6:68.

24 यीशु की सलाह उसकी अपनी बेजोड़ बुद्धि की उपज नहीं है। वह खुद बताता है: “मेरा उपदेश मेरा नहीं, परन्तु मेरे भेजनेवाले का है।” (यूहन्‍ना 7:16) जैसे सुलैमान के मामले में था, वैसे ही यीशु को बुद्धि और समझ देनेवाला यहोवा परमेश्‍वर ही है। (1 राजा 3:7-14; मत्ती 12:42) यीशु की मिसाल देखकर, मसीही कलीसिया में शिक्षा और सलाह देनेवालों को यह प्रेरणा मिलनी चाहिए कि वे हमेशा परमेश्‍वर के वचन, बाइबल के आधार पर ही सलाह दें।​—नीतिवचन 21:30.

22-28 दिसंबर

पाएँ बाइबल का खज़ाना यशायाह 11-13

मसीहा की पहचान

यशायाह-1 पेज 159 पै 4-5

मसीहा के राज में उद्धार और आनंद

4 यशायाह के ज़माने से कई सदियों पहले, इब्रानी भाषा में बाइबल लिखनेवाले दूसरे लेखकों ने भी मसीहा के आने का इशारा किया था। यही वह सच्चा प्रधान था जिसे यहोवा इस्राएलियों के पास भेजनेवाला था। (उत्पत्ति 49:10; व्यवस्थाविवरण 18:18; भजन 118:22, 26) अब यशायाह के ज़रिए यहोवा इस प्रधान के बारे में और ज़्यादा जानकारी देता है। यशायाह लिखता है: “यिशै के ठूंठ में से एक अंकुर फूट निकलेगा, हां, उसकी जड़ में से एक शाखा निकलकर फलवन्त होगी।” (यशायाह 11:1, NHT. भजन 132:11 से तुलना कीजिए।) “अंकुर” और “शाखा” दोनों ही शब्दों से इस बात का संकेत मिलता है कि मसीहा, यिशै के पुत्र दाऊद के वंश से होगा जिसे इस्राएल का राजा नियुक्‍त करने के लिए तेल से अभिषिक्‍त किया गया था। (1 शमूएल 16:13; यिर्मयाह 23:5; प्रकाशितवाक्य 22:16) सच्चा मसीहा जब आएगा तो दाऊद के घराने की “शाखा” होने के नाते वह अच्छा फल लाएगा।

5 जिस मसीहा के आने का वादा किया गया था, वह यीशु है। सुसमाचार की किताब लिखनेवाले मत्ती ने यशायाह 11:1 के शब्दों का हवाला देते हुए कहा कि यीशु के “नासरी” कहलाए जाने से भविष्यवक्‍ताओं का वचन पूरा हुआ। यीशु को इसलिए नासरी कहा गया क्योंकि उसकी परवरिश नासरत नगर में हुई। ऐसा लगता है कि इस नगर का नाम, यशायाह 11:1 में “अंकुर” शब्द के लिए इस्तेमाल हुए इब्रानी शब्द से संबंध रखता है।​—मत्ती 2:23, NHT, फुटनोट; लूका 2:39, 40.

यशायाह-1 पेज 159-160 पै 6

मसीहा के राज में उद्धार और आनंद

6 मसीहा को कैसा राजा होना था? क्या वह क्रूर अश्‍शूरी की तरह होगा जो अपनी मरज़ी पूरी करता था और जिसने उत्तर के इस्राएल राज्य के दस गोत्रों को मिटा डाला था? हरगिज़ नहीं। मसीहा के बारे में, यशायाह कहता है: “यहोवा की आत्मा, बुद्धि और समझ की आत्मा, युक्‍ति और पराक्रम की आत्मा, और ज्ञान और यहोवा के भय की आत्मा उस पर ठहरी रहेगी। और उसको यहोवा का भय सुगन्ध सा भाएगा।” (यशायाह 11:2, 3क) मसीहा का अभिषेक तेल से नहीं, बल्कि परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा से किया गया। यह तब हुआ जब यीशु ने बपतिस्मा लिया, और यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले ने देखा कि परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा एक कबूतर के रूप में यीशु पर उतर रही है। (लूका 3:22) यहोवा की आत्मा, यीशु पर ‘ठहरी रहती’ है और जब यीशु बुद्धि, समझ, युक्‍ति, पराक्रम और ज्ञान से काम लेता है, तो वह इसका सबूत देता है। एक राजा में ये सारे गुण होने कितने ज़रूरी हैं!

यशायाह-1 पेज 160 पै 8

मसीहा के राज में उद्धार और आनंद

8 मसीहा किस तरह यहोवा के लिए भय दिखाता है? बेशक यीशु, परमेश्‍वर के सामने सज़ा पाने के डर से थर-थर काँपता नहीं रहता। इसके बजाय, मसीहा के मन में परमेश्‍वर के लिए गहरा आदर और श्रद्धा है। वह परमेश्‍वर को दिल से प्यार करता है, इसलिए उसका भय मानता है। परमेश्‍वर का भय माननेवाला हर इंसान यीशु की तरह हमेशा ऐसे काम करना चाहता है “जिस से [परमेश्‍वर] प्रसन्‍न” हो। (यूहन्‍ना 8:29) यीशु अपनी कथनी और करनी से यह सिखाता है कि हर दिन दिल से यहोवा का भय मानकर चलने से ज़्यादा खुशी किसी और बात से नहीं मिल सकती।

यशायाह-1 पेज 161 पै 9

मसीहा के राज में उद्धार और आनंद

9 यशायाह, मसीहा के कुछ और गुणों के बारे में भविष्यवाणी करता है: “वह मुंह देखा न्याय न करेगा और न अपने कानों के सुनने के अनुसार निर्णय करेगा।” (यशायाह 11:3ख) अगर आपको किसी अदालत में पेश होना पड़े, तो क्या आप नहीं चाहेंगे कि आपका जज भी ऐसा ही हो? पूरी दुनिया का न्याय करने के लिए ठहराए गए जज की हैसियत से, मसीहा झूठी दलीलों, अदालती हथकंडों या अफवाहों के झाँसे में नहीं आता, और किसी का बाहरी रुतबा जैसे धन-दौलत उसकी नज़रों में कोई मायने नहीं रखता। उसकी नज़रों से कपट छिप नहीं सकता, साथ ही उसकी पारखी नज़र पहचान सकती है कि एक खस्ताहाल इंसान का असल में दिल कैसा है। वह ‘छिपे हुए और गुप्त मनुष्यत्व’ को या अंदर छिपे इंसान को देखने की काबिलीयत रखता है। (1 पतरस 3:4) यीशु की सर्वश्रेष्ठ मिसाल उन सभी के लिए बहुत ही बढ़िया आदर्श है जिन्हें मसीही कलीसिया में कई मामलों का न्याय करने की ज़िम्मेदारी सौंपी जाती है।​—1 कुरिन्थियों 6:1-4.

यशायाह-1 पेज 161-163 पै 11

मसीहा के राज में उद्धार और आनंद

11 जब यीशु के चेलों को ताड़ना की ज़रूरत होती है तब वह उन्हें इस तरीके से सुधारता है जिससे उन्हें ज़्यादा-से-ज़्यादा फायदा हो। मसीही प्राचीनों के लिए यीशु क्या ही बढ़िया मिसाल है! लेकिन जो दुष्टता के कामों में लगे रहते हैं, यीशु उनका न्याय कड़ाई से करता है। जब परमेश्‍वर इस दुनिया से लेखा लेगा, तब मसीहा अपनी ज़ोरदार आवाज़ से ‘पृथ्वी को मारेगा,’ और सब दुष्टों के मिटाए जाने का हुक्म देगा। (भजन 2:9. प्रकाशितवाक्य 19:15 से तुलना कीजिए।) इसके बाद, ऐसा वक्‍त आएगा जब इंसानों की शांति को भंग करनेवाला एक भी दुष्ट बाकी नहीं बचेगा। (भजन 37:10, 11) यीशु की कटि और कमर, धार्मिकता और सच्चाई के फेंटे से कसी हुई है, और वह यह सब करने की ताकत रखता है।​—भजन 45:3-7.

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यशायाह-1 पेज 165-166 पै 16-18

मसीहा के राज में उद्धार और आनंद

16 शुद्ध उपासना पर पहली बार हमला तब हुआ, जब अदन में शैतान ने आदम और हव्वा को बहकाकर उनसे यहोवा की आज्ञा तुड़वायी थी। तब से शैतान ने हार नहीं मानी है, वह आज भी ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को परमेश्‍वर से दूर ले जाने की फिराक में लगा हुआ है। मगर यहोवा, शुद्ध उपासना को धरती से कभी मिटने नहीं देगा। यह उसकी इज़्ज़त का, उसके नाम का सवाल है और वह उन लोगों की बहुत परवाह करता है जो उसकी सेवा करते हैं। इसलिए परमेश्‍वर, यशायाह के ज़रिए यह अनोखा वादा करता है: “उस समय यिशै की जड़ देश देश के लोगों के लिये एक झण्डा होगी; सब राज्यों के लोग उसे ढूंढ़ेंगे, और उसका विश्रामस्थान तेजोमय होगा।” (यशायाह 11:10) यरूशलेम नगर ने, जिसे दाऊद ने अपनी राजधानी बनाया था, सा.यु.पू. 537 में मानो एक झंडे का काम किया। यह नगर यहाँ-वहाँ बिखरे यहूदियों में से बचे-खुचे वफादार लोगों को बुलावा दे रहा था कि वे लौटकर आएँ और परमेश्‍वर के मंदिर को दोबारा बनाएँ।

17 लेकिन, इस भविष्यवाणी में इससे भी ज़्यादा कुछ बताया गया है। जैसे कि हम पहले ही देख चुके हैं, यह भविष्यवाणी उस मसीहा के राज की तरफ इशारा करती है जो सब देशों के लोगों का एकमात्र सच्चा प्रधान है। प्रेरित पौलुस ने यह समझाने के लिए यशायाह 11:10 का हवाला दिया कि उसके दिनों में गैर-यहूदी या अन्यजातियों के लोग भी मसीही कलीसिया में शामिल किए जाएँगे। सेप्टुआजेंट अनुवाद से हवाला देते हुए उसने लिखा: “यशायाह कहता है, कि यिशै की एक जड़ प्रगट होगी, और अन्यजातियों का हाकिम होने के लिये एक उठेगा, उस पर अन्यजातियां आशा रखेंगी।” (रोमियों 15:12) इतना ही नहीं, यह भविष्यवाणी आज हमारे समय में भी पूरी हो रही है, क्योंकि आज सब जातियों के लोग मसीहा के अभिषिक्‍त भाइयों का साथ देकर, यहोवा के लिए अपने प्रेम का सबूत दे रहे हैं।​—यशायाह 61:5-9; मत्ती 25:31-40.

18 आज के ज़माने में, यशायाह 11:10 में बताए गए “उस समय” की शुरूआत तब हुई जब सन्‌ 1914 में मसीहा को परमेश्‍वर के स्वर्गीय राज्य का राजा ठहराया गया। (लूका 21:10; 2 तीमुथियुस 3:1-5; प्रकाशितवाक्य 12:10) तब से यीशु मसीह एक झंडे या एक निशानी की तरह साफ नज़र आ रहा है। इस झंडे के तले आत्मिक इस्राएली और अन्यजातियों के वे सभी लोग इकट्ठे हो रहे हैं जो एक धर्मी सरकार के लिए तरसते हैं। जैसे यीशु ने खुद भविष्यवाणी की थी उसकी निगरानी में, आज परमेश्‍वर के राज्य की खुशखबरी सब जातियों में सुनायी जा रही है। (मत्ती 24:14; मरकुस 13:10) इस खुशखबरी का बहुत ज़बरदस्त असर हुआ है। “हर एक जाति . . . में से एक ऐसी बड़ी भीड़, जिसे कोई गिन नहीं सकता” निकलकर मसीहा के अधीन हो रही है, और बचे हुए अभिषिक्‍त जनों के साथ शुद्ध उपासना करने के लिए इकट्ठी हो रही है। (प्रकाशितवाक्य 7:9) जैसे-जैसे बड़ी तादाद में नए लोग यहोवा के आत्मिक “प्रार्थना के भवन” में अभिषिक्‍त जनों के साथ जमा हो रहे हैं, वैसे-वैसे मसीहा के “विश्रामस्थान” यानी परमेश्‍वर के महान आत्मिक मंदिर की महिमा में चार चाँद लगते जा रहे हैं।​—यशायाह 56:7; हाग्गै 2:7.

29 दिसंबर–4 जनवरी

पाएँ बाइबल का खज़ाना यशायाह 14-16

परमेश्‍वर के लोगों के दुश्‍मनों को सज़ा मिलकर ही रहेगी

यशायाह-1 पेज 180-181 पै 16

यहोवा एक मगरूर नगर का घमंड चूर करता है

16 यह सब कुछ सा.यु.पू. 539 में फौरन नहीं हो गया। लेकिन आज यह बिलकुल साफ देखा जा सकता है कि यशायाह ने बाबुल के बारे में जो कुछ कहा था वह सच साबित हुआ है। बाइबल के एक व्याख्याकार के मुताबिक, पहले जहाँ बाबुल था “आज वह जगह सदियों से उजाड़ पड़ी है। और जहाँ देखो वहाँ बस खंडहरों का ढेर ही दिखाई देता है।” इसके बाद वे आगे कहते हैं: “हो नहीं सकता कि आप यह नज़ारा देख रहे हों और आपके मन में यह बात ना आए कि यशायाह और यिर्मयाह की भविष्यवाणियों का एक-एक शब्द कितनी अच्छी तरह पूरा हुआ है।” तो ज़ाहिर है कि यशायाह के दिनों में रहनेवाला कोई भी इंसान यह भविष्यवाणी नहीं कर सकता था कि एक दिन बाबुल गिर पड़ेगा और बाद में पूरी तरह उजड़ जाएगा। क्योंकि गौर करने लायक बात है कि यशायाह के अपनी किताब में ये भविष्यवाणियाँ लिखने के 200 साल बाद मादियों और फारसियों के हाथों बाबुल गिरा था! और उसे पूरी तरह उजड़ जाने में तो कई सदियाँ लग गयीं। इस बात से, क्या हमारा विश्‍वास मज़बूत नहीं होता कि बाइबल परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखा गया वचन है? (2 तीमुथियुस 3:16) यही नहीं, यह देखकर कि गुज़रे वक्‍तों में भी यहोवा ने हर भविष्यवाणी का एक-एक शब्द पूरा किया था, हम पूरा भरोसा रख सकते हैं कि बाइबल की जो भविष्यवाणियाँ अब तक पूरी नहीं हुई हैं, वे भी परमेश्‍वर के ठहराए हुए समय में ज़रूर पूरी होंगी।

यशायाह-1 पेज 184 पै 24

यहोवा एक मगरूर नगर का घमंड चूर करता है

24 बाइबल में राजा दाऊद के शाही घराने के राजाओं को तारों जैसा बताया गया है। (गिनती 24:17) दाऊद के बाद से ये ‘तारे’ सिय्योन पर्वत से राज करते थे। सुलैमान ने जब यरूशलेम में मंदिर बनवाया तो उसके बाद से सारे नगर का नाम सिय्योन पड़ गया। मूसा की कानून-व्यवस्था में, इस्राएल के सभी पुरुषों को साल में तीन बार सिय्योन जाने की आज्ञा दी गयी थी। इसलिए, यह ‘सभा का पर्वत’ कहलाया जाने लगा। जब नबूकदनेस्सर ने यह ठाना कि वह यहूदा के राजाओं को हराकर उन्हें उस पर्वत से हटा देगा, तो वह खुद को इन “तारागण” से अधिक ऊँचा करने का अपना इरादा ज़ाहिर कर रहा था। यहूदा के राजाओं पर जीत पाने का श्रेय वह यहोवा को नहीं देता। इसके बजाय, वह ऐसा करके यहोवा की बराबरी करने की जुर्रत करता है।

यशायाह-1 पेज 189 पै 1

जातियों के खिलाफ यहोवा की युक्‍ति

यहोवा चाहे तो अपने लोगों को उनकी दुष्टता की सज़ा देने के लिए दूसरी जातियों का इस्तेमाल कर सकता है। फिर भी, वह इन जातियों की हद-से-ज़्यादा क्रूरता, उनके घमंड और शुद्ध उपासना के खिलाफ उनकी नफरत को अनदेखा नहीं करता। इसीलिए, बहुत पहले उसने यशायाह को प्रेरित किया कि वह ‘बाबुल के विषय एक भारी भविष्यवाणी’ लिखे। (यशायाह 13:1) यहोवा के चुने हुए लोगों को बहुत समय के बाद जाकर कहीं बाबुल से खतरा होगा, अभी तो यशायाह के दिनों में अश्‍शूर उन पर ज़ुल्म ढा रहा है। अश्‍शूर, उत्तर के इस्राएल राज्य को तबाह कर चुका है और वह यहूदा को भी काफी हद तक तहस-नहस कर चुका है। मगर अश्‍शूर की यह जीत बस कुछ ही दिनों की है। यशायाह लिखता है: “सेनाओं के यहोवा ने यह शपथ खाई है, नि:सन्देह जैसा मैं ने ठाना है, वैसा ही हो जाएगा, . . . कि मैं अश्‍शूर को अपने ही देश में तोड़ दूंगा, और अपने पहाड़ों पर उसे कुचल डालूंगा; तब उसका जूआ उनकी गर्दनों पर से और उसका बोझ उनके कंधों पर से उतर जाएगा।” (यशायाह 14:24, 25) यशायाह के यह भविष्यवाणी करने के कुछ ही समय बाद, यहूदा के दिल से अश्‍शूरियों का डर हमेशा-हमेशा के लिए दूर कर दिया गया।

यशायाह-1 पेज 194 पै 12

जातियों के खिलाफ यहोवा की युक्‍ति

12 यह भविष्यवाणी कब पूरी होगी? बहुत जल्द। “यही वह बात है जो यहोवा ने इस से पहिले मोआब के विषय में कही थी। परन्तु अब यहोवा ने यों कहा है कि मज़दूरों के वर्षों के समान तीन वर्ष के भीतर मोआब का विभव और उसकी भीड़-भाड़ सब तुच्छ ठहरेगी; और थोड़े जो बचेंगे उनका कोई बल न होगा।” (यशायाह 16:13, 14) यह भविष्यवाणी पूरी हुई। पुरातत्व से इस बात के सबूत मिले हैं कि सा.यु.पू. आठवीं सदी के दौरान, मोआब पर इतनी तबाही आयी कि उसके कई इलाकों की आबादी ना के बराबर रह गयी थी। राजा तिग्लत्पिलेसेर III लिखता है कि मोआब का राजा सालामानू उसके अधीन था और दूसरे राजाओं की तरह उसे नज़राने की रकम भेजा करता था। सन्हेरीब को मोआब के काम्मूसुनादबी राजा से नज़राना मिलता था। अश्‍शूर के सम्राटों एसर्हद्दोन और अश्‍शूरबनीपाल ने बताया कि मोआब के मुसुरी और कामाशालतू राजा उनके आधीन थे। आज मोआबी लोगों का नामो-निशान मिटे हुए सदियाँ बीत चुकी हैं। खुदाई में कुछ खंडहर मिले हैं जिन्हें मोआबी नगरों के खंडहर समझा गया था। मगर ताज्जुब की बात है कि मोआब, जो एक वक्‍त इस्राएल का इतना ज़बरदस्त दुश्‍मन था, उसके वजूद में होने का शायद ही कोई सबूत अब तक मिला है।

ढूँढ़ें अनमोल रत्न

प्र06 12/1 पेज 14 पै 11

यशायाह किताब की झलकियाँ​—I

14:1, 2​—यहोवा के लोग कैसे “बंधुआई में ले जानेवालों को बंधुआ करेंगे” और “जो उन पर अत्याचार करते थे उन पर शासन करेंगे”? यह बात परमेश्‍वर के कुछ लोगों के बारे में सच निकली। जैसे, दानिय्येल जिसे मादियों और फारसियों के राज में बाबुल में एक ऊँचे ओहदे पर नियुक्‍त किया गया था; एस्तेर जो फारस के राजा की रानी बनी; और मोर्दकै जिसे फारसी साम्राज्य का प्रधान मंत्री बनाया गया।

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